Saturday, June 2, 2012

भारतीय टीवी सीरियलों के माध्यम से विज्ञान संचार : एक सिंहावलोकन


प्रस्तुत शोध पत्र मैंने 'वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा चेतना जगाने में संचार माध्यमों की भूमिका' पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन में प्रस्तुत किया. यह सम्मलेन 29 -30 मई 2012 में एन.ए.सी. काम्प्लेक्स, नई दिल्ली में सीएसआईआर-निस्केयर, विज्ञान प्रसार, एनसीएसटीसी एवं एनसीएसएम् द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित हुआ.

भारतीय टीवी सीरियलों के माध्यम से विज्ञान संचार : एक सिंहावलोकन

ज़ीशान हैदर ज़ैदी
विज्ञान लेखक व प्रवक्ता - एराज़ लखनऊ मेडिकल कालेज, लखनऊ (उ-प्र-), भार


सारांश
लगभग तीस वर्ष पहले देश में संचार का नया किन्तु सशक्त माध्यम अवतरित हुआ जिसने बहुत जल्द घर घर में अपनी पैठ बना ली। ये माध्यम था टीवी। अस्सी के दशक में ‘हम लोग’, ‘बुनियाद’ व ‘नुक्कड़’ के किस्से हर घर व हर चौपाल में सुनाये जाने लगे। और बाद में सास बहू टाइप सीरियलों की रिकार्ड तोड़ सफलता ने मनोरंजन के क्षेत्र में फिल्मों को कहीं पीछे छोड़ दिया। किन्तु ये भी वास्तविकता है कि संचार के इस माध्यम के संचालकों ने अपनी जिम्मेदारी नहीं समझी और इसका सदुपयोग करने की बजाय इसे सिर्फ एक व्यवसायिक उपभोग की वस्तु बना दिया। विज्ञान व ज्ञान संचरण की बजाय अंधविश्वास और फूहड़ समाचारों को परोसा जाने लगा। बहाना ये बनाया गया कि पब्लिक ऐसी ही चीज़ों को पसंद करती है। जबकि ऐसा नहीं है। ढंग से पेश की जाने वाली कोई भी चीज़ पब्लिक पसंद करती है। विज्ञान अगर साइंस फिक्शन के रूप में दर्शकों के सामने आता है तो अवतार, जुरासिक पार्क व स्टार ट्रैक जैसी रिकार्ड तोड़ सफलता अर्जित करता है। अंधविश्वासों के बीच ‘कैप्टेन व्योम’, ‘लेकिन वो सच था’, ‘आर्यमान’ जैसे कुछ भारतीय सीरियल विज्ञान के संचार की उम्मीद बंधाते हैं, लेकिन यह प्रयास कहीं ऊंचे स्तर पर करने की आवश्यक्ता है। और यह तभी संभव है जब विज्ञान संचारक मिल जुलकर इसपर जुटें। और पब्लिक तो चाहती है कि अब उसे इमली की चुड़ैल और पीपल के भूत जैसी बच्चों की कहानियों से न बहलाया जाये। इक्कीसवीं सदी के अवाम का मानसिक स्तर बढ़ चुका है।

प्रस्तावना :
लगभग तीस वर्ष पहले देश में संचार व मनोरंजन का नया और सशक्त माध्यम अवतरित हुआ जिसने बहुत जल्द हर घर में अपनी पैठ बना ली। ये माध्यम था टीवी। अस्सी के दशक में ‘हम लोग’, ‘बुनियाद’ व ‘नुक्कड़’ के किस्से हर घर व हर चौपाल में सुनाये जाने लगे। एक समय था जब रविवार का दिन पूरी तरह टीवी को समर्पित होता था। बाद में सास बहू टाइप सीरियलों की रिकार्ड तोड़ सफलता ने मनोरंजन के क्षेत्र में फिल्मों को कहीं पीछे छोड़ दिया। वर्तमान में भी देश की अधिकाँश आबादी मनोरंजन के लिये टीवी पर ही आश्रित है। टीवी न सिर्फ लोगों की मानसिकता को कण्ट्रोल कर रहा है बल्कि बाज़ारवाद का भी आधार है। क्योंकि यह लोगों की पसंद-नापसंद को भी कण्ट्रोल कर रहा है। टीवी ने एक नये तरह के उपभोक्ता को जन्म दिया है जिसका सोच उसकी स्वयं की नहीं है बल्कि टीवी के रिमोट के ज़रिये संचालित है। ऐसे में विज्ञान संचार के लिए टीवी माध्यम का इस्तेमाल पूरी तरह उपयुक्त है।    

