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Thursday, April 2, 2009

दंगाई बंजारे - अंतिम भाग

‘‘तुम!’’
‘‘हां। मैं ही हूं यानि डा0 शशिकांत। जाना माना मोल्क्यूलर बायोलाजिस्ट। और वह देवी और कोई नहीं बल्कि मेरी पत्नी है, और माहिर भौतिकशास्त्री है। जिसे तुम बेहोश करके आये हो। उसे तो अभी होश् आ जायेगा। तब तक मैं तुमसे निपट लूं।’’ उसने हाथ में पकड़े रिमोटनुमा यन्त्र का बटन दबाया और इं- यशवंत तथा कौड़िया के चारों तरफ लेज़र किरणों का एक पिंजरा निर्मित हो गया।
‘‘इन किरणों को छूने की कोशिश मत करना वरना वक्त से पहले ही भस्म हो जाओगे।’’

इं-यशवंत ने एक गहरी सांस ली और बोला, ‘‘तो डा0 शशिकांत, ये सब तुम्हारी खुराफातें हैं। क्या मैं पूछ सकता हूं कि तुम ये सब क्यों कर रहे हो यहां? जबकि सरकारी लैबोरेटरी में तुम एक अच्छे ओहदे पर हो।’’
‘‘वहां मेरी ऊंची आकांक्षाओं की पूर्ति नहीं हो सकती है। चूंकि तुम्हारी मौत अब कन्फर्म हो चुकी है, इसलिए यहां की सच्चाई बताने में कोई हर्ज नहीं।’’ कहते हुए डा0 शशिकांत उन बेड्‌स के पास गया जहां दो जनजातीय युवक लेटे हुए थे।
‘‘मैंने और मेरी पत्नी ने मिलकर ऐसी मशीनें बनायीं जिनसे मनुष्य के डी-एन-ए- में मनचाहा परिवर्तन किया जा सकता था। यहां तक कि उन्हें 'इलेक्ट्रिक मैन’ बनाया जा सकता था। इस कामयाबी के बाद हमने सोचा कि इससे तो हम पूरी दुनिया पर कब्जा कर सकते हैं। छोटे पैमाने पर काम करते हुए पहले तो हमने यहां प्रयोगशाला स्थापित की। अपनी पत्नी को यहां के भोले भाले लोगों के बीच में देवी के रूप में स्थापित कर दिया। इसलिए प्रयोगशाला बनाने का हमारा काम काफी आसान हो गया।’’
डा0 शशिकांत ने मशीन में लगे कुछ बटन दबाये और आगे कहना शुरू किया, ‘‘फिर धीरे धीरे हम इलेक्ट्रिक मानवों की सेना तैयार करने लगे। यहीं के निवासियों को लेकर इन मानवों को तैयार करते समय इनके मस्तिष्क में भर दिया जाता है कि मैं इनका मालिक हूं और मेरी पत्नी इनकी देवी। इसलिए ये हमारा हर कहना मानते हैं।
हमारा काम सफलतापूर्वक चल रहा था, लेकिन उसी समय एक गड़बड़ हो गयी। एक विदेशी फर्म को यहां से बाक्साइट निकालने का ठेका मिल गया। नतीजे में यहां की लैबोरेटरी का भेद खुलने का खतरा पैदा हो गया। इसलिए हमें अपने मानवों को वक्त से पहले बाहर निकालना पड़ा और फसाद फैलाना पड़ा।
संयोग से तुम बीच में कूद पड़े और हमारा काम हलका हो गया। तुम्हारी तफ्तीश के दौरान मैंने अपना मैसेज पहुंचा दिया कि दरअसल बाहरी लोगों की वजह से यहां इवोल्यूशन हो रहा है। मैसेज भेजने का मकसद पूरा हो गया और हम अब अपना काम आगे बढ़ा सकते हैं।’’

अब उसने मशीन में लगा एक और बटन दबाया जिससे बेड के ऊपर मौजूद शीशे के चैम्बर धीरे धीरे खिसकने लगे। जैसे ही चैम्बर पूरे खिसके दोनों मानव उठकर बैठ गये और इस प्रकार अपनी आँखें मलने लगे मानो नींद से उठे हों।
‘‘अब ये दोनों पूरी तरह इलेक्ट्रिक मैन बन चुके हैं। इसी तरह मैं इनकी सेना तैयार करूंगा पूरी दुनिया पर अपनी हुकूमत कायम करने के लिए।’’
‘‘मैं नहीं समझता कि तुम अपने मकसद में कामयाब होगे। ये अनपढ़ लोग ज्यादा से ज्यादा दो लोगों को मारकर खुद भी गोली या बम का शिकार हो जायेंगे।’’
‘‘अभी मैं अपनी मशीन में और सुधार कर रहा हूं। उसके बाद इंजीनियर, डाक्टर और साइंटिस्ट भी इलेक्ट्रिक मैन बनकर हमारे गुलाम हो जायेंगे। चूंकि उनके मस्तिष्क में प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा होती है इसलिए फिलहाल मैं उन्हें गुलाम नहीं बना पा रहा हूं। मशीन में सुधार के बाद यह समस्या नहीं रहेगी।’’
उसने अपनी घड़ी देखी फिर बोला, ‘‘तुम्हारे साथ बकवास करने में काफी समय बरबाद हो गया, इसलिए मरने के लिए तैयार हो जाओ।’’
इं-यशवंत ने इ- कौडिया की तरफ देखा। बचने की कोई तरकीब समझ में नहीं आ रही थी।

