‘‘जहाँपनाह मेरा ईनाम?’’ डाक्टर जिंदाल ने फीरान की ओर उम्मीदभरी नज़रों से देखा।
‘‘ईनाम! हाँ तुम्हें हम ज़रूर ईनाम देंगे। मुझे मेरी मौत दिखाने का ईनाम तुम्हें ज़रूर मिलेगा।’’ कहते हुए फीरान ने फुर्ती के साथ अपनी कमर से खंजरनुमा कोई हथियार निकाला और उसका रुख डाक्टर जिंदाल की ओर करके उसपर लगा हरे रंग का बटन दबा दिया।दूसरे ही पल उस खंजरनुमा हथियार से हरे रंग की किरणें निकलकर डाक्टर जिंदाल को अपने घेरे में ले चुकी थीं। और उसके अन्दर मौजूद डाक्टर जिंदाल इस तरह चीख रहा था मानो उसका दम घुट रहा हो।
अब फीरान ने शोतन को मुखातिब किया, ‘‘शोतन, इस डाक्टर को हमारे खास कैदखाने में रखा जाये जहाँ इसे किसी किस्म की तकलीफ न हो।’’
शोतन ने सर हिलाया। अब फीरान ने अपने खंजरनुमा हथियार का रुख उस भविष्यदृष्टा मशीन की ओर किया और दूसरा बटन जो कि नीले रंग का था दबा दिया। खंजर से नीले रंग की किरणें निकलकर मशीन से टकरायीं और पूरी मशीन पिघलकर नीले रंग के द्रव में बदलने लगी।
‘‘आपने मशीन नष्ट क्यों कर दी जहाँपनाह?’’ शोतन ने डरते डरते पूछा।
‘‘जो मशीन मुझे मेरी मौत दिखाये वह खुद मरने के काबिल है।’’ फीरान ने भयानक आवाज़ में कहा और फिर तेज़ तेज़ कदमों से चलता हुआ वहाँ से निकल गया। शायद वह अपने महल में वापस जा रहा था।
उधर शोतन किरणों के पिंजरे में तड़पते डाक्टर जिंदाल को व्यंग्यपूर्ण नज़रों से देख रहा था, फिर वह उसे पुचकारते हुए बोला,
‘‘च..च...उफ मुझसे तुम्हारी तड़प देखी नहीं जा रही। आखिर तुमने ऐसा काम क्यों किया, जिसने जहाँपनाह को नाराज़ कर दिया। खैर अब उनके हुक्म का पालन करना ही पड़ेगा। अब तुम जहाँपनाह के खास कैदखाने में जाने को तैयार हो जाओ फीरान के देश के सबसे बड़े साइंटिस्ट। आज के बाद अब तुम कोई नया आविष्कार नहीं कर पाओगे।’’
‘‘शोतन, मेरी मशीन ने जो भविष्य बताया है वह अटल है। फीरान की मौत उसकी तक़दीर में लिखी जा चुकी है।’’ अन्दर से तड़पते हुए डाक्टर जिंदाल की आवाज़ आयी।
‘‘देखते हैं। फिलहाल तो तुम्हारे हीरो की माँ की तक़दीर जहाँपनाह लिखने जा रहे हैं। कहीं ऐसा न हो कि मिस्टर परफेक्ट पैदा ही न हो सकें।’’
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जयंती को लेकर जुरात फीरान की सेवा में हाज़िर हो चुका था। फीरान उसे घूर रहा था। जयंती के चेहरे पर भय के लक्षण थे।
‘‘क्यों बुलाया है तुमने मुझे? मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?’’ जयंती ने डरे हुए स्वर में कहा।
‘‘डरो नहीं मेरी तुमसे कोई दुश्मनी नहीं।’’ फीरान ने एक क्रूर हंसी हंसकर कहा।
‘‘तो फिर तुमने मुझे क्यों बुलाया है?’’
