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Tuesday, May 18, 2021

अपाहिज एथलीट 

 ‘‘स्टूडेन्ट्स, कल से स्कूल में सालाना गेम्स स्टार्ट हो रहे हैं। इनडोर, आउटडोर हर तरह के गेम उसमें रहेंगे। रनिंग, लांग व हाई जम्प, क्रिकेट और साथ में शतरंज, लूडो वगैरा भी। अगर आप लोग किसी गेम में हिस्सा लेना चाहें तो मेरे पास अपना नाम लिखवा दें।’’

फिर वह महावीर के पास आयी और बोली, ‘‘आई थिंक कि तुम शतरंज के लिये अपना नाम दे दो। आउटडोर में तो तुम्हारे लायक कोई गेम होगा नहीं।’’
‘‘लेकिन मैं आउटडोर गेम में ही हिस्सा लूंगा।’’ महावीर ने दृढ़ स्वर में कहा।
‘‘क्या?’’ टीचर को हैरत का एक झटका लगा, ‘‘तुम कौन सा आउटडोर गेम खेल सकोगे?’’
‘‘रनिंग!’’ महावीर ने जवाब दिया और पूरी क्लास ठहाका लगाकर हंस दी। सभी को यही लगा कि महावीर मज़ाक कर रहा है।
लेकिन महावीर के चेहरे पर मज़ाक का कोई लक्षण नहीं था। वह पूरी तरह गम्भीर था।
‘‘महावीर! ये तुम क्या कह रहे हो?’’ टीचर ने एक बार उसकी टाँगों की तरफ देखा जहाँ सिर्फ दो ठूंठ थे। और फिर उसके चेहरे पर नज़र की जहाँ पहले की तरह गंभीरता छायी हुई थी, ‘‘बगैर टाँगों के तुम दौड़ में कैसे हिस्सा ले पाओगे?’’
‘‘ये मैं कल बताऊंगा।’’ वह टीचर के साथ साथ सारे स्टूडेन्ट को सस्पेंस में डालकर चुप हो गया।
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अगले दिन पूरा स्कूल उस समय हैरत में पड़ गया जब महावीर ने बिना व्हील चेयर के गेट से अन्दर प्रवेश किया। उसने पैंट पहन रखी थी और कायदे के साथ कदम रखते हुए आगे बढ़ रहा था। वहाँ जितने भी बच्चे व स्टाफ वाले उसे पहचानते थे उसे घूम घूमकर देख रहे थे। हालांकि उसके हाथ पहले की ही तरह अपनी जगह मौजूद नहीं थे।
फिर महावीर ही के क्लास की स्टूडेन्ट नैना आगे बढ़ी। वह भी महावीर की तरह विकलांग थी। फर्क सिर्फ इतना था कि उसकी केवल एक टाँग नहीं थी। वह बैसाखियों का इस्तेमाल करती थी।
‘‘महावीर, ये क्या तुम तो चल रहे हो? यह करिश्मा हुआ कैसे?’’ उसे बातें करते देखकर और भी कई स्टूडेन्ट पास आ गये।
महावीर एक दीवार से टेक लगाकर खड़ा हो गया और बोला, ‘‘मेरी पैंट को थोड़ा ऊपर करके देखो मालूम हो जायेगा।’’
एक लड़के ने आगे बढ़कर उसकी पैंट को ऊपर किया तो वहाँ पर आधुनिक फाईबर की एक छड़ नज़र आयी। यह फाइबर लचीली प्रकृति का था।
‘‘मैं कई दिनों से छड़ों को अपनी जाँघों से बाँधकर चलने की प्रैक्टिस कर रहा था। इसमें सर्कस के एक कलाकार ने मेरी मदद की है। अब मैं व्हील चेयर का मोहताज नहीं रहा। अपने इन ही पैरों के साथ अब मैं दौड़ में हिस्सा लूंगा।’’
स्टूडेन्ट के साथ साथ टीचर्स भी उसे देखकर दंग थे। तमाम कमियों के बावजूद वह कितना मज़बूत था। शायद उन सब से बहुत ज़्यादा।
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यह दौड़ एक किलोमीटर लंबी थी जिसमें महावीर हिस्सा ले रहा था। लंबी दौड़ होने के बावजूद काफी लड़के इसमें हिस्सा ले रहे थे।
अपने तय समय पर दौड़ शुरू हुई और सभी प्रतिभागी अपने अपने ट्रैक पर दौड़ने लगे। बिना हाथों वाले महावीर को ट्रैक पर देखना अजीब था। लगता था किसी रोबोट को टैªक पर छोड़ दिया गया है। हालांकि उसे देखकर कोई यह अंदाज़ा लगा नहीं सकता था कि उसके पैर ही नहीं है बल्कि वह फाइबर छड़ों के सहारे दौड़ रहा है जो ट्रैक सूट के अन्दर छुपी हुई हैं।
तमाम लड़कों के बीच वह आराम से दौड़ते हुए शायद बीसवें या पच्चीसवें नंबर पर था। धीरे धीरे मंज़िल क़रीब आ रही थी। कुछ लड़के थककर बाहर आ गये थे जबकि महावीर धीरे धीरे आगे आता हुआ सातवें - आठवें स्थान पर पहुंच गया था।
अब केवल सौ मीटर बाक़ी थे। महावीर अब चैथे स्थान पर पहुंच गया था। उसकी रफ्तार में इज़ाफा हो रहा था। पचास मीटर तक आते आते वह तीसरी पोज़ीशन पर आ गया और जब दौड़ खत्म हुई तो उसने और एक अन्य लड़के सैफ ने साथ में फीते को छुआ था।
यह कहना बहुत मुश्किल था कि फस्र्ट कौन है और कौन सेकंड।
फैसला टेक्नालाॅजी पर छोड़ दिया गया। जज दौड़ को रिकार्ड करने वाले कम्प्यूटर की तरफ देख रहे थे। फिर फैसला माइक पर एनाउंस हुआ,
‘इस दौड़ में गोल्ड मेडल जीता है सैफ ने। और दूसरे नंबर पर आने वाले महावीर को सिल्वर मेडल मिला है।’
एक शोर के बीच तमाम लड़के सैफ और महावीर को बधाईयाँ दे रहे थे। सैफ मज़बूत हाथ पैरों वाला महावीर ही की उम्र का लड़का था। विकलांगों के स्कूल में उसका एडमीशन इसलिए हुआ था क्योंकि वह जन्मजात बहरा था। हालांकि माडर्न टेक्नालाॅजी ने उसे इस क़ाबिल कर दिया था कि वह एक मशीन की मदद से अब न सिर्फ दूसरों की आवाज़ सुन सकता था बल्कि उनका जवाब भी दे सकता था। कानों में लगी मशीन आवाज़ को कैच करके उसे विद्युत सिग्नलों में बदलती थी जो सीधे उसके मस्तिष्क में पहुंचकर उसे आवाज़ का एहसास दिला देते थे।
अब उन लोगों को मेडल के लिये स्टेज की तरफ ले जाया जा रहा था।
जैसे ही सैफ एनाउंसर के पास पहुंचा उसने एनाउंसर के हाथ से माइक ले लिया और संयोजकों से कुछ कहने की इजाज़त माँगी। संयोजकों ने इजाज़त दे दी।
उसने माइक पर कहना शुरू किया, ‘‘दोस्तों सेकंड के एक छोटे से हिस्से ने मुझे महावीर से आगे कर दिया लेकिन हक़ीक़त ये है कि महावीर ही इस प्रतियोगिता का विजेता है।’’
उसकी बात सुनकर मजमे में खामोशी छा गयी। तो क्या जजों ने गलत फैसला दिया था?
सैफ ने आगे कहा, ‘‘मैं महावीर को विजेता इसलिए मानता हूं कि मैं अपनी दोनों टाँगों की मज़बूती के कारण इस दौड़ में आगे रहा जबकि महावीर ने बिना पैरों की मदद के अपनी इच्छा शक्ति के बल पर दूसरों को पीछे छोड़ दिया। अतः वास्तविक विजेता वही है और मैं जजों से अनुरोध करूंगा कि गोल्ड मेडल उसे ही प्रदान करें।’’
तालियों की ज़ोरदार गड़गड़ाहट इससे पहले कि जजों को अपना फैसला बदलने पर मजबूर करती, महावीर ने कुछ कहने का इरादा ज़ाहिर किया। उसके सामने माइक लाया गया और वह बोलने लगा, ‘‘ये एक हक़ीक़त है कि मैं नंबर दो पर आया हूं। चाहे उसके पीछे कोई भी वजह हो। इसलिए मैं सिल्वर मेडल ही कुबूल करूंगा। और मुझे यकीन है कि जिन नकली पैरों की मदद से मैं सेकंड पोज़ीशन हासिल कर सका हूं एक दिन उन ही पैरों से मैं फस्र्ट भी आऊंगा।’’ उसके इस मज़बूत लहजे पर इतनी तालियां बजीं कि कान पड़ी आवाज़ सुनाई देना बन्द हो गयी।
जबकि महावीर अब सैफ से कह रहा था, ‘‘साॅरी दोस्त, मैं चाहते हुए भी तुमसे हाथ मिला नहीं सकता।’’
‘‘दोस्ती के लिये हाथों की नहीं दिल के मिलने की ज़रूरत होती है।’’ कहते हुए सैफ ने उसे अपने सीने से लगा लिया। यही उन दोनों की दोस्ती का आग़ाज़ था जो आगे न जाने कब तक चलने वाली थी।
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उपरोक्त कहानी उपन्यास अधूरा हीरो का एक भाग है. पूरा उपन्यास निम्न लिंक  उपलब्ध है : 

Wednesday, April 21, 2021

फीरान की जन्नत

 फीरान की जन्नत में वह कहानी समाप्त होती है जो अधूरा हीरो से शुरू हुई थी  और मिस्टर परफेक्ट में परवान चढ़ी। दुनिया का अत्याचारी शासक फीरान डा जिन्दाल की बनाई भविष्यद्रष्टा मशीन में अपने काल को देखता है तो उस बच्चे को पेट में ही अपंग कर देता है । लेकिन वह अपाहिज बच्चा महावीर अपनी हिम्मत के बल पर जवान हो जाता है और  दुनिया के सर्वाधिक शक्तिशाली व क्रूर शासक से टकरा जाता है. रहस्य रोमांच की नई दुनियाओं के सैर कराते हैं ये उपन्यास। 

सभी उपन्यासों के पेपरबैक व ई बुक दोनों संस्करण इस लिंक पर उपलब्ध हैं :  



Tuesday, April 6, 2021

अधूरा हीरो भाग 8

 फीरान का खास वज़ीर हरस गुस्से में भरा हुआ अपने आलीशान कमरे में टहल रहा था। उसके इस कमरे में हर चीज़ सोने या प्लैटिनम की बनी हुई थीं। सोने की कुर्सियां, प्लैटिनम का बेड और छत से लटकते हीरे के फानूस ये ज़ाहिर करने के लिये काफी थे कि वह दुनिया के सम्राट फीरान का खास है।

