Thursday, October 2, 2014

एथलीट : कहानी (भाग 1)

 ---ज़ीशान ज़ैदी (लेखक)

लाॅस एंजिलिस के ओलम्पिक स्टेडियम में सौ मीटर की दौड़ जैसे ही शुरू हुई, दर्शकों ने अपनी साँसें रोक लीं। खचाखच भरे स्टेडियम की भीड़ ने इस फाइनल मुकाबले में एक करिश्मा देखा। ब्राजील का कार्ल जोेहान्स बाकी खिलाड़ियों को पीछे छोड़ता हुआ गोली की रफ्तार से आगे बढ़ा और पल भर में बाउन्ड्री लाइन पार कर ली। कम्प्यूटराइज़्ड स्कोर बोर्ड पर दौड़ पूरी करने का समय अंकित था 4.565 सेकेण्ड। तालियों की गड़गड़ाहट के बीच कार्ल जोहान्स को गोल्ड मेडल दिया गया। दूसरी पोजीशन अर्जेण्टाइना के बेन लारेन्स की आयी जिसने यही दौड़ 9.955 सेेकेण्ड में पूरी की। 

पूरे विश्व में कार्ल जोहान्स के कारनामे की धूम मच गयी। क्योंकि आज तक किसी ने सौ मीटर की दौड़ इतने कम समय में पूरी नहीं की थी। ओलंपिक कमेटी की मीटिंग में प्रेसीडेन्ट ने ड्रग्स विशेषज्ञ जेम्स क्लार्क को सम्बोधित किया, ‘‘मि0 क्लार्क, कहीं ऐसा तो नहीं कि कार्ल ने ड्रग्स ली हो ?’’

‘‘लेकिन ड्रग्स लेने के बाद भी कोई इंसान इतना शक्तिशाली नहीं हो सकता कि वह तेज़ी से दौड़ती कार को पीछे छोड़ दे। फिर भी हम टेस्ट कर रहे हैं। जल्दी ही परिणाम सामने आ जायेगा।’’ क्लार्क ने जवाब दिया। 
उसके बाद कार्ल जोहान्स के अनेको परीक्षण हुये और उनसे जो परिणाम निकला वह यही था कि कार्ल ने कोई ड्रग्स इस्तेमाल नहीं की है।

लेकिन इन परीक्षणों से जेम्स क्लार्क अभी पूरी तरह संतुष्ट नहीं था। इस समय वह प्रसिद्ध एनेटाॅमिस्ट मारिस स्टीफन के पास बैठा था। वह उसका दोस्त था। मारिस स्टीफन की आयु पचपन-साठ के बीच थी लेकिन स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से पैंतालीस से ज़्यादा न लगता था।

‘‘मि0 स्टीफन।’’ क्लार्क ने मारिस स्टीफन को सम्बोधित किया, ‘‘क्या इंसान को किसी विधि से इतना शक्तिशाली बनाया जा सकता है कि वह एक मशीन की तरह काम करने लगे?’’

‘‘कुछ तरकीबें ऐसी हैं जिन्हें अपनाने से मनुष्य बहुत ज़्यादा शक्तिशाली बन सकता है जैसे योग, कुछ विशेष प्रकार के व्यायाम इत्यादि। उसमें इतनी शक्ति आ जाती है कि वह चलती हुई कार को रोक सकता है, बड़े से बड़ा भार उठा सकता है। इस तरह के कारनामे अनेक लोगों ने किये भी हैं।’’

‘‘क्या कार्ल जोहान्स का कारनामा भी ऐसा ही माना जायेगा ?’’

‘‘उसके बारे में मैं अभी कुछ नहीं कह सकता। लेकिन अगर उसके शरीर का कोई फोटो मुझे मिल जाये तो मैं कोई अनुमान लगा सकता हूँ। लेकिन यह फोटो साधारण कैमरे का नहीं होना चाहिये।’’ कहते हुये स्टीफन ने अलमारी खोलकर एक कैमरा निकाला, ‘‘यह खास तरह का लेसर कैमरा है और यह किसी मनुष्य के भीतरी शरीर का होलोग्राफिक फोटो उतार सकता हैै। तुम इस कैमरे से कार्ल का फोटो ले लो।’’

जेम्स क्लार्क ने स्टीफन से वह कैमरा ले लिया।
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जेम्स ने कार्ल का फोटो लिया और वापस मारिस के पास आ गया।

‘‘गुड! अब मैं टेस्ट करता हूँ।’’ कहते हुये वह एक मशीन के पास गया। यहाँ यह बता देना ज़रूरी है कि यह अमेरिका की सबसे बड़ी एनेटाॅमी की लेबोरेट्री थी और मारिस स्टीफन इसका इंचार्ज और मुख्य वैज्ञानिक था।
मारिस ने कैमरा उस मशीन के एक खाँचे में फिट कर दिया और एक स्विच दबाकर मशीन चालू कर दी। जल्दी ही उस मशीन की स्क्रीन पर कार्ल जोहान्स के भीतरी जिस्म का फोटो उभरने लगा। यह फोटो थ्री डाईमेंशनल था।

‘‘ये देखिये, कार्ल की पेशियाँ कुछ हरापन लिये हुये हैं, जबकि किसी भी मनुष्य की पेशियाँ भूरे रंग की होती हैं।’’ मारिस ने स्क्रीन की ओर संकेत किया। इतने में मशीन से एक स्लिप निकली। इस स्लिप को पढ़कर मारिस के चेहरे पर विस्मय की लकीरें खिंच गयी।

‘‘क्या बात है मारिस ?’’ जेम्स क्लार्क ने पूछा।

‘‘हैरत की बात है जेम्स। मशीन के अनुसार ये पेशियाँ किसी मनुष्य की नहीं हैं।’’

‘‘तो क्या कार्ल......लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है ?अगर कार्ल का शरीर मनुष्य का नहीं है तो फिर किसका हो सकता है।’’

‘‘इस बारेे में पता करने के लिये तुम्हें कार्ल को इस लैब में लाना पड़ेगा।’’

‘‘कोशिश करता हूँ।’’ कहते हुये जेम्स उठ खड़ा हुआ।

… (जारी है)

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