‘‘इसलिए क्योंकि तुम्हारी कोख में पलने वाला बच्चा मेरा दुश्मन है। और मैं अपने दुश्मन को कभी नहीं छोड़ता।’’
जहाँ पहले के शब्दों ने जयंती को थोड़ा सुकून बख्शा था वहीं इस वाक्य ने उसे अन्दर तक हिला दिया।
‘‘जिस बच्चे ने अभी दुनिया में आँखें भी नहीं खोली हैं वह तुम्हारा दुश्मन कैसे हो गया।’’ जयंती ने इस प्रकार फीरान को देखा मानो उसकी दिमागी हालत पर शक कर रही हो।
‘‘वह मेरा दुश्मन है। मेरे साइंटिस्ट की बनायी मशीन ने मुझे मेरा भविष्य दिखा दिया है जिसमें वह बच्चा मेरी हत्या करेगा। लेकिन उससे पहले मैं उसे खत्म कर दूंगा।’’ फीरान अपनी हथेली पर घूंसा मारकर दहाड़ा।
अभी तक जयंती जो फीरान के डर से काँप रही थी अचानक खिलखिला कर हंस पड़ी।
‘‘तू हंस क्यों रही है औरत। क्या डर से तेरा दिमाग पलट गया है?’’ फीरान ने तेज़ आवाज़ में कहा।
‘‘मैं इसलिए हंस रही हूं कि पूरी दुनिया को रौंदने वाला डिक्टेटर एक ऐसे बच्चे से खौफ खा रहा है जिसने अभी जन्म भी नहीं लिया है। कितना कायर है तू। अपनी मौत का इतना खौफ, कि एक बच्चे को दुनिया में आने से रोक रहा है इस अंदेशे में कि वह तुझे यानि दुनिया के सबसे शक्तिशाली शासक को मार डालेगा।’’ जयंती उसे लगातार ताने पर ताने दे रही थी।
फीरान जयंती की बात पर ठिठक कर कुछ सोचने लगा था। फिर वह धीरे से मुस्कुराया, ‘‘नहीं मैं तुम्हारे बच्चे को दुनिया में आने से नहीं रोकूंगा। मैं भी देखूंगा कि वह मिस्टर परफेक्ट कैसे बनता है।’’
यह शब्द कहते कहते उसने अचानक अपना इलेक्ट्रानिक खंजर कमर से खींच लिया। और उसका रूख जयंती की ओर कर दिया।
‘‘तुम क्या कर रहे हो।’’ जयंती चीख उठी।
‘‘मैं तुम्हारे बच्चे को मिस्टर परफेक्ट रहने ही नहीं दूंगा। घबराओ मत। मेरे खंजर में मौजूद सर्जिकल किरणें बहुत आराम से अपना काम करती हैं। ये तुम्हारे अन्दर मौजूद उस बच्चे के हाथ पैर काटकर उसे मिस्टर परफेक्ट रहने ही नहीं देगी। और तुम्हें पता भी नहीं चलेगा।’’ एक वहशियाना मुस्कुराहट फीरान के चेहरे पर जमी हुई थी।
‘‘नहीं ज़ालिम। तू ऐसा नहीं कर सकता।’’ जयंती चीख पड़ी और अपने शरीर को छुपाती वहाँ से बचकर चले जाने की कोशिश करने लगी।
लेकिन उसी समय कई रोबोट पहरेदार वहाँ पहुंच गये और उन्होंने जयंती को बुरी तरह जकड़ लिया।
फीरान के हाथ में मौजूद खंजर से अजीब सी किरणें निकल चुकी थीं जिनका रंग रक्त लाल जैसा था। ये किरणें देखने में किसी आरी जैसी मालूम हो रही थीं और बहुत धीरे धीरे जयंती की ओर बढ़ रही थीं। जयंती चीख रही थी और रोबोटों की पकड़ से आज़ाद होने की कोशिश कर रही थी। लेकिन रोबोटों की पकड़ बहुत मज़बूत थी।
फिर वे किरणें जयंती के जिस्म से टकराईं और देखने वालों को लगा कि वे उसके जिस्म के अन्दर घुसती चली गयीं। जयंती को ऐसा महसूस हो रहा था मानो उसके जिस्म के अन्दर बहुत से आरे चल रहे हों।
एक माँ अपने पेट में तड़पते हुए बेटे का दर्द महसूस कर रही थी और बिलख रही थी।
और सामने मौजूद ज़ालिम फीरान कहकहे लगा रहा था, ‘‘हा हा हा। मेरी मौत। ये पैदा होने के बाद मेरी मौत बनने वाला था। मैंने अपनी मौत को हमेशा के लिये अपाहिज कर दिया। अपाहिज मौत।’’ वह फिर कहकहे लगाने लगा।
