Friday, December 18, 2009

प्लैटिनम की खोज - प्लैटिनम जुबली एपिसोड : 75


‘‘बस। अब आगे आप लोगों को अकेले जाना होगा। क्योंकि भूतों के डर से हम आगे नहीं जाते। अपने साथियों को भी हम यहीं छोड़कर चले जाते हैं। आगे जाने के लिए वह रही पगडंडी।’’ कोचवान ने आगे की ओर संकेत किया।
‘‘ठीक है। हम यहीं उतर जाते हैं। किन्तु रामसिंह का क्या किया जाये? यह तो सो रहा है।’’ प्रोफेसर ने ठंडी सांस लेकर कहा।

‘‘इसे उठाकर उतार लेते हैं। वरना जागने पर यह फिर शोर मचाने लगेगा।’’ शमशेर सिंह बोला। फिर दोनों ने यही किया।
कोचवान उन्हें वहीं छोड़कर गाड़ी सहित वापस मुड़ गया।
‘‘क्या विचार है? आगे बढ़ा जाये?’’ प्रोफेसर ने पूछा।

‘‘पागल मत बनो। आगे क्या भूतों से कुश्ती लड़ने जाओगे।’’ शमशेर सिंह ने तुरन्त प्रोफेसर की कमीज पकड़ ली।
‘‘किन्तु रामसिंह के इलाज के लिए वहां जाना आवश्यक है। मेरा विचार है कि वे भूत पागलों के डाक्टर हैं।’’

‘‘तो फिर जब रामसिंह जागेगा तो इसे वहां अकेले भेज देंगे।’’ शमशेर सिंह ने समझाया। तभी प्रोफेसर ने उसे चुप रहने का संकेत किया और कान खड़े करके कुछ सुनने लगा।
‘‘तुमने कुछ सुना?’’ उसने शमशेर सिंह को संबोधित किया।
‘‘क्या?’’

‘‘यह किसी ट्रक की आवाज थी, और यह सामने से आयी थी।’’
‘‘भला यहां ट्रक कहां से आ गया?’’ शमशेर सिंह ने विस्मय से कहा।

‘‘सरदार ने यही कहा था कि यह जंगल का छोर है। अब मुझे कोचवान की बातें कुछ कुछ समझ में आ रही हैं।’’
‘‘क्या मतलब?’’

‘‘उसने जिस काली पट्‌टी का उल्लेख किया है वह तारकोल की सड़क होगी। इन जंगलियों ने ट्रक इत्यादि देखे होंगे जिन्हें अजीब प्रकार की गाड़ियां कहकर संबोधित किया गया। मुझे लगता है यहां भूत वूत कुछ नहीं हैं बल्कि हम अपनी सभ्य दुनिया में वापस आ गये हैं।’’
‘‘मुझे भी यही लगता है। चलो हम लोग आगे बढ़ते हैं।’’ शमशेर सिंह ने खुश होकर कहा।

‘‘ठीक है। रामसिंह को कंधे पर लादकर आगे बढ़ते हैं।’’ प्रोफेसर ने रामसिंह को उठाने का प्रयत्न किया। उसी समय रामसिंह की आँख खुल गयी।
‘‘मैं कहां हूं? और मेरा सर क्यों चकरा रहा है?’’ वह अपना सर पकड़कर उकड़ूं बैठ गया।
‘‘तुम दोस्तों के बीच हो और हम लोग जंगलियों की बस्ती से भाग कर दूर निकल आये हैं।’’ प्रोफेसर ने बताया।

‘‘क्या?’’ रामसिंह उठकर खड़ा हो गया, ‘‘और मेरी मोली का क्या हुआ?’’
‘‘मेरा विचार है कि मोली अपने कबीले में इस समय भोजन बना रही होगी। क्योंकि रात होने वाली है।’’

‘‘तुम लोग बिना मुझसे पूछे बस्ती से दूर निकल आये। अब मेरे उन वादों का क्या होगा जो मैंने मोली से किये थे।’’ रामसिंह क्रोधित स्वर में बोला।
‘‘वह वादे कोई और पूरा कर देगा। भला देवताओं का प्रेम से क्या सम्बन्ध ’’शमशेर सिंह बोला, ‘‘अब आगे बढ़ो, फिर मालूम होगा कि वहां क्या है।’’

‘‘तुम लोग आगे बढ़ो। मैं मोली के पास वापस जा रहा हूं। मेरे बिना उसे चैन नहीं लग रहा होगा।’’ रामसिंह मुड़कर वापस जाने लगा, किन्तु प्रोफेसर ने उसकी टाँग पकड़ ली। फलस्वरूप वह मुंह के बल जमीन पर चला आया।
‘‘शहर में अनेकों लड़कियां मिल जायेंगी। फिर मोली ही क्यों। तुम वापस चलो। मैं दस लड़कियों से एक साथ तुम्हारा प्रेम करवा दूंगा।’’ प्रोफेसर उसे समझाते हुए बोला।

‘‘मुझे दस लड़कियां नहीं चाहिए। मुझे तो केवल मोली चाहिए।’’ रामसिंह ने भी जिद पकड़ ली थी।
‘‘ठीक है। तो जाओ वापस।’’ प्रोफेसर झल्लाकर बोला, ‘‘किन्तु वहां तक जाओगे कैसे। वह बस्ती तो बीसियों मील पीछे छूट चुकी है। अब तो उसका पता भी नहीं लगेगा। और अगर कहीं आदमखोर कबीले वाले मिल गये तो मोली क्या तुम्हारा पता भी नहीं लगेगा।’’

रामसिंह बेबसी से होंठ काटने लगा। किन्तु अब वह ढीला पड़ गया।
फिर वह प्रोफेसर इत्यादि के साथ आगे बढ़ने पर तैयार हो गया।
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जैसे ही वे लोग पेड़ों के झुरमुट और झाड़ियों की लम्बाई फांदकर आगे बढ़े, उनके चेहरे ख़ुशी के कारण चमकने लगे। सामने एक लम्बा चौड़ा तालाब दिखाई दे रहा था। किन्तु उनकी खुशी का कारण वह तालाब नहीं बल्कि तालाब के दूसरी ओर दिखाई देने वाली पक्की सड़क थी।

1 comment:

Arvind Mishra said...

मोली का मोल तो सचमुच बड़ा हो जाता !