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Monday, December 21, 2009

प्लैटिनम की खोज - अंतिम एपिसोड (78)


चेयरमैन ने कहना आरम्भ किया, ‘‘हमारी कंपनी आर-डी-बी-ए- अर्थात रीजनल डेवलपमेन्ट फॉर बिजनेस एप्लीकेशंस का कार्य है जंगलों, बीहड़ों इत्यादि में रहने वाली जंगली जनजातियों के बारे में जानकारी प्राप्त करना। जब हमारी पार्टी इस ओर आती थी तो अक्सर जंगल के छोर पर कुछ जंगली हमें दिखाई पड़ते थे। इसका अर्थ था कि जंगल के अन्दर कोई न कोई बस्ती अवश्य  बसी है। इसी बस्ती के अध्ययन के लिए आप लोगों को चुना गया।’’

‘‘लेकिन हमें तो प्लेटिनम की खोज के लिए वहां भेजा गया था।’’ प्रोफेसर ने कहा।
‘‘हां। क्योंकि हमने अपने इस प्रोजेक्ट का नाम आपरेशन प्लेटिनम डिस्कवरी रखा था। क्योंकि किसी नयी जनजाति की खोज हमारे लिए प्लेटिनम से कम महत्वपूर्ण नहीं है। चूंकि इस कार्य में काफी जोखिम था। जंगली जनजाति का व्यवहार किस प्रकार का होगा, हमें नहीं मालूम था। अत: इस कार्य के लिए हमने स्वयं न जाकर आप जैसे जाँबाजों को भेजा।’’ चेयरमैन की बात पर तीनों के चेहरे गर्व के कारण फूल गये। उन्हें इसका भी ध्यान नहीं था कि वे बलि के बकरे बनाये गये हैं।

‘‘किन्तु यह फिल्म किस प्रकार बनी?’’ रामसिंह ने पूछा।
‘‘आप लोगों को जो बेल्ट दी गयी थी, उसमें पावर फुल माइक्रो कैमरे और ट्राँस्मीटर लगे हुए थे जो बहुत छोटी बैटरी से चलते थे। वह बैटरी भी उसी बेल्ट में लगी थी। ये कैमरे तथा ट्राँस्मीटर तस्वीर और आवाजों को कैच करके उस बिल्डिंग तक पहुंचा देते थे जहां एक रिसीवर उन्हें कैच कर लेता था। इस प्रकार यहां बैठे बैठे एक फिल्म तैयार हो गयी।

रामसिंह एक ठण्डी साँस लेकर बोला, ‘‘और हम लोग मुफ्त में बलि का बकरा बन गये।’’
‘‘मुफ्त में नहीं। आप लोगों का परिश्रमिक तैयार है।’’ चेयरमैन ने मेज की दराज खोलकर तीन लिफाफे निकाले और तीनों की ओर बढ़ाते हुए बोला, ‘‘हर लिफाफे में पचास पचास हजार रुपये मौजूद हैं साथ में घर जाने के लिए प्लेन का टिकट भी। अभी थोड़ी देर में हमारी कार आयेगी जो आप लोगों को एयरपोर्ट पहुंचा देगी। और हां। जो झोंपड़ी आपको जंगल यात्रा से पहले मिली थी, वह हम लोगों ने बनवायी थी। आपके आवास के लिए।’’
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इसके एक सप्ताह बाद!
‘‘क्यों प्रोफेसर क्या हो रहा है?’’ शमशेर सिंह रामसिंह के साथ प्रोफेसर के कमरे में प्रविष्ट हुआ।

‘‘मैं ऐसे कैमरे का आविष्कार कर रहा हूं जो दूर की तस्वीरों को कैच करके मेरे पास भेज सके।’’ किसी पुराने रेडियो के पुर्जे निकालते हुए प्रोफेसर ने कहा।
‘‘उस कंपनी ने रकम तो अच्छी खासी दे दी।’’ शमशेर सिंह बोला।

‘‘पचास हजार रुपल्ली अच्छी रकम है? इतने का तो सामान मैं जंगल में छोड़ आया। अब मुझे नये सिरे से अपनी प्रयोगशाला के लिए सामान लेना पड़ेगा।’’ प्रोफेसर ने झल्लाहट भरे स्वर में कहा।

‘‘क्यों रामसिंह, तुम्हारे और हमारे लिए तो ठीक है वह रकम?’’ शमशेर सिंह ने रामसिंह को ठहोका दिया, जो किसी विचार में गुम था।
‘‘मुझसे कुछ मत बोलो। हाय मेरी मोली तू वहीं जंगल में छूट गयी और मैं यहां अकेला बोर हो रहा हूं। किन्तु तू चिन्ता मत करना। मैं तेरा गम गलत करने के लिए कल ही से महिला कालेजों के चक्कर काटना शुरू कर दूंगा।’’ रामसिंह भर्रायी हुई आवाज में आँखों पर हाथ रखे हुए कह रहा था। जबकि प्रोफेसर और शमशेर सिंह कभी उसकी ओर तो कभी एक दूसरे की ओर देख रहे थे।

--समाप्त--

जीशान हैदर जैदी 

Sunday, December 20, 2009

प्लैटिनम की खोज - एपिसोड : 77


‘‘अब आप लोग अपनी कमर में लगी बेल्ट उतारकर हमें दे दीजिए।’’ चेयरमैन उनसे संबोधित हुआ। बाकी दोनों डायरेक्टर मौन थे।
‘‘क्या मतलब?’’ शमशेर सिंह ने आ’चर्य से पूछा।

‘‘आपको याद होगा कि ये काले सूट जो आपने पहन रखे हैं, कम्पनी की ओर से इस निर्देश के साथ दिये गये थे कि इन्हें कभी नहीं उतारना है। यह बेल्ट्‌स भी इन्हीं सूटों का हिस्सा है। अब अपनी बेल्ट्‌स उतारकर हमें दे दीजिए ताकि हम आगे की कहानी सुना सकें।’’
तीनों ने अपनी अपनी बेल्ट्‌स उतारकर आगे बढ़ा दीं। जिन्हें एक डायरेक्टर ने अपने सामने लगी मेज की दराज में रख दिया।

इससे पहले कि मैं कहानी आरम्भ करूं, मैं कुछ दिखाना चाहता हूं। आप लोग मेरे साथ आईए।’’ चेयरमैन ने उठते हुए कहा। उसके साथ साथ बाकी डायरेक्टर और प्रोफेसर इत्यादि भी उठ खड़े हुए।
ये लोग उसी बिल्डिंग के दूसरे कमरे में पहुंचे। यहां सामने एक बड़ी सी स्क्रीन दिखाई पड़ रही थी और कमरे के बीचोंबीच एक प्रोजेक्टर रखा हुआ था।

‘‘प्रोजेक्टर चालू कीजिए मि0 शोरी ।’’ चेयरमैन ने एक डायरेक्टर को संबोधित किया फिर प्रोफेसर इत्यादि से कहने लगा, ‘‘अब मैं आप लोगों को एक फिल्म दिखाऊंगा।’’

‘‘लेकिन हम लोगों को आप कोई कहानी सुनाने जा रहे थे। क्या उसी कहानी पर बनी फिल्म है यह?’’ शमशेर सिंह ने पूछा।
‘‘ऐसा ही समझिए।’’

कमरे में अँधेरा कर दिया गया। फिर फिल्म चलने लगी। फिल्म के दृश्य देखते ही इन तीनों के मुंह भाड़ से खुल गये। और मस्तिष्क कलाबाजियां खाने लगा। क्योंकि पूरी फिल्म उन्हीं दोनों की जंगल यात्रा पर बनी थी। हर दृश्य वही था जो वे जंगल में भुगत चुके थे।

फिल्म चलती रही और वे तीनों इस प्रकर जड़वत होकर उसे देख रहे थे मानो उनके शरीरों से आत्माएं निकल चुकी हों।
लगभग आधा घंटा दिखाने के बाद चेयरमैन ने प्रोजेक्टर बन्द कर दिया और लाइट ऑन कर दी।

कुछ देर तक तीनों उसी प्रकार जड़वत बैठे रहे फिर रामसिंह की मरी हुई आवाज सुनाई दी, ‘‘य--ये--सब क्या है? ये कैसे हुआ?’’
‘‘अभी सब कुछ आप लोगों की समझ में आ जायेगा। आईए वापस उसी कमरे में चलते हैं।
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Saturday, December 19, 2009

प्लैटिनम की खोज - एपिसोड : 76


‘‘प्रोफेसर, हम जंगल से बाहर निकल आये।’’ शमशेर सिंह प्रसन्नता के कारण प्रोफेसर से लिपट गया।
‘‘हां। अब हमें तुरन्त सड़क पर पहुंच जाना चाहिए। फिर किसी ट्रक इत्यादि से लिफ्ट लेकर हम लोग आराम से सभ्य व्यक्तियों की आबादी में पहुंच जायेंगे।’’ प्रोफेसर ने कहा और वे लोग तालाब का चक्कर काटकर सड़क की ओर बढ़ने लगे। रामसिंह एकदम मौन था। उसके मस्तिष्क पर अभी भी मोली की यादें छायी थीं।

जब वे लोग सड़क के पास पहुंचे तो उन्हें कुछ आवाज़ें सुनायी पड़ीं। आवाज की दिशा में देखने पर उन्हें एक और दृश्य दिखाई दिया। जो उस सुनसान स्थान पर उनके लिए अप्रत्याशित था।

‘‘प्रोफेसर, वहां पर तो मकानों का निर्माण चल रहा है।’’ शमशेर सिंह ने आश्चर्य से कहा।
‘‘हां। लगता है जैसे कोई बड़ी बिल्डिंग बनायी जा रही है। और वहां मशीनें भी लगी हैं।’’ प्रोफेसर ने इधर उधर देखते हुए कहा।

‘‘क्यों न हम लोग उधर ही चलें। वहां से हमें आसपास के शहर का पता भी मिल सकता है। और लिफ्ट भी मिल सकती है।’’ शमशेर सिंह बोला। जिसपर सर हिलाकर दोनों ने अपनी सहमति दी और उधर की ओर बढ़ने लगे।
जब वे लोग उस स्थान के पास पहुंचे तो उन्होंने देखा कि एक इमारत पूरी तरह तैयार हो चुकी थी और दो का निर्माण चल रहा था। उन लोगों ने पूर्णत: निर्मित इमारत की ओर रुख किया। वहां जनरेटर चल रहा था और उसकी सहायता से इमारत के अन्दर प्रकाश व्यवस्था थी।

