Thursday, September 4, 2014

झूमती नागिन - कहानी (अंतिम भाग)

परेशानहाल शुक्ला इंस्पेक्टर राजीव के चैम्बर में घुस गया।
‘‘सर, मैं बहुत परेशान हूँ।’’ उसने अंदर घुसते ही कहा। 
इं. राजीव ने किसी फाइल से सर उठाकर उसकी ओर देखा, ‘‘वह तो तुम्हारे चेहरे ही से मालूम हो रहा है। क्या बात है?’’

‘‘सर, एक नागिन हमारे पीछे लग गयी है। उसने बलवन्त और सुखराम को मार डाला। और अब मुझे भी खत्म करना चाहती है।’’

‘‘तुम्हारी बातें मेरी समझ में नहीं आयीं। पहले तुम आराम से बैठो कुर्सी पर फिर बताओ ये नागिन का क्या किस्सा है?’’

सब इं.शुक्ला सामने पड़ी कुर्सी पर बैठ गया। थोड़ी देर अपनी साँसों को दुरुस्त करता रहा, फिर कहने लगा, ‘‘सर, आपको बलवन्त और सुखराम के बारे में पता ही है।’’

‘‘इतना मालूम है कि दोनों साँप के डसने से मरे हैं।’’

‘‘वह एक नागिन है सर, जो हमारे पीछे पड़ गयी है। मेरे दोनों दोस्तों को उसने मार दिया, और अब मेरे आगे पीछे फिर रही है। अभी थोड़ी देर पहले मैंने उसे अपने दरवाजे पर देखा था और फिर भागा हुआ यहाँ आ गया।’’

‘‘तुम तो कहानी किस्सों की बातें कर रहे हो, जिसमें किसी नाग को मार दिया जाता है। बाद में नागिन उसका बदला लेती है। कहीं तुम लोगों ने तो नहीं किसी नाग को मार दिया है?’’

‘‘ऐसा तो कभी नहीं हुआ सर। हम लोगों ने तो कभी चींटी भी नहीं मारी। ...अरे बाप रे!’’ अचानक शुक्ला चीख उठा। इं.राजीव ने उसकी नजरों की दिशा में देखा तो वहाँ एक नागिन मौजूद थी, अपनी पतली जीभ लपलपाती हुई।’’

इं.राजीव ने रिवाल्वर निकालकर उसपर फायर करना चाहा। लेकिन बिजली की गति से नागिन वहाँ से गायब हो चुकी थी।

इंस्पेक्टर राजीव ने घूमकर देखा, शुक्ला सूखे पत्ते की तरह काँप रहा था।
‘‘सर, वह नागिन मुझे नहीं छोड़ेगी।’’ रो देने के स्वर में कहा शुक्ला ने।

‘‘घबराओ मत। तुम्हें कुछ नहीं होगा।’’ इं.राजीव ने उसे दिलासा दिया।
‘‘नहीं सर, अब मुझे यकीन हो गया है। यह नागिन उसी लड़की की आत्मा है।’’

‘‘कौन लड़की?’’ चैंक कर पूछा इं.राजीव ने।

‘‘अरे वही, जिसके साथ हम तीनों ने जबरदस्ती की थी और फिर उसे मार डाला था।’’ झोंक में बोल गया शुक्ला। फिर उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। लेकिन अब तक तीर कमान से निकल चुका था।

इं.राजीव ने उसका गरेबान पकड़ लिया, ‘‘क्या बक रहे हो?किस लड़की को मार डाला तुम लोगों ने?’’

