Wednesday, September 9, 2009

प्लैटिनम की खोज - एपिसोड : 24

अगले दिन सुबह सबसे पहले रामसिंह की आँख खुली। और वह शमशेर सिंह को जगाने के लिए झिंझोड़ने लगा।
‘‘मैं तो स्कूटर लूंगा।’’ शमशेर सिंह बड़बड़ाया और करवट बदल ली।
‘‘अबे ओ कद्दू की औलाद। इस वीराने में मैं स्कूटर कहाँ से दूं लाकर।’’ रामसिंह ने उसके गाल पर एक थप्पड़ लगाया और वह हड़बड़ा कर उठ बैठा।
‘‘क्या हुआ? वे लोग कहां गये?’’ उसने हवन्नक होकर पूछा।
‘‘कौन लोग?’’ रामसिंह ने आश्चर्य से पूछा।
‘‘ओह तो मैं सपना देख रहा था कि मेरी शादी हो रही है और मैं दहेज में स्कूटर मांग रहा हूं।’’ उसने आँखें मलते हुए कहा।

रामसिंह अब प्रोफेसर की ओर जाकर उसे जगाने लगा। कुछ देर कसमसाने के बाद उसने आँखें खोल दीं और रामसिंह को घूरने लगा।
‘‘सारा मामला चौपट कर दिया। मैं एक फार्मूला तैयार कर रहा था यदि पूरा हो जाता तो पूरी दुनिया में तहलका मच जाता।’’
‘‘तो अधूरा फार्मूला कहां है ?’’ रामसिंह ने पूछा।
‘‘सब गायब हो गया सपने में अच्छा खासा बन गया था।’’ प्रोफेसर ने हाथ मलते हुए कहा।

‘‘फिर बना लेना अभी तो एल्यूमिनियम की खोज करनी है।’’
‘‘एल्यूमिनियम नहीं प्लेटिनम।’’ प्रोफेसर ने रामसिंह की बात में संशोधन किया।
‘‘ठीक है। अब जल्दी से बाहर निकलने की तैयार करो।’’ शमशेर सिंह बोला।

फिर कुछ देर बाद वे नाश्ते इत्यादि से निपट कर बाहर निकल रहे थे।

‘‘किधर चलने का इरादा है प्रोफेसर?’’ शमशेर सिंह ने पूछा।
‘‘मेरा विचार है कि जंगल की ओर बढ़ते हैं। प्लेटिनम मिलने की अधिक संभावना वहीं है। प्रोफेसर ने कहा।
‘‘वहां शेर चीतों के भी अधिक मिलने की संभावना है।’’ रामंसंह बोला।
‘‘देखा जायेगा। खतरा तो मोल लेना ही पड़ेगा।’’ फिर उनमें यही तय पाया कि जंगल की ओर प्रस्थान करना चाहिए। और वे लोग आगे कदम बढ़ाने लगे।

अब हल्की हल्की धूप फैलने लगी थी। किन्तु अभी उसमें गर्मी नहीं आयी थी।
चलते चलते रामसिंह बोला, ‘‘मेरी अभी तक समझ में नहीं आया कि वह झोंपड़ी है किसकी?’’
‘‘कौन सी झोंपड़ी?’’ शमशेर सिंह ने पूछा।
‘‘वही जिसमें हमने रात बिताई है।’’
‘‘होगी किसी मनुष्य की।’’

‘‘वह तो मुझे भी मालूम है कि जानवर झोंपड़ी नहीं बनाते। किन्तु किस मनुष्य की? क्योंकि यहां दूर दूर तक हमारे अलावा किसी मानव का पता नहीं है।’’ रामसिंह बोला।
‘‘मेरा विचार है कि उसका मालिक शहर गया होगा।’’ प्रोफेसर बोला।
‘‘किन्तु इस सुनसान स्थान पर उसे झोंपड़ी बनाने की क्या आवश्यक्ता पड़ी? मुझे तो कुछ दाल में काला लगता है।’’

‘‘आखिर इसमें दाल काली होने की क्या बात है?’’ शमशेर सिंह ने पूछा।
‘‘मैंने सुना है कि इस इलाके में डाकू बहुत पाये जाते हैं। हो न हो ये किसी डाकू का निवास है।’’ रामसिंंह ने अपनी शंका प्रकट की।

2 comments:

Arvind Mishra said...

बढियां चल रहा है -साइंस फिक्शन इन इंडिया में विष्णु प्रसाद की नयी किताब की समीक्षा देखिये !

seema gupta said...

रोचक ....आगे का इन्तजार

regards