दरवाजे के पास पहुंचकर प्रोफेसर ने काल बेल पर उंगली रखी। थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला और एक व्यक्ति उनकी ओर प्रश्नात्मक दृष्टि से देखने लगा। वह कोई नौकर प्रतीत हो रहा था।
‘‘हमें इस मकान के मालिक से मिलना है।’’ प्रोफेसर ने अंग्रेजी में उससे बात की।
‘‘अन्दर आ जाईए।’’ वह बोला। और अन्दर की ओर बढ़ गया। प्रोफेसर इत्यादि उसके पीछे थे।

एक कमरे के सामने जाकर वह रुक गया जिसका दरवाजा बन्द था। उसने इन्हें संबोधित किया, ‘‘दरवाजा खोलकर अन्दर चले जाईए।’’ कहकर वह वापस पलट गया।
शमशेर सिंह ने दरवाजे को धक्का दिया और तीनों ने एक साथ अन्दर कदम रखा। 

किन्तु अन्दर कदम रखते ही तीनों के मस्तिष्क भक से उड़ गये।

आर-डी-बी-ए- कंपनी के चेयरमैन मि0 जमशेद अपने दोनों डायरेक्टरों के साथ सामने बैठे मुस्कुरा रहे थे।
‘‘क्या मैं कोई सपना देख रहा हूं।’’ प्रोफेसर ने भर्रायी हुई आवाज में कहा।

‘‘फिलहाल तो यह हकीकत है। हम लोग बहुत देर से यहां बैठे आप लोगों की प्रतीक्षा कर रहे थे।’’ चेयरमैन ने कहा।
‘‘आपको कैसे पता कि हम यहां आने वाले थे।’’ प्रोफेसर ने हैरत से पूछा।

‘‘अभी सब कुछ स्पष्ट हो जायेगा। फिलहाल आप लोग तशरीफ़ रखिए।’’ चेयरमैन ने तीनों को बैठने का संकेत किया और प्रोफेसर इत्यादि सामने रखी कुर्सियों पर बैठ गये।

Friday, December 18, 2009

प्लैटिनम की खोज - प्लैटिनम जुबली एपिसोड : 75


‘‘बस। अब आगे आप लोगों को अकेले जाना होगा। क्योंकि भूतों के डर से हम आगे नहीं जाते। अपने साथियों को भी हम यहीं छोड़कर चले जाते हैं। आगे जाने के लिए वह रही पगडंडी।’’ कोचवान ने आगे की ओर संकेत किया।
‘‘ठीक है। हम यहीं उतर जाते हैं। किन्तु रामसिंह का क्या किया जाये? यह तो सो रहा है।’’ प्रोफेसर ने ठंडी सांस लेकर कहा।

‘‘इसे उठाकर उतार लेते हैं। वरना जागने पर यह फिर शोर मचाने लगेगा।’’ शमशेर सिंह बोला। फिर दोनों ने यही किया।
कोचवान उन्हें वहीं छोड़कर गाड़ी सहित वापस मुड़ गया।
‘‘क्या विचार है? आगे बढ़ा जाये?’’ प्रोफेसर ने पूछा।

‘‘पागल मत बनो। आगे क्या भूतों से कुश्ती लड़ने जाओगे।’’ शमशेर सिंह ने तुरन्त प्रोफेसर की कमीज पकड़ ली।
‘‘किन्तु रामसिंह के इलाज के लिए वहां जाना आवश्यक है। मेरा विचार है कि वे भूत पागलों के डाक्टर हैं।’’

‘‘तो फिर जब रामसिंह जागेगा तो इसे वहां अकेले भेज देंगे।’’ शमशेर सिंह ने समझाया। तभी प्रोफेसर ने उसे चुप रहने का संकेत किया और कान खड़े करके कुछ सुनने लगा।
‘‘तुमने कुछ सुना?’’ उसने शमशेर सिंह को संबोधित किया।
‘‘क्या?’’

‘‘यह किसी ट्रक की आवाज थी, और यह सामने से आयी थी।’’
‘‘भला यहां ट्रक कहां से आ गया?’’ शमशेर सिंह ने विस्मय से कहा।

‘‘सरदार ने यही कहा था कि यह जंगल का छोर है। अब मुझे कोचवान की बातें कुछ कुछ समझ में आ रही हैं।’’
‘‘क्या मतलब?’’

‘‘उसने जिस काली पट्‌टी का उल्लेख किया है वह तारकोल की सड़क होगी। इन जंगलियों ने ट्रक इत्यादि देखे होंगे जिन्हें अजीब प्रकार की गाड़ियां कहकर संबोधित किया गया। मुझे लगता है यहां भूत वूत कुछ नहीं हैं बल्कि हम अपनी सभ्य दुनिया में वापस आ गये हैं।’’
‘‘मुझे भी यही लगता है। चलो हम लोग आगे बढ़ते हैं।’’ शमशेर सिंह ने खुश होकर कहा।

‘‘ठीक है। रामसिंह को कंधे पर लादकर आगे बढ़ते हैं।’’ प्रोफेसर ने रामसिंह को उठाने का प्रयत्न किया। उसी समय रामसिंह की आँख खुल गयी।
‘‘मैं कहां हूं? और मेरा सर क्यों चकरा रहा है?’’ वह अपना सर पकड़कर उकड़ूं बैठ गया।
‘‘तुम दोस्तों के बीच हो और हम लोग जंगलियों की बस्ती से भाग कर दूर निकल आये हैं।’’ प्रोफेसर ने बताया।

‘‘क्या?’’ रामसिंह उठकर खड़ा हो गया, ‘‘और मेरी मोली का क्या हुआ?’’
‘‘मेरा विचार है कि मोली अपने कबीले में इस समय भोजन बना रही होगी। क्योंकि रात होने वाली है।’’

‘‘तुम लोग बिना मुझसे पूछे बस्ती से दूर निकल आये। अब मेरे उन वादों का क्या होगा जो मैंने मोली से किये थे।’’ रामसिंह क्रोधित स्वर में बोला।
‘‘वह वादे कोई और पूरा कर देगा। भला देवताओं का प्रेम से क्या सम्बन्ध ’’शमशेर सिंह बोला, ‘‘अब आगे बढ़ो, फिर मालूम होगा कि वहां क्या है।’’

‘‘तुम लोग आगे बढ़ो। मैं मोली के पास वापस जा रहा हूं। मेरे बिना उसे चैन नहीं लग रहा होगा।’’ रामसिंह मुड़कर वापस जाने लगा, किन्तु प्रोफेसर ने उसकी टाँग पकड़ ली। फलस्वरूप वह मुंह के बल जमीन पर चला आया।
‘‘शहर में अनेकों लड़कियां मिल जायेंगी। फिर मोली ही क्यों। तुम वापस चलो। मैं दस लड़कियों से एक साथ तुम्हारा प्रेम करवा दूंगा।’’ प्रोफेसर उसे समझाते हुए बोला।

‘‘मुझे दस लड़कियां नहीं चाहिए। मुझे तो केवल मोली चाहिए।’’ रामसिंह ने भी जिद पकड़ ली थी।
‘‘ठीक है। तो जाओ वापस।’’ प्रोफेसर झल्लाकर बोला, ‘‘किन्तु वहां तक जाओगे कैसे। वह बस्ती तो बीसियों मील पीछे छूट चुकी है। अब तो उसका पता भी नहीं लगेगा। और अगर कहीं आदमखोर कबीले वाले मिल गये तो मोली क्या तुम्हारा पता भी नहीं लगेगा।’’

रामसिंह बेबसी से होंठ काटने लगा। किन्तु अब वह ढीला पड़ गया।
फिर वह प्रोफेसर इत्यादि के साथ आगे बढ़ने पर तैयार हो गया।
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जैसे ही वे लोग पेड़ों के झुरमुट और झाड़ियों की लम्बाई फांदकर आगे बढ़े, उनके चेहरे ख़ुशी के कारण चमकने लगे। सामने एक लम्बा चौड़ा तालाब दिखाई दे रहा था। किन्तु उनकी खुशी का कारण वह तालाब नहीं बल्कि तालाब के दूसरी ओर दिखाई देने वाली पक्की सड़क थी।

Thursday, December 17, 2009

प्लैटिनम की खोज - एपिसोड : 74


‘‘चिन्ता मत करो। तुम्हारा सामान लेकर भी कोई तुम्हारे जैसा वैज्ञानिक नहीं बन सकता।’’ शमशेर सिंह ने प्रोफेसर के कंधे पर हाथ रखकर कहा।
रामसिंह अब आराम से खर्राटे ले रहा था। सपनों की दुनिया में मग्न उसे इस बात का कोई होश नहीं था कि इस समय उसे उसकी प्रेमिका की बस्ती से मीलों दूर ले जाया जा रहा है।

‘‘क्यों भाई शान्ति कुंज अभी कितनी दूर है?’’ प्रोफेसर ने कोचवान से पूछा।
‘‘अभी बहुत दूर है। किन्तु शाम तक हम पहुंच जायेंगे।’’ कोचवान ने जवाब दिया।
‘‘यह किस प्रकार का स्थान है?’’ शमशेर सिंह ने पूछा।

‘‘शान्ति कुंज ऐसा स्थान है जहां हम उन व्यक्तियों को छोड़ते हैं जिन्हें जलाल आ जाता है। कुछ समय वहां अकेले बिताने के बाद वह व्यक्ति शांत हो जाता है। कभी कभी पूरी तरह शांत हो जाता है। अर्थात उसकी मृत्यु हो जाती है।’’ कोचवान बता रहा था।
‘‘किन्तु वहां पर क्या है?’’ प्रोफेसर ने पूछा।

‘‘ वहां अजीब अजीब वस्तुएं दिखाई देती हैं। हमें तो वह भूतों का डेरा मालूम होता है।’’
‘‘क-- क्या! फिर वहां क्यों जा रहे हो?’’ शमशेर सिंह काँपते हुए बोला। दोनों की हालत पतली होने लगी थी।