शुक्ला को पूरी कहानी सुनानी ही पड़ी। इं.राजीव का चेहरा क्रोध से लाल हो गया। उसने शुक्ला को एक झटका दिया, ‘‘तुम जैसे लोगों ने ही पूरे पुलिस डिपार्टमेन्ट को बदनाम कर रखा है। तुम लोगों को जिन्दा रहने का कोई हक नहीं। वह नागिन जानवर होकर भी तुम लोगों से लाख दर्जे अच्छी है।’’

‘‘मैं अपनी गलती मानता हूं सर। नशे में बहक गया था। लेकिन प्लीज मुझे उस नागिन से बचा लीजिए।’’ शुक्ला गिड़गिड़ाया।

इं.राजीव का क्रोध थोड़ा कम हुआ, ‘‘ठीक है, मैं देखता हूँ। लेकिन तुम्हें अपने आपको कानून के हवाले करना पड़ेगा।’’

‘‘मैं जिंदगी भर जेल में सड़ने के लिए तैयार हूं।’’

‘‘हूं।’’ इं.राजीव कुछ सोचने लगा था।
*****
अब शुक्ला को इत्मिनान था। क्योंकि इं.राजीव ने उसकी हिफाजत का भरोसा दिलाया था और तुरंत एक्शन लेते हुए उसके आसपास कुछ सिपाही तैनात कर दिये थे। फिलहाल उसे हिरासत में लेकर उसके खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज कर ली गयी थी।

समाचार पत्रों ने इस खबर को खूब उछाला। सभी में लड़की के मर्डर और फिर नागिन के बदले की खबरें मोटी सुर्खियों में मौजूद थीं। अखबार वालों से बचने के लिए शुक्ला को अलग कमरे में बंद कर दिया गया था। बाहर दो सिपाही तैनात थे।

अचानक दरवाजे के भीतर शुक्ला के चीखने की आवाज आयी। सिपाहियों ने जल्दी से दरवाजा खोला और उनकी आँखें फटी रह गयीं।

शुक्ला जमीन पर पड़ा हुआ था और उसके जिस्म से नागिन लिपटी हुई फुफकारें मार रही थी।
शुक्ला की चीख सुनकर इं.राजीव भी वहाँ पहुंच गया। उसने रिवाल्वर से नागिन को निशाना बनाना चाहा, लेकिन नागिन इस तरह शुक्ला से लिपटी हुई थी कि उसकी गोली सीधे शुक्ला को ही लगती।

गुस्से के साथ नागिन ने झपट्टा मारा। दूसरे ही पल उसके दाँत शुक्ला के माथे में धंस चुके थे। शुक्ला की चीखें और तेज हो गयी थीं। अब नागिन उसे छोड़कर धीरे धीरे अलग हट रही थी। इं.राजीव को अब उसे निशाना बनाने का मौका मिल गया।

‘‘ठहरो इंस्पेक्टर!’’ किसी ने इं.राजीव के कंधे पर हाथ रख दिया। उसने घूमकर देखा, अधेड़ आयु का एक व्यक्ति पीछे खड़ा था। उसके हाथ में होली की पिचकारी जैसा कोई यन्त्र था। फिर उस पिचकारी से कोई तरल निकलकर सीधे नागिन के ऊपर पड़ा और वह वहीं शान्त हो गयी।

‘‘घबराओ मत। मैंने इसे बेहोश कर दिया है। और अब मैं इसे ले जा रहा हूँ।’’
‘‘आप कौन हैं?’’ इं.राजीव ने पूछा। दूसरी तरफ सिपाही शुक्ला को उठाकर अस्पताल ले जाने की तैयारी कर रहे थे।  जो अब बेहोश हो चुका था।

‘‘मैं हूं डाक्टर इसहाक। एक जीव विज्ञानी। मैं देखूंगा कि ये नागिन क्यों लोगों की हत्या पर उतारू है।’’
‘‘किस तरह देखेंगे आप?’’

