Monday, April 11, 2016

मदर लॉ - भाग 2 (अन्तिम भाग)

जैसे जैसे हारून यानि कैमरून का बेटा बड़ा हो रहा था उसे अनुशा से दूर रहने की आदत डाली जा रही थी। अब फारिया कोशिश कर रही थी कि उसे ज़्यादा से ज़्यादा अपने पास रखे। हालांकि हारून अभी भी अनुशा से ज़्यादा लगाव दिखाता था और ये बात फारिया को बुरी तरह खल जाती थी। फिर एक दिन वह भी आया जब अनुशा को कुछ रकम देकर उसे चुपचाप हारून की जिंदगी से बहुत दूर जाने को कह दिया गया। अनुशा ने एक नज़र अपने हाथ में पकड़े बड़ी रकम के कार्ड पर डाली और दूसरी फारिया पर। 

‘‘माँ बनने की बड़ी खुशी के बाद मेरी नज़रों में किसी रकम की कोई अहमियात नहीं। आप इससे प्लीज़ हारून के लिये ढेर सारी खुशियाँ खरीद लीजिए। मैं उसकी जिंदगी से बहुत दूर जा रही हूं।’’ अनुशा ने उदासी के साथ कहा और हारून को बिना अंतिम बार देखे उस आलीशान मशीनी महल से बाहर निकल आयी जिसके मालिक भी मशीन ही थे।

वक्त बीतता रहा और अनुशा हर रोज़ दरवाज़े की तरफ आस भरी निगाहें उठाती रही कि शायद हारून के माँ बाप को अपनी गलती का एहसास हो जाये। और वे हारून को अनुशा की मामता के साये में ले आयें। लेकिन उसकी उम्मीद मात्र एक सपना बनकर ही रह गयी और अब वह अपनी उम्र के बयालीसवें पड़ाव पर थी। कैमरून का कहना बिल्कुल सच साबित हुआ था कि किसी और के बच्चे को गर्भ में रखने के लिये उसे काफी समझौते करने पड़ सकते हैं। उसके बाद कोई लड़का उससे शादी पर राज़ी नहीं हुआ था। और वह अपना जीवन अकेले ही काट रही थी।

फिर अचानक एक दिन उसके मोबाइल पर एक खूबसूरत लेकिन अजनबी लड़की का चेहरा उभरा।

‘‘हैलो अनुशा जी। मैं कैमरून स्टेट के चेयरमैन की पर्सनल सेक्रेटरी बोल रही हूं।’’
‘‘क्या?’’ अनुशा को हैरत का एक झटका सा लगा।  
‘‘आप से चेयरमैन साहब मिलना चाहते हैं। क्या आप आ सकती है? हम आपके लिये अपना प्राईवेट प्लेन भेज रहे हैं।’’

'तो क्या कैमरून को अपनी गलती का एहसास हो गया? लेकिन ये भी हो सकता था कि अब हारून ही कैमरून स्टेट का चेयरमैन बन चुका हो।'

‘‘ठीक है। मैं तैयार हूं।’’ अनुशा ने जवाब दिया।
अनुशा को पक्का यक़ीन था कि अगर कैमरून ही चेयरमैन है तो उसे अपनी गलती का एहसास हो गया है। और वह अपने बेटे को उससे मिलवाना चाहता है। और अगर हारून चेयरमैन बन चुका है तो उस माँ की मोहब्बत उसे अपनी तरफ खींच रही है जिसने अपनी कोख में उसकी परवरिश की थी।
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अनुशा जब चेयरमैन के चैम्बर में पहुंची तो उसका दूसरा अनुमान सच साबित हुआ। यानि चेयरमैन की कुर्सी पर बैठने वाला बदल चुका था। यह बीस साल का हैंडसम जवान बिला शक हारून था।

‘‘वेलकम अनुशा जी। प्लीज़ सिट।’’ हारून का लहजा पूरी तरह प्रोफेशनल था। 
'तो क्या उसने उसे नहीं पहचाना? '

"अनुशा जी। तमाम दुनिया के अरबों लोगों की पर्सनल ई. प्रोफाइल चेक करने के बाद हमारे साइबर एनेलाईज़र ने जो रिपोर्ट सौंपी है, उसके मुताबिक दुनिया में सिर्फ दो ही इंसान ऐसे बचे हैं जो मुकम्मल तौर पर इंसान है। यानि जिनके जिस्म का कोई भी हिस्सा मशीनी नहीं है। "

अनुशा खामोशी से उसकी बात सुन रही थी।

‘‘उन दो लोगों में से पहला इंसान मैं हूं।’’ कहकर हारून एक पल को रुका। अनुशा खामोशी से उसे देखती रही। न जाने उसकी आँखें कितनी प्यासी थीं कि एकटक हारुन के चेहरे पर गड़ी थीं। यही वह इंसान था जिसे उसने अपने गर्भ में पाला था।

हारून ने अपनी बात आगे बढ़ायी, ‘‘और दूसरी इंसान आप हैं अनुशा जी। इसके अलावा और कोई इस दुनिया में कम्पलीट इंसान नहीं। सब साईबोर्ग बन चुके हैं। मेरी बीवी भी।’’

