Wednesday, September 16, 2009

प्लैटिनम की खोज - एपिसोड : 28

‘‘इसके लिए तो मुझे एक और एक्सपेरीमेन्ट करना पड़ेगा। अच्छा अब इसे छोड़ो। हा तो मैं वैज्ञानिक की पहचान बता रहा था। वैज्ञानिक समस्या हल करने में इतना लीन हो जाता है कि उसे खाने पीने की भी होश नहीं रहता। उसे इतना ध्यान नहीं रहता कि उसने नाश्ते में क्या खाया था या लंच में क्या लिया था।’’
‘‘तो परसों जब तुमने मुझे डिनर पर बुलाया था उस समय शायद कोई समस्या हल कर रहे थे।’’

‘‘क्यों क्या हुआ था उस समय?’’ प्रोफेसर ने चौंक कर पूछा।
‘‘उस समय तुम्हारे सामने मेंढक की कच्ची टाग रखी थी। जिसे तुम पूरा निगल गये थे एक ही बार में।’’
प्रोफेसर ने इस प्रकार मुंह बनाया मानो उल्टी होने वाली है और फिर वास्तव में उसने मुंह घुमा कर काफी कुछ उगल दिया।
‘‘मैं तो समझ रहा था कि मैं मुर्गे की टाग खा रहा हूं। जो उस दिन पकी थी। मेंढक की टाग तो मैंने एक्सपेरीमेन्ट के लिए रखी थी।’’

वे लोग चलते चलते काफी दूर निकल आये थे। रामंसह ने पीछे मुड़कर देखा, ‘‘अरे, शमशेर सिंह कहां गया?’’
प्रोफेसर ने पीछे मुड़कर देखा, ‘‘हां, लगता है वह पीछे रह गया। यहीं रुककर उसकी प्रतीक्षा कर लेते हैं।’’
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शमशेर सिंह प्लेटिनम की खोज में काफी सरगर्मी दिखा रहा था। इस समय वह एक झाड़ी में घुसा पत्ते हटा हटाकर हर स्थान का बारीकी से अध्ययन कर रहा था।
‘‘आखिर कहां मिल सकता है प्लेटिनम?’’ वह बड़बड़ाया। फिर उसकी दृटि सामने पड़े भारी भरकम पत्थर पर गयी और यह सोचकर कि उसके नीचे शायद कुछ मिले , वह पत्थर हटाने का प्रयत्न करने लगा।

‘‘बड़ा भारी पत्थर है। रामसिंह, आकर थोड़ी सहायता करो।’’ जोर लगाते हुए उसने रामंसह को पुकारा किन्तु कोई जवाब न मिला।
वह अकेला ही पत्थर हटाने का प्रयत्न करता रहा। फिर उसे सफलता मिल गयी और पत्थर अपने स्थान से खिसक गया। किन्तु तुरंत शमशेर सिंह को दूर हट जाना पड़ा क्योंकि नीचे से चीटियों का पूरा झुण्ड निकलकर उसपर हमला कर बैठा था। और तेजी से उसके पैरों को अपना निशाना बनाया था।शायद वे अपना घर टूटने के कारण शमशेर सिंह पर क्रोधित हो गयी थीं।

‘‘अबे बे ये क्या। चल हट।’’ पैर झटकता हुआ वह इस प्रकार बोल रहा था मानो वे चीटियां न होकर भेड़ बकरियां हैं। अपने पैरों पर से चीटियों को हटाने के बाद वह आगे बढ़ा।
‘‘पता नहीं उस कंपनी ने हमें किस मुसीबत में फंसा दिया। मुझे क्या मालूम था कि यह इतना कठिन होगा। मैंने तो सोचा था कि किसी गड्‌ढे में पड़ा मिल जायेगा। हम लोग थोड़ा सा बटोरकर लाकर दे देंगे। ये रामंसह वगैरा किधर निकल गये।’’ वह चौंककर बोला और इधर उधर देखने लगा। फिर उसे एक ओर की झाड़ी थोड़ी हिलती दिखाई दी।

‘‘तो उधर हैं वे लोग। मेरे पुकारने का उत्तर भी नहीं दे रहे हैं।’’ वह झाड़ी की ओर बढ़ा। और पत्तियां हटाकर आगे बढ़ने लगा।

किन्तु दूसरी ओर निकलते ही उसके होश उड़ गये। सामने एक जंगली भैंसा खड़ा गुस्सैल दृटि से उसकी ओर घूर रहा था। उसे सुबह की सैर और घास सेवन के समय यह मोटा व्यवधान शायद काफी नागवार गुज़रा था अत: वह एक हुंकार लेकर शमशेर सिंह की ओर बढ़ा।

1 comment:

seema gupta said...

आगे का इन्तजार ...

regards