‘‘अपनी मशीनों के द्वारा। अगर तुम्हें भी जानकारी चाहिए तो आज शाम को मिलो मुझसे। मेरी लैबोरेट्री में।’’ वह बेहोश नागिन को एक थैले में डालने लगा।
*****

जब इं.राजीव डाक्टर इसहाक की लैब में दाखिल हुआ तो उसने नागिन को एक शीशे के जार में बन्द पाया। उस जार से कई महीन तार निकलकर एक मशीन में गये हुए थे।

‘‘आओ इंस्पेक्टर। मैंने इस नागिन का राज पा लिया है।’’
‘‘अच्छा! कैसे?’’ हैरत से पूछा इं.राजीव ने।

‘‘वर्षों पहले महान वैज्ञानिक सर जे.सी.बोस ने कहा था कि हर जीवित प्राणी में संवेदनाएं होती हैं। मैंने आज से दस वर्ष पहले इसी लाइन पर अपनी रिसर्च की षुरूआत की और आज पूरे दावे के साथ किसी भी प्राणी की संवेदनाओं का शत प्रतिशत विश्लेषण कर सकता हूँ।’’

‘‘ओह!’’

‘‘हां। इधर देखो।’’ डाक्टर इसहाक इं.राजीव का हाथ पकड़कर मशीन के पास ले गया, ‘‘मेरी ये मशीन किसी भी प्राणी की स्मृति पढ़कर उसका विश्लेषण कर सकती है। इस समय इसने इस नागिन के दिमाग को पढ़ा है। ये देखो।’’ डाक्टर ने मशीन आॅन की और एक तरफ मौजूद स्क्रीन रोशन हो गयी। स्क्रीन के साइड में एक ग्राफ भी दिख रहा था, जिस पर आड़ी तिरछी रेखाएं बनने लगी थीं।

स्क्रीन पर कुछ दृष्य भी आ रहे थे। धुंधले और अस्पष्ट। डाक्टर इसहाक एक नाॅब को घुमाने लगा और दृष्य बदलने लगा। फिर स्क्रीन पर शुक्ला का चेहरा दिखाई पड़ा, भय से बिगड़ा हुआ।

‘‘यह उस समय का दृष्य है जब नागिन शुक्ला पर हमला करने वाली थी। साइड में बना ग्राफ देखो, रेखाएं बहुत ऊपर चली गयी हैं। इसका मतलब नागिन उस समय अत्यधिक उत्तेजित थी।’’ डाक्टर इसहाक बोल रहा था।

स्क्रीन पर दृष्य बदलते रहे। कभी सुखराम की हत्या, कभी बलवन्त पर हमला। और फिर एक सीन ऐसा आया जिसने इं.राजीव को झकझोर कर रख दिया। यह थ तीनों के द्वारा एक अबोध लड़की को बेरहमी के साथ कत्ल। उसी समय उसकी दृष्टि ग्राफ पर भी गयी, जहां बनने वाली रेखाएं अपनी सीमा तोड़कर बहुत ऊंचाई तक जा रही थीं।

‘‘जब वह तीनों उस लड़की के साथ वहशियाना सुलूक कर रहे थे तो नागिन वहीं मौजूद सब कुछ देख रही थी। और पूरी घटना ने उसके दिमाग पर गहरा असर डाला।’’ डाक्टर इसहाक बता रहा था, ‘‘अत्यधिक क्रोध ने उसके अंदर बदले की भावना पैदा कर दी और एक एक करके उसने तीनों को मार डाला।’’

‘‘मैं सोच भी नहीं सकता था।’’ इं.राजीव बड़बड़ाया, ‘‘लेकिन दिल से मैं इस नागिन के कार्य का समर्थन करता हूँ।’’

‘‘वह तो करना ही पड़ेगा। वैसे भी हमारे कानून में किसी की हत्या के लिए जानवर को सजा देने का कोई प्रावधान नहीं है।’’

‘‘तो फिर अब हमें क्या करना चाहिए?’’

‘‘मैंने इस नागिन की स्मृति पूरी तरह पढ़ डाली है। अब इसकी बदले की आग शान्त हो चुकी है। लिहाजा इसे खामोशी के साथ जंगल में छोड़ देते हैं।’’

‘‘ठीक है।’’ इं.राजीव ने एक गहरी साँस ली।

शीशे के जार में बन्द नागिन अब धीरे धीरे होश में आ रही थी।
--समाप्त--
ज़ीशान हैदर ज़ैदी 
लेखक 

1 comment:

Sudiksha said...

Ati sundar.samvednayen