‘‘फीरान, थू है तेरे ऊपर। एक मासूम बच्चे पर भी तूने तरस नहीं खाया जिसने अभी दुनिया में आँखें भी नहीं खोली हैं। तेरा अंजाम बहुत बुरा होगा।’’ जयंती विलाप कर रही थी।
‘‘अब मैं तेरी बात का बिल्कुल बुरा नहीं मानूंगा। क्योंकि तेरे पति को मेरी सेना ने मारा और मैंने तेरे बेटे को अधूरा कर दिया। इसलिए तेरा पागल होना वाजिब है।’’ फीरान हंसते हुए कह रहा था। फिर वह अपने वज़ीर जुरात से मुखातिब हुआ,
‘‘जुरात! इसे ले जाकर इसके घर के पास किसी कूड़े के ढेर पर डलवा दे।’’ उसके शब्द समाप्त हुए और जुरात ने पहरेदार रोबोटों को जयंती को वहाँ से ले जाने का आदेश दे दिया। जयंती चीख चीखकर फीरान और उसकी सत्ता को बद्दुआएं दे रही थी।
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फीरान के ज़ुल्म बढ़ते जा रहे थे और उसका विरोध करने वाले खत्म होते जा रहे थे। उसने सोने चाँदी का एक पूरा शहर अपनी ऐय्याशियों के वास्ते बनाने का इरादा किया था और इस काम के लिये उसने हरस को नियुक्त किया था।
हरस ने पूरी दुनिया के इंसानों को इस काम में बंधुआ मज़दूरों की तरह झोंक दिया था। आठ घंटे वे अपना काम करते थे और बारह घंटे उन्हें फीरान के शहर के निर्माण में लगना था। अपने आठ घंटे में उन्हें थोड़ा सा आराम करने की मोहलत थी लेकिन फीरान के काम में उन्हें एक सेकंड की भी मोहलत नहीं थी।
अगर काम करते करते उनका जिस्म थक जाता तो मौत ही उन्हें आराम देती थी जो कि हरस के खुंखार पहरेदारों की डेथ किरणों के रूप में आती थी और उन्हें चाट जाती थी।
उधर जयंती का लाडला दुनिया में आ चुका था।
बच्चा बहुत खूबसूरत था, मानो चाँद ज़मीन पर उतर आया हो। लेकिन जिसने भी उसे देखा अपनी सिसकियां नहीं रोक पाया। क्योंकि न तो उसके पास हुमकने के लिये हाथ थे और न घुटनियों चलने के लिये पैर।
उसके दोनों हाथ कंधों के पास से नदारद थे। और पैरों के नाम पर घुटनों से ऊपर का कुछ हिस्सा दिखाई दे रहा था।
डाक्टरां ने जयंती को राय दी, ‘‘यह बच्चा हमेशा तुम्हारे लिये एक मुसीबत बना रहेगा। बेहतर होगा कि तुम इसे खत्म करने की हामी भर लो। ज़हर का एक इंजेक्शन इसे और तुम्हें दोनों को तमाम तकलीफों से बचा लेगा।’’
‘‘नहीं! हरगिज़ नहीं!’’ जयंती चीख उठी, ‘‘ये मेरा बेटा है। मेरे दिल का टुकड़ा। इसके हाथ और पैर मैं बनूंगी। इसे किसी चीज़ की कमी नहीं महसूस होगी। तुम लोग अपनी ज़ालिमाना राय अपने पास रखो।’’
यह सुनकर डाक्टरों ने अपना सर झुका लिया और खामोशी से वहाँ से चले गये।
जयंती बेतहाशा अपने अपाहिज बच्चे को चूम रही थी। और कह रही थी, ‘‘यह मेरा प्यारा बहादुर बेटा है। देखना यह बिना हाथ पैरों के तमाम लोगों को पीछे छोड़ते हुए तरक्की करेगा। अपने बाप की तरह यह महावीर होगा। मेरा महावीर।’’
उसी वक्त उस बच्चे का नामकरण हो गया था - महावीर।
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महावीर धीरे धीरे बड़ा हो रहा था। जयंती उसे हर समय सीने से लगाये रखती थी। उसे महसूस होता था कि महावीर और बच्चों से अलग है। जहाँ दूसरे बच्चे भूख लगने पर तेज़ आवाज़ में रोने लगते हैं। महावीर इस के विपरीत थोड़ा सा रोकर चुप हो जाता था और इंतिज़ार करता था कि कब उसकी माँ आकर उसे दूध पिलाती है।
झूले की उम्र में ही उसके अन्दर सब्र करने की क्षमता अत्यधिक थी। और साथ ही सीखने की क्षमता भी।
