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Saturday, January 15, 2011

कहानी - असली नकली (तीसरा अंतिम भाग)

एक कमरे में बृजेश को लाया गया जहाँ चीफ आफिसर के अलावा और कोई न था। न तो कोई जाँच उपकरण था। बस कमरे की नीली रोशनी में दो कुर्सियां आमने सामने रखी दिखाई दे रही थीं। सिक्योरिटी आफिसर ने बृजेश को एक कुर्सी पर बैठने का संकेत किया और खुद दूसरी कुर्सी पर बैठने लगा।

जैसे ही बृजेश कुर्सी पर बैठा, लोहे की कुर्सी से चार यान्त्रिक हाथ निकले और उसे ऊपर से नीचे तक जकड़ लिया। 
‘‘ये क्या है?’’ बृजेश ने हैरत और गुस्से से पूछा।
‘‘ये कुर्सी मुजरिमों के साथ इसी तरह का सुलूक करती है। तुम्हारे साथ भी यही सुलूक करेगी। क्योंकि तुम दुश्मन देश के जासूस हो। प्रधानमन्त्री के करीब जाकर तुम उन्हें बम से मारना चाहते थे।’’

‘‘बम! मेरे पास बम कहाँ है?’’
‘‘बम तुम्हारे पेट में आपरेशन करके फिट किया गया है। प्रधानमन्त्री के सामने पहुँचकर तुम पेट के बल गिर जाते। जिससे वह बम फट जाता। यह ताकतवर बम फटने के साथ ही पूरे कमरे को उड़ा देता। लेकिन अब यह कुर्सी तुम्हें हिलने भी न देगी।’’
नकली बृजेश ने एक गहरी साँस ली और बोला, ‘‘तो तुम्हें मेरी असलियत मालूम हो गयी। यह हकीकत है कि बृजेश के मेकअप में मैं एक मानव बम हूं। लेकिन मुझे हैरत है कि तुमने मुझे कैसे पहचान लिया।’’

सिक्यारिटी आफिसर ने कहा, ‘‘इस बात में तो कोई शक नहीं कि तुम्हारा मेकअप हैरतअंगेज़ है। तुमने अपने पूरे शरीर की बाहरी खाल हूबहू बृजेश जैसी बना ली। लेकिन मेरी एक्सरे मशीन ने जब तुम्हारी भीतरी संरचना देखी तो मालूम हुआ कि तुम असली बृजेश नहीं हो। अब तुम्हें जेल भेजने से पहले मैं जानना चाहता हूँ कि आखिर इतना सटीक मेकअप तुमने किस विधि  कर लिया?’’

नकली बृजेश थोड़ी देर कुछ सोचता रहा फिर बोला, ‘‘जबकि मैं नाकाम हो चुका हूं तो सोचता हूँ कि तुम्हें बता दूं। दरअसल मेरे देश के वैज्ञानिकों ने एक मशीन बनायी है जो किसी व्यक्ति का फोटोग्राफ लेकर किसी दूसरे व्यक्ति को बाहरी तौर पर हूबहू उसके जैसा बना देती है। देखने में लगता है मानो पहले व्यक्ति का कोई क्लोन पैदा हो गया है।’’
‘‘यह किस तरंह संभव है? माना कि मेकअप से चेहरा बनाया जा सकता है। लेकिन फिंगर प्रिन्ट्‌स भी बदल देना, यह तो नामुमकिन सी बात है।’’ सिक्योरिटी आफिसर के स्वर में हैरत थी।

‘‘दरअसल वह मशीन जब किसी व्यक्ति का फोटो लेती है तो मशीन की मेमोरी में उस व्यक्ति की बाहरी त्वचा की कोशिकाओं का रिकार्ड ग्राफिक्स रूप में संचित हो जाता है। अब मशीन में उस व्यक्ति को बिठाया जाता है जिसका मेकअप करना है। मशीन अपने ग्राफिक्स रिकार्ड के अनुसार व्यक्ति की कोशिकाओं को परिवर्तित करना शुरू कर देती है। नतीजे में थोड़ी देर के बाद व्यक्ति की त्वचा की सारी कोशिकाएं पहले व्यक्ति के अनुरूप हो जाती हैं। यहां तक कि फिंगर प्रिन्ट्‌स भी दोनों के एक जैसे हो जाते हैं।’’

