Monday, November 9, 2009

प्लैटिनम की खोज - एपिसोड : 52

‘‘तो क्या तुम्हें विश्वास है कि शमशेर सिंह पड़ोसी कबीले में कैद है?’’
‘‘तुम्हीं ने तो ये बात बताई है।’’ प्रोफेसर ने आश्चर्य से रामसिंह की ओर देखा।

‘‘मैंने कब कहा? मैंने तो केवल अनुमान लगाया है।’’
‘‘अर्थात पहले हमें कन्फर्म करना है कि शमशेर सिंह वहां कैद है। फिर वहां से छुड़ाने का उपाय करना है।’’
‘‘यह बात कैसे पता की जाये?’’ रामसिंह ने सर खुजाते हुए कहा।

‘‘एक तरकीब है। क्यों न यहां के किसी जंगली को भेज कर पता किया जाये।’’ प्रोफेसर बोला और किसी जंगली को बुलाने दरवाजे की ओर जाने लगा। इन लोगों का उसी मन्दिर में निवास था जहां शुरुआत में लाये गये थे।

प्रोफेसर ने एक जंगली को बुलाया और उससे कहने लगा, ‘‘तुम लोग मुझे देवता मानते हो?’’
‘‘बिल्कुल। आप लोग देवता पुत्र हैं। अत: देवता ही हुए।’’ जंगली ने समर्थन दिया।

‘‘तो फिर मेरा एक आदेश तुम्हें मानना पड़ेगा। पड़ोसी कबीले में एक देवता पुत्र कैद है। तुम्हें पता करना है कि वह देवता पुत्र कहां है।’’
‘‘क्षमा कीजिए। हम ये नहीं कर सकते।’’ उसने साफ इंकार कर दिया।

‘‘क्यों ?’’ प्रोफेसर ने भृकुटी तान कर पूछा।
‘‘हम लोग अपने देवता की प्रजातान्त्रिक भक्ति करते हैं। अर्थात हम देवताओं से कबीले के काम करवा सकते हैं। लेकिन स्वयं कबीले वाले देवताओं का कोई आदेश नहीं मानते।’’

‘‘कमाल है। यहां तो सब कुछ उलटा है। भला तुम लोग अपने देवताओं से क्या काम लेते हो?’’ रामसिंह ने पूछा।
‘‘सब कुछ। कभी कभी हमारे यहां की स्त्रियां अपने बच्चों को बहलाने के लिए देवताओं की सहायता लेती हैं। खेत जोतने के लिए, घर बनवाने में और नदी से पानी लाने में भी हम देवताओं की सहायता लेते हैं।’’

प्रोफेसर और रामसिंह एक दूसरे की ओर आश्चर्य से देख रहे थे। फिर प्रोफेसर बोला, ‘‘इसका मतलब हुआ कि हमसे पहले भी यहां कुछ देवताओं का प्रवेश हो चुका है।’’
‘‘हां। एक बार कुछ देवता आपकी शक्ल के आये थे। किन्तु फिर वे पड़ोस में पहुंच गये और वहां भून कर खा लिए गये। इस घटना को काफी समय बीत चुका है। अब आप लोग आये हैं। और बहुत अच्छे समय पर। क्योंकि कुछ दिनों बाद एक काम आरम्भ होने वाला है और उसमें आपकी सहायता ली जायेगी।’’

‘‘कैसा काम?’’ प्रोफेसर ने चौक कर पूछा।
‘‘बात यह है कि हमारा कबीला गोभियां खाते खाते बोर हो चुका है। इसलिए सरदार ने आदेश दिया है कि अब कबीले वाले मुर्गियों के अण्डे खायेंगे।’

‘‘लेकिन इसमें हमारी सहायता की क्या जरूरत?’’ रामसिंह ने टोक कर पूछा।
‘‘वही बता रहा हूं। अब जंगलों से बीस पच्चीस सैंकड़े मुर्गियां और मुर्गे पकड़े जायेगे और फिर उनकी देखभाल आपसे कराई जायेगी।’’

यह प्लान सुनकर दोनों देवताओं के चेहरों पर हवाईयां उड़ने लगीं। बीस सैंकड़े मुर्गों की रखवाली आसान नहीं थी।

1 comment:

Dudhwa Live said...

जैदी साहब सही जानकारी के लिये आप को धन्यवाद, मोहम्मद साहब और उनकी बेटी के बारे में