Tuesday, January 24, 2012

क्या था परम अन्धकार (Absolute Darkness)?


आमतौर पर अँधेरा ऐसी जगह को कहते हैं जहाँ रोशनी की कोई किरण मौजूद न हो। रोशनी हमारी आँखों और किसी वस्तु के बीच देखने के लिये सेतु का काम करती है। वस्तु से होकर आने वाली रोशनी की किरणें जब आँखों तक पहुंचती हैं तो उस वस्तु के देखने का एहसास हमारे मस्तिष्क को होता है। इलेक्ट्रान माइक्रोस्कोप जैसे उपकरणों की सहायता से चीज़ों को देखने के लिये रोशनी की किरणों की बजाय इलेक्ट्रान बीम की सहायता ली जाती है। दूसरी तरफ इन्फ्रा कैमरों में रोशनी से इतर इन्फ्रारेड तरंगों का इस्तेमाल किया जाता है। बगैर कैमरे के ये तरंगें चूंकि आँखों को संवेदित नहीं करतीं अत: केवल इन्फ्रा तरंगों की उपस्थिति में नंगी आँखों से चीज़ों को देखा नहीं जा सकता। लेकिन उपकरणों की मौजूदगी में चीज़ों के देखने के औज़ारों में इलेक्ट्रान बीम व इन्फ्रारेड तरंगों को भी शामिल किया जा सकता है। अब अपने दायरे को और बढ़ाते हुए वस्तुओं को महसूस करने की बात की जाये और इसके लिये आँखों के अलावा दूसरी इन्द्रियों को भी नज़र में रखा जाये तो रोशनी के अलावा ध्वनि और तमाम तरंगें जो हमें किसी चीज़ के अस्तित्व का एहसास कराती हैं, इस परिभाषा में आ जायेंगी। रेडियो और एक्सरे जैसी चीज़ों को भी अगर शामिल कर लिया जाये तो तमाम विद्युत चुम्बकीय तरंगों और तमाम तरंगों को ‘रोशनी’ के दायरे में रखा जा सकता है क्योंकि ये तमाम तरंगें किसी न किसी तरीके से चीज़ों के अस्तित्व का एहसास मस्तिष्क को कराती हैं। यानि ये सब उपरोक्त परिभाषा के अन्तर्गत चीज़ों को देखने में मदद देती हैं या चीज़ों को दिखाती हैं। 

साइंस के अनुसार तमाम इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगें ‘फोटॉन’ नामी कणों की शक्ल में होती हैं जबकि आवाज़ जैसी लहरें हवा के कणों के माध्यम द्वारा आगे बढ़ती हैं। और ये तमाम तरह की तरंगें या लहरें ऊर्जा की अलग अलग किस्में होती हैं। तो इन तमाम बातों का निष्कर्ष ये हुआ कि ऊर्जा ही वह साध्ना है जिसके द्वारा हमें किसी भी चीज़ के अस्तित्व का ज्ञान होता है। किसी वस्तु व हमारी इन्द्रियों के बीच सम्पर्क स्थापित करने का काम ऊर्जा की कोई न कोई अवस्था करती है। अब अँधेरे की परिभाषा के अनुसार कोई क्षेत्र ऐसी अवस्था में हो जहाँ पर मौजूद कोई भी वस्तु दिखाई न दे। इसलिए देखने की उपरोक्त परिभाषा में अँधेरा ऐसी अवस्था को कहेंगे जहाँ पर किसी भी तरह की ऊर्जा मौजूद न हो। सवाल ये पैदा होता है कि ऐसी अवस्था ब्रह्माण्ड में कहां पर है या थी? देखा जाये तो वर्तमान में ब्रह्माण्ड में कोई भी ऐसी जगह नहीं जहाँ ऊर्जा मौजूद न हो। लेकिन एक कल्पना ज़रूर की जा सकती है कि अगर कोई ऐसी जगह हो जहाँ पर किसी भी तरह की ऊर्जा मौजूद न हो तो किस तरह की परिस्थिति सामने आ सकती है।

इस परिस्थिति को समझने के लिये एक भौतिक राशि एण्ट्रोपी (Antropy) की सहायता ली जा सकती है। किसी खास ताप पर किसी सिस्टम में जितनी ऊर्जा होती है, उस ऊर्जा को ताप से विभाजित करने पर एण्ट्रोपी मिलती है। यानि अगर किसी सिस्टम में 10 जूल एनर्जी 2 कैल्विन ताप पर मौजूद है तो उसकी एण्ट्रोपी होगी 5 जूल/कैल्विन। एक हकीकत ये भी है कि किसी खास ताप पर किसी सिस्टम की एण्ट्रोपी की गणना करना नामुमकिन है क्योंकि उस सिस्टम में जो भी इलेक्ट्रान, प्रोटान, एटम या अणु होंगे, उनकी तमाम ऊर्जा की गणना करना नामुमकिन है। इतना ज़रूर है कि सिस्टम को बाहर से कुछ ऊर्जा देने पर उसकी एण्ट्रोपी में कितना बदलाव होगा, इसे मापा जा सकता है। अब ऊष्मागतिकी (Thermodynamics) के एक नियम के अनुसार किसी सिस्टम की एण्ट्रोपी हमेशा या तो बढ़ती है या उसमें कोई बदलाव नहीं होता। सिस्टम की एण्ट्रोपी कभी कम नहीं होती। इसीलिए ये कहा जाता है कि यूनिवर्स की पैदाइश के बाद से उसकी एण्ट्रोपी लगातार बढ़ रही है।