‘‘एक्सीलेंट। यह मशीन तो हमारे देश में होनी चाहिए।’’
‘‘नामुमकिन। वह मशीन ऐसी जगह है कि तुम्हारे देश के फ़रिश्ते भी वहाँ नहीं पहुँच पायेंगे।’’
‘‘ये तो वक्त बतायेगा। जब हमने तुम्हें पकड़ लिया तो मशीन को हासिल कर लेना कौन सा मुश्किल काम है।’’

‘‘दरअसल मुझसे कुछ गलतियां हो गयीं। जिसकी वजह से पकड़ा गया। मुझे बृजेश को मारने के बाद उसकी लाश गायब कर देनी चाहिए थी। पता नहीं कहां से मि0 लाल वहां पहुंच गया और उसने बृजेश के एक्सीडेन्ट की खबर सबको दे दी। नतीजे में पुलिस मेरी तरफ से शक में पड़ गयी। हालांकि बाद में मैंने बृजेश का सर और हाथ पैर गायब कर दिये, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी।’’

‘‘तुम ठीक कहते हो। लेकिन मुजरिम अगर गलती न करे तो कभी पकड़ा ही न जाये। खैर अब तुम यहीं बैठे बैठे अपने जेल जाने का इंतिजार करो। तुम्हारे पेट का बम अभी निष्क्रिय कर दिया जायेगा।’’
कहकर सिक्योरिटी आफिसर कमरे से बाहर आ गया। अब वह प्रधानमन्त्री के निवास की ओर जा रहा था यह बताने के लिए कि उनके कत्ल की साजिश को नाकाम किया जा चुका है।

--समाप्त--

Wednesday, January 12, 2011

कहानी - असली नकली (भाग 2)

सम्पादक, बृजेश और मि0 लाल एक साथ पुलिस कस्टडी में पहुंचे और वहाँ से एक सब इंस्पेक्टर को लेकर मुरदाघर रवाना हो गये। क्योंकि लाश वहीं पर थी।

जब वे लोग मुरदाघर के उस स्ट्रेचर के पास पहुंचे जिसपर लाश थी तो भौंचक्के रह गये। क्योंकि लाश का सर और हाथ पैर गायब थे। उनके साथ आये डाक्टर ये सिचुयेशन देखकर उनसे भी ज्यादा हड़बड़ा गये थे।
‘‘क्या इसी बेसिर पैर की लाश के लिए इतना हंगामा हो रहा था?’’ बृजेश ने टेढ़ी नज़रों से सम्पादक और मि0 लाल की ओर देखा।
‘‘ल--लेकिन जब ये लाश यहाँ लायी गयी थी तो इसके हाथ पैर, सर सब कुछ मौजूद थे।’’ एक डाक्टर बोला।

‘‘मेरा ख्याल है आप लोग किसी बड़ी गलतफहमी का शिकार हो चुके हैं। खैर मैं चलता हूं। आज एक रिपोर्टिंग करनी है।’’ कहते हुए बृजेश ने घड़ी देखकर सम्पादक से इजाज़त ली और वहाँ से चला गया।
‘‘सर! मैं आज तक इतना कन्फ्यूज नहीं हुआ। यह लाश हण्ड्रेड परसेन्ट मि0 बृजेश की मालूम हो रही थी।’’ मि0 लाल ने कहा।

उसी समय वहाँ इंस्पेक्टर ने प्रवेश किया।
‘‘हो सकता है यह लाश हण्ड्रेड परसेन्ट वास्तव में हो।’’ सम्पादक ने कहा।
‘‘वह कैसे?’’ इंस्पेक्टर ने पूछा।
‘‘अभी जो व्यक्ति यहां से गया है, वह मि0 बृजेश के मेकअप में कोई अन्य व्यक्ति भी हो सकता है। आप बृजेश की पूरी जाँच करिये। मेकअप से लेकर फिंगर प्रिन्ट जाँच तक।’’