अध्ययन सामग्री व विधि  :
प्रस्तुत अध्ययन में टीवी के विभिन्न चैनलों पर प्रसारित होने वाले ऐसे टीवी सीरियलों को चुना गया है जिनके विषय में कुछ हद तक विज्ञान कथात्मकता की झलक मिलती है। तत्पश्चात इन सीरियलों में वैज्ञानिक कंटेंट का विश्लेषण कर उनमें सुधार की संभावना पर विचार करते हुए भविष्य के साइंस फिक्शन सीरियलों की संभावना व उनके द्वारा वैज्ञानिक जागरूकता पर एक मंथन किया गया है।   
विश्लेषण में जिन सीरियलों को सम्मिलित किया है, वे इस प्रकार हैं।
1- कैप्टेन व्योम (निर्देशक-केतन मेहता)
3- शक्तिमान (निर्देशक-दिनकर जानी)
4- लेकिन वो सच था (निर्देशक-मनोज नौटियाल)
5- आर्यमान (निर्देशक-दिनकर जानी)
6- हुकुम मेरे आक़ा (निर्देशक-राजेन्द्र मेहरा)

विश्लेषण :
केतन मेहता द्वारा निर्देशित कैप्टेन व्योम 1990 के दशक में दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ तथा इसका पुनर्प्रसारण सब टीवी पर बाद में किया गया। सही मायनों में यह साइंस फिक्शन सीरियल था जिसमें टाइम मशीन व 2220 की भविष्य की दुनिया दिखाने जैसे विचार रखे गये। इसके मूल पात्रों के चित्रण में भी वैज्ञानिक कल्पनाओं का सहारा लिया है। जैसे कि इसमें सोनिक नामक विलेन होता है जो ध्वनि तरंगों को अपना हथियार बनाता है। उसके पास ऐसा माउथ आर्गन है जिसे बजाकर वह सामने वाले को हिप्टोनाइज़ कर देता है और उससे अपनी बात मनवा लेता है। एक अन्य पात्र ग्रैविटो अपने यन्त्रों द्वारा किसी भी ग्रह या सितारे की ग्रैविटी परिवर्तित कर देता था। कम्प्यूटो नामक एक साईबोर्ग की कल्पना भी इस सीरियल में की गयी थी जो आधा मानव व आधा कम्प्यूटर था।

हालांकि कैप्टेन व्योम अधिक लोकप्रिय नहीं हुआ। इसके पीछे वजह ये हो सकती है कि इसकी भाषा में वैज्ञानिक शब्दावली का हद से ज्य़ादा प्रयोग हुआ है। और सीरियल के एपीसोड्‌स में एक तरह का बोझिलपन था। यदि इसे कुछ हल्का फुलका अंदाज़ दिया जाता तो ये कहीं अधिक लोकप्रिय होता।

शक्तिमान सीरियल मूल रूप से एक कॉमिकल सीरियल था जिसमें माइथोलोजी, जादूमंतर, सुपर नेचुरल पावर्स सभी का इस्तेमाल किया गया था, और इसी के बीच कहीं कहीं साइंस फिक्शन या साइंस फैंटेसी की भी झलक दिखती है। विशेष रूप से उस समय जब शैतान वैज्ञानिक डा0जैकाल शक्तिमान के मुकाबले आता है। ये वैज्ञानिक क्लोनिंग और खतरनाक किरणें बनाने का माहिर है। और शक्तिमान का बुरा क्लोन जोग जोगा नाम से बनाता है जो हर तरफ तबाही मचा देता है। ये वैज्ञानिक ऐसी किरणों की भी रचना करता है जो चीज़ों को छोटे आकार में परिवर्तित कर देती हैं। इसी सीरियल में साईबरवर्ल्ड में बंद हीरो भी है जो वास्तविक दुनिया से निकलकर आभासी दुनिया में कैद हो जाता है।

लेकिन इन तमाम विशेषताओं के बावजूद शक्तिमान साइंस फिक्शन न होकर एक भुतहा सीरियल ही कहा जायेगा जिसमें जादू टोने व अंधविश्वास जैसी तमाम बातें शामिल थीं। अगर इन बातों को हटा दिया जाता तो ये एक लोकप्रिय साइंस फिक्शन हो सकता था क्योंकि इसमें दर्शकों को बाँधने के तमाम गुण मौजूद थे।

