Wednesday, October 1, 2008

ताबूत - एपिसोड 6

इस जगह पर घुप्प अँधेरा था. क्योंकि आज अमावस्या थी और यह जंगली इलाका था. प्रोफ़ेसर ने नक्शा देखने के बाद टॉर्च बुझा दी थी.

"यार, कहीं कोई जंगली जानवर न आकर हमें दबोच ले." शमशेर सिंह ने कांपते हुए कहा. अभी उसकी बात पूरी भी न होने पाई थी कि धप्प की आवाज़ आई और सबसे आगे चलते हुए रामसिंह की चीख सुनाई पड़ी.
"भ...भागो." शमशेर सिंह ने प्रोफ़ेसर का हाथ पकड़कर खींचा, "हम पर जंगली जानवरों ने हमला कर दिया है."

"र..रुको!" प्रोफ़ेसर ने कांपते हुए कहा, "मैं अभी सूटकेस से अपनी राइफल निकलता हूँ."
इससे पहले कि वह सूटकेस खोलकर राइफल निकलता, शमशेर सिंह ने उसे खींच लिया. और फिर प्रोफ़ेसर का भी साहस टूट गया और दोनों पीछे मुड़कर भाग खड़े हुए. किंतु डर के कारण उनके पैर मानो एक एक क्विंटल के हो गए थे. क्योंकि लाख चाहने पर भी वे पाँच छह कदम से आगे नही बढ़ पाए. फिर वहां गालियों का तूफ़ान आ गया. ये गालियाँ रामसिंह के गले से निकल रही थीं.
"ल--लगता है रामसिंह पर जानवरों का हमला नही हुआ है, बल्कि कोई और मुसीबत आई है. आओ देखते हैं." प्रोफ़ेसर ने कहा. फिर दोनों साहस करके आगे बढे. अचानक उन्होंने काली रात की चादर में दो चमकती हुई ऑंखें देखीं, और दोनों के होश फिर उड़ गए. "भ--भूत." दोनों के मुंह से घिघियाती चीख निकली और उन्होंने फिर भागने का इरादा किया.

तभी रामसिंह की आवाज़ सुनाई पड़ी, "कमबख्तों, तुम लोग भाग कहाँ रहे हो. यह मैं हूँ. अब जल्दी से टॉर्च जलाओ."

दोनों की यह सुनकर जान में जान आई. फिर प्रोफ़ेसर ने कांपते हाथों से टॉर्च जलाकर उसकी रौशनी रामसिंह पर डाली. वह ऊपर से नीचे तक कीचड़ में लथपथ खड़ा था.
"यह क्या हुआ?" दोनों के मुंह से निकला.

"यह तुम लोगों की बेवकूफी का फल है. जब इतना अँधेरा छाया है तो टॉर्च जला लेनी चाहिए थी. अब इस अंधेरे में सामने का तालाब भला कैसे दिखाई पड़ता. उसी के कीचड़ में मैं फिसल गया और यह गत बन गई."
"टॉर्च तो तुम्हारे पास भी थी. तुम ने क्यों नहीं जला ली?" प्रोफ़ेसर ने पूछा.

"टॉर्च तो है, लेकिन यहाँ पहुंचकर याद आया कि उसका सेल डाउन है. अब उस टॉर्च की रौशनी मैं केवल खजाना देखने के लिए डालूँगा."
"तुम्हें घर पर ही यह सब बातें अच्छी तरह देख लेनी चाहिए थीं." शमशेर सिंह ने डपटा.

"कोई बात नहीं." प्रोफ़ेसर ने ढाढस बंधाई,"हम लोग पेशेवर खजाना खोजने वाले तो हैं नहीं कि हर बात याद रहे. अब मैं नक्शा निकालकर यह देखता हूँ कि कहीं हम लोग ग़लत जगह तो नही आ गए. क्योंकि आगे तालाब है. जिसके कारण रास्ता बंद है."

1 comment:

Arvind Mishra said...

जीशान बढियां चल रहा है यह ताबूत का वाक़या !