Sunday, July 14, 2013

मायावी गिनतियाँ : भाग 7


उधर असली रामू के सामने एक के बाद एक इस तरह मुसीबतें आकर गिर रही थीं जैसे पतझड़ के मौसम में पत्ते गिरा करते हैं। इतनी समस्याएं तो गणित के सवाल हल करने में नहीं झेलनी पड़ी थीं जितनी जीवन की उस पहेली को हल करने में दुश्वारियां आ रही थीं।
जिस छत पर भी वह पहुंचता था, वहीं से उसे खदेड़ दिया जाता था। पतंग की एक डोर उसकी नाक को भी घायल कर चुकी थी। दौड़ते भागते दोनों टाँगें बुरी तरह दुख रही थीं।

डार्विन ने कहा था इंसान के पूर्वज बंदर थे। लेकिन अगर ऐसा था तो इंसानों को बंदरों की इज्जत करनी चाहिए। लेकिन यहां इज्जत तो क्या मिलती उलटे मार पीट कर भगाया जा रहा था।
फिर एक छत पर पहुंच कर उसे ठिठक जाना पड़ा। उस छत की मुंडेर पर बैठी एक बंदरिया उसे प्रेमभरी नज़रों से देख रही थी।

बंदर बना रामू घबराकर साइड से कटने का रास्ता ढूंढने लगा। अब बंदरिया धीरे धीरे उसके करीब आ रही थी। और अपनी भाषा में कुछ कह भी रही थी। शायद किसी मुम्बइया फिल्म का रोमांटिक  मीठा गीत गा रही थी।
लेकिन रामू के दिल से तो बेतहाशा कड़वी गालियां ही निकल रही थीं।
बंदरिया ने उसपर छलांग लगाईं और बंदर बना रामू परे हो गया। नतीजे में वह मुंह के बल गिरी धड़ाम से। 

बंदरिया को शायद रामू से ऐसी उम्मीद नहीं थी। इसलिए वह थोड़ा गुस्से से और थोड़ा हैरत से रामू को देखने लगी। फिर उसने सोचा कि शायद यह शरारती बंदर उससे खेलना चाहता है। इसलिए इसबार उसने संभल संभल कर कदम बढ़ाना शुरू कर दिया।
इसबार भी रामू ने सरकना चाहा लेकिन बंदरिया ने झट से उसकी पूंछ पर पैर रख दिया। रामू ने उससे अपनी पूंछ छुड़ाने के लिए जो़र लगाना शुरू कर दिया। बंदरिया को भी शरारत सूझी और उसने झट से पूंछ पर से पैर उठा लिया। नतीजे में एक जोरदार झटके के साथ रामू सामने मौजूद खम्भे से टकरा गया और उसके सामने तारे नाच गये।

अब वह भी तैश में आ गया और उस नामाकूल बंदरिया को सबक सिखाने के लिए उसकी तरफ बढ़ा।
बंदरिया ने झट से अपने मुंह पर हाथ रख लिया। पता नहीं डर की वजह से, या शरमा कर।
रामू ने उसे थप्पड़ जड़ने के लिए अपना हाथ उठाया, लेकिन बीच ही में किसी के द्वारा थाम लिया गया।
उसने घूम कर देखा, ये कौन हीरो बीच में टपक पड़ा था। देखकर उसकी रूह फना हो गयी। क्योंकि वह उससे भी तगड़ा बंदर था और इस तरह उसे घूर रहा था मानो अभी उसे कच्चा चबा जायेगा।
फिर उस बदमाश ने उसकी पिटायी शुरू कर दी। बगल में खड़ी बंदरिया उसकी इस दुर्दशा पर खी खी करके हंस रही थी।
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यह एक अनोखी परीक्षा थी, जिसमें परीक्षा देने वाला केवल एक था और परीक्षक भी केवल एक। लेकिन देखने वाले बेशुमार थे। रामू यानि की सम्राट एक कुर्सी पर बैठा हुआ अग्रवाल सर के आने का इंतिजार कर रहा था। उसके सामने नोटबुक खुली रखी थी। जिसमें उसे अग्रवाल सर के सवालों के जवाब लिखने थे।
उससे थोड़ी दूर पर बाकी स्टूडेन्टस की भीड़ लगी हुइ थी। उनके पास कुछ टीचर्स भी मौजूद थे।