‘‘मुझे यही आदेश मिला है। किन्तु मैं वहां तक नहीं जाऊंगा। बल्कि कुछ दूर पर आप लोगों को छोड़कर वापस पलट आऊंगा।’’
‘‘तो क्या हमें भूत नहीं परेशान करेंगे?’’ शमशेर सिंह ने पूछा।

‘‘नहीं। क्योंकि आप लोग देवता पुत्र हैं। भला भूतों की क्या मजाल कि वे आपसे छेड़खानी करें।’’
शमशेर सिंह ने कहना चाहा कि वह कोई देवता वगैरा नहीं है। बल्कि उन्हीं की तरह अँधेरे से डरने वाला एक मनुष्य है। लेकिन फिर बनी बनाई इज्जत मिट्‌टी में मिलने के डर से खामोश रहा।

प्रोफेसर ने पूछा, ‘‘तुमने यह तो बताया ही नहीं कि वहां पर कौन सी अजीब वस्तुएं दिखाई देती हैं?’’
‘‘वहां पर हमें ऐसी गाड़ियां दिखाई देती हैं जो बहुत तेज चलती हैं। किन्तु आगे कहीं कोई जानवर जुता हुआ नहीं दिखाई देता। वहां पर एक बहुत लम्बी चौड़ी काली पट्‌टी है जिसका छोर हमें कभी नहीं दिखाई दिया। वहां पर एक लम्बा चौड़ा तालाब भी है। उस तालाब के दूसरे छोर पर हम कभी नहीं गये क्योंकि उधर की ऊंची ऊंची झाड़ियों के पीछे से अजाब प्रकार की आवाजें सुनाई देती हैं। लगता है मानो सैंकड़ों भूत मिलकर चिल्ला रहे हों।’’ कोचवान बता रहा था।

‘‘किन्तु वहां हम लोग किस स्थान पर रुकेंगे?’’ प्रोफेसर ने पूछा।
‘‘तालाब के इसी ओर एक झोंपड़ी बनी है। उसी झोंपड़ी में आपके ठहरने का प्रबंध किया गया है।’’
‘‘यह प्रबंध कैसे कर दिया गया? क्या किसी को मालूम था कि रामसिंह अचानक पागल हो जायेगा और हमें यहां आना पड़ेगा?’’

‘‘यह प्रबंध सदैव वहां रहता है क्यांकि अक्सर हम अपने साथियों को वहां भेजते रहते हैं।’’
उसके बाद प्रोफेसर ने कुछ नहीं पूछा। शमशेर सिंह भी मौन हो गया था। इस प्रकार बाकी रास्ता खामोशी के साथ तय हुआ।

अन्त में एक स्थान पर कोचवान ने गाड़ी रोक दी।

अगले प्लेटिनम जुबली एपिसोड में पढ़ें कुछ ख़ास.

Wednesday, December 16, 2009

प्लैटिनम की खोज - एपिसोड : 73


‘‘हे मेरे देवता। जब आपको शान्ति कुंज में शान्ति मिल जायेगी तो वापस पधारियेगा । हम आपका इंतिजार करेंगे।’’ सरदार ने झुक कर कहा।
‘‘अरे मेरे देवता। कहां जा रहे हैंं? अब मुझे अण्डे कौन देगा।’’ भीड़ को चीरती हुई मोली निकली और गाड़ी से चिमट गयी।

‘‘धीरज रखो । हम फिर आयेंगे।’’ प्रोफेसर ने उसे दिलासा दिया।
भैंसा गाड़ी आगे बढ़ने लगी। उसके साथ साथ जंगलियों ने भी आगे बढ़ना आरम्भ कर दिया। एक जंगली आगे बढ़ा और एक गट्‌ठर गाड़ी के अन्दर रख दिया।

‘‘ये क्या है?’’ प्रोफेसर ने पूछा।
‘‘इसमें गोभियां हैं। शान्ति कुन्ज में आप इन्हें भोजन के रूप में प्रयोग करियेगा।’’ सरदार ने कहा।
‘‘तो क्या वहां भोजन नहीं मिलता?’’ प्रोफेसर ने पूछा।

‘‘नहीं। क्योंकि वह कुन्ज जंगल की सीमा से बाहर है।’’ सरदार ने बताया।
गाड़ी अब बस्ती के बाहर निकल आयी थी । पीछे अब इक्का दुक्का जंगली रह गये थे। फिर वे भी लौट गये। अन्त में सरदार ने उनसे विदा ली।

रामसिंह अब ढीला पड़ गया था। उसे नींद आ रही थी। लम्बी उछल कूद ने उसे थका दिया था।
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गाड़ी अपनी रफ्तारसे आगे बढ़ रही थी। अचानक शमशेर सिंह घबरायी हुई आवाज में बोला, ‘‘प्रोफेसर! मुझे जल्दी से अपने पीछे छुपा लो।’’
‘‘क्यों क्या हुआ?’’ प्रोफेसर ने चौंक कर पूछा।

‘‘आदमखोरों के सरदार की बेटी सामने टहल रही है।’’ शमशेर सिंह ने एक ओर संकेत किया। जहां मोगीचना भ्रमण करती हुई अपने प्रेमी की विरह में उदास थी और कोई दर्द भरा गीत गा रही थी जो उसकी भारी आवाज में चारों ओर गूंज रहा था।
‘‘मेरा विचार है कि तुम्हें उसे जाकर दिलासा देना चाहिए।’’

‘‘चुप!’’ शमशेर सिंह ने प्रोफेसर का मुंह बन्द कर दिया, ‘‘यदि फिर ऐसी बात की तो मैं तुम्हें कंपनी के पिस्तौल से गोली -----अरे मेरा सूटकेस कहां गया। उसमें मेरा पिस्तौल था।’’ शमशेर सिंह इधर उधर देखने लगा।
‘‘ध्यान से सोचो,उसे कहां छोड़ा था तुमने ?’’ प्रोफेसर ने कहा।

‘‘ओह! उसे तो मैं आदमखोरों की बस्ती में छोड़ आया। कमबख्त मोगीचना ने मुझे ऐसा दौड़ाया कि मैं सूटकेस उठाना ही भूल गया।’’ शमशेर सिंह ने सर पकड़ कर कहा।

‘‘कोई बात नहीं। हमारे भी सूटकेस बस्ती में छूट गये हैं।’’ प्रोफेसर इत्मिनान से बोला। फिर घबरा कर कहने लगा, ‘‘अब क्या होगा, उसमें मेरा जाँघिया और बनियान था। अब मैं नहा के क्या पहनूंगा।’’
‘‘नहाने की आवश्यकता क्या है। तुम तो वैसे भी महीने में एक बार नहाते हो। तब तक हम शान्ति कुंज से वापस आ जायेंगे।’’

‘‘यह भी ठीक है। लेकिन मुझे डर है कि उस सूटकेस को कोई खोल न ले। उसमें मेरी चमत्कारी औषधियां रखी हैं। और मेरी प्रयोगशाला का समस्त सामान भी है। अगर किसी ने खोलने की कोशिश की तो सब चौपट हो जायेगा।’’ 

Monday, December 14, 2009

प्लैटिनम की खोज - एपिसोड : 72


‘‘फिर तो इसका हो गया कबाड़ा। अब तो इसका घंटों ठीक होना मुश्किल है।’’ शमशेर सिंह ने रामसिंह की ओर देखा जो अब मोली मोली रटने के साथ साथ एक हाथ कमर पर और दूसरा सर पर रखकर डाँस भी करने लगा था।
फिर उसी प्रकार डाँस करता हुआ वह बाहर निकल गया।

‘‘अरे। यह तो बाहर निकल गया। अभी बच्चे पागल समझकर उसपर पत्थर बरसाने लगेंगे।’’ शमशेर सिंह ने आशंका प्रकट की।
‘‘हमें उसके पीछे पीछे रहना चाहिए। वरना कुछ भी गड़बड़ हो सकती है।’’ प्रोफेसर दरवाजे की ओर बढ़ा। शमशेर सिंह ने भी उसका अनुसरण किया।

बाहर रामसिंह एक टीले पर खड़ा होकर जोर जोर से चिल्ला रहा था। कभी वह मुंह आकाश की ओर करके कुछ कहता था, कभी भूमि की ओर झुककर बोलता था। फिर अपने दायें बायें सर हिलाता था। उसके आसपास काफी भीड़ एकत्र हो गयी थी और यह भीड़ बढ़ती जा रही थी।
फिर भीड़ से दो तीन व्यक्ति निकलकर सरदार के झोंपड़े की ओर दौड़े।
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सरदार भीड़ को चीरता हुआ आगे बढ़ा और रामसिंह के आगे पहुंचकर दंडवत हो गया। उसकी देखा देखी बाकी जंगली भी लेट गये।
‘‘देवता पुत्र को जलाल आ गया है। देवता पुत्र हमसे क्रुद्ध हो गये हैं।’’ सरदार लेटा हुआ चिल्लाने लगा। बाकी जंगलियों के मुंह से डरी डरी आवाज़ें निकलने लगीं।

शमशेर सिंह और प्रोफेसर दूर खड़े हुए तमाशा देख रहे थे। रामसिंह ने छोटे छोटे पत्थर उठाकर जंगलियों की ओर फेंकना आरम्भ कर दिये।
सरदार खड़े होकर चीखा, ‘‘जल्दी से भैंसा गाड़ी ले आओ।’’ उसकी आज्ञा के पालन में दो तीन जंगली दौड़ पड़े।
कुछ देर बाद वहां भैंसा गाड़ी उपस्थित थी।

‘‘देवता को इस समय शान्ति चाहिए। उन्हें शान्ति कुंज में पहुंचा दो।’’ सरदार ने कहा।
दो तीन जंगलियों ने रामसिंह को पकड़ा और गाड़ी की ओर ले चले। 

रामसिंह लगातार अपने हाथ पैर चला रहा था। और साथ ही साथ बड़बड़ा रहा था, ‘‘अरे कोई मुझे ससुराल ले जा रहा है। मैं मायके चला जाऊंगा मुझे देखते रहियो। मेरा पिया घर आयेगा मेरे राम जी। कोई मुझे साजन की ससुराल पहुंचा दे। मेरे दिल में लगी है आग मेरा जीया जलता जाये। एक माचिस का सवाल है आग लगाने के लिए। मुझे तुमसे प्यार हो गया सजना, तुम मेंहदी सजा कर रखना, हाय रूठ गया मेरा बलमा, उफ टूट गया मेरा टखना।’’ उसने कराह कर कहा क्योंकि भैंसा गाड़ी से उसे ठोकर लगी थी।