किसी खास ताप पर एण्ट्रोपी ज़ीरो होने का मतलब हुआ कि सिस्टम में उस ताप पर कोई भी ऊर्जा मौजूद नहीं। दूसरे शब्दों में अगर उस सिस्टम में एटम है तो उसके इलेक्ट्रान नाभिक के चारों तरफ चक्कर नहीं लगा रहे होंगे। क्योंकि वहाँ गतिज ऊर्जा भी नहीं होगी। न ही प्रोटॉन आपस में बंध्कार न्यूक्लियस बना रहे होंगे और न ही क्वार्क एक दूसरे से मिलकर मूल कणों की रचना कर रहे होंगे। इसका सीधा मतलब ये निकलता है कि वहाँ पर किसी एटम का अस्तित्व ही सिरे से नहीं होगा। इन तमामतर बातों का निष्कर्ष ये हुआ कि परम अन्धकार (Absolute Darkness) एक ऐसी स्पेस लोकेशन हुई जहाँ न तो किसी तरह का पदार्थ पाया जाता है और न ही ऊर्जा। मौजूदा वक्त में यूनिवर्स के भीतर ऐसी कोई जगह नहीं है, लेकिन साइंटिफिक सुबूत बताते हैं कि यूनिवर्स के जन्म के समय ऐसी जगह मौजूद थी। जहाँ स्पेस तो था लेकिन न तो वहाँ पदार्थ था और न ही ऊर्जा। ऐसी जगह रोशनी की उत्पत्ति से भी पहले निर्मित हो चुकी थी। क्योंकि ऊर्जा न होने का मतलब यही निकलता है कि रोशनी का जन्म नहीं हुआ था।

अगर परम अन्धकार का अस्तित्व सत्य माना जाये तो इसका मतलब होगा कि पदार्थ व ऊर्जा से पहले निर्माण हुआ स्पेस व डाईमेन्शन का। यही समय था जबकि ब्रह्माण्ड में परम अन्धकार की दशा थी। फिर उसके बाद निर्माण हुआ पदार्थ व ऊर्जा का। इसमें भी ऊर्जा का निर्माण पहले हुआ। उस समय यूनिवर्स के एण्ट्रोपी शून्य थी। तब से आजतक लगातार यह एण्ट्रोपी बढ़ रही है, ऐसा साइंटिफिक रिसर्च से पता चला है। ऊष्मागतिकी का नियम भी यही कहता है कि किसी सिस्टम की एण्ट्रोपी कभी भी नहीं घट सकती। 

एक सवाल ये उठता है कि यूनिवर्स के जन्म के समय ताप कितना था? अगर ये ताप ज़ीरो माना जाये तो एण्ट्रोपी का मान ज़ीरो नहीं होगा। भले ही उस वक्त एनर्जी ज़ीरो रही हो। इसलिए क्योंकि ज़ीरो को ज़ीरो से विभाजित करने पर नतीजा ज़ीरो नहीं मिलता। बल्कि यह मान अनिर्धारित या अस्थिर होता है। बिग बैंग की मान्यता के अनुसार यह ताप अनन्त था। जो बिग बैंग के तुरन्त बाद निश्चित किन्तु अत्यधिक तापमान के रूप में परिवर्तित हो गया। 

एण्ट्रोपी का यही अस्थिर मान इन्फ्लेशनरी यूनिवर्स (Inflationary Universe) को पैदा करता है। यानि ऐसे ब्रह्माण्ड की पैदाइश करता है जो लगातार फैलता जाता है। वर्तमान खोजें भी यही दर्शाती हैं कि ब्रह्माण्ड लगातार विस्तार ले रहा है। इन्फ्लेशनरी थ्योरी के अनुसार मैटर, एण्टीमैटर और फोटॉन वैक्यूम फ्ल्क्चुएशन के ज़रिये झूठे वैक्यूम (False Vacuum) से एक कला संक्रमण (Phase Transition) के बाद पैदा हुए। ये सभी कण धनात्मक ऊर्जा रखते हैं। और इस कारण से हमेशा फैलाव की दशा में रहते हैं। हालांकि उनकी धनात्मक ऊर्जा ऋणात्मक गुरुत्वीय ऊर्जा द्वारा बैलेंस हो जाती है। इस तरह से पूरी ऊर्जा हमेशा ज़ीरो ही रहती है।

यूनिवर्स की शून्य ऊर्जा धनात्मक व ऋणात्मक ऊर्जा में कैसे बदली? यह एक बड़ा सवाल है। एनर्जी पैदा हुई ‘कुछ नहीं’ से। ये ‘कुछ नहीं’ पहले से मौजूद स्पेस टाइम का निर्वात था? या ये स्पेस टाइम भी मौजूद नहीं था। यानि ये सभी चीज़ें यूनिवर्स की पैदाइश के साथ ही पैदा हुईं? इस तरह के बहुत से सवालों पर वैज्ञानिक एकमत नहीं हैं। लेकिन अब तक मिले कई सुबूत यही कहते हैं कि ‘कुछ नहीं ’ से स्पेस टाइम की रचना हुई। उसके बाद एनर्जी और मैटर की पैदाइश हुई। एनर्जी और मैटर की पैदाइश से पहले स्पेस टाइम की वैक्यूम ही दरअसल ‘परम अन्धकार’ था।

-----उपरोक्त लेख 'इलेकट्रोंनिकी आपके लिए' के जनवरी-2012 अंक में प्रकाशित हुआ.
जीशान हैदर जैदी, लेखक.

6 comments:

Shah Nawaz said...

Behtreen jaankaari Zeeshan bhai...

Arvind Mishra said...

रोचक और जानकारीपूर्ण

शिवा said...

रोचक जानकारी के लिए धन्यवाद .

शिवा said...

रोचक जानकारी के लिए धन्यवाद .

BS Pabla said...

रोचक जानकारी

Asha Lata Saxena said...

अच्छी पोस्ट बधाई |
आशा