डा0 शशिकांत ने इलेक्ट्रिक मैन से उसकी भाषा में कुछ कहा और वह एक कोने में चला गया जहां राइफल रखी हुई थी।
‘‘एक एक गोली तुम लोगों के लिए काफी होगी। तुम्हारे लिए मैं अपनी लेजर किरणें बरबाद नहीं करना चाहता।’’
इलेक्ट्रिक मैन राइफल उठाकर लाया और डा0 शशिकांत की तरफ बढ़ा दी। डा0 शशिकांत ने राइफल थामी।
किन्तु दूसरे ही पल वह वहीं अकड़ने लगा। पल भर में ही उसका पूरा जिस्म काला पड़ चुका था। इलेक्ट्रिक मैन आश्चर्य से उसे देख रहा था।
‘‘इसे क्या हुआ??’’
‘‘अपने ही जाल में शिकार बन गया। इलेक्ट्रिक मैन के जिस्म में दौड़ने वाली बिजली ने इसकी जान ले ली।’’
‘‘लेकिन अब हम बाहर कैसे निकलें इस पिंजरे से??’’
‘‘एक तरकीब है।’’ इं-यश्वन्त ने अपनी वर्दी उतारी। फिर उसे किरणों के स्रोत पर उछाल दिया। बस दो सेकंड लगे थे वर्दी को भस्म होने में। लेकिन इतने समय में वह कूदकर किरणों के पार जा चुका था। इलेक्ट्रिक मैन इं- यशवंत की तरफ बढ़ा, लेकिन कौड़िया ने उससे उसी की भाषा में कुछ कहा जिससे वह रुक गया।
इं- यशवंत ने रिमोट का बटन दबाया और कौड़िया के चारों तरफ मौजूद किरणों का घेरा हट गया।
‘‘जल्दी आओ, हमें देखना है कि कहीं वह देवी होश् में न आ गयी हो। वैसे इससे तुमने क्या कहा था कि यह रुक गया।’’
‘‘हमने कहा कि हम इसके मालिक के भी मालिक हैं।’’
‘‘गुड।’’ दोनों वापस उसी सुरंग में घुस गये।

-------
इस समय इं-यशवंत सब इं-कौड़िया के साथ एक अच्छे होटल की तरफ जा रहा था, डिनर के लिए। कार का स्टेयरिंग कौड़िया के हाथ में था।
‘‘आज सुबह पेपर में न्यूज आयी है कि पहाड़ियों के बीच एक महाधमाका हुआ और रौशनी भी चमकती देखी गयी। लेकिन जब तफ्तीश हुई तो एक गहरी झील के अलावा कुछ नहीं मिला।’’ कौड़िया कह रहा था।
‘‘हमारी किस्मत अच्छी थी कि पहाड़ियों के दूसरी तरफ एक गहरी झील थी। जब मैंने लैबोरेटरी को विस्फोट से उड़ाया तो पहाड़ियों में दरार पैदा हुई। जिससे दूसरी तरफ का पानी वहां भर गया और लैबोरेटरी के सारे चिन्ह मिट गये।’’

‘‘लेकिन आपने उसे नष्ट क्यों किया??’’
‘‘उसे नष्ट करना ही जरूरी था। वरना कोई और वहां की रिसर्च का फायदा उठाकर दुनिया का शासक बनने के सपने देख सकता था।’’
‘‘उस औरत के बारे में आपने नहीं बताया। उसका क्या किया आपने??’’
इं-यशवंत खामोश् रहा।
‘‘जवाब नहीं दिया आपने।’’ कौड़िया ने टोका।
‘‘मैं उसे बाहर निकालना चाहता था, लेकिन इलेक्ट्रिक मैन मेरे रास्ते में थे। वक्त कम था विस्फोट होने में। इसलिए उसे वहीं छोड़ना पड़ा।’’

थोड़ी देर वहां सन्नाटा छाया रहा, फिर सब इं-कौड़िया बोला, ‘‘मैं समझ गया। दरअसल आपने सारे ही सुबूत मिटा दिये। इसीलिए आपने मुझे पहले ही बाहर भेज दिया था, ताकि मैं कोई प्रतिरोध न करूं।’’
‘‘यही मुनासिब था। सच पूछो तो मैं चाहता हूं इलेक्ट्रिक मैन का खौफ बाहरी दुनिया में मौजूद रहे। ताकि यहां की जनजातियों का अस्तित्व खतरे में न पड़े।’’
अब तक कार होटल के प्रांगण में पहुंच चुकी थी इसलिए दोनों की बातचीत यहीं पर समाप्त हो गयी।

---समाप्त---

जीशान हैदर ज़ैदी

Monday, March 30, 2009

कहानी - दंगाई बंजारे (३)

इं-यश्वन्त इस समय कौड़िया के साथ जंगल की एक पगडन्डी पर चल रहा था।
‘‘अगर आज्ञा हो तो एक बात पूछूं।’’ कौड़िया अचानक बोला।
‘‘क्या?’’
‘‘मामला तो पूरा सुलझ गया है। कंपनी हटने पर राजी हो गयी है। और दंगाईयों के हमले भी कम हो गये हैं। फिर हम अब जंगल में क्यों हैं?’’
‘‘क्योंकि अभी इस मामले की कई कड़ियां मिसिंग हैं। जरा गौर करो कौंध बस्ती के उस मुखिया की बातें। कुछ लोग जंगल में खास जगह जाते हैं। और फिर वहां से शक्ति हासिल करके और पागल होकर निकलते हैं। कोई इवोल्यूशन अचानक इस तरह नहीं होता।’’

