Tuesday, October 30, 2012

खून का रिश्ता (तीसरा अंतिम भाग)


''चलो, ये तो समझ लिया कि नन्द वंश तुम्हारे रूप में मौजूद है। लेकिन यह वंश पूरी दुनिया में फैल जायेगा यह कैसे संभव होगा?" राशि ने पूछा। 
''इसकी शुरूआत हो चुकी है। और इस तरह का पहला नंद वंशज बना है तुम्हारा मंगेतर दीपक कुमार।" 
''क्या मतलब? वंशज तो पैदा होते हैं। उन्हें बनाया कहां जाता है? और दीपक कुमार जी तो ब्राह्मण हैं। जबकि नंद वंशज शूद्र थे।" 

''कोशिकाओं पर आधारित मेरे  शोध ने इस मान्यता को बदल दिया है कि वंशज केवल जन्मजात हो सकते हैं। वास्तव में मैंने नंद वंशजों की कोशिका मिश्रित ऐसे रक्त का आविष्कार कर लिया है जिसे किसी के शरीर में थोड़ी सी मात्रा में पहुंचाने पर उस व्यकित की पूरी डीएनए कुंडली बदल कर नंद वंश के समान हो जायेगी। इस तरह ब्राह्मण वर्ग का व्यकित भी हमारे शूद्र वंश का हो जायेगा। अब तक हज़ारों व्यक्तियों के शरीरों में मेरा यह रक्त पहुंच चुका है और अब दुनिया के तमाम डीएनए परीक्षण उन्हें शूद्र वर्ग का ही सिद्ध करेंगे। और मेरे रक्त की एक विशेषता और है।"
''वह क्या?" 
''जिस व्यक्ति के शरीर में वह खून पहुंचता है उस व्यक्ति का मस्तिष्क मेरे मस्तिष्क का गुलाम बन जाता है। फिर वह व्यक्ति वही करता है जो मैं चाहता हूं।" 

''विश्वास नहीं होता।" पंकज व राशि दोनों के चेहरों पर अविश्वास के भाव थे। 
''विश्वास तो करना ही पड़ेगा। क्योंकि स्वयं तुम्हारा मंगेतर तुम्हें मेरी ही आज्ञा पर यहां लेकर आया है।" उसने दीपक कुमार की तरफ उंगली उठायी। दीपक कुमार का चेहरा पहले की तरह सपाट रहा। 

और अब महावीरानन्द भी खामोश होकर अपनी किसी मशीन पर काम करने में मसरूफ हो गया था। इन लोगों की तरफ से पूरी तरह बेपरवाह। राशि और पंकज ने एक दूसरे की तरफ देखा। फिर राशि ने ही महावीरानन्द को मुखातिब किया,
''शायद तुमने हम लोगों को अपना इतिहास सुनाने के लिये बुलाया था? अब हमें जाने दो।" 
''इतिहास बताना आवश्यक था। लेकिन यहां बुलाने का उददेश्य दूसरा है।" कहते हुए उसने शायद कोई मशीन चालू की थी क्योंकि अब वहाँ एक हलकी सी आवाज़ गूंजने लगी थी। 
''इतिहास में मौर्य वंश ने नन्द वंश को तबाह व बरबाद किया था।...."

''यह तो तुम अभी बता चुके हो।" राशि ने टोका।
''लेकिन मैंने यह नहीं बताया कि उसी मौर्य वंश ने नन्द वंश के अस्तित्व को बचाया भी है।"
राशि व पंकज को उसकी बात सुनकर एक बार फिर झटका सा लगा। 
''वह कैसे? पंकज ने अनायास ही पूछा। 
''जब पहले महावीरानन्द यानि मैंने दो हज़ार तीन सौ साल पहले कोशिका प्रत्यारोपण के द्वारा अपने को अमर बनाना चाहा तो मुझे ऐसे शरीर की आवश्यकता थी जिसकी डीएनए कुंडली नन्द वंश के लगभग समान हो। और जब मैंने ऐसे शरीर की खोज की तो वह मौर्य वंश के व्यक्ति में ही मिली। तब से आज तक शरीर बदलने के लिये मुझे हमेशा मौर्य वंश के शरीर की खोज होती है। मेरा आशय तुम लोग समझ गये होगे।" उसने उनकी ओर दृष्टि की।

दोनों वाकई उसका आशय समझ कर मन ही मन काँप गये थे।
''तुम्हारा मतलब कि तुम ... तुम...!"
''मेरी मशीनों ने मुझे बताया है कि मेरे वर्तमान शरीर की आयु बहुत कम रह गयी है। अत: अब महावीरानन्द पंकज मौर्य के शरीर में स्थापित हो जायेगा।"
पंकज ने बेचैनी से चारों तरफ देखा, ''लेकिन मैं ही क्यों? लाखों मौर्य जाति के लोग हर तरफ फैले हुए हैं।" 
''हाँ। लेकिन उनमें असली मौर्य वंशज गिनती के ही हैं। मैंने दस हज़ार मौर्य जाति के लोगों के परीक्षण के बाद तुम्हें ढूंढा है।"

