‘‘स्टूडेन्ट्स, कल से स्कूल में सालाना गेम्स स्टार्ट हो रहे हैं। इनडोर, आउटडोर हर तरह के गेम उसमें रहेंगे। रनिंग, लांग व हाई जम्प, क्रिकेट और साथ में शतरंज, लूडो वगैरा भी। अगर आप लोग किसी गेम में हिस्सा लेना चाहें तो मेरे पास अपना नाम लिखवा दें।’’
फिर वह महावीर के पास आयी और बोली, ‘‘आई थिंक कि तुम शतरंज के लिये अपना नाम दे दो। आउटडोर में तो तुम्हारे लायक कोई गेम होगा नहीं।’’‘‘लेकिन मैं आउटडोर गेम में ही हिस्सा लूंगा।’’ महावीर ने दृढ़ स्वर में कहा।
‘‘क्या?’’ टीचर को हैरत का एक झटका लगा, ‘‘तुम कौन सा आउटडोर गेम खेल सकोगे?’’
‘‘रनिंग!’’ महावीर ने जवाब दिया और पूरी क्लास ठहाका लगाकर हंस दी। सभी को यही लगा कि महावीर मज़ाक कर रहा है।
लेकिन महावीर के चेहरे पर मज़ाक का कोई लक्षण नहीं था। वह पूरी तरह गम्भीर था।
‘‘महावीर! ये तुम क्या कह रहे हो?’’ टीचर ने एक बार उसकी टाँगों की तरफ देखा जहाँ सिर्फ दो ठूंठ थे। और फिर उसके चेहरे पर नज़र की जहाँ पहले की तरह गंभीरता छायी हुई थी, ‘‘बगैर टाँगों के तुम दौड़ में कैसे हिस्सा ले पाओगे?’’
‘‘ये मैं कल बताऊंगा।’’ वह टीचर के साथ साथ सारे स्टूडेन्ट को सस्पेंस में डालकर चुप हो गया।
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अगले दिन पूरा स्कूल उस समय हैरत में पड़ गया जब महावीर ने बिना व्हील चेयर के गेट से अन्दर प्रवेश किया। उसने पैंट पहन रखी थी और कायदे के साथ कदम रखते हुए आगे बढ़ रहा था। वहाँ जितने भी बच्चे व स्टाफ वाले उसे पहचानते थे उसे घूम घूमकर देख रहे थे। हालांकि उसके हाथ पहले की ही तरह अपनी जगह मौजूद नहीं थे।
फिर महावीर ही के क्लास की स्टूडेन्ट नैना आगे बढ़ी। वह भी महावीर की तरह विकलांग थी। फर्क सिर्फ इतना था कि उसकी केवल एक टाँग नहीं थी। वह बैसाखियों का इस्तेमाल करती थी।
‘‘महावीर, ये क्या तुम तो चल रहे हो? यह करिश्मा हुआ कैसे?’’ उसे बातें करते देखकर और भी कई स्टूडेन्ट पास आ गये।
महावीर एक दीवार से टेक लगाकर खड़ा हो गया और बोला, ‘‘मेरी पैंट को थोड़ा ऊपर करके देखो मालूम हो जायेगा।’’
एक लड़के ने आगे बढ़कर उसकी पैंट को ऊपर किया तो वहाँ पर आधुनिक फाईबर की एक छड़ नज़र आयी। यह फाइबर लचीली प्रकृति का था।
‘‘मैं कई दिनों से छड़ों को अपनी जाँघों से बाँधकर चलने की प्रैक्टिस कर रहा था। इसमें सर्कस के एक कलाकार ने मेरी मदद की है। अब मैं व्हील चेयर का मोहताज नहीं रहा। अपने इन ही पैरों के साथ अब मैं दौड़ में हिस्सा लूंगा।’’
स्टूडेन्ट के साथ साथ टीचर्स भी उसे देखकर दंग थे। तमाम कमियों के बावजूद वह कितना मज़बूत था। शायद उन सब से बहुत ज़्यादा।
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यह दौड़ एक किलोमीटर लंबी थी जिसमें महावीर हिस्सा ले रहा था। लंबी दौड़ होने के बावजूद काफी लड़के इसमें हिस्सा ले रहे थे।
अपने तय समय पर दौड़ शुरू हुई और सभी प्रतिभागी अपने अपने ट्रैक पर दौड़ने लगे। बिना हाथों वाले महावीर को ट्रैक पर देखना अजीब था। लगता था किसी रोबोट को टैªक पर छोड़ दिया गया है। हालांकि उसे देखकर कोई यह अंदाज़ा लगा नहीं सकता था कि उसके पैर ही नहीं है बल्कि वह फाइबर छड़ों के सहारे दौड़ रहा है जो ट्रैक सूट के अन्दर छुपी हुई हैं।
तमाम लड़कों के बीच वह आराम से दौड़ते हुए शायद बीसवें या पच्चीसवें नंबर पर था। धीरे धीरे मंज़िल क़रीब आ रही थी। कुछ लड़के थककर बाहर आ गये थे जबकि महावीर धीरे धीरे आगे आता हुआ सातवें - आठवें स्थान पर पहुंच गया था।