इसी बीच एक और साइंसी सीरियल दूरदर्शन पर अवतरित हुआ, ‘लेकिन वो सच था।’ मनोज नौटियाल निर्देशित इस सीरियल में एक अच्छे साइंस फिक्शन के तमाम गुण मौजूद थे। इसके हर एपीसोड में एक नयी कहानी दिखाई जाती थी जो किसी सुपरनेचुरल घटना पर आधारित होती थी और देखने वाला यही समझता था कि यह किसी भूत प्रेत का कारनामा है। लेकिन जब एपीसोड के अंत में उस घटना की वैज्ञानिक व्याख्या सामने आती थी तो लोग दाँतों तले उंगली दबाने पर मजबूर हो जाते थे। इस सीरियल ने इस मिथक को भी तोड़ा कि साइंस फिक्शन सीरियल बनाने के लिये बड़े बजट और हाई तकनीकों की ज़रूरत होती है। सीरियल की तमाम कहानियां आम जनमानस के बीच से उठायी गयी थीं। न तो इसमें अंतरिक्ष की लंबी सैर थी, न किसी वैज्ञानिक की प्रयोगशाला का लंबा चौड़ा सेटअप और न ही सितारों के बीच किरणों का युद्ध था।

शक्तिमान टीम के मुख्य खिलाड़ियों यानि हीरो मुकेश खन्ना ओर निर्देशक दिनकर जानी ने अपने इस सीरियल की अपार सफलता के बाद अपना दूसरा सीरियल आर्यमान लांच किया जो विशुद्ध रूप से साइंस फिक्शन था। यानि इसमें ग्रहों के बीच युद्ध भी था, और एनीमेशन व स्पेशल इफेक्ट तकनीकों के साथ बहुत सी वैज्ञानिक परिकल्पनाओं को दिखाया गया था। हालांकि यह सीरियल शक्तिमान जैसी सफलता नहीं अर्जित कर सका किन्तु साइंसी कंटेन्ट के मामले में यह उससे बढ़कर था।

बच्चो के लिये सहारा मनोरंजन ने एक टीवी सीरियल लांच किया था, ‘हुकुम मेरे आक़ा।’ जिसकी कहानी 219 एपीसोड तक लंबी चली। इसकी कहानी भी विशुद्ध साइंस फिक्शन न होकर जिन्नाती, तिलिस्मी व जादू टोने जैसी कहानियों की काकटेल थी, जिसमें बीच बीच में साइंस फिक्शन की भी झलक मिलती है। विशेष रूप से इसके अंतिम कुछ एपीसोड्‌स में। इसका मूल कथानक ये था कि ग़ायब दिमाग प्रोफेसर के घर में एक जिन इंसान की शक्ल में पल रहा है जिसे प्रोफेसर अपना बेटा मानता है। प्रोफेसर उल्टे सीधे एक्सपेरीमेन्ट करता रहता है जिसे जिन अपनी जिन्नाती ताकतों की मदद से कामयाब कर देता है। इस सीरियल के अंतिम एपीसोड्‌स में अनजान ग्रहों की सैर और रोबोट व मानव के बीच नोक झोंक जैसी विज्ञान कथात्मक परिकल्पनाएं देखने को मिलती हैं। साथ ही इसमें स्पेशल इफेक्ट्‌स व एनीमेशन का भी अच्छा इस्तेमाल हुआ है।          

