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Tuesday, August 26, 2025

उपन्यास 'सूरैन का हीरो' के लिये सलिला साहित्य रत्न सम्मान

साहित्यऔर संस्कृति के प्रति समर्पित सलिला संस्था का सोलहवाँ


राष्ट्रीय बाल साहित्य समारोह उच्च मानदंडों को स्थापित करते हुए रविवार, 24 अगस्त 2025 को उदयपुर में  प्रसार शिक्षा निदेशालय के सभागार  में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। जिसमें साइंस फिक्शन लेखक ज़ीशान हैदर ज़ैदी को  साइंस फिक्शन उपन्यास 'सूरैन का हीरो' के लिए सलिला साहित्य रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया. 

कार्यक्रम का संक्षिप्त वर्णन :   “उद्घाटन, लोकार्पण एवं सम्मान” सत्र की अध्यक्षता डॉ. अजीत कुमार कर्नाटक कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने की, जबकि मुख्य अतिथि के रूप में जयंती रंगनाथन (नंदन की संपादक एवं एक्जीक्यूटिव एडिटर, हिंदुस्तान समूह ) एवं विशिष्ट अतिथि डॉ. सतीश कुमार, श्याम पलट पांडेय, कुमुद वर्मा तथा संस्था अध्यक्षा एवं संयोजक डॉ. विमला भंडारी मंचासीन रहे।

प्रतिष्ठित साहित्यकारों को निम्न अलंकरण एवं सम्मान प्रदान किए गए।

1 सलिला शिखर सम्मान : डॉ. संजीव कुमार

2 सलिला विशिष्ट साहित्यकार सम्मान : डॉ. सूरजसिंह नेगी एवं डॉ. मीना सिरोला

3 सलिला साहित्य रत्न सम्मान : जीशान हैदर जैदी, लाल देवेंद्र कुमार श्रीवास्तव, मीनू त्रिपाठी, डॉ प्रभात सिंघल

सभी को सम्मान में अभिनंदन पत्र, शॉल, उपरना, नकद राशि एवं माल्यार्पण कर बहुमान किया गया।

मां शारदा के समक्ष अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन एवं सरस्वती वंदना (शकुंतला स्वरूपरिया) से कार्यक्रम का शुभारंभ के बाद दीपा पंथ ने संस्था गीत प्रस्तुत किया। स्वागत गीत मधु माहेश्वरी तथा बालगीत पाखी जैन ने प्रस्तुत किए। विषय प्रवर्तन डॉ. विमला भंडारी ने किया। 

विभिन्न साहित्यकारों की 12 पुस्तकों का विमोचन भी किया गया।

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो. अजीत कुमार कर्नाटक ने सभी से राष्ट्र भाषा एवं संस्कृत के संवर्धन का आह्वान करते हुए कहा कि आपके अंदर का बच्चा ही आपको जीवन्त रखता हैं, बाल साहित्य व बाल गीत इसका श्रेष्ठ योजक हैं।मुख्य अतिथि जयंती रंगनाथन ने बाल गीत और बालमन का अंतसंबंध विषय पर बीज वक्तव्य देते हुए कहा कि आज प्यार से बालकों को बाल गीतों के प्रति अकर्षित करके मोबाइल की लत से मुक्त किया जाना चाहिए। 

बाल कवि सम्मेलन भी मुख्य आकर्षण रहा।

समारोह में देश के 6 राज्यों से आए साहित्यकार जगदीश भंडारी, डॉ. विमल शर्मा, मधु माहेश्वरी, मुकेश राव, शांतिलाल शर्मा, मनीला पोरवाल, मीनू त्रिपाठी, कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, लाल देवेंद्र कुमार श्रीवास्तव, डॉक्टर यशपाल शर्मा, प्रकाश नेभनानी, डॉ फहीम अहमद, बलबीर सिंह, अनीता गंगाधर शर्मा, आचार्य नरेंद्र शास्त्री, चक्रधर शुक्ल, डॉ सरिता गुप्ता, शिव मोहन यादव, नंदकिशोर निर्झर, बनवारी लाल पारीक, डॉ गोपाल राज गोपाल, श्याम मठपाल, सपना जैन शाह, पुरुषोत्तम शाकद्वीपीय, रामदयाल मेहरा सहित अनेक साहित्यप्रेमी एवं विद्वान उपस्थित रहे।

Saturday, October 30, 2021

'प्रोफ़ेसर मंकी ' अमेज़ॉन व फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध


 'प्रोफ़ेसर मंकी ' फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध 

Flipkart Link: https://www.flipkart.com/professor-monkey/p/itm2d3420aaff477?pid=9781637542545

