ऑपरेशन शुरू हो गया. महर्षि वीराचार्य ने मेरे मस्तिष्क को मेरे शरीर से निकालकर धातुई शरीर में स्थानांतरित कर दिया. उन्होंने उसका सम्बन्ध ऊर्जा पहुंचाने वाली मशीन से कर दिया था. किंतु यहीं पर गड़बड़ हो गई.इससे पहले की महर्षि मेरे शरीर का सम्बन्ध पूरी तरह मेरे धातुई शरीर से कर पाते, दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया. किंतु उससे पहले वे ऊर्जा पहुंचाने वाली मशीन को चालू कर चुके थे. इस प्रकार अब मैं केवल देख और सोच सकता था. इसके अतिरिक्त अन्य कार्यों में किसी मूर्ति की तरह ही जड़ हो चुका था.
हमारे प्रयोग के बारे में जानने वालों ने यही समझा कि मैं और महर्षि वीराचार्य पूरी तरह मृत हो चुके हैं. अतः उन्होंने हम दोनों के शरीर भूमि में दफना दिए. और उसके बाद मेरी प्रयोगशाला को पत्थर से बंद कर दिया. इस प्रकार अब मैं प्रयोगशाला में अकेला बेजान मूर्ति की तरह खड़ा था. सोच सोचकर और एक ही दिशा में लगातार देखकर बोर होने के लिए. क्योंकि मैं अपनी पुतलियाँ भी नहीं हिला सकता था.
किंतु मानवीय मस्तिष्क पृथ्वी की सबसे शक्तिशाली रचना है. वह कभी हार नहीं मानता. और हर कठिनाई के नए रास्ते निकाल ही लेता है. मेरे मस्तिष्क ने भी योग क्रिया द्वारा अपनी शक्ति बढानी शुरू कर दी. उसे मशीन द्वारा लगातार ऊर्जा मिल ही रही थी.
फ़िर लगभग सौ वर्षों में मेरे मस्तिष्क ने इतनी शक्ति प्राप्त कर ली कि वह अपने आसपास का कोई भी काम बिना हिले डुले केवल अपनी शक्ति किरणों से कर सकता था. और आसपास क्या हो रहा है, बिना वहां गए जान सकता था. फ़िर धीरे धीरे उसकी शक्ति और बढती गई और मेरा मस्तिष्क इतना विकसित हो गया कि शरीर की आवश्यकता ही समाप्त हो गई. मेरी शक्ति का एक नमूना तुम लोग देख चुके हो. जब मैंने उन दोनों व्यक्तियों को जला दिया था. इसके अलावा तुम जब अपने ताबूतों में लेटे थे तब भी मेरी नज़रों में थे और जब तुम्हारा संपर्क इस युग की दुनिया के साथ हुआ उस समय भी हर पल मेरी नज़रों में रहे. फ़िर मुझे उस साजिश का पता भी लग गया जो ब्लैक क्रॉस और ब्लू क्रॉस तुम लोगों के साथ करना चाहते थे. किंतु मैं उस समय कुछ नहीं कर सकता था क्योंकि मेरी शक्ति की पहुँच वहां तक नहीं थी. फ़िर संयोग से तुम लोग यहाँ पहुँच गए और मैंने तुम्हें अपने पास बुला लिया क्योंकि बाहरी दुनिया में अब तुम्हारे लिए खतरा उत्पन्न हो रहा था. इस प्रकार तुम लोग इस समय मेरे मस्तिष्क के सामने खड़े हो." मूर्ति से आ रही आवाज़ ने अपनी बात समाप्त की.
-------------
सियाकरण इत्यादि आश्चर्य से महर्षि प्रयोगाचार्य की कहानी सुन रहे थे. उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था की ऐसा भी संभव है. किंतु वे महर्षि की महानता से भी पूरी तरह अवगत थे अतः उन्होंने विश्वास कर लिया कि ये सारी बातें सत्य हैं.
"अब आपका क्या विचार है महर्षि?" सियाकरण ने पुछा.
"मैंने यह देखा कि तुम लोगों को बाहरी दुनिया में काफ़ी कठिनाई हुई. और इसका कारण यह था कि तुम लोगों के लिए वह दुनिया अपरिचित थी. न तो तुम लोग उसकी भाषा जानते थे और न ही उनके प्रयोग की वस्तुओं के बारे में जानते थे. अतः मैंने यह तये किया है की तुम्हें इस युग की सारी बातों से अवगत करा दूँ. वैसे भी मेरा जीवन अब बहुत कम रह गया है, क्योंकि मुझे ऊर्जा देने वाला स्रोत सूखता जा रहा है. इससे पहले की मेरा जीवन पूरी तरह समाप्त हो जाए मैं अपने ज्ञान के भण्डार का कुछ अंश तुम लोगों को दे देना चाहता हूँ. फ़िर उसके बाद तुम लोग आराम से बाहरी दुनिया में अपना जीवन व्यतीत करना."
"हमें आपके विचार जानकर बहुत प्रसन्नता हुई. हमें गर्व है की इस युग में भी हम आपके शिष्य होंगे." मारभट ने कहा. सबने उसकी हाँ में हाँ मिलाई.
फ़िर उनकी शिक्षा प्रारंभ हो गई जो महर्षि प्रयोगाचार्य का मस्तिष्क उन्हें दे रहा था. और इस शिक्षा के बाद उन्हें बाहरी दुनिया में घुलमिल जाना था.
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Tuesday, February 10, 2009
Sunday, February 8, 2009
ताबूत - एपिसोड 58
"जब मैंने तुम लोगों को सदियों के बाद जागने के लिए ताबूतों में सुला दिया तो मेरे मन में यह विचार उत्पन्न हुआ की काश मैं भी तुम लोगों को उस युग में देख पाता जो तुम लोग हजारों वर्षों बाद देखने वाले थे. इसपर मैंने सोचना शुरू किया कि यह कैसे संभव हो सकता है. क्योंकि अपनी आयु बढ़ाना संभव नहीं था. कारण यह है कि मानव शरीर का आयु बढ़ने के साथ साथ क्षय होता रहता है. और यह क्षय अधिक आयु में इतना बढ़ जाता है कि उसे रोक पाना किसी शक्ति के बस का नहीं है. या फ़िर शरीर को इस प्रकार सुरक्षित कर लिया जाए जैसा कि तुम लोगों का किया था. किंतु मैं हजारों वर्ष पूरे होश - हवास के साथ बिताना चाहता था.
अब मैंने दूसरे पहलू से सोचना शुरू किया. मैंने सोचा कि पूरे शरीर की आयु बढ़ाने की बजाये यदि केवल अपना मस्तिष्क सुरक्षित कर लिया जाए तो उसको सतत रूप से किसी बाहरी स्रोत द्वारा ऊर्जा देकर उससे काफी समय तक काम लिया जा सकता है. फ़िर मैंने इस दिशा में काम शुरू कर दिया. मैंने एक विशेष प्रकार की धातु से यह मूर्ति बनाई जिसका क्षय नही होता था. इसकी संरचना हूबहू मानव शरीर जैसी थी. केवल इसमें मस्तिष्क नही था. अब समस्या थी इसमें अपना मस्तिष्क प्रत्यारोपित करने की और साथ ही ऐसा प्रबंध करना था कि यह मस्तिष्क कभी नष्ट न हो और साथ ही इसको अपना कार्य करने के लिए बराबर ऊर्जा मिलती रहे.
इस कार्य के लिए मैंने एक मशीन बनाई. यदि तुम इस मूर्ति के पीछे देखो तो एक बाक्स के आकार का यंत्र तुम्हें मूर्ति की पीठ से जुड़ा मिलेगा. इसका कार्य था मस्तिष्क को बराबर ऊर्जा पहुंचाते रहना और साथ ही ऐसा प्रबंध करना कि मस्तिष्क में हुई किसी भी टूट फ़ुट की तुंरत मरम्मत हो जाए.
यह प्रबंध करने के बाद अब समस्या थी कि मैं अपने मस्तिष्क को इस मूर्ति में कैसे प्रतिस्थापित करुँ. वास्तव में यही सबसे गहन समस्या थी. क्योंकि मैं स्वयें अपनी शल्य क्रिया करके अपने मस्तिष्क का प्रत्यारोपण इस मूर्ति में नहीं कर सकता था और किसी अन्य से यह कार्य नहीं करवा सकता था. क्योंकि किसी के पास इसकी योग्यता नहीं थी.
फ़िर मेरी इस समस्या का समाधान हो गया. क्योंकि महर्षि वीराचार्य ने मुझे सहयोग देना स्वीकार कर लिया था. तुम लोग शायद महर्षि वीराचार्य को नहीं जानते होगे क्योंकि वे बचपन में ही ज्ञान प्राप्त करने के लिए चीन चले गए थे और वहां से तब लौटे जब तुम लोग ताबूतों में सो गए थे. उनके बराबर चिकित्सा में प्रवीण उस समय और कोई नहीं था. मैं भी नहीं.
फ़िर उसके बाद मेरे आपरेशन की तय्यारियां शुरू हो गईं. एक ऐसा ऑपरेशन जिसके असफल होने का मतलब था मेरी मौत. और साथ ही इसका सफल होना भी मेरी मौत ही था, क्योंकि उसके बाद मेरा शरीर मृत हो जाता. किंतु उसके बाद एक नया जीवन भी मुझे मिलने जा रहा था. मैं एक मज़बूत धातु का लगभग अमर शरीर पा जाता.
अगले एपिसोड में पढिये इस रोचक कहानी का ट्विस्टिंग अंत.
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अब मैंने दूसरे पहलू से सोचना शुरू किया. मैंने सोचा कि पूरे शरीर की आयु बढ़ाने की बजाये यदि केवल अपना मस्तिष्क सुरक्षित कर लिया जाए तो उसको सतत रूप से किसी बाहरी स्रोत द्वारा ऊर्जा देकर उससे काफी समय तक काम लिया जा सकता है. फ़िर मैंने इस दिशा में काम शुरू कर दिया. मैंने एक विशेष प्रकार की धातु से यह मूर्ति बनाई जिसका क्षय नही होता था. इसकी संरचना हूबहू मानव शरीर जैसी थी. केवल इसमें मस्तिष्क नही था. अब समस्या थी इसमें अपना मस्तिष्क प्रत्यारोपित करने की और साथ ही ऐसा प्रबंध करना था कि यह मस्तिष्क कभी नष्ट न हो और साथ ही इसको अपना कार्य करने के लिए बराबर ऊर्जा मिलती रहे.
इस कार्य के लिए मैंने एक मशीन बनाई. यदि तुम इस मूर्ति के पीछे देखो तो एक बाक्स के आकार का यंत्र तुम्हें मूर्ति की पीठ से जुड़ा मिलेगा. इसका कार्य था मस्तिष्क को बराबर ऊर्जा पहुंचाते रहना और साथ ही ऐसा प्रबंध करना कि मस्तिष्क में हुई किसी भी टूट फ़ुट की तुंरत मरम्मत हो जाए.
यह प्रबंध करने के बाद अब समस्या थी कि मैं अपने मस्तिष्क को इस मूर्ति में कैसे प्रतिस्थापित करुँ. वास्तव में यही सबसे गहन समस्या थी. क्योंकि मैं स्वयें अपनी शल्य क्रिया करके अपने मस्तिष्क का प्रत्यारोपण इस मूर्ति में नहीं कर सकता था और किसी अन्य से यह कार्य नहीं करवा सकता था. क्योंकि किसी के पास इसकी योग्यता नहीं थी.
फ़िर मेरी इस समस्या का समाधान हो गया. क्योंकि महर्षि वीराचार्य ने मुझे सहयोग देना स्वीकार कर लिया था. तुम लोग शायद महर्षि वीराचार्य को नहीं जानते होगे क्योंकि वे बचपन में ही ज्ञान प्राप्त करने के लिए चीन चले गए थे और वहां से तब लौटे जब तुम लोग ताबूतों में सो गए थे. उनके बराबर चिकित्सा में प्रवीण उस समय और कोई नहीं था. मैं भी नहीं.
फ़िर उसके बाद मेरे आपरेशन की तय्यारियां शुरू हो गईं. एक ऐसा ऑपरेशन जिसके असफल होने का मतलब था मेरी मौत. और साथ ही इसका सफल होना भी मेरी मौत ही था, क्योंकि उसके बाद मेरा शरीर मृत हो जाता. किंतु उसके बाद एक नया जीवन भी मुझे मिलने जा रहा था. मैं एक मज़बूत धातु का लगभग अमर शरीर पा जाता.
अगले एपिसोड में पढिये इस रोचक कहानी का ट्विस्टिंग अंत.
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Saturday, February 7, 2009
ताबूत - एपिसोड 57
जैसे ही सुरंग का दरवाज़ा बंद हुआ, अन्दर तीव्र प्रकाश फ़ैल गया. इस प्रकाश में उन्हें हर वास्तु स्पष्ट दिख रही थी. वे लोग आगे बढ़ते गए और कुछ ही देर में एक बड़े से कमरे में पहुँच गए.
"मुझे यह स्थान कुछ जाना पहचाना लग रहा है." सियाकरण ने कहा.
"किंतु यह वह जगह तो हरगिज़ नहीं है जहाँ हम लोग सैंकडों वर्षों से सोये पड़े थे." मारभट ने कहा.
अचानक वही आवाज़ दोबारा गूंजी, "सियाकरण, क्या तुम अनुमान नहीं लगा सके की यह कौन सा स्थान है? तुम अपने चारों तरफ़ गौर से देखो तो शायद याद आ जाए." वह आवाज़ इन्हीं की भाषा में बोल रही थी. सियाकरण इत्यादि ने अपने चारों तरफ़ देखना शुरू किया. यह कमरा किसी प्राचीन युग की प्रयोगशाला से मिलता जुलता था. इस कमरे में चारों और पत्थर के कुछ बक्से रखे थे और उन बक्सों में प्रयोगों के लिए उपकरण रखे थे. फ़िर सियाकरण को याद आ गया.
"ओह! यह तो महर्षि प्रयोगाचार्य की प्रयोगशाला है. जहाँ उन्होंने अनेक अद्भुत आविष्कार किए हैं. इसी प्रयोगशाला में मैंने उनके साथ बीस वर्षों में कार्य किया था."
"तुम्हारी स्मरण शक्ति काफी अच्छी है सियाकरण. यह महर्षि की प्रयोगशाला ही है." उस आवाज़ ने कहा.
"किंतु तुम कौन हो? और कहाँ से बोल रहे हो?" सियाकरण ने आवाज़ के स्रोत की तलाश में इधर उधर दृष्टि दौडाई.
"मुझे देखने के लिए तुम बाएँ ओर के दरवाज़े में दाखिल हो जाओ. तुम मेरे पास पहुँच जाओगे."
"किंतु उधर तो ठोस दीवार है, कोई दरवाज़ा नहीं है." चोटीराज बोला.
"तुम उधर बढो. अभी दरवाज़ा बन जायेगा." उस आवाज़ ने कहा और ये लोग उधर बढ़ चले. फ़िर जैसे ही वे लोग दीवार के पास पहुंचे, उसका एक भाग चमकने लगा. और फ़िर वह एक ओर खिसक गया. ये लोग उसमें प्रविष्ट हो गए. यह एक और कमरा था जो पहले वाले से कुछ छोटा था. इस कमरे के बींचोबीच किसी धातु की एक मूर्ति खड़ी थी. उस मूर्ति के पैरों के पास एक ताबूत रखा था.
"महर्षि प्रयोगाचार्य!" मूर्ति को देखते ही सियाकरण के मुंह से निकला.
"हाँ. यह मूर्ति तो महर्षि प्रयोगाचार्य की है." मारभट ने कहा. मूर्ति आदमकद थी. अर्थात उन्हीं लोगों की तरह सात फुटी.
"किंतु वह आवाज़ किसकी है जो हमें सुनाई दे रही है?" चोटीराज ने पूछा. इतने में वही आवाज़ दुबारा गूंजी, "क्या अब भी तुम लोग आवाज़ के स्रोत के बारे में कोई अनुमान नहीं लगा पाये?"
उन्होंने आश्चर्य से देखा. वह आवाज़ उसी मूर्ति से निकल रही थी. हालाँकि उसके होंठ नहीं हिल रहे थे. किंतु आवाज़ इस प्रकार आ रही थी मानो अन्दर कोई स्पीकर लगा है.
"तो क्या महर्षि प्रयोगाचार्य इस मूर्ति के अन्दर खड़े हैं? किंतु यह कैसे हो सकता है? ओर फ़िर यह आवाज़ महर्षि की है भी नहीं." सियाकरण के चेहरे पर अनेक प्रश्न अंकित थे.
"महर्षि प्रयोगाचार्य इस मूर्ति के अन्दर नहीं खड़े हैं बल्कि यह मूर्ति ही महर्षि प्रयोगाचार्य है." वही आवाज़ फ़िर बोली जो मूर्ति से आ रही थी.
"क्या? यह कैसे हो सकता है. भला यह बेजान मूर्ति महर्षि प्रयोगाचार्य कैसे हो सकती है." चीन्तिलाल ने आश्चर्य से कहा.
"यह तुम इसलिए कह रहे हो क्योंकि तुम्हें पूरी कहानी नहीं पता. वह कहानी जो तुम लोगों के ताबूतों में सोने के बाद शुरू होती है. तुम लोग आराम से बैठ जाओ और चाहो तो भूख मिटाने वाली गोलियां ले लो. क्योंकि उनका यहाँ काफी भण्डार है. ये गोलियां कोने में रखे डिब्बे के अन्दर हैं.
मारभट इत्यादि ने गोलियां ले लीं और आकर बैठ गए. वे लोग महर्षि की कहानी सुनने के लिए पूरी तरह उत्सुक थे. मूर्ति ने कहना शुरू किया.
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"मुझे यह स्थान कुछ जाना पहचाना लग रहा है." सियाकरण ने कहा.
"किंतु यह वह जगह तो हरगिज़ नहीं है जहाँ हम लोग सैंकडों वर्षों से सोये पड़े थे." मारभट ने कहा.
अचानक वही आवाज़ दोबारा गूंजी, "सियाकरण, क्या तुम अनुमान नहीं लगा सके की यह कौन सा स्थान है? तुम अपने चारों तरफ़ गौर से देखो तो शायद याद आ जाए." वह आवाज़ इन्हीं की भाषा में बोल रही थी. सियाकरण इत्यादि ने अपने चारों तरफ़ देखना शुरू किया. यह कमरा किसी प्राचीन युग की प्रयोगशाला से मिलता जुलता था. इस कमरे में चारों और पत्थर के कुछ बक्से रखे थे और उन बक्सों में प्रयोगों के लिए उपकरण रखे थे. फ़िर सियाकरण को याद आ गया.
"ओह! यह तो महर्षि प्रयोगाचार्य की प्रयोगशाला है. जहाँ उन्होंने अनेक अद्भुत आविष्कार किए हैं. इसी प्रयोगशाला में मैंने उनके साथ बीस वर्षों में कार्य किया था."
"तुम्हारी स्मरण शक्ति काफी अच्छी है सियाकरण. यह महर्षि की प्रयोगशाला ही है." उस आवाज़ ने कहा.
"किंतु तुम कौन हो? और कहाँ से बोल रहे हो?" सियाकरण ने आवाज़ के स्रोत की तलाश में इधर उधर दृष्टि दौडाई.
"मुझे देखने के लिए तुम बाएँ ओर के दरवाज़े में दाखिल हो जाओ. तुम मेरे पास पहुँच जाओगे."
"किंतु उधर तो ठोस दीवार है, कोई दरवाज़ा नहीं है." चोटीराज बोला.
"तुम उधर बढो. अभी दरवाज़ा बन जायेगा." उस आवाज़ ने कहा और ये लोग उधर बढ़ चले. फ़िर जैसे ही वे लोग दीवार के पास पहुंचे, उसका एक भाग चमकने लगा. और फ़िर वह एक ओर खिसक गया. ये लोग उसमें प्रविष्ट हो गए. यह एक और कमरा था जो पहले वाले से कुछ छोटा था. इस कमरे के बींचोबीच किसी धातु की एक मूर्ति खड़ी थी. उस मूर्ति के पैरों के पास एक ताबूत रखा था.
"महर्षि प्रयोगाचार्य!" मूर्ति को देखते ही सियाकरण के मुंह से निकला.
"हाँ. यह मूर्ति तो महर्षि प्रयोगाचार्य की है." मारभट ने कहा. मूर्ति आदमकद थी. अर्थात उन्हीं लोगों की तरह सात फुटी.
"किंतु वह आवाज़ किसकी है जो हमें सुनाई दे रही है?" चोटीराज ने पूछा. इतने में वही आवाज़ दुबारा गूंजी, "क्या अब भी तुम लोग आवाज़ के स्रोत के बारे में कोई अनुमान नहीं लगा पाये?"
उन्होंने आश्चर्य से देखा. वह आवाज़ उसी मूर्ति से निकल रही थी. हालाँकि उसके होंठ नहीं हिल रहे थे. किंतु आवाज़ इस प्रकार आ रही थी मानो अन्दर कोई स्पीकर लगा है.
"तो क्या महर्षि प्रयोगाचार्य इस मूर्ति के अन्दर खड़े हैं? किंतु यह कैसे हो सकता है? ओर फ़िर यह आवाज़ महर्षि की है भी नहीं." सियाकरण के चेहरे पर अनेक प्रश्न अंकित थे.