‘‘लेकिन किसी दूसरे व्यक्ति को बृजेश बनने की जरूरत क्या है?’’ इंस्पेक्टर का सवाल था।
‘‘तीन दिन बाद हमारे अखबार को प्रधानमन्त्री जी इन्टरव्यू दे रहे हैं। और यह इन्टरव्यू बृजेश को ही लेना है। इसलिए हो सकता है उसके रूप में देश का कोई दुश्मन प्रधानमन्त्री जी को नुकसान पहुंचाना चाहता हो।’’

इंस्पेक्टर ने सहमति में सर हिला दिया।
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बृजेश के शरीर की जाँच शुरू हो गयी। चेहरे को तरह तरह के केमिकल से धुलाया गया। फिंगर प्रिन्ट्‌स चेक किये गये। लेकिन कहीं कोई गड़बड़ न मिली। फिंगर प्रिन्ट्‌स और चेहरे के एतबार से बृजेश पूरी तरह बृजेश था। इस तरह उसे क्लीन चिट थमा दी गयी।

फिर वह दिन भी आ गया जब बृजेश को प्रधानमंत्री का इंटरव्यू लेना था। कई तरह के सुरक्षा उपकरणों से जाँच करने के उपरान्त जब वह प्रधानमन्त्री कक्ष के पास पहुँचा तो अचानक एक बलिष्ठ शरीर के युवक ने आकर उसका रास्ता रोक लिया।
‘‘अब क्या है?’’ बृजेश ने विचलित होकर पूछा। लगातार चलने वाली सघन जाँच से वह परेशान हो उठा था।

‘‘अभी एक फाइनल जाँच और होगी मि0 बृजेश। उसके बाद ही आप प्रधानमन्त्री जी से मिल पायेंगे।’’ युवक ने कहा।
‘‘लेकिन तुम कौन हो?’’
‘‘मैं प्रधानमन्त्री जी की सिक्योरिटी टीम का चीफ आफिसर हूँ।’’ युवक ने कहा।
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Sunday, January 9, 2011

कहानी - असली नकली (भाग 1 )

दैनिक मिशन के आफिस में रिपोर्टर बृजेश दाखिल हुआ। उसका चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था। वह तेजी से सम्पादक के चैम्बर की ओर बढ़ा। आसपास बैठे आफिस के कर्मचारियों ने उसकी ओर आश्चर्य से देखा। क्योंकि वह पहली बार इस प्रकार गुस्से में दिखाई दे रहा था। वह तो एक शांत प्रकृति का व्यक्ति था। दैनिक मिशन में वह पिछले दस वर्षों से कार्यरत था।

उसने सम्पादक के केबिन का दरवाजा धड़ से खोला और अंदर दाखिल हो गया। सम्पादक जो कुछ लिखने में व्यस्त था, चौंक पड़ा, और सर उठाकर उसकी ओर देखने लगा। कानों के किनारे छोड़कर उसके पूरे सर पर कोई बाल नहीं था। भवें आधी सफेद और आधी काली थीं। आयु लगभग पचास वर्ष थी।

‘‘क्या बात है बृजेश?’’ उसने पूछा।
‘‘क्या आपने आज का मिशन पढ़ा?’’ बृजेश ने तेज स्वर में पूछा।
‘‘प्रूफ रीडिंग के समय पूरा देखा था। क्यों, क्या बात है?’’
‘‘तो इसमें ये खबर भी जरूर पढ़ी होगी।’’ बृजेश ने अखबार उसके सामने रखकर एक समाचार की ओर संकेत किया। सम्पादक ने चश्मा अपनी उंगली से ऊपर खिसकाते हुए समाचार पर द्रष्टि दौड़ाई और फिर उसकी आँखें फैल गयीं।