‘‘ये तो बिल्कुल पागल हो गया है।’’ प्रोफेसर ने कहा।
‘‘लेकिन ये जंगली इसे ले कहां जा रहे हैं?’’ शमशेर सिंह ने पूछा।
‘‘हमें इसके साथ जाना चाहिए।’’ प्रोफेसर ने कहा और वे दोनों भैंसा गाड़ी की ओर बढ़े। जंगलियों ने तुरन्त उन्हें रास्ता दे दिया। वे दोनों भी रामसिंह के साथ भैंसा गाड़ी में बैठ गये। उनके बैठते ही भैंसा गाड़ी चल पडी। भैंसे को आगे बैठा एक जंगली हंका रहा था। 

Wednesday, December 9, 2009

प्लैटिनम की खोज - एपिसोड : 71


‘‘क्यों रामसिंह क्या बात है?’’ प्रोफेसर ने पीछे से उसके कंधे पर धौल जमाई।
‘‘प्रोफेसर, तुमसे मैंने बहुत उम्मीदें लगाई थीं लेकिन तुम भी मेरे दर्दे इश्क  का इलाज नहीं कर पा रहे हो।’’ रामसिंह ने शिकायत की।

‘‘यह बीमारी लाइलाज है। फिर भी मैं कोशिश कर रहा हूं। तुम्हें शमशेर सिंह से सबक लेना चाहिए जिससे सरदार की बेटी प्रेम कर रही थी। लेकिन यह उसे छोड़कर चला आया।’’
‘‘शमशेर सिंह को क्या मालूम कि इश्क कैसे किया जाता है। यह तो बस इतना जानता है कि बकरे की रान कैसे पेट तक पहुंचायी जाती है।’’

‘‘बकरे की रान से तो सेहत बनती है। इश्क करने से क्या लाभ होता है?’’ शमशेर सिंह ने पलट कर पूछा।
‘‘प्रेम अँधा होता है। वह लाभ नहीं देखता। इश्क कोई बनिये का सौदा नहीं है जिसमें लाभ देखा जाये।’’

‘‘तो क्या बकरे की रान खाना बनिये का सौदा है?’’ शमशेर सिंह क्रोधित स्वर में बोला।
‘‘यह मैंने कब कहा। मैं तो यह कह रहा था कि अगर तुम भी किसी से इश्क कर लो तो तुम्हारा मोटापा कम हो जायेगा। क्योंकि इश्क में अपने आप डायटिंग हो जाती है।’’ रामसिंह ने मशवरा दिया। अब तक वह भोजन कर चुका था।

‘‘प्रोफेसर, मैं कहता हूं कि तुरन्त जंगल से बाहर निकलो वरना रामसिंह खुद भी फंसेगा और हमें भी फंसवायेगा।’’ शमशेर सिंह ने प्रोफेसर की ओर देखा।
‘‘मैं बिना मोली से शादी किये कहीं नहीं जाऊंगा।’’ रामसिंह दोनों को घूरते हुए बोला।

‘‘तुम्हें जाना पड़ेगा। अगर नहीं जाओगे तो हम तुम्हें जबरदस्ती ले जायेंगे।’’
‘‘चुप रहो।’’ रामसिंह जोर से दहाड़ा, ‘‘मैं कहीं नहीं जाऊंगा।’’

शमशेर सिंह और प्रोफेसर ने एक दूसरे की ओर देखा। उनके लिए रामसिंह की दहाड़ अप्रत्याशित थी।
‘‘आखिर मोली ही क्यों। शहर में एक से एक लड़कियां मिल जायेंगी।’’
‘‘मुझे केवल मोली चाहिए। मोली डार्लिंग -- मोली स्वीटी--- मोली डार्लिंग--- मोली स्वीटी।’’ रामसिंह इन चार शब्दों को लगातार दोहराने लगा था। लगता था कि ग्रामोफोन की सुई को इन्हीं चार शब्दों पर सेट कर दिया गया हो।

जब काफी देर बाद भी रामसिंह का रिकार्ड नहीं बन्द हुआ तो शमशेर सिंह ने प्रोफेसर से पूछा, ‘‘इसे क्या हुआ, कहीं ये पागल तो नहीं हो गया है?’’
‘‘मेरे अर्क का प्रभाव इस पर हो गया है लेकिन गलत ढंग से। मैंने तो इस बारे में सोचा ही नहीं था।’’ प्रोफेसर ने अपना सर खुजलाते हुए जवाब दिया।
‘‘क्या मिलाया था तुमने अपने अर्क में?’’

‘‘मैंने तो अफीम और भाँग की पत्तियां मिलायी थीं।’’

Tuesday, December 8, 2009

प्लैटिनम की खोज - एपिसोड : 70


‘‘यह समस्याएं घर जाकर निपटेंगी। इस समय तो हम इस समस्या से जूझ रहे हैं कि बाहर किस प्रकार निकला जाये।’’
‘‘भला इसमें क्या समस्या है। दरवाजा खुला है। निकल जाओ बाहर।’’

‘‘मैं झोंपड़ी से बाहर निकलने की बात नहीं कर रहा हूं बल्कि इस जंगल से बाहर निकलने की बात कर रहा हूं।’’ शमशेर सिंह ने स्पष्ट किया।
‘‘इस समस्या से तो बाद में निपटेंगे। पहले रामसिंह का इलाज कर लूं।’’ प्रोफेसर ने पीसी गयी पत्तियाँ एक बीकर में एकत्र कीं फिर उसे आग पर चढ़ा दिया। थोड़ी देर पकाने के बाद उसे उतार कर एक गिलास में छान लिया।

‘‘ये लो अर्क तैयार हो गया।’’ प्रोफेसर ने छने हुए जूस को एक शीशी में उँड़ेलते हुए कहा, ‘‘अब इसे किसी प्रकार रामसिंह को पिलाना है।’’
‘‘ये काम तो हो गया समझो। र्मैं इसे रामसिंह के भोजन में मिला कर दे दूंगा।’’ शमशेर सिंह ने प्रोफेसर के हाथ से शीशी ले ली।
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‘‘शमशेर सिंह, अब मुझसे सब्र नहीं होता। मैं जल्द से जल्द मोली से शादी कर लेना चाहता हूं।’’ रामसिंह एक ठण्डी साँस लेकर बोला। अभी अभी वह मोली से मिलकर आया था।
‘‘चिन्ता मत करो। हम लोग तुम्हारे इलाज का इंतिजाम कर रहे हैं।’’

‘‘क्या मतलब?’’ रामसिंह चौंक कर बोला।
‘‘मेरा मतलब, जल्दी ही हम लोग सरदार से बात करके तुम्हारी शादी करवा देंगे।’’ शमशेर सिंह ने बात बनायी।
‘‘लेकिन उन बच्चों का क्या होगा जो हमारे गले मढ़ दिये जायेंगे?’’ रामसिंह ने चिन्ता जताई।

‘‘उनकी चिन्ता मत करो। उन्हें हम पाल लेंगे। तुम भोजन कर लो फिलहाल।’’ शमशेर सिंह भोजन लाने के लिए उठ खड़ा हुआ।

फिर जब वह भोजन लाकर वापस आया तो अपना काम दिखा चुका था। अर्थात उसने प्रोफेसर का दिया अर्क भोजन में मिला दिया था।
रामसिंह ने भोजन करना आरम्भ कर दिया। शमशेर सिंह गौर से उसका चेहरा देख रहा था कि कब उसका अर्क असर करता है।

‘‘इस प्रकार क्या देख रहे हो?’’ रामसिंह ने हाथ रोककर पूछा।
‘‘कुछ नहीं। तुम भोजन करो। मैं सोच रहा था कि शायद बाद में मैं तुम्हें इस रूप में न देख सकूं।’’
‘‘क्या मतलब? भला मेरा रूप कैसे बदल जायेगा?’’

‘‘मैंने सुना है कि शादी के बाद लोग बदल जाते हैं।’’ शमशेर सिंह बोला। उसी समय प्रोफेसर ने अन्दर प्रवेश किया। वह कहीं बाहर से आया था।

‘‘क्या कुछ असर हुआ?’’ उसने संकेत से शमशेर सिंह से पूछा। चूंकि वह रामसिंह के पीछे था अत: रामसिंह उसका संकेत नहीं देख पाया।
‘‘अभी नहीं ।’’ संकेत में ही शमशेर सिंह ने उत्तर दिया। 

Friday, December 4, 2009

प्लैटिनम की खोज - एपिसोड : 69


‘‘रामसिंह तो उस लड़की के पीछे पागल हो रहा है। आज फिर सुबह से उसके साथ बैठा है। मुझे डर है कि जंगली जानवर उसपर हमला न कर दें। क्योंकि वह स्थान एकदम सुनसान है।’’
‘‘मैं उसी के इलाज के लिए यह आविष्कार कर रहा हूं।’’
‘‘कैसा आविष्कार?’’

