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Wednesday, July 21, 2021

रोमांचक सस्पेंस कहानी - नक़ली जुर्म

 रोमांचक सस्पेंस कहानी - नक़ली जुर्म" मेरे यूट्यूब चैनल 'रोमाँच' पर सुनें  

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Friday, December 13, 2013

नक़ली जुर्म (कहानी) - तीसरा अंतिम भाग

''मेरे पास इसके अलावा और कोई चारा नहीं था। मैं उससे प्यार करता था और वह मयंक के पीछे दीवानी थी। इसलिए मैंने अपनी यह मशीन उसके ऊपर आज़माने का फैसला किया।"
''लेकिन यह मशीन काम कैसे करती है?"

''एक ऐसी हक़ीक़त जिसकी तरफ बहुत कम लोगों का ध्यान जाता है, वह ये कि जिसे हम बाहरी दुनिया के तौर पर देखते व महसूस करते हैं, वह सिर्फ दिमाग़ के ज़रिये पैदा एक नज़रिया होता है जो हमारी इन्द्रियों से आने वाले इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स पर आधारित होता है।
दुनिया के रंग जो हम देखते हैं, चीज़ों को छूकर उनकी सख्ती या नर्मी जो हम महसूस करते हैं। चीज़ों का स्वाद जो हमारी ज़बान चखती है। तरह तरह की आवाज़ें जो हम अपने कानों से सुनते हैं। खुशबुएं जो हम सूंघते हैं और इसके अलावा अपने आसपास की हर चीज़, हमारा काम, हमारा घर, फर्नीचर, बच्चे, जिन्हें हम अपने क़रीब या दूर देखते हैं, जिनका हमें एहसास होता है वह सब सिर्फ और सिर्फ इलेक्ट्रिक सिग्नल होते हैं जिन्हें हमारी इन्द्रियाँ हमारे दिमाग तक भेजती हैं। दो महान वैज्ञानिकों बर्टरैण्ड रसेल और एलक विटिगेन्स्टाइन का कहना है, 'एक नींबू दरहक़ीक़त अस्तित्व में है या नहीं और यह कैसे अस्तित्व में आया इसे मालूम नहीं किया जा सकता। एक नींबू दरअसल एक ग्रुप होता है ज़ायके, जिसे ज़बान महसूस करती हैं, खुशबू जिसे नाक महसूस करती है, रंग व सूरत जिसे आँख महसूस करती है, और सिर्फ इन ही फीचर्स का अध्ययन किया जा सकता है।"

''हाँ, ये तो हक़ीक़त है कि दुनिया में जो कुछ भी हम देखते या महसूस करते हैं वह दिमाग तक पहुंचने वाले इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स ही होते हैं।" डा0प्रवीर की बहन ने उसका समर्थन किया।

''इसी फैक्ट का इस्तेमाल करते हुए मैंने अपनी ये मशीन तैयार की।" डा0प्रवीर अपनी बहन को शायद वह मशीन ही दिखाने लाया था। और उसके बारे में बता रहा था।
''यह मशीन किसी व्यक्ति की मेमोरी में कृत्रिम इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स भेजकर उसकी स्मृति में नकली घटनाएं पैदा कर देती है। और उस व्यक्ति को लगता है कि वह घटनाएं उसकी जिंदगी में घटित हो चुकी हैं। जबकि हक़ीकत में ऐसा कुछ नहीं होता।"

''ओह। वेरी नाइस।" डा0प्रवीर की बहन की प्रतिक्रिया थी।

''फिर मैंने कालेज के वार्षिक समारोह के लिये एक प्रोग्राम बनाया जिसमें पूरे ग्रुप को खास तरह की टोपियां पहननी थीं। उस ग्रुप में मैंने माहम को खासतौर से शामिल किया। उनमें से हर टोपी में इस मशीन का रिसीवर मौजूद था, एक माइक्रोचिप की शक्ल में। टोपियां इतनी आकर्षक थीं कि मुझे यकीन था कि उस ग्रुप का हर मेम्बर उन टोपियों को बाद में भी इस्तेमाल करेगा। अत: मैं अपनी मशीन द्वारा माहम की टोपी पर नज़र रखने लगा। एक दिन मुझे मालूम हो गया कि माहम एकान्त में मेरी टोपी लगाये हुए है। मुझे मौका मिल गया और मैंने वह आभासी घटना उसकी स्मृति में आरोपित कर दी जिसमें मयंक उसके साथ दुराचार करता है।"