''लेकिन हम इसके लिये तैयार नहीं। हम वापस जा रहे हैं।" राशि ने पंकज का हाथ पकड़ा और सीढि़यों की तरफ कदम बढ़ाया। किन्तु उसी समय फर्श से एक पिंजड़े नुमा संरचना निकली और दोनों उसके अन्दर कैद होकर रह गये। 

''यहाँ जो महावीरानन्द चाहेगा वही होगा।" कहते हुए वह पंकज के पास आया और उसकी आँखों में देखते हुए बोला, ''तुम्हें खुश होना चाहिए कि महावीरानन्द के अमर होने में तुम्हारा शरीर भागीदार बनने वाला है। अभी मेरी मशीन तुम्हारे शरीर में मेरी खास कोशिकाओं को प्रत्यारोपित कर देगी और फिर तुम्हारा व्यक्तित्व बदलने की प्रक्रिया आरंभ हो जायेगी। चौबीस घण्टे के बाद तुम भूल जाओगे कि तुम पंकज मौर्य थे, बल्कि तुम महावीरानन्द हो जाओगे।"
''और मैं? शायद अब तुम मुझे मार डालोगे।" राशि की आवाज़ पर उसने उसकी तरफ देखा। 
''नहीं। महावीरानन्द ने आजतक किसी की हत्या नहीं की। तुम्हें तो एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है।"
''कैसी भूमिका?" 
''तुम्हें नये महावीरानन्द की पत्नी की भूमिका निभानी है।"

''क्या? राशि चीख पड़ी, ''अरे ये मेरा भाई है। सगा भाई ।"
''वो तो अभी है। लेकिन महावीरानन्द बनने के बाद इसके जीन पूरी तरह बदल जायेंगे। फिर ये तुम्हारा भाई कहां रह जायेगा। वास्तव में तुम भी मेरे प्रयोग में भागीदार बनोगी। क्योंकि महावीरानन्द के बच्चे जीवित पैदा ही नहीं होते। पता नहीं क्या कारण है। शायद मेरा अगला प्रयोग इस कारण का पता लगा ले।"
पिंजरे में क़ैद राशि व पंकज गुस्से से पागल हो रहे थे। लेकिन उस सनकी नन्द वंशज से बचने का उन्हें कोई उपाय भी नहीं समझ में आ रहा था। दीपक कुमार तो किसी बेजान वस्तु की तरह एक कोने में खड़ा हुआ था। फिर राशि और पंकज ने अपने गुस्से को ठंडा किया। उन्हें लग रहा था कि उस सनकी वैज्ञानिक से ठंडे दिमाग के साथ ही निपटा जा सकता है।

''अच्छा ये बताओ कि तुम्हें पंकज के शरीर की क्या ज़रूरत है। अपना खून वैसे भी तुम पूरी दुनिया में फैला रहे हो और सब को अपना वंशज बना रहे हो। उनकी डीएनए कुंडली तो कहीं ज्यादा तुम्हारे समान होगी। पंकज की कुंडली से भी ज्यादा ।"
''वास्तव में रक्त द्वारा बनने वाले वंशजों में एक खराबी है। उनकी डीएनए कुंडली में केवल वंशावली वाला भाग ही परिवर्तित होता है। स्मृति वाला भाग परिवर्तित नहीं होता। मुझे अपने लिये ऐसे शरीर की आवश्यक्ता है जिसमें डीएनए कुंडली का स्मृति वाला भाग भी लगभग समान हो। 
और अब मैं अपनी प्रक्रिया आरंभ करने जा रहा हूं।" वह एक मशीन की तरफ बढ़ा।

''एक मिनट रुको।" राशि ने उसे रोका, ''अब हम तुम्हारी कैद से छूट तो सकते नहीं। फिर थोड़ी देर और हमसे बात करने में क्या बुराई है!"
''ठीक है।" वह रुक गया, ''मुझे कोई जल्दी नहीं। तुम लोग जितनी बातें करना चाहो कर लो।"
''तुमने कहा कि तुम्हें अपनी डीएनए कुंडली से मिलती जुलती कुंडली केवल मौर्य वंशजों में ही मिली। आखिर इसका कारण क्या है?"
''मैं नहीं जानता। ये एक संयोग ही हो सकता है।"
''मैं भी विज्ञान की छात्रा हूं। ये संयोग हो ही नहीं सकता।" 
''फिर ?" 
''ये तभी संभव है जब हमारे और तुम्हारे पूर्वज कुछ पीढि़यों पहले एक ही रहे हों।"

