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Friday, December 26, 2014

असली खेल : भाग 5 (अंतिम भाग)

‘‘यह पासिबिल हुआ है क्वांटम टाइम फिजिक्स की मदद से। फिजिक्स की यह नयी ब्रांच आज से दो सौ साल पहले शुरू हुई जब क्वांटम फिजिक्स में कुछ नये तथ्यों का पता चला और यह तथ्य मूल कणों के व्यवहार से संबंधित थे। तुम्हारे समय में क्वांटम मैकेनिक्स दो तरह के मूल कणों की उपस्थिति बताती थी, फर्मिआन्स और बोसाॅन्स। ये दोनों,,,,!’’
 
‘‘एक मिनट!’’ रवि ने टोका, ‘‘हम लोग फिजिक्स के स्टूडेन्ट नहीं रहे हैं।’’
 
‘‘ओह, मैं बहुत सिम्पिल तरीके से बताता हूँ!’’ शशिकान्त ने कहा, ‘‘तुमने इलेक्ट्रान, प्रोटाॅन,,, इन सब का नाम सुना होगा।’’
‘‘हाँ, इनके बारे में तो पता है।’’ माया ने कहा।
 
‘‘ये सब पदार्थ का निर्माण करते हैं। और इनको फर्मियान्स कहा जाता है। इसी तरह जो कण बलों की रचना करते हैं उन्हें बोसाॅन कहा जाता है। इनमें फोटाॅन और ग्लूआॅनस जैसे कण शामिल हैं। टाइम के साथ इनकी पोजीशन और दूसरी दशाएं बदलती रहती हैं। जिसकी वजह से अलग अलग समय में अलग अलग घटनाएं घटित होती हैं। क्या आप बता सकते हैं कि आज से दस साल पहले कोई विशेष पदार्थ कहाँ पर था और उसकी क्या दशा थी?’’
 
‘‘नहीं! भला ये कैसे बताया जा सकता है।’’ रवि ने कहा।
 
‘‘हाँ, आज से हजार साल पहले यही समझा जाता था। क्योंकि तब तक टाइम पार्टिकिल की खोज नहीं हुई थी। यह खोज मात्र दो सौ साल पहले हुई है। इसकी खोज में इतनी देर इसलिए लगी क्योंकि यह दूसरे कणों की तरह डिस्क्रीट न होकर कान्टीनुअस है। अर्थात एक अकेला टाइम पार्टिकिल कोई अस्तित्व नहीं रखता, किन्तु एक अवधि में इसका अस्तित्व दिखने लगता है। समय के साथ हमारी साइंस ने और तरक्की की और विज्ञान टाइम पार्टिकिल को कण्ट्रोल करने में समर्थ हो गया। और इसी के साथ कुछ मजेदार घटनाएं हुईं।’’
 
‘‘कैसी घटनाएं?’’ माया ने पूछा। दोनों को अंदाजा नहीं था कि विज्ञान भी इतना रहस्यमय हो सकता है।
 
‘‘टाइम पार्टिकिल को कण्ट्रोल करने के साथ ही हमने देखा कि सभी मूल कण यानि फर्मियान्स और बोसाॅन भी हमारे कण्ट्रोल में आ गये और हम मनचाहे तरीके से उनसे काम लेने में सक्षम हो गये। दूसरे शब्दों में हम घटनाओं को मनचाहे तरीके से देखने और उन्हें बदलने में सक्षम हो गये। इन्हीं खोजों के द्धारा हम बाद में टाइम मशीन भी बनाने में सफल हो गये। जिसके द्धारा हम भूतकाल या भविष्य में जा सकते हैं।’’
 