‘‘मैं एक ऐसा अर्क बनाने जा रहा हूं जिसे पीने के बाद उसके सिर से इश्क का भूत उतर जायेगा।’’
‘‘क्या ऐसा संभव है?’’
‘‘बिल्कुल। मैंने किताबों में पढ़ा है कि अगर किसी व्यक्ति को दूसरे काम में व्यस्त कर दिया जाये तो वह पहला काम भूल जाता है। इसी सिद्धान्त का उपयोग मैं अपने आविष्कार में करूंगा।’’

‘‘भला इस सिद्धान्त का तुम्हारे अर्क से क्या सम्बन्ध ?’’
‘‘सम्बन्ध इस प्रकार है कि इस अर्क को पीने के बाद रामसिंह पर हवा में उड़ने का भूत सवार हो जायेगा इसलिए वह अपने लिए पंख के निर्माण में लग जायेगा। इस चक्कर में वह अपने इश्क के भूत को पूरी तरह भूल जायेगा।’’

‘‘लेकिन वह हवा में उड़ेगा किस प्रकार?’’
‘‘उड़ने की क्या आवश्यकता है। कुछ दिनों बाद जब अर्क का प्रभाव समाप्त हो जायेगा तो वह नार्मल हो जायेगा। फिर उसके दिमाग में न तो इश्क का भूत रह जायेगा और न हवा में उड़ना याद रह जायेगा।’’

‘‘ठीक है। तो फिर जल्दी से अपने अर्क का आविष्कार करो। इससे पहले कि हालात सीरियस हो जायें हमें उसे इसका डोज दे देना है।’’
‘‘तुमने अंग्रेजी कब सीख ली? सीरियस और डोज तो काफी कठिन शब्द हैं।’’ प्रोफेसर ने आश्चर्य से उसे घूरा।

‘‘एक किताब में पढ़े थे। तुम्हारी मेज पर पड़ी थी। मैं उसे अपने घर उठा लाया था।’’
‘‘कौन सी किताब? क्या नाम था उसका?’’ प्रोफेसर ने चौंक कर पूछा।

‘‘उसका नाम था, जानवरों के डाक्टर कैसे बनें।’’ शमशेर सिंह ने बताया।
‘‘अब कहां है वह किताब?’’ प्रोफेसर ने पत्ती पीसना रोक कर पूछा।

‘‘एक दिन लकड़ी गीली होने के कारण चूल्हा नहीं जल रहा था। मैंने उस किताब का उपयोग कर लिया।’’
‘‘मर गये।’’ प्रोफेसर सर पकड़कर बैठ गया, ‘‘उस किताब में कुछ प्राचीन हकीमी नुस्खे लिखे थे।’’

‘‘तो इसमें चिन्ता की क्या बात है। बाजार से दूसरी खरीद लेना।’’
‘‘ऐसी किताबें बाजार में नहीं मिलतीं। बड़ी मुश्किल से कबाड़ मार्केट से खरीदी थी।’’ 

Wednesday, December 2, 2009

प्लैटिनम की खोज - एपिसोड : 68


‘‘तो आप हैं वह चोर महाशय , जो अण्डे चुरा चुराकर अपनी प्रेमिका को खिला रहे थे।’’प्रोफेसर ने हाथ नचाकर कहा।
‘‘यह सिलसिला कब से चल रहा है? और यह कौन है?’’ शमशेर सिंह ने पूछा।
‘‘यह मोली है। मेरी प्रेमिका। मैं इससे प्रेम करता हूं।’’ रामसिंह ने जवाब दिया।

‘‘तो करो प्रेम। लेकिन अण्डे चुराने की क्या आवश्यकता थी?’’ प्रोफेसर ने पूछा। मोली एक ओर सर झुकाये खड़ी थी।
‘‘आवश्यकता थी। मैंने इससे वादा किया था कि हर रोज दो अण्डे चुराकर इसे खिलाऊंगा।’’

‘‘और हम लोग इसकी चिन्ता में दुबले हो रहे थे कि यह कहां गायब हो गया। कहीं आदमखोरों के चंगुल में तो नहीं फंस गया।’’ शमशेर सिंह ने प्रोफेसर से कहा।
‘‘जबकि यह यहां गुलछर्रे उड़ा रहा था।’’

‘‘मैं गुलछर्रे नहीं उड़ा रहा था। मैं प्रेम कर रहा था। सच्चा प्रेम। हम लोग यहां से दूर एक कुंज में घर बनाने का प्लान कर रहे थे।’’

‘‘प्लान अच्छा है। मैं उसका नक्शा बना दूंगा। लेकिन सीमेण्ट, बालू इत्यादि लाने में बहुत मुश्किल होगी क्योंकि यहां से शहर बहुत दूर है।’’ प्रोफेसर बोला।
‘‘हमें इन सब वस्तुओं की आवश्यकता भी नहीं है। हमारे घर में चंदन की दीवारें होंगी, फूलों की छत होगी और कलियों का फर्श होगा।’’ रामसिंह ने जवाब दिया।

शमशेर सिंह और प्रोफेसर ने एक दूसरे की ओर देखा फिर शमशेर सिंह बोला, ‘‘मैं कह रहा था कि इसे उस्ताद काले खाँ के पास बैठने से रोका जाये वरना यह बरबाद होकर शायर बन जायेगा। वही हुआ जिसका डर था।’’
प्रोफेसर ने आगे बढ़कर रामसिंह का कान पकड़ा और उसे खींचते हुए बोला, ‘‘अब चुपचाप वापस चल। यह मत भूलो कि तुम्हें मेरा असिस्टेंट बनाकर भेजा गया है और तुम्हें वैज्ञानिक बनने के अतिरिक्त और कुछ नहीं बनना है।’’

मोली ने जब उन्हें तकरार करते देखा तो चुपचाप वहां से खिसक गयी। उसके जाने के बाद रामसिंह भी ढीला हो गया और प्रोफेसर इत्यादि के साथ चलने लगा।
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‘‘प्रोफेसर -- प्रोफेसर!’’ शमशेर सिंह पुकारता हुआ अन्दर प्रविष्ट हुआ लेकिन झोंपड़ी में कहीं प्रोफेसर के दर्शन नहीं हुए।
‘‘कहां चला गया ये। ’’ शमशेर सिंह बड़बड़ाया और एक बार फिर आवाज लगायी।
‘‘आ जाओ। मैं यहां हूं।’’ एक ओर से आवाज आयी। शमशेर सिंह ने ध्यान दिया। यह आवाज झोंपड़ी के पीछे से आयी थी।

शमशेर सिंह ने झोंपड़ी के पीछे का दरवाजा खोला और बाहर निकल आया। यहां प्रोफेसर व्यस्त था। अर्थात उसकी प्रयोगशाला का सारा सामान वहाँ मौजूद था और स्वयं प्रोफेसर एक सिल बट्‌टे द्वारा कुछ पत्तियां पीस रहा था।
‘‘यह क्या कर रहे हो प्रोफेसर?’’ शमशेर सिंह ने पूछा।
‘‘मैं एक आविष्कार कर रहा हूं’’ प्रोफेसर ने जवाब दिया।

Tuesday, December 1, 2009

प्लैटिनम की खोज - एपिसोड : 67


‘‘इसलिए, क्योंकि हमारे कबीले का रिवाज है कि यदि कोई बाहरी व्यक्ति कबीले की किसी कन्या से शादी करता है तो उसे कबीले के सारे बच्चे दो साल के लिए सौंप दिये जाते हैं। फिर वे बच्चे उसका वे हाल करते हैं कि वह कुछ समय बाद पागल हो जाता है।’’ मोली ने जानकारी दी।

किन्तु ऐसा क्यों किया जाता है?’’ रामसिंह ने पूछा।
‘‘बात ये है कि कई वर्षों पहले अक्सर बाहरी व्यक्ति आकर कबीले की किसी न किसी लड़की से शादी कर लेते थे। जिसके कारण कबीले के युवकों के लिए लड़कियों का अकाल पड़ जाता था। इस समस्या से निपटने के लिए उस समय के सरदार ने यह नियम बना दिया।’’ 

‘‘फिर किस प्रकार हम और तुम मिल सकते हैं?’’ रामसिंह ने मोली की ठोड़ी पर हाथ रखकर उसे उठाना चाहा, किन्तु उसी समय मोली को छींक आ जाने के कारण उसका यह प्रयास सफल नहीं हो पाया।
‘‘क्यों न हम तुम कहीं भाग चलें?’’ मोली ने नाक सुड़क कर कहा।

‘‘लेकिन भाग कर जायेंगे कहां? चारों ओर तो घना जंगल है।’’
‘‘इसी जंगल में ऐसा स्थान ढूंढेंगे जहाँ कोई हमे न देखे। जहां इस जालिम कबीले के पैर न पहुंच सकें। वहां हम पेड़ काट काटकर एक बड़ा सा घर बनायेंगे। उसमें मैं चैन से सोऊंगी और तुम मेरे पंखा झलना।’’
‘‘लेकिन घर बनाने के लिए पेड़ कौन काटेगा? मैंने तो आजतक एक डाल भी न काटी।’’ रामसिंह ने घबराकर कहा।

‘‘कोई बात नहीं। जब दो तीन काटोगे तो तजुर्बा हो जायेगा। मैंने भी आजतक किसी से प्रेम नहीं किया था लेकिन अब तजुर्बा हो गया और बड़ी आसानी से तुम्हें फंसा लिया।’’
‘‘क्या मतलब?’’ रामसिंह ने चौंक कर उसे देखा।

‘‘मेरा मतलब है कि तुमसे प्रेम करने में मुझे कोई परेशानी नहीं हुई। हालांकि यह मेरा पहला प्रेम है।’’ मोली ने अपनी बात स्पष्ट की।
‘‘तो ठीक है। यह पक्का हो गया कि हम लोगों को यहां से भागना है। मैं अपने दोस्तों को छोड़ दूंगा और तुम अपनी बस्ती। वैसे भी हमारे यहां का दस्तूर है कि जब किसी की शादी होती है तो लड़के को दोस्त और लड़की को घर छोड़ना पड़ता है।’’

‘‘लेकिन जब हम बस्ती छोड़ देंगे तो हमें अण्डे कैसे मिलेंगे?’’ मोली ने चिन्तित होकर कहा।
‘‘उसकी चिन्ता मत करो। हम लोग जंगल से दो तीन मुर्गियां पकड़ लेंगे। वे हमें अण्डे दिया करेंगी। वैसे भी यहां मेरे दोस्तों को शक हो गया है कि कोई चोर रोज दो अण्डे चुराकर ले जाता है।’’ रामसिंह बोला।

उसी समय उसके सर पर पीछे से लकड़ी का एक टुकड़ा पड़ा और वह चिहुंक कर खड़ा हो गया। उसके साथ साथ मोली भी खड़ी हो गयी। रामसिंह ने पीछे मुड़कर देखा तो प्रोफेसर और शमशेर सिंह कमर पर हाथ रखकर क्रोधित दृष्टि से उसे घूर रहे थे। 