''हो ही नहीं सकता। नंद वंश और मौर्य वंश दो पूरी तरह अलग वंश थे।" उसने इंकार किया। 
''तो फिर डीएनए कुंडली लगभग एक जैसी क्यों है? यहाँ तक कि स्मृति वाला भाग भी समान दिखाई देता है।" 
महावीरानन्द राशि की बात पर सोच में पड़ गया। राशि ने कहना जारी रखा, ''ये माना हुआ तथ्य है कि दुनिया के तमाम इंसानों का जन्म एक ही पूर्वज से हुआ है। चाहे हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इवोल्यूशन थ्योरी की बात करें या फिर धार्मिक दृष्टिकोण से आदम-इवा या मनु-अनंती की कहानी पढ़ें। सभी में तमाम दुनिया के लोगों की उत्पत्ति का सिलसिला आखिर में एक पूर्वज पर जाकर थम जाता है।"

''तो फिर?"
''इसीलिए मनुष्यों की डीएनए कुंडली एक दूसरे से काफी समानता रखती है। और उनके पूर्वज जितने ज्यादा एक दूसरे के क़रीब होते हैं उतनी ही ज्यादा ये समानता बढ़ जाती है।"
''हाँ ये तो तथ्य है।" उसने राशि की बात पर सहमति में सर हिलाया। 
''इसीलिए कहा जा सकता है कि नन्द वंश और मौर्य वंश के पूर्वज पाँच छह पीढ़ी पहले नि:संदेह एक ही थे। वरना दोनों की कुंडली में इतनी समानता होने का सवाल ही नहीं पैदा होता।"
''ठीक है। मैं यह बात मान लेता हूं।"

''तो फिर अगर तुम पंकज को महावीरानन्द बना भी दोगे तो भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा। न तुम्हारा वंश बढ़ेगा और न हमारा कम होगा। क्योंकि हम दोनों एक ही वंश के हैं।"
''ये बकवास है। मैं नहीं मान सकता।" उसने इसबार थोड़ा विचलित होकर कहा।

''तुम्हारे न मानने से सच्चाई नहीं बदल सकती। वह सच्चाई जो डीएनए कुंडली कह रही है। वास्तव में तुम अपने वंश के एक भाई के अस्तित्व को खत्म करके दूसरे भाई को बढ़ा रहे हो। और इसके लिये तुम्हारे पूर्वजों की आत्माएं तुम्हें कभी माफ नहीं करेंगी। वह पूर्वज जो हमारे व तुम्हारे एक ही थे।" राशि की बात सुनकर महावीरानन्द बेचैन हो गया और उस हाल में तेज़ी से इधर उधर टहलने लगा।

''ये दीपक कुमार जैसे इंसान नुमा रोबोट, जिनका दिमाग तुम्हारे कब्ज़े में है। अगर कभी तुम्हें नया शरीर नहीं मिला तो इनका क्या होगा?" राशि ने फिर एक सवाल फेंका। 
''ये लोग पागल हो जायेंगे। इनके शरीर खाना पीना सोना जागना सारे काम करेंगे। लेकिन पागलों की तरह इन्हें अपना कुछ होश नहीं होगा। हां। अगर मैंने अपने जीवनकाल में ही यन्त्रों द्वारा इनका सम्पर्क अपने मस्तिष्क से काट दिया तो ये फिर से अपने व्यक्तित्व को पहचान लेंगे।

''फिर तो मतलब ये हुआ कि तुम अपने रक्त द्वारा अपना वंश नहीं बढ़ा रहे हो बल्कि ऐसे मशीनी यन्त्र बना रहे हो जिनका कण्ट्रोल तुम्हारे मस्तिष्क द्वारा होता है। वास्तव में तुम नन्द वंश को बढ़ाने का नहीं बल्कि नष्ट करने का काम कर रहे हो।"
''नहीं। ये गलत है।" महावीरानन्द ने गुस्से से कहा। 

''ये हक़ीक़त है।" राशि बिना उसके गुस्से की परवाह किये बोलती रही, ''तुम दरअसल तमाम मानव वंशजों की समाप्ति का कारण बनने जा रहे हो। एक दिन आयेगा जब दुनिया के तमाम मानवों में तुम्हारा ही दूषित रक्त पहुंच जायेगा। उस समय तुम्हें स्वयं को भी जीवित रखने के लिये नया शरीर मिलना असंभव हो जायेगा। तब महावीरानन्द का जीवन समाप्त हो जायेगा। और साथ में दुनिया के तमाम मनुष्य भी पागल होकर खत्म हो जायेंगे।"