‘‘ओह फैण्टास्टिक!’’ दोनों के मुँह से निकला।
 
‘‘टाइम मशीन बनने के साथ ही गेम जोन ने बच्चों के लिए रिएल वर्चुएलिटी गेम का निर्माण किया। लेकिन जल्दी ही इसका दुष्परिणाम भी दिखने लगा। कुछ शरारती लोग इनके द्धारा घटनाओं को बदलकर मनचाहे काम करने लगे। इसलिए बाद में एक यूनिवर्सल कानून बनाया गया कि कोई भी व्यक्ति भूत या भविष्य में जाने के बाद वहाँ की घटनाओं के साथ कोई छेड़ छाड़ नहीं करेगा। रिएल वर्चुएलिटी गेम पर भी रोक लगा दी गयी। लेकिन चोरी छुपे इसका बिकना जारी रहा। मेरे बच्चों को भी ये मिल गया। वे तुम्हारे टाइम में पहुँचकर वहाँ की घटनाओं को बदलने लगे। विमान दुर्घटना, आलीशान महल की उत्पत्ति, फिर उसका गायब हो जाना, तुम लोगों का हमारे टाइम में पहुँच जाना इत्यादि घटनाएं इसी गेम का हिस्सा थीं।’’
 
‘‘ओह, मेरा सर तो शुरू ही से चकरा रहा था। अब तो लगता है गायब हो जायेगा।’’ माया ने एक बार फिर अपना सर थाम लिया।
‘‘तुम लोग चिन्ता मत करो। अपने बच्चों की गलती की भरपायी मैं करूंगा। तुम्हारे टाइम से मैं वह टुकड़ा हटा दूँगा जिसमें ये घटनाएं घटित हुई हैं।’’
 
‘‘तुम्हें यही करना चाहिए।’’ अचानक वहाँ इंस्पेक्टर भी पहुँच गया, ‘‘मैंने सोचा है कि इस बार तुम्हारे बच्चों को वार्निंग देकर छोड़ दिया जाये। लेकिन अगर आइंदा उन्होंने ऐसा किया तो मजबूरन मुझे उन्हें हमेशा के लिए कैद करना पड़ेगा।’’
 
‘‘शुक्रिया इंस्पेक्टर साहब। मैं उनकी तरफ से आपसे वादा करता हूँ कि मेरे बच्चे आइंदा ऐसी गलती हरगिज न करेंगे।’’
..............

वायुयान अपनी गति से मंजिल की ओर अग्रसर था। रवि ने अपनी घड़ी देखते हुए कहा, ‘‘बस थोड़ी ही देर में हम स्विट्जरलैण्ड के हवाई अड्डे पर होंगे।’’
 
‘‘शुक्र है! मैं तो थक गयी बैठे बैठे। रवि मुझे तो ऐसा महसूस हो रहा है कि इस प्लेन ने हवा में कुछ ज्यादा ही वक्त गुजार दिया।’’
 
‘‘हाँ मुझे भी ऐसा महसूस होता है। शायद हम लोग स्विट्जरलैण्ड पहुँचने की उतावली में ऐसा महसूस कर रहे हैं।’’
 
‘‘हो सकता है।’’
 
जबकि उनसे काफी दूर भविष्य में बैठे शशिकान्त के सामने मौजूद टाइम मशीन दिखा रही थी कि रियल वर्चुएलिटी द्धारा रचित सारी घटनाएं मिटाई जा चुकी हैं, साथ ही दोनों की स्मृति से भी उन घटनाओं को मिटा दिया गया है।

....समाप्त..... 
 
ज़ीशान हैदर ज़ैदी : लेखक  
       

Wednesday, December 24, 2014

असली खेल (भाग 4 )

‘‘अगर आपने हमें कुछ नहीं बताया तो हम पागल हो जायेंगे।’’ माया ने भी कहा।
 
इंस्पेक्टर ने बच्चों के बाप की ओर देखा, ‘‘मैं देखूंगा कि आपके बच्चों के साथ क्या कर सकता हूँ। फिलहाल ये आपका फर्ज बनता है कि आप इन दोनों को असलियत बताएं। बगल के कमरे में आप इन्हें ले जायें और पूरी कहानी शुरू से आखिर तक बताएं।’’
 
‘‘ठीक है।’’ बच्चों का बाप उन दोनों से मुखातिब हुआ, ‘‘आईए!’’
 