लेकिन इस समय इस कमरे का कोई आकर्षण उसके गुस्से को ठंडा नहीं कर पा रहा था। यहाँ तक कि दरवाज़े से अन्दर दाखिल होने वाली वह खूबसूरत औरत भी उसके चेहरे के भावों में कोई बदलाव नहीं ला सकी।
जब हरस ने उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया तो उसने खुद ही उसे मुखातिब किया, ‘‘इतने गुस्से में क्यों हो हरस बाॅस?’’
‘‘मेरे गोल्डी और प्लैटी पर हाथ उठाने की उन रोबोटों की हिम्मत कैसे हुई। आओ तुम्हें दिखाऊं कि उन टीन के डब्बों ने मेरे बच्चों का क्या हाल किया है।’’ उसने उस औरत का हाथ पकड़ा और कमरे से बाहर निकल आया। अब वह तेज़ी से एक गैलरी में चला जा रहा था। उसका साथ देने के लिये उस औरत को लगभग दौड़ना पड़ रहा था।
फिर हरस दूसरे कमरे में घुस गया। वहाँ दो बेड पड़े हुए थे। और उनपर गोल्डी और प्लैटी मौजूद थे, ऊपर से नीचे तक पट्टियों में जकड़े हुए। उनके मुंह से कराहें फूट रही थीं।
‘‘मेरे बच्चों! तुम घबराओ नहीं। जिन रोबोटों ने तुम्हारा ये हाल किया है, उन्हें मैं छोडं़ूगा नहीं। सबको कबाड़ बनाकर उनकी रीसाइक्लिंग करा दूंगा।’’ हरस गुस्से में कह रहा था।
‘‘लेकिन उन रोबोटों ने ऐसा किया क्यों? इसके पीछे कोई वजह ज़रूर होगी।’’ उस औरत ने कहा जो वास्तव में हरस की खास सेक्रेटरी जूली थी।
‘‘जैसा कि गोल्डी ने बयान दिया है कि उनमें से एक रोबोट ने उसे काम करने का आदेश दिया था। गुस्से में उसने उसे नष्ट कर दिया। उसके जवाब में कई रोबोटों ने मिलकर दोनों पर हमला कर दिया। लेकिन ये बात मुझे भी खटक रही है। रोबोटों का ये व्यवहार अप्रत्याशित था, क्योंकि वे उनही मनुष्यों से काम ले सकते हैं जिनसे काम लेने का उन्हें आदेश दिया गया हो। कुछ न कुछ गड़बड़ ज़रूर है।’’ हरस सोच मे पड़ा हुआ इधर से उधर टहल रहा था। फिर वह जूली की तरफ घूमा,
‘‘जूली। तुम एक काम करो। जो रोबोट उस हमले में शामिल थे, उनकी मेमोरी स्कैन करके मालूम करो कि उन्होंने ऐसा व्यवहार क्यों किया।’’
‘‘ओ. के. बाॅस।’’ कहती हुई जूली वहाँ से निकल गयी।
हरस गोल्डी के पास बैठकर उसे चिंतित नज़रों से देखने लगा जिसके मुंह से कराहें फूट रही थीं।
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महावीर अपने कमरे में बैठा सोच में डूबा हुआ था। सोच इतनी गहरी थी कि उसे जयंती के आने का भी एहसास न हुआ।
‘‘महावीर!’’ जयंती ने उसे संबोधित किया और वह चैंक पड़ा।
‘‘अरे माँ, तुम कब आयीं?’’
‘‘मैं तो बहुत देर से यहाँ पर मौजूद हूं। लेकिन मैं देख रही हूं कि जब से तुम फीरान के शहर को देखकर आये हो तभी से किसी सोच में खोये रहते हो। बात क्या है आखिर?’’
‘‘माँ, मैंने फीरान के शहर में देखा, कि वहाँ इंसान की हालत जानवरों से भी बदतर है। वो लोग मशीनों की गुलामी कर रहे हैं।’’ महावीर के चेहरे पर अफसोस के भाव थे।
‘‘अब ये गुलामी हमेशा के लिये तमाम लोगों का मुकद्दर बन चुकी है। क्योंकि फीरान के शासन में यही होना है। वह अपनी मशीनों को इंसानों के ऊपर कोड़े बरसाते देखकर खुश होता है।’’
‘‘क्या दुनिया में कोई ऐसा नहीं जो फीरान के खिलाफ आवाज़ उठा सके?’’
‘‘बहुत से लोगों ने आवाज़ उठायी और मौत के घाट उतार दिये गये। वह सर्वशक्तिमान है। उसने मौत को भी अपने काबू में कर लिया है। उसे कभी नेचुरल मौत नहीं आ सकती। लेकिन तू इन सब बातों में मत पड़। हम लोग यहाँ इस छोटे शहर में आराम से हैं। यहाँ किसी को कोई खतरा नहीं।’’ जयंती ने उसका ध्यान फीरान पर से हटाने की कोशिश की लेकिन महावीर के दिमाग पर लगता था, कि फीरान बुरी तरह सवार हो गया है।
‘‘दुनिया का कोई ज़ालिम अपने अंजाम से बच नहीं सका है। तो फिर फीरान कैसे बच सकता है। कोई तो होगा जो उसे उसके अंजाम तक पहुंचायेगा।’’
‘‘पता नहीं।’’ जयंती ने फिर उसे इस टाॅपिक से अलग करने की कोशिश की, ‘‘अभी टीवी पर तुम्हारे मनपसंद कैरेक्टर वाली साइंस फिक्शन फिल्म आने वाली है। लगता है तुम्हें याद नहीं।’’
‘‘अरे हाँ, मैं तो भूल ही गया था।’’ महावीर ने घड़ी पर नज़र की, ‘‘वह तो अब शुरू भी हो गयी होगी। रिमोट कहाँ है?’’
जयंती ने एक तरफ रखा रिमोट उठाया और आॅन का बटन दबा दिया। कमरे की एक दीवार रौशन होकर किसी टीवी की तरह प्रोग्राम दर्शाने लगी। इस समय की टेक्नालाॅजी ने ये आसानी पैदा कर दी थी कि वे किसी भी कमरे में बैठे बैठे उस कमरे की किसी दीवार को टीवी स्क्रीन बनाकर मनचाहा प्रोग्राम देख सकते थे।
फिल्म शुरू हो गयी थी। अचानक वहाँ कालबेल की आवाज़ गूंजी।
‘‘इस वक्त कौन आ गया।’’ महावीर ने बुरा सा मुंह बनाकर कहा।
‘‘कौन?’’ जयंती ने दरवाज़े पर जाकर पूछा।
‘‘मैं हूं आँटी।’’ बाहर से सैफ की आवाज़ आयी और जयंती ने दरवाज़ा खोल दिया। बाहर सैफ मौजूद था लेकिन इस हालत में कि उसके पीछे दो भारी भरकम व्यक्ति भी मौजूद थे जिनकी गनें सैफ की कमर से लगी हुई थीं। उनकी यूनिफार्म से ज़ाहिर था कि वे पुलिस वाले हैं। जयंती के दरवाज़ा खोलते ही उन्होंने सैफ को धक्का दिया और साथ में खुद भी अन्दर आ गये।
‘‘चलो उठो।’’ अन्दर आने के साथ ही उन्होंने महावीर को हुक्म दिया।
‘‘क..कहाँ, कहाँ ले जा रहे हो मेरे बेटे को?’’ जयंती घबराकर बोली।
‘‘ये लोग फीरान के शहर में हंगामा करके भागे हैं। इस जुर्म में इनको अरेस्ट करने का आदेश हुआ है। चलो उठो फौरन।’’ पुलिस वाला बोला।
‘‘पता नहीं कैसे इन लोगों को यह गलतफहमी हो गयी है कि वहाँ के हंगामे के पीछे हमारा हाथ है। मेरी कोई बात मानने को तैयार ही नहीं।’’ सैफ बोला।  
फिर जयंती रोती गिड़गिड़ाती रही लेकिन पुलिस वाले नहीं पसीजे। महावीर को देर करता देखकर उन्होंने गन की नाल पर उसे उठने पर विवश कर दिया। महावीर ने अपनी माँ को सांत्वना दी और फिर अपनी नकली टाँगों पर धीरे धीरे चलता हुआ बाहर आ गया। जहाँ पुलिस की गाड़ी मौजूद थी।
‘‘आप लोग हमें कहाँ ले जायेंगे।’’ महावीर ने पूछा।
‘‘गाड़ी में तो पहले बैठ बच्चू। पता चल जायेगा। तुम लोग समझते थे कि जुर्म करके निकल जाओगे और किसी को पता नहीं चलेगा। लेकिन प्रशासन की आँखें बहुत तेज़ होती हैं।’’ पुलिस वालों ने दोनों को आगे धकेला और दोनों खामोशी से गाड़ी में बैठ गये।
उनके बैठते ही गाड़ी हवा हो गयी।
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उनका सफर खत्म हुआ और एक आलीशान बंगले के खूबसूरत पोर्च में गाड़ी दाखिल हो गयी। यह बताने की कोई ज़रूरत नहीं थी कि यह हरस का बंगला है।
‘‘चलो उतरो तुम दोनों।’’ एक बार फिर दोनों पुलिसवालों ने गन उनकी तरफ तान दी।
‘‘भाई ये गन क्यों दिखा रहे हो। हम लोग अपाहिज हैं। मैं तो हाथ पैर कुछ भी नहीं हिला सकता।’’ महावीर ने लाचारी से कहा।
‘‘वह तो मैं भी देख रहा हूं। लेकिन हमें बताया गया है कि तुम दोनों बहुत खतरनाक हो। इसलिए चुपचाप हमारे साथ चलो।’’
दोनों गाड़ी से बाहर निकले और पुलिस वालों के साथ आगे बढ़ने लगे। जल्दी ही वे एक कमरे में पहुंचा दिये गये। जहाँ दो व्यक्ति ऊपर से नीचे तक पट्टियों में ढंके व्हील चेयर्स पर बैठे थे। यहाँ तक कि उनके चेहरे पर सिर्फ आँखें ही दिख रही थीं। इन दोनों को उनके सामने पहुंचा दिया गया।
‘‘यार क्या ये लोग स्वर्ग या नर्क के यमदूत हैं?’’ सैफ ने महावीर से पूछा।
‘‘ये तो इनके प्लान को जानने के बाद ही पता चलेगा कि ये लोग हमें कहाँ भेजना चाहते हैं।’’ हमेशा की तरह महावीर के इत्मिनान में कोई फर्क नहीं आया था।
उसी समय वहाँ हरस ने अपनी सेक्रेटरी जूली के साथ प्रवेश किया। और उन्हें घूरने लगा।
‘‘तो तुम दोनों हो।’’ उसने ऊपर से नीचे तक उनका निरीक्षण करने के बाद बोला।
‘‘जी, हम तो सैफ और महावीर हैं। शायद आपके लोग गलती से हमें उठा लाये हैं।’’ महावीर कोमल स्वर में बोला।
‘‘हम लोगों से कभी कोई गलती नहीं होती। जूली तुम बताओ इन्हें।’’ हरस ने उसी तरह उन्हें घूरते हुए कहा।
फिर जूली ने फीरान के शहर में घटी तमाम घटनाएं बतानी शुरू कर दीं। किस तरह महावीर ने अपने पहरेदार रोबोट को गोल्डी व प्लैटी की तरफ भेजा और फिर किस तरह झगड़े की शुरूआत हुई और उसमें सैफ ने कैसे आग में घी डाला यह तमाम बातें जूली ने इस तरह बता दीं मानो वह उस जगह मौजूद थी और सब कुछ अपनी आँखों से देख रही थी।
‘‘ये सब आपको कैसे पता चला?’’ सैफ ने धीरे से पूछा।
‘‘हम लोग ऐसे ही पूरी दुनिया पर कब्ज़ा नहीं कर चुके हैं। हमारी डिटेक्टिव डिवाईसेज पल पल की खबर हम तक पहुंचाती रहती हैं।’’ हरस ने गर्व से कहा। लेकिन महावीर को ये देखकर इत्मिनान हुआ कि उन्हें लड़ाई से पहले की खबर नहीं थी जब उसने एक रोबोट को उसी की प्रोग्रामिंग में उलझा दिया था और थोड़ी देर बाद उस रोबोट के सर्किट में आग लग गयी थी।
इसका मतलब उनके सुरक्षा घेरे में लूप होल्स मौजूद थे।
‘‘डैड, अब देर मत करो और इन दोनों को ऊपर का टिकट पकड़ा दो।’’ पट्टियों में जकड़े दोनों यमदूतों में से एक के मुंह से आवाज़ आयी। अब इनकी समझ में आया कि वो दोनों यमदूत लगने वाले वास्तव में गोल्डी और प्लैटी थे।
‘‘अरे आप लोगों की ऐसी हालत कैसे हुई?’’ महावीर उनकी ओर देखते हुए हमदर्दी से पूछने लगा।
‘‘फिकर मत करो। तुम लोगों की हालत इससे भी ज़्यादा बुरी होने वाली हैं।’’ पट्टियो के अन्दर से गोल्डी की आवाज़ फिर आयी, ‘‘डैड आप क्या कर रहे हैं! इन लोगों को जल्दी से खत्म कीजिए।’’
‘‘गोल्डी बेटा! बिल्कुल नहीं मालूम होता कि तुम हरस के बेटे हो।’’ हरस ने अपने बेटे को पुचकारा।
‘‘वह क्यों?’’ गोल्डी की नाराज़गी भरी आवाज़ सुनाई दी।
‘‘बेटा। मैं फीरान का वज़ीर हूं। और तुम मेरे बेटे हो। हम लोग अपने दुश्मनों को आसानी से नहीं मारते। बल्कि तड़पा तड़पा कर मारते हैं।’’ हरस ने खौफनाक हंसी के साथ कहा।
‘‘तो फिर इन्हें तड़पाईए। ताकि हमारे दिल को सुकून मिले। हाय, उन रोबोटों ने इतनी बुरी तरह मारा है कि अभी भी हमारी हड्डियां चटख रही हैं।’’ गोल्डी कराहते हुए बोला।
‘‘अब हम इनकी हड्डियां गलायेंगे।’’ हरस गुर्राया, ‘‘इन दोनों को ले जाओ और एसिड के हौज़ में डुबो दो। और फिर इनके बचे खुचे कंकाल को बीच चैराहे पर लटका देना। ताकि फिर कोई ऐसी गलती करने की हिम्मत न करे।
उसके इस हुक्म के साथ ही उसके आदमी दोनों की तरफ बढ़े।
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आगे क्या हुआ इसे जानने के लिये पढ़ें इस धारावाहिक का अगला भाग। 
पूरी कहानी एक साथ पढ़ने के लिये इस लिंक पर जाएँ   

Wednesday, March 24, 2021

अधूरा हीरो भाग 7

 ‘‘अब बोलो। अपाहिजों! तुम लोग सोच रहे थे कि हमसे बच जाओगे। देखा कैसा पकड़ा।’’ गोल्डी कमर पर हाथ रखे हुए उन्हें घूर रहा था। बगल में मौजूद प्लैटी व्यंग्य से मुस्कुरा रहा था।

‘‘भाई! हमारी तो आपसे कोई दुश्मनी नहीं।’’ महावीर ने कोमल स्वर में कहा।
‘‘हां। हमने तो आपको हास्पिटल भिजवा दिया था।’’ सैफ भी जल्दी से बोला।
‘‘खामोश! तुम लोगों ने हमें गधा समझा है। क्या हमें मालूम नहीं कि तुम लोगों ने प्लान करके हमारा एक्सीडेंट कराया था।’’ गोल्डी दहाड़ा।
‘‘और फिर हमारा मंहगा लंच भी चट कर गये थे।’’ प्लैटी ने भी टुकड़ा लगाया।
‘‘वह तो आपकी फ्रेंड्स ने खुद हमें दिया था।’’ सैफ पूरे भोलेपन के साथ बोला। 

दोनों के चेहरों से इस समय ऐसा ही लग रहा था मानो छोटे बच्चे मासूम सी शरारत करने के बाद सर झुकाए बड़ों से डाँट खा रहे हों।
‘‘अब हम भी कुछ देने वाले हैं। अच्छा हुआ तुम लोग हमारे बाप के इलाके में आ गये।’’
‘‘बाप का इलाका? क्या आपके बाप कोई डाकू टाइप की हस्ती हैं?’’
‘‘चुप!’’ गोल्डी फिर तैश में आ गया, ‘‘तुझे पता नहीं मेरे बाप ही की देख रेख में ये पूरा शहर बनाया जा रहा है।’’
‘‘हां। कुछ कुछ अनुमान हमें लग गया था।’’ महावीर ने एक बार फिर काम करते हुए बेबस कारीगरों के फटे कपड़ों की ओर देखा और फिर पलट कर गोल्डी व प्लैटी के सजे धजे कपड़ों की ओर, जिसमें सोने व चाँदी के बने रेशों का इस्तेमाल किया गया था।

‘‘आप हमें कुछ देने की बात कर रहे हैं?’’ सैफ ने गोल्डी के टोका।
‘‘हाँ। हम तुम्हें अपने शहर में काम देने वाले हैं।’’ गोल्डी मुस्कुराया।
‘‘हाँ। बेगारी।’’ प्लैटी भी हंसने लगा।

फिर गोल्डी ने अपनी जेब से एक सीटी निकालकर बजायी। दूसरे ही पल वहाँ कई कनस्तरनुमा रोबोट आकर इकट्ठा हो चुके थे।
‘‘इन दोनों को ले जाकर काम पर लगा दो।’’ गोल्डी ने उन रोबोटों को हुक्म दिया।
‘‘ये तो काम कर लेगा। लेकिन मेरे तो हाथ ही नहीं हैं।’’ महावीर जल्दी से बोला।
‘‘हमारी गर्ल फ्रेंड्स ने बता दिया है कि तुम अपनी ज़बान व दाँतों का बहुत अच्छा इस्तेमाल करते हो। तुम्हें वैसा ही काम दिया जायेगा।’’ फिर गोल्डी रोबोट से बोला, ‘‘इनको ले जाओ और हीरों पर पालिश करने का काम दे दो। और ये अपनी दाँतों से पालिश करेगा।’’ अंतिम वाक्य उसने महावीर की ओर इशारा करके कहे थे।
‘‘और अगर हम यह काम न करना चाहें?’’ सैफ ने पूछा।
‘‘यहाँ पर किसी की चाहत नहीं, हमारा हुक्म चलता है। अगर तुम इससे इंकार करोगे तो इलेक्ट्रानिक कोड़े तुम्हारी हड्डियों को डाँस करवा देंगे। ले जाओ इन्हें।’’

इसी के साथ रोबोट उन लोगों को धक्का देते हुए आगे बढ़ाने लगे।
‘‘यार यह तो बुरा हुआ।’’ सैफ ने महावीर को मुखातिब किया।
‘‘हाँ, आये थे सैर करने और यहाँ काम पर लगा दिये गये।’’ अभी भी महावीर के चेहरे पर परेशानी का कोई निशान नहीं था। जल्दी ही रोबोट उन्हें लेकर एक निर्माणाधीन इमारत के पास पहुंच गये। और उन्हें हीरों की पालिश का काम सौंप दिया गया।

उन्होंने काम शुरू कर दिया। दो रोबोट उनकी निगरानी पर तैनात हो गये थे। जिनके हाथों की जगह पर कोड़े लटक रहे थे। खास तरह के इलेक्ट्रानिक ब्रश उन्हें थमा दिये गये थे जिनसे दीवार में लगे हीरों पर पालिश करके उन्हें चमकाना था। सैफ ने हाथों से जबकि महावीर ने ब्रश मुंह में दबाकर काम शुरू कर दिया।
सैफ ने घूमकर देखा। गोल्डी व प्लैटी के हाथों में बियर के कैन मौजूद थे और दोनों उसकी चुस्कियां लेते हुए किसी बात पर हंस रहे थे।

‘‘कमबख्तों। एक बार मौका मिल जाये। ऐसा मज़ा चखाऊंगा कि।’’ सैफ दाँत पीसकर कह रहा था। महावीर ने भी कनखियों से दोनों की तरफ देखा जो उनसे काफी दूरी पर थे। फिर उसने हीरों के पैटर्न पर नज़र की जो काफी ऊंचाई तक एक खूबसूरत डिज़ाईन बनाता हुआ चला गया था। उसी की उसे पालिश करनी थी।
उसने देखा कि उन हीरों में से कुछ मज़बूती से नहीं जमे थे और हिल रहे थे। उसने एक नज़र पहरेदार रोबोट पर डाली और फिर उन ढीले हीरों पर अपने ब्रश का ज़ोर लगाया। नतीजे में वह ढीले हीरे उखड़ कर नीचे गिर गये।
‘‘वो हीरे नीचे गिर गये हैं। उन्हें उठाकर वापस लगाओ।’’ पहरेदार ने हुक्म दिया।

‘‘मुझे पालिशिंग का काम दिया गया। हीरे लगाना मेरा काम नहीं। और वैसे भी मेरे हाथ पैर दोनों नहीं हैं। मैं उन्हें उठा ही नहीं सकता।’’ महावीर ने जवाब दिया।  
‘‘तो फिर किसी और से बोलो।’’
‘‘सभी अपना काम कर रहे हैं। अगर तुमने किसी को दूसरा काम दिया तो उसका टार्गेट टाइम के अन्दर पूरा नहीं हो पायेगा। तुम खुद ही उठा कर लगा दो।’’
‘‘मुझे इसकी आज्ञा नहीं है ये काम केवल कोई मनुष्य ही कर सकता है।’’ रोबोट का जवाब था।
‘‘तो फिर मैं तुम्हें दो मनुष्यों के बारे में बताता हूं जो फ्री हैं और ये काम कर सकते हैं।’’
‘‘कौन?’’ रोबोट ने पूछा।
‘‘वह देखो।’’ महावीर ने गोल्डी और प्लैटी की तरफ इशारा किया।
रोबोटों ने उनकी ओर देखा और फिर कहने लगा, ‘‘हमें उन लोगों से काम लेने की आज्ञा नहीं है।’’
‘‘अच्छा तो अगर ये हीरे उखड़े रह गये तो क्या होगा?’’
‘‘तो फिर हमें अपनी लापरवाही के लिये नष्ट कर दिया जायेगा।’’
‘‘ये एक इमरजेन्सी है। जिसमें तुम कुछ आज्ञाओं को तोड़ सकते हो। इसलिए जाओ और उन दोनों फालतू व्यक्तियों को काम पर लगा दो।’’ महावीर ने समझाया और रोबोट की समझ में बात आ गयी। वह दोनों साहबज़ादों की तरफ बढ़ा। और जल्दी ही उनके पास पहुंच गया।

महावीर अब महल की दीवार से टेक लगाकर आगे के तमाशे का इंतिज़ार कर रहा था। रोबोट जल्दी ही उन दोनों के पास पहुंच गया। फिर उसने शायद उन्हें काम करने का हुक्म दिया था। क्योंकि अब दोनों के चेहरों पर सख्त गुस्से के आसार नज़र आने लगे थे। हालांकि उस तक उनकी बातचीत की आवाज़ नहीं पहुंच रही थी।
फिर उन्हें यह देखकर मज़ा आ गया कि रोबोट का दाहिना चाबुक धड़ाक से गोल्डी की पीठ पर पड़ा और गोल्डी तिलमिला गया। दूसरे ही पल गोल्डी ने जेब से एक विशेष पिस्टल निकाली और रोबोट पर फायर कर दिया। पिस्टल से पीले रंग की किरण निकलकर रोबोट पर पड़ी और रोबोट धड़ धड़ जलने लगा।

‘‘अरे तुम्हारे साथी को उन्होंने मार दिया।’’ सैफ ने चीखकर अपनी निगरानी पर तैनात रोबोट से कहा और वह घूमकर उधर देखने लगा।
‘‘हाँ। उन्होंने उसे मार दिया।’’ सैफ को देखकर निराशा हुई कि रोबोट ने कोई भाव ही प्रकट नहीं किया। उसे उम्मीद थी कि उसकी निगरानी पर तैनात रोबोट अपने साथी की मौत का बदला लेने के लिये दौड़ा चला जायेगा और वह भी फ्री हो जायेगा।