‘‘तो फिर अब हमें क्या करना है?’’
‘‘उस मंदिर की तलाश जहां वह देवी पायी जाती है।’’
‘‘लेकिन कैसे? जबकि कोई कुछ बताने को तैयार नहीं।’’
‘‘मैं इधर कई दिनों से कुछ दंगाईयों का पीछा कर रहा हूं और एक नक्शा तैयार किया है मैंने। जिसपर चलकर मुझे विश्वास है कि हम उस मंदिर तक पहुंच सकते हैं।’’
‘‘तो इस समय हम उधर ही चल रहे हैं।’’
‘‘हां।’’
फिर दोनों काफी देर तक चलते रहे। अचानक उन्हें ठिठक जाना पड़ा। सामने एक बहुत पुराना और विशाल मंदिर दिख रहा था। जो पहाड़ों के पत्थर जोड़ जोड़कर बनाया गया था।
‘‘शायद हम अपनी मंजिल पर पहुंच गये।’’ गहरी सांस लेकर कहा इं-यशवंत ने।
‘‘हां शायद।’’ फिर दोनों ने मंदिर के अंदर कदम रखा। सामने एक पत्थर की मूर्ति स्थापित थी।
‘‘यही हैं हमारी देवी धरनी मां।’’ सब इं-कौड़िया ने मूर्ति के सामने अपना सर झुकाया।
‘‘हूं।’’ इं-यशवंत थोड़ी देर मूर्ति का निरीक्षण करता रहा, फिर मंदिर का निरीक्षण करने लगा। फिर उसकी नजरें उस छोटे दरवाजे पर जम गयीं जो मूर्ति के ठीक पीछे स्थित था। वह कौड़िया का हाथ पकड़कर उसकी तरफ बढ़ा और दोनों उस दरवाजे से दाखिल हो गये।

