Wednesday, December 31, 2008

ताबूत - एपिसोड 40

"मारभट, अभी हमारे पीछे कोई आवाज़ आई थी."
"पीछे देखो, क्या है?" मारभट ने कहा. सियाकरण ने घूमकर देखा तो वहां एक मोटरसाइकिल खड़ी थी.
"अरे यह क्या है? और कहाँ से आ गया?" उसने आश्चर्य से कहा.
मारभट ने भी पीछे मुड़कर देखा और बोला, "यह कैसा युग है? अभी वहां कुछ नहीं था अब कुछ आ गया. क्या यहाँ वस्तुएं आसमान से टपकती हैं? सियाकरण तुम पीछे जाकर देखो की वह क्या चीज़ है."
सियाकरण कूदकर पीछे चला गया. कुछ देर तक ध्यान से उसको देखता रहा फ़िर बोला, "मेरा विचार है की यह इस यटिकम का यल है.
इसके सर पर दो सींगें भी हैं. किंतु यह तो बिल्कुल हिलडुल नहीं रहा है."
"बेचारे ने इतनी तेज़ यटिकम चलाई कि थक कर मर गया." मारभट ने दुःख प्रकट किया.
"किंतु यटिकम तो अभी भी चल रही है."
"हो सकता है कोई और भी यल हो. हमारे युग में भी तो दो यल एक यटिकम को खींचते थे."
कार की गति अब धीमी होने लगी थी क्योंकि मारभट का पैर एक्सीलरेटर पर से हट गया था.
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"वे लोग तो पता नहीं कहाँ निकल गए. अब हम लोग क्या करें?" चोटीराज ने कहा. वे लोग बहुत देर से अपने दोनों साथियों को ढूंढ रहे थे जो कार में बैठकर निकल गए थे.
"आओ फ़िर हम दोनों अकेले ही यह युग घूमते हैं. हम लोगों को यटिकम में जो मनुष्य मिले थे वह बहुत दुष्ट थे. हमें कोठरी में बंद कर दिया था. अब हम उनके सामने नही जायेंगे." चीन्तिलाल बोला.
फ़िर वे आगे बढे. यह कोई बाज़ार था और वहां काफ़ी चहल पहल थी. फ़िर वे चलते चलते एक दूकान के सामने रूक गए जहाँ एक रेडियो रखा हुआ पूरे वोल्यूम में गला फाड़ रहा था.
"घोर आश्चर्य." चीन्तिलाल बोला, "इतने छोटे डिब्बे में एक मनुष्य बंद हो गया."
"इतना छोटा मनुष्य तो न हमने अपने युग में देखा न इस युग में." चोटीराज ने हैरत से कहा.
"किंतु उसे डिब्बे में क्यों बंद कर दिया गया? वह तो चिल्ला रहा है."
"आओ, उन लोगों से पूछते हैं जो वहां बैठे हैं." फ़िर वे लोग दुकान में पहुंचे. चीन्तिलाल ने पूछा, "तुम लोगों ने उसे बंद क्यों कर दिया?" यह शब्द उसने अपनी भाषा में कहे थे.
"ये कोई अजीब भाषा बोल रहे हैं. अभी हमने जिस चोर को दुकान के अन्दर बंद किया है वह भी अजीब भाषा बोल रहा था. लगता है ये लोग उसके साथी हैं." दूकानदार बोला, फ़िर अपने साथियों को संबोधित किया, "इन्हें पकड़कर खूब मारो और फ़िर इन्हें भी उस चोर के साथ बंद कर दो."
दूकानदार के साथी आगे बढे और इनपर पिल पड़े.
"अच्छा, एक तो बेचारे को डिब्बे में बंद कर दिया, फ़िर कुछ बोलने पर मारते हो. अभी बताता हूँ." चोटीराज और चीन्तिलाल भी हाथ पैर चलाने लगे. फ़िर इन लोगों के सामने कलयुगी मानवों की एक न चली और कुछ ही देर में वे सब लंबे लेटे नज़र आए. चोटीराज ने रेडियो उठाया और दोनों दूकान के बाहर आ गए.
"अरे मेरा रेडियो!" दूकानदार चिल्लाते हुए उनके पीछे दौड़ा किंतु दूकान से बाहर निकलने की उसकी हिम्मत नहीं हुई. और बडबडाते हुए वापस लौट गया.
उधर चीन्तिलाल चोटीराज से बोला, "डिब्बा खोलकर उस व्यक्ति को जल्दी से आजाद करो. वह बहुत देर से चिल्ला रहा है."
"किंतु यह खुलेगा किस प्रकार? यह तो हर ओर से बंद है." चोटीराज ने डिब्बे को उलट पलट कर देखते हुए कहा.
"मैं बताता हूँ की किस प्रकार खुलेगा." चीन्तिलाल ने रेडियो पर एक हाथ जमाया और वह दो टुकडों में बँट गया
"इसमें तो कोई भी नहीं है." चोटीराज ने अन्दर का अंजर पंजर देखते हुए कहा.
"हाँ, वह मनुष्य कहाँ गया?"
"शायद वह स्वर्गवासी हो गया. तुम्हें डब्बा धीरे से खोलना चाहिए था." चोटीराज ने चीन्तिलाल को घूरा.
"बेचारा." दोनों ने एक ठंडी साँस ली और रेडियो का कबाड़ वहीँ छोड़कर आगे बढ़ गए.
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1 comment:

अभिषेक मिश्र said...

दिसम्बर की पिछली सारी पोस्ट्स आज ही पढ़ी. काफी रोचक और चुटीले अंदाज में लिखा है आपने.