Tuesday, December 25, 2018

ऊँचाईयों के पार - भाग 3

 तान्या के ग्रुप में एक हलचल सी मच गयी थी।

‘‘बगैर शादी के बच्चा! मुझे उम्मीद ही नहीं थी तान्या ऐसी होगी।’’ रिजवान ने कहा। साथ में अपने कानों को हाथ भी लगा लिया था।

‘‘तान्या किसी देवी की तरह पवित्र है। तुम उसके बारे में ऐसी बातें सोच भी नहीं सकते।’’ रोहित ने थोड़ा नाराज होकर रिजवान से कहा।

‘‘ओ.के.! झगड़ा नहीं।’’ सबा ने बीच में पड़कर उन्हें शान्त किया,‘‘हो सकता है उसके साथ कोई हादसा पेश आया हो।’’
‘‘मैं और तान्या बहुत ही करीबी दोस्त हैं। वह मुझसे कोई बात नहीं छुपाती। अगर उसके साथ कुछ भी हुआ होता तो वह मुझसे जरूर बताती।’’

‘‘फिर तो दो ही बातें हो सकती हैं। या तो डाक्टर की जाँच गलत है या फिर कोई चमत्कार हो गया है।’’ रिजवान बोला।

‘‘आज के साइंस व टेक्नालाजी के जमाने में चमत्कार वगैरा की बातें बेमानी हैं।’’ सबा ने कहा।
इस तरह ये बहस बगैर किसी नतीजे के खत्म हो गयी।
...........

‘‘तुम्हारे गर्भ में पलने वाला बच्चा मेरा ही है।’’ एक बार फिर तान्या ने सपने में उस आदमजाद को कहते सुना। 

‘‘मैं कैसे यकीन कर लूँ कि एक सपना मेरी हकीकत की जिंदगी को प्रभावित कर रहा है।’’ सपने में भी तान्या को एहसास था कि वह सपना देख रही है।

‘‘यकीन तो तुम्हें करना ही पड़ेगा। अभी नहीं तो बच्चे को जन्म देने के बाद यकीन करोगी।’’
‘‘आखिर तुम हो कौन? और क्यों मुझे इस तरह परेशान कर रहे हो?‘‘

‘‘परेशान कहाँ? मैं तो तुमसे प्यार करता हूँ। तुम्हें तो मैं जरा भी तकलीफ नहीं देना चाहता। इसलिए मैंने तय किया है कि बच्चे का पालन पोषण मैं ही करूंगा। तुम्हें जरा भी तकलीफ नहीं होने दूँगा।’’

‘‘तुम कैसे पालोगे? तुम तो हमेशा सपने में ही दिखाई देते हो।’’ तान्या ने उसे उपेक्षापूर्ण दृष्टि से देखा। 
‘‘हाँ। यह मेरी बहुत बड़ी मजबूरी है कि मैं तुम से हकीकत की दुनिया में मिल नहीं सकता।’’ उसने कुछ उदास होकर कहा।

‘‘कैसी मजबूरी?’’

‘‘हमारे तुम्हारे बीच विमाओं का अन्तर मुझे तुम्हारी दुनिया में दाखिल नहीं होने देता।’’

‘‘क्या मतलब?’’तान्या ने चौंक कर पूछा।

‘‘यह संसार सात विमाओं यानि डाईमेशन पर बना हुआ है। इनमें से चार विमाओं के बारे में तुम लोग अच्छी तरह जानते हो। ये हैं लम्बाई, चौड़ाई, गहराई और समय की विमाएं।’’

‘‘हाँ, मैंने ग्रेजुएशन करते वक्त इन चारों विमाओं के बारे में अच्छी तरह पढ़ा है।’’ तान्या ने हामी भरी।

‘‘हकीकत ये है कि तुम और तुम्हारे आसपास रहने वाले सारे प्राणी उन्हीं चार विमाओं द्वारा निर्मित हुए हैं और अपने को अनुभव कर रहे हैं। अगर उनमें से कोई भी विमा कम कर दी जाये तो उनका अस्तित्व खत्म हो जायेगा।’’

‘‘सो तो है। लेकिन तुम यह सब क्यों बता रहे हो?’’
‘‘मैं सिर्फ इतना बताना चाहता हूँ कि हमारा अस्तित्व उन चारों विमाओं में नहीं है जिनमें तुम्हारा अस्तित्व है।’’
‘‘फिर कहाँ है?’’

‘‘हमारा अस्तित्व बाकी बची हुई तीन विमाओं में है। इसीलिए मैं तुमसे वास्तविक रूप में नही मिल सकता। ठीक उसी तरह जिस तरह दो विमाओं वाली रचनाएं परछाईं की तरह दिखती तो हैं लेकिन उन्हें वास्तविक रूप में स्पर्श नहीं किया जा सकता।’’

‘‘अगर तुम मुझे वास्तविक रूप में नहीं मिल सकते, तो मेरे गर्भ में पलने वाले बच्चे के बाप कैसे बन सकते हो? क्योंकि वह तो एक वास्तविक चार डाइमेशन में जीने वाला मेरी तरह का प्राणी होगा।’’

उस आदमजाद ने एक गहरी साँस ली फिर कहने लगा,‘‘तान्या! अगर कोई अस्तित्व दो अलग अलग डाइमेशन ग्रुप के मिलने से बनता है, तो वह कम डाइमेशन वाले ग्रुप में शामिल हो जाता है। गणित के इस नियम के अनुसार वह बच्चा मेरी ही दुनिया में दाखिल होगा। मैंने तुमसे एक बार इसीलिए कहा था कि उस बच्चे की परवरिश मैं करूँगा।’’

तान्या किसी सोच में डूब गयी, फिर बोली,‘‘कैसी विडम्बना है, माँ बनने के बाद भी मैं अपने बच्चे को स्पर्श तक नहीं कर पाऊँगी। तुमने मुझे कैसी मुश्किल में डाल दिया है।’’

‘‘मैंने सब कुछ दिल के हाथों मजबूर होकर किया है। वरना मेरी दुनिया में तो इसकी भी इजाजत नहीं कि मैं किसी दूसरे डाइमेंशन ग्रुप के प्राणियों से सम्पर्क भी करूँ। जब तुम आर्ट म्यूजियम में वह तस्वीर देख रही थीं तो मैं पास ही मौजूद था और तुम्हें देखते ही तुम पर मोहित हो गया। फिर मैं उसी तस्वीर के रूप में तुम्हारे सामने आ गया।’’

‘‘क्या मतलब? क्या यह रूप तुम्हारा असली रूप नहीं है?’’ तान्या ने चौंक कर पूछा।
‘‘हमारे संसार में किसी का कोई निश्चित आकार नहीं होता। हम दूसरों के सामने आने के लिए कोई भी आकार ग्रहण कर सकते हैं।’’

एकाएक उस आदमजाद की नजर किसी चीज पर पड़ी और वह काँपने लगा। उसका चेहरा डर से पीला पड़ गया था।

‘‘क्या हुआ?’’ तान्या उसकी यह हालत देखकर पूछने लगी।
उसने उस तरफ इशारा किया। तान्या ने देखा वहाँ मौजूद एक पौधे की पत्ती से दो मक्खियाँ चिपकी हुई थीं।
‘‘ये तो मक्खियाँ हैं, तुम इन्हें देखकर इतना घबरा क्यों गये?’’

क्रमशः 

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