जैसे ही वे उस दरवाजे से पार निकले, अपने को उन्होंने एक बहुत बड़े मैदान में पाया। जो चारों तरफ से पहाड़ियों में घिरा हुआ था।
और उस मैदान के एक कोने में एक औरत मौजूद थी। एक पत्थर की सिंहासननुमा कुर्सी पर बैठी हुई। उस औरत के सामने बहुत से कौंध जनजाति के युवक पलथी मारकर बैठे हुए थे। मानो कोई योगासन कर रहे हों।
औरत ने घूमकर उनकी तरफ देखा और फिर मुंह पर उंगली रखकर उन्हें चुप रहने का इशारा किया। फिर वह उठकर खड़ी हो गयी और उन्हें अपने पीछे आने का इशारा किया। अब वह एक अन्य दरवाजे की तरफ बढ़ रही थी।
ये दोनों थोड़ा हिचकिचाये, फिर उसके पीछे जाने लगे।
दरवाजे से दाखिल होने पर इन्होंने अपने को एक छोटे से कमरे में पाया।
‘‘मैं नहीं चाहती थी कि मेरे भक्तों की तपस्या में तुम लोगों की वजह से कोई रुकावट आये।’’ उस औरत ने जबान खोली। उसकी आवाज उसके चेहरे की तरह ही खूबसूरत थी।
‘‘कौन हो तुम??’’ इं-यशवंत ने पूछा।
‘‘वही। जिसकी तलाश में तुम यहां तक आये हो।’’
‘‘देवी धरनी मां।’’ इं-कौड़िया ने फौरन अपना हाथ जोड़कर सर झुका दिया। लेकिन इं-यशवंत पहले की तरह सीधा खड़ा रहा।
‘‘सुनो। मैं सभ्य समाज से आया हूं और किसी देवी वगैरा को नहीं मानता।’’ इं-यशवंत बोला।
‘‘तुम्हारा सभ्य समाज बहुत सी खोखली बातों को मानता है और बहुत सी सच्चाईयों से मुंह छुपा लेता है।’’
‘‘सच सच बताओ, कौन हो तुम??’’
‘‘हकीकत में मैं देवी धरनी ही हूं ।’’
‘‘वो पूरी भीड़ बाहर बैठी क्या कर रही है?’’
‘शक्ति हासिल करने के लिए तपस्या कर रही है। उसके बाद वे जिसके सर पर हाथ रख देंगे वह मृत्यु को प्राप्त हो जायेगा।’’
‘‘ऐसी शक्ति से क्या फायदा जो लोगों को मारने के काम आती हो।’’
‘‘बाहरी लोग इनके अस्तित्व के लिए खतरा बन रहे हैं। उन्हें इनके क्षेत्र से भगाना या मारना अति आवश्यक है। मैं इनके अस्तित्व को बचाने के लिए इन्हें शक्ति प्रदान कर रही हूं।’’ देवी ने त्योरियों पर बल डालकर कहा।
‘‘शायद तुम्हें मालूम नहीं, हमने इन लोगों का परीक्षण कराया है। इनके शरीर में डी-एन-ए- डिफेक्ट की वजह से इवोल्यूशन हुआ है। शक्ति मिलने की बात कोरी बकवास है।’’
‘‘शक्ति किसी भी रूप में प्रदान हो सकती है। तुम मान सकते हो कि मैंने ही उनके डी-एन-ए- में परिवर्तन किये। और अब तुम मरने के लिए तैयार हो जाओ।’’ कहते हुए औरत ने अपनी जेब से छोटी सी पिस्टल निकाली और उनकी तरफ तान दी।
‘‘तुम हमें क्यों मार रही हो?’’
‘‘मैं नहीं चाहती कि मेरा राज़ बाहरी दुनिया तक पहुंचे।’’ उसकी उंगलियां ट्रेगर दबाने के लिए हिलीं। उसी समय इं-यशवंत ने पैर से पत्थर उछाला जिसे वह बहुत देर से तौल रहा था। निशाना सटीक बैठा और पत्थर सीधा पिस्टल वाले हाथ पर लगा। गोली चली लेकिन निशाने पर कोई न था। पिस्टल साईलेंसर युक्त थी, इसलिए कोई आवाज़ भी न हुई।
इतना मौका काफी था इं-यशवंत के लिए। उसने फौरन देवी धरनी को अपने कब्जे में कर लिया। देवी ने प्रतिरोध की कोशिश की लेकिन इं-यशवंत ने उसकी कनपटियां दबाकर उसे बेहोश् कर दिया।
‘‘कौड़िया - रस्सी!’’
‘‘द--देवी को बाँधने के लिए?’’
‘‘ये कोई देवी वगैरा नहीं है बेवकूफ। सिर्फ मामूली सी औरत है। वरना इतनी आसानी से मेरे कब्जे में न आ जाती।’’
बात कौड़िया की समझ में आ गयी। उसने कोने में पड़ी रस्सी उठाकर इं-यशवंत को थमा दी। इं-यशवंत ने फौरन औरत को रस्सियों से जकड़ दिया।
‘‘यहां ज़रूर कोई गहरी साजिश् हो रही है। हमें उसका पता लगाना है। आओ इस तरफ।’’ वहां मौजूद एक छोटे दरवाजे की ओर इं- यशवंत बढ़ा। औरत को उसने वहीं मौजूद एक सोफे की आड़ में डाल दिया। इससे पहले वह उसकी तलाशी लेना न भूला था।
वह छोटा दरवाजा एक लम्बी सुरंग का मुंह साबित हुआ। दोनों काफी देर उसमें चलते रहे।
‘‘क्या बना रखा है इस देवी ने यहां?’’ फिर उन्हें रौशनी दिखाई दी। इसका मतलब था कि अब सुरंग समाप्त हो रही है।
सुरंग समाप्त हुई और सामने का द्रश्य देखकर दोनों बेहोश् होते होते बचे।
यहां एक हाई टेक प्रयोगशाला दिख रही थी। बड़ी बड़ी मशीनों का जाल चारों तरफ घिरा हुआ था। कम्प्यूटर नुमा स्क्रीनों पर लगातार आंकडे बदल रहे थे।
सबसे खास बात बीच में रखे दो बेड थे। जिनके ऊपर दो जनजातीय युवक लेटे हुए थे, शीशे के कैप्सूलनुमा चैम्बर में बन्द। उस चैम्बर से बहुत सी नलियां निकलकर साइड में रखी मशीनों तक गयीं थीं। जिनमें लगे एल-सी-डी- जल बुझ रहे थे।
‘‘य--यहां ये सब क्या हो रहा है??’’ हकलाते हुए पूछा सब इं-कौड़िया ने।
‘‘इवोल्यूशन। लेकिन कृत्रिम तरीके से।’’ गहरी सांस लेकर जवाब दिया इं-यशवंत ने।
‘‘ठीक पहचाना तुमने।’’ पीछे से एक नयी आवाज सुनाई दी। दोनों चौंक कर मुड़े और इं-यशवंत की आँखें उस व्यक्ति को देखकर फैल गयीं। क्योंकि वह और कोई नहीं बल्कि डा0 शशिकांत था।

Sunday, March 29, 2009

दंगाई बंजारे (2)