‘‘सुनो। जिस रोबोट को उन्होंने खत्म किया है वह मेरी निगरानी कर रहा था।’’ अब महावीर ने उस रोबोट को संबोधित किया।
‘‘हाँ, तुम ठीक कहते हो।’’ रोबोट ने महावीर का सत्यापन किया।
‘‘तो अब मेरी निगरानी नहीं होगी। फिर मैं अपना टार्गेट पूरा नहीं करूंगा। और फिर तुम सब नष्ट कर दिये जाआगे।’’ महावीर ने उसे समझाया।
‘‘तो मुझे क्या करना चाहिए?’’ रोबोट ने पूछा।
‘‘जिन मनुष्यों की वजह से यह प्राब्लम हुई है उन्हें मार मारकर सबक सिखा दो।’’
‘‘ठीक है।’’ इस बार बात रोबोट की समझ में आ गयी और वह उस तरफ बढ़ने लगा।
‘‘अपने साथ कुछ और रोबोटों को लिये जाओ, वरना वह तुम्हें भी पहले वाले की तरह मार देंगे।’’ चलते चलते महावीर ने एक सुझाव और दे दिया।

रोबोट ने सर हिलाया और अपने साथ पाँच छह और रोबोटों को इकट्ठा करके गोल्डी व प्लैटी की तरफ बढ़ा। जब दोनों ने एक साथ इतने रोबोटों को आते देखा तो घबराकर कई फायर किये। और कई रोबोट तेज़ी से जलने लगा। जबकि बचे हुए रोबोटों ने दोनों की पिटाई शुरू कर दी। उनके मस्तिष्क में मनुष्यों को खत्म करने की बात नहीं भरी गई थी वरना अब तक गोल्डी व प्लैटी की लाशें वहाँ बिछ चुकी होतीं। दोनों के हाथों से उनकी पिस्टल्स छूटकर न जाने कहाँ गुम हो गयी थीं।

वहाँ अच्छा खासा हंगामा मच गया था। कारीगर चिल्ला रहे थे। उनपर निगरानी रखने वाले रोबोटों की प्रोग्रामिंग इस नई सिचुएशन में गड़बड़ा गई थी और वे इधर उधर कटी पतंगों की तरह चकरा रहे थे।
‘‘मौका अच्छा है। अब हम धीरे से खिसक लेते हैं।’’ महावीर ने सैफ को मुखातिब किया।
दोनों धीरे धीरे शहर की एण्ट्री की तरफ बढ़ने लगे।
‘‘यार मेरे कहने पर वह रोबोट हिला भी नहीं और तुम्हारे कहने पर वह अपने साथियों को लेकर लड़ने मरने पहुंच गया। ऐसा क्यों?’’ सैफ ने पूछा।

‘‘मैं यहाँ मौजूद रोबोटों की प्रोग्रामिंग को कुछ हद तक समझ गया हूं। इनके दिमाग में जो फीड है उसमें सबसे अहम है टार्गेट। ये टार्गेट के रास्ते में आने वाली हर रुकावट को खत्म करने के लिये बनाये गये हैं। चाहे उसके लिये इनको अपनी जान देनी पड़े या किसी की लेनी पड़े। मैंने इसी चीज़ को इस्तेमाल करके उन्हें गोल्डी व प्लैटी से लड़वा दिया।’’ महावीर ने बताया।

अब तक वे अपनी किराये की फ्लाइंग बाइक तक पहुंच चुके थे। फिर उन्हें पहाड़ को पार करने में बहुत कम वक्त लगा। अब उन्हें शहर की तरफ से सायरन की आवाज़ें सुनाई पड़ने लगी थीं। शायद मामला इतना बिगड़ चुका था कि पुलिस फोर्स बुलानी पड़ गयी थी।
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Tuesday, March 23, 2021

अधूरा हीरो भाग 6

जब महावीर ने जयंती से इस बारे में बात की तो पहले तो वह तैयार नहीं हुई फिर जब उसे पता लगा कि सैफ भी साथ में जा रहा है तो उसने इजाज़त दे दी इस शर्त के साथ कि वह लगातार फोन पर उससे सम्पर्क में बना रहेगा।

फिर कुछ ही देर बाद दोनों फीरान के शहर को देखने के लिये लोकल इण्टरस्टेट ट्रेन में सवार हो चुके थे। ठीक दो घण्टे के बाद ट्रेन अपने गंतव्य पर पहुंच चुकी थी।
ये शहर पहाड़ों के बीच एक घाटी में बन रहा था और उसे देखने के लिये पहाड़ों को पार करना ज़रूरी था। उस शहर तक जाने के लिये लोगों को सख्त पहरे से गुज़रना पड़ता था और साथ ही कुछ न कुछ शहर के निर्माण में नज़राना भी देना पड़ता था।

दोनों ने पहाड़ को पार करने के लिये एक छोटी बाइक किराये पर ली। और इस चक्कर में उनकी जेब अच्छी खासी खाली हो गयी। क्योंकि वहाँ पर फ्लाइंग बाइक का किराया बहुत ज़्यादा था।

फिर सैफ ने बाइक संभाली और महावीर पीछे बैठ गया। अब बाइक का रुख ऊपर की तरफ था। जल्दी ही वे लोग पहाड़ की चोटी पर पहुंच गये। वहाँ पहुंचने के साथ ही उनकी आँखें चकाचौंध के कारण बन्द हो गयीं।
सूरज की रोशनी में सामने पूरी घाटी चमक रही थी। कीमती धातुओं से बनी महल नुमा इमारतें रंग बिरंगी रोशनी बिखेर रही थीं।

‘‘यहाँ तो लगता है जन्नत ज़मीन पर उतर आयी है।’’ सैफ ने मानो सपने में कहा। उसने बाइक वहीं टिका दी थी।
अभी वह लोग सामने के नज़ारे को देख ही रहे थे कि बगल की चट्टान की ओट से निकलकर एकाएक दो व्यक्ति उनके सामने आ गये। दोनों के हाथों में बंदूकें थीं। वर्दी से आर्मी के फौजी मालूम हो रहे थे।
‘‘हाल्ट, तुम लोग यहाँ क्या कर रहे हो।’’ उनमें से एक ने टोका।  
‘‘हम लोग उस शहर को देखने के लिये आये हैं।’’ महावीर ने जवाब दिया।
‘‘देखने का परमिट दिखाओ।’’ सामने वाले ने हुक्म दिया।
‘‘परमिट?’’ दोनों को हैरत हुई। उन्हें नहीं मालूम था कि शहर को देखने के लिये परमिट की ज़रूरत होगी। 

फिर जब वे वहाँ से आगे बढ़े तो उनकी जेब अच्छी खासी हल्की हो चुकी थी। जल्दी ही वे घाटी में पहुंच गये। अब सोने व चाँदी के महलनुमा घर उनके ठीक सामने थे। उनमें से बहुत से मुकम्मल हो चुके थे और काफी बन भी रहे थे।
‘‘लगता है, बहुत जल्द इस धरती पर स्वर्ग बनने वाला है।’’ सैफ ने तारीफी नज़रों से चारों तरफ देखा।
‘‘हाँ। यहाँ पर फीरान की जन्नत बन रही है। तुम लोग खुशियाँ मनाओ। लेकिन उस जन्नत में तुम लोगों को रहने को नहीं मिलेगा। हा हा हा।’’ वह कोई दीवाना लग रहा था जिसने ये अलफाज़ अदा किये थे। मैले कुचैले फटे कपड़े पहने बाल बढ़ाये वह इधर उधर चकरा रहा था। फिर वह उसी तरह कहकहे लगाते हुए आगे बढ़ गया।
‘‘दुनिया की कोई जगह दीवानों से खाली नहीं।’’ सैफ ने ठंडी साँस लेकर कहा।
‘‘वैसे ये जगह है ज़बरदस्त।’’ महावीर तारीफी नज़रों से चारों तरफ देख रहा था।

अचानक उन्हें अपने पीछे कराहने की आवाज़ आयी। घूमकर देखा तो एक कमज़ोर व्यक्ति जिसका पेट अंदर धंसा हुआ था, एक निर्माणाधीन महल की दीवार पर हीरों की नक्काशी कर रहा था। उसका एक हाथ अपने धंसे हुए पेट पर था और दूसरे हाथ से वह बाल्टी में भरे हीरे उठा उठाकर सोने की दीवार में फिट कर रहा था। हालांकि उसकी हालत से लग रहा था कि वह अब गिरा तब गिरा। वह लगातार कराह रहा था।

दोनों उसके पास पहुंचे।
‘‘भाई! लगता है तुम बहुत थक गये हो। थोड़ी देर आराम क्यों नहीं कर लेते?’’ महावीर ने हमदर्दी से कहा।
‘‘आराम!’’ उसके होंठों पर एक फीकी हंसी आयी, ‘‘इस लफ्ज़ को हम भूल चुके हैं।’’
‘‘अच्छा तो कुछ खा लो। मुझे लगता है तुम भूखे हो। काम तो होता ही रहेगा।’’
‘‘आठ घण्टे में बस दस मिनट मिलते हैं खाना खाने के लिये।’’ उसी तरह काम करते हुए वह व्यक्ति बोला, ‘‘आज थकान की वजह से मुझे नींद आ गयी थी और वह दस मिनट निकल गये। अब अगर मैं खाना खाऊंगा तो बदले में कोड़े मिलेंगे खाने के लिये।’’
‘‘ओह।’’ दोनों ने अफसोस से उसकी ओर देखा।
‘‘पता नहीं कब वह मसीहा आयेगा जो हमें इस नर्क से आज़ादी दिलायेगा।’’ कहते हुए वह लड़खड़ाया और सैफ ने जल्दी से उसे थाम लिया।
‘‘महावीर, यह तो बुखार में बुरी तरह तप रहा है।’’ सैफ ने उसे वहाँ लिटा दिया क्योंकि वह बेहोश हो चुका था।
उसी समय वहाँ एक हल्की सी आवाज़ गूंजी और दोनों ने देखा कि एक टीन का डिब्बा अपने पहियों पर चलता हुआ वहाँ पहुंच चुका है। यह वास्तव में एक रोबोट था जो वहाँ कारीगरों की निगरानी के लिये तैनात था। हाथों के स्थान पर उसके दोनों तरफ एक एक कोड़ा फिक्स था जो किसी भी कामगार को ढीला पड़ते देखकर उसपर बरसने लगता था।

फीरान के काफी काम रोबोट ही करते थे। लेकिन चूंकि वह मानवीय कारीगरी और बहुत सी चीज़ों का मुकाबला नहीं कर सकते थे। अतः इस तरह के काम इंसान ही करते थे। लेकिन उनपर पहरा रोबोटों का ही होता था।
‘‘यहाँ काम क्यों बन्द है?’’ उस रोबोट की खरखराती आवाज़ गूंजी।
‘‘यह बीमार है और बेहोश हो गया है।’’ सैफ ने बताया।
‘‘इसको होश में लाओ। टार्गेट पूरा होने से पहले काम नहीं बन्द होना चाहिए।’’
सैफ उसे होश में लाने की तरकीबें करने लगा। पानी की दो चार छींटें मारने के बाद उसे होश आ गया।
जैसे ही उस कारीगर ने रोबोट को देखा उसकी आँखों में डर के आसार पैदा हुए और वह फौरन अपना काम फिर से करने लगा।

‘‘तुमने दस मिनट तक काम नहीं किया। ड्यूटी के बाद तुम्हारी पीठ पर दस कोड़े लगेंगे। लाइन में खड़े हो जाना।’’ उस रोबोट के स्पीकर से सपाट आवाज़ आयी। उसकी मेमोरी में मानव कमज़ोरियों का कोई रिकार्ड नहीं था और न ही किसी की कारीगरी के लिये कोई जगह थी। वह हर काम को घड़ी के आधार पर नापता था।
रोबोट की बात सुनकर सैफ को गुस्सा आ गया। उसने चाहा कि आगे बढ़े और उस टीन के कनस्तर को एक लात मारकर उसका हुलिया बिगाड़ दे।
लेकिन महावीर ने उसे ऐसा कदम न उठाने का इशारा किया और फिर रोबोट से बोला, ‘‘इसे सज़ा न दो। यह दिये गये समय में अपना टार्गेट पूरा कर लेगा।’’
जवाब में रोबोट बोला, ‘‘इसके टार्गेट का समय कैलकुलेटेड है। अगर यह दस मिनट काम नहीं करेगा तो टार्गेट दस मिनट देर में पूरा होगा।’’

महावीर समझ गया था कि यह रोबोट घटिया दर्जे का है और इसके दिमाग में अक्ल का हिस्सा न के बराबर है। अतः उसने आगे कहा, ‘‘इसका टार्गेट क्या है और कितने समय में पूरा करना है?’’
‘‘इसे छत्तीस हज़ार हीरे सौ घण्टों में लगाने हैं।’’ रोबोट ने बताया।
‘‘फिर तो, आराम से यह अपना टार्गेट पूरा कर लेगा। सौ क्या पचास घण्टे में ही।’’ महावीर झट से बोला।
‘‘कैसे?’’
‘‘तुम खुद ही कैलकुलेट कर लो। अगर छत्तीस हज़ार हीरे सौ घण्टों में लगाने हैं तो इसका मतलब दस सेकंड के बीच में कोई हीरा नहीं लगाना है। यानि नौ सेकंड मे ज़ीरो हीरा लगाना है।’’
‘‘ठीक है।’’ यह कैलकुलेशन रोबोट ने भी अपने दिमाग में कर ली थी।
‘‘अब तुम्हें यह कैलकुलेट करना है कि छत्तीस हज़ार हीरे कितने समय में लगेंगे। तो इसके लिये तुम नौ सेकंड को ज़ीरो से डिवाइड करो और फिर छत्तीस हज़ार से मल्टीप्लाई कर लो।’’

रोबोट कैलकुलेशन में बिज़ी हो गया था।

अब महावीर उस कारीगर के पास आया, ‘‘अभी उसको कैलकुलेशन में बहुत देर लगेगी। तब तक तुम खा पी लो और अगर दवा हो तो वह भी खा लो।’’
‘‘आप लोगों का बहुत बहुत शुक्रिया।’’ उसने हाथ जोड़कर कहा।
‘‘आओ सैफ आगे चलते हैं।’’ महावीर आगे बढ़ते हुए बोला। हमेशा की तरह वह अपने फाइबर के डंडों पर चल रहा था। सैफ ने घूमकर देखा रोबोट अभी भी अपनी जगह पर खड़ा कैलकुलेशन में बिज़ी था।
‘‘तुमने उसे कौन सी कैलकुलेशन थमा दी?’’ सैफ ने हंसकर पूछा।

‘‘मैंने उसे ज़ीरो से डिवाइड करने को कह दिया है। अब कोई नंबर ज़ीरो से डिवाइड तो होता है नहीं। वह वहीं खड़ा कैलकुलेशन करता रहेगा। और हो सकता है इस दौरान उसकी बैटरी ही उड़ जाये। अगर ऐसा हुआ तो वह कारीगर फ्री हो जायेगा।’’
‘‘लेकिन यहाँ उस तरह के बहुत से कारीगर मौजूद हैं।’’ सैफ ने आगे देखते हुए कहा।

महावीर ने भी देखा। हर निर्माणाधीन बिल्डिंग के आसपास कारीगर व मज़दूर नज़र आ रहे थे। सभी की हालत निहायत बुरी थी। लिबास के नाम पर सबके जिस्मों पर मैले कुचैले फटे चिथड़े झूल रहे थे। जिससे उनके भूख से अन्दर तक धंसे पेट साफ दिख रहे थे।
फिर उन्होंने ये भी देखा कि काम करते करते एक कारीगर नीचे गिरा और खत्म हो गया। उसी समय एक कूड़ागाड़ी आयी जिसमें किसी कूड़े की ही तरह उस कारीगर का मुर्दा जिस्म डाल दिया गया और वह गाड़ी उसे लेकर चली गयी।

ये लोग थोड़ा आगे बढ़े तो एक तरफ से सिसकियों की आवाज़ सुनाई दी। घूमकर देखा तो एक कारीगर को कोड़े पड़ रहे थे। लेकिन उसके अन्दर इतनी ताकत नहीं थी कि चीख सकता। अतः वह केवल सिसकियां ले रहा था।
‘‘वापस चलो सैफ। बहुत देख लिया हमने फीरान का शहर।’’ महावीर ने भर्रायी हुई आवाज़ में कहा।

दोनों वापस जाने के लिये घूमे। किन्तु उसी वक्त एक कार उड़ती हुई उनके ठीक बगल से गुज़री और आगे जाकर रुक गयी। फिर उसने बैक टर्न लिया और उनके पास वापस पहुंच गयी।

कार का दवाज़ा खुला और इससे पहले कि वे कुछ समझते अन्दर से निकलने वाले दोनों लड़के उनके दायें बायें पहुंच चुके थे। इन दोनों ने उनके चेहरे देखे और अवाक रह गये।

क्योंकि लड़के और कोई नहीं बल्कि गोल्डी और प्लैटी थे।
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(c) लेखक। 

Monday, March 22, 2021

अधूरा हीरो भाग 5

 ‘‘ओये अपाहिजों, तुम लोगों की हिम्मत कैसे हुई हमसे आगे निकलने की। जानते नहीं हम कौन हैं।’’ एक युवक आस्तीनें चढ़ाते हुए उनकी तरफ बढ़ा।