आगे कुछ सुनने की ताब माहम में नहीं थी। वह चुपचाप अपने कमरे में वापस आ गयी। उसके दिमाग में आँधियाँ चल रही थीं। उसकी कुछ समझ में नहीं आ रहा था। इतना बड़ा धोखा उसने खाया। उसे पाने के लिये डा0प्रवीर ने कितनी बड़ी साजि़श की थी। और ऐसी साजि़श जिसके लिये दुनिया का क़ानून उसे कोई सज़ा भी नहीं दे सकता था। 

उसे याद आये वह शब्द जो मयंक ने जेल जाने से पहले उससे कहे थे, ''माहम! मैं नहीं जानता कि तुमने ऐसा क्यों किया। शायद दौलत या किसी और लालच ने तुम्हारी आँखों पर पटटी बाँध दी है। लेकिन एक दिन तुम्हें बहुत पछताना पड़ेगा।"

उसकी बात सुनकर माहम ने गुस्से और नफरत के साथ उससे मुंह फेर लिया था और वह ये भी नहीं देख सकी थी कि मयंक की आँखों के दरिया में बेबसी और अफसोस के कितने भँवर तैर रहे हैं।

आज उसे पता चला कि उसने मयंक के ऊपर उस घटना का इल्ज़ाम लगाया था जो इस दुनिया में कभी घटित ही नहीं हुई थी और जिसे वैज्ञानिक तरीके से उसकी स्मृति में आरोपित कर दिया गया था।
कुछ देर तक वह वहीं बैठी आँसू बहाती रही, फिर उसने एक निर्णय लिया एक ऐसा निर्णय जिसने उसके समस्त आँसुओं को अपने अन्दर सोख लिया।
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इसके चार दिन बाद माहम के पास मिलने वालों का ताँता बँधा हुआ था। कोई उसे दिलासा दे रहा था तो कोई हमदर्दी जता रहा था। और इसका कारण भी था।
बीती रात को उसके पति यानि एस.टी.आर के फिजि़क्स लेक्चरर डा0प्रवीर ने खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी।

पुलिस तहक़ीक़ कर रही थी कि डा0प्रवीर ने ऐसा क्यों किया लेकिन कोई वजह समझ में नहीं आ रही थी। अक्सर लोगों का यही विचार था कि अपना प्रमोशन न होने की वजह से वह तनाव में रहता था और इसी तनाव में उसने खुदकुशी कर ली।

माहम को दिलासा देने वालों में उसकी क़रीबी सहेली कल्पना भी थी।
''मैं बहुत बदकिस्मत हूं कल्पना।" माहम ने एक ठंडी साँस ली। 

''तुम ठीक कहती हो माहम। जिसको तुमने प्यार के लिये चुना, उसने तुम्हारे साथ दुराचार किया और जिसको तुमने पति के रूप में चुना उसने खुदकुशी कर ली।"

''मैं इसलिये बदकिस्मत नहीं हूं।" 
''फिर?" कल्पना ने चौंक कर पूछा। 

''कल्पना! तुम मेरी सबसे गहरी दोस्त हो। अत: मैं तुम्हें सब कुछ बताकर अपने दिल का बोझ हलका कर लेना चाहती हूं। क्या तुम आज रात मेरे पास टिक सकोगी?" 
''हाँ, क्यों नहीं।" कल्पना ने उसके कंधे को थपथपाया। 
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फिर उस रात माहम ने अपना पूरी कहानी कल्पना से बयान कर दी। जिसमें उसकी स्मृति परिवर्तन के द्वारा मयंक पर दुराचार का आरोप और इसके पीछे उसके पति की साजि़श की कहानी थी।

''ओह माई गाड।" कल्पना की पलकों ने मानो झपकना छोड़ दिया था, ''डा0प्रवीर इतना बड़ा साजि़शी होगा यह तो हम सपने में भी नहीं सोच सकते थे। 
''हाँ। उसके पास टैलेन्ट था। लेकिन उसने अपने टैलेन्ट का गलत इस्तेमाल किया।" माहम ने खोये खोये लहजे में कहा।

''काश कि वह अपनी बुद्धिमता का प्रयोग सही रास्ते पर करता तो पता नहीं कितनी माहम उसके आगे पीछे फिरने लगतीं।" कल्पना ने अफसोस के साथ कहा।
''ऐसे व्यक्ति को मरने के बाद भी चैन नहीं मिलता।" माहम ने गुस्से और दु:ख के साथ कहा।