इं यशवंत ने अपने सहयोगी के रूप में सब इं-कौड़िया को लिया था। जो स्वयं कौंध जनजाति का था। इं-यशवंत ने उसे जानबूझकर लिया था ताकि वह कौंध के शांतिप्रिय लोगों से मिलकर आसानी से अपनी तफ्तीश बढ़ा सके।
जब वह अपनी तैयारी पूरी कर चुका तो उसी समय कमिश्नर ने वहां प्रवेश् किया। उसके साथ एक व्यक्ति और था।
‘‘इं- यशवंत , इनसे मिलो। ये हैं डा0 शशिकांत। यहां की सरकारी मोल्क्यूलर रिसर्च लैब में साइंटिस्ट। जब इन्होंने सुना कि हमने एक दंगाई को पकड़ा है तो उसकी जाच के लिए इन्होंने स्वयं अपने को आफर किया है।’’
‘‘यह सब्जेक्ट मेरे लिए काफी इंटरेस्टिंग है।’’ डा0 शशिकांत ने कहा, ‘‘इससे पहले कि आप किसी और से कहते, मैंने सोचा क्यों न ये मौका खुद ही हथिया लिया जाये।’’
‘‘वेरी गुड।’’ इं- यशवंत ने कहा, ‘‘फिर तो हमारी मेहनत बच गयी एक अच्छे साइंटिस्ट को ढूंढ़ने की।’’
‘‘मैं फौरन अपना काम शुरू कर देना चाहता हूं।’’ डा0 शशिकांत ने कमिश्नर की ओर देखा।
‘‘ठीक है। आप अपना काम करिए। मैं जंगल जाकर अपना काम शुरू करता हूं।’’ इं- यशवंत ने उससे हाथ मिलाया और फिर बाहर की ओर बढ़ा। उसके साथ सब इं- कौड़िया भी था।
-------
दोनों को जंगलों के बीच भटकते काफी देर हो गयी थी।
‘‘मि0 कौड़िया, आपको पता है कि हमारा टार्गेट क्या है??’’
‘‘कौंध जाति का कोई ऐसा कबीला जो हमारी मदद कर सके।’’ इं- कौड़िया ने जवाब दिया।
‘‘सो तो है। लेकिन हमें उस देवी की तलाश् है, जिसका उस कैदी ने उल्लेख किया था।’’
‘‘मेरे ख्याल में तो ऐसी कोई जीवित देवी नहीं है। हम तो देवी धरनी की मूर्तियां बनाकर पूजा करते हैं।’’
‘‘हो सकता है अब वह देवी जीवित हो गयी हो।’’ इस तरह बातचीत करते हुए वे एक कबीले में पहुंच गये। सुबह का समय था। कबीले की औरतें चूल्हे जला रही थीं जबकि मर्द काम पर जाने की तैयारी कर रहे थे। इन दोनों को सबने अचरज से देखा, क्योंकि बाहरी लोग वहां कम ही आते थे।
‘‘मुझे यहां के मुखिया से मिलना है। किधर है वो??’’ कौड़िया ने उनकी भाषा में पूछा। दूर चौखट पर बैठा एक लम्बा तगड़ा व्यक्ति उठकर उनकी तरफ आया।
‘‘मैं हूं मुखिया। क्या बात है??’’ उसने पूछा।
‘‘हमें अपनी देवी का पता बताओ। जो तुम लोगों को शक्ति प्रदान करती है।’’ जब कौड़िया ने इं-यशवंत की बात मुखिया तक पहुंचायी तो वह खामोश् हो गया।
‘‘हम नहीं बता सकते।’’ थोड़ी देर बाद उसने जवाब दिया।
‘‘क्यो??’’
‘‘देवी नाराज हो जायेगी।’’
‘‘क्या इस कबीले के लोगों को भी उसने शक्ति दी है??’’ इं यशवंत ने सवाल बदल दिया।
‘‘हां। दो युवकों को।’’ मुखिया ने फिर संक्षिप्त उत्तर दिया।
‘‘किधर हैं वो लोग??’’
‘‘वो देवी की सेना में शामिल हो गये।’’
‘‘देवी की सेना?’’
जवाब में मुखिया ने बताया कि अद्भुत शक्ति प्राप्त करने के बाद वे जवान गहरे जंगल में किसी अज्ञात स्थान पर रहने लगते हैं। वह स्थान, जो देवी का निवास है। फिर देवी के आदेश् पर वे जंगल से बाहर निकलकर लड़ाई करते हैं। फिर वापस हो जाते हैं।
इं यश्वन्त और कौड़िया ने एक दूसरे की तरफ देखा
‘‘इसका मतलब वो देवी नहीं, कोई बुरी आत्मा है जो लोगों को आपस में लड़ा रही है।’’
जब मुखिया तक यह बात पहुंची तो वह थर थर काँपने लगा। फिर बोला, ‘‘चुप हो जाओ तुम लोग। वरना देवी का कहर टूट पड़ेगा तुम्हारे ऊपर भी और हमारे ऊपर भी। भाग जाओ यहाँ से।’’
उसने आगे कहा, ‘‘और हम देवी का पूरा समर्थन करते हैं। वह बाहरी लोगों से लड़ रही है जो यहां आकर हमारा अस्तित्व खत्म कर रहे हैं।’’
अब तक मुखिया के आसपास काफी लोग इकट्‌ठा हो गये थे इसलिए इं- यश्वन्त ने यही तय किया कि चुपचाप वहां से हट जाये।
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जब इं-यश्वन्त कमिश्नर के पास पहुंचा तो कमिश्नर कहीं जाने के लिए तैयार हो रहा था।
‘‘मैं तुम्हारा ही इंतिजार कर रहा था इंस्पेक्टर। हमें फौरन चलना है।’’
‘‘कहां?’’
‘‘डा0 शशिकांत ने हमें अपनी लैब में बुलाया है। कुछ खास बताने के लिए।’’