‘‘भाई, हम नहीं जानते कि आप कौन हैं। कौन हैं आप लोग?’’ महावीर ने नर्म लहजे में पूछा। इस समय वह बाइक से नीचे उतरकर अपनी नकली टाँगों यानि फाइबर की छड़ों के सहारे खड़ा हुआ था लेकिन कोई अनुमान नहीं लगा सकता था कि उसके पैर नहीं हैं।

‘‘लो देखो’’, कार से बाहर झांकती हुई एक लड़की की तरफ देखते हुए युवक हंसा, ‘‘इस लूले को पता ही नहीं कि हम कौन हैं।’’ उसकी बात पर बाकियों ने कहकहा लगाया। सैफ गुस्से में उन्हें सबक सिखाने के लिये आगे बढ़ा लेकिन महावीर ने आँख के इशारे से उसे रोक दिया।

‘‘माफ कीजिए हम वाकई नहीं जानते कि आप लोग कौन हैं।’’ महावीर का नर्म लहजा बरक़रार था। वह आगे कह रहा था, ‘‘इसमें सरासर मेरी ही गलती है, न मैं इससे शर्त लगाता और न यह प्राब्लम पैदा होती।’’
‘‘कैसी शर्त आंयें?’’ उस लड़के ने उसी तरह अकड़े हुए पूछा।
‘‘मैं ने इससे शर्त लगाई कि थोड़ी सी जगह से तू बाइक नहीं निकाल सकता। लेकिन इसने निकाल दी और शर्त जीत गया।’’ कहते हुए महावीर ने सैफ को आँखों से इशारा किया।

‘‘बिल्कुल। ऐसा कौन माई का लाल है जो इतनी सी साइड में अपनी बाइक निकाल ले जाये।’’ सैफ ने अकड़ कर कहा। वह महावीर का इशारा समझ गया था।
‘‘तुम लोग पूरे लल्लू हो। ये कौन सा मुश्किल काम है। इसे तो मैं भी आराम से कर सकता हूं।’’ लड़का बोला।
‘‘नामुमकिन। हम कैसे मान लें।’’ सैफ ने सर हिलाया।

फिर जल्दी ही ये मामला तय हो गया कि सैफ व महावीर उनकी कार ड्राइव करेंगे। और वो दोनों लड़के उनकी बाइक चलायेंगे। और फिर अकड़ने वाला लड़का उस बाइक को उतनी ही साइड की जगह में से निकाल कर दिखायेगा।

सैफ कार की ड्राइविंग सीट पर बैठ गया।

‘‘भाई साहब। आपकी कार में मैग्नेटिक रेज़ फेंकने की डिवाइस लगी है। क्या आप का सम्बन्ध पुलिस से है?’’ महावीर ने पूछा।

‘‘अरे पुलिस तो हमारे हाथ की खिलौना है। शायद तुम्हें मालूम नहीं कि मैं कौन हूं।’’ इतना कहकर लड़का फिर चुप हो गया। यानि अभी भी यह सस्पेंस बरकारार था कि वह कौन है। महावीर ने भी उसका परिचय पूछकर इस सस्पेंस को तोड़ने की कोशिश नहीं की। वह तो मैंग्नेटिक रेज़ फेंकने की डिवाइस को गौर से देख रहा था।

फिर सैफ ने कार स्टार्ट की और सड़क के ऊपर उड़ा दी। उसने साइड में उतनी ही जगह रखी थी जितनी पहले थी। दूसरी तरफ ऊंचा डिवाइडर था। लड़कियां उसी कार में पिछली सीट पर मौजूद थीं और अब खामोश थीं। शायद उनके दिमाग में भी यही प्रश्न मौजूद था कि आगे क्या होगा।

‘‘हल्की मैग्नेटिक रेज़ को चारों तरफ फैला दो।’’ महावीर ने धीरे से कहा और सैफ ने मैग्नेटिक रेज़ छोड़ने का बटन आॅन कर दिया।
‘‘तुम लोगों ने गलत पंगा ले लिया है। हमारे फ्रेंड्स तुम लोगों को नचा कर रख देंगे।’’ एक लड़की बोली। उसकी अकड़ देखकर यह साफ हो गया कि चारों एक ही रेवड़ से ताल्लुक रखते हैं।
‘‘अच्छी बात है।’’ महावीर ठंडी साँस लेकर बोला, ‘‘हम लोग पैदा ही नाचने के लिये हुए हैं।’’

इस बीच उन्होंने बैक मिरर में देखा कि लड़कियों के ब्वाय फ्रेंड्स बाइक पर तेज़ी के साथ कार के करीब पहुंच चुके थे। और जल्दी ही वे लोग कार की साइड में आ गये।
साइड में पहुंचते ही उनकी स्पीड थोड़ी धीमी हो गयी थी। और यह इनकी कार से निकलने वाली मैग्नेटिक रेज़ का असर था। उन्होंने स्पीड को बढ़ाने के लिये एक्सीलरेटर को और मरोड़ा।

कार के अन्दर मौजूद लड़कियां अपने फ्रेन्ड्स का उत्साह बढ़ाने के लिये ज़ोर ज़ोर से चीख रही थीं। उन्हें इसका भी होश नहीं था कि ड्राइविंग सीट पर बैठे सैफ व महावीर क्या हरकतें कर रहे हैं।
‘‘अब रेज़ को रोक दो।’’, महावीर ने धीरे से कहा।
सैफ ने मैग्नेटिक रेज़ को बन्द करने का बटन दबा दिया। दूसरे ही पल साइड में मौजूद लड़कों को लेकर बाइक लगभग आवाज़ की रफ्तार से आगे बढ़ गयी। बाइक के सेफ्टी सेंसर बन्द थे और इतनी रफ्तार को कण्ट्रोल करना उनके बस में था नहीं। नतीजा यह हुआ कि बाइक साइड के डिवाइडर से उसी तरह टकराई जैसे गन से निकली गोली अपने टार्गेट से टकराती है।

अगले ही पल दोनों बाइक समेत चारों खाने चित हो चुके थे।

महावीर व सैफ को मालूम था कि वे मरे नहीं होगे। क्योंकि आजकल डिवाइडर इस तरह बनाये जाते थे कि किसी दुर्घटना की हालत में वे एक हद तक शाॅक अपने अन्दर सोख लें। लेकिन दोनों को नानी ज़रूर याद आ गयी होगी इसका उन्हें यक़ीन था।

उधर ये दुर्घटना देखकर दोनों लड़कियां बुरी तरह चीख पुकार मचाने लगी थीं। और उनसे कार रोकने को कह रही थीं।
सैफ ने कार रोक दी।

फिलहाल दोनों एक सुनसान रास्ते से गुज़र रहे थे वरना अब तक वहाँ जाम लग चुका होता। कार रुकने के साथ ही दोनों लड़कियां अपने फ्रेंड्स को पुकारती हुई तेज़ी से भागीं। पहली बार उन्हें मालूम हुआ कि उनमें से एक लड़के का नाम गोल्डी है और दूसरे का प्लैटी।

‘‘कमीनों! तुमने हमारे गोल्डी और प्लैटी के साथ क्या किया।’’ गुस्से में बिफरी हुई दोनों लड़कियां तेज़ी के साथ घूमीं।
महावीर व सैफ भी उनके पास पहुंचे। सैफ ने उन्हें टटोला तो मालूम हुआ कि दोनों बेहोश हो चुके हैं।
‘‘साॅरी, ये तो बेहोश हो गये।’’ सैफ ने अफसोस के साथ सर हिलाया।
‘‘अब क्या होगा।’’ एक लड़की परेशानी से बोली।
‘‘सब इन कमीनों की वजह से हुआ है। हम लोग आराम से घूमने आ रहे थे। ये बीच में कबाब की हड्डी की तरह टपक पड़े।’’ दूसरी लड़की ने गुस्से से कहा।
‘‘देखिए, आप लोग शांत रहिए।’’ महावीर उन्हें समझाने लगा, ‘‘इसमें हमारी कोई गलती नहीं। ये लोग खुद ही बाइक माँग कर चलाने लगे थे।’’

‘‘लेकिन अब क्या होगा?’’ पहली लड़की फिर परेशान स्वर में बोली, शायद उसका दिल कमज़ोर था।

‘‘अब तो कोई कार आयेगी और इन्हें कुचलती हुई निकल जायेगी।’’ सैफ इत्मिनान से बोला।
‘‘नहीं नहीं। प्लीज़ इन्हें बचा लो।’’ पहली लड़की और ज़्यादा घबरा गयी। घबराहट में उसे ये भी ध्यान नहीं था कि आजकल कारें ज़मीन पर नहीं बल्कि हवा में चलती हैं अतः कुचलने का सवाल ही नहीं पैदा होता।
‘‘प्लीज़ कुछ करो। इन्हें बचा लो।’’ दूसरी लड़की ने महावीर से रिक्वेस्ट की।
‘‘मेरा तो दिमाग ही नहीं चल रहा है।’’ महावीर ठंडी साँस लेकर बोला, ‘‘जब मेरे ज़ोरों की भूख लगती है तो मेरा दिमाग काम करना बन्द कर देता है।’’

उसकी बात सुनकर दूसरी लड़की तेज़ तेज़ कदमों से चलती हुई कार तक गयी और एक बड़ा सा टिफिन उठाकर उनके पास आयी, ‘‘लो भरो जल्दी। और कोई तरकीब सोचो।’’
‘‘हाँ, ये हुई न बात।’’ सैफ ने उसके हाथ से टिफिन ले लिया। और फिर दोनों वहीं ज़मीन पर बैठ गये। टिफिन खोलने में उन्होंने ज़रा भी देर नहीं लगायी थी। क्या पता कब दोनों को होश आ जाये।

खाना काफी लज़ीज़ था। लगता था किसी फाइव स्टार रेस्टोरेंट से पैक करवाया गया है। दोनों जल्दी जल्दी खाने लगे।
‘‘वेरी टेस्टी। कहां से मंगवाया है?’’ महावीर खाने की तारीफ करने लगा।
‘‘जल्दी करो। वो लोग कब तक बेहोश रहेंगे।’’ लड़कियां बार बार कभी ब्वाय फ्रेंड्स को देखती थीं तो कभी दाँत पीसकर उनकी ओर। फिर दोनों ने खाना खत्म करके एक लंबी डकार ली।
‘‘खाना खिलाने का शुक्रिया।’’ महावीर लड़कियों से कहने लगा।
‘‘खाना गया तेल लेने। इनका जल्दी से कुछ करो।’’ दूसरी लड़की ने गुस्से से कहा।

‘‘सैफ एक काम करो’’, महावीर सैफ की तरफ घूमा, ‘‘तुम उनका कंधा पकड़ो और ये लड़कियां पैर पकड़ लेंगी। फिर कार में डाल दो। ये दोनों ड्राइव करके अपने ब्वाय फ्रेंड्स को हास्पिटल ले जायेंगी। हो सकता है हास्पिटल जाने से पहले ही इन्हें होश आ जाये।’’
‘‘ये सारा काम तुम लोगों को करना है। हम लोग कुछ नहीं करेंगे।’’ दूसरी लड़की चीखी।

‘‘मैडम, मैं तो कुछ कर ही नहीं सकता क्योंकि मेरे हाथ ही नहीं हैं। आपको मेरे दोस्त का साथ तो देना ही पड़ेगा।’’
लाचार होकर दोनों लड़कियों ने महावीर की राय पर अमल करते हुए दोनों को सैफ के साथ मिलकर उठाया और कार की पिछली सीट पर डाल दिया।
‘‘मुझे अफसोस है कि आप लोग अब भूखे रह जाओगे।’’ महावीर के चेहरे से लग रहा था जैसे उसे गिल्टी फील हो रहा है। हालांकि उसके चेहरे से उसके दिल का हाल लेना लगभग असंभव था।

‘‘तुम हमें समझते क्या हो’’, पहली लड़की गर्व से बोली, ‘‘गोल्डी और प्लैटी हमारे लिये और मंगवा लेंगे। शायद तुम्हें मालूम नहीं कि ये लोग कौन हैं?’’

‘‘यह सवाल बहुत देर से यहाँ चकरा रहा है। अब बता भी दीजिए कि ये लोग कौन हैं वरना सस्पेंस से हमारे भेजे उड़ जायेंगे।’’ महावीर दयनीय आवाज़ में बोला।
‘‘गोल्डी हरस का बेटा है और प्लैटी हरस का भतीजा।’’ पहली लड़की जल्दी से बोली।
‘‘अब एक नयी समस्या खड़ी हो गयी। यह हरस कौन है?’’ महावीर ने सवाल किया।
‘‘तुम हरस को नहीं जानते। तुम जहाँपनाह फीरान के वज़ीर को नहीं जानते। हरस वह है जो चाहे तो पूरी दुनिया को खरीद सकता है। उसके पास बहुत पैसा है। वह तो जहाँपनाह फीरान के लिये बहुत बड़ा सोने चाँदी व हीरे मोतियों का शहर बनवा रहा है।’’ पहली लड़की गर्व से धाराप्रवाह बोल रही थी।

‘‘अच्छा, अब देर न करो और इन्हें जल्दी से किसी हास्पिटल में ले जाओ। वरना ऐसा न हो कि हरस सोने का शहर बनाता रह जाये और उसके बेटे कब्रों में जाकर बस जायें।’’
‘‘चुप रहो अपाहिज मनहूसों।’’ उसी लड़की ने डपटा और ड्राइविंग सीट पर बैठ गयी। फिर उनके चेहरों पर धूल फेंकती हुई कार आगे उड़ गयी।
‘‘यार! फीरान के शहर का बहुत ज़्यादा चर्चा है हर तरफ।’’ महावीर ने चेहरे की धूल को सैफ के बाज़ू से रगड़कर साफ किया।

‘‘हाँ। अब तो उसे देखने की ख्वाहिश होने लगी है।’’ सैफ ने भी अपने शौक का इज़हार किया।
‘‘शहर यहाँ से हज़ार किलोमीटर दूर है। लोकल इण्टरस्टेट ट्रेन से दो घण्टे में पहुंच जायेंगे। बोलो क्या कहते हो?’’ महावीर के लहजे से लग रहा था कि वह वहाँ जाने के लिये पूरी तरह आमादा है।
‘‘जहाँ तुम वहाँ मैं।’’ सैफ तो हर उस जगह जाने को तैयार रहता था जहाँ महावीर कहता था। दोनों के बीच दोस्ती कुछ इसी किस्म की थी।

‘‘बस माँ की इजाज़त का मसला पड़ेगा’’
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Sunday, March 21, 2021

अधूरा हीरो भाग 4

 ‘‘आइंदा तुम कहीं इस तरह हीरो बनने की कोशिश नहीं करोगे।’’ जयंती ने महावीर से सख्ती के साथ कहा।

‘‘लेकिन क्यों?’’ महावीर ने पलट कर सवाल किया।
‘‘क्योंकि मैं नहीं चाहती कि फीरान तुम्हें पहचान ले और अपने लिये खतरा समझकर हमेशा के लिये तुम्हें खत्म कर दे।’’ जयंती के लहजे में चिंता साफ झलक रही थी।

‘‘लेकिन उसे मुझ से क्या खतरा हो सकता है? वह तो पूरी दुनिया का सम्राट है और मैं एक मामूली अपाहिज। जो न तो अपने पैरों से चल सकता है और न ही किसी हथियार को पकड़ने के लिये ईश्वर ने मुझे हाथ दिये हैं।’’
‘‘ईश्वर ने तो दिये थे, फीरान ने छीन लिया।’’ जयंती मानो पुरानी यादों में खो गयी थी।
‘‘फीरान ने छीन लिये! वह क्यों?’’ अजीब उलझावे भरी पहेली थी यह महावीर के लिये। 
 
जयंती एकदम से मानो होश में आ गयी, ‘‘तुम सवाल बहुत करते हो। अब तुम्हें भूख लग रही होगी। मैं खाना निकालती हूं।’’

इससे पहले कि वह वहाँ से जाती, उसके मोबाइल पर किसी की काॅल आने लगी। उसने उसे आॅन किया और मोबाइल के पास हवा में एक थ्री डी तस्वीर बनने लगी।
ये विकलांगों के स्कूल की उसी प्रिंसिपल का चेहरा था जिससे थोड़ी देर पहले जयंती बात कर रही थी।

‘‘हैलो जयंती। मैंने अभी अभी तुम्हारे बेटे का कारनामा देखा। मुझे गर्व होगा अगर तुम्हारा बेटा मेरे स्कूल में पढ़ेगा। तुम अभी आकर उसका फार्म भर दो।’’
‘‘अभी? अभी तो हम लोग थक गये हैं। मैं कल आ जाऊंगी।’’ जयंती ने जवाब दिया।
‘‘कल हो सकता है कोई दूसरा स्कूल उसे लपक ले। मैं यहाँ की एक टीचर को तुम्हारे घर पर भेजती हँू। वह फार्म भरवा देगी।’’
‘‘ठीक है।’’ जयंती ने एक गहरी साँस ली और प्रिंसिपल की तस्वीर गायब हो गयी। यानि उसने मोबाइल पर सम्पर्क काट दिया था।

‘‘चलो एक मसला तो हल हुआ।’’ अब जयंती के चेहरे से इत्मिनान ज़ाहिर हो रहा था।
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एक छोटे अर्से में महावीर के दिमाग का लोहा स्कूल के सभी टीचर्स मान गये थे। जिन सवालों को लगाने के लिये दूसरे बच्चे नोटबुक पर जूझते रहते थे उनके जवाब महावीर मात्र दिमाग में कैलकुलेशन करके दूसरों से पहले निकाल देता था।

खेलों में उसका प्रिय खेल था शतरंज। जब वह चालें चलने लगता था तो सामने वाले को लगता था कि अभी तो गेम की शुरूआत हुई है और यह गेम लंबा चलेगा। लेकिन कुछ ही मिनटों के बाद विपक्षी अपने को पूरी तरह फंसा हुआ देखता था और हार कुबूल करने के अलावा उसके पास कोई चारा नहीं होता था।

फिर एक दिन क्लास टीचर ने क्लास में आने के साथ ही एनाउंस किया।

‘‘स्टूडेन्ट्स, कल से स्कूल में सालाना गेम्स स्टार्ट हो रहे हैं। इनडोर, आउटडोर हर तरह के गेम उसमें रहेंगे। रनिंग, लांग व हाई जम्प, क्रिकेट और साथ में शतरंज, लूडो वगैरा भी। अगर आप लोग किसी गेम में हिस्सा लेना चाहें तो मेरे पास अपना नाम लिखवा दें।’’

फिर वह महावीर के पास आयी और बोली, ‘‘आई थिंक कि तुम शतरंज के लिये अपना नाम दे दो। आउटडोर में तो तुम्हारे लायक कोई गेम होगा नहीं।’’
‘‘लेकिन मैं आउटडोर गेम में ही हिस्सा लूंगा।’’ महावीर ने दृढ़ स्वर में कहा।
‘‘क्या?’’ टीचर को हैरत का एक झटका लगा, ‘‘तुम कौन सा आउटडोर गेम खेल सकोगे?’’

