Friday, October 10, 2008

ताबूत - एपिसोड 10

धीरे धीरे शमशेर सिंह का मूड ठीक होता गया. वह सोचने लगा कि रामसिंह ने ठीक ही तो कहा था कि खंजर रख ले. उस बेचारे को तो पता ही नही कि मैं कितना बहादुर हूँ. खैर वक्त आने पर मालूम हो जाएगा. उसे किसी का हाथ अपने कंधे पर महसूस हुआ.
"ओह, तो रामसिंह मुझे मनाने आया है."उसने कहा, "अरे यार, मैं तुमसे ज़रा भी नाराज़ नही हूँ. मुझे पता है कि तुम मुझे नही जानते कि मैं कितना बहादुर हूँ. मैं इसीलिए तेज़ चल रहा हूँ कि कोई जंगली जानवर पहले मेरे ऊपर हमला करे और मैं उसे परलोक पहुंचाकर अपनी बहादुरी सिद्ध कर दूँ."
अब उसे रामसिंह का हाथ कंधे की बजाए सर पर महसूस होने लगा था."अरे यार क्या कर रहे हो. मुझे गुदगुदी हो रही है. अच्छा तो चुपचाप अपना काम किया करोगे, कुछ बोलोगे नहीं." शमशेर सिंह ने एक झटके से अपना सर पीछे किया और उसकी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई. क्योंकि पीछे रामसिंह की बजाए एक खूंखार गोरिल्ला खड़ा था.
"अरे बाप रे!" शमशेर सिंह चीखा और आगे की तरफ़ दौड़ लगा दी. गोरिल्ले ने पीछा किया, किंतु उसी समय शमशेर सिंह को एक पेड़ ऐसा दिख गया जिस पर वह आसानी से चढ़ सकता था. फिर वह बिना देर किए उस पेड़ पर चढ़ गया. गोरिल्ले ने पेड़ पर चढ़ने की कोशिश की किंतु फिसल कर गिर गया और फिर खड़ा होकर पेड़ को हिलाने लगा.
"द..देखो, अगर मैं नीचे आ गया तो बहुत बुरा हाल करूंगा." शमशेर सिंह ने कांपते हुए कहा. फिर उसे अपने खंजर की याद आई और उसे जेब से निकाल कर गोरिल्ले को दिखाने लगा, "इसे पहचानते हो, यह खंजर है. अगर तुम नहीं भागे तो तुम्हारा पेट चीर दूँगा." उसने पेड़ पर बैठे बैठे कहा.
गोरिल्ला भला शमशेर सिंह की भाषा क्या समझता. वह क्रोधित दृष्टि से उसकी ओर देख रहा था और शायद आश्चर्यचकित भी था.क्योंकि इस जंगल में उसने पहली बार मनुष्य देखे थे.
उधर रामसिंह और देवीसिंह काफ़ी पीछे रह गए थे. रामसिंह देवीसिंह से कह रहा था, "प्रोफ़ेसर यह शमशेर सिंह भी अजीब है. कहाँ तो वह हम लोगों के पीछे चल रहा था और कहाँ इतनी दूर निकल गया कि हम लोग उसे देख भी नही पा रहे हैं."
"मूडी आदमी है. अभी जब जंगली जानवरों की तरफ़ ध्यान जाएगा तो ख़ुद ही पलट आयेगा."
तभी उन्हें शमशेर सिंह की चीख सुनाई दी.

1 comment:

seema gupta said...

'wow, very intersting, hope shmeshr singh is saved...

Regards