जब दोनों डा0 शशिकांत की लैब में पहुंचे तो उसे इंतिजार करते हुए पाया।
‘‘मैंने उस व्यक्ति की कोशिकाओं के नमूने की जांच की और मुझे बहुत विस्मयकारी बातें पता चली हैं। आईए, मैं आपको दिखाता हूं।’’
वह उन्हें लेकर लैब के एक कमरे में पहुंचा जहां कम्प्यूटर तथा उससे अटैच्ड प्रोजेक्टर मौजूद था। उसने कम्प्यूटर और प्रोजक्टर चालू किया और सामने स्क्रीन पर कुछ स्लाइड्‌स दिखने लगीं।
‘‘ये पूरा मामला है इवोल्यूशन का। मैंने उस व्यक्ति की एक कोशिका की स्लाइड तैयार की है। देखिए।
स्क्रीन पर कोशिका का मैग्नीफाइड चित्र दिख रहा था। उसने उस चित्र को और बड़ा करना शुरू किया। अब कोशिका का एक एक भाग स्पष्ट दिख रहा था।
‘‘आप इसके माइटोकान्ड्रिया को गौर से देखें। माइटोकान्ड्रिया कोशिका का पावर प्लांट होता है। क्योंकि ये ए-टी-पी- नाम की केमिकल एनर्जी तैयार करता है। यह कोशिका के दूसरे भागों से ग्लूकोज और एन-ए-डी-एच- जैसे पदार्थों को लेकर आक्सीजन की उपस्थिति में ए-टी-पी- का निर्माण करता है। इस अभिक्रिया में एक इलेक्ट्रोन ट्रांसपोर्ट चेन का निर्माण होता है जो ए-टी-पी- तैयार करके समाप्त हो जाती है।
यह पूरी अभिक्रिया माइटोकान्ड्रिया में उपस्थित एक डी-एन-ए- कण्ट्रोल करता है।’’
स्क्रीन पर अब उस डी-एन-ए- का चित्र दिखाई पड़ रहा था।
‘‘सारी गड़बड़ की जड़ यही डी-एन-ए- है।’’
‘‘वह किस तरह??’’ कमिश्नर ने पूछा।
‘‘इस डी-एन-ए- में कुछ डिफेक्ट पैदा हो गया है। नतीजे में ए-टी-पी- बनने की प्रक्रिया बीच ही में छूट जाती है। और इलेक्ट्रोन ट्रांसपोर्ट चेन टूटकर इलेक्ट्रोन को मुक्त कर देती है। ये मुक्त इलेक्ट्रोन कोशिका की दीवार से बाहर आ जाते हैं।
इस तरह करोड़ों इलेक्ट्रोन शरीर के बाहरी हिस्से में इकट्‌ठा होकर एक इलेक्ट्रिक तनाव पैदा करने लग गये। नतीजे में वह व्यक्ति एक जीता जागता बिजलीघर बन गया।’’
‘‘ओ माई गॉड। लेकिन डी-एन-ए- में ऐसा परिवर्तन आया क्यो??’’ इं-यश्वन्त ने पूछा।
‘‘शायद इवोल्यूशन की वजह से। और यह इवोल्यूशन हुआ है प्रदूषण की वजह से। दरअसल कौंध जनजाति हमेशा जंगलों के बीच रही है। लेकिन अब उन जंगलों के बीच पहाड़ियों को काटकर बड़ी बड़ी फैक्ट्रियां लग रही हैं। खनिज निकालने के लिए बड़ी बड़ी मशीनें लगातार खुदाई कर रही हैं। जब मशीनों से पहाड़ियां कटती हैं तो धूल के साथ बहुत सी धातुएं इनके शरीरों में घुस रही हैं। जिससे इनके शरीर की बनावट गड़बड़ा रही है। और इस तरह की समस्या पैदा हो रही है।’’
‘‘ठीक है। ये बात तो समझ में आ गयी। लेकिन सवाल ये है कि फिर ये दूसरों पर हमले क्यों कर रहे हैं।’’
‘‘इनके जिस्म में दौड़ने वाली बिजली इनके मस्तिष्क पर भी असर डाल रही है। जिससे ये अत्यन्त उग्र व पागल हो रहे हैं। साथ ही इनके दिमाग में कहीं न कहीं बाहरी लोगों के लिए नफरत भी पनप रही है, जो इनके अस्तित्व के लिए खतरा बन रहे हैं।’’
‘‘और देवी वाली बात?’’
‘‘चूंकि ये बहुत ज्यादा धार्मिक होते हैं और रोज देवी की पूजा करते हैं। इसलिए पागलपन की दशा में वही देवी इनके दिमाग में छा जाती है।’’
‘‘इसका हल क्या होना चाहिए?’’
‘‘यही कि जहां जहां भी ये रहते हैं, वहां बाहरी लोगों के जाने से रोक लगा देनी चाहिए। कोई विकास कार्य, कोई हाई वे वहां न बने। खास तौर से उस कंपनी पर फौरन रोक लगनी चाहिए जो बाक्साइट की खुदाई करते हुए काफी अंदर तक पहुंच चुकी है।’’ डा0 शशिकांत ने कमिश्नर की तरफ देखा।
‘‘तुम ठीक कहते हो। जबसे उस कंपनी ने बाक्साइट की खुदाई शुरू की है, उसके बाद ही से फसाद भी शुरू हुए है।’’ कमिश्नर ने कहा।
‘‘हां। क्योंकि उस कंपनी के काम शुरू करने के बाद हवा में प्रदूषण एकाएक बहुत बढ़ गया और कौंध के लोगों में इवोल्यूशन होने लगा।’’
‘‘मुझे ये बात मुख्यमन्त्री और सरकार तक पहुंचानी होगी। मुझे नहीं लगता कि सरकार आसानी से वहां कंपनी को मना करेगी। लेकिन कौंध जनजाति का मामला भी गंभीर है।’’ कमिश्नर कुछ सोचने लगा।
-------continued