‘‘रनिंग!’’ महावीर ने जवाब दिया और पूरी क्लास ठहाका लगाकर हंस दी। सभी को यही लगा कि महावीर मज़ाक कर रहा है।

लेकिन महावीर के चेहरे पर मज़ाक का कोई लक्षण नहीं था। वह पूरी तरह गम्भीर था।

‘‘महावीर! ये तुम क्या कह रहे हो?’’ टीचर ने एक बार उसकी टाँगों की तरफ देखा जहाँ सिर्फ दो ठूंठ थे। और फिर उसके चेहरे पर नज़र की जहाँ पहले की तरह गंभीरता छायी हुई थी, ‘‘बगैर टाँगों के तुम दौड़ में कैसे हिस्सा ले पाओगे?’’

‘‘ये मैं कल बताऊंगा।’’ वह टीचर के साथ साथ सारे स्टूडेन्ट को सस्पेंस में डालकर चुप हो गया।
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अगले दिन पूरा स्कूल उस समय हैरत में पड़ गया जब महावीर ने बिना व्हील चेयर के गेट से अन्दर प्रवेश किया। उसने पैंट पहन रखी थी और कायदे के साथ कदम रखते हुए आगे बढ़ रहा था। वहाँ जितने भी बच्चे व स्टाफ वाले उसे पहचानते थे उसे घूम घूमकर देख रहे थे। हालांकि उसके हाथ पहले की ही तरह अपनी जगह मौजूद नहीं थे।
फिर महावीर ही के क्लास की स्टूडेन्ट नैना आगे बढ़ी। वह भी महावीर की तरह विकलांग थी। फर्क सिर्फ इतना था कि उसकी केवल एक टाँग नहीं थी। वह बैसाखियों का इस्तेमाल करती थी।

‘‘महावीर, ये क्या तुम तो चल रहे हो? यह करिश्मा हुआ कैसे?’’ उसे बातें करते देखकर और भी कई स्टूडेन्ट पास आ गये।

महावीर एक दीवार से टेक लगाकर खड़ा हो गया और बोला, ‘‘मेरी पैंट को थोड़ा ऊपर करके देखो मालूम हो जायेगा।’’

एक लड़के ने आगे बढ़कर उसकी पैंट को ऊपर किया तो वहाँ पर आधुनिक फाईबर की एक छड़ नज़र आयी। यह फाइबर लचीली प्रकृति का था।

‘‘मैं कई दिनों से छड़ों को अपनी जाँघों से बाँधकर चलने की प्रैक्टिस कर रहा था। इसमें सर्कस के एक कलाकार ने मेरी मदद की है। अब मैं व्हील चेयर का मोहताज नहीं रहा। अपने इन ही पैरों के साथ अब मैं दौड़ में हिस्सा लूंगा।’’

स्टूडेन्ट के साथ साथ टीचर्स भी उसे देखकर दंग थे। तमाम कमियों के बावजूद वह कितना मज़बूत था। शायद उन सब से बहुत ज़्यादा।
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यह दौड़ एक किलोमीटर लंबी थी जिसमें महावीर हिस्सा ले रहा था। लंबी दौड़ होने के बावजूद काफी लड़के इसमें हिस्सा ले रहे थे।

अपने तय समय पर दौड़ शुरू हुई और सभी प्रतिभागी अपने अपने ट्रैक पर दौड़ने लगे। बिना हाथों वाले महावीर को ट्रैक पर देखना अजीब था। लगता था किसी रोबोट को टैªक पर छोड़ दिया गया है। हालांकि उसे देखकर कोई यह अंदाज़ा लगा नहीं सकता था कि उसके पैर ही नहीं है बल्कि वह फाइबर छड़ों के सहारे दौड़ रहा है जो ट्रैक सूट के अन्दर छुपी हुई हैं।

तमाम लड़कों के बीच वह आराम से दौड़ते हुए शायद बीसवें या पच्चीसवें नंबर पर था। धीरे धीरे मंज़िल क़रीब आ रही थी। कुछ लड़के थककर बाहर आ गये थे जबकि महावीर धीरे धीरे आगे आता हुआ सातवें - आठवें स्थान पर पहुंच गया था।

अब केवल सौ मीटर बाक़ी थे। महावीर अब चैथे स्थान पर पहुंच गया था। उसकी रफ्तार में इज़ाफा हो रहा था। पचास मीटर तक आते आते वह तीसरी पोज़ीशन पर आ गया और जब दौड़ खत्म हुई तो उसने और एक अन्य लड़के सैफ ने साथ में फीते को छुआ था।

यह कहना बहुत मुश्किल था कि फस्र्ट कौन है और कौन सेकंड।

फैसला टेक्नालाॅजी पर छोड़ दिया गया। जज दौड़ को रिकार्ड करने वाले कम्प्यूटर की तरफ देख रहे थे। फिर फैसला माइक पर एनाउंस हुआ,

‘इस दौड़ में गोल्ड मेडल जीता है सैफ ने। और दूसरे नंबर पर आने वाले महावीर को सिल्वर मेडल मिला है।’
एक शोर के बीच तमाम लड़के सैफ और महावीर को बधाईयाँ दे रहे थे। 
सैफ मज़बूत हाथ पैरों वाला महावीर ही की उम्र का लड़का था। विकलांगों के स्कूल में उसका एडमीशन इसलिए हुआ था क्योंकि वह जन्मजात बहरा था। हालांकि माडर्न टेक्नालाॅजी ने उसे इस क़ाबिल कर दिया था कि वह एक मशीन की मदद से अब न सिर्फ दूसरों की आवाज़ सुन सकता था बल्कि उनका जवाब भी दे सकता था। कानों में लगी मशीन आवाज़ को कैच करके उसे विद्युत सिग्नलों में बदलती थी जो सीधे उसके मस्तिष्क में पहुंचकर उसे आवाज़ का एहसास दिला देते थे।

अब उन लोगों को मेडल के लिये स्टेज की तरफ ले जाया जा रहा था।

जैसे ही सैफ एनाउंसर के पास पहुंचा उसने एनाउंसर के हाथ से माइक ले लिया और संयोजकों से कुछ कहने की इजाज़त माँगी। संयोजकों ने इजाज़त दे दी।

उसने माइक पर कहना शुरू किया, ‘‘दोस्तों सेकंड के एक छोटे से हिस्से ने मुझे महावीर से आगे कर दिया लेकिन हक़ीक़त ये है कि महावीर ही इस प्रतियोगिता का विजेता है।’’

उसकी बात सुनकर मजमे में खामोशी छा गयी। तो क्या जजों ने गलत फैसला दिया था?

सैफ ने आगे कहा, ‘‘मैं महावीर को विजेता इसलिए मानता हूं कि मैं अपनी दोनों टाँगों की मज़बूती के कारण इस दौड़ में आगे रहा जबकि महावीर ने बिना पैरों की मदद के अपनी इच्छा शक्ति के बल पर दूसरों को पीछे छोड़ दिया। अतः वास्तविक विजेता वही है और मैं जजों से अनुरोध करूंगा कि गोल्ड मेडल उसे ही प्रदान करें।’’

तालियों की ज़ोरदार गड़गड़ाहट इससे पहले कि जजों को अपना फैसला बदलने पर मजबूर करती, महावीर ने कुछ कहने का इरादा ज़ाहिर किया। उसके सामने माइक लाया गया और वह बोलने लगा,

‘‘ये एक हक़ीक़त है कि मैं नंबर दो पर आया हूं। चाहे उसके पीछे कोई भी वजह हो। इसलिए मैं सिल्वर मेडल ही कुबूल करूंगा। और मुझे यकीन है कि जिन नकली पैरों की मदद से मैं सेकंड पोज़ीशन हासिल कर सका हूं एक दिन उन ही पैरों से मैं फस्र्ट भी आऊंगा।’’ उसके इस मज़बूत लहजे पर इतनी तालियां बजीं कि कान पड़ी आवाज़ सुनाई देना बन्द हो गयी।

जबकि महावीर अब सैफ से कह रहा था, ‘‘साॅरी दोस्त, मैं चाहते हुए भी तुमसे हाथ मिला नहीं सकता।’’

‘‘दोस्ती के लिये हाथों की नहीं दिल के मिलने की ज़रूरत होती है।’’ कहते हुए सैफ ने उसे अपने सीने से लगा लिया। यही उन दोनों की दोस्ती का आग़ाज़ था जो आगे न जाने कब तक चलने वाली थी।
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महावीर और सैफ की जोड़ी एक मिसाली जोड़ी बन चुकी थी। जब सैफ अपनी फ्लाइंग बाइक पर महावीर को बिठाकर उड़ता था तो देखने वाले हैरत से देखते रह जाते थे।

इस तरह की बाइक्स उस ज़माने में आम थीं जो ज़मीन से लगभग दो फिट ऊपर उठकर तेज़ रफ्तारी के साथ अपनी रास्ता तय करती थीं। अपनी रफ्तार के बावजूद इनसे एक्सीडेंट होना नामुमकिन था क्योंकि इसके चारों तरफ लगे सेंसर एक्सीडेंट की संभावना होते ही गाड़ी में आटोमैटिक ब्रेक लगा देते थे।  

और इस वक्त भी यही मंज़र था। स्काईस्क्रेपर्स के बीच उड़ती तेज़ रफ्तार कारों व दूसरे वाहनों के बीच फरहान ज़ोरदार कट मारते हुए अपनी गाड़ी को आगे बढ़ा रहा था। शहर का एक नामी रेस्टोरेंट उनकी मंज़िल था जहाँ उन्हें लंच करना था।

‘‘यार भूख ज़ोरों की लग रही है लेकिन ये कमबख्त कार हमारा रास्ता ही नहीं छोड़ रही है।’’ सैफ ने सामने मौजूद कार को साइड देने के लिये हार्न बजाया लेकिन कार वाला शायद पूरी मस्ती में कार उड़ा रहा था। उसके हार्न का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। यह कार बहुत देर से उनके सामने अड़ी हुई थी।
‘‘थोड़ी सी जगह साइड में है जिससे हम आगे निकल सकते हैं।’’ महावीर ने राय दी।
‘‘मुश्किल है। कार से रगड़ खा जायेगी हमारी बाइक।’’ सैफ ने अंदाज़ा लगाया।
‘‘रगड़ खाने से कुछ नहीं होगा। बाइक का सेंसर आॅफ करो और निकल लो।’’ उन्हें मालूम था कि बाइक का सेंसर जब तक सुरक्षित जगह नहीं होगी उन्हें आगे नहीं जाने देगा।

सैफ ने महावीर की राय पर अमल किया और एक बाल बराबर अंतर के साथ उनकी बाइक हवा के झोंके की तरह कार से आगे निकल गयी।

कारवालों को शायद ऐसी उम्मीद नहीं थी। अतः उनकी कार बुरी तरह डगमगा गयी।
उसी वक्त उस कार से भद्दी गाली के साथ रुकने का आदेश हुआ।

‘‘कमबख्त, गाली दे रहा है। अभी बताता हूं।’’
सैफ ने गुस्से में आकर बाइक रोकनी चाही लेकिन महावीर बोला, ‘‘बी कूल। कभी गुस्से में कोई कदम न उठाओ। इस वक्त हमारा टार्गेट है लंच।’’
बात सैफ की समझ में आ गयी और उसने बाइक की रफ्तार फिर बढ़ा दी।

लेकिन रफ्तार तो कम हो रही थी?

फिर उनकी समझ में आया कि पिछली कार से चुंबकीय रेज़ को फेंका जा रहा था उन्हें रोकने के लिये।
तो क्या यह पुलिस की कार है? लेकिन उसपर निशान तो पुलिस का था नहीं। उन्हें मालूम था कि चुंबकीय रेज़ की डिवाइस सिर्फ पुलिस कार में लगती थी। ताकि अगर कोई अपराधी कानून तोड़कर भाग रहा हो तो वो उसे रोक सकें।

‘‘लगता है इस समय हमारी किस्मत में लंच नहीं।’’ महावीर ने ठंडी साँस लेकर कहा।

बाइक कार के पास आकर रुक गयी। कार का दरवाज़ा खुला और उसमें से दो मज़बूत कद काठी के युवक नीचे उतर आये। दरवाज़ा खुलने के साथ म्यूज़िक की तेज़ आवाज़ें बाहर तक आने लगीं। साथ ही दो लड़कियों की झलक भी उन्हें दिख गयी जो अन्दर मौजूद थीं।
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Saturday, March 20, 2021

अधूरा हीरो भाग 3

 वहाँ महावीर मौजूद था। एक दीवार से टेक लगाये हुए।

और जिंदा व पूरी तरह सही सलामत था। होंठों पर एक मुस्कान खेल रही थी।
‘‘मेरे बच्चे!’’ जयंती ने दौड़कर उसे गोद में उठा लिया और बुरी तरह चूमने लगी। वह उसके जिस्म को टटोल टटोलकर देख रही थी। लेकिन महावीर के जिस्म पर कहीं खराश भी नहीं आयी थी।

‘‘बहन जी। अपने बच्चे को संभालकर रखा करो। आज तो अनर्थ हो गया था।’’ वहाँ मौजूद एक अधेड़ व्यक्ति ने टोका।
‘‘य ये पता नहीं कैसे हो गया।’’ जयंती घबरायी हुई कह रही थी।

अब भीड़ छंट रही थी।

‘‘महावीर, मेरे बच्चे। ये सब कैसे हुआ?’’ जयंती के हवास थोड़े दुरुस्त हुए थे अतः वह महावीर से पूछ रही थी, जिसके होंठों पर बहुत भोली सी मुस्कान टिकी हुई थी।

‘‘कोई खास बात नहीं माँ। मैं अपनी पतंग के सहारे नीचे आया हूं।’’
‘‘क्या?’’ जयंती ने हक्का बक्का होकर पूछा।
‘‘मैंने कुछ दिन पहले टीचर जी से पूछा था कि पतंग कैसे उड़ती है। उन्होंने बताया और साथ में ग्लाईडर के बारे में भी बताया। सो मैंने अपना ग्लाइडर तैयार किया, उसपर बैठा और उड़कर नीचे आ गया।’’ उसने साइड में इशारा किया।

जयंती ने देखा। वह ग्लाइडरनुमा फाइबर की शीट थी। जिसे वह छत पर कई दिनों से कबाड़ के बीच देख रही थी। और उसने कई बार महावीर को उस शीट से जूझते भी देखा था। लेकिन यह सोचकर कि वह उससे खेल रहा है कोई ध्यान नहीं दिया था।
लेकिन उसके दिल में इतना खतरनाक ख्याल पनप रहा है अगर वह पहले से जानती होती तो उस शीट को वहाँ से हटा ही देती।

‘‘मेरे बच्चे तूने इतना खतरनाक खेल खेला। अगर तुझे कुछ हो जाता तो।’’ उसने एक बार फिर महावीर को सीने से लगा लिया।
‘‘मुझे कुछ नहीं होता माँ।’’ महावीर बिल्कुल नार्मल लहजे में बोल रहा था, ‘‘ज़्यादा से ज़्यादा दूसरी दुनिया में पहुंच जाता।’’

‘‘खामोश!’’ जिंदगी में पहली बार जयंती ने अपने लाडले को एक तमाँचा मारा था, ‘‘आइंदा मरने की बात भी मत करना। और वादा कर कि फिर कभी ऐसा खतरनाक खेल नहीं खेलेगा।’’

‘‘माँ, आप ही ने मुझे बताया है कि मेरे बाप दादा बहुत वीर थे। और इसीलिए आपने मेरा नाम महावीर रखा है। तो फिर अब मुझे कायरता का सबक क्यों पढ़ा रही हैं?’’

