Sunday, January 25, 2009

ताबूत - एपिसोड 50

मैडमैन ने जल्दी से चश्मा उठाकर दुबारा लगाया और बोला, "ये तो बहुत खतरनाक पागल है. अभी तो मेरा चश्मा गया था."
"इन्हें सावधानी से ले चलो. इतने दिनों तक पागलों में रह चुके हो किंतु अभी तक उन्हें संभालना नहीं आया." पेंचराम ने सावधान किया.
फ़िर बाकी रास्ता दोनों ने सावधानी से तय किया. कुछ ही देर में वे कमरा नं0 अट्ठारह में पहुँच गए. उन्होंने दोनों प्राचीन युगवासियों को अन्दर धकेला और बाहर से दरवाज़ा बंद कर दिया. इस कमरे में पहले से ही छः सात पागल उपस्थित थे. वे पागल कुछ देर तक गौर से उनकी और देखते रहे फ़िर उनमें से एक उठा और चोटीराज के चेहरे पर हाथ फेरने लगा. चोटीराज और चीन्तिलाल आश्चर्य से उसे देख रहे थे.


"वाह! एकदम क्लासिकल, क्या चेहरा है. ऐसा चेहरा तो कभी कभी ही नज़र आता है. इसका पोर्ट्रेट तो एकदम फैन्टास्टिक बनेगा." वह पागल चीखा और फ़िर एक कोने में दौड़ गया जहाँ एक कैनवास बोर्ड और कुछ रंग और ब्रश पड़े थे. फ़िर चोटीराज का पोर्ट्रेट तैयार होने में केवल पाँच मिनट लगे. यह अलग बात है की यह पोर्ट्रेट चोटीराज की बजाये किसी शुतुरमुर्ग का अधिक प्रतीत हो रहा था जिसकी चोंच गायब थी.
"यह देखो, मैंने उसका पोर्ट्रेट तैयार कर दिया. यह एक कलाकृति है जो इससे पहले किसी ने न बनाई होगी."
"वाह वाह. ऐसा पोर्ट्रेट तो बार बार बनना चाहिए. एक और बनाओ." दूसरे पागलों ने शोर मचाकर इस प्रकार दाद दी मानो कोई कवि सम्मलेन हो रहा है.
"यह दोबारा नहीं बन सकती. एक शाहकार केवल एक ही बार बनाया जा सकता है." उस पागल ने कहा जो शायद पहले कोई चित्रकार था.
"वाह वाह, क्या बात कही है. एक शाहकार केवल एक ही बार बन सकता है. इसी बात पर मुझे एक शेर याद आ गया है." दूसरा पागल बोला.
"अरे कवि जी, अब आप अपना कवि सम्मलेन न शुरू कर दीजियेगा." एक अन्य पागल बोला.
"नहीं, मैं केवल एक शेर सुनाऊंगा." कवि ने गिडगिडा कर कहा.
"अच्छा ठीक है. सुना दो. तुम भी क्या याद करोगे." वही पागल बोला.
"तो सुनो
वह कार है, वह शाहकार है, वाह शाहों की कार है.
फुफकार कर मैंने की शायरी तो उसके चेहरे से बरसती फटकार है."
"वाह वाह, क्या शेर है. लगता है बादल गरज रहा है. बिजली कड़क रही है." एक पागल ने उठकर दाद दी. बाकी ऐसे ही बैठे रहे.
"तो इसी बात पर एक और शेर सुनो." उसने एक और शेर जड़ दिया. इस बार उसके शेर पर किसी ने दाद नहीं दी. उनमें से एक बोला, "मैंने मना किया था कि कवि सम्मेलन न शुरू करो. किंतु तुम माने नहीं. डॉक्टर, तुम ही इसको मना करो."
फ़िर डॉक्टर उठा, जिसके चेहरे पर चश्मे का गहरा निशान था. उसने इस प्रकार अपनी आँखों पर हाथ फेरा मानो चश्मे की पोजीशन सही कर रहा हो, फ़िर बोला, "इसको बहुत खतरनाक बीमारी है. इसका इलाज यही है कि इसे दोनों टांगें उठाकर खड़ा कर दिया जाए. फ़िर इसको कोई शेर याद नहीं आएगा."

"किंतु यह दोनों टांगें उठाकर खड़ा कैसे खड़ा कैसे रह पायेगा?" चित्रकार ने पूछा.
"सीधी सी बात है. इसे सर के बल खड़ा कर दो." डॉक्टर ने स्पष्टीकरण किया.
फ़िर कई लोगों ने मिलकर कवि जी को पकड़ा और सर के बल खड़ा कर दिया. चोटीराज और चीन्तिलाल यह सब तमाशा देख रहे थे. वह पागल जिसे लोग डॉक्टर कह रहे थे, उनके पास आया और गौर से उन्हें देखने लगा. फ़िर उसने एक साथ दोनों की कलाई पकड़ी मानो नब्ज़ देख रहा हो. कुछ देर इसी प्रकार देखने के बाद बोला, "तुम दोनों की नब्ज़ एक ही रफ़्तार से चल रही है. अर्थात तुम दोनों को एक ही बीमारी है."

"यह क्या कह रहा है?" चीन्तिलाल ने चोटीराज की और देखा. डॉक्टर ने उन्हें बोलते हुए देखकर कहा, "घबराने की कोई बात नहीं. यह कोई ऐसी खतरनाक बीमारी नहीं है. तुम्हें केवल मुर्गोफोबिया हो गया है. और इस कारण तुम्हें मुर्गों से डर लगता है. मैं तुम्हें कुछ टेबलेट्स लिख देता हूँ. मेरा पैड कहाँ गया?" डॉक्टर इधर उधर देखने लगा. फ़िर उसने अपनी जेब से एक मुड़ा तुड़ा कागज़ निकाला और नुस्खा लिखने लगा. फ़िर उसने वह कागज़ चोटीराज को थमाया और बोला. "लो ये टेबलेट्स. दस चम्मच सुबह और चार शाम को खा लेना. अब मेरा बिल निकालो, तीन सौ अस्सी रुपये पैंतीस पैसे."

चोटीराज ने कागज़ पकड़ लिया और उसपर लिखे नुस्खे को पढने की कोशिश करने लगा.
यह उसी प्रकार की बात थी की अंग्रेज़ी जानने वाले किताबों के शौकीन को जर्मन भाषा की पुस्तक मिल जाए और वह केवल उसके शब्द देखकर खुश होता रहे. डॉक्टर अभी तक उसके सामने हाथ फैलाए खड़ा था अपना बिल लेने के लिए. फ़िर जब काफ़ी देर तक मरीजों ने उसका बिल नहीं चुकाया तो उसे तैश आ गया और उसने उछल कर चोटीराज के गाल पर एक थप्पड़ जड़ दिया.

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