"महर्षि प्रयोगाचार्य इस मूर्ति के अन्दर नहीं खड़े हैं बल्कि यह मूर्ति ही महर्षि प्रयोगाचार्य है." वही आवाज़ फ़िर बोली जो मूर्ति से आ रही थी.
"क्या? यह कैसे हो सकता है. भला यह बेजान मूर्ति महर्षि प्रयोगाचार्य कैसे हो सकती है." चीन्तिलाल ने आश्चर्य से कहा.
"यह तुम इसलिए कह रहे हो क्योंकि तुम्हें पूरी कहानी नहीं पता. वह कहानी जो तुम लोगों के ताबूतों में सोने के बाद शुरू होती है. तुम लोग आराम से बैठ जाओ और चाहो तो भूख मिटाने वाली गोलियां ले लो. क्योंकि उनका यहाँ काफी भण्डार है. ये गोलियां कोने में रखे डिब्बे के अन्दर हैं.
मारभट इत्यादि ने गोलियां ले लीं और आकर बैठ गए. वे लोग महर्षि की कहानी सुनने के लिए पूरी तरह उत्सुक थे. मूर्ति ने कहना शुरू किया.
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Friday, February 6, 2009
ताबूत - एपिसोड 56
"तुम्हें पक्का विश्वास है कि हम सही रास्ते पर चल रहे हैं?" सियाकरण ने पूछा.
"मुझे तो यही लगता है. वैसे भी हम लोगों को हर हालत में वह पहाडी ढूँढनी होगी. वरना हम उनको यह विश्वास नहीं दिला सकेंगे कि हम लोग इनके दुश्मनों के साथी नहीं हैं."
अब काफी अन्धकार फ़ैल गया था अतः ब्लैक क्रॉस के आदमियों ने टोर्चें जला ली थीं.
"वह सामने रौशनी कैसी हो रही है?" सियाकरण ने सामने देखते हुए कहा जहाँ पदों के झुंड के पीछे से अजीब प्रकार की दूधिया रौशनी की किरणें आ रही थीं.
"चलो चल कर देखते हैं." मारभट ने कहा और वे लोग आगे बढ़ने लगे. कोमोडो इत्यादि ने भी वह रौशनी देख ली थी. और उसका रहस्य पता लगाने के उत्सुक थे. उन्होंने पेड़ों का झुंड पार किया और उन्हें रौशनी का स्रोत दिख गया. यह रौशनी पहाडी में जमे हुए एक ऐसे पत्थर से निकल रही थी जो पूरी तरह गोल था. यह रौशनी इतनी तेज़ थी कि ऑंखें उसपर रूक नही रही थीं.
"जाकर देखो, वह पत्थर क्यों इतना चमक रहा है." बॉस ने अपने आदमियों को संबोधित किया. दो लोग आगे बढे. और फ़िर जैसे ही उन्होंने पत्थर को हाथ लगाया, रौशनी का एक तेज़ झमाका हुआ और साथ ही उनकी चीखें वायुमंडल में गूँज उठीं. उनके शरीर धडाधड जलने लगे थे. और फ़िर उन्हें राख बनने में कुछ ही सेकंड लगे. बॉस इत्यादि बौखलाकर उधर भागे फ़िर ठिठक कर रूक गए.
तभी वायुमंडल में एक आवाज़ गूंजी, "अब कोई इस पत्थर के पास आने का प्रयत्न न करे." फ़िर वह पत्थर किसी द्वार की तरह खिसकने लगा और कुछ ही देर में वहां एक सुरंग का मुंह दिखाई पड़ रहा था. वही आवाज़ फ़िर गूंजी, "सियाकरण, तुम अपने साथियों को लेकर यहाँ आ जाओ. तुम्हारे अलावा कोई और यहाँ आने की कोशिश मत करे."
"तुम कौन हो? और हमारे साथियों को क्यों मार दिया?" बॉस ने चिल्लाकर पूछा.
"मैं एक शक्ति हूँ. मैंने तुम्हारे आदमियों को नहीं मारा बल्कि वे स्वयें अपनी गलती से मरे हैं. और यदि तुममें से कोई ऐसी गलती करेगा तो उसका भी यही अंजाम होगा.......मारभट, तुम लोग खड़े क्यों हो? अन्दर आ जाओ." यह अजीब प्रकार की आवाज़ थी. मानो कोई मशीन घरघरा रही थी.
प्राचीन युगवासियों को वहां जाने में हिचकिचाहट हो रही थी. अतः जब उस आवाज़ ने दुबारा बुलाया तब वे आगे बढे. फ़िर वे सुरंग में प्रविष्ट हो गए. उनके अन्दर घुसते ही पत्थर का दरवाज़ा फ़िर बंद हो गया और साथ ही उससे उत्पन्न हो रहा प्रकाश भी गायब हो गया. और वहां अन्धकार छा गया. कोमोडो इत्यादि को फ़िर टॉर्च जला लेनी पड़ी. टॉर्च के प्रकाश में अब वह साधारण पत्थर प्रतीत हो रहा था.
"यह क्या रहस्य है? क्या हम लोग सपना देख रहे हैं?" बॉस ने विस्मय से कहा.
"नहीं. है तो यह वास्तविकता. किंतु वह जो भी शक्ति है, हमसे कहीं अधिक शक्तिशाली है. अतः हमको इसका पता लगाने के लिए अपनी पूरी टीम लेकर आना पड़ेगा." कोमोडो ने कहा.
"हाँ फिलहाल तो वापस चलते हैं. क्योंकि हम लोग पाँच में केवल तीन रह गए हैं."
"ठीक है. वैसे भी अभी हमें ब्लू क्रॉस को सबक सिखाना है. क्योंकि उसने हम लोगों को धोखा दिया है." कोमोडो ने कहा. फ़िर वे लोग वापसी के लिए मुड़ गए, यह तये करके की वे कभी न कभी वापस अवश्य आयेंगे. उस अदृश्य शक्ति का पता लगाने के लिए.
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"मुझे तो यही लगता है. वैसे भी हम लोगों को हर हालत में वह पहाडी ढूँढनी होगी. वरना हम उनको यह विश्वास नहीं दिला सकेंगे कि हम लोग इनके दुश्मनों के साथी नहीं हैं."
अब काफी अन्धकार फ़ैल गया था अतः ब्लैक क्रॉस के आदमियों ने टोर्चें जला ली थीं.
"वह सामने रौशनी कैसी हो रही है?" सियाकरण ने सामने देखते हुए कहा जहाँ पदों के झुंड के पीछे से अजीब प्रकार की दूधिया रौशनी की किरणें आ रही थीं.
"चलो चल कर देखते हैं." मारभट ने कहा और वे लोग आगे बढ़ने लगे. कोमोडो इत्यादि ने भी वह रौशनी देख ली थी. और उसका रहस्य पता लगाने के उत्सुक थे. उन्होंने पेड़ों का झुंड पार किया और उन्हें रौशनी का स्रोत दिख गया. यह रौशनी पहाडी में जमे हुए एक ऐसे पत्थर से निकल रही थी जो पूरी तरह गोल था. यह रौशनी इतनी तेज़ थी कि ऑंखें उसपर रूक नही रही थीं.
"जाकर देखो, वह पत्थर क्यों इतना चमक रहा है." बॉस ने अपने आदमियों को संबोधित किया. दो लोग आगे बढे. और फ़िर जैसे ही उन्होंने पत्थर को हाथ लगाया, रौशनी का एक तेज़ झमाका हुआ और साथ ही उनकी चीखें वायुमंडल में गूँज उठीं. उनके शरीर धडाधड जलने लगे थे. और फ़िर उन्हें राख बनने में कुछ ही सेकंड लगे. बॉस इत्यादि बौखलाकर उधर भागे फ़िर ठिठक कर रूक गए.
तभी वायुमंडल में एक आवाज़ गूंजी, "अब कोई इस पत्थर के पास आने का प्रयत्न न करे." फ़िर वह पत्थर किसी द्वार की तरह खिसकने लगा और कुछ ही देर में वहां एक सुरंग का मुंह दिखाई पड़ रहा था. वही आवाज़ फ़िर गूंजी, "सियाकरण, तुम अपने साथियों को लेकर यहाँ आ जाओ. तुम्हारे अलावा कोई और यहाँ आने की कोशिश मत करे."
"तुम कौन हो? और हमारे साथियों को क्यों मार दिया?" बॉस ने चिल्लाकर पूछा.
"मैं एक शक्ति हूँ. मैंने तुम्हारे आदमियों को नहीं मारा बल्कि वे स्वयें अपनी गलती से मरे हैं. और यदि तुममें से कोई ऐसी गलती करेगा तो उसका भी यही अंजाम होगा.......मारभट, तुम लोग खड़े क्यों हो? अन्दर आ जाओ." यह अजीब प्रकार की आवाज़ थी. मानो कोई मशीन घरघरा रही थी.
प्राचीन युगवासियों को वहां जाने में हिचकिचाहट हो रही थी. अतः जब उस आवाज़ ने दुबारा बुलाया तब वे आगे बढे. फ़िर वे सुरंग में प्रविष्ट हो गए. उनके अन्दर घुसते ही पत्थर का दरवाज़ा फ़िर बंद हो गया और साथ ही उससे उत्पन्न हो रहा प्रकाश भी गायब हो गया. और वहां अन्धकार छा गया. कोमोडो इत्यादि को फ़िर टॉर्च जला लेनी पड़ी. टॉर्च के प्रकाश में अब वह साधारण पत्थर प्रतीत हो रहा था.
"यह क्या रहस्य है? क्या हम लोग सपना देख रहे हैं?" बॉस ने विस्मय से कहा.
"नहीं. है तो यह वास्तविकता. किंतु वह जो भी शक्ति है, हमसे कहीं अधिक शक्तिशाली है. अतः हमको इसका पता लगाने के लिए अपनी पूरी टीम लेकर आना पड़ेगा." कोमोडो ने कहा.
"हाँ फिलहाल तो वापस चलते हैं. क्योंकि हम लोग पाँच में केवल तीन रह गए हैं."
"ठीक है. वैसे भी अभी हमें ब्लू क्रॉस को सबक सिखाना है. क्योंकि उसने हम लोगों को धोखा दिया है." कोमोडो ने कहा. फ़िर वे लोग वापसी के लिए मुड़ गए, यह तये करके की वे कभी न कभी वापस अवश्य आयेंगे. उस अदृश्य शक्ति का पता लगाने के लिए.
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Thursday, February 5, 2009
ताबूत - एपिसोड 55
"तो तुम लोग क्या लेकर आए हो?" बॉस ने मारभट और सियाकरण को संबोधित किया जो अब बाकी दोनों प्राचीन युगवासियों के साथ कुर्सियों पर बैठ गए थे.
"मुझे एक मनुष्य ने दो डिब्बे दिए थे और कहा था कि यहाँ पहुंचाना है. वही हम लेकर आये थे." मारभट ने उत्तर दिया.
"तुम लोग वहां कब से काम कर रहे हो?" बॉस ने फ़िर पूछा.
"उस मनुष्य से हम आज ही मिले हैं."
'ओह! इसका मतलब हुआ कि ये लोग निर्दोष हो सकते हैं. शायद इन्हें भी फंसाया गया है.' बॉस ने अपने मन में कहा. फ़िर वह बोला, "अगर तुम लोग अपने बारे में सही सही जानकारी दे दो तो तुम्हें छोड़ दिया जायेगा. तुम लोग कौन हो और इन दोनों को कैसे जानते हो?"
इसके जवाब में सियाकरण अपनी पूरी कहानी सुनाने लगा कि किस प्रकार महर्षि प्रयोगाचार्य के एक प्रयोग द्वारा वह इस युग में पहुँचा और उसके बाद उसके साथ साथ क्या घटित हुआ. जब उसने अपनी कहानी समाप्त की तो बॉस इत्यादि कुछ देर बोलना ही भूल गए. फ़िर बॉस ने कहा, "हमें तुम्हारी कहानी पर तब यकीन आयेगा जब तुम हमें वह ताबूत दिखा दोगे जिसमें तुम लोग सोये थे. और तब तक तुम हमारी कैद में रहोगे."
उसके बाद बॉस फ़िर अपने कमरे में चला गया और ट्रांसमीटर पर डाँ0 कोमोडो को प्राचीन युगवासियों की कहानी बताने लगा.
"अगर उनकी कहानी सत्य है तो यह इस युग का आठवां आश्चर्य होगा. वैसे मुझे विश्वास है की अपने को बचाने के लिए उन्होंने झूठी कहानी गढ़ी है. खैर तुम इस बारे में पूरी छानबीन करो. वह ताबूत मेरे लिए काफी आकर्षण रखते हैं और मैं वह स्थान देखना चाहता हूँ की क्या वास्तव में उस समय महर्षि प्रयोगाचार्य जैसे अद्भुत वैज्ञानिक होते थे?"
"ओ.के. डॉक्टर. मैं उनके बारे में पूरी छानबीन करवा रहा हूँ."
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फ़िर जल्दी ही बॉस को पता लग गया कि प्राचीन युगवासी मिकिर पहाडियों वाले इलाके से आये थे. अतः वहां चलने की तय्यारी शुरू हो गई. वहां जाने के लिए बनी टीम में बॉस, डाँ० कोमोडो और चारों प्राचीन युगवासियों के अतिरिक्त तीन व्यक्ति और थे. इस प्रकार कुल संख्या नौ थी. ये लोग हेलीकॉप्टर द्वारा वहां पहुंचे. फ़िर उस पड़ी की खोज शुरू हो गई और ये खोज पूरी तरह प्राचीन युगवासियों की स्मृति पर निर्भर थी क्योंकि किसी को उस स्थान का सही पता नहीं था.
वे लोग काफी देर तक जंगल में भटकते रहे किंतु पहाडियों में जाने वाला रास्ता नहीं मिला.
"लगता है ये लोग रास्ता भूल गए हैं." बॉस ने अपने साथ चल रहे डाँ० कोमोडो से कहा.
"मुझे भी यही लगता है. हम लोगों को चलते हुए तीन घंटे बीत चुके हैं. किंतु अभी तक हमें पहाडियों के अन्दर जाने का रास्ता नहीं मिला."
"यदि कुछ देर और रास्ता नहीं मिला तो हम लोग पडाव डाल देंगे. क्योंकि शाम का अँधेरा फैलने लगा है. और इस अंधेरे में हमें और रास्ता नहीं मिलेगा."
मारभट और सियाकरण सबसे आगे चल रहे थे. उनके पीछे चोटीराज और चीन्तिलाल थे. और उनके पीछे बाकी लोग थे.
"मुझे एक मनुष्य ने दो डिब्बे दिए थे और कहा था कि यहाँ पहुंचाना है. वही हम लेकर आये थे." मारभट ने उत्तर दिया.
"तुम लोग वहां कब से काम कर रहे हो?" बॉस ने फ़िर पूछा.
"उस मनुष्य से हम आज ही मिले हैं."
'ओह! इसका मतलब हुआ कि ये लोग निर्दोष हो सकते हैं. शायद इन्हें भी फंसाया गया है.' बॉस ने अपने मन में कहा. फ़िर वह बोला, "अगर तुम लोग अपने बारे में सही सही जानकारी दे दो तो तुम्हें छोड़ दिया जायेगा. तुम लोग कौन हो और इन दोनों को कैसे जानते हो?"
इसके जवाब में सियाकरण अपनी पूरी कहानी सुनाने लगा कि किस प्रकार महर्षि प्रयोगाचार्य के एक प्रयोग द्वारा वह इस युग में पहुँचा और उसके बाद उसके साथ साथ क्या घटित हुआ. जब उसने अपनी कहानी समाप्त की तो बॉस इत्यादि कुछ देर बोलना ही भूल गए. फ़िर बॉस ने कहा, "हमें तुम्हारी कहानी पर तब यकीन आयेगा जब तुम हमें वह ताबूत दिखा दोगे जिसमें तुम लोग सोये थे. और तब तक तुम हमारी कैद में रहोगे."
उसके बाद बॉस फ़िर अपने कमरे में चला गया और ट्रांसमीटर पर डाँ0 कोमोडो को प्राचीन युगवासियों की कहानी बताने लगा.
"अगर उनकी कहानी सत्य है तो यह इस युग का आठवां आश्चर्य होगा. वैसे मुझे विश्वास है की अपने को बचाने के लिए उन्होंने झूठी कहानी गढ़ी है. खैर तुम इस बारे में पूरी छानबीन करो. वह ताबूत मेरे लिए काफी आकर्षण रखते हैं और मैं वह स्थान देखना चाहता हूँ की क्या वास्तव में उस समय महर्षि प्रयोगाचार्य जैसे अद्भुत वैज्ञानिक होते थे?"
"ओ.के. डॉक्टर. मैं उनके बारे में पूरी छानबीन करवा रहा हूँ."
-------------
फ़िर जल्दी ही बॉस को पता लग गया कि प्राचीन युगवासी मिकिर पहाडियों वाले इलाके से आये थे. अतः वहां चलने की तय्यारी शुरू हो गई. वहां जाने के लिए बनी टीम में बॉस, डाँ० कोमोडो और चारों प्राचीन युगवासियों के अतिरिक्त तीन व्यक्ति और थे. इस प्रकार कुल संख्या नौ थी. ये लोग हेलीकॉप्टर द्वारा वहां पहुंचे. फ़िर उस पड़ी की खोज शुरू हो गई और ये खोज पूरी तरह प्राचीन युगवासियों की स्मृति पर निर्भर थी क्योंकि किसी को उस स्थान का सही पता नहीं था.
वे लोग काफी देर तक जंगल में भटकते रहे किंतु पहाडियों में जाने वाला रास्ता नहीं मिला.
"लगता है ये लोग रास्ता भूल गए हैं." बॉस ने अपने साथ चल रहे डाँ० कोमोडो से कहा.
"मुझे भी यही लगता है. हम लोगों को चलते हुए तीन घंटे बीत चुके हैं. किंतु अभी तक हमें पहाडियों के अन्दर जाने का रास्ता नहीं मिला."
"यदि कुछ देर और रास्ता नहीं मिला तो हम लोग पडाव डाल देंगे. क्योंकि शाम का अँधेरा फैलने लगा है. और इस अंधेरे में हमें और रास्ता नहीं मिलेगा."
मारभट और सियाकरण सबसे आगे चल रहे थे. उनके पीछे चोटीराज और चीन्तिलाल थे. और उनके पीछे बाकी लोग थे.
Monday, February 2, 2009
ताबूत - एपिसोड 54
वे लोग चीन्तिलाल और चोटीराज को लेकर इमारत के अन्दर बड़े से हाल में पहुंचे. बॉस उन्हें हाल में छोड़कर एक कमरे में पहुँचा. वहां कोने में रखे ट्रांसमीटर को ऑन किया और बोलने लगा, "डॉक्टर कोमोडो, तुम्हें अपने प्रयोग के लिए जैसे व्यक्तियों की आवश्यकता थी, मैंने खोज निकाले हैं. अर्थात वे पागल भी हैं और शक्तिशाली भी."
"ठीक है. उन्हें मेरे पास भेज दो." डॉक्टर ने कहा.
"किंतु आप प्रयोग क्या कर रहे हैं मि० कोमोडो " बॉस ने पूछा.
"मैं उन व्यक्तियों को एक मशीन द्वारा कंट्रोल करने की सोच रहा हूँ. मैं उनके मस्तिष्क में एक ऑपरेशन करके उनका संपर्क उस मशीन से कर दूँगा. इस प्रकार वे वही सब करेंगे जो हम चाहेंगे. मैंने इस कार्य के लिए पागल इसलिए चुने क्योंकि उनका मस्तिष्क बहुत अधिक अस्त व्यस्त होता है. और उन्हें आसानी से कंट्रोल में किया जा सकता है." डॉक्टर ने बताया.
"विचार अच्छा है डॉक्टर. मैं उन पागलों को तुम्हारे पास भेज रहा हूँ." बॉस ने कहा और ट्रांसमीटर बंद करके वापस हाल में आ गया. जहाँ चीन्तिलाल और चोटीराज फलों पर हाथ साफ़ कर रहे थे. तभी वहां रखे फोन की घंटी बज उठी. बॉस ने फोन उठाया और कुछ देर उसको सुनता रहा. रिसीवर रखने के बाद बोला, "यह फोन हमारे प्रतिद्वंदी ब्लू क्रॉस का था. वह दो व्यक्तियों को हमारे पास हेरोइन देकर भेज रहा है. तुम लोग बाहर जाओ और उसे रिसीव कर लो."
"किंतु बॉस, उन्हें अन्दर बुलाकर भी तो उनसे हेरोइन ली जा सकती है." एक साथी ने कहा.
"इसमें खतरा है मूर्ख. यह मत भूलो कि वे हमें सदेव हानि पहुँचने की सोच में रहते हैं. उन डिब्बों में हेरोइन की बजाय बम भी हो सकते हैं. अतः बाहर ही उन्हें उनसे लेकर बम प्रूफ़ थैले में डाल देना और तब अन्दर ले आना." बॉस बोला.
"ओ.के.बॉस." तीन चार व्यक्ति बाहर निकल गए.
"जब ये लोग खा चुकें तो इन्हें डॉक्टर कोमोडो के पास पहुँचा देना."हाल में शेष बचे व्यक्तियों से बॉस ने कहा और उन्होंने सर हिला दिया.
बॉस फ़िर अपने कमरे में पहुँच गया. फ़िर जब वह दुबारा बाहर निकला तो वे लोग अभी तक खा रहे थे.