Saturday, March 21, 2009

कहानी - दंगाई बंजारे (1)

लेखक - जीशान जैदी
(पूरी कहानी PDF फॉर्मेट में पढने के लिए टाइटिल पर क्लिक करें.)
Completed At : 21 March 2009

टी-वी- पर दिखने वाले सभी न्यूज चैनल इस समय एक ही खबर दिखा रहे थे। खबर भी कुछ ऐसी ही रोचक थी कि लोग टी-वी- के सामने से हट ही नहीं रहे थे।
खबर उड़ीसा के ताज़ा तरीन दंगों पर आ थी। दंगे भी कैसे। जंगलों में निवास करने वाली शांतिप्रिय कौंध जनजाति के लोग अचानक आक्रामक हो गये थे। पिछले कई दिनों से वे आसपास के शहरों में लोगों को अपना निशाना बना रहे थे। किस मुद्दे पर वे आक्रामक हुए हैं, किसी की समझ में नहीं आ रहा था।
लेकिन लोगों के टी-वी- से चिपके रहने की ये वजह नहीं थी। भारत एक विशाल देश है जहा अपने अपने मुद्दों को लेकर लोग अक्सर एक दूसरे से लड़ा करते हैं। और फिर एक भी हो जाते हैं।
विस्मयकारी चीज उनके लड़ने का ढंग थी। शहर में दौड़ते हुए वे जिस किसी को पकड़ लेते थे, वह इस तरह अकड़ जाता था मानो उसे ज़ोरदार बिजली का झटका लगा गया है। फिर उसकी लाश ही मिलती थी।
दंगाईयों पर काबू पाने के लिए स्थानीय पुलिस बल के साथ पी-ए-सी- और सी-आर-पी- भी कोशिश कर रही थी लेकिन ये लोग गुरिल्ला पद्धति से वार कर रहे थे। थोड़ी देर के लिए जंगल से बाहर आते और तबाही मचाकर फिर जंगल और पहाड़ियों में छुप जाते। इसलिए उनपर काबू पाना बहुत मुश्किल हो रहा था।
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इस समय उड़ीसा के पुलिस कमिश्नर ने इंस्पेक्टर्स की मीटिंग बुलाई थी।
‘‘बहुत बदनामी हो रही है हमारी। आप लोग क्यों नहीं इस फसाद पर कण्ट्रोल कर पा रहे हैं??’’ कमिश्नर ने इंस्पेक्टर्स की तरफ देखा।
‘‘क्यों न हम पूरी कौंध जनजाति का गोलियों से सफाया कर दें।’’ एक इंस्पेक्टर ने सुझाया।
‘‘पूरी जनजाति फसाद नहीं फैला रही है। केवल उनमें से कुछ लोग ये हरकत कर रहे हैं।’’ कमिश्नर ने इंस्पेक्टर को घूरा और वह चुप हो गया।
‘‘तुम लोग अपना दिमाग लगाओ और सोचो कि उनपर कैसे काबू पाया जाये।’’
एक इंस्पेक्टर ने जेब से तंबाकू की पुड़िया निकाली और उसे हथेली पर लेकर मसलने लगा।
‘‘ये तुम क्या कर रहे हो इंस्पेक्टर प्रकाश ?’’ कमिश्नर ने उसे घूरा।
‘‘दिमाग लगाना है न, तो पहले टानिक ले लूं।’’ इं प्रकाश ने एक झटके में तंबाकू हलक के अंदर उंडेल ली और मुंह चलाने लगा। फिर उसे निगलने के बाद बोला, ‘‘मेरा विचार है कि जंगलों के चारों तरफ दीवार खड़ी कर दी जाये।
कमिश्नर का चेहरा गुस्से के कारण सुर्ख हो गया। लेकिन वह कुछ बोल नहीं पाया। उसे पता था कि इंस्पेक्टर प्रकाश केन्द्रीय मंत्री का करीबी है और नोटों के सूटकेस पर उसका एप्वाइंटमेन्ट हुआ है।
उसी समय एक सिपाही ने अंदर आकर किसी का विज़िटिंग कार्ड कमिश्नर के सामने रखा।
‘‘हमने मुंबई ए-टी-एस- से इस बारे में मदद मांगी थी। उन्होंने अपना एक आदमी हमारे पास भेजा है। अब यह मीटिंग यहीं खत्म होती है। मुझे उससे मिलकर आगे की प्लानिंग करनी है।’’
वहा मौजूद इंस्पेक्टर्स के चेहरे बिगड़ गये। एक बाहर का आदमी उनपर वरीयता ले जाये, यह यकीनन खलने वाली बात थी।
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इंस्पेक्टर यशवंत ने इससे पहले कई टेढ़े मेढ़े केस हल किये थे। विशेष रूप से बाहरी आतंकवादियों से सम्बंधित।
‘‘क्या उन दंगाईयों में से कोई पकड़ा गया है अब तक?’’ इं- यशवंत ने कमिश्नरसे सवाल किया।
‘‘जिन्दा तो कोई नहीं पकड़ा गया। हां कुछ को मार गिराने में ज़रूर कामयाबी मिली है पुलिस को।’’
‘‘क्या उनके शरीर में इलेक्ट्रिक करेंट पैदा करने की कोई चीज़ पायी गयी?’’
‘‘नहीं। न ही पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कोई विशेष बात पायी गयी।’’
‘‘मुझे लगता है कोई जिन्दा दंगाई ही हमें कुछ सूत्र दे सकता है। मैं सोचता हूं दंगाग्रस्त क्षेत्र में रात गुजारी जाये।’’