'प्रोफ़ेसर मंकी ' अमेज़ॉन पर उपलब्ध 

Monday, May 3, 2021

महावीर सीरीज़ - सूचना

 प्रिय पाठकों। नमस्कार। मेरा यह ब्लॉग चौदहवें वर्ष में प्रवेश कर चुका है।  बीच में कुछ समय निष्क्रिय भी रहा लेकिन गूगल की मेहरबानी से गायब नहीं होने पाया।  ब्लॉग आपकी सेवा में रोचक नई नई कहानियाँ पेश करता रहेगा इसका आपसे वादा है।  लेकिन आप में से काफी लोग उपन्यास भी पढ़ने के इच्छुक अवश्य होंगे तो मैंने इसे ध्यान में रखते हुए एक अनोखे कैरेक्टर महावीर (मिस्टर परफेक्ट) की रचना की है और फिलहाल इस सीरीज़ के तीन उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं।  चूंकि उपन्यास लिखना अच्छा ख़ासा समय लेता है और पापी पेट को भी देखना होता है इसलिए उपन्यास को पूरी तरह फ्री न करना मजबूरी ही है।
अतः मेरे हर नए उपन्यास की झलकियां आपको ब्लॉग पर मिलेंगी किन्तु पूरा पढ़ने के लिए दिए गए लिंक से एक छोटी सी कीमत देकर आप ई बुक के तौर पर डाउनलोड कर सकते हैं या फिर थोड़ी ज़्यादा कीमत देकर पेपरबैक मंगवा सकते हैं। 

छोटी कहानियाँ पहले की तरह निःशुल्क ब्लॉग पर उपलब्ध होती रहेंगी।  धन्यवाद।  आपके सहयोग की अपेक्षा में। 
ज़ीशान हैदर ज़ैदी 

Tuesday, April 7, 2020

साइन्स फिक्शन प्रतियोगिता में कहानी 'यू आई डी ' को प्रथम पुरस्कार

प्रतिलिपि पर आयोजित साइन्स फिक्शन प्रतियोगिता में मेरी कहानी 'यू आई डी ' को प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ। सूचना लिये लिंक पर क्लिक करें .

कहानी पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें 


Friday, May 8, 2015

आप सादर आमंत्रित हैं

हिन्दी हास्य नाटक - अकबर की जोधा 

लेखक : ज़ीशान हैदर ज़ैदी 
निर्देशक : स्व० शराफत खान 
राय उमानाथ बली ऑडिटोरियम, लखनऊ 
दिनांक 10 अप्रैल 2015 सायं 6:30 बजे

Friday, April 17, 2015

लखनऊ व मुंबई के जाने माने फिल्म निर्देशक शराफत खान का निधन


मेरे गहरे दोस्त लखनऊ व मुंबई के जाने माने फिल्म निर्देशक शराफत खान नहीं रहे। दिनांक 17 अप्रैल 2015 को प्रातः तीन बजे 60 साल की आयु में उन्होंने लाॅरी कार्डियोलोजी, लखनऊ में अंतिम साँस ली। शराफत खान एक ऐसा व्यक्तित्व था जिससे उन्हें जानने वाला हर व्यक्ति प्यार करता था। शराफत खान एक कुशल निर्देशक होने के साथ कर्मठ कलाकार भी थे और साथ में बहुत अच्छे इंसान थे। मुख्य असिस्टेंट निर्देशक के तौर पर उनकी प्रमुख फिल्में हैं एबीसीएल की तेरे मेरे सपने, तोहफा मोहब्बत का, गूंज, पत्तों की बाज़ी, खुले आम, सात साल बाद, राजू दादा, मुझे शक्ति दो इत्यादि। साथ ही उन्होंने काली, ज़ोहरा महल, माटी, साँची प्रीतिया, पीछा करो, बैरिस्टर विनोद इत्यादि सीरियलों में भी निर्देशन कार्य किया। स्वतन्त्र निर्देशक के तौर पर उन्होंने रंग ढंग सीरियल का निर्माण किया जो कुछ कारणवश टेलीकास्ट नहीं हो सका। खराब हालात से वे हमेशा जूझते रहे लेकिन मरते दम तक हार नहीं मानी। फिल्म लाइन में कदम जमाने का इच्छुक लखनऊ का हर कलाकार शराफत खान को ज़रूर जानता था क्योंकि वे सभी की मदद खुले दिल से करने को हर समय तत्पर रहते थे। 