वह दोनों के साथ एक बार फिर दीवार के पास पहुँचा और अंदर घुसता चला गया। दोनों ने हिचकिचाते हुए उसका अनुसरण किया। उन्हें महसूस हुआ कि वह किसी रूई की दीवार के अंदर घुसते जा रहे हैं।
दूसरी तरफ एक खूबसूरत सजा हुआ कमरा था। बच्चों का बाप एक सोफे पर बैठ गया । सामने वह दोनों भी बैठ गये।
 
‘‘मेरा नाम शशिकान्त है। मैं उन दोनों शरारती बच्चों सीमा और सौरभ का बाप हूँ।’’
‘‘लेकिन यह हमारे साथ क्या हो रहा है? हम लोग क्या किसी दूसरी दुनिया में पहुँच गये हैं?’’
‘‘दुनिया तो वही है लेकिन टाइम बदल गया है। आप लोग इस समय एक हजार साल बाद की पृथ्वी पर हैं। यानि भविष्य में।’’
 
दोनों भौंचक्के रह गये।
 
‘‘लेकिन यह सब कैसे.....?’’ माया गड़बड़ा कर बोली।
 
‘‘ये सब मेरे बच्चों सीमा और सौरभ का किया धरा है। उन्होंने एक गेम ‘रियल वर्चुएलिटी’ खेलते हुए यह हरकत की है। यह गेम वास्तव में हमारे देश में प्रतिबन्धित है लेकिन स्पेस में घूमती हुई कुछ चोर सैटेलाइट यह पायरेटेड गेम बच्चों को बेच रही हैं।’’
 
‘‘यह कैसा गेम है?’’ माया ने हैरत से पूछा।
 
‘‘दरअसल इस जमाने के बच्चे पहले से पहले से बहुत ज्यादा बुद्धिमान हो गये हैं। रही सही कसर आज की शैक्षिक मशीनें पूरी कर देती हैं, जो उन बच्चों के दिमाग में इतनी इन्फार्मेशन भर देती हैं जितनी आज से हजार साल पहले व्यस्कों के दिमाग में होती थी। इसीलिए आजकल बच्चों के गेम भी पूरी तरह अलग हो गये हैं। अब वे काल्पनिक गेम्स जैसे कम्प्यूटर गेम वगैरा खेलना पसंद नहीं करते बल्कि ऐसे गेम खेलना चाहते हैं जिनमें वास्तविक कैरेकटर्स हों। 
बच्चों की इसी मानसिकता को समझकर विश्व की सबसे बड़ी गेम कंपनी गेम्स जोन ने एक गेम तैयार किया रियल वर्चुएलिटी, जिसको खेलते हुए बच्चे भूतकाल में पहुंच जाते हैं। और वहाँ के असली इंसानों को कैरेक्टर्स बनाकर गेम खेलते हैं।’’
 
‘‘यह कैसे पासिबिल है?’’ रवि ने अविश्वास भाव से शशिकान्त को देखा।

....क्रमशः

Monday, December 22, 2014

असली खेल (भाग 3)

दोनों इधर उधर देखते हुए आगे बढ़े और दूसरे कमरे में पहुँच गये। यहाँ दोनों बच्चे फिर मौजूद थे।

‘‘सुनो! लड़की ने लड़के को संबोधित किया, ‘‘मेरी थ्योरी। एक्चुअली हमारा ब्रह्माण्ड एक समयन्तराल में फैलता है और दूसरे में सिकुड़ता है।’’
 
‘‘यह बात तो पुरानी हो चुकी है।’’ लड़के ने बुरा सा मुँह बनाते हुए कहा, ‘‘मैंने तुमसे तीन दिन पहले कहा था कि कोई नयी थ्योरी सोचो।’’
‘‘सोचने के लिए मुझे बहुत दूर जाना पड़ेगा। मैं तो चली।’’ लड़की चलते हुए एक दीवार तक पहुँची और फिर वहाँ से गायब हो गयी।
 
‘‘रुको मैं भी आता हूँ।’’ लड़के ने भी उसका अनुसरण किया।
‘‘रवि, मुझे तो चक्कर आ रहा है।’’ माया सर थामकर नीचे बैठ गयी।
‘‘मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है। लगता है हम लोग वाकई विमान दुर्घटना में मर चुके हैं।’’ रवि भी वहीं जमीन पर बैठ गया।
दोनों के बैठते ही वहाँ का फर्श तेजी से जमीन में धंसने लगा। फिर दोनों तेज गति से किसी अंधेरी सुरंग से गुजरने लगे।
................
 