''लेकिन अब तो उसे धोखे से ही सही उसकी मोहब्बत उसे हासिल हो गयी थी। फिर खुदकुशी क्यों कर ली उसने? क्या उसका जुर्म उसे कचोट रहा था?"
''तुमने ठीक कहा। उसका जुर्म उसे कचोट रहा था। एक ऐसा जुर्म जो उसने किया ही नहीं था।" माहम अब कुर्सी से उठकर टहलने लगी थी।

''क्या मतलब? मैं कुछ समझी नहीं।"
''जब उसने अपनी मशीन के बारे में अपनी बहन को बताया, उसके बाद अकेले में मौका पाकर मैंने उस मशीन की कार्यप्रणाली समझ ली। और फिर उसी मशीन के द्वारा एक दिन खुद उसी के मस्तिष्क में एक नकली घटना आरोपित कर दी। ऐसे जुर्म की घटना जो उसने कभी किया ही नहीं था।"

''वह घटना क्या थी?"

''उस घटना में वह शराब के नशे में अपनी ही बहन के साथ दुराचार करता है। इस घटना के बाद किसी भी इज़ज़तदार भाई के सामने आत्महत्या ही एकमात्र विकल्प बचता है। और डा0प्रवीर ने यही किया। आखिर नशा उखड़ने के बाद वह अपनी बहन का सामना कैसे करता।" माहम ने टहलते हुए ही अपनी बात पूरी की और कल्पना यही सोचती रह गयी कि कैसे क्या जुर्म माने और किसे कितना बड़ा मुजरिम।

--समाप्त-- 
---डा ज़ीशान हैदर ज़ैदी 

Thursday, December 12, 2013

नक़ली जुर्म (कहानी) - भाग 2

डा0प्रवीर चुप होकर उसकी प्रतिक्रिया का इंतिज़ार कर रहा था। फिर माहम ने हिम्मत करके बोलने का फैसला किया, ''सर, एक्चुअली मैंने कभी आपको इस नज़र से नहीं देखा। 
''तो अब देख लो। क्या बुराई है।" इस बार डा0प्रवीर ने नार्मल लहजे में कहा। 

माहम की हिम्मत थोड़ी और बंधी और उसने आगे कहा, ''सर। एक्चुअली मैं एक लड़के से प्यार करती हूं। और बहुत जल्द हम लोग शादी करने जा रहे हैं।" उसने अपनी बात पूरी की और इंतिज़ार करने लगी सर की खुंखार प्रतिक्रिया की। उसे यही लग रहा था कि अब सर तेज़ आवाज़ में कहेंगे ''गेट आउट!" और फिर शायद वह आगे उसको देखते ही काट खाने दौड़ने लगेंगे। 

लेकिन डा0प्रवीर ने ऐसा कुछ नहीं किया बलिक शांत स्वर में धीरे से पूछा, ''वह लड़का कौन है?"

''वह मयंक है सर।" 
''हूं। अच्छा लड़का है। मुझे यकीन है तुम उसके साथ खुश रहोगी।" इस बार भी डा0प्रवीर ने धीमी आवाज़ में कहा। 
''सर! आई एम रियली सारी। आप प्लीज़ माइंड न कीजिए।" माहम को अन्दर ही अन्दर गिल्टी भी फील हो रहा था।

''अरे नहीं ऐसी कोई बात नहीं। हर एक को अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार है।" डा0प्रवीर ने एक बार फिर शांत स्वर में कहा और अंगूठी को डिबिया में बन्द करके मेज़ की दराज़ में रख दिया। फिर उसने माहम का बनाया हुआ चार्ट खोलकर सामने रख लिया, ''अब हम लोग प्रोग्राम पर डिस्कस करते हैं। फिर वह बहुत देर तक माहम को प्रोग्राम के बारे में समझाता रहा। 