महावीरानन्द के चेहरे से लग रहा था कि राशि की बातों ने उसके मन में घोर उथल पुथल मचा दी है और वह बहुत कुछ सोचने पर मजबूर हो गया है। राशि ने आगे कहना जारी रखा, ''जबकि अगर तुम अपनी प्रक्रिया यहीं रोक दो तो दुनिया के सभी वंश बचे रहेंगे, यहाँ तक कि नन्द वंश भी।
''नन्द वंश कैसे बचा रहेगा?"
''इसलिए कि मौर्य वंश ही नंद वंश भी है। डीएनए कुंडली से स्पष्ट है कि दोनों के पूर्वज एक ही थे। और वैसे भी दुनिया के तमाम वंशों की उत्पत्ति एक ही पूर्वज से हुई है।"

राशि की बातें सुनकर महावीरानन्द खामोश हो गया था। वह मन ही मन सोचने लगा था जबकि राशि व पंकज उसके चेहरे को ताक रहे थे। पता नहीं उसके दिल में क्या था। उधर वह खामोशी के साथ एक मशीन की तरफ जा रहा था। फिर उसने उस मशीन का एक बटन दबा दिया। दूसरे ही पल पंकज व राशि को घेरे में लेने वाला पिंजरा हट चुका था। 
''जाओ भाग जाओ। तुमने मेरी सोच बदल दी है।" उसने मशीन ही को घूरते हुए कहा। 
''म..मगर...!" राशि ने कुछ कहना चाहा। 

''कुछ मत बोलो। फौरन यहाँ से निकल जाओ। और साथ में अपने मंगेतर को भी ले जाओ।" उसने दीपक कुमार को भी उनके साथ जाने का इशारा किया।
अब राशि व पंकज ने कुछ बोलना मुनासिब नहीं समझा। और तेज़ी से सीढि़यों की ओर बढ़े। पता नहीं कब उसका इरादा फिर बदल जाता। दीपक कुमार भी उनके पीछे पीछे था।
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तीनों किले से काफी दूर निकल आये थे। 
''राशि! आज तुमने बहुत बड़ा काम किया। वरना मुझे तो लग रहा था कि अब जान बचनी नामुमकिन है।" पंकज ने एक गहरी साँस ली। 
''लेकिन खतरा अभी पूरी तरह टला नहीं। महावीरानन्द का दिमाग कभी भी पलट सकता है।"
''तो क्या हम पुलिस को उसके बारे में बता दें?" 
''पुलिस तो इस कहानी पर यकीन ही नहीं करेगी।"

उसी समय एक बड़े धमाके ने उन्हें झकझोर कर रख दिया। उन्होंने घूमकर देखा तो वह पुराना किला धुल के बादल में छुपा हुआ था। 
''ओह। लगता है उसने अपने ठिकाने को नष्ट कर दिया है।" पंकज ने अनुमान लगाया। 
''और शायद खुद को भी खत्म कर लिया है। यकीन नहीं आता मेरी बातों ने उसपर इतना असर कर दिया।" राशि ने गहरी साँस ली। 

''लेकिन दीपक जी कहाँ हैं?" पंकज ने इधर उधर देखा। 
''वह रहे।" वास्तव में दीपक कुमार इस धमाके के कारण ज़मीन पर गिर गया था और अब धीरे धीरे उठ रहा था। दोनों उसके पास पहुंचे। 
''दीपक जी आप ठीक तो हैं?"
''हाँ, मैं ठीक हूं। लेकिन...., उसने इधर उधर हैरत से देखा, ''लेकिन मैं यहाँ कहां? मैं तो घर पर सो रहा था -- और राशि, पंकज तुम मेरे साथ यहाँ कहाँ?"

''क्या अभी जो घटनाएं हुई हैं उनके बारे में तुम्हें कुछ याद है?" राशि ने पूछा।
दीपक कुमार ने अपने मस्तिष्क पर ज़ोर डाला, ''कुछ कुछ दिमाग में उभर रहा है। कोई पुराना किला, एक मूर्ति , तहखाना....। लगता है मैं कोई सपना देख रहा था।"
''हाँ एक बुरा सपना । लेकिन अब उस सपने का अंत हो चुका है। चलो घर चलते हैं।" राशि ने दीपक कुमार का हाथ थाम लिया।

--समाप्त--

लेखक : ज़ीशान हैदर ज़ैदी

5 comments:

Anonymous said...

very captivating story but could not maintain its mesmerism in the third part.

Shah Nawaz said...

बेहतरीन कहानी और साथ ही साथ अजीबो-गरीब जानकारियाँ भी... कमाल है!

namita said...

very interesting ....आदमी के मशीनीकरण का जिक्र,आदमी के भीतर ही समाहित अच्छाई और बुराई वाली ताकतें और एक ही स्रोत से सभी मानवों की उत्पत्ति आदि का संदर्भ अच्छा लगा.

अभिषेक मिश्र said...

इतिहास के संदर्भों से जुड़ी अनूठी विज्ञान कथा। कई दिनों से नई पोस्ट नहीं की आपने !

jessikax said...

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