Tuesday, October 13, 2009

प्लैटिनम की खोज - एपिसोड : 41

‘‘एक बात समझ में नहीं आयी। हमारे देवता की काया तो बहुत विशाल है फिर देवता पुत्र इतने छोटे क्यों हैं? बिल्कुल हमारी तरह।’’
‘‘ये भी कोई न समझने वाली बात है। कारण यह है कि देवता पुत्रों की आयु अभी बहुत कम है। जब देवता जितनी आयु के ये होंगे तो उन्हीं के जितने विशाल हो जायेगे।’’ दूसरे जंगली ने समझाया।

‘‘हमारे देवता की आयु कितनी है?’’
‘‘मैं बताता हूं। उनकी आयु बहुत अधिक है। मेरे परदादा ने मुझे बचपन में बताया था कि उनके परदादा ने बचपन में देवता के दर्शन किये थे।’’

‘‘फिर तो वास्तव में देवता की आयु बहुत अधिक हो गयी। इतनी कि हम लोग सोच भी नहीं सकते।’’
‘‘उस समय तो हम लोगों का जन्म भी नहीं हुआ था। फिर आयु के बारे में क्या सोच पायेंगे।’’

इन लोगों की बातचीत में अब तक काफी रास्ता तय हो चुका था। जंगल अभी भी उतना ही घना था जितना उस स्थान पर था जहा से वे लोग चले थे। वह जानवर वहीं रह गया था जहा उन लोगों ने उसे छोड़ा था। वास्तव में वह काफी सुस्त प्रकृति का था और चलने फिरने का ज्यादा शौकीन नहीं था।

‘‘क्या हुआ प्रोफेसर? इतने चुप क्यों हो गये?’’ काफी देर से प्रोफेसर को कुछ सोचते देखकर रामसिंह ने पूछा।
‘‘मैं उस डायनासोर के बारे में सोच रहा हूं।’’ प्रोफेसर ने जवाब दिया।
‘‘भला उसमें सोचने की क्या बात है? उससे ज्यादा तो ये जंगली सोचने की चीज़ हैं।’’
‘‘तुम्हारे लिए होगा ऐसा। मैं उस डायनासोर के बारे में सोच रहा हूं कि जब डायनासोर दिखा है तो उसकी मादा भी कहीं होनी चाहिए।’’
‘‘और फिर उसके बच्चे भी होने चाहिए।’’

‘‘इस तरह तो उनकी संख्या अधिक हो जायेगी। जबकि मेरा विचार है कि यहां केवल यही एक डायनासोर है। वरना ये जंगली इसकी पूजा न करते।’’
‘‘इसका मतलब ये हुआ कि यह इस दुनिया में अकेला है। न तो इसकी मादा है और न ही बच्चे।’’
‘‘फिर तो इसके मरने के बाद इसकी प्रजाति लुप्त हो जायेगी। इस अनोखे जीव को जिन्दा रहना चाहिए। या फिर इसका वंश बढ़ाने का कोई उपाय होना चाहिए।’’

‘‘दोनों ही बातें सम्भव नहीं हैं। न तो यह सदैव जीवित रह सकता है और न ही इसका वंश बढ़ाने का कोई उपाय हो सकता है। क्योंकि यह एकदम अपने प्रकार का अकेला जीव है।’’
‘‘मैं यही उपाय सोच रहा था। शायद कोई साइंटिफिक तरीका काम आ जाये। एक आईडिया आया है।’’ प्रोफेसर उछलते हुए बोला।
‘‘कौन सा आईडिया?’’ रामसिंह ने चौंक कर कहा।