Tuesday, March 23, 2021

अधूरा हीरो भाग 6

जब महावीर ने जयंती से इस बारे में बात की तो पहले तो वह तैयार नहीं हुई फिर जब उसे पता लगा कि सैफ भी साथ में जा रहा है तो उसने इजाज़त दे दी इस शर्त के साथ कि वह लगातार फोन पर उससे सम्पर्क में बना रहेगा।

फिर कुछ ही देर बाद दोनों फीरान के शहर को देखने के लिये लोकल इण्टरस्टेट ट्रेन में सवार हो चुके थे। ठीक दो घण्टे के बाद ट्रेन अपने गंतव्य पर पहुंच चुकी थी।
ये शहर पहाड़ों के बीच एक घाटी में बन रहा था और उसे देखने के लिये पहाड़ों को पार करना ज़रूरी था। उस शहर तक जाने के लिये लोगों को सख्त पहरे से गुज़रना पड़ता था और साथ ही कुछ न कुछ शहर के निर्माण में नज़राना भी देना पड़ता था।

दोनों ने पहाड़ को पार करने के लिये एक छोटी बाइक किराये पर ली। और इस चक्कर में उनकी जेब अच्छी खासी खाली हो गयी। क्योंकि वहाँ पर फ्लाइंग बाइक का किराया बहुत ज़्यादा था।

फिर सैफ ने बाइक संभाली और महावीर पीछे बैठ गया। अब बाइक का रुख ऊपर की तरफ था। जल्दी ही वे लोग पहाड़ की चोटी पर पहुंच गये। वहाँ पहुंचने के साथ ही उनकी आँखें चकाचौंध के कारण बन्द हो गयीं।
सूरज की रोशनी में सामने पूरी घाटी चमक रही थी। कीमती धातुओं से बनी महल नुमा इमारतें रंग बिरंगी रोशनी बिखेर रही थीं।

‘‘यहाँ तो लगता है जन्नत ज़मीन पर उतर आयी है।’’ सैफ ने मानो सपने में कहा। उसने बाइक वहीं टिका दी थी।
अभी वह लोग सामने के नज़ारे को देख ही रहे थे कि बगल की चट्टान की ओट से निकलकर एकाएक दो व्यक्ति उनके सामने आ गये। दोनों के हाथों में बंदूकें थीं। वर्दी से आर्मी के फौजी मालूम हो रहे थे।
‘‘हाल्ट, तुम लोग यहाँ क्या कर रहे हो।’’ उनमें से एक ने टोका।  
‘‘हम लोग उस शहर को देखने के लिये आये हैं।’’ महावीर ने जवाब दिया।
‘‘देखने का परमिट दिखाओ।’’ सामने वाले ने हुक्म दिया।
‘‘परमिट?’’ दोनों को हैरत हुई। उन्हें नहीं मालूम था कि शहर को देखने के लिये परमिट की ज़रूरत होगी। 

फिर जब वे वहाँ से आगे बढ़े तो उनकी जेब अच्छी खासी हल्की हो चुकी थी। जल्दी ही वे घाटी में पहुंच गये। अब सोने व चाँदी के महलनुमा घर उनके ठीक सामने थे। उनमें से बहुत से मुकम्मल हो चुके थे और काफी बन भी रहे थे।
‘‘लगता है, बहुत जल्द इस धरती पर स्वर्ग बनने वाला है।’’ सैफ ने तारीफी नज़रों से चारों तरफ देखा।
‘‘हाँ। यहाँ पर फीरान की जन्नत बन रही है। तुम लोग खुशियाँ मनाओ। लेकिन उस जन्नत में तुम लोगों को रहने को नहीं मिलेगा। हा हा हा।’’ वह कोई दीवाना लग रहा था जिसने ये अलफाज़ अदा किये थे। मैले कुचैले फटे कपड़े पहने बाल बढ़ाये वह इधर उधर चकरा रहा था। फिर वह उसी तरह कहकहे लगाते हुए आगे बढ़ गया।
‘‘दुनिया की कोई जगह दीवानों से खाली नहीं।’’ सैफ ने ठंडी साँस लेकर कहा।
‘‘वैसे ये जगह है ज़बरदस्त।’’ महावीर तारीफी नज़रों से चारों तरफ देख रहा था।

अचानक उन्हें अपने पीछे कराहने की आवाज़ आयी। घूमकर देखा तो एक कमज़ोर व्यक्ति जिसका पेट अंदर धंसा हुआ था, एक निर्माणाधीन महल की दीवार पर हीरों की नक्काशी कर रहा था। उसका एक हाथ अपने धंसे हुए पेट पर था और दूसरे हाथ से वह बाल्टी में भरे हीरे उठा उठाकर सोने की दीवार में फिट कर रहा था। हालांकि उसकी हालत से लग रहा था कि वह अब गिरा तब गिरा। वह लगातार कराह रहा था।