अचानक रामू ने पेन उठाया और नोटबुक पर तेजी से कुछ लिखना शुरू कर दिया।
''क्या लिख रहे हो रामू?" वहाँ मौजूद मिसेज कपूर ने टोका।
''अग्रवाल सर के प्रश्नों के जवाब।" रामू ने जवाब दिया और वहाँ मौजूद सारे स्टूडेन्ट एक दूसरे का मुंह देखने लगे।

''लेकिन अग्रवाल सर तो अभी अपने सवाल लेकर आये ही नहीं।" हैरत से कहा फिजि़क्स के टीचर सक्सेना सर ने।
''मैं जानता हूं वह कौन से प्रश्न लाने वाले हैं।" रामू ने अपना लिखना जारी रखा। सारे स्टूडेन्ट एक दूसरे से कानाफूसियां करने लगे थे। लग रहा था हाल में ढेर सारी मधुमक्खियाँ भिनभिना रही हैं।
''तुम्हें किसने बताया उन प्रश्नों के बारे में ?" सक्सेना सर ने फिर पूछा।
''किसी ने नहीं।" रामू का जवाब पहले की तरह संक्षिप्त था।

उसी समय वहाँ अग्रवाल सर ने प्रवेश किया। उनके हाथ में प्रश्न पत्र भी मौजूद था।
''ये लो और लिखना शुरू करो।" अग्रवाल सर ने प्रश्नपत्र रामू की तरफ बढ़ाया।
जवाब में रामू ने नोटबुक अग्रवाल सर की तरफ बढ़ा दी।
''ये क्या है?" अग्रवाल सर ने नोटबुक की तरफ नज़र की।
''आपके प्रश्नों के जवाब।"

''क्या? लेकिन मैंने तो अभी प्रश्नपत्र दिया ही नहीं।" हैरत का झटका लगा अग्रवाल सर को।
''मुझे मालूम था कि आप कौन कौन से प्रश्न पत्र देने वाले हैं। इसलिए वक्त न बरबाद करते हुए मैंने जवाब पहले ही लिख दिये।"
अविश्वसनीय भाव से पहले अग्रवाल सर ने रामू का चेहरा देखा और फिर नोट बुक पढ़ने लगे। जैसे जैसे वह आगे पढ़ रहे थे उनकी आँखें फैलती जा रही थीं।

''क्या बात है अग्रवाल साहब?" मिसेज कपूर ने पूछा।
''यह कैसे हो सकता है!"
''क्या?" सक्सेना सर भी उधर मुखातिब हो गये।
''इसने बिल्कुल सही जवाब लिखे हैं। दो ही बातें हो सकती हैं। या तो इसकी किसी ने मदद की है या फिर..!"
''या फिर क्या अग्रवाल साहब?" सक्सेना सर ने पूछा।

''या फिर इसके अंदर कोई दैवी शक्ति आ गयी है।"
''मुझे तो यही बात सही लगती है!" मिसेज कपूर आँखें फैलाकर बोली, ''कल इसने मेरा मोबाइल चुटकियों में सही कर दिया था। इसमें जरूर कोई दैवी शक्ति घुस गयी है।"
''रामू तुम खुद बताओ, क्या है असलियत?" सक्सेना सर ने रामू की तरफ देखा।
रामू बना सम्राट कुछ नहीं बोला। बस मन्द मन्द मुस्कुराता रहा।
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1 comment:

Arvind Mishra said...

क्या है असलियत? :-)