‘‘जितनी फोर्स की जरूरत हो, बता दो। मैं इंतिजाम कर दूंगा।’’
‘‘फिलहाल मैं अकेले ही काम करना चाहता हूं।’’ कहते हुए इं-यशवंत उठ खड़ा हुआ।
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पहाड़ियों के बीच छुपते छुपाते इं-यशवंत को तलाश थी किसी कौंध जनजाति के व्यक्ति की, जिसे वह जिन्दा पकड़ना चाहता था।
जल्दी ही उसे एक व्यक्ति दिख भी गया। इस जनजाति के लोगों की पहचान बहुत आसान होती है। क्योंकि इन व्यक्तियों के होंठ के आसपास का हिस्सा ज़रूरत से ज्यादा उभरा होता है।
लेकिन असली समस्या थी यह पता लगाना कि यह उन दंगाईयों में शामिल था या नहीं। इं-यशवंत ने अब जोखिम लेने का निर्णय लिया और एकाएक पीछे से उसे आवाज दी। इस समय वहां दोनों के अलावा और कोई नहीं था।
आवाज सुनकर वह व्यक्ति पीछे मुड़ा और इं- यशवंत को देखकर गुस्से में उसकी तरफ बढ़ा। उसका दायां हाथ हवा में उठ गया था। मतलब साफ था। वह एक दंगाई था और इं- यशवंत की जान लेना चाहता था।
इं- यशवंत ने फौरन जेब से पिस्टल निकाली और उसकी तरफ रुख करके ट्रिगर दबा दिया। पिट्‌ की आवाज हुई और वह व्यक्ति आगे पीछे झूमने लगा। इं- यशवंत की इस पिस्टल से दरअसल गोली न निकलकर बेहोशी का इंजेक्शन बाहर आता था जो सामने वाले को सेकंडों में बेहोश कर देता था।
उसके बेहोश होते ही इं- यशवंत दौड़कर उसके पास पहुंचा और उसे उठाने का प्रयास करने लगा। लेकिन बिजली के तेज झटके ने उसका पूरा जिस्म झनझना दिया।
‘‘इसका मतलब इसके पूरे जिस्म में करंट दौड़ रहा है। लेकिन यह कैसे संभव है??’’ बेयकीनी के भाव में उसने उसके जिस्म की ओर देखा।
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‘‘हमें अब जरूरत है एक अच्छे साइंटिस्ट की। जो उसके जिस्म का निरीक्षण कर असलियत का पता लगाये।’’ इं-यशवंत ने कमिश्नर से कहा। अब तक पकड़ा गया व्यक्ति एक अलग बैरक में बन्द किया जा चुका था। उसे वहां तक पहुंचाने में काफी एहतियात से काम लिया गया था।
‘‘क्या वह मेडिकल क्षेत्र का होना चाहिए??’’
‘‘हा। खासतौर से मोल्क्यूलर बायोलॉजी का माहिर। हमें उसकी एक एक कोशिका का बारीकी से अध्ययन करना होगा।’’
इस समय दोनों बातें करते हुए उस कैदी की बैरक की तरफ बढ़ रहे थे। क्योंकि उन्हें खबर मिली थी कि उसे होश आ चुका है।
उन्हें देखते ही कैदी आगे बढ़ा और बैरक की सलाखें पकड़कर चीखने लगा।
‘‘क्या कह रहा है यह?’’ इं-यशवंत ने पूछा।
‘‘कहता है कि इसे छोड़ दो वरना यह सबको मार डालेगा।’’ कमिश्नर चूंकि लोकल निवासी था इसलिए वहाँ की स्थानीय भाषायें समझता था।
‘‘इससे पूछिए कि ये लोगों की हत्याएं क्यों कर रहे हैं?’’
कमिश्नर ने उससे चीखकर यह प्रश्न पूछा। जवाब में उसने भी चीखकर कुछ कहा।
‘‘यह कहता है कि इसे अपनी देवी धरनी से ऐसा करने का आदेश मिला है। ये लोग धरनी की उपासना करते हैं।’’
‘‘यानि मामला धार्मिक है। फिर तो काफी गंभीर है। लेकिन इनकी देवी प्रकट कहां होती है??’’
कमिश्नर ने फिर उससे सवाल किया। उसने पुन: फौरन उत्तर दिया। उसका जवाब सुनकर कमिश्नर की आखें फैल गयीं।
‘‘अब क्या जवाब दिया इसने?’’
‘‘विश्वास नहीं होता। यह कहता है कि जंगल में एक मंदिर के अंदर देवी स्वयं प्रकट होती हैं और उन्हें अपने हाथों से शक्ति प्रदान करती है। यह शक्ति मिलने के बाद ये लोग जिसपर हाथ रखते हैं, वह वहीं खत्म हो जाता है।’’
‘‘मामला वाकई कुछ ज्यादा ही इंटरेस्टिंग है। अब तो मुझे भी उस देवी से मिलना पड़ेगा। और शक्ति हासिल करनी पड़ेगी। मेरा ख्याल है जब तक यहाँ साइंटिस्ट इसके जिस्म की जांच करें, मैं जंगल होकर आता हूं।’’
‘‘वहां जाना खतरे से खाली नहीं।’’
‘‘खतरों से खेलने के लिए ही मैं इस पेशे में आया हूं।’’
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