Sunday, January 9, 2011

कहानी - असली नकली (भाग 1 )

दैनिक मिशन के आफिस में रिपोर्टर बृजेश दाखिल हुआ। उसका चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था। वह तेजी से सम्पादक के चैम्बर की ओर बढ़ा। आसपास बैठे आफिस के कर्मचारियों ने उसकी ओर आश्चर्य से देखा। क्योंकि वह पहली बार इस प्रकार गुस्से में दिखाई दे रहा था। वह तो एक शांत प्रकृति का व्यक्ति था। दैनिक मिशन में वह पिछले दस वर्षों से कार्यरत था।

उसने सम्पादक के केबिन का दरवाजा धड़ से खोला और अंदर दाखिल हो गया। सम्पादक जो कुछ लिखने में व्यस्त था, चौंक पड़ा, और सर उठाकर उसकी ओर देखने लगा। कानों के किनारे छोड़कर उसके पूरे सर पर कोई बाल नहीं था। भवें आधी सफेद और आधी काली थीं। आयु लगभग पचास वर्ष थी।

‘‘क्या बात है बृजेश?’’ उसने पूछा।
‘‘क्या आपने आज का मिशन पढ़ा?’’ बृजेश ने तेज स्वर में पूछा।
‘‘प्रूफ रीडिंग के समय पूरा देखा था। क्यों, क्या बात है?’’
‘‘तो इसमें ये खबर भी जरूर पढ़ी होगी।’’ बृजेश ने अखबार उसके सामने रखकर एक समाचार की ओर संकेत किया। सम्पादक ने चश्मा अपनी उंगली से ऊपर खिसकाते हुए समाचार पर द्रष्टि दौड़ाई और फिर उसकी आँखें फैल गयीं।

समाचार का शीर्षक था, ‘‘दैनिक मिशन रिपोर्टर की मौत।’’ उसने आगे पढ़ा। लिखा था, ‘‘आज शाम को दैनिक मिशन के युवा रिपोर्टर बृजेश कुमार की कार दुर्घटना में मौत हो गयी। वे उस समय एक समाचार के संकलन हेतु मुरादाबाद जा रहे थे जब सामने से आते तेज रफ्तार ट्रक ने उनकी कार को टक्कर मारी। कार पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गयी और साथ ही साथ बृजेश जी भी मिशन का साथ हमेशा के लिए छोड़ गये। पूरा मिशन परिवार उनके शोक में संतप्त है।’’

सम्पादक ने एक दृष्टि समाचार पर और दूसरी दृष्टि बृजेश के चेहरे पर डाली। बृजेश कुमार तो सही सलामत उसके सामने खड़े थे। फिर यह खबर? फिर उसकी भवें रह रहकर ऊपर उठने लगीं। ऐसा तब होता था जब उसे गुस्सा आता था। उसकी उंगली घंटी के बटन पर पड़ी और वह उसे बजाता ही चला गया।

चपरासी अंदर प्रविष्ट हुआ।
‘‘मि0 लाल को अंदर भेजो।’’

‘‘मि0 बृजेश, जब मैंने प्रूफ पढ़ा तो इसमें ये समाचार नहीं था। अब मैंने मि0 लाल को इसीलिए बुलाया है क्योंकि प्रिंटिंग का सारा काम उनकी देखरेख में होता है।’’
उसी समय मि0 लाल ने अंदर प्रवेश किया।
‘‘यस सर?’’ उसने सम्पादक की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा।

‘‘मि0 लाल, इस समय मेरे सामने कुर्सी पर कौन बैठा है?’’ सम्पादक ने उनसे पूछा।
मि0 लाल ने कुर्सी की ओर देखा। उनके चेहरे पर अविश्वास के भाव उत्पन्न हुए, नथुने फड़कने लगे और मुंह से निकला, ‘‘भू----त!’’

‘‘क्या बकवास है।’’ सम्पादक दहाड़ उठा, ‘‘एक जीते जागते इंसान को तुम भूत कह रहे हो।’’
‘‘म---मैं सच कहता हूं। सर, मैंने इनकी लाश अपनी आँखों से देखी है। और आज अखबार में छप न्यूज भी मैंने स्वयं बनायी है।’’ मि0 लाल ने हकलाते हुए कहा और रूमाल से अपने चेहरे का पसीना पोंछने लगा।

‘‘आप बैठ जाईये मि0 लाल और मुझे पूरी बात बताईए।’’ इस बार सम्पादक ने नर्म स्वर में कहा।
मि0 लाल कुर्सी पर बैठ गये और बताने लगे, ‘‘कल जब मैं एक न्यूज कवर करके आ रहा था तो रास्ते में एक कार दुर्घटनाग्रस्त बुरी तरह टूटी फूटी मुझे मिली। लोग उसके आसपास इकट्‌ठा थे। जब मैं पास गया तो मैंने देखा कि वहां मि0 बृजेश खून से लथपथ पड़े हुए हैं। उनका पूरा शरीर जख्मी था, लेकिन चेहरा सही सलामत था। इसलिए मुझे पहचानने में कोई विशेष कठिनाई नहीं हुई। फिर मैंने पुलिस को फोन किया। पुलिस ने आकर जब उनका निरीक्षण किया तो साफ कहा कि वे मृत हो चुके हैं।’’

‘‘अगर वो बृजेश की लाश थी तो फिर ये कौन हैं?’’ सम्पादक ने बृजेश की ओर संकेत किया।
‘‘अब मैं क्या कहूं सर। मेरा ख्याल है आप स्वयं वह लाश देख लीजिए। वह अभी पुलिस कस्टडी में होगी।’’ मि0 लाल ने कहा।
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नोट : यह कहानी हाल ही में 'इलेक्ट्रोनिकी आपके लिए' के जनवरी 2011 के अंक में प्रकाशित हुई है. 

2 comments:

अभिषेक मिश्र said...
This comment has been removed by the author.
अभिषेक मिश्र said...

कहानी में शुरुआत से ही उत्सुकता जग गई है. नववर्ष में नई कहानी छपने की बधाई भी.