दोनों उसके पास पहुंचे।
‘‘भाई! लगता है तुम बहुत थक गये हो। थोड़ी देर आराम क्यों नहीं कर लेते?’’ महावीर ने हमदर्दी से कहा।
‘‘आराम!’’ उसके होंठों पर एक फीकी हंसी आयी, ‘‘इस लफ्ज़ को हम भूल चुके हैं।’’
‘‘अच्छा तो कुछ खा लो। मुझे लगता है तुम भूखे हो। काम तो होता ही रहेगा।’’
‘‘आठ घण्टे में बस दस मिनट मिलते हैं खाना खाने के लिये।’’ उसी तरह काम करते हुए वह व्यक्ति बोला, ‘‘आज थकान की वजह से मुझे नींद आ गयी थी और वह दस मिनट निकल गये। अब अगर मैं खाना खाऊंगा तो बदले में कोड़े मिलेंगे खाने के लिये।’’
‘‘ओह।’’ दोनों ने अफसोस से उसकी ओर देखा।
‘‘पता नहीं कब वह मसीहा आयेगा जो हमें इस नर्क से आज़ादी दिलायेगा।’’ कहते हुए वह लड़खड़ाया और सैफ ने जल्दी से उसे थाम लिया।
‘‘महावीर, यह तो बुखार में बुरी तरह तप रहा है।’’ सैफ ने उसे वहाँ लिटा दिया क्योंकि वह बेहोश हो चुका था।
उसी समय वहाँ एक हल्की सी आवाज़ गूंजी और दोनों ने देखा कि एक टीन का डिब्बा अपने पहियों पर चलता हुआ वहाँ पहुंच चुका है। यह वास्तव में एक रोबोट था जो वहाँ कारीगरों की निगरानी के लिये तैनात था। हाथों के स्थान पर उसके दोनों तरफ एक एक कोड़ा फिक्स था जो किसी भी कामगार को ढीला पड़ते देखकर उसपर बरसने लगता था।

फीरान के काफी काम रोबोट ही करते थे। लेकिन चूंकि वह मानवीय कारीगरी और बहुत सी चीज़ों का मुकाबला नहीं कर सकते थे। अतः इस तरह के काम इंसान ही करते थे। लेकिन उनपर पहरा रोबोटों का ही होता था।
‘‘यहाँ काम क्यों बन्द है?’’ उस रोबोट की खरखराती आवाज़ गूंजी।
‘‘यह बीमार है और बेहोश हो गया है।’’ सैफ ने बताया।
‘‘इसको होश में लाओ। टार्गेट पूरा होने से पहले काम नहीं बन्द होना चाहिए।’’
सैफ उसे होश में लाने की तरकीबें करने लगा। पानी की दो चार छींटें मारने के बाद उसे होश आ गया।
जैसे ही उस कारीगर ने रोबोट को देखा उसकी आँखों में डर के आसार पैदा हुए और वह फौरन अपना काम फिर से करने लगा।

‘‘तुमने दस मिनट तक काम नहीं किया। ड्यूटी के बाद तुम्हारी पीठ पर दस कोड़े लगेंगे। लाइन में खड़े हो जाना।’’ उस रोबोट के स्पीकर से सपाट आवाज़ आयी। उसकी मेमोरी में मानव कमज़ोरियों का कोई रिकार्ड नहीं था और न ही किसी की कारीगरी के लिये कोई जगह थी। वह हर काम को घड़ी के आधार पर नापता था।
रोबोट की बात सुनकर सैफ को गुस्सा आ गया। उसने चाहा कि आगे बढ़े और उस टीन के कनस्तर को एक लात मारकर उसका हुलिया बिगाड़ दे।
लेकिन महावीर ने उसे ऐसा कदम न उठाने का इशारा किया और फिर रोबोट से बोला, ‘‘इसे सज़ा न दो। यह दिये गये समय में अपना टार्गेट पूरा कर लेगा।’’
जवाब में रोबोट बोला, ‘‘इसके टार्गेट का समय कैलकुलेटेड है। अगर यह दस मिनट काम नहीं करेगा तो टार्गेट दस मिनट देर में पूरा होगा।’’