और अंत में जब माहम उठने लगी तो उसने कहा, ''माहम! जिंदगी में हर तरह के मोड़ आते हैं। कभी खुशी के तो कभी ग़म के। अगर जिंदगी में कभी तुम परेशानी महसूस करो तो बेझिझक मेरे पास आ जाना। मैं तुम्हारी पूरी मदद करूंगा।" 
''थैंक्यू सर।" माहम ने कहा और डा0प्रवीर के चैम्बर से बाहर आ गयी।
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लेकिन माहम को यह नहीं मालूम था कि डा0प्रवीर की बात इतनी जल्दी सच हो जायेगी और उसे ऐसे तूफान से गुज़रना पड़ेगा जो उसकी जिंदगी को ही तहस नहस कर देगा। वह हालांकि शहर की एक जगमगाती रात थी लेकिन उस रात ने उसकी जिंदगी में कभी न खत्म होने वाला अँधेरा भर दिया। 

कालेज का वार्षिक समारोह खत्म हुए आज दूसरा दिन था। लोग उसको सफल प्रोग्राम पेश करने के लिये बधाईयाँ दे रहे थे। वह दिनभर फोन अटेंड करते करते और लोगों से मिलते जुलते थक चुकी थी। और इस समय जबकि रात के ग्यारह बज रहे थे उसका दिल यही चाह रहा था कि बिस्तर पर जाये और फौरन खर्राटें लेने लगे।

नाइट सूट पहनने के बाद वह बिस्तर पर जाने ही वाली थी कि किसी ने उसके कमरे का दरवाज़ा खटखटाया। 
''अब क्या मुसीबत है।" उसे विश्वास था कि इस वक्त आने वाली कोई मुंहफट सहेली ही होगी अत: उसने थोड़ा झल्लाहट के साथ दरवाज़ा खोल दिया। लेकिन दरवाज़े पर मयंक को खड़ा देखकर वह सकपका गयी और अपने शरीर को छुपाने के लिये दोनों हाथ अनायास ही सामने कर लिये।

''मयंक तुम इस समय?" उसने हैरत से कहा।
''माहम, इस वक्त तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो।" मयंक की लाल आँखों से ज़ाहिर हो रहा था कि वह नशे में डूबा हुआ है। 
''मयंक तुम इस वक्त यहाँ क्यों आये हो।" माहम ने थोड़ी फिक्रमंदी के साथ पूछा।

''क्यों? क्या मैं नहीं आ सकता? आखिर मैं तुम्हारा मंगेतर हूं। हम बहुत जल्द शादी करने वाले हैं।" अब माहम को कन्फर्म हो गया था कि वह नशे में धुत है। और इस वक्त उसे अच्छे बुरे की बिल्कुल तमीज़ नहीं रह गयी। 
वह बोली, ''मयंक तुम इस वक्त जाओ। मैं तुमसे सुबह बात करूंगी।" उसने दरवाज़ा बन्द करना चाहा लेकिन मयंक ज़बरदस्ती आगे बढ़ आया और फिर उसने अन्दर से सिटकिनी लगा दी। माहम उसका इरादा जानकर काँप उठी। 

और फिर वह हो गया जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी। जिसे उसने अपने मन मंदिर में जगह दी थी वह एक क्रूर भेडि़या साबित हुआ जिसने उसके बहते हुए आँसुओं की भी परवाह नहीं की। वह सिसकती रही और वह दरिन्दा उसकी अस्मत को तार तार करता रहा।
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माहम ने कभी सोचा भी नहीं था कि मयंक इस तरह उसे धोखा देगा। हालांकि बस चन्द दिन के बाद वह पूरी तरह उसकी हो जाने वाली थी। उसका दिल व जिस्म दोनों ही उसके लिये थे। फिर यह ज़बरदस्ती? क्या वह कोई खेलने वाली गुडि़या थी? 

माहम गुस्से से पागल हो रही थी। उसने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कर दी। और मयंक को गिरफ्तार कर लिया गया। हालांकि वह अपना जुर्म मानने को तैयार ही नहीं था। और बार बार यही कह रहा था कि वह निर्दोष है। लेकिन पुलिस ने उसके ऊपर मुकदमा दर्ज कर लिया। माहम का साथ शहर के कई महिला संगठनों ने दिया जिसके नतीजे में जल्दी ही कोर्ट ने अपना फैसला भी सुना दिया। माहम की गवाही व अन्य कुछ सुबूतों के आधार पर मयंक को लंबे कारावास की सज़ा सुना दी गयी।