और जब अंधेरी सुरंग से वो लोग बाहर निकले तो अपने को एक अजीब से कमरे में पाया। इस कमरे में चारों तरफ दीवारों में मशीनें जड़ी हुई थीं। उन्होंने बायीं तरफ सर घुमाया। उधर मौजूद मशीन में एक बड़ी सी स्क्रीन लगी हुई थी और उस स्क्रीन में दोनों बच्चे चलते फिरते दिखाई दे रहे थे।
सामने एक खूबसूरत सोफा रखा हुआ था सोफे की बगल में मौजूद दीवार पर एकाएक किसी मनुष्य की परछाईं बनी और फिर वह वास्तविक मानव में परिवर्तित हो गयी। वह मानव चलता हुआ आया और सोफे पर बैठ गया, फिर उसने आवाज दी, ‘‘कम इन!’’
 
दूसरी दीवार मे एक और परछाईं बनी और फिर वह भी वास्तविक मानव में परिवर्तित होकर कमरे में प्रवेश कर गयी। वह मानव काफी चिंतित दिख रहा था। वह धीरे धीरे चलता हुआ सोफे पर बैठे मानव के सामने आकर रूक गया।
‘‘क्या कहना है तुम्हें?’’ सोफे पर बैठे मनुष्य ने उससे प्रश्न किया।
 
‘‘इंस्पेक्टर साहब, मेरे बच्चे बेकुसूर हैं। आप प्लीज उन्हें छोड़ दीजिए।’’ वह व्यक्ति शायद उन दोनों बच्चों का बाप था।
‘‘इन्होंने बहुत बड़ा जुर्म किया है, और आप कहते हैं कि ये बेकुसूर हैं। आप जानते हैं इनका जुर्म!’’ इंस्पेक्टर ने बच्चों के बाप को घूरा।
 
‘‘जी! उन्होंने इन दोनों शरीफ महानुभावों को परेशान किया है।’’ बच्चों के बाप ने रवि और माया की तरफ देखा।
‘‘तुम्हारे बच्चों ने रियल वर्चुएलिटी गेम खेला है, जिसपर देश का कानून बहुत पहले प्रतिबंध लगा चुका है।’’
 
‘‘पता नहीं कैसे मेरे बच्चों को ये गेम मिल गया। जबसे इसपर प्रतिबंध का कानून बना है, बच्चे चोर सैटेलाइट से इसे डाउनलोड करने लगे हैं। आप लोग ऐसे सैटेलाइट नष्ट क्यों नहीं कर देते?’’
 
‘‘हम ऐसे सैटेलाइट नष्ट करते हैं लेकिन ये कुकुरमुत्तों की तरह दोबारा पैदा हो जाते हैं। आजकल  चोर सैटेलाइट और  पायरेटेड साफ्टहेड की समस्या वाकई बहुत गंभीर हो गयी है।’’
 
‘‘एक्सक्यूज मी!’’ रवि बीच में बोल उठा, ‘‘हमारी कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि ये हमारे साथ क्या हो रहा है।’’

...क्रमशः

Sunday, December 21, 2014

असली खेल (भाग 2)

और जब उसकी आँखों ने दोबारा रोशनी देखी तो उसने अपने को महल से बाहर पड़ा हुआ पाया।
और उसके पास उसका महबूब रवि मौजूद था। दोनों कुछ देर हैरत से एक दूसरे को ताकते रहे फिर दौड़कर आपस में लिपट गये।
‘‘रवि ये देखो इस वीराने में कितना आलीशान महल।’’ माया ने रवि का ध्यान आकृष्ट किया।
‘‘हाँ। वाकई आलीशान है।’’
 
‘‘अंदर से और भी शानदार है।’’ कहते हुए माया ने रवि का हाथ थामा और महल के गेट की तरफ बढ़ी। महल के भीतर प्रवेश करते ही वे एक बार फिर आश्चर्यचकित रह गये। अंदर का माहौल ही बदला हुआ था। चारों तरफ उजाड़ खंडहर दिख रहा था। दीवारों व भूमि पर ऊँची घास और झाड़ियाँ उगी हुई थीं। हर तरफ सीलन की बदबू फैली हुई थी।
 
