Friday, October 9, 2009

प्लैटिनम की खोज - एपिसोड : 39

‘‘प्रोफेसर, ये जंगली हमें नीचे उतरने के लिए कह रहे हैं।’’ रामसिंह ने एक ओर संकेत किया जहा खड़े कुछ जंगली उन्हें नीचे उतरने का संकेत कर रहे थे।
‘‘अभी उतरते हैं। पहले थोड़ा सम्मान करवा लें। जब ये जंगली इस डायनासोर को सम्मान दे रहे हैं तो मुझे लग रहा है कि ये हमें ही सम्मान दे रहे हैं।’’

‘‘ये क्या बात हुई? ये जानवर जंगलियों का चूंकि देवता है इसलिए इसके सामने ये लोग लेट कर प्रणाम कर रहे हैं। भला तुझे क्यों सम्मान देने लगे ये लोग?’’
‘‘बहुत सीधी सी बात है ये तो। अगर प्रधानमन्त्री की कुर्सी पर किसी गंवार को बिठा दिया जाये तो लोग उसका आदर करने लगते हैं। ठीक इसी प्रकार हम भी चूंकि देवता की पीठ पर बैठे हैं इसलिए देवता वाले आदर के योग्य हो गये।’’ प्रोफेसर ने अपनी थ्योरी समझाई।

‘‘अब यहां अपनी फिलास्फी मत बघारो और जल्दी से नीचे उतरो। मुझे इनमें से कुछ के तेवर खतरनाक लग रहे हैं।’’ रामसिंह बोला और फिर दोनों डायनासोर की पीठ से फिसलते हुए नीचे आ गये। उनके नीचे उतरते ही जंगलियों ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया। और नाचने कूदने लगे।

‘‘प--प्रोफेसर, मुझे ये जंगली पूरी तरह आदमखोर लग रहे हैं। आदमियों को खाने वाले।’’ रामसिंह कापते हुए बोला।
‘‘ये बात तुमने पहले क्यों नहीं बताई? वरना हम नीचे न उतरते।’’ प्रोफेसर को भी ध्यान आ गया और वह दो तीन कदम पीछे हट गया।

अचानक वे जंगली नाचना कूदना छोड़कर ठहर गये और सीने पर हाथ रखकर दोनों के सामने झुक गये।
‘‘देखा! मैं पहले ही कह रहा था कि ये जंगली हमें आदर देंगे। मुझे जंगलियों के बीच रहने का ---मेरा मतलब जंगलियों के बारे में काफी तजुर्बा है।’’ प्रोफेसर ने अकड़ कर कहा।

अब एक जंगली ने अपनी भाषा में प्रोफेसर तथा रामसिंह को संबोधित किया, ‘‘देवता पुत्रों, यह हमारा सौभाग्य है कि आपने हमें दर्शन दिये। हम चिंतित थे कि देवता की मृत्यु के बाद हमारी पीढ़ियां किसकी आराधना करेंगी। किन्तु अब हमें कोई चिंता नहीं। अब तो दो दो भविष्य के देवता हमारे सामने खड़े हैं।’’ उसने एक नारा लगाया और बाकी के जंगलियों ने उसका अनुसरण किया।

‘‘किन्तु ये तो दो पैरों पर खड़े हैं जबकि हमारे देवता तो चार पैरों पर चलते हैं।’’ एक ने एतराज़ किया।
‘‘अभी ये लोग छोटे हैं मूर्ख। बड़े होने पर अपने आप चार पैरों पर चलना सीख जायेंगे.’’ उस जंगली ने कहा जो शायद उनका कमाण्डर था।

‘‘ये उन्होंने हाथ में क्या पकड़ रखा है?’’ दूसरे जंगली ने सूटकेस की ओर संकेत किया।
‘‘ये उपहार हैं। यदि देवता पुत्र हमसे खुश हो गये तो ये उपहार हमें दे देंगे।’’

उधर रामसिंह ने प्रोफेसर से कहा, ‘‘मैं तो कहता हूं कि सूटकेस से पिस्तौलें निकालकर जल्दी से दो तीन फायर करते हैं और फिर यहां से भाग चलते हैं। पता नहीं ये जंगली क्या करने वाले हैं’’

1 comment:

seema gupta said...

अगर प्रधानमन्त्री की कुर्सी पर किसी गंवार को बिठा दिया जाये तो लोग उसका आदर करने लगते हैं। ठीक इसी प्रकार हम भी चूंकि देवता की पीठ पर बैठे हैं इसलिए देवता वाले आदर के योग्य हो गये।’’ प्रोफेसर ने अपनी थ्योरी समझाई।
हा हा हा हा हा हा हा हा मजेदार.....
regards