इस बीच लगभग टूट चुकी माहम का सबसे ज्यादा साथ डा0प्रवीर ने ही दिया था। वह हर पल उसे ढाँढस बंधाने के लिये मौजूद रहता था। अंतत: माहम ने उसे अपना जीवन साथी बनाने का फैसला कर लिया। और जल्दी ही दोनों शादी के अटूट बंधन में बंध गये।
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शादी की गहमा गहमी खत्म हुई और जिंदगी एक ढर्रे पर चलने लगी। धीरे धीरे माहम के मन से बीते हुए कल की तल्ख यादें मिटने लगी थीं। डा0प्रवीर एक अच्छा पति साबित हुआ था। दूसरों के लिये वह जितना सख्त था, उसके लिये उतना ही नर्म। हालांकि कभी कभी वह सनक भी जाता था लेकिन समस्या गंभीर नहीं थी। इतना तो सभी घरों में होता है। 

लेकिन अचानक वह मनहूस दिन आया जिसने उसकी ठहरी हुई जिंदगी में तूफान बरपा कर दिया।

उस दिन डा0प्रवीर की बड़ी बहन उससे मिलने आयी थी जो यू.एस. में रहती थी और एक साइंटिस्ट के तौर पर नासा में कार्यरत थी। काम की व्यवस्तता के कारण वह डा0प्रवीर की शादी में नहीं आ सकी थी। अब उसे छुटटी मिली थी तो वह इस नव शादी शुदा जोड़े को आशीर्वाद देने आयी थी। 

माहम को उससे मिलकर खुशी हुई। क्योंकि डा0प्रवीर जितना सख्त मिजाज़ था उसकी बहन उतनी ही नर्म। जब बोलती थी तो मानो उसके मुंह से फूल झड़ रहे हों। वे तीनों काफी देर तक बातें करते रहे। फिर माहम को नींद आने लगी अत: वह अपने कमरे में सोने के लिये आ गयी जबकि डा0प्रवीर वहीं बैठा रहा।

अभी उसे सोते हुए कुछ ही देर हुई थी कि अचानक किसी खटके से उसकी आँख खुल गयी। डा0प्रवीर अभी भी नहीं आया था। उसे प्यास महसूस हुई। बेड के पास रखी बोतल खाली थी अत: वह किचन की ओर बढ़ी। उसने देखा एक कोठरी जिसमें कबाड़ भरा रहता था, उससे रोशनी फूट रही है। 

''डा0प्रवीर इतनी रात को उस कोठरी में क्या कर रहा है? क्या वह अपनी बहन को कुछ दिखाना चाहता है?" जिज्ञासा ने उसके कदम कोठरी की ओर बढ़ा दिये। वह अन्दर दाखिल हुई। कोठरी में पहले की तरह कबाड़ भरा हुआ था, लेकिन साथ ही अन्दर एक छोटा सा दरवाज़ा भी वह देख रही थी जो इससे पहले उसने कभी नहीं देखा था। उस दरवाज़े से भी रोशनी छन कर बाहर आ रही थी। उसने उस दरवाज़े से अन्दर जाना चाहा लेकिन उसी वक्त अपना नाम सुनकर ठिठक गयी। 

डा0प्रवीर की बहन कह रही थी, ''तुम्हें माहम के साथ ऐसा नहीं करना चाहिए था।"

------जारी है. 

Wednesday, December 11, 2013

नक़ली जुर्म (कहानी) - भाग 1

----डा. ज़ीशान हैदर ज़ैदी 

एस.टी.आर. कालेज न केवल शहर का बल्कि देश का जाना माना इंजीनियरिंग कालेज है। उसकी क्वालिटी का चरचा इतना ज्यादा है कि देश भर के छात्र उसमें एडमीशन लेने के सपने देखते हैं और आर्थिक रूप से सक्षम लोग वहाँ बड़े से बड़ा डोनेशन देने को तैयार रहते हैं। यहाँ के शिक्षक जब किसी को बताते हैं कि वह एस.टी.आर कालेज की फैकल्टी हैं तो लोग उन्हें रश्क भरी निगाहों से देखने लगते हैं।

लेकिन उन ही में एक शिक्षक ऐसा था जो अपनी वर्तमान पोज़ीशन और कालेज दोनों से ही असंतुष्ट था। और उसकी वजह भी थी।

डा0प्रवीर कालेज में पिछले दस वर्षों से कार्यरत था और इस दौरान उसका प्रमोशन एक बार भी नहीं हुआ था। और इसकी वजह केवल एक ही थी, यानि उसकी कड़वी ज़बान। वह किसी को खातिर में नहीं लाता था। मैनेजमेन्ट हमेशा इसी वजह से उससे नाराज़ रहता था, लेकिन उसे हटाना भी नहीं चाहता था क्योंकि वह थ्योरेटिकल फिजि़क्स का माहिर था।