‘‘ओह।’’

‘‘लेकिन मैं अपने बच्चे को एक कम्प्लीट इंसान के रूप में ही देखना चाहता हूं। जैसा कि मैं खुद हूं। और इसके लिये मैं एक पूरी तरह कुदरती कोख चाहता हूं। जो कि इस दुनिया में सिर्फ आपके पास है।’’

‘‘ओह।’’ अनुशा ने एक गहरी साँस ली।

हारून ने अपनी बात जारी रखी, ‘‘इसके लिये मैं आपको मुंहमांगी कीमत देने के लिये तैयार हूं।’’ कहते हुए उसने जेब से एक प्लास्टिक कार्ड निकाला और उसे अनुशा के सामने रख दिया, ‘‘इस कार्ड के ज़रिये आप किसी भी बैंक से मेरे एकाउंट से कोई भी रकम निकाल सकती हैं। उतनी बड़ी, जितनी कि आप चाहें।’’

अनुशा ने कार्ड लेने के लिये अपना हाथ आगे नहीं बढ़ाया। फिर हारून ने खुद ही कार्ड उसके सामने रख दिया। अनुशा की नज़रें बीस साल पहले की दुनिया देख रही थीं जब ऐसा ही कार्ड हारून के बाप ने उसके सामने रखा था।

‘‘मालूम नहीं तुम्हें याद है या नहीं। बीस साल पहले तुम भी मेरी ही कोख से पैदा हुए थे।’’ वह धीरे से बोली।

‘‘हाँ। मैं अपनी पैदाईश की कहानी जानता हूं। और मुझे ये भी मालूम है कि उसके बदले मेरे बाप ने आपको एक अच्छा एमाउंट पे किया था। लेकिन मैं उससे भी ज़्यादा एमाउंट पे कर सकता हूं। क्योंकि अब कैमरून स्टेट का साम्राज्य बहुत ज़्यादा बढ़ चुका है और उस साम्राज्य का मैं अकेला मालिक हूं।’’ हारून की आवाज़ में गर्व के अलावा और कुछ नहीं था।

अनुशा ने उसकी आँखों में देखा लेकिन शायद जो वह देखना चाहती थी वह देखने में नाकाम रही।

‘‘अब मुझे इसके अलावा और कोई ख्वाहिश नहीं कि मेरा बेटा ठीक मेरी तरह एक मुकम्मल इंसान बनकर पैदा हो। अनुशा जी अब आप इसके लिये तैयारी शुरू कर दें। मेरा फैमिली डाक्टर बहुत जल्द आपसे कान्टेक्ट कर लेगा।’’

अनुशा ने सामने रखा कार्ड उठाया और उसे अपने हाथों में तौलते हुए पूरी तरह शांत स्वर में बोलने लगी, 

‘‘तुम्हारी ये सोच एक बड़ी भूल है कि तुम मुकम्मल मानव हो। भला अधूरे माँ बाप का बेटा मुकम्मल कैसे हो सकता है। तुम सिर्फ एक मशीन हो। एक मुकम्मल मशीन, अपने माँ बाप से भी ज़्यादा मुकम्मल। क्योंकि तमाम मशीनें सिर्फ क्वालिटी देखती हैं। बाक़ी भावनाओं, प्यार और इंसानी कमज़ोरियों के लिये उनके सर्किटों में कोई जगह नहीं होती। माफ कीजिए। किसी मशीन के लिये काम करने से इंसानियत का कोई भला नहीं होने वाला। मुझे आपका आफर स्वीकार नहीं।’’ अनुशा कार्ड को वापस हारून की तरफ रख चुकी थी। जिसे वह जड़ होकर घूर रहा था।

 कुर्सी से उठते समय अनुशा की तमाम बेचैनी खत्म हो चुकी थी। उसका दिल पूरी तरह शांत था।

---समाप्त---  

ज़ीशान हैदर ज़ैदी 
लेखक     

9 comments:

कविता रावत said...

अच्छी लगी कहानी....

Arvind Mishra said...

अप्रत्याशित और अप्रतिम पटाक्षेप को लिये यह कहानी अविस्मरणीय बन गयी है। बधाई 🎊

zeashan haider zaidi said...

आभार कविता रावत जी और अरविन्द मिश्र जी.

अभिषेक मिश्र said...

भावनाओँ के आगे असली दुनिया शुरू होती है। धन्यवाद।

ब्लॉग बुलेटिन said...

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " एक निवेदन - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

zeashan haider zaidi said...

Thanks Abhishek Ji & Blog Bulletin

PD said...

शायद आपको याद ना हो, आपकी पिछली कहानी पर मैंने कहा था आपकी विज्ञानी फंतासी कहानियों में परिपक्वता आ रही है. मैं आज भी अपनी बात पर कायम हूँ. हर कहानी पिछली कहानी से अच्छी. और ये वाली तो बेहतरीन थी.

Unknown said...

kya aapaka contact number mil sakata hai. We want to make a film and need story writer like you. Call me on +91 92751 79109 Viral Kapadia.

Bahut badhiya likhate ho aaap.

Unknown said...
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