"इनकी खुराक तो बहुत अधिक है. अब तक ये लोग तीस केले, बीस सेब और चालीस अमरुद चट कर चुके हैं." उन्हें भोजन करा रहा व्यक्ति बोला.
"माई गाँड, ये लोग मनुष्य है या जिन. इनमें ऐसी शक्ति ऐसे ही नहीं है....." बॉस की बात अधूरी रह गई क्योंकि उसके आदमी मारभट और सियाकरण को लेकर अन्दर आ रहे थे.
"अरे तुम लोग कहाँ चले गए थे." चीन्तिलाल और चोटीराज ने उन्हें देखते ही एक चीख मारी और दौड़कर उनसे लिपट गए.
"हम लोग तुम्हें ढूंढ ढूंढकर परेशान हो गए. वह यातिकम तो हमें धक्का देकर भाग गई थी." चीन्तिलाल ने कहा.
"हमने भी पीछे मुड़कर देखा तो तुम लोग गायब थे और यातिकम अपने आप चल रही थी." मारभट ने बताया. उधर बॉस इत्यादि उन लोगों को आश्चर्य से देख रहे थे.
"ये लोग तो इस प्रकार आपस में बातें कर रहे हैं मानो एक दूसरे को पहले से जानते हैं." बॉस ने कहा.
तभी वहां दो व्यक्ति दाखिल हुए और बॉस से बोले, "बॉस, उन डिब्बों में वास्तव में बम थे. हमने उन्हें बेकार कर दिया."
"ओह! तो मेरा शक सही था. इन लोगों को पकड़ लो." बॉस ने कहा फ़िर मारभट इत्यादि की ओर कई बंदूकें तन गईं.
"ठीक है. उन्हें मेरे पास भेज दो." डॉक्टर ने कहा.
"किंतु आप प्रयोग क्या कर रहे हैं मि० कोमोडो " बॉस ने पूछा.
"मैं उन व्यक्तियों को एक मशीन द्वारा कंट्रोल करने की सोच रहा हूँ. मैं उनके मस्तिष्क में एक ऑपरेशन करके उनका संपर्क उस मशीन से कर दूँगा. इस प्रकार वे वही सब करेंगे जो हम चाहेंगे. मैंने इस कार्य के लिए पागल इसलिए चुने क्योंकि उनका मस्तिष्क बहुत अधिक अस्त व्यस्त होता है. और उन्हें आसानी से कंट्रोल में किया जा सकता है." डॉक्टर ने बताया.
"विचार अच्छा है डॉक्टर. मैं उन पागलों को तुम्हारे पास भेज रहा हूँ." बॉस ने कहा और ट्रांसमीटर बंद करके वापस हाल में आ गया. जहाँ चीन्तिलाल और चोटीराज फलों पर हाथ साफ़ कर रहे थे. तभी वहां रखे फोन की घंटी बज उठी. बॉस ने फोन उठाया और कुछ देर उसको सुनता रहा. रिसीवर रखने के बाद बोला, "यह फोन हमारे प्रतिद्वंदी ब्लू क्रॉस का था. वह दो व्यक्तियों को हमारे पास हेरोइन देकर भेज रहा है. तुम लोग बाहर जाओ और उसे रिसीव कर लो."
"किंतु बॉस, उन्हें अन्दर बुलाकर भी तो उनसे हेरोइन ली जा सकती है." एक साथी ने कहा.
"इसमें खतरा है मूर्ख. यह मत भूलो कि वे हमें सदेव हानि पहुँचने की सोच में रहते हैं. उन डिब्बों में हेरोइन की बजाय बम भी हो सकते हैं. अतः बाहर ही उन्हें उनसे लेकर बम प्रूफ़ थैले में डाल देना और तब अन्दर ले आना." बॉस बोला.
"ओ.के.बॉस." तीन चार व्यक्ति बाहर निकल गए.
"जब ये लोग खा चुकें तो इन्हें डॉक्टर कोमोडो के पास पहुँचा देना."हाल में शेष बचे व्यक्तियों से बॉस ने कहा और उन्होंने सर हिला दिया.
बॉस फ़िर अपने कमरे में पहुँच गया. फ़िर जब वह दुबारा बाहर निकला तो वे लोग अभी तक खा रहे थे.
"इनकी खुराक तो बहुत अधिक है. अब तक ये लोग तीस केले, बीस सेब और चालीस अमरुद चट कर चुके हैं." उन्हें भोजन करा रहा व्यक्ति बोला.
"माई गाँड, ये लोग मनुष्य है या जिन. इनमें ऐसी शक्ति ऐसे ही नहीं है....." बॉस की बात अधूरी रह गई क्योंकि उसके आदमी मारभट और सियाकरण को लेकर अन्दर आ रहे थे.
"अरे तुम लोग कहाँ चले गए थे." चीन्तिलाल और चोटीराज ने उन्हें देखते ही एक चीख मारी और दौड़कर उनसे लिपट गए.
"हम लोग तुम्हें ढूंढ ढूंढकर परेशान हो गए. वह यातिकम तो हमें धक्का देकर भाग गई थी." चीन्तिलाल ने कहा.
"हमने भी पीछे मुड़कर देखा तो तुम लोग गायब थे और यातिकम अपने आप चल रही थी." मारभट ने बताया. उधर बॉस इत्यादि उन लोगों को आश्चर्य से देख रहे थे.
"ये लोग तो इस प्रकार आपस में बातें कर रहे हैं मानो एक दूसरे को पहले से जानते हैं." बॉस ने कहा.
तभी वहां दो व्यक्ति दाखिल हुए और बॉस से बोले, "बॉस, उन डिब्बों में वास्तव में बम थे. हमने उन्हें बेकार कर दिया."
"ओह! तो मेरा शक सही था. इन लोगों को पकड़ लो." बॉस ने कहा फ़िर मारभट इत्यादि की ओर कई बंदूकें तन गईं.
Sunday, February 1, 2009
ताबूत - एपिसोड 53
"कमाल है. क्या तुम लोग किसी दूसरी दुनिया से आए हो? जिसके लिए लोगों में लूटमार मची है. वह तुम लोग जानते ही नहीं कि होती क्या है. मेरा मतलब था कि क्या तुम यहाँ पर मेरे साथ काम करोगे?"
"अर्थात तुम्हारा मतलब है कि जो कुछ तुम यहाँ पर करते हो वही हम लोग भी करें." मारभट ने पूछा.
"हाँ. तुम लोग ठीक समझे. अब तुम लोग बाहर बैठ जाओ फ़िर मैं बताऊंगा कि तुम्हें क्या करना है." मैनेजर ने कहा और मारभट तथा सियाकरण उठकर बाहर चले आए.
उनके जाने के बाद मैनेजर ने फोन उठाया और किसी का नंबर मिलाने लगा. फ़िर दूसरी तरफ़ किसी को बताने लगा, "हैलो बॉस, आज दो मुर्गे फंसे हैं. एकदम डफर हैं. मेरा विचार है कि उन्हें हम ब्लैक क्रॉस की पार्टी के ख़िलाफ़ प्रयोग कर सकते हैं."
"ठीक है. किंतु उनके बारे में पूरी छानबीन कर लेना. कहीं वे कोई जासूस न हों." दूसरी ओर से आवाज़ आई.
"आप चिंता मत करिए. पूरी तरह छानबीन के बाद ही मैं उन्हें काम सौंपूंगा." मैनेजर ने कहा. दूसरी तरफ़ से रिसीवर क्रेडिल पर रखने की आवाज़ आई और मैनेजर फोन रखकर केबिन से बाहर आ गया. हाल में मारभट और सियाकरण बैठे हुए बुरा मुंह बना बनाकर कोका कोला पी रहे थे. मैनेजर उनके पास पहुँचा और बोला, "क्या तुम लोग काम करने के लिए तैयार हो?"
"हाँ. हम तैयार हैं? किंतु पहले ये बताओ की इस बोतल में यह बदबूदार चीज़ क्या है?"
"यह तो कोका कोला है. यह तुम्हें कहाँ मिला?"
इसपर मारभट ने काउंटर की ओर संकेत करते हुए कहा, "मैंने इसे वहां देखा था. मैंने सोचा कि देखें यह क्या है अतः मैंने उसके पीछे खड़े व्यक्ति से यह मांग लिया."
"ठीक है. अब तुम लोगों को यह करना है कि मैं तुम्हें कुछ डिब्बे दूँगा. तुम उन्हें एक जगह पहुँचा देना." फ़िर मैनेजर उन्हें यह बताने लगा कि वे डिब्बे उन्हें कहाँ पहुंचाने हैं. समझाने के बाद जब उसने उनसे पूछा कि कुछ समझ में आया तो उन्होंने नहीं में सर हिला दिया.
"ओह! यह तो प्रॉब्लम हो गई." मैनेजर ने सर सहलाते हुए कहा, "अच्छा ऐसा करते हैं कि मैं तुम्हारे साथ एक आदमी भेज दूँगा. वह तुमको उस इमारत तक पहुँचा देगा. फ़िर तुम इमारत के अन्दर चले जाना और डिब्बे दे देना."
"हाँ. यह हो सकता है." दोनों ने सहमती प्रकट की. फ़िर मैनेजर उन्हें लेकर एक कमरे में गया और दोनों को एक एक प्लास्टिक का डिब्बा पकड़ा दिया. फ़िर उसने एक व्यक्ति को बुलाया और बोला, "इन दोनों को ब्लैक क्रॉस की इमारत नं. एक में पहुँचा दो. तुम अन्दर न जाना."
उस व्यक्ति ने सर हिला दिया और उन्हें लेकर बाहर निकल गया.
उनके जाने के बाद मैनेजर ने फोन उठाया और एक नंबर मिलाने के बाद बोला, "हैलो ब्लैक क्रॉस, हमने अपने दो साथियों को हेरोइन देकर तुम्हारे पास भेज दिया है. तुम उन्हें रिसीव कर लेना." उसने फोन क्रेडिल पर रखा और फ़ौरन ही उसे उठाकर दूसरा नंबर डायल करने लगा. फ़िर नंबर मिलने पर बोला, "बॉस, मैंने उन दोनों मूर्खों को शक्तिशाली बमों के साथ ब्लैक क्रॉस की इमारत नं. एक में भेज दिया है. उन बमों का कंट्रोल मेरे हाथ में है. बटन दबाते ही पूरी इमारत तबाह हो जायेगी. और साथ ही हमारा सबसे बड़ा कारोबारी दुश्मन भी.......बम फटते समय यह आवश्यक है की वह उन मूर्खों के हाथ में हो. क्योंकि वे लोग तुंरत ही हमारी भेजी गई साड़ी वस्तुओं को बम प्रूफ़ केबिन में रख देते हैं. और पूरी तरह चेक करने के बाद ही बाहर निकालते हैं." सारी बात बताने के बाद उसने रिसीवर रख दिया.
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"अर्थात तुम्हारा मतलब है कि जो कुछ तुम यहाँ पर करते हो वही हम लोग भी करें." मारभट ने पूछा.
"हाँ. तुम लोग ठीक समझे. अब तुम लोग बाहर बैठ जाओ फ़िर मैं बताऊंगा कि तुम्हें क्या करना है." मैनेजर ने कहा और मारभट तथा सियाकरण उठकर बाहर चले आए.
उनके जाने के बाद मैनेजर ने फोन उठाया और किसी का नंबर मिलाने लगा. फ़िर दूसरी तरफ़ किसी को बताने लगा, "हैलो बॉस, आज दो मुर्गे फंसे हैं. एकदम डफर हैं. मेरा विचार है कि उन्हें हम ब्लैक क्रॉस की पार्टी के ख़िलाफ़ प्रयोग कर सकते हैं."
"ठीक है. किंतु उनके बारे में पूरी छानबीन कर लेना. कहीं वे कोई जासूस न हों." दूसरी ओर से आवाज़ आई.
"आप चिंता मत करिए. पूरी तरह छानबीन के बाद ही मैं उन्हें काम सौंपूंगा." मैनेजर ने कहा. दूसरी तरफ़ से रिसीवर क्रेडिल पर रखने की आवाज़ आई और मैनेजर फोन रखकर केबिन से बाहर आ गया. हाल में मारभट और सियाकरण बैठे हुए बुरा मुंह बना बनाकर कोका कोला पी रहे थे. मैनेजर उनके पास पहुँचा और बोला, "क्या तुम लोग काम करने के लिए तैयार हो?"
"हाँ. हम तैयार हैं? किंतु पहले ये बताओ की इस बोतल में यह बदबूदार चीज़ क्या है?"
"यह तो कोका कोला है. यह तुम्हें कहाँ मिला?"
इसपर मारभट ने काउंटर की ओर संकेत करते हुए कहा, "मैंने इसे वहां देखा था. मैंने सोचा कि देखें यह क्या है अतः मैंने उसके पीछे खड़े व्यक्ति से यह मांग लिया."
"ठीक है. अब तुम लोगों को यह करना है कि मैं तुम्हें कुछ डिब्बे दूँगा. तुम उन्हें एक जगह पहुँचा देना." फ़िर मैनेजर उन्हें यह बताने लगा कि वे डिब्बे उन्हें कहाँ पहुंचाने हैं. समझाने के बाद जब उसने उनसे पूछा कि कुछ समझ में आया तो उन्होंने नहीं में सर हिला दिया.
"ओह! यह तो प्रॉब्लम हो गई." मैनेजर ने सर सहलाते हुए कहा, "अच्छा ऐसा करते हैं कि मैं तुम्हारे साथ एक आदमी भेज दूँगा. वह तुमको उस इमारत तक पहुँचा देगा. फ़िर तुम इमारत के अन्दर चले जाना और डिब्बे दे देना."
"हाँ. यह हो सकता है." दोनों ने सहमती प्रकट की. फ़िर मैनेजर उन्हें लेकर एक कमरे में गया और दोनों को एक एक प्लास्टिक का डिब्बा पकड़ा दिया. फ़िर उसने एक व्यक्ति को बुलाया और बोला, "इन दोनों को ब्लैक क्रॉस की इमारत नं. एक में पहुँचा दो. तुम अन्दर न जाना."
उस व्यक्ति ने सर हिला दिया और उन्हें लेकर बाहर निकल गया.
उनके जाने के बाद मैनेजर ने फोन उठाया और एक नंबर मिलाने के बाद बोला, "हैलो ब्लैक क्रॉस, हमने अपने दो साथियों को हेरोइन देकर तुम्हारे पास भेज दिया है. तुम उन्हें रिसीव कर लेना." उसने फोन क्रेडिल पर रखा और फ़ौरन ही उसे उठाकर दूसरा नंबर डायल करने लगा. फ़िर नंबर मिलने पर बोला, "बॉस, मैंने उन दोनों मूर्खों को शक्तिशाली बमों के साथ ब्लैक क्रॉस की इमारत नं. एक में भेज दिया है. उन बमों का कंट्रोल मेरे हाथ में है. बटन दबाते ही पूरी इमारत तबाह हो जायेगी. और साथ ही हमारा सबसे बड़ा कारोबारी दुश्मन भी.......बम फटते समय यह आवश्यक है की वह उन मूर्खों के हाथ में हो. क्योंकि वे लोग तुंरत ही हमारी भेजी गई साड़ी वस्तुओं को बम प्रूफ़ केबिन में रख देते हैं. और पूरी तरह चेक करने के बाद ही बाहर निकालते हैं." सारी बात बताने के बाद उसने रिसीवर रख दिया.
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Friday, January 30, 2009
ताबूत - एपिसोड 52
मारभट और सियाकरण जब गली से बाहर निकले तो उन्हें सामने ही एक होटल दिखाई दिया. वे लोग उसमें घुस गए. अन्दर कुर्सियों पर लोग बैठे थे.
"अरे देखो, उस मनुष्य के मुंह से धुवां निकल रहा है. उसके मुंह में आग लग गई है." मारभट ने एक मेज़ की ओर देखा जिसके पीछे बैठा व्यक्ति सिगरेट पी रहा था.
"मुंह में नहीं बल्कि पेट में लगी है. उसे फ़ौरन बुझाओ वरना बेचारा जल जाएगा." सियाकरण बोला फ़िर मारभट ने आव देखा न ताव और वहां पहुंचकर मेज़ पर रखा पूरा जग उस व्यक्ति के सर पर उंडेल दिया.
"अबे उल्लू के पट्ठे, क्या पागल हो गया है. यह क्या कर दिया?" वह व्यक्ति चिल्लाया.
"तुम्हारे मुंह में आग लगी थी. वही मैंने बुझाई है." मारभट ने कहा.
"आग लगी होगी तुम्हारे मुंह में. मेरा सारा सूट सत्यानास करके रख दिया." उस व्यक्ति ने मारभट का गरेबान पकड़कर दो तीन झटके दिए.
"वाह, एक तो मैंने तेरा भला किया और तुम क्रोध दिखाते हो. हमारे युग में तो ऐसा नहीं होता था." मारभट ने अपना गरेबान छुड़ाते हुए कहा.
"तेरा दिमाग सनक गया है. तुझे अवश्य मेरे दुश्मनों ने मुझे नीचा दिखाने के लिए भेजा है. मैं तुझे छोडूंगा नहीं." वह व्यक्ति मारभट से लिपट गया और फ़िर वहां अच्छा खासा हंगामा मच गया. यह हंगामा इतना बढ़ गया की मैनेजर को अपने केबिन से उठकर आना पड़ा.
फ़िर उसने बीच बचाओ करके मामले को रफा दफा किया.
"आप मेरे साथ आइये." मैनेजर ने मारभट और सियाकरण को संबोधित किया. मारभट और सियाकरण उसके पीछे चल पड़े. मैनेजर उन्हें अपने कमरे में ले आया और कुर्सियों पर बैठने का संकेत किया.
"हाँ, अब आप लोग बताइये कि क्या बात थी?"
"बात क्या थी. हमने तो उसके मुंह में लगी आग बुझाई थी और वह हमसे लड़ने लगा." सियाकरण बोला.
"मुंह में आग लगी थी?" मैनेजर ने आश्चर्य से कहा. "लेकिन आपको इसका पता कैसे चला?"
"हमने स्वयें देखा था. उसके मुंह में एक नाली लगी थी और उसमें से धुंआ निकल रहा था." सियाकरण ने बताया.
"ओह! अब मैं समझा." मैनेजर पूरी बात समझ गया और मन ही मन बडबडाया, "मैंने अपने पूरे जीवन में पहली बार इतने मूर्ख व्यक्ति देखे हैं."
उसने कहा, "आप लोगों को उसकी आग नहीं बुझानी चाहिए थी. क्योंकि वह आग उसने अपने मुंह में स्वयें जान बूझकर लगाई थी."
"स्वयें लगाई थी! क्या मतलब?" मारभट ने आश्चर्य से पूछा.
"कुछ लोगों को जब ठण्ड अधिक लगती है तो वे उससे बचने के लिए अपने अन्दर आग सुलगा लेते हैं. और फ़िर उससे तापकर सर्दी भगाते हैं."
"ओह! अब मैं समझा. तभी तो मैं कहूं कि वह इतने क्रोध में क्यों आ गया था. अवश्य यही बात थी." सियाकरण कि समझ में मैनेजर की बात आ गई थी.
"ये लोग पूरे डफर हैं. इतने कि इनको अपने यहाँ नौकरी पर रखा जा सकता है." मैनेजर ने फ़िर अपने मन में कहा और उनसे बोला, "क्या आप लोग कहीं नौकरी करते हैं?"
सियाकरण और मारभट ने एक दूसरे की ओर देखा फ़िर सियाकरण बोला, "मैं तुम्हारा मतलब नहीं समझा. यह नौकरी क्या होती है?"
"अरे देखो, उस मनुष्य के मुंह से धुवां निकल रहा है. उसके मुंह में आग लग गई है." मारभट ने एक मेज़ की ओर देखा जिसके पीछे बैठा व्यक्ति सिगरेट पी रहा था.
"मुंह में नहीं बल्कि पेट में लगी है. उसे फ़ौरन बुझाओ वरना बेचारा जल जाएगा." सियाकरण बोला फ़िर मारभट ने आव देखा न ताव और वहां पहुंचकर मेज़ पर रखा पूरा जग उस व्यक्ति के सर पर उंडेल दिया.
"अबे उल्लू के पट्ठे, क्या पागल हो गया है. यह क्या कर दिया?" वह व्यक्ति चिल्लाया.
"तुम्हारे मुंह में आग लगी थी. वही मैंने बुझाई है." मारभट ने कहा.
"आग लगी होगी तुम्हारे मुंह में. मेरा सारा सूट सत्यानास करके रख दिया." उस व्यक्ति ने मारभट का गरेबान पकड़कर दो तीन झटके दिए.
"वाह, एक तो मैंने तेरा भला किया और तुम क्रोध दिखाते हो. हमारे युग में तो ऐसा नहीं होता था." मारभट ने अपना गरेबान छुड़ाते हुए कहा.
"तेरा दिमाग सनक गया है. तुझे अवश्य मेरे दुश्मनों ने मुझे नीचा दिखाने के लिए भेजा है. मैं तुझे छोडूंगा नहीं." वह व्यक्ति मारभट से लिपट गया और फ़िर वहां अच्छा खासा हंगामा मच गया. यह हंगामा इतना बढ़ गया की मैनेजर को अपने केबिन से उठकर आना पड़ा.
फ़िर उसने बीच बचाओ करके मामले को रफा दफा किया.
