Saturday, October 9, 2010

कहानी : बचाने वाला! (भाग - 2)

होटल पैराडाइज़ के एक कमरे में भारतीय वैज्ञानिक प्रोफेसर भटनागर का निवास था। प्रोफेसर भटनागर अभी अभी सेमिनार में शामिल होकर आये थे। दूसरे वैज्ञानिकों की तरह इनके मस्तक पर भी चिंता की रेखायें साफ दिख रहीं थीं। कमरे में पहुँचकर वे एक कुर्सी पर बैठ गये और कुछ सोचने लगे।

अचानक उनकी नज़र दायीं ओर रखी कुर्सियों पर पड़ी और वे चौंक उठे। क्योंकि उनमें से दो कुर्सियों से रौशनी फूट रही थी। अजीब तरह की रौशनी थी। लगता था जैसे रौशनी को इन्सानी जिस्म में ढालकर कुर्सी पर रख दिया गया है।

‘‘यह क्या है ?’’ आश्चर्य के साथ उनके मुँह से निकला। उन्होंने देखा कि कुर्सियों के प्रकाश पुंज हिल डुल रहे थे। लेकिन उनका आकार नहीं बिगड़ रहा था। लगता था कुर्सी पर बैठे मानव हिल डुल रहे हों।

वैज्ञानिक होने के नाते प्रोफेसर भटनागर भूत प्रेतों को नहीं मानते थे। पहले तो उन्होंने उसे अपनी आँखों का भ्रम समझा लेकिन जब रौशनी का दायरा काफी देर तक स्थिर रहा तो वे सच्चाई जानने के लिये कुर्सियों की तरफ बढ़े। उसी वक्त उन्हें लगा कि कोई उन्हें पुकार रहा है।  ‘‘ प्रोफेसर भटनागर !’’

वे चौंक कर इधर उधर देखने लगे, लेकिन आसपास कोई नहीं था। कमरे में पूरी तरह सन्नाटा छाया था। लेकिन तभी फिर किसी ने उन्हें सम्बोधित किया। इस समय उन्हें आभास हुआ कि यह आवाज़ उनके मस्तिष्क में गूंजी थी।

‘‘यह आवाज़ कैसी है ?’’ वे बड़बड़ाये।
‘‘यह मैं बोल रहा हूँ। जिसे तुम कुर्सियों पर बैठा देख रहे हो।’’ आवाज़ ने कहा।

‘‘कुर्सियों पर ?लेकिन कुर्सियों पर तो सिर्फ रौशनी का दायरा है ?’’ प्रोफेसर भटनागर आश्चर्य से बोले।
‘‘वह रौशनी का दायरा नहीं है, बल्कि मेरा प्रक्षेप्य है। और उसी के माध्यम से मैं तुमसे बात कर रहा हूँ ?’’

‘‘लेकिन तुम कौन हो ?’’ प्रो0 भटनागर ने पूछा।
‘‘मैं भी इसी पृथ्वी का प्राणी हूँ। किन्तु ऐसा प्राणी जिसे पृथ्वी के किसी भाग में नहीं खोजा जा सकता। दरअसल मैं इस युग का नहीं हूँ।’’

‘‘क्या मतलब ?मैं समझा नहीं।’’ प्रो0 भटनागर बोले।
‘‘मैं पूरी बात बताता हूँ। बात यह है कि मैं भविष्य से आया हूँ अर्थात तुम्हारे समय से डेढ़ हज़ार वर्षो बाद मेरा जन्म हुआ है और मैं समय यात्री हूँ।’’ उसने कहा।

‘‘तुम्हारा मतलब है कि तुम इस समय से डेढ़ हज़ार वर्ष बाद के प्राणी हो।’’ 
‘‘हाँ ! तुम्हारे समय में भी टाइम मशीन बनाने की कोशिश की जा रही है। जिसके द्वारा इस युग के वैज्ञानिक भविष्य तथा भूतकाल की यात्रा करने की सोच रहे हैं। तुम यह समझ लो कि हमारे युग में टाइम मशीन का आविष्कार किया जा चुका है और उसके द्वारा हम भूतकाल की यात्रायें भी कर सकते हैं। जैसा कि इस समय हम मौजूद हैं।’’

‘‘लेकिन तुम कहाँ से बोल रहे हो? सामने क्यों नहीं आते।‘‘ प्रो0 भटनागर ने पूछा।
‘‘मैं तुम्हारे सामने नहीं आ सकता। क्योंकि मेरा वास्तविक शरीर तुम्हारे युग से लगभग डेढ़ वर्ष भविष्य में है। वास्तव में मेरे युग में जो टाइम मशीन बनाई गयी है उसके द्वारा वास्तविक शरीर समय की यात्रा नहीं कर सकता। बल्कि केवल उसका प्रकाशीय प्रतिविम्ब ही समय यात्री बन सकता है। इस समय वही प्रतिविम्ब तुम्हारे सामने कुर्सियों पर उपस्थित है। ये प्रतिविम्ब मेरे व मेरे साथी के हैं।"
‘‘अब ये सब बातें छोड़ो ! तुम यह ज़रूर जानना चाहोगे कि मैंने तुमसे क्यों सम्पर्क स्थापित किया। क्योंकि इससे पहले भी हम समय यात्री रहे हैं किन्तु किसी प्राचीन मनुष्य से यह हमारा पहला सम्पर्क है।’’ उस अज्ञात व्यक्ति ने कहा।

‘‘हाँ। मैं यह ज़रूर जानना चाहूँगा कि तुमने मुझसे क्यों सम्पर्क स्थापित किया।’’ प्रो0 भटनागर ने पूछा। अब उनके चेहरे पर विस्मय की रेखायें नहीं थीं।

समय यात्री ने जवाब में कहा, ‘‘तुमसे सम्पर्क स्थापित करने का कारण वह समस्या है जो तुम्हारे काल में पूरी पृथ्वी के सामने विकराल रूप में खड़ी है, अर्थात कोमेटिव की पृथ्वी से टक्कर। जिसके बाद पृथ्वी नष्ट हो जायेगी। यह समस्या हमारे लिये भी गंभीर है, क्योंकि यदि यह टक्कर हो गयी तो सम्पूर्ण पृथ्वी का जीवन नष्ट हो जायेगा और फिर हम लोग भी पैदा नहीं हो सकेंगे। इसीलिये इस समस्या का हल अति आवश्यक है।’’
‘‘क्या तुम लोंगो के पास इस समस्या का कोई हल है ?’’ प्रो0 भटनागर ने पूछा।




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