लखनऊ रंगमंच को भी उन्होंने अपने अछूते व नये विचारों द्वारा नयी दिशा दी। लखनऊ में उनके निर्देशित प्रमुख नाटक रहे - पागल बीवी का महबूब, माडर्न हातिमताई, ऊंची टोपी वाले, दिल की दुकान, ड्रैकुला, कहानी परलोक की, हाय ये मैली हवा, चोर चोर मौसेरे, बिच्छू, अनवरिया, माडर्न दामाद, नस्सो की तौबा इत्यादि। इनमें से पागल बीवी का महबूब, माडर्न हातिमताई, ऊंची टोपी वाले, कहानी परलोक की, हाय ये मैली हवा, चोर चोर मौसेरे का लेखन मैंने किया था। कुछ नाटक साइंस फिक्शन थे जो कि नाटक की दुनिया में एक नया प्रयोग था। और इस प्रयोग को शराफत खान के निर्देशन ने बखूबी सफल किया। वरना शायद मेरे ये नाटक कभी स्टेज का मुंह न देख पाते। मेरे लेखन को हमेशा शराफत खान ने प्रोत्साहित किया । उनसे जब भी मेरी मुलाकात होती थी दिल में हमेशा कुछ नये क्रियेशन के विचार जागृत हो जाते थे। मेरे लेखन व उनके निर्देशन ने शहर को कुछ अच्छी टेली फिल्में भी दीं जिनके नाम है, ‘हाय ये मैली हवा’, ‘ये सच है’, ‘अनजान रिश्ते’, ‘अधेरों की जंग’, ‘खामोश! अर्थी उठती है’ और ‘मौला तेरी शान’।

शहर की कई नाट्य संस्थाओं इम्पैक्ट विजुअल्स, अवध कम्बाइंड नाट्य अकादमी, झनकार सोसाइटी, मोनालिसा आर्टस इत्यादि के साथ वे गहराई से जुड़े रहे और स्वयं भी दो संस्थाओं मून आर्टस एवं माज़िन आर्टस के संस्थापक रहे। शराफत खान अपने कलाकारों पर पूरी मेहनत करते थे। और जब तक पूरी तरह संतुष्ट नहीं हो जाते थे लगातार रिहर्सल कराते थे। अपने काम में ऐसा खो जाते थे कि न उन्हें खाने का होश रहता था न पीने का। उनके द्वारा तराशे हुए अनेकों कलाकार आज मुंबई में अच्छा मुकाम हासिल कर चुके हैं। अरशद वारसी, सूरज व चन्द्रचूड़ सिंह जैसे कई कलाकारों को ब्रेक देने वाले निर्देशक शराफत खान ही थे।

Sunday, September 21, 2014

हिंदी साइन्स फिक्शन की पाठन संख्या हुई एक लाख

आज का दिन न केवल मेरे ब्लॉग बल्कि हिन्दी साइन्स फिक्शन के लिये भी एक स्वर्णिम क्षण है. क्योंकि आज हिन्दी साइन्स फिक्शन कहानियों पर आधारित मेरे इस ब्लॉग ने पाठन संख्या में एक लाख का जादुई आँकड़ा पार कर लिया है. और इसके लिये मैं अपने समस्त पाठकों का तहे दिल से आभारी हूँ व आप सबने इस ब्लॉग को जो स्नेह दिया उसका शुक्रिया अदा करता हूँ.
--ज़ीशान हैदर ज़ैदी 
ब्लॉग लेखक
 

     

Sunday, April 6, 2014

Saturday, February 22, 2014

हास्य ड्रामा अकबर की जोधा का मंचन

ज़ीशान हैदर ज़ैदी द्वारा लिखित हास्य ड्रामा अकबर की जोधा का मंचन इमरान खान के निर्देशन में दिनांक 21 फरवरी 2014 को संगीत नाटक अकादमी, लखनऊ की वाल्मीकि रंगशाला में हुआ। नाटक में विकास, नमन, जयप्रकाश, भूषण, सुमन, सरिता, सृजन, आरिफ, शफीक इत्यादि कलाकारों ने अपने अभिनय के जौहर दिखलाये। नाटक के मुख्य अतिथि संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष व राज्य मन्त्री नवेद सिददीकी थे। 

नाटक 'अकबर की जोधा में कन्या भूण हत्या सहित समाज की अनेक समस्याओं को हास्य की चाशनी में लपेटकर प्रस्तुत किया गया है। एक डायरेक्टर का जोधा अकबर ड्रामा खटाई में पड़ गया है क्योंकि उसे अपने ड्रामे में जोधा के रोल के लिये कोई लड़की नहीं मिल रही है। 