निष्कर्ष :
कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि जो सीरियल विशुद्ध विज्ञान कथात्मक थे वो आम जनमानस के बीच उतने लोकप्रिय नहीं हुए जितने कि भूत प्रेत या जादू टोने वाले सीरियल। लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि दर्शकों ने विज्ञान कथात्मक सीरियलों को नकार दिया है। दरअसल ऐसे सीरियलों की कहानी व भाषा की दुरुहता ही इसके मूल में दिखाई देती है। वरना जब भी सुपरनेचुरल कहानियों के बीच उन ही कथाकारों व निर्देशकों ने विज्ञान कथाओं को पेश किया तो दर्शकों ने ऐसी कहानियों को सर आँखों पर बिठाया। अत: ये कहने में कोई संदेह नहीं कि अच्छी विज्ञान कथाओं का भविष्य उज्जवल है, बशर्ते कि उन्हें एक अच्छा ट्रीटमेन्ट दिया जाये। और इसके लिये अच्छे व कुशल निर्देशकों, कथाकारों के साथ विज्ञान संचारकों को आगे आने की ज़रूरत है। एक उचित कहानी के साथ विज्ञान कथात्मक सीरियल भी उसी बजट में बन सकता है जिस बजट में कोई अन्य आम सीरियल। दरअसल भारतीय सीरियलों के सम्बन्ध् में वास्तविकता यही है कि संचार के इस माध्यम के संचालकों ने अपनी जिम्मेदारी नहीं समझी और इसका सदुपयोग करने की बजाय इसे सिर्फ एक व्यवसायिक उपभोग की वस्तु बना दिया। विज्ञान व ज्ञान संचरण की बजाय अंधविश्वास और फूहड़ समाचारों को ज्य़ादा परोसा जा रहा है। बहाना ये बनाया जाता है कि पब्लिक ऐसी ही चीज़ों को पसंद करती है। जबकि ऐसा नहीं है। ढंग से पेश की जाने वाली कोई भी चीज़ पब्लिक पसंद करती है।

भारतीय टीवी सीरियलों में अंधविश्वासों के बीच ‘कैप्टेन व्योम’, ‘लेकिन वो सच था’, ‘आर्यमान’ जैसे कुछ सीरियल विज्ञान के संचार की उम्मीद बंधाते हैं, लेकिन यह प्रयास कहीं ऊंचे स्तर पर करने की आवश्यक्ता है। और पब्लिक तो चाहती है कि अब उसे इमली की चुड़ैल और पीपल के भूत जैसी बच्चों की कहानियों से न बहलाया जाये। इक्कीसवीं सदी के अवाम का मानसिक स्तर बढ़ चुका है।

11 comments:

Arvind Mishra said...

अपनी तरह का पहला अध्ययन -साधुवाद!

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

Nice work.

अभिषेक मिश्र said...

Ullekhniya shodh.
Ab ise maatra sanjog ka naam dein ya any kisi Vaigyanik shabd ka, aisi hi aalekh ke vishay ar Main bho vichar kar raha tha. Pryas karunga ki jald hi SBA par doon.

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वाह जी बड़ी मेहनत की है आपने तो

Ashish Shrivastava said...

स्पेस सीटी सिग्मा और इंद्रधनुष आपकी सूची से छुट गये!

zeashan haider zaidi said...

आशीष जी, यह एक नमूना सर्वे 'सिंहावलोकन' था. अतः इसमें सभी सीरियल सम्मिलित नहीं थे.

Unknown said...

good one...

keep it up...

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virendra sharma said...

आशय यही है डॉ श्याम गुप्त जी ,डॉ जाकिर भाई रजनीश जी हमारी मौखिक परम्पराएं ,दंत कथाएँ फिर चाहे भले वे धार्मिक रंजक लिए हों उनमे मौजूद विज्ञान तत्वों पर चर्चा हो .विज्ञान कथा लेखन को पंख लगें .वैसे भी दंत कथाओं का कोई मानक स्वरूप नहीं होता है जितने मुख उतनी कथाएँ .आप सभी विद्वत जनों का आभार .

virendra sharma said...

भारतीय टीवी सीरियलों में अंधविश्वासों के बीच ‘कैप्टेन व्योम’, ‘लेकिन वो सच था’, ‘आर्यमान’ जैसे कुछ सीरियल विज्ञान के संचार की उम्मीद बंधाते हैं, लेकिन यह प्रयास कहीं ऊंचे स्तर पर करने की आवश्यक्ता है। और पब्लिक तो चाहती है कि अब उसे इमली की चुड़ैल और पीपल के भूत जैसी बच्चों की कहानियों से न बहलाया जाये। इक्कीसवीं सदी के अवाम का मानसिक स्तर बढ़ चुका है।

लेकिन अफ़सोस यही है कई चैनल और चैनलिए ऐसे हैं जो हनुमान का लंगोट ,शिव का धनुष और रावण की लंका ही ढूंढते रहतें हैं ,हाथ लगने की भी बात करते हैं .बहुत ही सटीक समीक्षा प्रस्तुत की है आपने छोटे पर्दों पर किये गए कुछ बड़े प्रयासों और शुरुआत की .बधाई आलेख की आलमी सभी में प्रस्तुति की भी .

Sancnair said...

Keep up the good work. Impressive. :)

Arshia Ali said...

बहुत सुंदर विवेचन।

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