Sunday, February 22, 2009

विज्ञान कथा - अवतार (1)

विज्ञान कथा के जून - २००७ अंक में प्रकाशित

"बाबा त्यागराज की जय!"
"बाबा त्यागराज सिद्ध पुरूष हैं."
"ऐसे चमत्कारी लोग युगों बाद पैदा होते हैं."
जितने मुंह उतनी बातें. हर व्यक्ति बाबा त्यागराज का गुणगान कर रहा था. लोग उनका चमत्कार देखकर उनके प्रताप का लोहा मान चुके थे. कोई उन्हें भगवान् का अवतार मान रहा था तो कोई महान साधक, जिसने अपनी तपस्या के बल पर भूख प्यास सभी पर विजय प्राप्त कर ली थी. इसे चमत्कार नहीं तो और क्या कहा जायेगा कि बाबा त्यागराज पिछले छः महीनों से मात्र सूर्ये के प्रकाश का सेवन करके जिंदा थे. छः महीनों से तो उन्हें दुनिया देख रही थी. वरना बाबा त्यागराज का तो कहना था कि उन्हें बचपन से भगवान् का वरदान प्राप्त है जिसकी वजह से उन्हें न तो खाने की ज़रूरत थी और न पानी की. वे तो हमेशा से बस सूर्ये का प्रकाश खाकर और हवा पीकर जिंदा थे.

पूरी दुनिया उनके इस चमत्कार पर दंग थी. पिछले छः महीनों से उनकी एक एक हरकत पर नज़र रखी जा रही थी. वैज्ञानिकों का एक दल उनके शरीर के क्रियाकलापों पर नज़र रख रहा था. लेकिन किसी को बाबा के दावे में कहीं से कोई झोल नज़र नहीं आया. अंत में वैज्ञानिकों समेत सभी ने यह मान लिया की बाबा त्यागराज अपने दावे में शत प्रतिशत सच्चे थे.

उन्हें वास्तव में जीवित रहने के लिए न हवा की ज़रूरत थी, न पानी की.
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आज प्रगति मैदान में तिल रखने की जगह न थी. क्योंकि वहां कुछ ही क्षणों बाद बाबा त्यागराज का प्रवचन शुरू होने वाला था. दूर दूर से लोग उनके इस प्रवचन को सुनने के लिए आये हुए थे.
बाबा त्यागराज ने बोलना शुरू किया, "बंधुओं, इस दुनिया में लोग अलग अलग धर्मों को मानते हैं, किंतु वास्तविकता यह है की हमारे धर्म को छोड़कर और कोई धर्म सच्चा नहीं. इसलिए आप लोगों से मेरा अनुरोध है और मेरे शिष्यों को मेरा आदेश है की दूसरे धर्म वालों का अपने धर्म में स्थानान्तरण कराया जाए. और जो लोग इससे इनकार करें उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाए. ऐसा मेरे भगवान् का आदेश है."
चमत्कारी बाबा त्यागराज की आज्ञा सर्वोपरि थी. हर आदमी उन्हें भगवान् का अवतार मान रहा था. नतीजे में वहां मौजूद लोगों ने उनकी आज्ञा को सर आँखों पर लिया, और दूसरे धर्म के अनुयायियों के धर्मांतरण में जुट गए. धीरे धीरे यह अभियान उग्र रूप लेता गया और थोड़े ही समय में वहां भयंकर दंगे भड़क उठे थे. लोग मारे जाने लगे. घर जलाए जाने लगे. हर तरफ़ लूटमार और हत्याओं का बाज़ार गर्म हो चुका था.

पुलिस और प्रशासन की नाक में दम हो चुका था. दंगे किसी भी तरह कंट्रोल में नहीं आ रहे थे. बाबा त्यागराज के भाषणों के कैसेट्स हर फसाद में आग में घी का काम कर रहे थे.
मीडिया के पत्रकार व रिपोर्टर भी मामले की गहराई से पड़ताल कर रहे थे. इन्हीं पत्रकारों में शामिल थी 'नाजिया ज़फर'. सच्चाई को आम जनमानस के सामने लाने की चाहत उसे इस क्षेत्र में खींच लाई थी. वह इस मामले की भी सच्चाई जानना चाहती थी और इसके लिए ज़रूरी था बाबा त्यागराज का इंटरव्यू. जल्दी ही उसे इसका मौका मिल गया. बाबा त्यागराज ने उसे अपनी कुटिया में बुला लिया.

"बाबा जी, आपके भड़कीले भाषणों ने पूरे देश में दंगे भड़का दिए हैं. इंसान इंसान को कत्ल कर रहा है. अबलाओं की इज्ज़त पर हाथ डाला जा रहा है. आशियाने उजाड जा रहे हैं. धर्म तो हमेशा मानवता के लिए होता है. आप तो धर्म की परिभाषा ही बदले दे रहे हैं."
बाबा त्यागराज का चेहरा गुस्से से लाल हो गया. वह चिंघाड़ कर बोला, "लड़की, तू मुझे धर्म का पाठ पढ़ाएगी. मैं ही धर्म हूँ, और मेरी क्रोधित दृष्टि तुझे भस्म कर देगी."
बाबा का एक शिष्य कमर से कृपाण खींचकर बोला, "बाबा आप आज्ञा दीजिये. मैं एक ही वार में इसका सर धड से अलग कर देता हूँ."
बाबा ने हाथ उठाकर उसे रोका, "रहने दे, यह पत्रकार है. और हम पत्रकारों को कोई नुक्सान नहीं पहुंचाना चाहते."
फ़िर वह नाजिया से मुखातिब हुआ, "लड़की, तू यहाँ से चली जा, वरना मैं अधिक देर अपने शिष्यों को नहीं रोक सकता."
नाजिया इस बार बिना कुछ कहे मुडी और बाहर निकलती चली गई. लेकिन बाहर निकलने से पहले उसकी एक उचाद्ती नज़र झोंपडे के भीतरी हिस्से में पहुँच गई थी और वहां कुछ देखकर एक पल को उसके चेहरे पर कुछ चौंकने के लक्षण पैदा हुए थे लेकिन फ़िर उसने अपने भावों पर काबू पा लिया.

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5 comments:

Arvind Mishra said...

अच्छा है जीशान अपने इस मजेदार कहानी को यहाँ प्रकाशित करना चाहा है !

Mahesh Chander Kaushik said...

this is a good story

Reema said...

आगे क्या हुआ?

seema gupta said...

अरे वाह एक नई कहानी शुरू....

Regards

Anonymous said...

रीमा जी की टिप्पणी मेरी भी मानी जाय।