"किसी से पूछ कर देखते हैं." प्रोफ़ेसर ने कहा.
"तुम ही पूछो. हमें तो यहाँ की भाषा आती नहीं."
फिर प्रोफ़ेसर ने एक मकान का दरवाज़ा खटखटा कर वहां के निवासी से इसके बारे में पूछा तो पता चला कि मिकिर पहाडियाँ अभी तीन किलोमीटर दूर हैं.
"क्या यहाँ ठहरने कि कोई व्यवस्था है?" प्रोफ़ेसर ने पूछा.
"हाँ. पास ही में एक छोटा सा ढाबा है. वहां दो तीन लोगों के ठहरने की व्यवस्था हो सकती है." उस व्यक्ति ने ढाबे का पता बता दिया. ये लोग वहां पहुँच गए.
इस समय ढाबे में पूरी तरह सन्नाटा छाया था. ढाबे का मालिक सामने चारपाई डालकर सोया पड़ा था.किंतु जगह के बारे में पूछने पर इन लोगों को निराशा हुई. क्योंकि वहां बिल्कुल जगह नही थी.
"अब क्या किया जाए?" शमशेर सिंह ने पूछा.
"अब तो यही एक चारा है कि अपना सफर जारी रखें. अब मिकिर पहाड़ियों में पहुंचकर खजाने की खोज शुरू कर देनी है." प्रोफ़ेसर ने कहा.
"तुमने हम लोगों को मरवा दिया. यह समय तो आराम करने का था. अब वहां तक फिर तीन किलोमीटर पैदल चलना पड़ेगा." रामसिंह रूहांसी आवाज़ में बोला प्रोफ़ेसर से.
"आराम तो वैसे भी नही मिलना था. क्योंकि पहाड़ियों पर कोई हमारा घर नही है. अब अपना अभियान चाहे हम इस समय शुरू करें या सुबह से, कोई फर्क नही पड़ता." प्रोफ़ेसर ने इत्मीनान से कहा.
फिर वे तीनों आगे बढ़ते रहे. लगभग डेढ़ घंटा चलने के पश्चात् उन्हें पहाडियां दिखाई देने लगीं.
"लो यहाँ तक तो पहुँच गए, अब किधर चलना होगा?" रामसिंह ने पूछा.
"ज़रा ठहरो. मैं नक्शा निकाल कर देखता हूँ." प्रोफ़ेसर ने जवाब दिया. फिर तीनों ने अपने सामान वहीँ रख दिए और हांफने लगे. प्रोफ़ेसर ने अपनी जेब से वही किताब निकली और पलट कर नक्शा देखने लगा.
"प्रोफ़ेसर, तुमने इतनी कीमती किताब जेब में रखी थी. अगर किसी ने पार कर ली होती तो?" रामसिंह ने झुरझुरी लेकर कहा.
"तो इसे बेकार की चीज़ समझकर फेंक गया होता. क्योंकि मैं ने इसका कवर उतरकर दूसरा कवर चढा दिया है. जिसपर लिखा है मरने का तर्कशास्त्र. अब तर्कशास्त्र से भला किसी को क्या दिलचस्पी हो सकती है."
"तुम्हारी अक्ल की दाद देनी पड़ेगी प्रोफ़ेसर. अब बताओ कि नक्शा क्या कहता है?" शमशेर सिंह ने तारीफी नज़रों से उसे देखा.
"नक्शे के अनुसार हम इस जगह पर हैं." प्रोफ़ेसर ने एक जगह पर ऊँगली रखते हुए कहा. "अब हमें बाईं ओर बढ़ना होगा."
"क्या ये सामान भी ले चलना होगा. मेरे कंधे में तो दर्द होने लगा यह बैग लादे हुए." रामसिंह कराहकर बोला.
"सामान यहाँ क्या उचक्कों के लिए छोड़ जाओगे. मैं ने पहले ही कहा था कि हल्का सामान लो. अब तुम्हें तो हर चीज़ कि ज़रूरत थी. चाए बनने के लिए स्टोव, पानी कि बोतल, एक सेर नाश्ता, लोटा, तीन तीन कम्बल और पता नही क्या क्या. मैं कहता हूँ कि इन चीज़ों कि क्या ज़रूरत थी." शमशेर सिंह पूरी तरह झल्लाया हुआ था.
"मुझे क्या पता था कि यहाँ पर ठण्ड नही होती. वरना मैं तीन कम्बल न ले आता. मैं ने तो समझा कि चूंकि यहाँ पहाड़ हैं इस लिए ठण्ड भी होती होगी."