Sunday, September 6, 2009

प्लैटिनम की खोज - एपिसोड : 22

‘‘मुझे तो भूख लग रही है।’’ शमशेर सिंह बोला।

प्रोफेसर ने अपनी जेब से कुछ निकाला और शमशेर सिंह को थमा दिया, ‘‘ये खा लो।’’

‘‘ये क्या है?’’ अपने हाथ पर रखी गोली को देखते हुए शमशेर सिंह ने पूछा।

‘‘इस गोली को खाने से भूख मिट जाती है। इसका आविष्कार मैंने किया है।’’ प्रोफेसर ने गर्व से कहा।

शमशेर सिंह ने वह गोली मुंह में रखी किन्तु अगले ही पल एक उबकाई लेकर उसे थूक दिया और बुरा सा मुंह बनाकर बोला, ‘‘इसमें क्या था प्रोफेसर? बड़ी कड़वी है।’’

‘‘कड़वी तो होगी। क्योंकि मैंने इसे नीम के पत्तों को पीसकर उसमें कुनैन की गोली पीसकर मिलाकर बनाया था।’’

‘‘भला नीम के पत्तों से भूख कैसे मिट सकती है?’’ रामंसह ने पूछा।

‘‘जब नीम के पत्तों से पेट के कीड़े मर सकते हैं तो भूख क्यों नहीं मर सकती। उसे और असरदार बनाने के लिए मैंने उसमें कुनैन की गोली भी मिला दी थी।’’

उसी समय रामसिंह की दृष्टि एक कोने में पड़ी और वह चीख पड़ा, ‘‘वह देखो, वह रहा रेस्ट हाउस।’’

‘‘कहाँ?’’ दोनों ने चौंक कर पूछा। रामसिंह ने उंगली से एक ओर संकेत किया।

‘‘हां, लग तो रहा है कि कोई मकान बना है।’’ प्रोफेसर बोला। चट्‌टानों के कारण स्पष्ट नहीं दिख रहा था।

‘‘मुझे तो कोई झोंपड़ी लग रही है।’’ शमशेर सिंह बोला।

‘‘चलो पास जाने पर मालूम हो जायेगा।’’

‘‘अच्छा हुआ कि रेस्ट हाउस जल्दी मिल गया वरना मुझे तो इतनी भूख लगी थी कि मैं वापस घर जाने की सोचने लगा था।’’ शमशेर सिंह बोला।
‘‘तो क्या अब रेस्ट हाउस खाकर अपनी भूख मिटाओगे?’’ रामसिंह ने बनावटी आश्चर्य से पूछा।
‘‘नहीं। बल्कि वहाँ के किचन से चाकू लेकर पहले तुम्हारी गर्दन काटूंगा, फिर रामसिंह मुसल्लम पकाकर खाऊंगा।’’ शमशेर सिंह ने रामसिंह की गर्दन पकड़कर कहा।

‘‘जरूर खाना। किन्तु सुबह जब पेट पकड़कर मैदान में दौड़ लगाओगे तो मुझसे शिकायत न करना।’’ रामसिंह पलट कर बोला।
‘‘तुम लोग चुप रहो। मैं देखना चाहता हूं कि वह रेस्ट हाउस है या झोंपड़ी।’’ प्रोफेसर बोला।
‘‘तो क्या तुम कानों से देखते हो प्रोफेसर?’’ शमशेर सिंह ने पूछा।
‘‘शायद प्रोफेसर ने यह आविष्कार भी कर लिया है। कानों से देखने का।’’

प्रोफेसर ने आँखों पर हाथ का छज्जा बनाकर सामने देखा और बोला, ‘‘इतनी दूर से तो कुछ साफ दिखाई नहीं दे रहा है।’’
‘‘वहां तक चलते हैं। पता लग जायेगा कि वह क्या चीज है।’’ रामसिंह बोला।-------