देश में लड़कियों की कमी हो गयी है। और इसका कारण साफ है। आज देश में बुरी नज़र रखने वाले रावण तो गली गली पैदा हो गये हैं लेकिन ऐसे भाई पैदा होने बन्द हो गये हैं जो जान देकर अपनी बहनों की हिफाज़त करते थे। और अब तो ऐसे बाप भी नज़र आना बन्द हो गये हैं जिनकी गोद में बेटियां सुकून की नींद सोया करती थीं। नतीजा ये कि देश में बेटियां तेज़ी से कम हो रही हैं। और जो हैं उनकी इज्ज़त आबरू की हिफाज़त करने वाले नहीं रहे। अब पेट में ही बेटियों को मौत की नींद सुला दिया जाता है और एक लड़के की चाहत में लोग कभी चार शादियां कर डालते हैं तो कभी इलाज पर ही लाखों खर्च कर डालते हैं।

जवान जोधा की तलाश में उन्हें मिलती हैं बूढ़ी उम्रदराज़ औरतें जिनके सर पर अभी भी कैटरीना कैफ या प्रियंका चोपड़ा बनने का भूत सवार है। थक हार कर डायरेक्टर व कलाकार मिलकर शुरू कर देते हैं कन्या बचाव अभियान। लोगों को समझाते हैं कि लड़की पैदा करने में बहुत फायदे हैं। जब आप लड़का पैदा करते हैं तो वह कभी चंगेज़ खाँ और हिटलर बनकर क़त्लेआम करता है, कभी एटम बम और मिसार्इलें बनाकर शहरों को वीरान करता है, कभी अलक़ायदा जैसे लश्कर बनाकर लाशें बिछाता है और कभी दंगों में लोगों को जि़न्दा जलाता है। लेकिन जब आप लड़की पैदा करते हैं तो वह माँ बनकर आपको लोरियाँ सुनाती है, बहन बनकर बाप की डाँट से बचाती है, बेटी बनकर थके हुए पलों को सुकून देती है और बीवी बनकर आपके तमाम दु:खों को अपनी बाहों में समेट लेती है।

अपने अभियान में उन्हें ओछी मानसिकता के लोगों से जूते भी खाने पड़ते हैं और कहीं गूंगे बहरे लोगों से सामना भी होता है जो अपने में ही मस्त हैं। उन्हें समाज की समस्याओं से कोई सरोकार नहीं। कुछ पैसे वाले लोग भी समाज में हैं जो अपने पैसे के ज़ोर पर अपने नालायक लड़के को हीरो बनाना चाहते हैं। उधर ढलती उम्र की औरतें नाटक में हीरोर्इन का रोल करने के लिये बेताब हैं क्योंकि इससे उन्हें फिल्म इण्डस्ट्री में कैटरीना कैफ की जगह मिलने वाली है। ऐसा उनका सोचना है। नतीजा ये कि अच्छा भला नाटक चूं चूं का मुरब्बा बन जाता है। उसका टाइटिल भी 'जोधा-अकबर से बदलकर 'औंधा-अकबर' हो जाता है। 


