Saturday, December 13, 2008

ताबूत - एपिसोड 27

"ल..लाश!" रामसिंह ने घबरा कर कहा.
"प..प्रोफ़ेसर, किसी ने इन्हें कत्ल करके यहाँ डाल दिया है." शमशेर सिंह कांपते हुए बोला, "यहाँ से जल्दी निकल चलो वरना पुलिस इनके कत्ल के इल्जाम में हमें ही गिरफ्तार कर लेगी."
"रुको बेवकूफों." प्रोफ़ेसर ने दोनों को भागने से रोका, "मेरा ख्याल हंड्रेड परसेंट सही निकला. मैंने तुम लोगों से कहा था कि ये पहाड़ी मिस्र के पिरामिड जैसी है. ये वाकई में पिरामिड निकला. और ये चारों इस पिरामिड की ममियां हैं."
"ओह!" दोनों ने गहरी साँस ली. और ताबूतों में रखी लाशों को देखने लगे जो टॉर्च की रौशनी में चमकती हुई कुछ अजीब सी लग रही थीं.
"कितना खूबसूरत मौका मिला है मुझे." प्रोफ़ेसर ने खुश होकर कहा, "अब मैं इन ममियों पर अपनी साइंटिफिक रिसर्च करूंगा. और यह साबित कर दूँगा कि ये ममियां मिस्र के बादशाहों की नहीं थीं बल्कि उनकी बेगमों के आशिकों की थीं. जिन्हें उन बादशाहों ने जिंदा ताबूत में गड़वा दिया था."
"और खजाने की तलाश का क्या होगा?" रामसिंह ने मरी हुई आवाज़ में पूछा.
"खजाने को कुछ देर के लिए चूल्हे भाड़ में झोंको और मेरी रिसर्च में मदद करो." प्रोफ़ेसर एक ताबूत पर झुककर पास से उसका निरीक्षण करने लगा. इसी बीच उसके शरीर के दबाव से अन्दर मैजूद कोई खटका दब गया. दूसरे ही पल चारों ताबूतों से ऐसी आवाजें आने लगीं मानो किसी ने वहां ए.सी. चालू कर दिया हो. साथ ही ताबूत की दीवारों से निकलने वाली रंग बिरंगी किरणों ने चारों लाशों को अपने घेरे में ले लिया. प्रोफ़ेसर झिझक कर सीधा हो गया. फ़िर उन लोगों ने हैरत से देखा कि किरणों के प्रभाव से चारों लाशों के चेहरे पर धीरे धीरे सुर्खी लौट रही थी. मालूम होता था जैसे वे लोग जिंदा हो रहे हों.
और फ़िर वाकई चारों ने एक साथ ऑंखें खोल दीं. एक अंगड़ाई ली और उठकर बैठ गए.
"भ..भूत!" शमशेर सिंह की घिघियाती आवाज़ निकली.
"म..मेरा ख्याल है कि हमें यहाँ से भाग निकलना चाहिए." इस हालत में भी प्रोफ़ेसर अपना ख्याल जताने से बाज़ नहीं आया था.
"ल..लेकिन भागने का रास्ता किधर है?" रामसिंह लगभग रो देने वाली आवाज़ में बोला.
"इन भूतों ने भागने का रास्ता भी गायब कर दिया." शमशेर सिंह के चेहरे की हवाइयां दूर से देखी जा सकती थीं.
जबकि हकीकत ये थी कि भागने का रास्ता उनके ठीक पीछे मौजूद था. घबराहट और दहशत ने उनके दिमाग को ऐसा जड़ कर दिया था कि वे पीछे घूमने की सोच भी नही पा रहे थे.

2 comments:

विवेक सिंह said...

घबराहट में कुछ याद नहीं रहता .

seema gupta said...

घबराहट और दहशत ने उनके दिमाग को ऐसा जड़ कर दिया था कि वे पीछे घूमने की सोच भी नही पा रहे थे.
""बहुत रोचक लग रहा है पढना, रोमांचक होती जा रही है ये कहानी"

regards