Monday, November 30, 2009

प्लैटिनम की खोज - एपिसोड : 66


उन दोनों की बातों से अनजान रामसिंह बस्ती से कुछ दूर मोली के साथ बैठा हुआ था। वह उसे प्रेम भरी दृष्टि से देख रहा था जबकि मोली अपनी उंगलियों से कच्ची भूमि पर लकीरें खींच रही थी।
घनी झाड़ियों और पेड़ों के झुरमुट के कारण उनके वहाँ से देख लिये जाने की संभावना बहुत कम थी।

रामसिंह ने एक ठण्डी साँस ली और कहने लगा, ‘‘मोली, जब से तुम्हें देखा है प्रेम की नदी में डूब गया हूं। कुछ भी खाता पीता हूं बिल्कुल हजम नहीं होता। हर समय पेट खराब रहने लगा है। रातों को जागता हूं और दिन में सोता हूं। यदि गलती से आँख लग भी जाये तो सपने में तुम ही तुम दिखाई देती हो। मैं तुम्हारी ओर बाहें फैलाता हूं तो वे कमबख्त शमशेर सिंह की तोंद से लिपट जाती हैं, जो मेरी बगल में सोता है। मैंने आजतक सैंकड़ों लड़कियों का पीछा किया, बीसियों को छेड़ा है दसियों सैण्डिल भी खाये हैं। लेकिन प्रेम केवल तुमसे हुआ है। अब तुम मेरा दिल न तोड़ना क्योंकि प्रोफेसर ने अभी तक दिल जोड़ने वाला सीमेण्ट नहीं बनाया है। हालांकि मैंने कई दिन पहले से उसे कह रखा है।’’

मोली ने रामसिंह का प्रेमालाप बीच ही में रोककर साँस ली जो रामसिंह की साँस से कहीं अधिक ठण्डी और लम्बी थी, फिर कहना शुरू किया, ‘‘यही हाल मेरा है मेरे प्रिय देवता। तुम्हारे प्रेम में डूबकर मेरी भूख दोगुनी हो गयी है। पहले दो अण्डों में मेरा पेट भर जाता था, अब चार की आवश्यकता महसूस होती है। जब तक तुम्हें देख नहीं लेती, मुझसे धान नहीं कुटता। केला छीलकर बकरी को खिला देती हूं और छिलका स्वयं खा लेती हूं। कल तम्हारी झलक देखकर नंगे पैर दौड़ी तो मालूम हुआ कि वह जंगल का कोई आवारा सियार था जिसकी काठी तुमसे मिलती जुलती थी। मेरे प्रिय, तुम्हारे प्रेम में कब तक मैं दीवानी बनी रहूंगी?’’ उसने रामसिंह की आँखों में झांककर करूण स्वर में कहा।

‘‘सब्र करो प्रिय मोली।’’ रामसिंह ने दिलासा देते हुए कहा, ‘‘यह तो कुछ भी नहीं है। हमारे देश में ऐसे ऐसे प्रेमी हुए हैं जो प्रेम करने से पहले दीवाने थे, प्रेम करने के बाद और दीवाने हो गये और मरते दम तक दीवाने बने रहे। हमारे यहां ऐसे ऐसे वीर भी हुए हैं जिन्होने प्रेम करने के अतिरिक्त और कुछ नहीं किया। उसके लिए वे दुनिया से इतनी जोरों से टकराये कि दुनिया हिल कर रह गयी और वे स्वयं चारों खाने चित हो गये। तुम चिन्ता मत करो मैं जल्दी ही सरदार से बात करूंगा कि वे तेरी मेरी शादी कर दें।’’

‘‘श  --- शादी । न--नहीं तुम ऐसा कदापि मत करना।’’ मोली ने घबरा कर कहा।
‘‘क्यों?’’ रामसिंह ने आश्चर्य से पूछा।

Saturday, November 28, 2009

प्लैटिनम की खोज - एपिसोड : 65


इस प्रकार दो तीन सप्ताह और बीत गये। शमशेर सिंह इस डर से बस्ती के बाहर नहीं निकलता था कि कहीं मोगीचना फिर न उसके सर पर सवार हो जाये।
प्रोफेसर की रिसर्च जोरों से चल रही थी। अब तक वह बीस पच्चीस औषधियां बनाने का प्रयन्त्र कर चुका था।

रामसिंह ने अण्डे देने के साथ साथ मोली से बाकायदा इश्क भी आरम्भ कर दिया था और यह इश्क दोनों ओर से जारी था। मोली रोजाना अण्डे लेने आती थी और रामसिंह उसे रोज दो अण्डे देता था। यह नहीं कहा जा सकता था कि मोली उससे अण्डे लेने के लिए इश्क कर रही है या इश्क  के कारण अण्डे लेने आती है।

प्रोफेसर अभी भी उधेड़बुन में था कि किस प्रकार रोज दो अण्डे गायब हो जाते हैं।
इस समय भी वह इसी चिन्ता में डूबा हुआ था और शमशेर सिंह के कई बार आवाज देने पर भी उसकी तन्द्रा नहीं भंग हुई।

‘‘प्रोफेसर, तुम कहां गायब हो गये?’’ शमशेर सिंह ने प्रोफेसर का कन्धा पकड़कर जोरों से हिलाया। इस बार प्रोफेसर विचारों की दुनिया से वापस आ गया। वह अब शमशेर सिंह को गौर से देख रहा था।
‘‘ऐसे क्या देख रहे हो प्रोफेसर?’’
‘‘मैं यह सोच रहा हूं कि रोज दो अण्डे कहां गायब हो जाते हैं?’’

‘‘तो क्या पता चला तुम्हारे इस प्रकार सोचने के बाद?’’
‘‘मैंने चोर का पता लगा लिया है।’’ प्रोफेसर बोला।

‘‘कौन है वह?’’
‘‘मैंनें सारी कड़ियां आपस में मिला ली हैं। उसके बाद मैं इस परिणाम पर पहुंचा हूं कि कोई जंगली चोर नहीं हो सकता। क्योंकि उन्हें रोज दो दो अण्डे बाँटे जाते हैं।’’
‘‘फिर?’’

‘‘बाकी बचे हम तीनों। मुझे तो अपनी रिसर्च से फुर्सत नहीं मिलती। और रामसिंह का दो अण्डे खाकर पेट खराब हो जायेगा। इस प्रकार अण्डों के चोर तुम ही हो सकते हो।’’ प्रोफेसर ने रहस्योद्घाटन किया।

‘‘क्या मैं अण्डों का चोर हूं! मैं तुम्हारी सारी रिसर्च को चूल्हे में डाल दूंगा।’’ शमशेर सिंह ने गुस्से में प्रोफेसर का गरेबान पकड़ लिया।
‘‘अभी मैं पूरी तरह कन्फर्म नहीं हूं। हो सकता है चोर कोई और हो। मुझे केवल शक था।’’ प्रोफेसर ने रामसिंह का क्रोध शांत  करते हुए कहा।
‘‘ठीक है। किन्तु यदि आइंदा मुझे चोर कहा तो मैं तुम्हारे घर से जितने बर्तन उठा कर लाया हूं सब वापस कर दूंगा। मैं भी शरीफ बाप का बेटा हूं।’’ शमशेर सिंह ने गरेबान छोड़ते हुए कहा।

‘‘यह प्रश्न फिर अपनी जगह पर रह गया कि अण्डों की चोरी कौन करता है।’’ प्रोफेसर अपना पैर फैलाते हुए बोला।
‘‘रामसिंह आजकल बहुत मोटा हो रहा है और गायब भी बहुत रहने लगा है मुझे पूरा यकीन है कि वही अण्डों का चोर है।’’
‘‘तुम सही कहते हो। हमें उसपर नजर रखनी होगी। किन्तु वह कहाँ गया?’’

‘‘आजकल वह कुछ ज्यादा ही गायब रहने लगा है। मेरा विचार है कि वह जंगलियों से मिलकर हमारे खिलाफ कोई साज़िश कर रहा है।’’
‘‘किस प्रकार की साज़िश?’’

‘‘वह जंगलियो को भड़का रहा होगा कि असली देवता केवल वह है और हम दोनों उसके असिस्टेंट हैं।’’
‘‘यह तो वाकई गंभीर बात है। इस प्रकार तो हमारी वैल्यू जंगलियों की दृष्टि में गिर जायेगी।’’ प्रोफेसर ने चिन्ता जताई।

‘‘मेरा तो विचार है कि यहाँ से जल्द से जल्द निकलने की सोचो। वरना एक दिन ऐसा भी आयेगा जब जंगली हमसे अपने खेत जुतवाने लगेंगे।’’
‘‘अब मुझे यहां से बाहर निकलने की तरकीब सोचनी पड़ेगी। मैं आज ही से इसपर रिसर्च आरम्भ कर देता हूं।’’ प्रोफेसर ने अपनी ठोड़ी पर हाथ रखकर कहा।
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Friday, November 27, 2009

प्लैटिनम की खोज - एपिसोड : 64

‘‘वह तो मैं भी देख रहा हूं कि तुम कोई शेर चीता नहीं हो। लेकिन कहां से आयी हो? क्या नाम है? इधर आने की क्या आवश्यकता थी?’’ रामसिंह ने एक साथ कई प्रश्न कर डाले। प्रोफेसर और शमशेर सिंह में से अभी भी कोई नहीं जागा था।

‘‘मेरा नाम मोली है और मैं यहां अण्डे चुराने आयी थी।’’ उसने बताया।
‘‘ऐं!’’ रामसिंह का मुंह भाड़ सा खुल गया, ‘‘तुम्हें अण्डे चुराने की क्या आवश्यकता थी जबकि सरदार का आदेश है कि अण्डे हर घर में पहुंचाये जायें।’’

‘‘मुझे अण्डे बहुत पसंद हैं जबकि यहां कुंवारी स्त्रियों को अण्डे खाने की मनाही है। अत: लाचार होकर मुझे अण्डे चुराने पड़े।’’
‘‘ओह! च--च ये तो बड़े दु:ख की बात है।’’ रामसिंह ने अफसोस प्रकट किया।
‘‘तीन दिन तो मैं अपने काम में सफल रही लेकिन आज मेरे ग्रह बुरे चल रहे थे।’’ उसने अपने सर पर हाथ फेरते हुए कहा।