"आप मेरे साथ आइये." मैनेजर ने मारभट और सियाकरण को संबोधित किया. मारभट और सियाकरण उसके पीछे चल पड़े. मैनेजर उन्हें अपने कमरे में ले आया और कुर्सियों पर बैठने का संकेत किया.
"हाँ, अब आप लोग बताइये कि क्या बात थी?"
"बात क्या थी. हमने तो उसके मुंह में लगी आग बुझाई थी और वह हमसे लड़ने लगा." सियाकरण बोला.
"मुंह में आग लगी थी?" मैनेजर ने आश्चर्य से कहा. "लेकिन आपको इसका पता कैसे चला?"
"हमने स्वयें देखा था. उसके मुंह में एक नाली लगी थी और उसमें से धुंआ निकल रहा था." सियाकरण ने बताया.
"ओह! अब मैं समझा." मैनेजर पूरी बात समझ गया और मन ही मन बडबडाया, "मैंने अपने पूरे जीवन में पहली बार इतने मूर्ख व्यक्ति देखे हैं."
उसने कहा, "आप लोगों को उसकी आग नहीं बुझानी चाहिए थी. क्योंकि वह आग उसने अपने मुंह में स्वयें जान बूझकर लगाई थी."
"स्वयें लगाई थी! क्या मतलब?" मारभट ने आश्चर्य से पूछा.
"कुछ लोगों को जब ठण्ड अधिक लगती है तो वे उससे बचने के लिए अपने अन्दर आग सुलगा लेते हैं. और फ़िर उससे तापकर सर्दी भगाते हैं."
"ओह! अब मैं समझा. तभी तो मैं कहूं कि वह इतने क्रोध में क्यों आ गया था. अवश्य यही बात थी." सियाकरण कि समझ में मैनेजर की बात आ गई थी.
"ये लोग पूरे डफर हैं. इतने कि इनको अपने यहाँ नौकरी पर रखा जा सकता है." मैनेजर ने फ़िर अपने मन में कहा और उनसे बोला, "क्या आप लोग कहीं नौकरी करते हैं?"
सियाकरण और मारभट ने एक दूसरे की ओर देखा फ़िर सियाकरण बोला, "मैं तुम्हारा मतलब नहीं समझा. यह नौकरी क्या होती है?"
Tuesday, January 27, 2009
ताबूत - एपिसोड 51
"तूने मेरे मित्र को क्यों मारा!" चीन्तिलाल को भी क्रोध आ गया और उसने एक थप्पड़ डॉक्टर के सीने पर जड़ दिया. डॉक्टर के लिए चीन्तिलाल का थप्पड़ किसी बुलडोज़र से कम नहीं था अतः उसकी पीछे की ओर रेस हो गई. और उसको रोकने के लिए शेष पागलों को अपना सहयोग देना पड़ा.
"अरे मुझे उन लोगों ने मारा. एक तो मेरा बिल नहीं दिया ऊपर से मारा भी." डॉक्टर भों भों करके पूरे वोलयूम में रूदन करने लगा. डॉक्टर को रोता देखकर कई पागलों को हमदर्दी का भूत सवार हो गया और वे मिलकर चोटीराज तथा चीन्तिलाल से मोर्चा लेने के लिए तैयार हो गए और उन्हें घूरते हुए आगे बढ़ने लगे.
"ये लोग तो हमसे लड़ने आ रहे हैं. क्या किया जाए?" चोटीराज ने पूछा.
"करना क्या है. इन्हें बता दो कि हम यल के सींगों के पुजारी हैं." चीन्तिलाल ने उनको घूरते हुए कहा.
फ़िर कुछ ही देर में वहां अच्छा खासा हंगामा खड़ा हो गया. कवि और चित्रकार को छोड़कर सारे पागल दोनों से लिपट पड़े थे. फ़िर वहां अच्छा खासा हंगामा बरपा हो गया.
"वाह वाह क्या सीन है. ऐसा दृश्य तो यादगार रहेगा. मैं अभी इसको उतारता हूँ." चित्रकार ने तुंरत कैनवास पर अपनी चित्रकारी शुरू कर दी.
"अरे मुझे तो इस लड़ाई पर कई शेर एक साथ याद आ रहे हैं. लो सुनो तुम लोग भी क्या याद करोगे." फ़िर वह हलक फाड़ कर अपने शेर सुनाने लगा.
लड़ाई ने अब काफी ज़ोर पकड़ लिया था. चीन्तिलाल और चोटीराज पागलों को बार बार झटक कर अपने से अलग करते थे किंतु वे फ़िर लिपट जाते थे. उधर चित्रकार जी लगातार चित्र बना रहे थे. किंतु उन्हें अपने इस काम में काफी परेशानी हो रही थी. क्योंकि सीन बार बार बदल जाता था. कवि जी शेर पर शेर दागे जा रहे थे.
फ़िर अचानक बाहर का दरवाजा खुला और तीन चार व्यक्ति अन्दर घुस आए. उन लोगों ने चोटीराज और चीन्तिलाल को पागलों से अलग किया और उन्हें बाहर खींच ले गए. उन्होंने दरवाज़ा बाहर से बंद कर दिया.
कवि जे ने रोते हुए दोनों की विदाई पर शेर पढ़ा. चित्रकार भी गुमसुम हो गया. क्योंकि उसका पोर्ट्रेट अधुरा रह गया था.
उधर उन व्यक्तियों ने चोटीराज और चीन्तिलाल को जीप में बिठाया और चल पड़े.
"ये लोग हमें कहाँ ले जा रहे हैं?" चीन्तिलाल ने पूछा.
"जहाँ भी ले जा रहे हैं चले चलो. क्योंकि इन्होंने हमें उन दुष्ट व्यक्तियों से बचाया है."
उन्हें ले जाने वालों में से एक दूसरे से पूछ रहा था, "बॉस, आपने इन पागलों को क्यों छुड़ाया है?"
"ये पागल मेरे काम के हैं. मैं बहुत देर से खिड़की से इनकी लड़ाई देख रहा था. इनमें अद्भुत शक्ति है. हमारे लिए ये पूरी तरह उपयुक्त हैं." बॉस ने जवाब दिया.
कुछ दूर चलने के बाद जीप एक बड़ी इमारत के सामने जाकर रुकी.
वे लोग जीप से उतर पड़े और अन्दर जाने लगे. प्राचीन युगवासी भी उनके साथ थे.
"हमें बहुत जोरों की भूख लगी है. क्या यहाँ भोजन मिलेगा?" चीन्तिलाल ने उनसे पूछा जिसे उन्होंने केवल एक पागल की बड़बड़ाहट समझा.
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"अरे मुझे उन लोगों ने मारा. एक तो मेरा बिल नहीं दिया ऊपर से मारा भी." डॉक्टर भों भों करके पूरे वोलयूम में रूदन करने लगा. डॉक्टर को रोता देखकर कई पागलों को हमदर्दी का भूत सवार हो गया और वे मिलकर चोटीराज तथा चीन्तिलाल से मोर्चा लेने के लिए तैयार हो गए और उन्हें घूरते हुए आगे बढ़ने लगे.
"ये लोग तो हमसे लड़ने आ रहे हैं. क्या किया जाए?" चोटीराज ने पूछा.
"करना क्या है. इन्हें बता दो कि हम यल के सींगों के पुजारी हैं." चीन्तिलाल ने उनको घूरते हुए कहा.
फ़िर कुछ ही देर में वहां अच्छा खासा हंगामा खड़ा हो गया. कवि और चित्रकार को छोड़कर सारे पागल दोनों से लिपट पड़े थे. फ़िर वहां अच्छा खासा हंगामा बरपा हो गया.
"वाह वाह क्या सीन है. ऐसा दृश्य तो यादगार रहेगा. मैं अभी इसको उतारता हूँ." चित्रकार ने तुंरत कैनवास पर अपनी चित्रकारी शुरू कर दी.
"अरे मुझे तो इस लड़ाई पर कई शेर एक साथ याद आ रहे हैं. लो सुनो तुम लोग भी क्या याद करोगे." फ़िर वह हलक फाड़ कर अपने शेर सुनाने लगा.
लड़ाई ने अब काफी ज़ोर पकड़ लिया था. चीन्तिलाल और चोटीराज पागलों को बार बार झटक कर अपने से अलग करते थे किंतु वे फ़िर लिपट जाते थे. उधर चित्रकार जी लगातार चित्र बना रहे थे. किंतु उन्हें अपने इस काम में काफी परेशानी हो रही थी. क्योंकि सीन बार बार बदल जाता था. कवि जी शेर पर शेर दागे जा रहे थे.
फ़िर अचानक बाहर का दरवाजा खुला और तीन चार व्यक्ति अन्दर घुस आए. उन लोगों ने चोटीराज और चीन्तिलाल को पागलों से अलग किया और उन्हें बाहर खींच ले गए. उन्होंने दरवाज़ा बाहर से बंद कर दिया.
कवि जे ने रोते हुए दोनों की विदाई पर शेर पढ़ा. चित्रकार भी गुमसुम हो गया. क्योंकि उसका पोर्ट्रेट अधुरा रह गया था.
उधर उन व्यक्तियों ने चोटीराज और चीन्तिलाल को जीप में बिठाया और चल पड़े.
"ये लोग हमें कहाँ ले जा रहे हैं?" चीन्तिलाल ने पूछा.
"जहाँ भी ले जा रहे हैं चले चलो. क्योंकि इन्होंने हमें उन दुष्ट व्यक्तियों से बचाया है."
उन्हें ले जाने वालों में से एक दूसरे से पूछ रहा था, "बॉस, आपने इन पागलों को क्यों छुड़ाया है?"
"ये पागल मेरे काम के हैं. मैं बहुत देर से खिड़की से इनकी लड़ाई देख रहा था. इनमें अद्भुत शक्ति है. हमारे लिए ये पूरी तरह उपयुक्त हैं." बॉस ने जवाब दिया.
कुछ दूर चलने के बाद जीप एक बड़ी इमारत के सामने जाकर रुकी.
वे लोग जीप से उतर पड़े और अन्दर जाने लगे. प्राचीन युगवासी भी उनके साथ थे.
"हमें बहुत जोरों की भूख लगी है. क्या यहाँ भोजन मिलेगा?" चीन्तिलाल ने उनसे पूछा जिसे उन्होंने केवल एक पागल की बड़बड़ाहट समझा.
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Sunday, January 25, 2009
ताबूत - एपिसोड 50
मैडमैन ने जल्दी से चश्मा उठाकर दुबारा लगाया और बोला, "ये तो बहुत खतरनाक पागल है. अभी तो मेरा चश्मा गया था."
"इन्हें सावधानी से ले चलो. इतने दिनों तक पागलों में रह चुके हो किंतु अभी तक उन्हें संभालना नहीं आया." पेंचराम ने सावधान किया.
फ़िर बाकी रास्ता दोनों ने सावधानी से तय किया. कुछ ही देर में वे कमरा नं0 अट्ठारह में पहुँच गए. उन्होंने दोनों प्राचीन युगवासियों को अन्दर धकेला और बाहर से दरवाज़ा बंद कर दिया. इस कमरे में पहले से ही छः सात पागल उपस्थित थे. वे पागल कुछ देर तक गौर से उनकी और देखते रहे फ़िर उनमें से एक उठा और चोटीराज के चेहरे पर हाथ फेरने लगा. चोटीराज और चीन्तिलाल आश्चर्य से उसे देख रहे थे.
"वाह! एकदम क्लासिकल, क्या चेहरा है. ऐसा चेहरा तो कभी कभी ही नज़र आता है. इसका पोर्ट्रेट तो एकदम फैन्टास्टिक बनेगा." वह पागल चीखा और फ़िर एक कोने में दौड़ गया जहाँ एक कैनवास बोर्ड और कुछ रंग और ब्रश पड़े थे. फ़िर चोटीराज का पोर्ट्रेट तैयार होने में केवल पाँच मिनट लगे. यह अलग बात है की यह पोर्ट्रेट चोटीराज की बजाये किसी शुतुरमुर्ग का अधिक प्रतीत हो रहा था जिसकी चोंच गायब थी.
"यह देखो, मैंने उसका पोर्ट्रेट तैयार कर दिया. यह एक कलाकृति है जो इससे पहले किसी ने न बनाई होगी."
"वाह वाह. ऐसा पोर्ट्रेट तो बार बार बनना चाहिए. एक और बनाओ." दूसरे पागलों ने शोर मचाकर इस प्रकार दाद दी मानो कोई कवि सम्मलेन हो रहा है.
"यह दोबारा नहीं बन सकती. एक शाहकार केवल एक ही बार बनाया जा सकता है." उस पागल ने कहा जो शायद पहले कोई चित्रकार था.
"वाह वाह, क्या बात कही है. एक शाहकार केवल एक ही बार बन सकता है. इसी बात पर मुझे एक शेर याद आ गया है." दूसरा पागल बोला.
"अरे कवि जी, अब आप अपना कवि सम्मलेन न शुरू कर दीजियेगा." एक अन्य पागल बोला.
"नहीं, मैं केवल एक शेर सुनाऊंगा." कवि ने गिडगिडा कर कहा.
"अच्छा ठीक है. सुना दो. तुम भी क्या याद करोगे." वही पागल बोला.
"तो सुनो
वह कार है, वह शाहकार है, वाह शाहों की कार है.
फुफकार कर मैंने की शायरी तो उसके चेहरे से बरसती फटकार है."
"वाह वाह, क्या शेर है. लगता है बादल गरज रहा है. बिजली कड़क रही है." एक पागल ने उठकर दाद दी. बाकी ऐसे ही बैठे रहे.
"तो इसी बात पर एक और शेर सुनो." उसने एक और शेर जड़ दिया. इस बार उसके शेर पर किसी ने दाद नहीं दी. उनमें से एक बोला, "मैंने मना किया था कि कवि सम्मेलन न शुरू करो. किंतु तुम माने नहीं. डॉक्टर, तुम ही इसको मना करो."
फ़िर डॉक्टर उठा, जिसके चेहरे पर चश्मे का गहरा निशान था. उसने इस प्रकार अपनी आँखों पर हाथ फेरा मानो चश्मे की पोजीशन सही कर रहा हो, फ़िर बोला, "इसको बहुत खतरनाक बीमारी है. इसका इलाज यही है कि इसे दोनों टांगें उठाकर खड़ा कर दिया जाए. फ़िर इसको कोई शेर याद नहीं आएगा."
"किंतु यह दोनों टांगें उठाकर खड़ा कैसे खड़ा कैसे रह पायेगा?" चित्रकार ने पूछा.
"सीधी सी बात है. इसे सर के बल खड़ा कर दो." डॉक्टर ने स्पष्टीकरण किया.
फ़िर कई लोगों ने मिलकर कवि जी को पकड़ा और सर के बल खड़ा कर दिया. चोटीराज और चीन्तिलाल यह सब तमाशा देख रहे थे. वह पागल जिसे लोग डॉक्टर कह रहे थे, उनके पास आया और गौर से उन्हें देखने लगा. फ़िर उसने एक साथ दोनों की कलाई पकड़ी मानो नब्ज़ देख रहा हो. कुछ देर इसी प्रकार देखने के बाद बोला, "तुम दोनों की नब्ज़ एक ही रफ़्तार से चल रही है. अर्थात तुम दोनों को एक ही बीमारी है."
"यह क्या कह रहा है?" चीन्तिलाल ने चोटीराज की और देखा. डॉक्टर ने उन्हें बोलते हुए देखकर कहा, "घबराने की कोई बात नहीं. यह कोई ऐसी खतरनाक बीमारी नहीं है. तुम्हें केवल मुर्गोफोबिया हो गया है. और इस कारण तुम्हें मुर्गों से डर लगता है. मैं तुम्हें कुछ टेबलेट्स लिख देता हूँ. मेरा पैड कहाँ गया?" डॉक्टर इधर उधर देखने लगा. फ़िर उसने अपनी जेब से एक मुड़ा तुड़ा कागज़ निकाला और नुस्खा लिखने लगा. फ़िर उसने वह कागज़ चोटीराज को थमाया और बोला. "लो ये टेबलेट्स. दस चम्मच सुबह और चार शाम को खा लेना. अब मेरा बिल निकालो, तीन सौ अस्सी रुपये पैंतीस पैसे."
चोटीराज ने कागज़ पकड़ लिया और उसपर लिखे नुस्खे को पढने की कोशिश करने लगा.
यह उसी प्रकार की बात थी की अंग्रेज़ी जानने वाले किताबों के शौकीन को जर्मन भाषा की पुस्तक मिल जाए और वह केवल उसके शब्द देखकर खुश होता रहे. डॉक्टर अभी तक उसके सामने हाथ फैलाए खड़ा था अपना बिल लेने के लिए. फ़िर जब काफ़ी देर तक मरीजों ने उसका बिल नहीं चुकाया तो उसे तैश आ गया और उसने उछल कर चोटीराज के गाल पर एक थप्पड़ जड़ दिया.
"इन्हें सावधानी से ले चलो. इतने दिनों तक पागलों में रह चुके हो किंतु अभी तक उन्हें संभालना नहीं आया." पेंचराम ने सावधान किया.
फ़िर बाकी रास्ता दोनों ने सावधानी से तय किया. कुछ ही देर में वे कमरा नं0 अट्ठारह में पहुँच गए. उन्होंने दोनों प्राचीन युगवासियों को अन्दर धकेला और बाहर से दरवाज़ा बंद कर दिया. इस कमरे में पहले से ही छः सात पागल उपस्थित थे. वे पागल कुछ देर तक गौर से उनकी और देखते रहे फ़िर उनमें से एक उठा और चोटीराज के चेहरे पर हाथ फेरने लगा. चोटीराज और चीन्तिलाल आश्चर्य से उसे देख रहे थे.
"वाह! एकदम क्लासिकल, क्या चेहरा है. ऐसा चेहरा तो कभी कभी ही नज़र आता है. इसका पोर्ट्रेट तो एकदम फैन्टास्टिक बनेगा." वह पागल चीखा और फ़िर एक कोने में दौड़ गया जहाँ एक कैनवास बोर्ड और कुछ रंग और ब्रश पड़े थे. फ़िर चोटीराज का पोर्ट्रेट तैयार होने में केवल पाँच मिनट लगे. यह अलग बात है की यह पोर्ट्रेट चोटीराज की बजाये किसी शुतुरमुर्ग का अधिक प्रतीत हो रहा था जिसकी चोंच गायब थी.
"यह देखो, मैंने उसका पोर्ट्रेट तैयार कर दिया. यह एक कलाकृति है जो इससे पहले किसी ने न बनाई होगी."
"वाह वाह. ऐसा पोर्ट्रेट तो बार बार बनना चाहिए. एक और बनाओ." दूसरे पागलों ने शोर मचाकर इस प्रकार दाद दी मानो कोई कवि सम्मलेन हो रहा है.
"यह दोबारा नहीं बन सकती. एक शाहकार केवल एक ही बार बनाया जा सकता है." उस पागल ने कहा जो शायद पहले कोई चित्रकार था.
"वाह वाह, क्या बात कही है. एक शाहकार केवल एक ही बार बन सकता है. इसी बात पर मुझे एक शेर याद आ गया है." दूसरा पागल बोला.
"अरे कवि जी, अब आप अपना कवि सम्मलेन न शुरू कर दीजियेगा." एक अन्य पागल बोला.
"नहीं, मैं केवल एक शेर सुनाऊंगा." कवि ने गिडगिडा कर कहा.
"अच्छा ठीक है. सुना दो. तुम भी क्या याद करोगे." वही पागल बोला.
"तो सुनो
वह कार है, वह शाहकार है, वाह शाहों की कार है.
फुफकार कर मैंने की शायरी तो उसके चेहरे से बरसती फटकार है."
"वाह वाह, क्या शेर है. लगता है बादल गरज रहा है. बिजली कड़क रही है." एक पागल ने उठकर दाद दी. बाकी ऐसे ही बैठे रहे.
"तो इसी बात पर एक और शेर सुनो." उसने एक और शेर जड़ दिया. इस बार उसके शेर पर किसी ने दाद नहीं दी. उनमें से एक बोला, "मैंने मना किया था कि कवि सम्मेलन न शुरू करो. किंतु तुम माने नहीं. डॉक्टर, तुम ही इसको मना करो."
फ़िर डॉक्टर उठा, जिसके चेहरे पर चश्मे का गहरा निशान था. उसने इस प्रकार अपनी आँखों पर हाथ फेरा मानो चश्मे की पोजीशन सही कर रहा हो, फ़िर बोला, "इसको बहुत खतरनाक बीमारी है. इसका इलाज यही है कि इसे दोनों टांगें उठाकर खड़ा कर दिया जाए. फ़िर इसको कोई शेर याद नहीं आएगा."
"किंतु यह दोनों टांगें उठाकर खड़ा कैसे खड़ा कैसे रह पायेगा?" चित्रकार ने पूछा.
"सीधी सी बात है. इसे सर के बल खड़ा कर दो." डॉक्टर ने स्पष्टीकरण किया.
फ़िर कई लोगों ने मिलकर कवि जी को पकड़ा और सर के बल खड़ा कर दिया. चोटीराज और चीन्तिलाल यह सब तमाशा देख रहे थे. वह पागल जिसे लोग डॉक्टर कह रहे थे, उनके पास आया और गौर से उन्हें देखने लगा. फ़िर उसने एक साथ दोनों की कलाई पकड़ी मानो नब्ज़ देख रहा हो. कुछ देर इसी प्रकार देखने के बाद बोला, "तुम दोनों की नब्ज़ एक ही रफ़्तार से चल रही है. अर्थात तुम दोनों को एक ही बीमारी है."
