Saturday, September 12, 2009

प्लैटिनम की खोज - एपिसोड : 26

‘‘क्या प्लेटिनम मिल गया?’’ रामसिंह और शमशेर सिंह उसकी ओर दौडे। पास पहुंचने में उन्होंने उसके हाथ में मरी हुई बिल्ली देखी जिसे उसने पूंछ से पकड़कर लटका रखा था। उससे आती तीव्र दुर्गन्ध ने दोनों को अपनी नाक बन्द करने पर मजबूर कर दिया।
‘‘क्या इस मरी बिल्ली के अंदर प्लेटिनम है?’’ रामसिंह ने बुरा सा मुंह बनाकर पूछा।

‘‘नहीं। बल्कि उससे भी अधिक कीमती आईडिया मुझे मिला है। एक फिलास्फरी आईडिया।’’
‘‘तो यह बिल्ली दूर फेंककर हमें भी वह आईडिया बता दो।’’

‘‘तो सुनो। एक बिल्ली मरती है, फिर उसमें से दुर्गन्ध आती है और काफी दिनों बाद उसका केवल अस्थि पंजर शेष रह जाता है। इसी प्रकार जब भ्रष्टाचार, अपराध् जैसी मौतें समाज को प्राप्त होती हैं तो उसमें से हड़ताल, गरीबी, अकाल और महामारी की दुर्गन्ध फैलती है। फिर काफी दिन बाद केवल मरे दिलवालों के रूप में समाज का अस्थिपंजर शेष रह जाता है।’’ प्रोफेसर बिल्ली की ओर एकटक घूर रहा था।

रामसिंह ने शमशेर सिंह की ओर देखकर उंगली से अपनी कनपटी की ओर संकेत किया। शमशेर सिंह ने आगे बढ़कर प्रोफेसर के हाथ से बिल्ली लेकर दूर फेंकी और बोला, ‘‘प्रोफेसर, मेरा विचार है कि अपना फिलास्फरी आईडिया किसी किताब में छपवा देना। इस समय तो प्लेटिनम की खोज जल्दी से करो। क्योंकि हमे वापस भी जाना है।’’

‘‘वैज्ञानिक खोज इतनी आसानी से नहीं होती।’’ प्रोफेसर बोला, ‘‘लोग बीसों साल जुटे रहते हैं तब कभी कभी कामयाबी मिल जाती है। तुम लोग कोशिश करते रहो।’’
रामसिंह और शमशेर सिंह फिर से कोशिश करने लगे।

‘‘रामसिंह तुम इध्रा आओ।’’ प्रोफेसर ने बुलाया।
‘‘क्या बात है प्रोफेसर?’’ रामसिंह ने पास आकर पूछा।
‘‘मुझे अभी अभी ध्यान आया है कि तुम्हें यहां मेरा असिस्टेंट बनाकर भेजा गया है। इसलिए तुम्हें मेरे साथ ही रहना चाहिए।’’
‘‘साथ में तो हूं।’’

‘‘साथ से मतलब तुम्हें मेरे साथ साथ चलना चाहिए। जिधर मैं जाऊंगा, उधर ही तुम भी जाओगे और मेरा हाथ बँटाओगे।’’
‘‘तो मुझे बताईए प्रोफेसर साहब, मैं किस आपका हाथ बँटा सकता हूं?’’ उसने पूछा।

‘‘इस प्रकार।’’ प्रोफेसर ने हाथ में पकड़ा मैग्नीफाइंग ग्लास उसकी तरफ बढ़ा दिया और रामसिंह एक आँख बन्द करके उसमें से झांकने लगा।
‘‘ऐसे नहीं। तुम शीशा भूमि के पास करो। मैं उसमें से देखकर भूमि का निरीक्षण करूंगा।’’ प्रोफेसर ने कहा। इस प्रकार अब रामसिंह झुककर प्रोफेसर को शीशा दिखा रहा था और प्रोफेसर उसमें से भूमि का निरीक्षण कर रहा था।

‘‘यह अच्छा हुआ कि तुम्हें मेरा असिस्टेंट बना दिया गया। अब मैं तुम्हें वैज्ञानिक बना दूंगा। ताकि मेरे बाद तुम मेरे अनुसंधान को आगे बढ़ा सको।’’ प्रोफसर ने कहा और रामसिंह की जान निकल गयी। क्योंकि उसे मालूम था कि उसे वैज्ञानिक बनाने में तो प्रोफेसर को सफलता नहीं मिलेगी, हां उसकी मिट्‌टी जरूर पलीद हो जायेगी।

प्रोफसर, मेरा विचार है कि मैं असिस्टेंट बनकर ही ठीक हूं। वैज्ञानिक बनकर क्या करूंगा।’’
"यही तो आजकल के लड़कों की कमी है। दिमाग तो अपना इस्तेमाल ही नहीं करना चाहते। सोचते हैं कि बिना कुछ किये उन्हें सफलता मिल जाये। किन्तु मैं भी प्राफेसर डेव हूं। अगर तुम सीधे तरीके से तैयार नहीं हुए तो मैं टेढ़ा रास्ता अपनाऊंगा।’’ प्रोफेसर ने झाड़ पिलायी जिसे रामसिंह ने सर झुकाकर पी लिया।