‘‘तुम चिन्ता मत करो। रोज इस समय आकर मुझसे मिल लिया करो। मैं तुम्हें कुछ अण्डे दे दिया करूंगा।’’ रामसिंह ने उसे दिलासा दिया।
‘‘क्या सच? फिर तो मैं जीवन भर तुम्हारा उपकार मानूंगी।’’ उसने खुश होकर कहा।

‘‘इसमें उपकार की कोई बात नहीं। मैं तो तुम लोगों का देवता हूं। और देवता का काम ही है परोपकार करना।’’
‘‘तो फिर मैं जाऊं?’’ उसने पूछा।
‘‘अवश्य । अब जल्दी से वापस जाओ वरना मेरे साथी उठ गये तो मुसीबत हो जायेगी। ये लोग क्रूर देवता हैं।’’

मोली भयभीत होकर तुरंत उठ खड़ी हुई और बाहर जाने लगी। उसके साथ साथ रामसिंह भी बाहर निकल आया।
‘‘ये रख लो और चुपचाप निकल जाओ।’’ रामसिंह ने उसके हाथ में दो अण्डे रख दिये।

‘‘याद रखना। तुम्हें रोज इसी समय आना है। वरना यहां मेरी बजाय कोई और मिलेगा।’’
उसने सर हिलाया और फिर आगे बढ़कर रात के अँधेरे में विलीन हो गयी।

रामसिंह ने एक ठण्डी साँस ली और वापस झोंपड़ी के अन्दर चला गया। अब वह प्रोफेसर को जगा रहा था क्योंकि उसका पहरा देने का समय पूरा हो गया था।
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Wednesday, November 25, 2009

प्लैटिनम की खोज - एपिसोड : 63

मुर्गियों को एक बाड़े में बन्द कर दिया गया था और तीनों को उसकी देखभाल पर तैनात कर दिया गया था। प्रोफेसर ने अपनी रिसर्च आरम्भ कर दी थी। वह रोज मुर्गियों को कोई न कोई मिक्सचर बनाकर पिलाता था किन्तु अभी तक किसी मुर्गी का अंडे देने का औसत दो दिन में एक से ज्यादा का नहीं हो पाया था.

यह रात का समय था और रामसिंह पहरेदारी पर तैनात था। पहरेदारी की आवश्यकता इसलिए पड़ गयी थी क्योंकि पिछले दो दिनों से तीन चार अण्डे गायब हो गये थे और चोर का पता नहीं चल सका था। फिर प्रोफेसर ने यह तय किया कि तीनों रात भर बारी बारी से पहरा देंगे। और इस समय रामसिंह की बारी थी।

वह झोंपड़ी की दीवार से टेक लगाकर ऊंघ रहा था। एक डण्डा उसकी बगल में रखा था।
एक आहट सुनाई पड़ी जिसने उसे चौकन्ना कर दिया। उसने सर उठाकर देखा। रात के अँधेरे में एक साया मुर्गियों के बाड़े की ओर जा रहा था।

उसने चाहा कि आवाज लगाये किन्तु फिर कुछ सोचकर रुक गया और डण्डा उठाकर दबे पाँव साये का पीछा करने लगा। जब साया मुर्गियों के बाड़े के पास पहुंचा तो रामसिंह उसके सर पर पहुंच गया। अगले ही पल रामसिंह के हाथ में उठा डण्डा साये की खोपड़ी सहला चुका था।
‘‘हाय मार डाला।’’ चीख की आवाज ने रामसिंह को चक्कर में डाल दिया। क्योंकि यह किसी औरत की आवाज थी। वह बौखला कर साये को टटोलने लगा। जल्दी ही यह बात स्पष्ट हो गयी कि वह कोई स्त्री है।

‘‘हे भगवान, यह क्या बला है’’ वह काँपते हुए बोला। उसने सुन रखा था कि रात के अँधेरे में चुड़ैलें इत्यादि भी चक्कर काटा करती हैं।
‘‘लेकिन फिर यह बेहोश कैसे हो गयी? चुड़ैलों पर तो चोट का असर नहीं होता।’’ उसके दिल को ढाँढस बंधी । उसने हिम्मत करके उसे उठाया और झोंपड़ी के अन्दर ले आया जहां प्रोफेसर और शमशेर सिंह गहरी नींद सो रहे थे।

उसने दिया जलाया और उसके प्रकाश में स्त्री को देखने लगा। यह गहरे साँवले रंग की युवती थी जिसकी आयु किसी भी प्रकार अट्‌ठारह वर्ष से अधिक नहीं थी। रामसिंह का दिल एक बार फिर उसके चुड़ैल होने की आशंका से डांवाडोल होने लगा।
‘‘भला एक युवती का इतनी रात को क्या काम।’’ उसने अपने मन में कहा। अगले ही पल उसने अपने दिल को समझाया, ‘‘हो सकता है यह किसी जरूरत से इधर आ निकली हो।’’

तभी उस युवती के मुंह से कराह निकली और रामसिंह उसकी ओर देखने लगा। कुछ पलों बाद उसने अपनी आँखें खोल दीं।
‘‘कौन हो तुम?’’ रामसिंह ने पूछा।
वह कुछ क्षणों तक रामसिंह की ओर देखती रही फिर जवाब दिया, ‘‘एक लड़की।’’

Monday, November 23, 2009

प्लैटिनम की खोज - एपिसोड : 62

ये वही जंगली थे जो प्रोफेसर और रामसिंह के साथ मुर्गिया पकड़ने निकले थे।
‘‘य--ये कौन हैं?’’ शमशेर सिंह ने घबरा कर पूछा।

‘‘ये हमारे भक्त हैं। हम इनके देवता हैं।’’ प्रोफेसर ने अकड़ कर कहा फिर जंगलियों से संबोधित हुआ, ‘‘क्या बात है?’’
‘‘हम लोग अब तक बीस मुर्गियां पकड़ चुके हैं। और अब वापस हो रहे हैं।’’ एक ने कहा।
‘‘ठीक है चलो।’’ प्रोफेसर ने खड़े होते हुए कहा। उसके साथ रामसिंह और शमशेर सिंह भी खड़े हो गये।

‘‘आपने कितनी मुर्गियां पकड़ीं देवताओं?’’ एक जंगली ने चलते हुए पूछा।
‘‘हमने तुम लोगों के लिए एक देवता और पकड़ लिया।’’ प्रोफेसर ने जवाब दिया।
‘‘इसका फैसला हमारे सरदार करेंगे कि ये हमारे तीसरे देवता हैं या नहीं।’’ जंगली ने शमशेर सिंह की ओर संकेत करके कहा।
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‘‘देवता पुत्रों, हमें अफसोस है कि आप एक भी मुर्गी नहीं पकड़ सके।’’ सरदार ने दोनों की ओर देखा।
‘‘हमने इसका कारण बता दिया है।’’ प्रोफेसर ने शमशेर सिंह की ओर देखकर कहा।

‘‘जब हमारे देवता हमारे पूरे खेत की गोभियाँ पल भर में चट कर जाते थे तो हम अपने पड़ोसी कबीले को यह बात गर्व से बताया करते थे। लेकिन आज हम उन्हें शर्म से यह बताएंगे कि उसी देवता के पुत्र इतने नालायक निकले कि एक मुर्गे ने उन्हें मात दे दी।’’ सरदार ने अपना सर पकड़ कर कहा।
‘‘किन्तु पड़ोसी कबीले को यह बताने की आवश्यकता क्या है?’’ रामसिंह बोला।

‘‘आवश्यकता है। हमारा पड़ोसी कबीले से अनुबंध हुआ है कि हम लोग एक दूसरे को अपनी बातें बतायेंगे।’’
‘‘आप उनसे झूठ बोल दीजिए कि हमने भी मुर्गियां पकड़ी हैं।’’

‘‘देवता होकर आप हमें झूठ बोलने की सीख दे रहे हैं। लेकिन हम ऐसा कदापि नहीं करेंगे।’’ सरदार ने घूरकर रामसिंह की ओर देखा और वह सकपका कर चुप हो गया। सरदार फिर बोला,
‘‘अब हमने चूंकि नये आगंतुक को भी देवता पुत्र मान लिया है अत: अब तीनों से मेरी प्रार्थना है कि वे पकड़ी गयी मुर्गियों की देखभाल करें और उन्हें अधिक से अधिक अण्डे देने पर विवश करें।’’

‘‘यह काम मैं कर लूंगा।’’ प्रोफेसर बोला, ‘‘मैं आज ही से रिसर्च आरम्भ कर दूंगा कि किस प्रकार मुर्गियों से अधिक से अधिक अण्डे दिलवाये जायें।’’
‘‘अब हमें परिणाम की प्रतीक्षा है।’’ सरदार उठते हुए बोला।
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Sunday, November 22, 2009

प्लैटिनम की खोज - एपिसोड : 61

‘‘मैं आज ही से इसके ऊपर प्रयोग करना शुरू कर दूंगा।’’ प्रोफेसर ने दिलासा दिया।
‘‘यह तुम इन लोगों से क्या बकवास कर रहे हो। ये लोग कौन हैं?’’ मोगीचना ने शमशेर सिंह को संबोधित करके क्रोधित स्वर में कहा।

‘‘ये लोग बहुत ऊंची हस्ती हैं। और इत्तेफाक से मेरे मित्र हैं। कुछ दिन पहले बिछड़ गये थे। आज फिर मिल गये।’’ शमशेर सिंह ने बताया।
‘‘तो फिर इन्हें मेरे कबीले में ले चलो। सरदार इनसे मिलकर अवश्य प्रसन्न होगा।’’
मोगीचना की बात सुनकर प्रोफेसर और रामसिंह ने उसके साथ जाने का इरादा किया किन्तु शमशेर सिंह ने तुरन्त उन्हें रोक दिया।

‘‘सरदार अवश्य खुश होगा। इसलिए क्योंकि उसे तुम्हारे रूप में मानव भोजन मिल जायेगा। प्रोफेसर, रामसिंह, तुम लोग भूल कर भी इसके कबीले मत जाना। इसका कबीला आदमखोर है।’’ उसकी बात सुनकर उनके कदम वहीं रुक गये। शमशेर सिंह ने यह बात अपनी भाषा में कही थी अत: मोगीचना उसे नहीं समझ सकी।

शमशेर सिंह ने उसे संबोधित किया, ‘‘तुम बस्ती में वापस जाओ, हम लोग थोड़ी देर में आयेंगे।’’
‘‘किन्तु हमारे प्रेम का क्या होगा?’’