डा0प्रवीर खुद भी कालेज बदलने के लिये कई बार इंटरव्यू दे चुका था। लेकिन खुद उसकी खरी ज़बान उसके रास्ते की रुकावट बन जाती थी। वह इंटरव्यू लेने वालों को इस तरह लाजवाब करता था कि अपने से ज्यादा बुद्धिमान जानकर इंटरव्यू लेने वाले उससे कन्नी काट जाते थे।

इस समय भी वह कालेज छोड़ने के बारे में गंभीरतापूर्वक विचार कर रहा था और मन ही मन इस कालेज के मैनेजमेन्ट को गालियां भी दे रहा था जिसकी झलक उसके चेहरे की सख्ती और सिलवटों में नज़र आ रही थी। 

अचानक एक सुरीली आवाज़ ने उसकी तन्द्रा भंग कर दी। ''सर! 
उसने चौंक कर सर उठाया और सामने मौजूद खूबसूरत चेहरे ने उसके चेहरे की सख्ती को पल भर में नर्मी से बदल दिया।

''सर! मे आई कम इन? उस लड़की ने थोड़ा हिचकिचाते हुए पूछा।
''यस। आओ माहम।" डा0प्रवीर ने नर्मी के साथ कहा। माहम बीटेक फाइनल इयर की एक होनहार स्टूडेन्ट थी।

''सर! मुझे सालिड स्टेट फिजि़क्स के कुछ थ्योरीज़ बिल्कुल समझ में नहीं आ रही हैं।" डा0प्रवीर को नर्मी से बात करते देखकर माहम की हिम्मत बंधी और उसने अपनी समस्या बताई। ज्यादातर छात्र डा0प्रवीर के सख्त मिजाज़ को देखते हुए बात करने में हिचकिचाते थे। 

''सालिड स्टेट फिजि़क्स! वह तो बहुत आसान होती है। मैं तुम्हें समझाता हूं। फिर डा0 प्रवीर माहम को काफी देर तक सालिड स्टेट फिजि़क्स की थ्योरीज़ समझाता रहा। 
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''मुझे यकीन नहीं आता कि प्रवीर सर ने तुझे आधे घंटे तक अकेले फिजि़क्स पढ़ाई। हम लोगों को तो बाहर ही से भगा देते हैं। माहम की सहेली कल्पना को माहम की बात पर बिल्कुल यकीन नहीं हो रहा था।
''पता नहीं कैसे उस वक्त सर का मूड बहुत अच्छा था। मेरे सारे सवालों के जवाब भी उन्होंने बिल्कुल नर्म अंदाज़ में दिये।" माहम को खुद भी ऐसी उम्मीद नहीं थी।

''अच्छा अब फालतू की बातें छोड़ो। ये बताओ कि ये मयंक आजकल दूर दूर क्यों दिखाई  देता है?"
''आजकल वह भाव खाने लगा है। मैंने उसे थोड़ा मुंह क्या लगा लिया, जनाब अपने को राजा इन्द्र समझने लगे।" माहम ने मुंह बनाया।

''अगर कालेज की सबसे खूबसूरत लड़की किसी लड़के को लिफ्ट दे दे तो उसे अपने को राजा इन्द्र समझने का हक़ हासिल हो जाता है।" कल्पना ने सर हिलाते हुए कहा।
''जब मैं बोलना छोड़ दूंगी तो बच्चू को अक्ल आ जायेगी।" माहम ने थोड़ा गुस्से में आकर कहा।

''शायद तुम ऐसा न कर पाओ। क्या मैं जानती नहीं कि तुम्हारे दिल में मयंक के लिये क्या है।" कल्पना ने उसके गले में बाहें डालकर कहा।
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लेकिन यह किसी को नहीं पता था कि डा0प्रवीर के दिल में माहम के लिये क्या है। वह मन ही मन माहम को अपनी जीवन संगिनी बनाने का फैसला कर चुका था। और आज उसने यह भी तय किया था कि वह माहम के सामने अपने दिल का हाल कह देगा। और इसके लिये उसके पास मौका भी था।