जयंती उसकी बात पर चुप हो गयी। फिर धीरे से बोली, ‘‘मुझे माफ कर देना मेरे बच्चे। तू एक वीर का बेटा है और खुद भी महावीर है। मैं ममता में बह गई थी। जैसी तेरी मर्ज़ी वैसा तू कर। लेकिन संभल कर तेरी जान बहुत कीमती है। चाहे बाकी दुनिया के लिये न हो लेकिन तेरी माँ के लिये तो बहुत ही ज़्यादा।’’

‘‘तू फिक्र न कर। मुझे कुछ नहीं होगा।’’ महावीर के लहजे में कोई ऐसी बात ज़रूर थी जिसने जयंती के बेचैन दिल को एकदम से ठहरा दिया था।
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फिर जयंती को एक नयी फिक्र ने घेर लिया था। घर पर आने वाले टीचर ने महावीर को आगे पढ़ाने से इंकार कर दिया था।

‘‘मुझे जितना ज्ञान था वह सब मैंने इसे दे दिया है। अब इसे आगे पढ़ाना मेरी सामर्थ्य से बाहर है।’’ उसने कहा।
अब जयंती ने महावीर का एडमीशन किसी स्कूल में कराने के लिये हाथ पैर मारने शुरू किये। लेकिन अपंग महावीर को कोई भी स्कूल लेने के लिये राज़ी नही हुआ। यहाँ तक कि विकलांगों के स्कूल ने भी उसका एडमीशन करने से मना कर दिया।

‘‘बहन जी!’’ स्कूल की प्रिंसिपल बोली, ‘‘अगर बच्चे में कोई एक दोष हो यानि हाथ न हों या पैर न हों तो उसे संभाला जा सकता है। लेकिन जिस बच्चे के हाथ पैर दोनों ही न हों उसे हम नहीं संभाल पायेंगे।’’

‘‘आप प्लीज़ इसका एडमीशन ले लीजिए। मैं आपको यक़ीन दिलाती हूं, इसकी वजह से आपको कोई तकलीफ नहीं होगी।’’ जयंती की इस रिक्वेस्ट का भी प्रिंसिपल पर कोई असर नहीं हुआ और वहाँ से साफ इंकार हो गया।

जयंती वहाँ से मायूस होकर महावीर को लेकर बाहर निकल आयी। उसने महावीर के चेहरे पर उदासी के भाव देखने चाहे। लेकिन वहाँ तो चेहरा सपाट था। उसने शुरूआत से ही ये ग़ौर किया था कि महावीर के चेहरे से किसी भी भाव का अंदाज़ा लगाना बहुत मुश्किल है। वह अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने में माहिर था।

फिर भी जयंती ने उसे दिलासा देते हुए कहा, ‘‘घबराओ मत मेरे बेटे! तुम्हारा एडमीशन किसी न किसी स्कूल में ज़रूर होगा।’’
जयंती की बात का जवाब देने की बजाय महावीर ने सामने देखते हुए कहा, ‘‘वह सामने शॉपिंग मॉल है। चलिए कुछ खरीदते हैं।’’

जयंती समझ गयी कि महावीर इस विषय को टालना चाहता है। वह खुद भी यही चाहती थी अतः उसने महावीर की व्हील चेयर मॉल के रास्ते पर डाल दी। टेक्नोलॉजी ने इतनी आसानी ज़रूर कर दी थी कि उसे पुराने ज़माने की तरह व्हील चेयर को घसीटना नहीं पड़ता था बल्कि रिमोट के ज़रिये वह उसे मनचाही दिशा में चला देती थी।

वह उस इलाके का सबसे बड़ा शॉपिंग मॉल था। जयंती महावीर को लेकर उसके अन्दर दाखिल हुई और शो केसों में रखे सामानों को देखने लगी। महावीर भी उन चीज़ों पर अपनी निगाह दौड़ा रहा था।

उसी समय मॉल में दो व्यक्ति दाखिल हुए। और उन्हें देखते ही पूरे मॉल का माहौल एकदम से बदल गया। ज़्यादातर लोग बदहवास नज़र आने लगे थे।

उन दोनों व्यक्तियों के चारों तरफ हरे रंग की रोशनी का घेरा दिखाई दे रहा था। और बदहवासी की वजह यही घेरा था। क्योंकि यह इस बात की पहचान थी कि ये दोनों वही मशहूर लुटेरे हैं जिन्होंने पूरे शहर की नाक में दम कर दिया है।

पिछले एक महीने से वे इसी प्रकार हरे रंग के घेरे में किसी मॉल या किसी दुकान में दाखिल होते थे और लूटमार करके चले जाते थे। उस हरे रंग के घेरे को न तो कोई छू सकता था क्योंकि छूने वाले को तेज़ बिजली का झटका लगता था और साथ ही उसके अन्दर गोलियां भी अपना असर खो देती थीं। पुलिस भी उन्हें पकड़ने में नाकाम थी।
वैसे भी फीरान के शासन में पुलिस केवल वसूली करके फीरान के खज़ाने को भरने का साधन रह गयी थी और चोरी डकैती वगैरा रोकने से उनका कोई मतलब नहीं रह गया था।

‘‘उम्मीद है हमें देखकर आप लोगों को खुशी नहीं हो रही होगी।’’ एक लुटेरा कह रहा था, ‘‘कोई बात नहीं। हम आपसे रिश्तेदारी तो जोड़ने नहीं आये हैं। अब चुपचाप एक बड़ा सा थैला लो और उसमें अपनी अपनी फेराओं को डालना शुरू कर दो।’’

चूंकि इस समय पूरी दुनिया का बादशाह फीरान बन चुका था, सो उसने अपनी करंसी भी पूरी दुनिया में लागू कर दी थी जिसका नाम फेरा था।

उन लुटेरों ने वहाँ मौजूद गार्ड को थैले में लोगों की फेराओं को इकट्ठा करने का हुक्म दिया और जिस गार्ड के ऊपर मॉल की पहरेदारी की ज़िम्मेदारी थी उसने लुटेरों के हुक्म के मुताबिक थैले में माल भरना शुरू कर दिया। अपनी जान किसे नहीं प्यारी होती। अगर लुटेरे उसे मार देते तो उसके बच्चों को कोई पूछने वाला नहीं था। फीरॉन की हुकूमत में आम आदमी की जान की कोई क़ीमत नहीं थी।

थैले तेज़ी से भर रहे थे। दोनों लुटेरे घूमते घूमते जयंती के पास आ पहुंचे। फिर उनमें से एक की नज़र व्हीलचेयर पर टिके महावीर पर पड़ी।

‘‘अरे देखो। ये कार्टून।’’ उसने हंसकर दूसरे से कहा।
दूसरे ने भी उसे देखकर हंसान शुरू कर दिया।
अपने बेटे का मज़ाक उड़ते देखकर जयंती की आँखों में आँसू आ गये।
‘‘इसका नाम क्या है?’’ एक लुटेरे ने हंसते हुए पूछा। जयंती ने कोई जवाब नहीं दिया।
‘‘मैंने पूछा इसका नाम क्या है?’’ लुटेरे ने गन की नाल से जयंती को स्पर्श किया।
‘‘मेरा नाम महावीर है।’’ इसबार महावीर खुद बोला। अपना मज़ाक उड़ते देखकर भी उसके चेहरे पर गुस्से का कोई भाव नहीं उभरा था।
बल्कि उल्टे उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट खेल रही थी।

‘‘महावीर!’’ दोनों लुटेरों ने कहकहा लगाया, ‘‘बच्चे, कितना गलत नाम तेरा रख दिया गया। तेरा नाम तो केंचुआ होना चाहिए था।’’ दोनों फिर हंसने लगे।

उसी समय ऐसा लगा जैसे व्हील चेयर पर कोई गेंद बहुत ज़ोर से उछली हो। महावीर कुछ इसी तरह उछला था, और फिर लुढ़कता हुआ पल भर में एक लुटेरे की दोनों टाँगों के बीच पहुंच चुका था।

लुटेरे का संतुलन बिगड़ा और वह चारों खाने चित हो गया।
महावीर एक बार फिर सीने के बल उछला और सर से उस लुटेरे की कमर पर वार किया। दूसरे ही पल उस लुटेरे के चारों तरफ का हरा घेरा गायब हो चुका था।

अभी तक दोनों लुटेरों की समझ में ही नहीं आया था कि यह क्या हो गया। फिर जिस लुटेरे से महावीर चिमटा हुआ था उसने उसके ऊपर गन चलाने की कोशिश की, लेकिन महावीर ने उसका बाज़ू दाँतों से पूरी ताकत के साथ दबा लिया और लुटेरे की चीख निकल गयी।

दूसरे लुटेरे ने महावीर को हटाने की कोशिश की लेकिन तब तक मॉल की पब्लिक वहाँ पहुंच चुकी थी। और उसने पहले वाले लुटेरे को घेर लिया। चूंकि उसके चारों तरफ का हरा घेरा हट चुका था अतः उन्हें झटके खाने का कोई डर नहीं था।

‘‘हट जाओ वरना मार डालूंगा।’’ दूसरा लुटेरा थोड़ा बदहवास होकर चीखा।

अब तक वहाँ मौजूद गार्डों ने भी अपनी गनें संभाल ली थीं और दोनों लुटेरों को घेरकर खड़े हो गये थे।

‘‘अपने को हमारे हवाले कर दो वरना तुम्हारे साथी को हम मार देंगे।’’ गार्डों ने दूसरे लुटेरे को चेतावनी दी।
पहला लुटेरा शायद बॉस था। अतः उसे बचाने के लिये दूसरे ने समर्पण कर दिया। अब उसने भी अपना सुरक्षा घेरा हटा दिया था।

दोनों को बाँध कर वहीं डाल दिया गया। अब चारों तरफ से महावीर की तारीफें हो रही थीं। लेकिन महावीर के चेहरे से उन तारीफों का भी कोई असर ज़ाहिर नहीं हो रहा था।

फिर एक व्यक्ति के पूछने पर उसने बताया, ‘‘मैं उनके हरे घेरों को गौर से देख रहा था और मैंने मार्क किया कि उनके पैरों के नीचे की तरफ वह घेरा नहीं है। जब वे लोग मॉल के अन्दर दाखिल हुए थे तो उन्होंने अपनी कमर के पास लगे एक बटन को दबाकर उन घेरों को पैदा कर लिया था। इसीलिए मैं रेंगते हुए उनके पैरों के पास पहुंचा और फिर उस बटन को दबाकर उस घेरे को हटा दिया।’’

वहाँ मौजूद सभी उसकी फुर्ती, हिम्मत और अक्ल की तारीफीं कर रहे थे। लेकिन जयंती उन तारीफों को सुनकर न जाने क्यों सिमटी व घबराई जा रही थी।

फिर उसने जल्दी से महावीर को व्हील चेयर पर बिठाया और लोगों से ज़रूरी काम का बहाना करती हुई वहाँ से निकल आयी।
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Friday, March 19, 2021

अधूरा हीरो - भाग 2

 ‘‘जहाँपनाह मेरा ईनाम?’’ डाक्टर जिंदाल ने फीरान की ओर उम्मीदभरी नज़रों से देखा।

‘‘ईनाम! हाँ तुम्हें हम ज़रूर ईनाम देंगे। मुझे मेरी मौत दिखाने का ईनाम तुम्हें ज़रूर मिलेगा।’’ कहते हुए फीरान ने फुर्ती के साथ अपनी कमर से खंजरनुमा कोई हथियार निकाला और उसका रुख डाक्टर जिंदाल की ओर करके उसपर लगा हरे रंग का बटन दबा दिया।

दूसरे ही पल उस खंजरनुमा हथियार से हरे रंग की किरणें निकलकर डाक्टर जिंदाल को अपने घेरे में ले चुकी थीं। और उसके अन्दर मौजूद डाक्टर जिंदाल इस तरह चीख रहा था मानो उसका दम घुट रहा हो।

अब फीरान ने शोतन को मुखातिब किया, ‘‘शोतन, इस डाक्टर को हमारे खास कैदखाने में रखा जाये जहाँ इसे किसी किस्म की तकलीफ न हो।’’

शोतन ने सर हिलाया। अब फीरान ने अपने खंजरनुमा हथियार का रुख उस भविष्यदृष्टा मशीन की ओर किया और दूसरा बटन जो कि नीले रंग का था दबा दिया। खंजर से नीले रंग की किरणें निकलकर मशीन से टकरायीं और पूरी मशीन पिघलकर नीले रंग के द्रव में बदलने लगी।

‘‘आपने मशीन नष्ट क्यों कर दी जहाँपनाह?’’ शोतन ने डरते डरते पूछा।
‘‘जो मशीन मुझे मेरी मौत दिखाये वह खुद मरने के काबिल है।’’ फीरान ने भयानक आवाज़ में कहा और फिर तेज़ तेज़ कदमों से चलता हुआ वहाँ से निकल गया। शायद वह अपने महल में वापस जा रहा था।

उधर शोतन किरणों के पिंजरे में तड़पते डाक्टर जिंदाल को व्यंग्यपूर्ण नज़रों से देख रहा था, फिर वह उसे पुचकारते हुए बोला,
‘‘च..च...उफ मुझसे तुम्हारी तड़प देखी नहीं जा रही। आखिर तुमने ऐसा काम क्यों किया, जिसने जहाँपनाह को नाराज़ कर दिया। खैर अब उनके हुक्म का पालन करना ही पड़ेगा। अब तुम जहाँपनाह के खास कैदखाने में जाने को तैयार हो जाओ फीरान के देश के सबसे बड़े साइंटिस्ट। आज के बाद अब तुम कोई नया आविष्कार नहीं कर पाओगे।’’

‘‘शोतन, मेरी मशीन ने जो भविष्य बताया है वह अटल है। फीरान की मौत उसकी तक़दीर में लिखी जा चुकी है।’’ अन्दर से तड़पते हुए डाक्टर जिंदाल की आवाज़ आयी।

‘‘देखते हैं। फिलहाल तो तुम्हारे हीरो की माँ की तक़दीर जहाँपनाह लिखने जा रहे हैं। कहीं ऐसा न हो कि मिस्टर परफेक्ट पैदा ही न हो सकें।’’
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जयंती को लेकर जुरात फीरान की सेवा में हाज़िर हो चुका था। फीरान उसे घूर रहा था। जयंती के चेहरे पर भय के लक्षण थे।

‘‘क्यों बुलाया है तुमने मुझे? मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?’’ जयंती ने डरे हुए स्वर में कहा।
‘‘डरो नहीं मेरी तुमसे कोई दुश्मनी नहीं।’’ फीरान ने एक क्रूर हंसी हंसकर कहा।
‘‘तो फिर तुमने मुझे क्यों बुलाया है?’’

‘‘इसलिए क्योंकि तुम्हारी कोख में पलने वाला बच्चा मेरा दुश्मन है। और मैं अपने दुश्मन को कभी नहीं छोड़ता।’’
जहाँ पहले के शब्दों ने जयंती को थोड़ा सुकून बख्शा था वहीं इस वाक्य ने उसे अन्दर तक हिला दिया।

‘‘जिस बच्चे ने अभी दुनिया में आँखें भी नहीं खोली हैं वह तुम्हारा दुश्मन कैसे हो गया।’’ जयंती ने इस प्रकार फीरान को देखा मानो उसकी दिमागी हालत पर शक कर रही हो।

‘‘वह मेरा दुश्मन है। मेरे साइंटिस्ट की बनायी मशीन ने मुझे मेरा भविष्य दिखा दिया है जिसमें वह बच्चा मेरी हत्या करेगा। लेकिन उससे पहले मैं उसे खत्म कर दूंगा।’’ फीरान अपनी हथेली पर घूंसा मारकर दहाड़ा।

अभी तक जयंती जो फीरान के डर से काँप रही थी अचानक खिलखिला कर हंस पड़ी।
‘‘तू हंस क्यों रही है औरत। क्या डर से तेरा दिमाग पलट गया है?’’ फीरान ने तेज़ आवाज़ में कहा।

‘‘मैं इसलिए हंस रही हूं कि पूरी दुनिया को रौंदने वाला डिक्टेटर एक ऐसे बच्चे से खौफ खा रहा है जिसने अभी जन्म भी नहीं लिया है। कितना कायर है तू। अपनी मौत का इतना खौफ, कि एक बच्चे को दुनिया में आने से रोक रहा है इस अंदेशे में कि वह तुझे यानि दुनिया के सबसे शक्तिशाली शासक को मार डालेगा।’’ जयंती उसे लगातार ताने पर ताने दे रही थी।

फीरान जयंती की बात पर ठिठक कर कुछ सोचने लगा था। फिर वह धीरे से मुस्कुराया, ‘‘नहीं मैं तुम्हारे बच्चे को दुनिया में आने से नहीं रोकूंगा। मैं भी देखूंगा कि वह मिस्टर परफेक्ट कैसे बनता है।’’

यह शब्द कहते कहते उसने अचानक अपना इलेक्ट्रानिक खंजर कमर से खींच लिया। और उसका रूख जयंती की ओर कर दिया।
‘‘तुम क्या कर रहे हो।’’ जयंती चीख उठी।

‘‘मैं तुम्हारे बच्चे को मिस्टर परफेक्ट रहने ही नहीं दूंगा। घबराओ मत। मेरे खंजर में मौजूद सर्जिकल किरणें बहुत आराम से अपना काम करती हैं। ये तुम्हारे अन्दर मौजूद उस बच्चे के हाथ पैर काटकर उसे मिस्टर परफेक्ट रहने ही नहीं देगी। और तुम्हें पता भी नहीं चलेगा।’’ एक वहशियाना मुस्कुराहट फीरान के चेहरे पर जमी हुई थी।
‘‘नहीं ज़ालिम। तू ऐसा नहीं कर सकता।’’ जयंती चीख पड़ी और अपने शरीर को छुपाती वहाँ से बचकर चले जाने की कोशिश करने लगी। 
लेकिन उसी समय कई रोबोट पहरेदार वहाँ पहुंच गये और उन्होंने जयंती को बुरी तरह जकड़ लिया।