‘‘वह कहीं नहीं भागेगा। वापस आकर कर दूंगा। अभी मैं अपने दोस्तों के साथ कुछ काम करना चाहता हूं।’’ शमशेर सिंह ने उसे धकेलते हुए कहा और वह जबरन वापस हो गयी। जब वह दूर निकल गयी तो शमशेर सिंह बोला, ‘‘अब जल्दी से यहां से भागो वरना अगर वह पलट गयी तो फिर जान बचाना मुश्किल हो जायेगा।’’ फिर वे लोग वहां से तुरन्त चल पड़े।

जब वे लोग उस स्थान से काफी दूर निकल आये तो शमशेर सिंह हाँफते हुए बोला, ‘‘अब जाकर कुछ चैन मिला वरना मैं तो आत्महत्या करने की सोच रहा था।’’
‘‘तुम्हें अब चैन मिला है और हमारा चैन अब प्रस्थान कर गया है।’’ रामसिंह बोला।
‘‘अरे हाँ। तुमने तो अपने बारे में बताया ही नहीं कि कहां गायब हो गये थे।’’ शमशेर सिंह ने चौंक कर कहा।

‘‘बड़ी लम्बी कहानी है। चलो कहीं आराम से बैठते हैं फिर बताऊंगा।’’ रामसिंह बोला और वे लोग वहीं पत्थरों पर बैठ गये।
‘‘हां। अब बताओ।’’ शमशेर सिंह बोला।
रामसिंह ने कहानी बतानी आरम्भ की। बीच बीच में उसे रोककर प्रोफेसर भी बोलता जा रहा था। अन्त में रामसिंह बोला, ‘‘इस प्रकार अभी तक हम लोग आराम कर रहे थे। लेकिन अब हमें काम सौंप दिया गया है। मुर्गियां पकड़ने का।’’
‘‘तो अब तक कितनी मुर्गियां पकड़ चुके हो?’’

‘‘एक भी नहीं। एक मुर्गा पकड़ने का प्रयत्न किया था, लेकिन वह भी धोखा देकर भाग गया। उसके बाद तुम मिल गये।’’
‘‘अब तुम अपनी कहानी सुनाओ।’’ प्रोफेसर ने कहा।

इससे पहले कि शमशेर सिंह अपनी कहानी आरम्भ करता पाँच छह जंगली पीछे से निकलकर उनके सामने आ गये।

Friday, November 20, 2009

प्लैटिनम की खोज - एपिसोड : 60

तभी दूर से एक आवाज आयी, ‘‘बचाओ।’’
रामसिंह ने चौंक कर प्रोफेसर की ओर देखा, ‘‘प्रोफेसर, क्या तुमने भी वह आवाज सुनी?’’
‘‘हां। यह तो किसी व्यक्ति की आवाज है।’’

आवाज एक बार फिर आयी।
‘‘यह तो शमशेर सिंह की आवाज है।’’ रामसिंह उछल कर खड़ा हो गया।

‘‘लगता है वह किसी मुसीबत में है। हमें तुरंत जाना चाहिए।’’ दोनों उस ओर चल पड़े जिधर से शमशेर सिंह की आवाज आयी थी।
अब तक बचाओ बचाओ की तीन चार आवाजें आ चुकी थीं।
जल्दी ही आवाज का पीछा करते हुए वे पेड़ों के एक झुरमुट के पास पहुंच गये। फिर उन दोनों ने जो दृश्य देखा वह उन्हें हैरान करने के लिए काफी था।

शमशेर सिंह बचाव बचाव चीखता हुआ भाग रहा था और एक मोटी तगड़ी औरत उसका पीछा कर रही थी।
‘‘शमशेर सिंह!’’ प्रोफेसर चिल्लाया। उसकी आवज सुनकर शमशेर सिंह ने मुड़कर देखा और फिर तीर की तरह उसकी ओर आया। प्रोफेसर ने अपनी बाहें फैला दीं और शमशेर सिंह आकर उससे लिपट गया।

‘‘प्रोफेसर मुझे इस औरत से बचाओ। तुम्हारे अलावा और कोई ये काम नहीं कर सकता।’’
वह औरत दूर खड़ी कमर पर हाथ रखे शमशेर सिंह को घूर रही थी।

‘‘किन्तु वह है कौन?’’ रामसिंह ने पूछा।
‘‘झींगा बेलू कबीले के सरदार की बेटी है। मेरे पीछे पड़ गयी है।’’
‘‘लेकिन तुम बचाव बचाव क्यों चिल्ला रहे थे?’’ प्रोफेसर ने पूछा।
‘‘उसी के कारण। वह जबरदस्ती मुझसे प्रेम करना चाहती है। और इसीलिए दो घंटे से मुझे दौड़ा रही है।’’

‘‘ओह मैं समझा। लेकिन इसमें घबराने की क्या बात है। तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि एक औरत ने तुम्हें लिफ्ट दे दी। वरना महिला कालेजों के सामने तो तुम हमेशा पिट कर आये हो।’’ रामसिंह बोला।

‘‘तुम्हें नहीं मालूम कि इससे प्रेम करने के लिए मुझे क्या क्या करना पड़ेगा। मुझे इसके बालों मे सजाने के लिए रोजाना छिपकलियां ढूंढनी पड़ेगी। और हर रोज चूहे की कलेजी खानी पड़ेगी।’’
‘‘ओह फिर तो मामला गंभीर है। मुझे इसका हल सोचना पड़ेगा।’’ प्रोफेसर ने अपना सर खुजलाते हुए कहा।

‘‘तुम कोई ऐसी दवा तैयार करो, जिसे पीने के बाद इसके सर से प्रेम का भूत उतर जाये।’’ शमशेर सिंह ने प्रार्थना की।

Thursday, November 19, 2009

प्लैटिनम की खोज - एपिसोड : 59

‘‘तुम ऐसा करो प्रोफेसर कि मुर्गे पकड़ने पर एक रिसर्च कर डालो।’’ रामसिंह ने सुझाव दिया।
‘‘रिसर्च तो बाद में होती रहेगी। पहले हमें कुछ मुर्गे हर हाल में पकड़ना हैं। वरना जंगलियों के सामने हमारी इंसल्ट हो जायेगी कि देवता होकर हम एक भी मुर्गा नहीं पकड़ पाये।’’

मुर्गा अभी भी दूर खड़ा हुआ टुकुर टुकुर उनकी ओर देख रहा था।
‘‘तो फिर किसी दूसरे मुर्गे पर कोशिश करते हैं। यह तो बहुत चालाक है।’’ रामसिंह ने कहा।
‘‘मैं तो अब इसी को पकड़ कर रहूंगा। मुझे भी जिद हो गयी है।’’ प्रोफेसर ने कहा और मुर्गे की ओर बढ़ा। फिर कुछ सोच कर रुक गया।

‘‘मैं तुम्हें अब तरकीब से पकड़ूंगा।’’ वह मुर्गे की ओर देखकर बड़बड़ाया फिर रामसिंह से संबोधित हुआ, ‘‘रामसिंह तुम अपनी शर्ट उतारो।’’
‘‘क ---क्यों?’’ रामसिंह ने घबरा कर पूछा।
‘‘मैं उधर झाड़ियों में जाकर मुर्र्गी की आवाज निकालता हूं। मेरी आवाज सुनकर मुर्गा उधर आकर्षित होगा। जैसे ही वह झाड़ियों में घुसे, तुम अपनी शर्ट उसपर डालकर पकड़ लेना।’’
‘‘ठीक है।’’ रामसिंह अपनी शर्ट उतारने लगा जबकि प्रोफेसर पास की एक झाड़ी में घुस गया।

थोड़ी देर बाद झाड़ियों से आवाज आयी, ‘‘पक ---पक---पक---पोकाक --पक --पक।’’ यह प्रोफेसर था जो अपने मुंह से आवाजें निकाल रहा था।
मुर्गे ने भी अपने कान खड़े करके ये आवाजें सुनीं किन्तु फिर वह उस झाड़ी में घुसने की बजाय दूसरी झाड़ी में घुस गया।
‘‘यह तो दूसरी झाड़ी में घुस गया कमबख्त। अब मैं क्या करूं।’’ रामसिंह बड़बड़ाया। फिर वह अपनी शर्ट लेकर आगे बढ़ा और उस झाड़ी के पास पहुंच कर इस ताक में लग गया कि कब मुर्गा बाहर निकले और कब वह उसपर हमला कर दे।

तभी उसे एक स्थान पर झाड़ी हिलती दिखाई दी। उसने आव देखा न ताव और झट से अपनी शर्ट उसपर डाल दी। दूसरे ही पल वह दोनों हाथों से अपनी शर्ट दबाये हुए चीख रहा था, ‘‘पकड़ लिया, मैंने पकड़ लिया।’’
‘‘क्या मुर्गा पकड़ा गया?’’ प्रोफेसर जल्दी से झाड़ियों से निकलकर बाहर आया।

‘‘हां । मैंने उसे दबा रखा है।’’
‘‘तो फिर जल्दी से उसे रस्सियों से बाँध दो वरना वह फिर भाग जायेगा।’’
रामसिंह ने मुर्गे को पूरी तरह ढंके हुए अपनी शर्ट झाड़ी से बाहर निकाली जबकि प्रोफेसर अपनी जेब से पतली लताओं से बनी डोर निकालने लगा।
‘‘अब तुम मुर्गे पर से अपनी शर्ट थोड़ी सी हटा दो ताकि मैं उसे बाँध सकूं।’’ प्रोफेसर ने कहा और रामसिंह धीरे धीरे अपनी शर्ट उठाने लगा।

जैसे ही उसने शर्ट थोड़ी सी हटाई, नीचे से एक गिलहरी फुदकती हुई भाग निकली।
‘‘हाँय। मुर्गा गिलहरी में कैसे परिवर्तित हो गया।’’ प्रोफेसर ने अचरज से कहा।

तभी उन्हें पीछे से मुर्गे के बाँग देने की आवाज आयी। दोनों ने मुड़कर देखा तो मुर्गा दूर खड़ा उनकी ओर देखकर बाँग दे रहा था। दोनों सर पकड़कर वहीं बैठ गये।