वह कुछ स्टूडेन्टस को कालेज के वार्षिक समारोह के लिये एक प्रोग्राम तैयार करा रहा था, जिसमें फिजि़क्स के कुछ नियमों को दर्शकों के सामने पेश किया जाना था। और प्रस्तुतकर्ताओं में माहम भी शामिल थी। उसी प्रस्तुति के सिलसिले में अभी वह आने वाली थी।

''सर!" माहम की आवाज़ सुनकर उसने सर उठाया। माहम की आवाज़ ही उसके बदन में अजीब सी कैफियत पैदा कर देती थी।
''आओ आओ माहम।" वह जल्दी से सीधा होकर बैठ गया। माहम अन्दर दाखिल हुई । डा0प्रवीर को इतिमनान हुआ कि वह अकेली ही आयी थी।

''सर मैंने प्रेज़ेन्टेशन का मैप तैयार कर लिया है। आप एक बार देख लीजिए।"
''हाँ, ठीक है। मैं देख लूंगा।" डा0प्रवीर ने जल्दी से उसके हाथ से मैप लेकर साइड में रख दिया। माहम ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा। प्रोग्राम पेश करने में सिर्फ दो दिन बाकी रह गये थे। ऐसे में उसे सर से ऐसी लापरवाही की उम्मीद नहीं थी। 

''सर, अभी इसके बाद काफी काम है। अगर आप मेहरबानी करके अभी देख लें तो हम लोग आगे काम कर सकते हैं।" उसने थोड़ा हिचकिचाते हुए कहा। 
''हाँ। ये काम ज़रूरी है। लेकिन उससे पहले एक इससे भी ज्यादा ज़रूरी बात करनी है तुमसे।"

''कौन सी बात?" माहम को और ज्यादा आश्चर्य हुआ। 
''बैठ जाओ माहम।" उसने सामने कुर्सी की ओर इशारा किया और माहम कुछ न समझते हुए कुर्सी पर बैठ गयी। डा0प्रवीर ने मेज़ की दराज़ खोलकर एक छोटी सी डिबिया निकाली। और उसे माहम के सामने लाकर खोल दिया। डिबिया के अन्दर एक खूबसूरत सोने की हीरों जड़ी अँगूठी जगमगा रही थी।
''ये कैसी है?" डा0प्रवीर ने उसकी आँखों में देखते हुए पूछा। 
''बहुत खूबसूरत।" माहम ने तारीफी नज़रों से देखा। हालांकि अभी भी उसे नहीं मालूम था कि डा0प्रवीर उससे अँगूठी के बारे में क्यों पूछ रहा है। 

''ये मैंने अपनी होने वाली बीवी के लिये ली है।" 
''अच्छा! क्या आप शादी कर रहे हैं?" माहम ने खुश होकर पूछा। और डा0प्रवीर ने उसकी ओर अफसोस से देखा। आखिर ये लड़कियां दूसरे के दिल की बात आसानी से क्यों नहीं समझतीं। 

''हाँ। मैंने अपने लिये एक लड़की पसंद की है। लेकिन मुझे ये नहीं मालूम कि वह भी मुझे पसंद करती है या नहीं।"
''सर। अगर वह कहीं आसपास रहती है तो मैं उससे इस बारे में पूछ लूं?" माहम ने हमदर्दी से कहा। बेचारे प्रवीर सर। अभी तक उन्हें अपनी होने वाली बीवी के दिल का हाल तक नहीं मालूम था।

''हाँ, इस बारे में केवल तुम ही मेरी मदद कर सकती हो।" डा0प्रवीर के लहजे में कोई अजीब बात इस बार माहम ने महसूस की।

''सर। तो फिर आप बताइये कि वह कौन है?" मैं जल्द से जल्द उससे बात करने की कोशिश करूंगी।
''तुम्हें खुद अपने से ही पूछना होगा माहम। वह लड़की तुम ही हो।" डा0प्रवीर की भारी भर्रायी हुई आवाज़ उसकी भावनाओं के अत्यधिक प्रवाह को इंगित कर रही थी।

उधर माहम की यह हालत थी कि काटो तो खून नहीं। उसने कभी सर को इस नज़र से देखा ही नहीं था। बल्कि सर से शादी का ख्याल ही उसके लिये डरावने ख्वाब की तरह था। हालांकि सर ने उसके साथ कभी सख्ती नहीं की थी लेकिन बाकी स्टूडेन्ट को वो देखती थी कि किस तरह वे सर की झिड़कियाँ खाने से बचने के लिये उन्हें देखते ही रास्ता बदल लेते हैं। 

------जारी है.