फीरान के हाथ में मौजूद खंजर से अजीब सी किरणें निकल चुकी थीं जिनका रंग रक्त लाल जैसा था। ये किरणें देखने में किसी आरी जैसी मालूम हो रही थीं और बहुत धीरे धीरे जयंती की ओर बढ़ रही थीं। जयंती चीख रही थी और रोबोटों की पकड़ से आज़ाद होने की कोशिश कर रही थी। लेकिन रोबोटों की पकड़ बहुत मज़बूत थी।

फिर वे किरणें जयंती के जिस्म से टकराईं और देखने वालों को लगा कि वे उसके जिस्म के अन्दर घुसती चली गयीं। जयंती को ऐसा महसूस हो रहा था मानो उसके जिस्म के अन्दर बहुत से आरे चल रहे हों।

एक माँ अपने पेट में तड़पते हुए बेटे का दर्द महसूस कर रही थी और बिलख रही थी।

और सामने मौजूद ज़ालिम फीरान कहकहे लगा रहा था, ‘‘हा हा हा। मेरी मौत। ये पैदा होने के बाद मेरी मौत बनने वाला था। मैंने अपनी मौत को हमेशा के लिये अपाहिज कर दिया। अपाहिज मौत।’’ वह फिर कहकहे लगाने लगा।
‘‘फीरान, थू है तेरे ऊपर। एक मासूम बच्चे पर भी तूने तरस नहीं खाया जिसने अभी दुनिया में आँखें भी नहीं खोली हैं। तेरा अंजाम बहुत बुरा होगा।’’ जयंती विलाप कर रही थी।

‘‘अब मैं तेरी बात का बिल्कुल बुरा नहीं मानूंगा। क्योंकि तेरे पति को मेरी सेना ने मारा और मैंने तेरे बेटे को अधूरा कर दिया। इसलिए तेरा पागल होना वाजिब है।’’ फीरान हंसते हुए कह रहा था। फिर वह अपने वज़ीर जुरात से मुखातिब हुआ,

‘‘जुरात! इसे ले जाकर इसके घर के पास किसी कूड़े के ढेर पर डलवा दे।’’ उसके शब्द समाप्त हुए और जुरात ने पहरेदार रोबोटों को जयंती को वहाँ से ले जाने का आदेश दे दिया। जयंती चीख चीखकर फीरान और उसकी सत्ता को बद्दुआएं दे रही थी।
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फीरान के ज़ुल्म बढ़ते जा रहे थे और उसका विरोध करने वाले खत्म होते जा रहे थे। उसने सोने चाँदी का एक पूरा शहर अपनी ऐय्याशियों के वास्ते बनाने का इरादा किया था और इस काम के लिये उसने हरस को नियुक्त किया था।
हरस ने पूरी दुनिया के इंसानों को इस काम में बंधुआ मज़दूरों की तरह झोंक दिया था। आठ घंटे वे अपना काम करते थे और बारह घंटे उन्हें फीरान के शहर के निर्माण में लगना था। अपने आठ घंटे में उन्हें थोड़ा सा आराम करने की मोहलत थी लेकिन फीरान के काम में उन्हें एक सेकंड की भी मोहलत नहीं थी।

 अगर काम करते करते उनका जिस्म थक जाता तो मौत ही उन्हें आराम देती थी जो कि हरस के खुंखार पहरेदारों की डेथ किरणों के रूप में आती थी और उन्हें चाट जाती थी।

उधर जयंती का लाडला दुनिया में आ चुका था।

बच्चा बहुत खूबसूरत था, मानो चाँद ज़मीन पर उतर आया हो। लेकिन जिसने भी उसे देखा अपनी सिसकियां नहीं रोक पाया। क्योंकि न तो उसके पास हुमकने के लिये हाथ थे और न घुटनियों चलने के लिये पैर।
उसके दोनों हाथ कंधों के पास से नदारद थे। और पैरों के नाम पर घुटनों से ऊपर का कुछ हिस्सा दिखाई दे रहा था।

डाक्टरां ने जयंती को राय दी, ‘‘यह बच्चा हमेशा तुम्हारे लिये एक मुसीबत बना रहेगा। बेहतर होगा कि तुम इसे खत्म करने की हामी भर लो। ज़हर का एक इंजेक्शन इसे और तुम्हें दोनों को तमाम तकलीफों से बचा लेगा।’’

‘‘नहीं! हरगिज़ नहीं!’’ जयंती चीख उठी, ‘‘ये मेरा बेटा है। मेरे दिल का टुकड़ा। इसके हाथ और पैर मैं बनूंगी। इसे किसी चीज़ की कमी नहीं महसूस होगी। तुम लोग अपनी ज़ालिमाना राय अपने पास रखो।’’

 यह सुनकर डाक्टरों ने अपना सर झुका लिया और खामोशी से वहाँ से चले गये।

जयंती बेतहाशा अपने अपाहिज बच्चे को चूम रही थी। और कह रही थी, ‘‘यह मेरा प्यारा बहादुर बेटा है। देखना यह बिना हाथ पैरों के तमाम लोगों को पीछे छोड़ते हुए तरक्की करेगा। अपने बाप की तरह यह महावीर होगा। मेरा महावीर।’’
उसी वक्त उस बच्चे का नामकरण हो गया था - महावीर।
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महावीर धीरे धीरे बड़ा हो रहा था। जयंती उसे हर समय सीने से लगाये रखती थी। उसे महसूस होता था कि महावीर और बच्चों से अलग है। जहाँ दूसरे बच्चे भूख लगने पर तेज़ आवाज़ में रोने लगते हैं। महावीर इस के विपरीत थोड़ा सा रोकर चुप हो जाता था और इंतिज़ार करता था कि कब उसकी माँ आकर उसे दूध पिलाती है।

झूले की उम्र में ही उसके अन्दर सब्र करने की क्षमता अत्यधिक थी। और साथ ही सीखने की क्षमता भी।

जिस उम्र में बच्चे हाथ पैरों के बल पर खिसकते हुए अपनी पसंद की चीज़ उठा लेते हैं, महावीर ने बिना हाथ पैरों के बाकी शरीर के बल पर खिसकना सीख लिया था। और मनचाही जगह पर आराम से पहुंच जाता था।

वह खाने पीने की चीजें़ सीधे अपने मुंह से उठा लेता था और जब उसी मुंह से वह खाने की भी कोशिश करता था तो उसे नाकाम होते देखकर जयंती अपने आँसू रोक नहीं पाती थी।

लेकिन फिर ये नाकामी धीरे धीरे कामयाबी में बदलने लगी। अब वह खाने की चीज़ों को मुंह से पकड़कर खाने का अभ्यस्थ हो गया था।

उसके अन्दर मानसिक क्षमता दूसरे बच्चों से कई गुना ज़्यादा थी। वह तेज़ी के साथ ऐसी बातें सीख रहा था जो बाक़ी बच्चे बहुत देर में सीखते हैं। बिना हाथ पैरों के वह मात्र अपने शरीर को ज़मीन पर खिसकाते हुए इतनी तेज़ चलता था कि लोग उसे हैरत से देखने लगते थे।

जयंती उसे बाहर नहीं जाने देती थी। उसके लिये घर ही में ट्यूटर का इंतिज़ाम उसने कर दिया था। उसने दाँतों में पेंसिल पकड़कर लिखने की तरकीब निकाल ली थी और साथ ही मोबाईल व कम्प्यूटर गेम्स भी दाँतों से पेंसिल या कोई और साधन थामकर खेलने लगा था।

अक्सर बातें वह लिखने की बजाय याद कर लेता था। जब ट्यूटर उसे अपना दिया हुआ होमवर्क सुनाने को कहता तो वह हूबहू इस तरह सुनाता था जिस तरह ट्यूटर ने उसे एक दिन पहले पढ़ाया होता था। उसकी स्मरण शक्ति गज़ब की थी।

फीरान ने उसके हाथ पैर छीन लिये थे, लेकिन बदले में ईश्वर ने उसकी बाक़ी इन्द्रियों को कई गुना शक्तिशाली कर दिया था। कोई नहीं कह सकता था कि उसे अपने हाथ पैरों का अभाव महसूस होता है।
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वक्त का पहिया घूमता रहा और महावीर पाँच साल का हो गया।

सर्दियों का मौसम शुरू हो गया था। जयंती महावीर को लेकर बीस मंज़िला बिल्डिंग की छत पर आ गयी थी। जहाँ फैली हुई धूप काफी खुशगवार मालूम हो रही थी। उसने महावीर को एक तरफ बिठा दिया और एक किताब पढ़ने लगी। किताब काफी दिलचस्प थी जिसने उसे आसपास के माहौल से बेखबर कर दिया।

फिर किसी आहट ने उसकी तल्लीनता भंग कर दी।
उसने घूमकर देखा और सन्न रह गयी।
महावीर अपनी जगह पर नहीं था।

उसने बदहवास होकर एक ही बार में पूरी छत पर नज़र दौड़ाई लेकिन महावीर पूरी छत पर कहीं नहीं दिखाई दिया। एक कोने में भरे कबाड़ के अलावा पूरी छत पर कुछ नहीं था।

‘‘महावीर मेरे बच्चे। तू कहाँ है?’’ वह पागलों की तरह उसे पुकार रही थी।
लेकिन जवाब में महावीर की कोई आवाज़ नहीं सुनाई दी। तमाम अंदेशों के साथ उसने छत से नीचे झांका और धक से रह गयी।

बिल्डिंग के पीछे की साइड में एक जगह अच्छी खासी भीड़ दिखाई दे रही थी।
‘‘महावीर! मेरे बच्चे।’’ वह रोती बिलखती सीढ़ियों के ज़रिये नीचे भागी। बदहवासी में वह कई कई सीढ़ियां एक साथ फलांग रही थी। उसे कुछ होश नहीं था कि किस तरह उसने बीस मंज़िलें तय कीं और उस स्पॉट पर पहुंची।

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आगे क्या हुआ इसे जानने के लिये पढ़ें इस धारावाहिक का अगला भाग।  और कहानी की कड़ियों की सूचना मिलती रहे इसके लिये लेखक को फॉलो करें. सम्पूर्ण उपन्यास एक साथ पेपरबैक संस्करण में निम्न लिंक पर उपलब्ध है।
https://pothi.com/pothi/node/205480.

Thursday, March 18, 2021

अधूरा हीरो - भाग 1

यह दास्तान उस वक्त शुरू होने वाली है जब न हम इस दुनिया में होंगे और न आप। लेकिन हो सकता है आप के बच्चों के बच्चे या उनके बच्चे इस दास्तान का हिस्सा बनने के लिये मौजूद हों। लेकिन जो भी उस समय मौजूद होगा, उसके लिये वक्त बहुत मुश्किल होगा।

क्योंकि एक बहुत ही धूर्त व क्रूर शासक के अत्याचारों से दुनिया तंग हो चुकी है। उसका नाम है फीरान।
इतिहास के समस्त कमीनों व शैतानों का जीता जागता वारिस है फीरान।

मामूली गलतियों पर जब वह किसी को सज़ा देता है तो उस सज़ा को देखने वाला भी काँप उठता है। उसके ईजादकर्दा इलेक्ट्रानिक कोड़े सज़ा पाने वाले का दर्द कई गुना बढ़ा देते हैं। और जब सज़ा पाने वाला मनुष्य दर्द से तड़पता है तो फीरान के हलक़ से क़हक़हे फूटते हैं। दूसरों को यातना में देखकर वह आनन्द का अनुभव करता है।

उसके वैज्ञानिकों द्वारा बनाया हुआ जासूसी सिस्टम हर समय एक एक घर का जायज़ा लेता रहता है। अगर कहीं भी उसे कोई लड़की पसंद आ जाती है तो उसके सैनिक ज़बरदस्ती उठाकर उसके महल में पहुंचा देते हैं। उसकी हुकूमत में न तो किसी की शराफत की कोई अहमियत है और न ही किसी की इज़्ज़त सुरक्षित है।  

फीरान का कब्ज़ा पूरी दुनिया पर हो चुका था। लेकिन एक छोटे से देश ने अभी उसकी अधीनता स्वीकार नहीं की थी। इंडियाना नामी यह देश अपनी कम शक्ति के बावजूद उसके मुकाबले में डटा हुआ था।
 
इस देश के जाँबाज़ योद्धा अपनी आज़ादी को क़ायम रखने के लिये फीरान की हाई टेक सेना से संघर्ष कर रहे थे। हालात ये थे कि फीरान की हाई-टेक सेना की घातक डेथ किरणों से निर्दोष नागरिकों को बचाने के लिये ये योद्धा अपने सीने को सीसा पिलायी दीवार बनाकर उन किरणों के सामने खड़ी कर देते थे और हंसते हंसते मौत की आगोश में समा जाते थे।
 
लेकिन कब तक?
 
फीरान अपने महल में सोने व हीरों से बने सिंहासन पर बैठा हुआ था, और उन योद्धाओं को डेथ किरणों द्वारा भस्म होते देखकर कहकहे लगा रहा था।
 
उसके महल की सामने की दीवार किसी बड़े टीवी स्क्रीन की तरह रोशन थी और उसपर इंडियाना के योद्धाओं का संघर्ष उसकी भारी भरकम सेना के साथ साफ साफ दिखाई दे रहा था। फीरान की सेना में रोबोट ज़्यादा थे और हाड़ माँस के मनुष्य कम। यही वजह थी कि ये सामने वाले की हत्या करते समय ज़रा भी दर्द महसूस नहीं करते थे।
फीरान ने देखा, उसकी सेना के रोबोट ने एक योद्धा पर डेथ बीम फेंकी और वह योद्धा फुर्ती के साथ किनारे हो गया। लेकिन उसी समय उधर से भी एक डेथ बीम आयी और योद्धा ने एक बार फिर बेमिसाल फुर्ती का प्रदर्शन करते हुए उल्टी छलांग लगाकर अपने को बचा लिया।
 
फीरान को यह खेल दिलचस्प मालूम हुआ और उसने उस योद्धा की हरकतें देखने के लिये स्क्रीन को इशारा किया और स्क्रीन ने योद्धा को अपने फोकस में कर लिया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उसकी उंगली की एक अँगूठी उस स्क्रीन का रिमोट थी।
योद्धा के चेहरे पर डर का कोई निशान नहीं दिख रहा था।

जब कई बार वह योद्धा बच निकला तो कई रोबोटों ने एक साथ उसपर घातक किरणों से वार किया। इसबार भी उस योद्धा ने बेमिसाल फुर्ती का प्रदर्शन किया और वे किरणें उसपर पड़ने की बजाय रोबोटों पर ही पड़ीं और कई रोबोटों के परखच्चे उड़ गये।

 ‘‘क्या कर रहे हो बेवकूफों। एक मामूली मनुष्य को तुम लोग खत्म नहीं कर पा रहे हो।’’ फीरान बड़बड़ाया।
वह योद्धा अभी भी कई रोबोटों को एक साथ छका रहा था। उस के अन्दर जिस्मानी ताकत भी ग़ज़ब की दिखाई दे रही थी। क्योंकि कुछ रोबोटों को वह मात्र घूंसे के प्रहार से टीन की तरह पिचका चुका था।

फीरान की उंगली ने एक बार फिर हरकत की और उस योद्धा की पूरी कुंडली स्क्रीन पर दिखने लगी।
‘‘ओह तो ये बात है।’’ फीरान बड़बड़ाया।
उस योद्धा का नाम जयवीर था, वह उस देश के कई प्रतापी सम्राटों का वंशज था। शायद इसीलिए उसके अन्दर बहादुरी व लड़ने की क्षमता कूट कूटकर भरी थी।
 
‘‘लेकिन मेरे पास हर चीज़ का तोड़ है।’’ उसने कुटिल हंसी हंसते हुए कहा।
फिर उसने सर में लगे अपने मुकुट के द्वारा उस सैनिक टुकड़ी के चीफ से सम्पर्क स्थापित किया और कहने लगा, ‘‘उस योद्धा को तुम आमने सामने की लड़ाई में नहीं हरा सकते। उसे धोखे से मारो।’’
 
सैनिक टुकड़ी का चीफ उसकी बात समझ गया। और दो रोबोट सैनिकों को लेकर अलग हो गया।
अब वह पेड़ों के एक झुरमुट के बीच पहुंचा और उसके दोनों साथी तेज़ी के साथ वहाँ गड़ढा खोदने लगे। कुछ ही मिनटों में वहाँ लम्बा चौड़ा गड्ढा तैयार हो गया था। उस गड्ढे को घास फूस डालकर बन्द कर दिया गया।

अब चीफ फिर से जयवीर के सामने आ गया था। फिर वह उसे उस गड्ढे की ओर भेजने की कोशिश करने लगा। आखिरकार वह अपने रोबोट सैनिकों के साथ इस मकसद में कामयाब हो गया।
 
जैसे ही जयवीर लड़ते लड़ते उस गड्ढे के ऊपर पहुंचा उसके कदमों ने ज़मीन छोड़ दी और वह सीधे गड्ढे के अन्दर चला गया।
दूसरे ही पल फीरान के सैनिकों की गनों से निकलने वाली बीसियों डेथ किरणें उसके जिस्म पर पड़ चुकी थीं।