"यह क्या कह रहा है?" चीन्तिलाल ने चोटीराज की और देखा. डॉक्टर ने उन्हें बोलते हुए देखकर कहा, "घबराने की कोई बात नहीं. यह कोई ऐसी खतरनाक बीमारी नहीं है. तुम्हें केवल मुर्गोफोबिया हो गया है. और इस कारण तुम्हें मुर्गों से डर लगता है. मैं तुम्हें कुछ टेबलेट्स लिख देता हूँ. मेरा पैड कहाँ गया?" डॉक्टर इधर उधर देखने लगा. फ़िर उसने अपनी जेब से एक मुड़ा तुड़ा कागज़ निकाला और नुस्खा लिखने लगा. फ़िर उसने वह कागज़ चोटीराज को थमाया और बोला. "लो ये टेबलेट्स. दस चम्मच सुबह और चार शाम को खा लेना. अब मेरा बिल निकालो, तीन सौ अस्सी रुपये पैंतीस पैसे."
चोटीराज ने कागज़ पकड़ लिया और उसपर लिखे नुस्खे को पढने की कोशिश करने लगा.
यह उसी प्रकार की बात थी की अंग्रेज़ी जानने वाले किताबों के शौकीन को जर्मन भाषा की पुस्तक मिल जाए और वह केवल उसके शब्द देखकर खुश होता रहे. डॉक्टर अभी तक उसके सामने हाथ फैलाए खड़ा था अपना बिल लेने के लिए. फ़िर जब काफ़ी देर तक मरीजों ने उसका बिल नहीं चुकाया तो उसे तैश आ गया और उसने उछल कर चोटीराज के गाल पर एक थप्पड़ जड़ दिया.
Saturday, January 24, 2009
ताबूत - एपिसोड 49
ये तो मनुष्य हैं. फ़िर इन्हें भूत कौन कह रहा था?" एक इंसपेक्टर ने कहा.
"मैं तो ओझा जी को भी साथ लेता आया था. भूतों को काबू में करने के लिए." एक सिपाही ने कहा. उसके साथ बड़ी दाढी और जटाओं वाले गेरुआ वस्त्रधारी एक महाशय खड़े थे.
तुम यहाँ क्या हंगामा कर रहे थे?" इंसपेक्टर ने डपट कर उनसे कहा.
सियाकरण और मारभट ने एक दूसरे की ओर देखा, फ़िर सियाकरण बोला, "ये भी कोई दानेदार लगता है. भाग लो वरना हम फ़िर कोठरी में बंद कर दिए जायेंगे." फ़िर वे लोग सरपट दौड़ पड़े. इससे पहले कि इंसपेक्टर इत्यादि कुछ कर पाते, वे लोग दो तीन गलियां फलांगते हुए गायब हो चुके थे.
-----------
चोटीराज और चीन्तिलाल हाल के हंगामे से काफी घबरा उठे थे. और इसी चक्कर में दौड़ते हुए एक गली में घुस गए. उस गली से निकलने के बाद वे एक अन्य सड़क पर पहुँच गए. सामने ही एक इमारत दिखाई पड़ रही थी. ये लोग दौड़ते हुए उसमें घुस गए. अन्दर घुसने पर उन्होंने दो व्यक्तियों को सामने ही खड़ा पाया. इन व्यक्तियों की दाढियां सीने तक झूल रही थीं और सर सफाचट थे. आँखों पर मोटे मोटे चश्मे चढ़े हुए थे.
"मि० मैडमैन, एक पेशेंट और आया." पहले ने कहा.
"यह कैसे कह सकते हो? हो सकता है दोनों ही पेशेंट हों." दूसरे ने कहा.
"इम्पोसिबिल, एक तो लेकर आया है. अतः वह पेशेंट हो नहीं सकता."
"किंतु दोनों में से पेशेंट हैं कौन मि० पेंचराम?" दूसरे ने पूछा.
"यह तो उन्ही से पूछ लो. वैसे मेरा विचार है की वो वाला पेशेंट है." पहले ने चोटीराज की ओर संकेत किया.
"पागलों के बीच रहकर तुम भी आधे पागल हो गए हो. जो पागल और सही के बीच अन्तर नहीं कर पा रहे हो. मुझे पूरा विश्वास है की दूसरा वाला पागल है." दूसरे ने कहा. दोनों वास्तव में पागलखाने के डॉक्टर थे और वह इमारत एक पागलखाना थी.
"क्यों, तुममें पेशेंट आई मीन मरीज़ कौन है?" पहले ने उन दोनों से पूछा. इस पर चोटीराज अपनी भाषा में कुछ बोला जिसे ये लोग समझ नहीं पाये.
"मैं कह रहा था की यही पागल है. पता नहीं क्या बडबडा रहा है."
"हम लोग बहुत दूर से दौड़ते हुए आ रहे हैं." चीन्तिलाल भी बोल उठा.
"ओह! उल्टा सीधा तो दूसरा भी बोल रहा है. इसका मतलब की वह भी पागल है." दूसरे ने कहा.
"हमारे अस्पताल में यह पहला केस है जब दो पागल एक दूसरे को भरती कराने आए हैं." पहले ने अपना चश्मा ऊँगली से ऊपर चढाते हुए कहा.
"इन लोगों को भी रूम नं० अट्ठारह में पहुँचा दिया जाए. वहां काफ़ी जगह है." दूसरे ने कहा. फ़िर उन्होंने प्राचीन युगवासियों के हाथ पकड़े और अपने साथ ले जाने लगे.
"चोटीराज, क्या इन मनुष्यों की ऑंखें कुछ भिन्न नहीं हैं?" चीन्तिलाल ने गौर से दोनों के चश्मे देखते हुए कहा.
"हाँ हैं तो. मुझे तो पूरी तरह ये उल्लू की ऑंखें लग रही हैं. कितना बदल गया है संसार. मनुष्य की ऑंखें तक बदल गईं हैं."
उधर मि० पेंचराम ने मैडमैन को संबोधित किया, "मि० मैडमैन, आपका क्या विचार है? इनका पागलपन किस प्रकार का है?"
"मेरा विचार है की ये बड़बोला से पीड़ित हैं. जिसमें व्यक्ति हर समय कुछ न कुछ बडबडाता रहता है."
चोटीराज जो की मैडमैन के साथ चल रहा था, उसने मैडमैन के चश्मे पर हाथ डाल दिया. और मैडमैन का चश्मा नीचे गिर पड़ा.
"यह क्या? इसकी तो ऑंखें ही गिर पड़ीं!" चीन्तिलाल ने आश्चर्य से कहा.
और अब पचासवें एपिसोड में पागलखाने में हंगामा.
"मैं तो ओझा जी को भी साथ लेता आया था. भूतों को काबू में करने के लिए." एक सिपाही ने कहा. उसके साथ बड़ी दाढी और जटाओं वाले गेरुआ वस्त्रधारी एक महाशय खड़े थे.
तुम यहाँ क्या हंगामा कर रहे थे?" इंसपेक्टर ने डपट कर उनसे कहा.
सियाकरण और मारभट ने एक दूसरे की ओर देखा, फ़िर सियाकरण बोला, "ये भी कोई दानेदार लगता है. भाग लो वरना हम फ़िर कोठरी में बंद कर दिए जायेंगे." फ़िर वे लोग सरपट दौड़ पड़े. इससे पहले कि इंसपेक्टर इत्यादि कुछ कर पाते, वे लोग दो तीन गलियां फलांगते हुए गायब हो चुके थे.
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चोटीराज और चीन्तिलाल हाल के हंगामे से काफी घबरा उठे थे. और इसी चक्कर में दौड़ते हुए एक गली में घुस गए. उस गली से निकलने के बाद वे एक अन्य सड़क पर पहुँच गए. सामने ही एक इमारत दिखाई पड़ रही थी. ये लोग दौड़ते हुए उसमें घुस गए. अन्दर घुसने पर उन्होंने दो व्यक्तियों को सामने ही खड़ा पाया. इन व्यक्तियों की दाढियां सीने तक झूल रही थीं और सर सफाचट थे. आँखों पर मोटे मोटे चश्मे चढ़े हुए थे.
"मि० मैडमैन, एक पेशेंट और आया." पहले ने कहा.
"यह कैसे कह सकते हो? हो सकता है दोनों ही पेशेंट हों." दूसरे ने कहा.
"इम्पोसिबिल, एक तो लेकर आया है. अतः वह पेशेंट हो नहीं सकता."
"किंतु दोनों में से पेशेंट हैं कौन मि० पेंचराम?" दूसरे ने पूछा.
"यह तो उन्ही से पूछ लो. वैसे मेरा विचार है की वो वाला पेशेंट है." पहले ने चोटीराज की ओर संकेत किया.
"पागलों के बीच रहकर तुम भी आधे पागल हो गए हो. जो पागल और सही के बीच अन्तर नहीं कर पा रहे हो. मुझे पूरा विश्वास है की दूसरा वाला पागल है." दूसरे ने कहा. दोनों वास्तव में पागलखाने के डॉक्टर थे और वह इमारत एक पागलखाना थी.
"क्यों, तुममें पेशेंट आई मीन मरीज़ कौन है?" पहले ने उन दोनों से पूछा. इस पर चोटीराज अपनी भाषा में कुछ बोला जिसे ये लोग समझ नहीं पाये.
"मैं कह रहा था की यही पागल है. पता नहीं क्या बडबडा रहा है."
"हम लोग बहुत दूर से दौड़ते हुए आ रहे हैं." चीन्तिलाल भी बोल उठा.
"ओह! उल्टा सीधा तो दूसरा भी बोल रहा है. इसका मतलब की वह भी पागल है." दूसरे ने कहा.
"हमारे अस्पताल में यह पहला केस है जब दो पागल एक दूसरे को भरती कराने आए हैं." पहले ने अपना चश्मा ऊँगली से ऊपर चढाते हुए कहा.
"इन लोगों को भी रूम नं० अट्ठारह में पहुँचा दिया जाए. वहां काफ़ी जगह है." दूसरे ने कहा. फ़िर उन्होंने प्राचीन युगवासियों के हाथ पकड़े और अपने साथ ले जाने लगे.
"चोटीराज, क्या इन मनुष्यों की ऑंखें कुछ भिन्न नहीं हैं?" चीन्तिलाल ने गौर से दोनों के चश्मे देखते हुए कहा.
"हाँ हैं तो. मुझे तो पूरी तरह ये उल्लू की ऑंखें लग रही हैं. कितना बदल गया है संसार. मनुष्य की ऑंखें तक बदल गईं हैं."
उधर मि० पेंचराम ने मैडमैन को संबोधित किया, "मि० मैडमैन, आपका क्या विचार है? इनका पागलपन किस प्रकार का है?"
"मेरा विचार है की ये बड़बोला से पीड़ित हैं. जिसमें व्यक्ति हर समय कुछ न कुछ बडबडाता रहता है."
चोटीराज जो की मैडमैन के साथ चल रहा था, उसने मैडमैन के चश्मे पर हाथ डाल दिया. और मैडमैन का चश्मा नीचे गिर पड़ा.
"यह क्या? इसकी तो ऑंखें ही गिर पड़ीं!" चीन्तिलाल ने आश्चर्य से कहा.
और अब पचासवें एपिसोड में पागलखाने में हंगामा.
Friday, January 23, 2009
ताबूत - एपिसोड 48
"तीसरी बार तो मैंने पूरा इन्तिजाम कर लिया था. मैंने अपनी कापी बाहर लिखवाने के लिए भेज दी थी. किंतु ऐन मौके पर चूक हो गई. जिस लड़के को मैंने कापी लिखने के लिए दी थी उसने तो अपना काम कर दिया किंतु जिस लड़के को कापी यूनिवर्सिटी के अन्दर पहुंचानी थी वह लेट हो गया. और उस समय पहुँचा जब कापियां जमा हो चुकी थीं."
"यह तो रियली बहुत अफ़सोस की बात है. किंतु इस बार तुम क्या कर रहे हो?"
"इस बार तो कोई चिंता की बात नहीं है. क्योंकि इस बार हमने इस मांग को लेकर धरना दिया है की इक्जाम के प्रश्न पत्र वी.सी. और रजिस्ट्रार के अलावा छात्रसंघ के अध्यक्ष को भी दिखाए जाएँ. वह अध्यक्ष मैं ही हूँ. वी.सी. ने हमारी मांग मान लेने का आश्वासन दे दिया है."
लड़की ने इधर उधर देखा फ़िर कहा, "काफ़ी अन्धकार छा गया है. अब वापस चलना चाहिए."
"अरे अभी रुको. अभी टाइम ही कितना हुआ है." लड़के ने रोकते हुए कहा.
"बात यह है की यहाँ काफ़ी सन्नाटा हो गया है. और मुझे डर लग रहा है."
"अरे मेरे होते हुए तुम्हें किस बात का डर. पता है, पिछले चुनाव में मैंने अपने प्रतिपक्षी से ज़ोर से बात कर ली थी तो वह कांपने लगा था. भला मेरे होते हुए किसकी इतनी हिम्मत की वह यहाँ आ सके."
"कोई व्यक्ति न सही, भूत और जिन तो आ सकते हैं."
"बकवास. मैं भूतों और जिन्नों को नहीं मानता. और मान लिया वे होते भी हैं तो हमारा क---क्या ब---बिगाड़ लेंगे!" अन्तिम शब्द कहते कहते लड़के की आवाज़ थर्राने लगी और ऑंखें भय से फ़ैल गईं.
"क्या हुआ तुम्हें?" फ़िर लड़की ने लड़के के इशारे पर पीछे मुड़कर देखा और उसकी चीख निकल पड़ी. क्योंकि पीछे दो लंबे तड़ंगे ऊपर से नीचे तक एकदम काले जिन खड़े थे.
"त--तुम सही कह रह थी. वाकई में भूत प्रेत होते हैं. भ--भागो." फ़िर लड़के ने विपरीत दिशा में दौड़ लगा दी और लड़की भी उसे पुकारते हुए पीछे पीछे भागी, "डियर, तुम तो कह रहे थे की हम एक दूसरे से कभी जुदा नही होंगे और तुम तो मुझे छोड़कर भागे जा रहे हो."
-------------
"अजीब मनुष्य हैं ये लोग. हम लोग तो इनसे पूछने वाले थे की पानी कहाँ मिलेगा. और ये लोग तो भाग खड़े हुए." मारभट ने कहा.
"यह युग हमें कभी समझ में नहीं आ सकेगा. आओ, हम स्वयें ही पानी ढूंढते हैं." सियाकरण ने कहा. फ़िर वे लोग यूनिवर्सिटी के अन्दर घुस गए. उन्हें देखकर लोग इधर उधर भागने लगे. अपने कमरों में घुसकर लड़कों ने बाहर से दरवाज़ा बंद कर लिया. वे लोग माहौल से बेखबर पानी की तलाश कर रहे थे. फ़िर उन्हें एक हौज़ दिखाई पड़ गया. उनकी ऑंखें पानी देखकर चमक उठीं और उन्होंने हौज़ में छलाँग लगा दी.
उधर हॉस्टल में किसी ने पुलिस को फोन कर दिया था की हॉस्टल में दो भूत घुस आए हैं. अतः जैसे ही ये लोग नहाकर हौज़ से बाहर निकले, पुलिस ने इन्हें चारों ओर से घेर लिया.
"यह तो रियली बहुत अफ़सोस की बात है. किंतु इस बार तुम क्या कर रहे हो?"
"इस बार तो कोई चिंता की बात नहीं है. क्योंकि इस बार हमने इस मांग को लेकर धरना दिया है की इक्जाम के प्रश्न पत्र वी.सी. और रजिस्ट्रार के अलावा छात्रसंघ के अध्यक्ष को भी दिखाए जाएँ. वह अध्यक्ष मैं ही हूँ. वी.सी. ने हमारी मांग मान लेने का आश्वासन दे दिया है."
लड़की ने इधर उधर देखा फ़िर कहा, "काफ़ी अन्धकार छा गया है. अब वापस चलना चाहिए."
"अरे अभी रुको. अभी टाइम ही कितना हुआ है." लड़के ने रोकते हुए कहा.
"बात यह है की यहाँ काफ़ी सन्नाटा हो गया है. और मुझे डर लग रहा है."
"अरे मेरे होते हुए तुम्हें किस बात का डर. पता है, पिछले चुनाव में मैंने अपने प्रतिपक्षी से ज़ोर से बात कर ली थी तो वह कांपने लगा था. भला मेरे होते हुए किसकी इतनी हिम्मत की वह यहाँ आ सके."
"कोई व्यक्ति न सही, भूत और जिन तो आ सकते हैं."
"बकवास. मैं भूतों और जिन्नों को नहीं मानता. और मान लिया वे होते भी हैं तो हमारा क---क्या ब---बिगाड़ लेंगे!" अन्तिम शब्द कहते कहते लड़के की आवाज़ थर्राने लगी और ऑंखें भय से फ़ैल गईं.
"क्या हुआ तुम्हें?" फ़िर लड़की ने लड़के के इशारे पर पीछे मुड़कर देखा और उसकी चीख निकल पड़ी. क्योंकि पीछे दो लंबे तड़ंगे ऊपर से नीचे तक एकदम काले जिन खड़े थे.
"त--तुम सही कह रह थी. वाकई में भूत प्रेत होते हैं. भ--भागो." फ़िर लड़के ने विपरीत दिशा में दौड़ लगा दी और लड़की भी उसे पुकारते हुए पीछे पीछे भागी, "डियर, तुम तो कह रहे थे की हम एक दूसरे से कभी जुदा नही होंगे और तुम तो मुझे छोड़कर भागे जा रहे हो."
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"अजीब मनुष्य हैं ये लोग. हम लोग तो इनसे पूछने वाले थे की पानी कहाँ मिलेगा. और ये लोग तो भाग खड़े हुए." मारभट ने कहा.
"यह युग हमें कभी समझ में नहीं आ सकेगा. आओ, हम स्वयें ही पानी ढूंढते हैं." सियाकरण ने कहा. फ़िर वे लोग यूनिवर्सिटी के अन्दर घुस गए. उन्हें देखकर लोग इधर उधर भागने लगे. अपने कमरों में घुसकर लड़कों ने बाहर से दरवाज़ा बंद कर लिया. वे लोग माहौल से बेखबर पानी की तलाश कर रहे थे. फ़िर उन्हें एक हौज़ दिखाई पड़ गया. उनकी ऑंखें पानी देखकर चमक उठीं और उन्होंने हौज़ में छलाँग लगा दी.
उधर हॉस्टल में किसी ने पुलिस को फोन कर दिया था की हॉस्टल में दो भूत घुस आए हैं. अतः जैसे ही ये लोग नहाकर हौज़ से बाहर निकले, पुलिस ने इन्हें चारों ओर से घेर लिया.
Wednesday, January 21, 2009
ताबूत - एपिसोड 47
जींस, रंगीन दुपट्टों और सफ़ेद शर्ट्स की चकाचौंध ये बता रही थी की यह किसी यूनिवर्सिटी का हॉस्टल है. थोडी ही दूर पर पार्क था जहाँ कुछ लोग अकेले टहल रहे थे और कुछ जोडों के रूप में. ऐसा ही एक जोड़ा इस कोने में बैठा था. जहाँ अपेक्षाकृत सन्नाटा था. पेड़ों के झुंड के कारण यह स्थान कुछ छुपा हुआ था.
"डार्लिंग, कल मैंने यहाँ दो घंटे लगातार तुम्हारा इन्तिज़ार किया किंतु तुम आईं नहीं. क्या बात हो गई?" लड़के ने पूछा.
"सॉरी, बात यह हुई की कल हमारे ग्रुप के स्टूडेंट्स ने जूनिअर्स की रैगिंग लेने का प्लान बनाया था. वहां मालूम हुआ की उनकी पहले ही कुछ ग्रुपों द्वारा चार बार रैगिंग ली जा चुकी है. सो उन्होंने इस बार इनकार कर दिया. नतीजे में मार पीट की नौबत आ गई. इसी चक्कर में किसी का पेन पता नहीं किस स्पीड से मेरी खोपडी से टकराया की मैं चकरा गई. रियली डिअर मेरा सर अभी तक पेन दे रहा है."
"ओह! ये तो बहुत बुरा हुआ. सच पूछो तो तुम्हारी ज़रा सी तकलीफ से मेरा दिल धड़कने लगता है. यह बताओ, तुम ने अपनी मम्मी से तो नहीं बताया की तुम मुझसे प्यार करती हो?"
"सवाल ही नहीं पैदा होता. बता के मरना है क्या. वे तो मेरे लिए कोई आई.ए.एस ढूंढ रही हैं और तुम तो अभी बी.एस.सी. कर रहे हो. तुम जल्दी से आई.ए.एस, पी.सी.एस. बन जाओ फ़िर मैं बात करूंगी. वैसे डार्लिंग क्या तुमने अपने पापा से बात की?"
"एक बार मैंने घर में कहा था की मैं शादी करना चाहता हूँ. वह डांट पड़ी की बस. पापा कहने लगे की पहले ग्रेजुएट होकर सर्विस करने लगो फ़िर शादी की बात मुंह से निकालना. यार, यह पैरेंट्स रास्ते की दीवार क्यों बन जाते हैं?"
"हाँ. मैंने तो मोस्टली फिल्मों में यही देखा है. किंतु हमारा प्यार सदेव अमर रहेगा. चाहे जितना बड़ा तूफ़ान आ जाए, हम अपने इरादों पर अटल रहेंगे.
