Saturday, January 17, 2009

ताबूत - एपिसोड 46

मारभट और सियाकरण ने ठेले पर से सेब उठा उठाकर खाना शुरू कर दिए थे. उनके मुंह और हाथ काफ़ी तेज़ी से चल रहे थे और यह सिलसिला तभी रुका जब उनके पेट पूरी तरह भर गए.
"आप लोगों ने मिलकर पूरे एक सौ पच्चीस सेब खाए हैं. इस प्रकार कुल तीन सौ पचहत्तर रुपये हुए." फलवाला उनकी खुराक देखकर हैरान था.
"यह रुपये क्या होता है?" सियाकरण ने यह शब्द पहली बार सुना था.
"रुपये अर्थात मनी अर्थात मुद्रा. रुपया यहाँ की मुद्रा है जिस प्रकार आपके देश में शायद डालर है." फलवाले ने इन्हें समझाया.
"अच्छा अच्छा मुद्रा. क्यों सियाकरण तुम्हारे पास कुछ मुद्राएँ पड़ी हैं?"
"नहीं. अब तो मेरे पास एक मुद्रा भी नहीं है." सियाकरण ने कहा फ़िर फलवाले से बोला, "अभी तो हमारे पास मुद्रा नहीं है. बाद में दे दूँगा."कहते हुए वे आगे बढ़ने लगे.
"अरे इन चोरों को पकडो. मेरे तीन सौ पचहत्तर रुपये के फल खा गए और अब पैसे नहीं दे रहे हैं." फलवाला चिल्लाया. कई लोग उनकी ओर दौडे और दोनों को पकड़ लिया.
"अरे दुष्टों मेरे पैसे दे दो वरना जेल भिजवा दूँगा." फलवाला उनकी और चीखते हुए बढ़ा.
"यहाँ क्या हो रहा है." तभी पीछे से कड़कदार आवाज़ गूंजी और लोग मुड़कर पीछे देखने लगे. पीछे थानेदार शेरखान खड़ा था.
वह इन्हें देखकर चौंका, "ये तो वही हैं जो मेरी मोटरसाइकिल लेकर भागे हैं." वह बोला, "क्यों बे मेरी मोटरसाइकिल कहाँ है?"
"मारभट, ये तो वही है, जिसने हमें कोठरी में बंद कर दिया था और अब किसी मोटरसाइकिल की बात कर रहा है."
"हम लोग यहाँ से भाग लेते हैं. वरना ये हमें फ़िर कोठरी में बंद कर देगा." फ़िर दोनों ने अपने अपने हाथों को झटका दिया और इन्हें पकड़े व्यक्ति छिटक कर दूर जा गिरे. फ़िर ये लोग भाग निकले. फलवाला और थानेदार इनके पीछे थे. सियाकरण और मारभट काफ़ी तेज़ दौड़ रहे थे. जल्दी ही इन्होंने दोनों को काफी पीछे छोड़ दिया.

अब दोनों एक नाले के किनारे किनारे भाग रहे थे. एकाएक सियाकरण ने एक ठोकर खाई और संभलने के लिए मारभट को थाम लिया. दोनों का बैलेंस बिगडा और दोनों लुढ़खनियाँ खाते हुए एक साथ नाले में जा गिरे.
"ओह! यह हम लोग कहाँ गिर गए. जल्दी बाहर निकलो." दोनों बाहर निकले किंतु अब वे कीचड में बुरी तरह लथपथ हो चुके थे.
और शाम के धुंधलके में पूरी तरह काले भूत मालुम हो रहे थे.
"हम लोगों का तो हुलिया ही बिगड़ गया है. चलो चलकर कहीं मुंह धोते हैं." मारभट ने कहा.
"अच्छा हुआ कि उस खतरनाक मनुष्य से पीछा छूट गया जिसे लोग दानेदार (थानेदार) कह रहे थे." सियाकरण ने इत्मीनान कि साँस ली फ़िर वे लोग हाथ मुंह धोने के लिए पानी की तलाश में निकल पड़े.
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1 comment:

admin said...

लगता है ताबूत अपनी कडियों की हाफ सेंचुरी तो बना ही लेगा।