Friday, December 6, 2013

हिंदी नाटकों में साइन्स फिक्शन - 28 नवम्बर 2013 परिचर्चा

कुछ फोटोग्राफ्स







विस्तृत रिपोर्ट पिछली पोस्ट में पढ़ें। 

Friday, November 29, 2013

हिंदी नाटकों में साइंस फिक्शन-परिचर्चा

 अवध कंबाइंड नाटय एकेडमी लखनऊ में 28 नवंबर 2013 को एक परिचर्चा 'हिंदी नाटकों में साइंस फिक्शन आयोजित हुई। इस परिचर्चा में दिल्ली की रिसर्च स्कोलर चारू मैथानी की बातचीत लखनऊ के नाटय व कथा लेखक डा0ज़ीशान हैदर ज़ैदी, डा0ज़ाकिर अली रजनीश व निर्देशक शराफत खान, अरशद उमर व इमरान खान के साथ हुई। साथ में बाराबंकी की साइंस फिक्शन लेखिका बुशरा अलवेरा व एकेडमी के छात्र भी उपस्थित थे। परिचर्चा में हिंदी नाटकों में साइंस फिक्शन कितना उपस्थित है और भविष्य में इसकी क्या संभावनाएं हैं इसपर चर्चा हुई। इस अवसर पर डा0ज़ीशान हैदर ज़ैदी के विभिन्न साइंस फिक्शन नाटक पागल बीवी का महबूब, ऊंची टोपी वाले, बुडढा फ्यूचर, सौ साल बाद और डा0ज़ाकिर अली रजनीश के कुछ रेडियो नाटकों का उदाहरण लेते हुए यह निष्कर्ष निकाला गया कि हिंदी नाटकों में साइंस फिक्शन पर कुछ लेखक गंभीरता से काम कर रहे हैं और शराफत खान, अरशद उमर व इमरान खान जैसे निर्देशक उसके मंचन का अनथक प्रयास भी कर रहे हैं। किंतु अभी भी रंगमंच की दुनिया में साइंस फिक्शन एक अजनबी विधा ही है।
आमतौर पर लोग समझते हैं कि साइंस फिक्शन केवल बड़े बजट की फिल्मों में ही दिखाया जा सकता है और स्टेज पर मंहगी मशीनों, साइंस की लैब, साइंटिफिक एक्सपेरीमेन्टस, अंतरिक्ष इत्यादि को दिखाना बहुत मुश्किल है। लेकिन बुडढा फ्यूचर और पागल बीवी का महबूब इत्यादि नाटकों का मंचन इस धारणा को तोड़ता है। बुडढा फ्यूचर की टाइम मशीन मात्र गत्ते के डिब्बे और प्लास्टिक की स्क्रीन द्वारा बनाई गयी थी और रोबोटों को दिखाने के लिये भी खास तरह के फ्लोरेसेंट वस्त्रों का इस्तेमाल किया गया था। जबकि प्रकाश व ध्वनि द्वारा भविष्य का माहौल दिखाया गया। 'पागल बीवी का महबूब' में वैज्ञानिक की बनाई टेबलेटस द्वारा भावनाओं का बदलना कुशल अभिनय द्वारा दिखाया गया। निर्देशक अरशद उमर ने बताया कि अंतरिक्ष का माहौल प्रकाश व ध्वनि के अच्छे प्रयोग द्वारा प्रभावी ढंग से उकेरा जा सकता है। व दूसरे ग्रहों के लोगों की बातचीत संवादों की रिकार्डिंग कर और उनमें फिर एडिटिंग के द्वारा स्पेशल इफेक्टस डालकर दिखाई जा सकती है। हालांकि बहुत कुछ नाटकों में संवादों द्वारा ही बताना संभव होता है अत: एक अच्छे साइंस फिक्शन नाटक में स्क्रिप्ट की अहमियत सबसे ज्यादा होती है। 

शराफत खान के पास फिल्म निर्देशन का लंबा अनुभव है जिसमें एबीसीएल की फिल्म तेरे मेरे सपने शामिल है। इस अनुभव का उपयोग वे साइंस फिक्शन नाटकों के मंचन में इस तरह करते हैं कि दर्शकों को लगता है मानो वे कोई साइंस फिक्शन फिल्म ही देख रहे हैं। डा0ज़ाकिर अली रजनीश ने बताया कि रेडियो नाटकों में सब कुछ ध्वनि से ही बताया जाता है अत: उनमें स्पेशल इफेक्टस डालकर साइंस फिक्शन का माहौल उत्पन्न किया जा सकता है। उन्होंने ये भी कहा कि साइंस फिक्शन कहानियां भी समाज से ही निकलती हैं अत: उनके साथ सौतेला व्यवहार नहीं होना चाहिए। लेखिका बुशरा बलवेरा ने नाटकों में उर्दू की उपयोगिता पर बल दिया और कहा कि इससे नाटक के संवाद प्रभावशाली हो जाते हैं। 

अवध कंबाइंड नाटय एकेडमी के निदेशक इमरान खान के धन्यवाद प्रस्ताव के साथ परिचर्चा का समापन हुआ। 

Thursday, September 6, 2012

'इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम, टीचर आफ टीचर्स अवार्ड' जीशान हैदर जैदी को.


शिक्षक दिवस के अवसर पर 5 सितम्बर 2012 को जीशान हैदर जैदी को किताब '51 जदीद साइंसी तहकीकात..' के लिए 'इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम, टीचर आफ टीचर्स अवार्ड' से सम्मानित किया गया.  



Thursday, April 26, 2012

साइंस फिक्शन लेखन को मिला मुसन्निफ़-ए-अवध सम्मान.


आज दिनांक 25 अप्रैल 2012 को लखनऊ की सामाजिक,सांस्कृतिक व शैक्षिक संस्था 'सलाम-लखनऊ' ने लेखन के क्षेत्र में कार्य करने वाले 12 लेखकों को 'मुसन्निफ़-ए-अवध सम्मान' से सम्मानित किया. जिनमे जीशान हैदर जैदी को यह सम्मान साइंस फिक्शन में उत्कृष्ट लेखन के लिए मिला.

फोटो : अमर उजाला से साभार.