"डार्लिंग, हम अपनी यूनिवर्सिटी की इन मुलाकातों को हमेशा याद रखेंगे. ये रंगीन माहोल, और उसमें तुम मेरे पास हो.पता नहीं क्यों मेरा यूनिवर्सिटी छोड़ने का मन नहीं करता." लड़के ने कहा.
"इसीलिए तुम बी.एस.सी. में लगातार तीन साल से फेल हो रहे हो."
"वह तो और बात है. मैं तो हर बार पूरी तय्यारी कर के गया, किंतु हर बार गड़बड़ हो गई."
"कैसी गड़बड़?"
"जब पहली बार मैंने इक्जाम दिया तो मैं जो पर्चियां ले गया उसे देखकर दूसरे लड़के ने कहा ये इस पेपर की पर्चियां नहीं हैं. इसका पेपर तो पहले ही हो गया. बात यह हुई की मैं जो पैंट पहनकर पहले दिन पेपर देने गया था भूल से वही पैंट उस दिन भी पहन ली थी."
"और दूसरी बार क्या हुआ था?"
"जब दूसरी बार मेरा इक्जाम हुआ तो उसी समय तुनसे पहली बार मुलाकात हुई थी. हर समय तुम्हारे सपने में खोया रहता था. इसी चक्कर में एक दिन केमिस्ट्री के पेपर में लिख आया, "डार्लिंग सोडियम क्लोराइड, तुम्हारी इस समय बहुत याद आ रही है. तुम्हारो मोहब्बत के तुल्यांकी भार ने मेरे दिल के नाभिक के टुकड़े टुकड़े कर दिए है. और मैं अपने आपको पूरी तरह रेडियो एक्टिव पा रहा हूँ. तुम्हारी याद में मैं इतना एसिडिक हो गया हूँ की लगता है वातावरण कैल्शियम ऑक्साइड जैसा शुष्क हो गया है. इस तरह मैं दूसरी बार भी नाकाम हो गया."
"ओह! मुझे अफ़सोस है की मैं तुम्हारे फेल होने का कारण बनी. किंतु तीसरी बार क्या हुआ था?"
"डार्लिंग, कल मैंने यहाँ दो घंटे लगातार तुम्हारा इन्तिज़ार किया किंतु तुम आईं नहीं. क्या बात हो गई?" लड़के ने पूछा.
"सॉरी, बात यह हुई की कल हमारे ग्रुप के स्टूडेंट्स ने जूनिअर्स की रैगिंग लेने का प्लान बनाया था. वहां मालूम हुआ की उनकी पहले ही कुछ ग्रुपों द्वारा चार बार रैगिंग ली जा चुकी है. सो उन्होंने इस बार इनकार कर दिया. नतीजे में मार पीट की नौबत आ गई. इसी चक्कर में किसी का पेन पता नहीं किस स्पीड से मेरी खोपडी से टकराया की मैं चकरा गई. रियली डिअर मेरा सर अभी तक पेन दे रहा है."
"ओह! ये तो बहुत बुरा हुआ. सच पूछो तो तुम्हारी ज़रा सी तकलीफ से मेरा दिल धड़कने लगता है. यह बताओ, तुम ने अपनी मम्मी से तो नहीं बताया की तुम मुझसे प्यार करती हो?"
"सवाल ही नहीं पैदा होता. बता के मरना है क्या. वे तो मेरे लिए कोई आई.ए.एस ढूंढ रही हैं और तुम तो अभी बी.एस.सी. कर रहे हो. तुम जल्दी से आई.ए.एस, पी.सी.एस. बन जाओ फ़िर मैं बात करूंगी. वैसे डार्लिंग क्या तुमने अपने पापा से बात की?"
"एक बार मैंने घर में कहा था की मैं शादी करना चाहता हूँ. वह डांट पड़ी की बस. पापा कहने लगे की पहले ग्रेजुएट होकर सर्विस करने लगो फ़िर शादी की बात मुंह से निकालना. यार, यह पैरेंट्स रास्ते की दीवार क्यों बन जाते हैं?"
"हाँ. मैंने तो मोस्टली फिल्मों में यही देखा है. किंतु हमारा प्यार सदेव अमर रहेगा. चाहे जितना बड़ा तूफ़ान आ जाए, हम अपने इरादों पर अटल रहेंगे.
"डार्लिंग, हम अपनी यूनिवर्सिटी की इन मुलाकातों को हमेशा याद रखेंगे. ये रंगीन माहोल, और उसमें तुम मेरे पास हो.पता नहीं क्यों मेरा यूनिवर्सिटी छोड़ने का मन नहीं करता." लड़के ने कहा.
"इसीलिए तुम बी.एस.सी. में लगातार तीन साल से फेल हो रहे हो."
"वह तो और बात है. मैं तो हर बार पूरी तय्यारी कर के गया, किंतु हर बार गड़बड़ हो गई."
"कैसी गड़बड़?"
"जब पहली बार मैंने इक्जाम दिया तो मैं जो पर्चियां ले गया उसे देखकर दूसरे लड़के ने कहा ये इस पेपर की पर्चियां नहीं हैं. इसका पेपर तो पहले ही हो गया. बात यह हुई की मैं जो पैंट पहनकर पहले दिन पेपर देने गया था भूल से वही पैंट उस दिन भी पहन ली थी."
"और दूसरी बार क्या हुआ था?"
"जब दूसरी बार मेरा इक्जाम हुआ तो उसी समय तुनसे पहली बार मुलाकात हुई थी. हर समय तुम्हारे सपने में खोया रहता था. इसी चक्कर में एक दिन केमिस्ट्री के पेपर में लिख आया, "डार्लिंग सोडियम क्लोराइड, तुम्हारी इस समय बहुत याद आ रही है. तुम्हारो मोहब्बत के तुल्यांकी भार ने मेरे दिल के नाभिक के टुकड़े टुकड़े कर दिए है. और मैं अपने आपको पूरी तरह रेडियो एक्टिव पा रहा हूँ. तुम्हारी याद में मैं इतना एसिडिक हो गया हूँ की लगता है वातावरण कैल्शियम ऑक्साइड जैसा शुष्क हो गया है. इस तरह मैं दूसरी बार भी नाकाम हो गया."
"ओह! मुझे अफ़सोस है की मैं तुम्हारे फेल होने का कारण बनी. किंतु तीसरी बार क्या हुआ था?"
Saturday, January 17, 2009
ताबूत - एपिसोड 46
मारभट और सियाकरण ने ठेले पर से सेब उठा उठाकर खाना शुरू कर दिए थे. उनके मुंह और हाथ काफ़ी तेज़ी से चल रहे थे और यह सिलसिला तभी रुका जब उनके पेट पूरी तरह भर गए.
"आप लोगों ने मिलकर पूरे एक सौ पच्चीस सेब खाए हैं. इस प्रकार कुल तीन सौ पचहत्तर रुपये हुए." फलवाला उनकी खुराक देखकर हैरान था.
"यह रुपये क्या होता है?" सियाकरण ने यह शब्द पहली बार सुना था.
"रुपये अर्थात मनी अर्थात मुद्रा. रुपया यहाँ की मुद्रा है जिस प्रकार आपके देश में शायद डालर है." फलवाले ने इन्हें समझाया.
"अच्छा अच्छा मुद्रा. क्यों सियाकरण तुम्हारे पास कुछ मुद्राएँ पड़ी हैं?"
"नहीं. अब तो मेरे पास एक मुद्रा भी नहीं है." सियाकरण ने कहा फ़िर फलवाले से बोला, "अभी तो हमारे पास मुद्रा नहीं है. बाद में दे दूँगा."कहते हुए वे आगे बढ़ने लगे.
"अरे इन चोरों को पकडो. मेरे तीन सौ पचहत्तर रुपये के फल खा गए और अब पैसे नहीं दे रहे हैं." फलवाला चिल्लाया. कई लोग उनकी ओर दौडे और दोनों को पकड़ लिया.
"अरे दुष्टों मेरे पैसे दे दो वरना जेल भिजवा दूँगा." फलवाला उनकी और चीखते हुए बढ़ा.
"यहाँ क्या हो रहा है." तभी पीछे से कड़कदार आवाज़ गूंजी और लोग मुड़कर पीछे देखने लगे. पीछे थानेदार शेरखान खड़ा था.
वह इन्हें देखकर चौंका, "ये तो वही हैं जो मेरी मोटरसाइकिल लेकर भागे हैं." वह बोला, "क्यों बे मेरी मोटरसाइकिल कहाँ है?"
"मारभट, ये तो वही है, जिसने हमें कोठरी में बंद कर दिया था और अब किसी मोटरसाइकिल की बात कर रहा है."
"हम लोग यहाँ से भाग लेते हैं. वरना ये हमें फ़िर कोठरी में बंद कर देगा." फ़िर दोनों ने अपने अपने हाथों को झटका दिया और इन्हें पकड़े व्यक्ति छिटक कर दूर जा गिरे. फ़िर ये लोग भाग निकले. फलवाला और थानेदार इनके पीछे थे. सियाकरण और मारभट काफ़ी तेज़ दौड़ रहे थे. जल्दी ही इन्होंने दोनों को काफी पीछे छोड़ दिया.
अब दोनों एक नाले के किनारे किनारे भाग रहे थे. एकाएक सियाकरण ने एक ठोकर खाई और संभलने के लिए मारभट को थाम लिया. दोनों का बैलेंस बिगडा और दोनों लुढ़खनियाँ खाते हुए एक साथ नाले में जा गिरे.
"ओह! यह हम लोग कहाँ गिर गए. जल्दी बाहर निकलो." दोनों बाहर निकले किंतु अब वे कीचड में बुरी तरह लथपथ हो चुके थे.
और शाम के धुंधलके में पूरी तरह काले भूत मालुम हो रहे थे.
"हम लोगों का तो हुलिया ही बिगड़ गया है. चलो चलकर कहीं मुंह धोते हैं." मारभट ने कहा.
"अच्छा हुआ कि उस खतरनाक मनुष्य से पीछा छूट गया जिसे लोग दानेदार (थानेदार) कह रहे थे." सियाकरण ने इत्मीनान कि साँस ली फ़िर वे लोग हाथ मुंह धोने के लिए पानी की तलाश में निकल पड़े.
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"आप लोगों ने मिलकर पूरे एक सौ पच्चीस सेब खाए हैं. इस प्रकार कुल तीन सौ पचहत्तर रुपये हुए." फलवाला उनकी खुराक देखकर हैरान था.
"यह रुपये क्या होता है?" सियाकरण ने यह शब्द पहली बार सुना था.
"रुपये अर्थात मनी अर्थात मुद्रा. रुपया यहाँ की मुद्रा है जिस प्रकार आपके देश में शायद डालर है." फलवाले ने इन्हें समझाया.
"अच्छा अच्छा मुद्रा. क्यों सियाकरण तुम्हारे पास कुछ मुद्राएँ पड़ी हैं?"
"नहीं. अब तो मेरे पास एक मुद्रा भी नहीं है." सियाकरण ने कहा फ़िर फलवाले से बोला, "अभी तो हमारे पास मुद्रा नहीं है. बाद में दे दूँगा."कहते हुए वे आगे बढ़ने लगे.
"अरे इन चोरों को पकडो. मेरे तीन सौ पचहत्तर रुपये के फल खा गए और अब पैसे नहीं दे रहे हैं." फलवाला चिल्लाया. कई लोग उनकी ओर दौडे और दोनों को पकड़ लिया.
"अरे दुष्टों मेरे पैसे दे दो वरना जेल भिजवा दूँगा." फलवाला उनकी और चीखते हुए बढ़ा.
"यहाँ क्या हो रहा है." तभी पीछे से कड़कदार आवाज़ गूंजी और लोग मुड़कर पीछे देखने लगे. पीछे थानेदार शेरखान खड़ा था.
वह इन्हें देखकर चौंका, "ये तो वही हैं जो मेरी मोटरसाइकिल लेकर भागे हैं." वह बोला, "क्यों बे मेरी मोटरसाइकिल कहाँ है?"
"मारभट, ये तो वही है, जिसने हमें कोठरी में बंद कर दिया था और अब किसी मोटरसाइकिल की बात कर रहा है."
"हम लोग यहाँ से भाग लेते हैं. वरना ये हमें फ़िर कोठरी में बंद कर देगा." फ़िर दोनों ने अपने अपने हाथों को झटका दिया और इन्हें पकड़े व्यक्ति छिटक कर दूर जा गिरे. फ़िर ये लोग भाग निकले. फलवाला और थानेदार इनके पीछे थे. सियाकरण और मारभट काफ़ी तेज़ दौड़ रहे थे. जल्दी ही इन्होंने दोनों को काफी पीछे छोड़ दिया.
अब दोनों एक नाले के किनारे किनारे भाग रहे थे. एकाएक सियाकरण ने एक ठोकर खाई और संभलने के लिए मारभट को थाम लिया. दोनों का बैलेंस बिगडा और दोनों लुढ़खनियाँ खाते हुए एक साथ नाले में जा गिरे.
"ओह! यह हम लोग कहाँ गिर गए. जल्दी बाहर निकलो." दोनों बाहर निकले किंतु अब वे कीचड में बुरी तरह लथपथ हो चुके थे.
और शाम के धुंधलके में पूरी तरह काले भूत मालुम हो रहे थे.
"हम लोगों का तो हुलिया ही बिगड़ गया है. चलो चलकर कहीं मुंह धोते हैं." मारभट ने कहा.
"अच्छा हुआ कि उस खतरनाक मनुष्य से पीछा छूट गया जिसे लोग दानेदार (थानेदार) कह रहे थे." सियाकरण ने इत्मीनान कि साँस ली फ़िर वे लोग हाथ मुंह धोने के लिए पानी की तलाश में निकल पड़े.
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Monday, January 12, 2009
ताबूत - एपिसोड 45
कुछ देर बाद जब परदे पर भोजन करने का दृश्य आया तो ये लोग एक बार फ़िर बेचैन हो गए.
"अरे वे लोग तो भोजन करने लगे. हम लोग इतनी देर से बैठे हैं हमें कुछ मिल ही नहीं रहा है."
"शायद वे लोग स्वयें खाने के बाद हमारे लिए ले आयें." चोटीराज ने दिलासा दिया.
फ़िर उसके बाद परदे पर विभिन्न प्रकार के सीन आते रहे और उसके उत्तर में इनकी विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रियाएं होती रहीं. उनके आसपास बैठने वाले काफ़ी शरीफ मालुम हो रहे थे वरना अब तक इनका गरेबान पकड़ा जा चुका होता. दो तीन लोगों ने इन्हें घूरकर देखा किंतु कोई कुछ बोला नहीं.
उसके बाद वह दृश्य भी आया जहाँ कई गुंडे मिलकर हीरो से फाइटिंग कर रहे थे.
"अरे चोटीराज, देखो कैसा अत्याचार हो रहा है. उस बेचारे को कई लोग मिलकर मार रहे हैं और कोई बोल भी नहीं रहा है." चीन्तिलाल ने दांत पीसकर कहा.
चोटीराज कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया और चीखकर बोला, "उसे छोड़ दो वरना यदि मैं आ गया तो मार मारकर उल्टा लटका दूँगा." "अबे ओये, बैठ जा अपनी कुर्सी पर. क्या चिल्ला रहा है." चारों ओर से आवाजें आने लगीं. चोटीराज पर लोगों की बोलियों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा और वह उसी प्रकार परदे के बदमाशों को वार्निंग देता रहा. अब चीन्तिलाल भी अपनी कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया था. भीड़ का शोर अब और अधिक हो गया था. फ़िर जब हीरो को कई बदमाशों ने गिराकर पीटना शुरू कर दिया तो चोटीराज ने आव देखा न ताव और बगल में रखी किन्हीं सज्जन की गठरी उठाकर परदे की ओर उछाल दी. किंतु परदा काफ़ी दूर था अतः वह गठरी हवा में तैरती हुई एक सज्जन की पत्नी के सर पर जाकर ठहर गई.
"अरे मर गई." उनकी पत्नी की जब सुरीली चीख गूंजी तो वह बौखला कर खड़े हो गए. उन्होंने देख लिया था की वह गठरी किधर से आई है.
उन्होंने बदला लेने के लिए किसी हथियार की तलाश शुरू कर दी और जल्द ही उनका स्वयें का त्फिन बॉक्स उनके हाथ में आ गया और वह उन्होंने चोटीराज की ओर उछाल दिया. किंतु उन्होंने शायद क्रिकेट कभी नहीं खेला था अतः वह टिफिन बॉक्स अपनी मंजिल पर पहुँचने की बजाये बीच ही में बर्स्ट होकर एक पहलवान नुमा सज्जन की तोंद पर जाकर ठहर गया.
"ये कौन बदतमीज़ है." फ़िर पहलवान जी को वह बदतमीज़ दिखाई पड़ गया और वे गिरते पड़ते वहां पहुँच गए और फ़िर वहां पूरा हंगामा खड़ा हो गया. अब लोग दो दो फाइटिंग एक साथ देख रहे थे. जिसमें से एक असली थी और दूसरी नकली.
फ़िर कोई चीखा, "भागो यहाँ बम ब्लास्ट होने वाला है." और फ़िर वहां भगदड़ मच गई. लोग एक दूसरे पर गिरते पड़ते गेटों की ओर भाग रहे थे. फ़िर हाल खाली होने में एक मिनट भी पूरा नहीं लगा. चोटीराज और चीन्तिलाल भी सबके साथ हाल से बाहर आ गए.
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फ़िर मारभट की दृष्टि फलों के एक ठेले पर पड़ी और उसकी ऑंखें चमक उठीं.
"वह देखो, फल मिल गए. आओ खाते हैं." उसने कहा और दोनों ठेले की ओर बढ़ गए.
'क्या हम फल खा सकते हैं?" मारभट ने फलवाले से पूछा.
"अवश्य खाइए." फलवाले ने कहा और मन ही मन कहने लगा, "ये लोग अवश्य कहीं बाहर से आए हैं. दाम भी नहीं पूछे. आज लगता है काफ़ी अच्छी आमदनी होगी.
अगली पोस्ट इस ब्लॉग की सौवीं पोस्ट होगी. जिसमें पढिये कुछ ख़ास.
"अरे वे लोग तो भोजन करने लगे. हम लोग इतनी देर से बैठे हैं हमें कुछ मिल ही नहीं रहा है."
"शायद वे लोग स्वयें खाने के बाद हमारे लिए ले आयें." चोटीराज ने दिलासा दिया.
फ़िर उसके बाद परदे पर विभिन्न प्रकार के सीन आते रहे और उसके उत्तर में इनकी विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रियाएं होती रहीं. उनके आसपास बैठने वाले काफ़ी शरीफ मालुम हो रहे थे वरना अब तक इनका गरेबान पकड़ा जा चुका होता. दो तीन लोगों ने इन्हें घूरकर देखा किंतु कोई कुछ बोला नहीं.
उसके बाद वह दृश्य भी आया जहाँ कई गुंडे मिलकर हीरो से फाइटिंग कर रहे थे.
"अरे चोटीराज, देखो कैसा अत्याचार हो रहा है. उस बेचारे को कई लोग मिलकर मार रहे हैं और कोई बोल भी नहीं रहा है." चीन्तिलाल ने दांत पीसकर कहा.
चोटीराज कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया और चीखकर बोला, "उसे छोड़ दो वरना यदि मैं आ गया तो मार मारकर उल्टा लटका दूँगा." "अबे ओये, बैठ जा अपनी कुर्सी पर. क्या चिल्ला रहा है." चारों ओर से आवाजें आने लगीं. चोटीराज पर लोगों की बोलियों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा और वह उसी प्रकार परदे के बदमाशों को वार्निंग देता रहा. अब चीन्तिलाल भी अपनी कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया था. भीड़ का शोर अब और अधिक हो गया था. फ़िर जब हीरो को कई बदमाशों ने गिराकर पीटना शुरू कर दिया तो चोटीराज ने आव देखा न ताव और बगल में रखी किन्हीं सज्जन की गठरी उठाकर परदे की ओर उछाल दी. किंतु परदा काफ़ी दूर था अतः वह गठरी हवा में तैरती हुई एक सज्जन की पत्नी के सर पर जाकर ठहर गई.
"अरे मर गई." उनकी पत्नी की जब सुरीली चीख गूंजी तो वह बौखला कर खड़े हो गए. उन्होंने देख लिया था की वह गठरी किधर से आई है.
उन्होंने बदला लेने के लिए किसी हथियार की तलाश शुरू कर दी और जल्द ही उनका स्वयें का त्फिन बॉक्स उनके हाथ में आ गया और वह उन्होंने चोटीराज की ओर उछाल दिया. किंतु उन्होंने शायद क्रिकेट कभी नहीं खेला था अतः वह टिफिन बॉक्स अपनी मंजिल पर पहुँचने की बजाये बीच ही में बर्स्ट होकर एक पहलवान नुमा सज्जन की तोंद पर जाकर ठहर गया.
"ये कौन बदतमीज़ है." फ़िर पहलवान जी को वह बदतमीज़ दिखाई पड़ गया और वे गिरते पड़ते वहां पहुँच गए और फ़िर वहां पूरा हंगामा खड़ा हो गया. अब लोग दो दो फाइटिंग एक साथ देख रहे थे. जिसमें से एक असली थी और दूसरी नकली.