अब केवल सौ मीटर बाक़ी थे। महावीर अब चैथे स्थान पर पहुंच गया था। उसकी रफ्तार में इज़ाफा हो रहा था। पचास मीटर तक आते आते वह तीसरी पोज़ीशन पर आ गया और जब दौड़ खत्म हुई तो उसने और एक अन्य लड़के सैफ ने साथ में फीते को छुआ था।
यह कहना बहुत मुश्किल था कि फस्र्ट कौन है और कौन सेकंड।
फैसला टेक्नालाॅजी पर छोड़ दिया गया। जज दौड़ को रिकार्ड करने वाले कम्प्यूटर की तरफ देख रहे थे। फिर फैसला माइक पर एनाउंस हुआ,
‘इस दौड़ में गोल्ड मेडल जीता है सैफ ने। और दूसरे नंबर पर आने वाले महावीर को सिल्वर मेडल मिला है।’
एक शोर के बीच तमाम लड़के सैफ और महावीर को बधाईयाँ दे रहे थे। सैफ मज़बूत हाथ पैरों वाला महावीर ही की उम्र का लड़का था। विकलांगों के स्कूल में उसका एडमीशन इसलिए हुआ था क्योंकि वह जन्मजात बहरा था। हालांकि माडर्न टेक्नालाॅजी ने उसे इस क़ाबिल कर दिया था कि वह एक मशीन की मदद से अब न सिर्फ दूसरों की आवाज़ सुन सकता था बल्कि उनका जवाब भी दे सकता था। कानों में लगी मशीन आवाज़ को कैच करके उसे विद्युत सिग्नलों में बदलती थी जो सीधे उसके मस्तिष्क में पहुंचकर उसे आवाज़ का एहसास दिला देते थे।
अब उन लोगों को मेडल के लिये स्टेज की तरफ ले जाया जा रहा था।
जैसे ही सैफ एनाउंसर के पास पहुंचा उसने एनाउंसर के हाथ से माइक ले लिया और संयोजकों से कुछ कहने की इजाज़त माँगी। संयोजकों ने इजाज़त दे दी।
उसने माइक पर कहना शुरू किया, ‘‘दोस्तों सेकंड के एक छोटे से हिस्से ने मुझे महावीर से आगे कर दिया लेकिन हक़ीक़त ये है कि महावीर ही इस प्रतियोगिता का विजेता है।’’
उसकी बात सुनकर मजमे में खामोशी छा गयी। तो क्या जजों ने गलत फैसला दिया था?
सैफ ने आगे कहा, ‘‘मैं महावीर को विजेता इसलिए मानता हूं कि मैं अपनी दोनों टाँगों की मज़बूती के कारण इस दौड़ में आगे रहा जबकि महावीर ने बिना पैरों की मदद के अपनी इच्छा शक्ति के बल पर दूसरों को पीछे छोड़ दिया। अतः वास्तविक विजेता वही है और मैं जजों से अनुरोध करूंगा कि गोल्ड मेडल उसे ही प्रदान करें।’’
तालियों की ज़ोरदार गड़गड़ाहट इससे पहले कि जजों को अपना फैसला बदलने पर मजबूर करती, महावीर ने कुछ कहने का इरादा ज़ाहिर किया। उसके सामने माइक लाया गया और वह बोलने लगा, ‘‘ये एक हक़ीक़त है कि मैं नंबर दो पर आया हूं। चाहे उसके पीछे कोई भी वजह हो। इसलिए मैं सिल्वर मेडल ही कुबूल करूंगा। और मुझे यकीन है कि जिन नकली पैरों की मदद से मैं सेकंड पोज़ीशन हासिल कर सका हूं एक दिन उन ही पैरों से मैं फस्र्ट भी आऊंगा।’’ उसके इस मज़बूत लहजे पर इतनी तालियां बजीं कि कान पड़ी आवाज़ सुनाई देना बन्द हो गयी।
जबकि महावीर अब सैफ से कह रहा था, ‘‘साॅरी दोस्त, मैं चाहते हुए भी तुमसे हाथ मिला नहीं सकता।’’
‘‘दोस्ती के लिये हाथों की नहीं दिल के मिलने की ज़रूरत होती है।’’ कहते हुए सैफ ने उसे अपने सीने से लगा लिया। यही उन दोनों की दोस्ती का आग़ाज़ था जो आगे न जाने कब तक चलने वाली थी।
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उपरोक्त कहानी उपन्यास अधूरा हीरो का एक भाग है. पूरा उपन्यास निम्न लिंक उपलब्ध है :
2 comments:
आपने बहुत अच्छी पोस्ट लिखी है. ऐसे ही आप अपनी कलम को चलाते रहे. Ankit Badigar की तरफ से धन्यवाद.
Thank you.
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