Wednesday, January 21, 2009

ताबूत - एपिसोड 47

जींस, रंगीन दुपट्टों और सफ़ेद शर्ट्स की चकाचौंध ये बता रही थी की यह किसी यूनिवर्सिटी का हॉस्टल है. थोडी ही दूर पर पार्क था जहाँ कुछ लोग अकेले टहल रहे थे और कुछ जोडों के रूप में. ऐसा ही एक जोड़ा इस कोने में बैठा था. जहाँ अपेक्षाकृत सन्नाटा था. पेड़ों के झुंड के कारण यह स्थान कुछ छुपा हुआ था.
"डार्लिंग, कल मैंने यहाँ दो घंटे लगातार तुम्हारा इन्तिज़ार किया किंतु तुम आईं नहीं. क्या बात हो गई?" लड़के ने पूछा.
"सॉरी, बात यह हुई की कल हमारे ग्रुप के स्टूडेंट्स ने जूनिअर्स की रैगिंग लेने का प्लान बनाया था. वहां मालूम हुआ की उनकी पहले ही कुछ ग्रुपों द्वारा चार बार रैगिंग ली जा चुकी है. सो उन्होंने इस बार इनकार कर दिया. नतीजे में मार पीट की नौबत आ गई. इसी चक्कर में किसी का पेन पता नहीं किस स्पीड से मेरी खोपडी से टकराया की मैं चकरा गई. रियली डिअर मेरा सर अभी तक पेन दे रहा है."
"ओह! ये तो बहुत बुरा हुआ. सच पूछो तो तुम्हारी ज़रा सी तकलीफ से मेरा दिल धड़कने लगता है. यह बताओ, तुम ने अपनी मम्मी से तो नहीं बताया की तुम मुझसे प्यार करती हो?"
"सवाल ही नहीं पैदा होता. बता के मरना है क्या. वे तो मेरे लिए कोई आई.ए.एस ढूंढ रही हैं और तुम तो अभी बी.एस.सी. कर रहे हो. तुम जल्दी से आई.ए.एस, पी.सी.एस. बन जाओ फ़िर मैं बात करूंगी. वैसे डार्लिंग क्या तुमने अपने पापा से बात की?"
"एक बार मैंने घर में कहा था की मैं शादी करना चाहता हूँ. वह डांट पड़ी की बस. पापा कहने लगे की पहले ग्रेजुएट होकर सर्विस करने लगो फ़िर शादी की बात मुंह से निकालना. यार, यह पैरेंट्स रास्ते की दीवार क्यों बन जाते हैं?"

"हाँ. मैंने तो मोस्टली फिल्मों में यही देखा है. किंतु हमारा प्यार सदेव अमर रहेगा. चाहे जितना बड़ा तूफ़ान आ जाए, हम अपने इरादों पर अटल रहेंगे.
"डार्लिंग, हम अपनी यूनिवर्सिटी की इन मुलाकातों को हमेशा याद रखेंगे. ये रंगीन माहोल, और उसमें तुम मेरे पास हो.पता नहीं क्यों मेरा यूनिवर्सिटी छोड़ने का मन नहीं करता." लड़के ने कहा.
"इसीलिए तुम बी.एस.सी. में लगातार तीन साल से फेल हो रहे हो."
"वह तो और बात है. मैं तो हर बार पूरी तय्यारी कर के गया, किंतु हर बार गड़बड़ हो गई."
"कैसी गड़बड़?"
"जब पहली बार मैंने इक्जाम दिया तो मैं जो पर्चियां ले गया उसे देखकर दूसरे लड़के ने कहा ये इस पेपर की पर्चियां नहीं हैं. इसका पेपर तो पहले ही हो गया. बात यह हुई की मैं जो पैंट पहनकर पहले दिन पेपर देने गया था भूल से वही पैंट उस दिन भी पहन ली थी."

"और दूसरी बार क्या हुआ था?"
"जब दूसरी बार मेरा इक्जाम हुआ तो उसी समय तुनसे पहली बार मुलाकात हुई थी. हर समय तुम्हारे सपने में खोया रहता था. इसी चक्कर में एक दिन केमिस्ट्री के पेपर में लिख आया, "डार्लिंग सोडियम क्लोराइड, तुम्हारी इस समय बहुत याद आ रही है. तुम्हारो मोहब्बत के तुल्यांकी भार ने मेरे दिल के नाभिक के टुकड़े टुकड़े कर दिए है. और मैं अपने आपको पूरी तरह रेडियो एक्टिव पा रहा हूँ. तुम्हारी याद में मैं इतना एसिडिक हो गया हूँ की लगता है वातावरण कैल्शियम ऑक्साइड जैसा शुष्क हो गया है. इस तरह मैं दूसरी बार भी नाकाम हो गया."

"ओह! मुझे अफ़सोस है की मैं तुम्हारे फेल होने का कारण बनी. किंतु तीसरी बार क्या हुआ था?"

1 comment:

seema gupta said...

ओह! मुझे अफ़सोस है की मैं तुम्हारे फेल होने का कारण बनी. किंतु तीसरी बार क्या हुआ था?"
" हा हा हा आज तो बहुत रोचक रही .."
Regards