फ़िर कोई चीखा, "भागो यहाँ बम ब्लास्ट होने वाला है." और फ़िर वहां भगदड़ मच गई. लोग एक दूसरे पर गिरते पड़ते गेटों की ओर भाग रहे थे. फ़िर हाल खाली होने में एक मिनट भी पूरा नहीं लगा. चोटीराज और चीन्तिलाल भी सबके साथ हाल से बाहर आ गए.
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फ़िर मारभट की दृष्टि फलों के एक ठेले पर पड़ी और उसकी ऑंखें चमक उठीं.
"वह देखो, फल मिल गए. आओ खाते हैं." उसने कहा और दोनों ठेले की ओर बढ़ गए.
'क्या हम फल खा सकते हैं?" मारभट ने फलवाले से पूछा.
"अवश्य खाइए." फलवाले ने कहा और मन ही मन कहने लगा, "ये लोग अवश्य कहीं बाहर से आए हैं. दाम भी नहीं पूछे. आज लगता है काफ़ी अच्छी आमदनी होगी.
अगली पोस्ट इस ब्लॉग की सौवीं पोस्ट होगी. जिसमें पढिये कुछ ख़ास.
Sunday, January 11, 2009
ताबूत - एपिसोड 44
अब पुलिस इंस्पेक्टर इनसे कह रहा था, "इन लुटेरों पर पाँच हज़ार का इनाम था. वह आप लोग ले लीजिये." उसने इन्हें रुपये दे दिए. ये दोनों कुछ देर उन नोटों को आश्चर्य से देखते रहे फ़िर बाहर आ गए.
"उस मनुष्य ने हमें ये क्या दिया है?" चीन्तिलाल अपने हाथ में दबे नोटों को देखता हुआ बोला.
"इसपर कुछ लिखा हुआ है. मेरा विचार है कि यह लिखने के लिए आधार है. जिस प्रकार हमारे युग में ताड़पत्र होता था."
"अच्छा छोड़ो इसे. मुझे तो अब बहुत जोरों की भूख लग रही है."
"वह देखो, सामने कोई घर है. वहां अवश्य कुछ न कुछ मिल जायेगा." चोटीराज ने सामने देखते हुए कहा.
फ़िर वह दोनों उस घर की ओर बढ़ गए जो वास्तव में एक सिनेमाहाल था. जिस समय वह लोग वहां पहुंचे, भीड़ का एक रेला अन्दर से आया. शायद कोई शो समाप्त हुआ था. ये लोग उस भीड़ को आश्चर्य से देखने लगे. भीड़ भी उनके कद और डील डौल के कारण उन्हें देखने लगी. अधिकतर लोगों ने इन्हें विदेशी समझा.
ये लोग भीड़ से बचते बचाते एक कोने में पहुंचे और वहां खड़े एक व्यक्ति से प्रश्न किया, "क्या यहाँ खाने को कुछ मिल सकता है?"
सामने वाला ब्लैक में टिकट बेचने वाला था. उसने यही समझा कि ये लोग विदेशी हैं और शायद फ्रेंच बोल रहे हैं. साथ ही इनके हाथों में नोट देखकर उसकी ऑंखें फ़ैल गईं.
"इन लोगों को ठगना चाहिए," उसने अपने मन में कहा और बोला, "आप लोग ब्लैक में टिकट खरीदने के लिए एकदम सही व्यक्ति के पास आये है. मैं आपको बहुत सस्ते में टिकट दूँगा. एक टिकट के केवल पाँच सौ रुपये." उसने दो टिकट इनकी ओर बढ़ा दिए और एक हज़ार रुपये इनके हाथ से झटक लिए. उसके बाद उसने ऊँगली से हाल की ओर संकेत किया और रुपये लेकर चंपत हो गया."
चीन्तिलाल और चोटीराज हाल की ओर बढ़ने लागे.
"अजीब बातें हैं इस युग की. हमने जब भोजन के बारे में पूछा तो उसने हमें पत्ती पकड़ा दी. इसका हम लोग क्या करें?" चोटीराज ने पूछा.
"हाथ में लिए रहो. शायद इस युग में भोजन पत्तियों के साथ करते हैं. आओ अन्दर चलते हैं."
वे लोग गेट पर पहुँच गए जहाँ गेटकीपर लोगों के टिकट देख देखकर उन्हें उनके स्थान बता रहा था. लोगों की देखा देखी ये भी अपनी कुर्सियों के पास पहुंचे और उनपर बैठ गए. कुछ देर बाद हाल में अँधेरा छा गया.
"कमाल है, अभी तो यहाँ दिन था. अब एकदम से रात कैसे हो गई?" चीन्तिलाल ने आश्चर्य से कहा.
"रात नही हुई है. बल्कि यह चिराग जल रहे थे जो अब बुझा दिए गए हैं." चोटीराज ने स्पष्टीकरण किया.
"तो क्या इस युग के लोग अंधेरे में भोजन करते हैं?"
"वो अवश्य कोई अनोखा भोजन होगा."
लगभग दो तीन मिनट बाद परदे पर बैक्ग्राउन्ड म्यूजिक गूंजा और ये लोग उछल पड़े. उसके बाद उन्हें एक बार फ़िर उछलना पड़ा जब परदे पर चित्र आने लगे.
"इतने बड़े बड़े मनुष्य. ऐसे तो हमारे युग में भी नहीं थे."
"और ये लोग कितने जोरों से चिल्ला रहे हैं. मेरा तो इतने ज़ोर से बोलने पर गला ही ख़राब हो जायेगा."
"उस मनुष्य ने हमें ये क्या दिया है?" चीन्तिलाल अपने हाथ में दबे नोटों को देखता हुआ बोला.
"इसपर कुछ लिखा हुआ है. मेरा विचार है कि यह लिखने के लिए आधार है. जिस प्रकार हमारे युग में ताड़पत्र होता था."
"अच्छा छोड़ो इसे. मुझे तो अब बहुत जोरों की भूख लग रही है."
"वह देखो, सामने कोई घर है. वहां अवश्य कुछ न कुछ मिल जायेगा." चोटीराज ने सामने देखते हुए कहा.
फ़िर वह दोनों उस घर की ओर बढ़ गए जो वास्तव में एक सिनेमाहाल था. जिस समय वह लोग वहां पहुंचे, भीड़ का एक रेला अन्दर से आया. शायद कोई शो समाप्त हुआ था. ये लोग उस भीड़ को आश्चर्य से देखने लगे. भीड़ भी उनके कद और डील डौल के कारण उन्हें देखने लगी. अधिकतर लोगों ने इन्हें विदेशी समझा.
ये लोग भीड़ से बचते बचाते एक कोने में पहुंचे और वहां खड़े एक व्यक्ति से प्रश्न किया, "क्या यहाँ खाने को कुछ मिल सकता है?"
सामने वाला ब्लैक में टिकट बेचने वाला था. उसने यही समझा कि ये लोग विदेशी हैं और शायद फ्रेंच बोल रहे हैं. साथ ही इनके हाथों में नोट देखकर उसकी ऑंखें फ़ैल गईं.
"इन लोगों को ठगना चाहिए," उसने अपने मन में कहा और बोला, "आप लोग ब्लैक में टिकट खरीदने के लिए एकदम सही व्यक्ति के पास आये है. मैं आपको बहुत सस्ते में टिकट दूँगा. एक टिकट के केवल पाँच सौ रुपये." उसने दो टिकट इनकी ओर बढ़ा दिए और एक हज़ार रुपये इनके हाथ से झटक लिए. उसके बाद उसने ऊँगली से हाल की ओर संकेत किया और रुपये लेकर चंपत हो गया."
चीन्तिलाल और चोटीराज हाल की ओर बढ़ने लागे.
"अजीब बातें हैं इस युग की. हमने जब भोजन के बारे में पूछा तो उसने हमें पत्ती पकड़ा दी. इसका हम लोग क्या करें?" चोटीराज ने पूछा.
"हाथ में लिए रहो. शायद इस युग में भोजन पत्तियों के साथ करते हैं. आओ अन्दर चलते हैं."
वे लोग गेट पर पहुँच गए जहाँ गेटकीपर लोगों के टिकट देख देखकर उन्हें उनके स्थान बता रहा था. लोगों की देखा देखी ये भी अपनी कुर्सियों के पास पहुंचे और उनपर बैठ गए. कुछ देर बाद हाल में अँधेरा छा गया.
"कमाल है, अभी तो यहाँ दिन था. अब एकदम से रात कैसे हो गई?" चीन्तिलाल ने आश्चर्य से कहा.
"रात नही हुई है. बल्कि यह चिराग जल रहे थे जो अब बुझा दिए गए हैं." चोटीराज ने स्पष्टीकरण किया.
"तो क्या इस युग के लोग अंधेरे में भोजन करते हैं?"
"वो अवश्य कोई अनोखा भोजन होगा."
लगभग दो तीन मिनट बाद परदे पर बैक्ग्राउन्ड म्यूजिक गूंजा और ये लोग उछल पड़े. उसके बाद उन्हें एक बार फ़िर उछलना पड़ा जब परदे पर चित्र आने लगे.
"इतने बड़े बड़े मनुष्य. ऐसे तो हमारे युग में भी नहीं थे."
"और ये लोग कितने जोरों से चिल्ला रहे हैं. मेरा तो इतने ज़ोर से बोलने पर गला ही ख़राब हो जायेगा."
Friday, January 9, 2009
ताबूत - एपिसोड 43
"आप लोग विवाह के लिए दौड़ क्यों रहे हैं? क्या कोई स्वयेंवर होगा?" चीन्तिलाल ने पूछा. ये शब्द उसने अपनी भाषा में कहे थे. यहाँ ये बता देना आवश्यक है की इस युग की भाषा केवल केवल मारभट और सियाकरण ही थोडी बहुत सीख पाये थे. चीन्तिलाल और चोटीराज इस युग की भाषा बिल्कुल नहीं बोलते समझते थे. किंतु वे यही समझते थे कि इस युग के लोग उनकी भाषा समझ रहे हैं. और इसका कारण था कि राम्सिंघ इत्यादि उनसे उन्हीं कि भाषा में बात कर लेते थे. लुटेरे अपनी वैगन में बैठ चुके थे.
"ये स्पीड ब्रेकर बीच में कहाँ से टपक पड़े." लुटेरों ने कहा और उनसे बोले, "तुम लोग सामने से हट जाओ वरना गोली से उड़ा दिए जाओगे." कहते हुए रिवाल्वर वाले ने उनपर रिवाल्वर तान दिया.
"चीन्तिलाल, ये हमें कुछ दे रहे हैं." चोटीराज ने रिवाल्वर लेने के लिए हाथ बढ़ा दिया. लुटेरे ने ट्रेगर दबा दिया. पिट की आवाज़ हुई और कोई गोली नहीं चली.
"ओह! मैंने अपना रिवाल्वर तो बैंक में ही खाली कर दिया था." लुटेरा बोला.
"तो फिर देखते क्या हो. चाकू से इनका काम तमाम कर दो." दूसरे लुटेरे ने कहा.
पहला लुटेरा चाकू निकालकर उनकी ओर बढ़ने लगा. पास पहुंचकर उसने चोटीराज पर वार किया. चोटीराज उसकी मंशा भाँपकर किनारे हो गया और लुटेरे का वार खाली हो गया.
"ये तो हमें मार रहा है. अर्थात ये हमारा दुश्मन है." चोटीराज ने कहा.
"फिर देख क्या रहे हो. इसे बता दो की हम दुश्मनों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं." चीन्तिलाल बोला और चोटीराज ने लुटेरे के गाल पर एक थप्पड़ जमा दिया. लुटेरा भला उन सातफुटे प्राचीन युग्वासियों का थप्पड़ कहाँ झेल पाता. उसे वहीँ तारों के साथ साथ ब्लैक होलों के भी दर्शन हो गए ओर वह सपनों की दुनिया में पहुँच गया.
फ़िर चोटीराज कर के आगे पहुँचा ओर चीन्तिलाल पीछे, ओर उन्होंने उसे अपने हाथों पर उठा लिया. कार में बैठे लुटेरों का शायद इस तरह की परिस्थिति से पहली बार पाला पड़ा था. वे हवा में तंगी कार में बैठे बैठे चिल्लाने लगे. उनकी चीख सुनकर काफ़ी लोग अपने घरों से निकल आए और उनकी हालत देखकर हंसने लगे. कुछ ही देर में पुलिस भी आ गई ओर उसने उन लुटेरों को गिरफ्तार कर लिया. फ़िर जब उसे मालूम हुआ की लुटेरों को पकड़ने वाले चोटीराज और चीन्तिलाल हैं तो वह इनको भी अपने साथ लेती गई. पुलिस स्टेशन देखकर ये दोनों एक दूसरे का मुंह ताकने लगे.
"लगता है हमें फ़िर कोठरी में बंद कर दिया जायेगा." चीन्तिलाल बोला.
"ये स्पीड ब्रेकर बीच में कहाँ से टपक पड़े." लुटेरों ने कहा और उनसे बोले, "तुम लोग सामने से हट जाओ वरना गोली से उड़ा दिए जाओगे." कहते हुए रिवाल्वर वाले ने उनपर रिवाल्वर तान दिया.
"चीन्तिलाल, ये हमें कुछ दे रहे हैं." चोटीराज ने रिवाल्वर लेने के लिए हाथ बढ़ा दिया. लुटेरे ने ट्रेगर दबा दिया. पिट की आवाज़ हुई और कोई गोली नहीं चली.
"ओह! मैंने अपना रिवाल्वर तो बैंक में ही खाली कर दिया था." लुटेरा बोला.
"तो फिर देखते क्या हो. चाकू से इनका काम तमाम कर दो." दूसरे लुटेरे ने कहा.
पहला लुटेरा चाकू निकालकर उनकी ओर बढ़ने लगा. पास पहुंचकर उसने चोटीराज पर वार किया. चोटीराज उसकी मंशा भाँपकर किनारे हो गया और लुटेरे का वार खाली हो गया.
"ये तो हमें मार रहा है. अर्थात ये हमारा दुश्मन है." चोटीराज ने कहा.
"फिर देख क्या रहे हो. इसे बता दो की हम दुश्मनों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं." चीन्तिलाल बोला और चोटीराज ने लुटेरे के गाल पर एक थप्पड़ जमा दिया. लुटेरा भला उन सातफुटे प्राचीन युग्वासियों का थप्पड़ कहाँ झेल पाता. उसे वहीँ तारों के साथ साथ ब्लैक होलों के भी दर्शन हो गए ओर वह सपनों की दुनिया में पहुँच गया.
फ़िर चोटीराज कर के आगे पहुँचा ओर चीन्तिलाल पीछे, ओर उन्होंने उसे अपने हाथों पर उठा लिया. कार में बैठे लुटेरों का शायद इस तरह की परिस्थिति से पहली बार पाला पड़ा था. वे हवा में तंगी कार में बैठे बैठे चिल्लाने लगे. उनकी चीख सुनकर काफ़ी लोग अपने घरों से निकल आए और उनकी हालत देखकर हंसने लगे. कुछ ही देर में पुलिस भी आ गई ओर उसने उन लुटेरों को गिरफ्तार कर लिया. फ़िर जब उसे मालूम हुआ की लुटेरों को पकड़ने वाले चोटीराज और चीन्तिलाल हैं तो वह इनको भी अपने साथ लेती गई. पुलिस स्टेशन देखकर ये दोनों एक दूसरे का मुंह ताकने लगे.
"लगता है हमें फ़िर कोठरी में बंद कर दिया जायेगा." चीन्तिलाल बोला.
Monday, January 5, 2009
ताबूत - एपिसोड 42
"हाँ, यह तो बहुत बेकार है. किंतु पेट तो भरना ही पड़ेगा. यह टुकड़ा तो पूरा खा ही जाओ." फ़िर दोनों ने मुंह बना बना कर साबुन की टिकियाँ गटक लीं. गुप्ता हवन्नक होकर दोनों की शक्लें देख रहा था.
"अजीब अधिकारी हैं ये लोग. आज तक किसी ने मेरी फैक्ट्री का इस तरह निरीक्षण नहीं किया." वह सर खुजलाते हुए बडबडाया.
"आओ, हम लोग यहाँ से चलते हैं. यहाँ के भोजन से तो अच्छा है की हम पेड़ों के फल तोड़कर खा लें." मारभट ने कहा और दोनों वापस मुड़ लिए. "अरे सर, आप लोग कहाँ जा रहे हैं? ये तो बताते जाइए की आप अपनी रिपोर्ट कैसी बनायेंगे? मैं आपकी हर प्रकार की सेवा करने के लिए तैयार हूँ. अरे सुनिए तो." मैनेजर पुकारते हुए इनके पीछे भागा किंतु इन्होने उसकी एक न सुनी और फैक्ट्री से बाहर आ गए.
"मूड ख़राब कर दिया कमबख्तों ने." उन लोगों के जाने के बाद गुप्ता बडबडाया फ़िर पहरेदारों से बोला, "अब कोई भी आए उसे फैक्ट्री के अन्दर मत घुसने देना." कहकर वह तेज़ क़दमों से चलता हुआ अन्दर चला गया.
कुछ देर बाद दो व्यक्ति वहां पहुंचे और अन्दर जाने लगे.
"आप अन्दर नहीं जा सकते." पहरेदारों ने उन्हें रोका.
"क्यों? हमारे पास इस बात का आज्ञापत्र है कि हमें फैक्ट्री के अन्दर जाने दिया जायेगा. हम लोग इसका निरीक्षण करने आए हैं."
"हमारे मैनेजर कि सख्त आज्ञा है कि किसी को अन्दर न आने दिया जाए. अतः आप लोग बिल्कुल अन्दर नहीं जा सकते." पहरेदार अपनी बात पर अडे रहे.
फ़िर उनमें बहस होने लगी. और यह बहस तब तक चली जब तक उन अफसरों का पारा सौ डिग्री सेंटीग्रेड तक न पहुँच गया. उसी समय गुप्ता किसी काम से बाहर आया और उन लोगों को लड़ता देखकर उसने मामला समझना चाहा. फ़िर जब उसे यह मालूम हुआ कि ये लोग सरकारी अफसर हैं और फैक्ट्री का निरीक्षण करने आए हैं तो वह एक बार फ़िर चकरा कर रह गया.
उसने अपने को संभाला और बोला, "आइये सर! इन पहरेदारों से भूल हो गई है. आप लोग फैक्ट्री का निरीक्षण करिए."
"हम लोग फैक्ट्री का निरीक्षण कर चुके. और अब जो रिपोर्ट हम सरकार को देंगे उसे तुम लोग सदेव याद रखोगे." उन अफसरों ने क्रोधित होकर कहा और वापस मुड़ गए.
"अरे सर सुनिए तो..." मैनेजर उनके पीछे दौड़ा किंतु उन अफसरों ने सुनी अनसुनी कर दी. फ़िर गुप्ता सर पकड़कर वहीँ बैठ गया.
----------
इस समय चीन्तिलाल और चोटीराज एक भरे बाज़ार से गुज़र रहे थे. अचानक गोली चलने की आवाज़ हुई और एक शोर सुनाई दिया. तीन चार लुटेरे एक बैंक लूटकर भाग रहे थे जिनके चेहरे नकाबों में छुपे हुए थे. उनमें से एक के हाथ में रिवाल्वर था.
"ये लोग कहाँ जा रहे हैं?" चोटीराज ने पूछा.
"लगता है इतने दिन सोये रहने से तुम्हारी स्मृति चौपट हो गई है. तुम्हें अपने युग के बारे में कुछ भी याद नहीं रह गया है. अरे ये लोग विवाह करने जा रहे हैं. देख नहीं रहे हो, इन्होंने अपने चेहरे कपड़े द्बारा छुपा रखे हैं." चीन्तिलाल बोला.
"किंतु ये लोग इस प्रकार भाग क्यों रहे हैं?"
"आओ उन्हीं से पूछ लेते हैं." चीन्तिलाल और चोटीराज लुटेरों की ओर बढ़ने लगे जो एक वैगन के पास पहुँच चुके थे.
"अजीब अधिकारी हैं ये लोग. आज तक किसी ने मेरी फैक्ट्री का इस तरह निरीक्षण नहीं किया." वह सर खुजलाते हुए बडबडाया.
"आओ, हम लोग यहाँ से चलते हैं. यहाँ के भोजन से तो अच्छा है की हम पेड़ों के फल तोड़कर खा लें." मारभट ने कहा और दोनों वापस मुड़ लिए. "अरे सर, आप लोग कहाँ जा रहे हैं? ये तो बताते जाइए की आप अपनी रिपोर्ट कैसी बनायेंगे? मैं आपकी हर प्रकार की सेवा करने के लिए तैयार हूँ. अरे सुनिए तो." मैनेजर पुकारते हुए इनके पीछे भागा किंतु इन्होने उसकी एक न सुनी और फैक्ट्री से बाहर आ गए.
"मूड ख़राब कर दिया कमबख्तों ने." उन लोगों के जाने के बाद गुप्ता बडबडाया फ़िर पहरेदारों से बोला, "अब कोई भी आए उसे फैक्ट्री के अन्दर मत घुसने देना." कहकर वह तेज़ क़दमों से चलता हुआ अन्दर चला गया.
कुछ देर बाद दो व्यक्ति वहां पहुंचे और अन्दर जाने लगे.
"आप अन्दर नहीं जा सकते." पहरेदारों ने उन्हें रोका.
"क्यों? हमारे पास इस बात का आज्ञापत्र है कि हमें फैक्ट्री के अन्दर जाने दिया जायेगा. हम लोग इसका निरीक्षण करने आए हैं."