जयवीर का जिस्म लकड़ी की तरह जलने लगा और उसने तड़प तड़प कर अपनी जान दे दी।  
‘‘गया काम से।’’ फीरान हो हो करके हंसने लगा।
 
‘‘इंडियाना वासियों, कब तक मेरी असीम शक्ति से टकराओगे एक दिन तुम्हें मेरा गुलाम बनना पड़ेगा।’’ वह अपनी भारी आवाज़ में कह रहा था जिसमें क्रूरता कूट कूट कर भरी हुई थी।
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उधर जयवीर के घर में दिलासा देने वालों का ताँता लगा हुआ था।
उसकी पत्नी जयंती की आँखों में आँसू ज़रूर थे लेकिन साथ ही चेहरे पर चट्टानों जैसी सख्ती भी स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी। और होती भी क्यों न। वह एक वीर की पत्नी जो थी। जयवीर ने जिस बहादुरी से फीरान की सेना का सामना किया था, वह उसके असीम शौर्य को साबित करने के लिये काफी था।
 
कुछ इसी तरह के शब्द दिलासा देने वालों के भी थे।
 
‘‘जब तक ये दुनिया क़ायम है जयवीर की वीरता की कहानियां हमेशा दोहरायी जाती रहेंगी। जयंती तुम सब्र से काम लेना क्योंकि तुम एक वीर की विधवा हो।’’ एक बूढ़ी औरत भर्राये गले के साथ बोली।

उसी वक्त एक घबराया हुआ व्यक्ति अन्दर दाखिल हुआ।
‘‘आप लोगों ने सुना? हमारे देश ने फीरान के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है।’’ उसने अन्दर दाखिल होने के साथ यह दुःखभरी खबर सुनाई।  
‘‘यह तो होना ही था। शायद अब देश में कोई जयवीर नहीं बचा।’’ उसी बूढ़ी औरत ने ठंडी साँस लेकर कहा।

‘‘जब तक दुनिया क़ायम है, इस देश में जयवीर पैदा होते रहेंगे। मेरी कोख में पलने वाला जयवीर का बेटा एक दिन इस देश को फीरान से मुक्ति दिलायेगा, उसे मौत का मज़ा चखाकर।’’ जयवीर की पत्नी जयंती के लहजे में विश्वास की वह गूंज थी जिसने दिलासे के तमाम शब्दों को बेआवाज़ कर दिया था।
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‘‘मैंने मौत को भी हरा दिया है। और वह मेरी मुट्ठी में आ चुकी है।’’ फीरान गर्व से अपने वज़ीरों से उस जश्न में कह रहा था जो इंडियाना के समर्पण की खुशी में आयोजित हुआ था।

‘‘यह चमत्कार कैसे हुआ है जहाँपनाह?’’ उसके कुटिल मुंहलगे वज़ीर शोतन ने आँखें फैलाकर पूछा। शोतन इंसानों के बीच लड़ाई कराने के लिये तरह तरह की साज़िशें रचने का माहिर था और अच्छी तरह जानता था कि फीरान अपने को पुराने ज़माने के बादशाहों के ‘जहाँपनाह’ लक़ब से पुकारा जाना पसंद करता है।

‘‘यह ऐसे हुआ है कि मैंने अपनी कोशिकाओं से बुढ़ापा लाने वाले जींस खत्म कर दिये हैं। अब मुझे न तो बुढ़ापा आ सकता है और न ही कुदरती मौत। और दुनिया में कोई ऐसा माई का लाल नहीं जो मेरी हत्या कर सके। अतः मैं अब हमेशा ज़िन्दा रहूंगा और लोगों को मरते देखने का मज़ा लूटता रहूंगा।’’ फीरान के मुंह से हमेशा की तरह रीढ़ में सिहरन दौड़ाने वाली हंसी बाहर निकली थी।

उसी वक्त महल के इस दरबारनुमा हॉल के दरवाज़े से एक अधेड़ आयु का व्यक्ति दाखिल हुआ। उसके सर पर हैटनुमा लंबी कैप मौजूद थी। वह फीरान के पास आया और हैट उतारकर व सर झुकाकर उसे अभिवादन देने लगा।

‘‘आओ डाक्टर जिंदाल। मेरे होनहार साइंटिस्ट। पूरे एक साल बाद तुम मेरे पास आये हो। कहाँ गायब थे?’’
‘‘मैं आपके लिये एक बेहतरीन चीज़ तैयार करने में लगा हुआ था। अब वो खास चीज़ तैयार हो गयी है और मैं उसे आज आपकी सेवा में हाज़िर करने की इजाज़त चाहता हूं।’’ डाक्टर जिंदाल ने एक बार फिर सर झुकाकर उसका अभिवादन किया।

‘‘मैं जानना चाहता हूं कि वह खास चीज़ क्या है?’’
‘‘वह खास चीज़ एक मशीन है जो वर्चुअल पार्टिकिल थ्योरी के आधार पर काम करती है। कोई भी घटना वास्तविक रूप में होने से पहले आभासी रूप में घटित होती है। मेरी मशीन उस आभासी रूप को रिकार्ड करके किसी घटना को उसके होने से पहले बता देती है।’’

‘‘यानि वह मशीन भविष्यवाणी करने की मशीन है।’’ शोतन ने सर हिलाते हुए कहा।
‘‘हाँ। आम शब्दों में यही कहा जायेगा।’’
 
‘‘इस तरह के तमाशे इससे पहले कई लोगों ने दिखाने की कोशिश की और गलतबयानी के जुर्म में जहाँपनाह के हण्टर का मज़ा चख कर चले गये।’’ शोतन ने खिल्ली उड़ाने के लहजे में कहा।

‘‘ये गलतबयानी नहीं है। जहाँपनाह खुद उसे चेक कर सकते हैं।’’ डाक्टर जिंदाल ने थोड़ा गुस्से में आकर कहा।
‘‘मैं उस मशीन को ज़रूर देखूंगा।’’ फीरान ने हाथ उठाकर कहा और दोनों चुप हो गये।
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जब फीरान डाक्टर जिंदाल की बनायी हुई मशीन के पास पहुंचा तो उसके साथ उसके तीन वज़ीर भी थे जिनमें से एक शोतन था और बाक़ी दो के नाम हरस व जुरात थे। ये दोनों कमीनगी में किसी भी तरह शोतन से कम नहीं थे।
‘‘कहाँ है तुम्हारी मशीन डाक्टर जिंदाल?’’ डाक्टर जिंदाल की लैबोरेट्री में पहुंचकर फीरान इधर उधर देखने लगा।
‘‘आप रिमोट का ये बटन दबाईए, मशीन आपके सामने होगी।’’ डाक्टर जिंदाल ने एक छोटा सा रिमोट फीरान की तरफ बढ़ाया।
 
फीरान ने रिमोट का बटन दबाया, दूसरे ही पल लैबोरेट्री की सामने की दीवार किसी शटर की तरह बगैर आवाज़ किये ऊपर उठ गयी और वहाँ एक विशालकाय मशीन नज़र आने लगी जिसका सामने का हिस्सा किसी वायुयान के कॉकपिट की तरह दिख रहा था और उस कॉकपिट में लगे शीशों से बाहर का आसमान भी दिखाई दे रहा था।
 
‘‘डाक्टर जिंदाल, क्या आपने किसी पुराने वायुयान को कटवाकर यहाँ लगा लिया है?’’ शोतन ने व्यंग्यपूर्ण स्वर में डाक्टर जिंदाल को मुखातिब किया।
‘‘मिस्टर शोतन, समझने को आप कुछ भी समझ सकते हैं, लेकिन वास्तविकता ये है कि ये मेरा बनाया हुआ ऐसा आविष्कार है जिसकी दूसरी मिसाल नहीं। यह मल्टीवर्स के उस यूनिवर्स से आने वाली तरंगों को कैच कर लेती है जिसमें हमारे यूनिवर्स का भविष्य छुपा हुआ है।’’
 
‘‘डाक्टर जिंदाल! हमें कैसे मालूम होगा कि यह मशीन भविष्य बताती या दिखाती है। हमें भी यह कोई वायुयान का कॉकपिट दिखाई दे रहा है जिसके बाहर का आसमान भी साफ साफ दिखाई दे रहा है।’’ फीरान ने तिरछी नज़रों से मशीन ही को घूरा।

‘‘जहाँपनाह। मैं दिखाता हूं।’’ डाक्टर जिंदाल ने उसके हाथ से रिमोट ले लिया और उसके कुछ बटन दबाये। दूसरे ही पल कॉकपिट में दिख रहे आसमान में एक संख्या चमकने लगी।
‘‘ये संख्या बता रही है कि हम किस समय का भविष्य देख रहे हैं।’’
‘‘ये तो दस साल के बाद का समय है।’’ शोतन बड़बड़ाया।
‘‘दस साल के बाद इस आसमान के नीचे ये होगा।’’ डाक्टर जिंदाल ने फिर रिमोट को हरकत दी और फीरान तथा अन्य लोगों ने देखा कि आसमान ऊपर उठ गया और नीचे की धरती दिखाई पड़ने लगी।
 
उस ज़मीन पर एक आलीशान बंगला दिखाई पड़ रहा था।
 
‘‘यह बंगला तो बहुत खूबसूरत है। किसका है ये?’’ वहाँ मौजूद दूसरे वज़ीर हरस ने मुंह फैलाकर पूछा।
 
‘‘अभी मालूम हो जायेगा।’’ कहते हुए डाक्टर जिंदाल ने रिमोट को हरकत दी और बंगले के अन्दर का दृश्य स्पष्ट होने लगा। फिर उस बंगले का एक कमरा नज़र आया जिसमें चारों तरफ सोना व हीरे जवाहरात वगैरा बिखरे हुए थे।
और उनके बीच में एक व्यक्ति सोने चाँदी का ही बना हुआ लिबास पहने हुए उन जवाहरातों को उछाल रहा था और ज़ोर ज़ोर से हंस रहा था।
 
‘‘ये कौन है?’’ फीरान ने पूछा।
डाक्टर जिंदाल ने रिमोट के द्वारा सीन को घुमाया और उन सबके मुंह से एक साथ आश्चर्यमिश्रित ‘ओह’ की आवाज़ निकली।
क्योंकि वह व्यक्ति और कोई नहीं हरस ही था। उस दृश्य में हरस और ज़्यादा मोटा दिखाई दे रहा था।

‘‘तुमने तो बहुत माल इकट्ठा कर लिया है हरस।’’ फीरान ने हरस को घूरा।
‘‘अभी कहां जहाँपनाह, ये तो दस साल के बाद का भविष्य है।’’ हरस ने जल्दी से सफाई पेश की, ‘‘अब आपका वज़ीर बनकर इतना तो कमा ही लूंगा।’’
 
वह चापलूसी भरी हंसी हंसने लगा। फीरान ने त्योरियां चढ़ाते हुए उसे हाथ के इशारे से रोक दिया और उसकी हंसी पर इमरजेन्सी ब्रेक लग गया।
‘‘कान खोलकर सुनो। जब तुम्हारे पास इतना माल इकट्ठा हो जाये तो उसका आधा मेरे महल में पहुंचा देना। ठीक दस साल के बाद।’’ फीरान ने गुर्राकर कहा।
 
‘‘बिल्कुल बिल्कुल जहाँपनाह। आपके हुक्म का पालन हमारा फर्ज़ है।’’ हरस ने जल्दी से कहा।
अब फीरान दोबारा डाक्टर जिंदाल से मुखातिब हुआ, ‘‘तुम्हारा ये आविष्कार हमें बहुत पसंद आया।’’
‘‘शुक्रिया जनाब।’’ डाक्टर जिंदाल ने झुककर कहा।
 
‘‘हम तुम्हें इसका ईनाम भी देंगे। लेकिन उससे पहले हम एक भविष्य और देखना चाहते हैं।’’
‘‘आप हुक्म कीजिए जहाँपनाह। आप किस समय का भविष्य देखना चाहते हैं?’’
 
‘‘हम देखना चाहते हैं कि बीस साल बाद हमारी हुकूमत कहाँ तक होगी। केवल ज़मीन में या आसमानों में भी।’’ फीरान ने गर्व से कहा।
उसकी बाद सुनकर डाक्टर जिंदाल ने रिमोट के बटन को दबाया और मशीन की स्क्रीन के आसमान पर सौ साल बाद का वर्ष चमकने लगा।
 
फिर आसमान के नीचे की ज़मीन भी दिखाई पड़ने लगी। ये एक मैदान था जहाँ लोहे की एक विशाल मूर्ति दिखाई दे रही थी। ये मूर्ति फीरान की थी। डाक्टर जिंदाल ने दृश्य को और स्पष्ट किया और फिर उन लोगों ने जो देखा जो उनके लिये पूरी तरह अप्रत्याशित था।

मूर्ति के पास बहुत बड़ा मजमा इकट्ठा था और वे सब मूर्ति के ऊपर कंकड़ पत्थर व जूते चप्पलें फेंक रहे थे और चीख चीखकर उसे बुरा भला कह रहे थे।
 
फिर एक व्यक्ति ऊंचे मुकाम पर खड़ा हुआ और बोलने लगा, ‘‘दोस्तों आज का दिन बहुत बड़ी खुशी का दिन है। आज ही के दिन हमें और सारी दुनिया को एक बहुत बड़े राक्षस फीरान के अत्याचारों से मुक्ति मिली थी। हम सब के हीरो मिस्टर परफेक्ट ने उसका संहार करके हमें उससे मुक्ति दिलायी थी। बोलो मिस्टर परफेक्ट की जय।’’

फिर वहाँ मिस्टर परफेक्ट की जय जयकार होने लगी।
डाक्टर जिंदाल ने देखा फीरान का चेहरा अंगारे की तरह लाल हो गया था। उसने सीन बदलना चाहा लेकिन फीरान ने हाथ के इशारे से उसे रोक दिया।

वह व्यक्ति फिर बोलने लगा, ‘‘दोस्तों, अब हम मिस्टर परफेक्ट का सम्मान करेंगे। जो यहाँ पधारने वाले हैं।’’
जैसे ही उसके शब्द समाप्त हुए, एक उड़ती हुई कार वहाँ पहुंची और स्टेज पर उतर गयी। फिर उसमें से एक लंबा तगड़ा व्यक्ति बाहर निकला। जिसका बलिष्ठ शरीर मानो साँचे में ढला हुआ था। और चेहरा इतना खूबसूरत मानो किसी यूनानी देवता की संगमरमर की बनी हुई मूर्ति।
 
उसे देखते ही पब्लिक और ज़ोरों से जय जयकार करने लगी। फिर उसे फूलमालाओं से लाद दिया गया।
 
‘‘डाक्टर जिन्दाल, पता करो यह मिस्टर परफेक्ट कौन है।’’ फीरान के हुक्म पर डाक्टर जिन्दाल ने सर हिलाया और मिस्टर परफेक्ट को मशीन पर फोकस करके एक बटन दबा दिया।
अब स्क्रीन पर तेज़ी के साथ दृश्य इस तरह बदल रहे थे मानो कोई फिल्म तेज़ी के साथ रिवर्स की जा रही हो।
 
‘‘तुम क्या कर रहे हो?’’ शोतन ने पूछा।
‘‘मैं उस व्यक्ति यानि मिस्टर परफेक्ट को मशीन पर केन्द्रित करके वर्तमान में आ रहा हूं। ताकि मुझे पता चल जाये कि वर्तमान में वह व्यक्ति कहाँ है।’’ डाक्टर जिन्दाल ने जवाब दिया।

लगभग दो मिनट तक स्क्रीन पर तस्वीरें तेज़ी के साथ भागती रहीं और फिर एक दृश्य पर आकर ठहर गयीं। उस दृश्य को देखकर सभी चौंक उठे।
क्योंकि उसमें जयवीर की विधवा जयंती नज़र आ रही थी।
 
‘‘हूं, तो ये है वह औरत जो मेरी मौत को जन्म देने की कोशिश कर रही है।’’ फीरान ठंडी आवाज़ में बोला फिर एक कहकहा लगाकर हंस पड़ा।
 
हंसते हंसते वह तीसरे वज़ीर जुरात की तरफ घूमा, ‘‘जुरात, मुझे यह औरत अभी मेरे सामने हाज़िर चाहिए। जिंदा।’’ जुरात ने सर हिलाया और बाहर निकल गया।

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आगे क्या हुआ इसे जानने के लिये पढ़ें इस धारावाहिक का अगला भाग।  और कहानी की कड़ियों की सूचना मिलती रहे इसके लिये ब्लॉग को फॉलो करें. सम्पूर्ण उपन्यास एक साथ पेपरबैक संस्करण में निम्न लिंक पर उपलब्ध है। 

Wednesday, March 10, 2021

अधूरा हीरो

 एक साहसी युवक जो हाथ पैरों से लाचार है।


लेकिन उसके पास बला का दिमाग है।
वह दुनिया के सर्वाधिक शक्तिशाली व क्रूर शासक से टकरा जाता है
जिसके हाथों में मौत एक खिलौना है। उसने मौत को भी अपने क़ाबू में कर लिया है।
और जो सिर्फ अपने मज़े के लिये लोगों को तड़पा तड़पाकर मारता है।
क्या होगा इस टकराव का अंजाम?
रहस्य रोमांच की नई दुनियाओं के सैर के लिए पढ़ते रहिये ये धारावाहिक। (click on blue title)

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