महावीर समझ गया था कि यह रोबोट घटिया दर्जे का है और इसके दिमाग में अक्ल का हिस्सा न के बराबर है। अतः उसने आगे कहा, ‘‘इसका टार्गेट क्या है और कितने समय में पूरा करना है?’’
‘‘इसे छत्तीस हज़ार हीरे सौ घण्टों में लगाने हैं।’’ रोबोट ने बताया।
‘‘फिर तो, आराम से यह अपना टार्गेट पूरा कर लेगा। सौ क्या पचास घण्टे में ही।’’ महावीर झट से बोला।
‘‘कैसे?’’
‘‘तुम खुद ही कैलकुलेट कर लो। अगर छत्तीस हज़ार हीरे सौ घण्टों में लगाने हैं तो इसका मतलब दस सेकंड के बीच में कोई हीरा नहीं लगाना है। यानि नौ सेकंड मे ज़ीरो हीरा लगाना है।’’
‘‘ठीक है।’’ यह कैलकुलेशन रोबोट ने भी अपने दिमाग में कर ली थी।
‘‘अब तुम्हें यह कैलकुलेट करना है कि छत्तीस हज़ार हीरे कितने समय में लगेंगे। तो इसके लिये तुम नौ सेकंड को ज़ीरो से डिवाइड करो और फिर छत्तीस हज़ार से मल्टीप्लाई कर लो।’’

रोबोट कैलकुलेशन में बिज़ी हो गया था।

अब महावीर उस कारीगर के पास आया, ‘‘अभी उसको कैलकुलेशन में बहुत देर लगेगी। तब तक तुम खा पी लो और अगर दवा हो तो वह भी खा लो।’’
‘‘आप लोगों का बहुत बहुत शुक्रिया।’’ उसने हाथ जोड़कर कहा।
‘‘आओ सैफ आगे चलते हैं।’’ महावीर आगे बढ़ते हुए बोला। हमेशा की तरह वह अपने फाइबर के डंडों पर चल रहा था। सैफ ने घूमकर देखा रोबोट अभी भी अपनी जगह पर खड़ा कैलकुलेशन में बिज़ी था।
‘‘तुमने उसे कौन सी कैलकुलेशन थमा दी?’’ सैफ ने हंसकर पूछा।

‘‘मैंने उसे ज़ीरो से डिवाइड करने को कह दिया है। अब कोई नंबर ज़ीरो से डिवाइड तो होता है नहीं। वह वहीं खड़ा कैलकुलेशन करता रहेगा। और हो सकता है इस दौरान उसकी बैटरी ही उड़ जाये। अगर ऐसा हुआ तो वह कारीगर फ्री हो जायेगा।’’
‘‘लेकिन यहाँ उस तरह के बहुत से कारीगर मौजूद हैं।’’ सैफ ने आगे देखते हुए कहा।

महावीर ने भी देखा। हर निर्माणाधीन बिल्डिंग के आसपास कारीगर व मज़दूर नज़र आ रहे थे। सभी की हालत निहायत बुरी थी। लिबास के नाम पर सबके जिस्मों पर मैले कुचैले फटे चिथड़े झूल रहे थे। जिससे उनके भूख से अन्दर तक धंसे पेट साफ दिख रहे थे।
फिर उन्होंने ये भी देखा कि काम करते करते एक कारीगर नीचे गिरा और खत्म हो गया। उसी समय एक कूड़ागाड़ी आयी जिसमें किसी कूड़े की ही तरह उस कारीगर का मुर्दा जिस्म डाल दिया गया और वह गाड़ी उसे लेकर चली गयी।

ये लोग थोड़ा आगे बढ़े तो एक तरफ से सिसकियों की आवाज़ सुनाई दी। घूमकर देखा तो एक कारीगर को कोड़े पड़ रहे थे। लेकिन उसके अन्दर इतनी ताकत नहीं थी कि चीख सकता। अतः वह केवल सिसकियां ले रहा था।
‘‘वापस चलो सैफ। बहुत देख लिया हमने फीरान का शहर।’’ महावीर ने भर्रायी हुई आवाज़ में कहा।

दोनों वापस जाने के लिये घूमे। किन्तु उसी वक्त एक कार उड़ती हुई उनके ठीक बगल से गुज़री और आगे जाकर रुक गयी। फिर उसने बैक टर्न लिया और उनके पास वापस पहुंच गयी।

कार का दवाज़ा खुला और इससे पहले कि वे कुछ समझते अन्दर से निकलने वाले दोनों लड़के उनके दायें बायें पहुंच चुके थे। इन दोनों ने उनके चेहरे देखे और अवाक रह गये।

क्योंकि लड़के और कोई नहीं बल्कि गोल्डी और प्लैटी थे।
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(c) लेखक। 

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