"हमारे मैनेजर कि सख्त आज्ञा है कि किसी को अन्दर न आने दिया जाए. अतः आप लोग बिल्कुल अन्दर नहीं जा सकते." पहरेदार अपनी बात पर अडे रहे.
फ़िर उनमें बहस होने लगी. और यह बहस तब तक चली जब तक उन अफसरों का पारा सौ डिग्री सेंटीग्रेड तक न पहुँच गया. उसी समय गुप्ता किसी काम से बाहर आया और उन लोगों को लड़ता देखकर उसने मामला समझना चाहा. फ़िर जब उसे यह मालूम हुआ कि ये लोग सरकारी अफसर हैं और फैक्ट्री का निरीक्षण करने आए हैं तो वह एक बार फ़िर चकरा कर रह गया.
उसने अपने को संभाला और बोला, "आइये सर! इन पहरेदारों से भूल हो गई है. आप लोग फैक्ट्री का निरीक्षण करिए."
"हम लोग फैक्ट्री का निरीक्षण कर चुके. और अब जो रिपोर्ट हम सरकार को देंगे उसे तुम लोग सदेव याद रखोगे." उन अफसरों ने क्रोधित होकर कहा और वापस मुड़ गए.
"अरे सर सुनिए तो..." मैनेजर उनके पीछे दौड़ा किंतु उन अफसरों ने सुनी अनसुनी कर दी. फ़िर गुप्ता सर पकड़कर वहीँ बैठ गया.
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इस समय चीन्तिलाल और चोटीराज एक भरे बाज़ार से गुज़र रहे थे. अचानक गोली चलने की आवाज़ हुई और एक शोर सुनाई दिया. तीन चार लुटेरे एक बैंक लूटकर भाग रहे थे जिनके चेहरे नकाबों में छुपे हुए थे. उनमें से एक के हाथ में रिवाल्वर था.
"ये लोग कहाँ जा रहे हैं?" चोटीराज ने पूछा.
"लगता है इतने दिन सोये रहने से तुम्हारी स्मृति चौपट हो गई है. तुम्हें अपने युग के बारे में कुछ भी याद नहीं रह गया है. अरे ये लोग विवाह करने जा रहे हैं. देख नहीं रहे हो, इन्होंने अपने चेहरे कपड़े द्बारा छुपा रखे हैं." चीन्तिलाल बोला.
"किंतु ये लोग इस प्रकार भाग क्यों रहे हैं?"
"आओ उन्हीं से पूछ लेते हैं." चीन्तिलाल और चोटीराज लुटेरों की ओर बढ़ने लगे जो एक वैगन के पास पहुँच चुके थे.
Thursday, January 1, 2009
ताबूत - एपिसोड 41
कार अब पूरी तरह रूक गई थी.
"यटिकम तो रूक गई. क्या कारण है?" मारभट ने पूछा.
"शायद दूसरा यल भी थक गया है." सियाकरण ने कहा. फ़िर वे कार से उतर गए और इधर उधर देखने लगे. यह एक सुनसान स्थान था, किंतु पूरी तरह नहीं. क्योंकि यहाँ एक बड़ी इमारत दिख रही थी. जो शायद कोई फैक्ट्री थी. उसकी बाहरी बनावट से ऐसा ही लग रहा था.
"वो देखो, सामने कोई मकान है. आओ हम लोग वहां चलते हैं." सियाकरण ने कहा. फ़िर वे दोनों फैक्ट्री की ओर जाने लगे.
"मेरे तो अब भूख लग रही है. वहां भोजन तो मिलना ही चाहिए." मारभट ने अपने पेट पर हाथ फेरते हुए कहा.
"आओ चल कर देखते हैं."
फ़िर जैसे ही वे फैक्ट्री के पास पहुंचे, दो पहरेदारों ने उन्हें रोक लिया. तभी अन्दर से दो व्यक्ति निकले और उनमें से एक कहने लगा, "आइये सर, आपका यहाँ स्वागत है. मैं यहाँ का प्रबंधक गुप्ता हूँ. और ये मेरा सहायक रामप्रकाश है." वह इन दोनों को अन्दर ले जाने लगा और उसके सहायक ने पहरेदारों से कहा, "मी.गुप्ता को आज एक फोन काल से मालुम हुआ था की आज कुछ सरकारी अफसर इस फैक्ट्री का निरीक्षण करने आ रहे हैं. उनका विचार है कि ये वही अफसर हैं."
उधर गुप्ता दोनों से कह रहा था, "आइये सर, आपको हमारी फैक्ट्री में कोई अनिमियतता नहीं दिखेगी. यहाँ हम साबुन के अलावा डिटर्जेंट पाउडर और शेविंग क्रीम भी बनाते हैं. हमारी फैक्ट्री अच्छी चल रही है. बस केवल आप अच्छी सी रिपोर्ट तैयार कर दीजिये. आपके मालपानी की हमारी पूरी ज़िम्मेदारी है." अन्तिम वाक्य गुप्ता ने धीरे से कहा था.
"क्या यहाँ कुछ खाने को मिल सकता है?" सियाकरण को बहुत जोरों की भूख लग रही थी.
"अरे क्यों नहीं, क्यों नहीं. सब कुछ आप ही का तो है. बस आप हमारे फेवर में एक अच्छी सी रिपोर्ट तैयार कर दीजिये. फ़िर आप जो कुछ कहेंगे, हम हाज़िर कर देंगे." गुप्ता सियाकरण की बात का कुछ और ही मतलब समझा.
वे तीनों कुछ देर मौन खड़े रहे फ़िर मैनेजर ही दुबारा बोला, "आइये सर, पहले आप फैक्ट्री का निरीक्षण कर लीजिये." उसने उनको अपने पीछे आने का इशारा किया और वे बिना कुछ समझे उसके पीछे चल पड़े.
फ़िर वह फैक्ट्री दिखाने लगा जहाँ विभिन्न प्रकार के कार्य हो रहे थे. कहीं साबुन बनाया जा रहा था, कहीं मशीन से ठोस साबुन की टिकियाँ काटी जा रही थीं तो कहीं डिटर्जेंट पाउडर बन रहा था. वे लोग घुमते हुए वहां भी पहुंचे जहाँ साबुन की पैकिंग हो रही थी.
"आप स्वयें देख लीजिये, की यहाँ केवल साबुन पैक हो रहा है. हम लोग अफीम इत्यादि का व्यापार बिल्कुल नहीं करते." उसने इन्हें पैकिंग दिखाई.
सियाकरण और मारभट ने एक दूसरे की तरफ़ देखा. उनकी समझ में मैनेजर की बात बिल्कुल नहीं आई.
"देख क्या रहे हो, एक तुम लो और एक मैं लेता हूँ." सियाकरण ने कहा. और एक टिकिया मुंह में उठाकर रख ली. मारभट ने भी उसकी देखा देखी एक टिकिया मुंह में रख ली.
"यह कैसा भोजन है. इस युग में तो लोग अजीब भोजन करते हैं." सियाकरण ने बुरा सा मुंह बनाया.
"यटिकम तो रूक गई. क्या कारण है?" मारभट ने पूछा.
"शायद दूसरा यल भी थक गया है." सियाकरण ने कहा. फ़िर वे कार से उतर गए और इधर उधर देखने लगे. यह एक सुनसान स्थान था, किंतु पूरी तरह नहीं. क्योंकि यहाँ एक बड़ी इमारत दिख रही थी. जो शायद कोई फैक्ट्री थी. उसकी बाहरी बनावट से ऐसा ही लग रहा था.
"वो देखो, सामने कोई मकान है. आओ हम लोग वहां चलते हैं." सियाकरण ने कहा. फ़िर वे दोनों फैक्ट्री की ओर जाने लगे.
"मेरे तो अब भूख लग रही है. वहां भोजन तो मिलना ही चाहिए." मारभट ने अपने पेट पर हाथ फेरते हुए कहा.
"आओ चल कर देखते हैं."
फ़िर जैसे ही वे फैक्ट्री के पास पहुंचे, दो पहरेदारों ने उन्हें रोक लिया. तभी अन्दर से दो व्यक्ति निकले और उनमें से एक कहने लगा, "आइये सर, आपका यहाँ स्वागत है. मैं यहाँ का प्रबंधक गुप्ता हूँ. और ये मेरा सहायक रामप्रकाश है." वह इन दोनों को अन्दर ले जाने लगा और उसके सहायक ने पहरेदारों से कहा, "मी.गुप्ता को आज एक फोन काल से मालुम हुआ था की आज कुछ सरकारी अफसर इस फैक्ट्री का निरीक्षण करने आ रहे हैं. उनका विचार है कि ये वही अफसर हैं."
उधर गुप्ता दोनों से कह रहा था, "आइये सर, आपको हमारी फैक्ट्री में कोई अनिमियतता नहीं दिखेगी. यहाँ हम साबुन के अलावा डिटर्जेंट पाउडर और शेविंग क्रीम भी बनाते हैं. हमारी फैक्ट्री अच्छी चल रही है. बस केवल आप अच्छी सी रिपोर्ट तैयार कर दीजिये. आपके मालपानी की हमारी पूरी ज़िम्मेदारी है." अन्तिम वाक्य गुप्ता ने धीरे से कहा था.
"क्या यहाँ कुछ खाने को मिल सकता है?" सियाकरण को बहुत जोरों की भूख लग रही थी.
"अरे क्यों नहीं, क्यों नहीं. सब कुछ आप ही का तो है. बस आप हमारे फेवर में एक अच्छी सी रिपोर्ट तैयार कर दीजिये. फ़िर आप जो कुछ कहेंगे, हम हाज़िर कर देंगे." गुप्ता सियाकरण की बात का कुछ और ही मतलब समझा.
वे तीनों कुछ देर मौन खड़े रहे फ़िर मैनेजर ही दुबारा बोला, "आइये सर, पहले आप फैक्ट्री का निरीक्षण कर लीजिये." उसने उनको अपने पीछे आने का इशारा किया और वे बिना कुछ समझे उसके पीछे चल पड़े.
फ़िर वह फैक्ट्री दिखाने लगा जहाँ विभिन्न प्रकार के कार्य हो रहे थे. कहीं साबुन बनाया जा रहा था, कहीं मशीन से ठोस साबुन की टिकियाँ काटी जा रही थीं तो कहीं डिटर्जेंट पाउडर बन रहा था. वे लोग घुमते हुए वहां भी पहुंचे जहाँ साबुन की पैकिंग हो रही थी.
"आप स्वयें देख लीजिये, की यहाँ केवल साबुन पैक हो रहा है. हम लोग अफीम इत्यादि का व्यापार बिल्कुल नहीं करते." उसने इन्हें पैकिंग दिखाई.
सियाकरण और मारभट ने एक दूसरे की तरफ़ देखा. उनकी समझ में मैनेजर की बात बिल्कुल नहीं आई.
"देख क्या रहे हो, एक तुम लो और एक मैं लेता हूँ." सियाकरण ने कहा. और एक टिकिया मुंह में उठाकर रख ली. मारभट ने भी उसकी देखा देखी एक टिकिया मुंह में रख ली.
"यह कैसा भोजन है. इस युग में तो लोग अजीब भोजन करते हैं." सियाकरण ने बुरा सा मुंह बनाया.
Wednesday, December 31, 2008
ताबूत - एपिसोड 40
"मारभट, अभी हमारे पीछे कोई आवाज़ आई थी."
"पीछे देखो, क्या है?" मारभट ने कहा. सियाकरण ने घूमकर देखा तो वहां एक मोटरसाइकिल खड़ी थी.
"अरे यह क्या है? और कहाँ से आ गया?" उसने आश्चर्य से कहा.
मारभट ने भी पीछे मुड़कर देखा और बोला, "यह कैसा युग है? अभी वहां कुछ नहीं था अब कुछ आ गया. क्या यहाँ वस्तुएं आसमान से टपकती हैं? सियाकरण तुम पीछे जाकर देखो की वह क्या चीज़ है."
सियाकरण कूदकर पीछे चला गया. कुछ देर तक ध्यान से उसको देखता रहा फ़िर बोला, "मेरा विचार है की यह इस यटिकम का यल है.
इसके सर पर दो सींगें भी हैं. किंतु यह तो बिल्कुल हिलडुल नहीं रहा है."
"बेचारे ने इतनी तेज़ यटिकम चलाई कि थक कर मर गया." मारभट ने दुःख प्रकट किया.
"किंतु यटिकम तो अभी भी चल रही है."
"हो सकता है कोई और भी यल हो. हमारे युग में भी तो दो यल एक यटिकम को खींचते थे."
कार की गति अब धीमी होने लगी थी क्योंकि मारभट का पैर एक्सीलरेटर पर से हट गया था.
----------------
"वे लोग तो पता नहीं कहाँ निकल गए. अब हम लोग क्या करें?" चोटीराज ने कहा. वे लोग बहुत देर से अपने दोनों साथियों को ढूंढ रहे थे जो कार में बैठकर निकल गए थे.
"आओ फ़िर हम दोनों अकेले ही यह युग घूमते हैं. हम लोगों को यटिकम में जो मनुष्य मिले थे वह बहुत दुष्ट थे. हमें कोठरी में बंद कर दिया था. अब हम उनके सामने नही जायेंगे." चीन्तिलाल बोला.
फ़िर वे आगे बढे. यह कोई बाज़ार था और वहां काफ़ी चहल पहल थी. फ़िर वे चलते चलते एक दूकान के सामने रूक गए जहाँ एक रेडियो रखा हुआ पूरे वोल्यूम में गला फाड़ रहा था.
"घोर आश्चर्य." चीन्तिलाल बोला, "इतने छोटे डिब्बे में एक मनुष्य बंद हो गया."
"इतना छोटा मनुष्य तो न हमने अपने युग में देखा न इस युग में." चोटीराज ने हैरत से कहा.
"किंतु उसे डिब्बे में क्यों बंद कर दिया गया? वह तो चिल्ला रहा है."
"आओ, उन लोगों से पूछते हैं जो वहां बैठे हैं." फ़िर वे लोग दुकान में पहुंचे. चीन्तिलाल ने पूछा, "तुम लोगों ने उसे बंद क्यों कर दिया?" यह शब्द उसने अपनी भाषा में कहे थे.
"ये कोई अजीब भाषा बोल रहे हैं. अभी हमने जिस चोर को दुकान के अन्दर बंद किया है वह भी अजीब भाषा बोल रहा था. लगता है ये लोग उसके साथी हैं." दूकानदार बोला, फ़िर अपने साथियों को संबोधित किया, "इन्हें पकड़कर खूब मारो और फ़िर इन्हें भी उस चोर के साथ बंद कर दो."
दूकानदार के साथी आगे बढे और इनपर पिल पड़े.
"अच्छा, एक तो बेचारे को डिब्बे में बंद कर दिया, फ़िर कुछ बोलने पर मारते हो. अभी बताता हूँ." चोटीराज और चीन्तिलाल भी हाथ पैर चलाने लगे. फ़िर इन लोगों के सामने कलयुगी मानवों की एक न चली और कुछ ही देर में वे सब लंबे लेटे नज़र आए. चोटीराज ने रेडियो उठाया और दोनों दूकान के बाहर आ गए.
"अरे मेरा रेडियो!" दूकानदार चिल्लाते हुए उनके पीछे दौड़ा किंतु दूकान से बाहर निकलने की उसकी हिम्मत नहीं हुई. और बडबडाते हुए वापस लौट गया.
उधर चीन्तिलाल चोटीराज से बोला, "डिब्बा खोलकर उस व्यक्ति को जल्दी से आजाद करो. वह बहुत देर से चिल्ला रहा है."
"किंतु यह खुलेगा किस प्रकार? यह तो हर ओर से बंद है." चोटीराज ने डिब्बे को उलट पलट कर देखते हुए कहा.
"मैं बताता हूँ की किस प्रकार खुलेगा." चीन्तिलाल ने रेडियो पर एक हाथ जमाया और वह दो टुकडों में बँट गया
"इसमें तो कोई भी नहीं है." चोटीराज ने अन्दर का अंजर पंजर देखते हुए कहा.
"हाँ, वह मनुष्य कहाँ गया?"
"शायद वह स्वर्गवासी हो गया. तुम्हें डब्बा धीरे से खोलना चाहिए था." चोटीराज ने चीन्तिलाल को घूरा.
"बेचारा." दोनों ने एक ठंडी साँस ली और रेडियो का कबाड़ वहीँ छोड़कर आगे बढ़ गए.
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"पीछे देखो, क्या है?" मारभट ने कहा. सियाकरण ने घूमकर देखा तो वहां एक मोटरसाइकिल खड़ी थी.
"अरे यह क्या है? और कहाँ से आ गया?" उसने आश्चर्य से कहा.
मारभट ने भी पीछे मुड़कर देखा और बोला, "यह कैसा युग है? अभी वहां कुछ नहीं था अब कुछ आ गया. क्या यहाँ वस्तुएं आसमान से टपकती हैं? सियाकरण तुम पीछे जाकर देखो की वह क्या चीज़ है."
सियाकरण कूदकर पीछे चला गया. कुछ देर तक ध्यान से उसको देखता रहा फ़िर बोला, "मेरा विचार है की यह इस यटिकम का यल है.
इसके सर पर दो सींगें भी हैं. किंतु यह तो बिल्कुल हिलडुल नहीं रहा है."
"बेचारे ने इतनी तेज़ यटिकम चलाई कि थक कर मर गया." मारभट ने दुःख प्रकट किया.
"किंतु यटिकम तो अभी भी चल रही है."
"हो सकता है कोई और भी यल हो. हमारे युग में भी तो दो यल एक यटिकम को खींचते थे."
कार की गति अब धीमी होने लगी थी क्योंकि मारभट का पैर एक्सीलरेटर पर से हट गया था.
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"वे लोग तो पता नहीं कहाँ निकल गए. अब हम लोग क्या करें?" चोटीराज ने कहा. वे लोग बहुत देर से अपने दोनों साथियों को ढूंढ रहे थे जो कार में बैठकर निकल गए थे.
"आओ फ़िर हम दोनों अकेले ही यह युग घूमते हैं. हम लोगों को यटिकम में जो मनुष्य मिले थे वह बहुत दुष्ट थे. हमें कोठरी में बंद कर दिया था. अब हम उनके सामने नही जायेंगे." चीन्तिलाल बोला.
फ़िर वे आगे बढे. यह कोई बाज़ार था और वहां काफ़ी चहल पहल थी. फ़िर वे चलते चलते एक दूकान के सामने रूक गए जहाँ एक रेडियो रखा हुआ पूरे वोल्यूम में गला फाड़ रहा था.
"घोर आश्चर्य." चीन्तिलाल बोला, "इतने छोटे डिब्बे में एक मनुष्य बंद हो गया."
"इतना छोटा मनुष्य तो न हमने अपने युग में देखा न इस युग में." चोटीराज ने हैरत से कहा.
"किंतु उसे डिब्बे में क्यों बंद कर दिया गया? वह तो चिल्ला रहा है."
"आओ, उन लोगों से पूछते हैं जो वहां बैठे हैं." फ़िर वे लोग दुकान में पहुंचे. चीन्तिलाल ने पूछा, "तुम लोगों ने उसे बंद क्यों कर दिया?" यह शब्द उसने अपनी भाषा में कहे थे.
"ये कोई अजीब भाषा बोल रहे हैं. अभी हमने जिस चोर को दुकान के अन्दर बंद किया है वह भी अजीब भाषा बोल रहा था. लगता है ये लोग उसके साथी हैं." दूकानदार बोला, फ़िर अपने साथियों को संबोधित किया, "इन्हें पकड़कर खूब मारो और फ़िर इन्हें भी उस चोर के साथ बंद कर दो."
दूकानदार के साथी आगे बढे और इनपर पिल पड़े.
"अच्छा, एक तो बेचारे को डिब्बे में बंद कर दिया, फ़िर कुछ बोलने पर मारते हो. अभी बताता हूँ." चोटीराज और चीन्तिलाल भी हाथ पैर चलाने लगे. फ़िर इन लोगों के सामने कलयुगी मानवों की एक न चली और कुछ ही देर में वे सब लंबे लेटे नज़र आए. चोटीराज ने रेडियो उठाया और दोनों दूकान के बाहर आ गए.
"अरे मेरा रेडियो!" दूकानदार चिल्लाते हुए उनके पीछे दौड़ा किंतु दूकान से बाहर निकलने की उसकी हिम्मत नहीं हुई. और बडबडाते हुए वापस लौट गया.
उधर चीन्तिलाल चोटीराज से बोला, "डिब्बा खोलकर उस व्यक्ति को जल्दी से आजाद करो. वह बहुत देर से चिल्ला रहा है."
"किंतु यह खुलेगा किस प्रकार? यह तो हर ओर से बंद है." चोटीराज ने डिब्बे को उलट पलट कर देखते हुए कहा.
"मैं बताता हूँ की किस प्रकार खुलेगा." चीन्तिलाल ने रेडियो पर एक हाथ जमाया और वह दो टुकडों में बँट गया
"इसमें तो कोई भी नहीं है." चोटीराज ने अन्दर का अंजर पंजर देखते हुए कहा.
"हाँ, वह मनुष्य कहाँ गया?"
"शायद वह स्वर्गवासी हो गया. तुम्हें डब्बा धीरे से खोलना चाहिए था." चोटीराज ने चीन्तिलाल को घूरा.
"बेचारा." दोनों ने एक ठंडी साँस ली और रेडियो का कबाड़ वहीँ छोड़कर आगे बढ़ गए.
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