Wednesday, November 4, 2009

हास्य नाटक ‘‘पागल बीवी का महबूब’’ का मंचन

लखनऊ की जानी मानी कल्चरल संस्था मून आर्टस एण्ड मोशन पिक्चर्स ने राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह में हास्य नाटक ‘‘पागल बीवी का महबूब’’ का मंचन दिनांक 03-11-09 को किया। नाटक का लेखन किया था जीशान हैदर जैदी ने, व निर्देशक थे श्री शराफत खान। लखनऊ के जाने माने लेखक जीशान हैदर जैदी अनेकों नाटक, टेलीफिल्मस, सीरियल व कहानियां लिख चुके हैं। निर्देशक शराफत खान का नाम फिल्म तेरे मेरे सपने, पागलपन, तोहफा मोहब्बत का जैसी फिल्मों व अनेकों सीरियल्स से जुड़ा हुआ है। नाटक में प्रमुख किरदार निभाया, नईम खान, अचला बोस, मो0 मुस्तकीम, सिमरन, मुख्तार अहमद, मिदहत खान, शाकिर सिद्दीकी, आमिर मुख्तार, सरिता श्रीवास्तव, फरीद, अलीम, ताहिर, अनुज, प्रीति, राजकुमारी और मौर्या ने। ये सभी लखनऊ रंगमंच की चर्चित हस्तियां हैं।

नाटक की कहानी फाजिल मियां और उसकी बीवी के गिर्द घूमती है। साथ में है एक पागल साइंटिस्ट जो दुनिया में प्यार मोहब्बत फैलाने का ख्वाब देख रहा है। लड़ाई भिड़ाई, मार काट के इस ज़माने में मोहब्बत की तलाश चिराग लेकर सुई ढूंढने की तरह है। और किसी की मोहब्बत में डूबकर गोते खाना तो और भी मुश्किल है। आज सांइटिस्ट एटम बम और हाईडोजन बम तो बना चुके हैं। तबाही के हथियारों के एक से एक स्टाइल दुनिया को दिखा चुके हैं, लेकिन अभी तक कोई गोली या कैप्सूल नहीं बना पाये हैं जो किसी के दिल में सोई मोहब्बत और प्यार को बेदार कर दे। एक सनकी साइंटिस्ट डा0 सायनाइड इसी तरह की कोशिश करते हुए कुछ टेबलेट्‌स बनाता है जिसे फाज़िल मियां की तेज़ तर्रार और लड़ाकू बेगम गटक जाती हैं। डोज़ कुछ ज्यादा हो जाती है और बेगम पागलपन की चोटी पर पहुंच जाती हैं। सारे पुराने आशिकों की रूहें उनके दिमाग में समा जाती हैं और अपने को शीरीं समझते हुए वह फरहाद को पुकारने लगती हैं। जो उनके लिए दूध की नहर खोद सके।

फाज़िल मियां अपनी बेगम की ये ख्वाहिश पूरी करने के लिए कमर कस लेते हैं। यहीं से मुसीबतों की शुरुआत हो जाती है। ठेकेदार आकर एक से एक आईडिया पेश करते हैं। उन्हें भगाते हैं तो पड़ोसी आकर परेशान करने लगते हैं। इनकम टैक्स वाले भी सूंघते हुए पहुंच जाते हैं। हेल्थ डिपार्टमेन्ट वाले अलग धमकियाँ दे रहे हैं। बीच बीच में अनाथालय वाले और भिखारी भी लाइन लगाकर पहुंचे हुए हैं। फाज़िल मियां अब उस दिन को कोस रहे हैं जब उन्होंने नहर खोदने की हामी भरी थी। यहां तो एक नाली खोदना दुश्वार हो रहा है। आखिरकार आजिज़ आकर वह दोबारा डा0 सायनाइड के पास पहुंचते हैं। एक दूसरी दवा की खुराक बेगम के दिल से सारी मोहब्बतें गायब करके फिर से उन्हें लड़ाका तबीयत बना देती है। लेकिन अब फाजिल मियां को सुकून है।

2 comments:

seema gupta said...

बेहद रोचक रहा नाटक ..आभार

regards

Arvind Mishra said...

रोचक ,मंचन के लिए बधाई !