‘‘य..ये क्या। यहाँ का तो दृश्य ही बदला हुआ है।’’ माया ने हैरत से कहा।
‘‘शायद हम किसी दूसरे महल में आ गये हैं।’’
‘‘लेकिन यहाँ पूरे इलाके में एक ही तो महल दिख रहा है।’’
 
‘‘ये भी हो सकता है जहाज दुर्घटना में हम लोग मर चुके हों। और अब हम दूसरी दुनिया में हैं। जहाँ पल पल में चीजें बदलती रहती हैं।’’ रवि ने अपनी बात पर खुद ही अपने अंदर कंपकंपी महसूस की।
‘‘अगर ऐसा होता तो तुम्हारी दुर्घटनाग्रस्त टाँग भी बदली हुई होती। अरे यह क्या?’’
‘‘क्या हुआ?’’
 
‘‘महल तो फिर पहले जैसा आलीशान हो गया है।’’
रवि ने पहले तो चारों तरफ देखा फिर हैरत से माया की तरफ। क्योंकि उसे कहीं कोई परिवर्तन नहीं दिख रहा था।’’
‘‘माया, तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?’’
‘‘मैं तो अपने आपको पूरी तरह फिट पा रही हूँ।’’ माया ने ख़ुशी से कहा, जबकि रवि उसकी दिमागी हालत पर शक कर रहा था।
 
‘‘ऐसे क्या देख रहे हो। ऊपर देखो कितना शानदार झूमर। अपनी पूरी जिंदगी में और कहीं देखा है ऐसा झूमर!’’
रवि ने ऊपर देखा जहाँ मकड़ी का बड़ा सा जाला लटक रहा था।
‘‘ऐसे झूमर तो किसी भी खंडहर में दिख जाते हैं।’’ रवि ने मजाकिया लहजे में कहा।
 
‘‘मजाक नहीं। मैं तो कहती हूँ यहाँ से कुछ सामान अगर हम पार करके ले जायें तो उसे बेचकर करोड़पति बन जायेंगे।.....अरे वो दोनों कौन हैं?’’ माया ने एक तरफ इशारा किया। रवि ने घूमकर देखा। वहाँ दो छोटे छोटे बच्चे खड़े हुए उन्हीं की तरफ देख रहे थे। उम्र में उनमें से कोई तीन वर्ष से ज्यादा का नहीं था। दोनों ने अपनी पलक झपकायी। अगले ही पल दोनों बच्चे उनके सामने खड़े हुए थे। दोनों में एक लड़का था और दूसरी लड़की।
 
‘‘यार आइंस्टीन का सापेक्षकता का सिद्धान्त तो फ्लाप हो गया।’’ लड़के ने लड़की को संबोधित किया।
‘‘और बिग बैंग थ्योरी भी गलत साबित हो गयी।’’ लड़की ने जवाब दिया।
 
‘‘चलो हम लोग कोई नयी थ्योरी डेवलप करते हैं।’’ लड़के ने लड़की का हाथ पकड़ा और दोनों रवि व माया के बीच से होते हुए पीछे निकल गये। दोनों ने घूमकर देखा। पीछे अब कोई नहीं था। दोनों को एक और हैरत का झटका लगा। एक तो इतने छोटे बच्चों के मुंह से आइंस्टीन की थ्योरी और बिग बैंग सिद्धान्त सुनना ही अपने में महान आश्चर्य था।
 
.....क्रमशः

Saturday, December 20, 2014

असली खेल (भाग 1 )

विज्ञान कथा 
ज़ीशान ज़ैदी - लेखक 

विमान अपनी पूरी रफ्तार के साथ सीधी रेखा में गतिमान था। सारे यात्री सुकून के साथ अपनी सीटों पर बैठे हुए अपनी मंजिल का इंतिजार कर रहे थे।
इसी विमान में एक नवविवाहित जोड़ा भी मौजूद था जिसकी यात्रा स्विट्जरलैण्ड की खूबसूरत वादियों में खत्म होने वाली थी। हनीमून के लिए जाने वाले इस जोड़े में लड़के का नाम रवि था जबकि लड़की का नाम माया था।
 
