Saturday, December 20, 2014

असली खेल (भाग 1 )

विज्ञान कथा 
ज़ीशान ज़ैदी - लेखक 

विमान अपनी पूरी रफ्तार के साथ सीधी रेखा में गतिमान था। सारे यात्री सुकून के साथ अपनी सीटों पर बैठे हुए अपनी मंजिल का इंतिजार कर रहे थे।
इसी विमान में एक नवविवाहित जोड़ा भी मौजूद था जिसकी यात्रा स्विट्जरलैण्ड की खूबसूरत वादियों में खत्म होने वाली थी। हनीमून के लिए जाने वाले इस जोड़े में लड़के का नाम रवि था जबकि लड़की का नाम माया था।
 
लेकिन फिलहाल तो इनका जहाज एक उजड़े रेगिस्तानी इलाके से गुजर रहा था।
अचानक जहाज बुरी तरह डगमगाने लगा। अंदर मौजूद सामान हवा में बिखरने लगा और फिर विमान में परिचारिका का संदेश गूंजने लगा। वह सभी यात्रियों को सीट बेल्ट बांधने की हिदायत दे रही थी। क्योंकि तूफान ने जहाज को अपने लपेटे में ले लिया था।
फिर एक तेज धमाका हुआ।
.................
 
जब रवि को होश आया तो उसने दूर विमान का मलबा सुलगते हुए देखा। विमान की दशा से अंदाजा होता था कि उसमें सवार कोई यात्री बचा न होगा। पता नहीं कैसे ये चमत्कार हो गया था कि वह स्वयं अपने को जिन्दा देख रहा था।
उसके दिल पर गमों का पहाड़ टूट पड़ा। अभी तो उसने दिल भर कर अपनी दुल्हन का चेहरा भी न देखा था। अब तो शायद उसकी चिता भी न देख पाये।
 
वह कोशिश करके अपने स्थान से उठा। दुर्घटना ने उसका एक पैर पूरी तरह बेकार कर दिया था। वहाँ पड़ी पेड़ की एक मजबूत टहनी को उसने अपना सहारा बनाया और विमान के मलबे की तरफ बढ़ा। शायद उसे अब भी उम्मीद थी कि उसकी माया जिन्दा होगी।
 
माया ने महान आश्चर्य के साथ सामने देखा। इस वीराने में इतना शानदार महल किसी को भी हैरत में डालने के लिए काफी था। अभी अभी उसने बेहोशी की हालत से आँखें खोली थीं और सबसे पहले उसे यही महल नजर आया था।
उसने इधर उधर नजरें दौड़ायीं। उसे अपने अलावा कहीं कोई मानव नहीं दिखाई दिया। ‘लगता है विमान दुर्घटना में कोई नहीं बचा।’ अफसोस के साथ उसने सोचा। उसे सबसे ज्यादा दुःख रवि की मौत का था।
एकाएक उसे तेज प्यास महसूस हुई।
 
‘‘शायद इस महल के अंदर मुझे पानी मिल जाये।’’ सोचते हुए आगे बढ़कर उसने महल के दैत्याकार दरवाजे को धक्का दिया।
 
वह भारी भरकम दरवाजा इतनी आसानी के साथ खुला मानो कोई मशीनी सिस्टम उसे नियन्त्रित कर रहा हो।
माया अंदर दाखिल हुई। और फिर वह महल की भव्यता देखकर दंग रह गयी। इतना शानदार महल उसने अपने जीवन में कभी नहीं देखा था। एक एक कमरा लगता था सोने चाँदी से बना हुआ है। विशालकाय झूमर से निकलने वाली नीली रोशनी एक ख्वाब जैसा मंजर पेश कर रही थी। आलीशान पुराने स्टाइल में सजे हुए सोफों पर जब वह बैठी तो लगा उसे बचपन की माँ की गोद मिल गयी है। लेकिन हैरत की बात थी कि इतने आलीशान महल का मालिक कहीं दिखाई नहीं पड़ रहा था। यहाँ तक कि जिंदगी के तौर पर वहाँ एक मक्खी भी नहीं दिख रही थी।
 
फिर वह घूमती हुई एक ऐसे कमरे में पहुँची जो और कमरों से भी ज्यादा सजा हुआ था। उस कमरे के बीचोंबीच एक दैत्याकार सिंहासननुमा कुर्सी रखी हुई थी। वह कमरे के सम्मोहन में डूबी यन्त्रवत चलती हुई सिंहासन पर जाकर बैठ गयी।
दूसरे ही पल सिंहासन तेजी से जमीन में धंसने लगा था। इससे पहले कि वह कुछ समझ पाती, उसके चारों तरफ अंधकार छा गया।
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---जारी है

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