जिस उम्र में बच्चे हाथ पैरों के बल पर खिसकते हुए अपनी पसंद की चीज़ उठा लेते हैं, महावीर ने बिना हाथ पैरों के बाकी शरीर के बल पर खिसकना सीख लिया था। और मनचाही जगह पर आराम से पहुंच जाता था।
वह खाने पीने की चीजें़ सीधे अपने मुंह से उठा लेता था और जब उसी मुंह से वह खाने की भी कोशिश करता था तो उसे नाकाम होते देखकर जयंती अपने आँसू रोक नहीं पाती थी।
लेकिन फिर ये नाकामी धीरे धीरे कामयाबी में बदलने लगी। अब वह खाने की चीज़ों को मुंह से पकड़कर खाने का अभ्यस्थ हो गया था।
उसके अन्दर मानसिक क्षमता दूसरे बच्चों से कई गुना ज़्यादा थी। वह तेज़ी के साथ ऐसी बातें सीख रहा था जो बाक़ी बच्चे बहुत देर में सीखते हैं। बिना हाथ पैरों के वह मात्र अपने शरीर को ज़मीन पर खिसकाते हुए इतनी तेज़ चलता था कि लोग उसे हैरत से देखने लगते थे।
जयंती उसे बाहर नहीं जाने देती थी। उसके लिये घर ही में ट्यूटर का इंतिज़ाम उसने कर दिया था। उसने दाँतों में पेंसिल पकड़कर लिखने की तरकीब निकाल ली थी और साथ ही मोबाईल व कम्प्यूटर गेम्स भी दाँतों से पेंसिल या कोई और साधन थामकर खेलने लगा था।
अक्सर बातें वह लिखने की बजाय याद कर लेता था। जब ट्यूटर उसे अपना दिया हुआ होमवर्क सुनाने को कहता तो वह हूबहू इस तरह सुनाता था जिस तरह ट्यूटर ने उसे एक दिन पहले पढ़ाया होता था। उसकी स्मरण शक्ति गज़ब की थी।
फीरान ने उसके हाथ पैर छीन लिये थे, लेकिन बदले में ईश्वर ने उसकी बाक़ी इन्द्रियों को कई गुना शक्तिशाली कर दिया था। कोई नहीं कह सकता था कि उसे अपने हाथ पैरों का अभाव महसूस होता है।
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वक्त का पहिया घूमता रहा और महावीर पाँच साल का हो गया।
सर्दियों का मौसम शुरू हो गया था। जयंती महावीर को लेकर बीस मंज़िला बिल्डिंग की छत पर आ गयी थी। जहाँ फैली हुई धूप काफी खुशगवार मालूम हो रही थी। उसने महावीर को एक तरफ बिठा दिया और एक किताब पढ़ने लगी। किताब काफी दिलचस्प थी जिसने उसे आसपास के माहौल से बेखबर कर दिया।
फिर किसी आहट ने उसकी तल्लीनता भंग कर दी।
उसने घूमकर देखा और सन्न रह गयी।
महावीर अपनी जगह पर नहीं था।
उसने बदहवास होकर एक ही बार में पूरी छत पर नज़र दौड़ाई लेकिन महावीर पूरी छत पर कहीं नहीं दिखाई दिया। एक कोने में भरे कबाड़ के अलावा पूरी छत पर कुछ नहीं था।
‘‘महावीर मेरे बच्चे। तू कहाँ है?’’ वह पागलों की तरह उसे पुकार रही थी।
लेकिन जवाब में महावीर की कोई आवाज़ नहीं सुनाई दी। तमाम अंदेशों के साथ उसने छत से नीचे झांका और धक से रह गयी।
बिल्डिंग के पीछे की साइड में एक जगह अच्छी खासी भीड़ दिखाई दे रही थी।
‘‘महावीर! मेरे बच्चे।’’ वह रोती बिलखती सीढ़ियों के ज़रिये नीचे भागी। बदहवासी में वह कई कई सीढ़ियां एक साथ फलांग रही थी। उसे कुछ होश नहीं था कि किस तरह उसने बीस मंज़िलें तय कीं और उस स्पॉट पर पहुंची।
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आगे क्या हुआ इसे जानने के लिये पढ़ें इस धारावाहिक का अगला भाग। और कहानी की कड़ियों की सूचना मिलती रहे इसके लिये लेखक को फॉलो करें. सम्पूर्ण उपन्यास एक साथ पेपरबैक संस्करण में निम्न लिंक पर उपलब्ध है।
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