लेकिन फिलहाल तो इनका जहाज एक उजड़े रेगिस्तानी इलाके से गुजर रहा था।
अचानक जहाज बुरी तरह डगमगाने लगा। अंदर मौजूद सामान हवा में बिखरने लगा और फिर विमान में परिचारिका का संदेश गूंजने लगा। वह सभी यात्रियों को सीट बेल्ट बांधने की हिदायत दे रही थी। क्योंकि तूफान ने जहाज को अपने लपेटे में ले लिया था।
फिर एक तेज धमाका हुआ।
.................
 
जब रवि को होश आया तो उसने दूर विमान का मलबा सुलगते हुए देखा। विमान की दशा से अंदाजा होता था कि उसमें सवार कोई यात्री बचा न होगा। पता नहीं कैसे ये चमत्कार हो गया था कि वह स्वयं अपने को जिन्दा देख रहा था।
उसके दिल पर गमों का पहाड़ टूट पड़ा। अभी तो उसने दिल भर कर अपनी दुल्हन का चेहरा भी न देखा था। अब तो शायद उसकी चिता भी न देख पाये।
 
वह कोशिश करके अपने स्थान से उठा। दुर्घटना ने उसका एक पैर पूरी तरह बेकार कर दिया था। वहाँ पड़ी पेड़ की एक मजबूत टहनी को उसने अपना सहारा बनाया और विमान के मलबे की तरफ बढ़ा। शायद उसे अब भी उम्मीद थी कि उसकी माया जिन्दा होगी।
 
माया ने महान आश्चर्य के साथ सामने देखा। इस वीराने में इतना शानदार महल किसी को भी हैरत में डालने के लिए काफी था। अभी अभी उसने बेहोशी की हालत से आँखें खोली थीं और सबसे पहले उसे यही महल नजर आया था।
उसने इधर उधर नजरें दौड़ायीं। उसे अपने अलावा कहीं कोई मानव नहीं दिखाई दिया। ‘लगता है विमान दुर्घटना में कोई नहीं बचा।’ अफसोस के साथ उसने सोचा। उसे सबसे ज्यादा दुःख रवि की मौत का था।
एकाएक उसे तेज प्यास महसूस हुई।
 
‘‘शायद इस महल के अंदर मुझे पानी मिल जाये।’’ सोचते हुए आगे बढ़कर उसने महल के दैत्याकार दरवाजे को धक्का दिया।
 
वह भारी भरकम दरवाजा इतनी आसानी के साथ खुला मानो कोई मशीनी सिस्टम उसे नियन्त्रित कर रहा हो।
माया अंदर दाखिल हुई। और फिर वह महल की भव्यता देखकर दंग रह गयी। इतना शानदार महल उसने अपने जीवन में कभी नहीं देखा था। एक एक कमरा लगता था सोने चाँदी से बना हुआ है। विशालकाय झूमर से निकलने वाली नीली रोशनी एक ख्वाब जैसा मंजर पेश कर रही थी। आलीशान पुराने स्टाइल में सजे हुए सोफों पर जब वह बैठी तो लगा उसे बचपन की माँ की गोद मिल गयी है। लेकिन हैरत की बात थी कि इतने आलीशान महल का मालिक कहीं दिखाई नहीं पड़ रहा था। यहाँ तक कि जिंदगी के तौर पर वहाँ एक मक्खी भी नहीं दिख रही थी।
 
फिर वह घूमती हुई एक ऐसे कमरे में पहुँची जो और कमरों से भी ज्यादा सजा हुआ था। उस कमरे के बीचोंबीच एक दैत्याकार सिंहासननुमा कुर्सी रखी हुई थी। वह कमरे के सम्मोहन में डूबी यन्त्रवत चलती हुई सिंहासन पर जाकर बैठ गयी।
दूसरे ही पल सिंहासन तेजी से जमीन में धंसने लगा था। इससे पहले कि वह कुछ समझ पाती, उसके चारों तरफ अंधकार छा गया।
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---जारी है