समाचार का शीर्षक था, ‘‘दैनिक मिशन रिपोर्टर की मौत।’’ उसने आगे पढ़ा। लिखा था, ‘‘आज शाम को दैनिक मिशन के युवा रिपोर्टर बृजेश कुमार की कार दुर्घटना में मौत हो गयी। वे उस समय एक समाचार के संकलन हेतु मुरादाबाद जा रहे थे जब सामने से आते तेज रफ्तार ट्रक ने उनकी कार को टक्कर मारी। कार पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गयी और साथ ही साथ बृजेश जी भी मिशन का साथ हमेशा के लिए छोड़ गये। पूरा मिशन परिवार उनके शोक में संतप्त है।’’

सम्पादक ने एक दृष्टि समाचार पर और दूसरी दृष्टि बृजेश के चेहरे पर डाली। बृजेश कुमार तो सही सलामत उसके सामने खड़े थे। फिर यह खबर? फिर उसकी भवें रह रहकर ऊपर उठने लगीं। ऐसा तब होता था जब उसे गुस्सा आता था। उसकी उंगली घंटी के बटन पर पड़ी और वह उसे बजाता ही चला गया।

चपरासी अंदर प्रविष्ट हुआ।
‘‘मि0 लाल को अंदर भेजो।’’

‘‘मि0 बृजेश, जब मैंने प्रूफ पढ़ा तो इसमें ये समाचार नहीं था। अब मैंने मि0 लाल को इसीलिए बुलाया है क्योंकि प्रिंटिंग का सारा काम उनकी देखरेख में होता है।’’
उसी समय मि0 लाल ने अंदर प्रवेश किया।
‘‘यस सर?’’ उसने सम्पादक की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा।

‘‘मि0 लाल, इस समय मेरे सामने कुर्सी पर कौन बैठा है?’’ सम्पादक ने उनसे पूछा।
मि0 लाल ने कुर्सी की ओर देखा। उनके चेहरे पर अविश्वास के भाव उत्पन्न हुए, नथुने फड़कने लगे और मुंह से निकला, ‘‘भू----त!’’

‘‘क्या बकवास है।’’ सम्पादक दहाड़ उठा, ‘‘एक जीते जागते इंसान को तुम भूत कह रहे हो।’’
‘‘म---मैं सच कहता हूं। सर, मैंने इनकी लाश अपनी आँखों से देखी है। और आज अखबार में छप न्यूज भी मैंने स्वयं बनायी है।’’ मि0 लाल ने हकलाते हुए कहा और रूमाल से अपने चेहरे का पसीना पोंछने लगा।

‘‘आप बैठ जाईये मि0 लाल और मुझे पूरी बात बताईए।’’ इस बार सम्पादक ने नर्म स्वर में कहा।
मि0 लाल कुर्सी पर बैठ गये और बताने लगे, ‘‘कल जब मैं एक न्यूज कवर करके आ रहा था तो रास्ते में एक कार दुर्घटनाग्रस्त बुरी तरह टूटी फूटी मुझे मिली। लोग उसके आसपास इकट्‌ठा थे। जब मैं पास गया तो मैंने देखा कि वहां मि0 बृजेश खून से लथपथ पड़े हुए हैं। उनका पूरा शरीर जख्मी था, लेकिन चेहरा सही सलामत था। इसलिए मुझे पहचानने में कोई विशेष कठिनाई नहीं हुई। फिर मैंने पुलिस को फोन किया। पुलिस ने आकर जब उनका निरीक्षण किया तो साफ कहा कि वे मृत हो चुके हैं।’’

‘‘अगर वो बृजेश की लाश थी तो फिर ये कौन हैं?’’ सम्पादक ने बृजेश की ओर संकेत किया।
‘‘अब मैं क्या कहूं सर। मेरा ख्याल है आप स्वयं वह लाश देख लीजिए। वह अभी पुलिस कस्टडी में होगी।’’ मि0 लाल ने कहा।
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नोट : यह कहानी हाल ही में 'इलेक्ट्रोनिकी आपके लिए' के जनवरी 2011 के अंक में प्रकाशित हुई है.