वहाँ महावीर मौजूद था। एक दीवार से टेक लगाये हुए।
और जिंदा व पूरी तरह सही सलामत था। होंठों पर एक मुस्कान खेल रही थी।‘‘मेरे बच्चे!’’ जयंती ने दौड़कर उसे गोद में उठा लिया और बुरी तरह चूमने लगी। वह उसके जिस्म को टटोल टटोलकर देख रही थी। लेकिन महावीर के जिस्म पर कहीं खराश भी नहीं आयी थी।
‘‘बहन जी। अपने बच्चे को संभालकर रखा करो। आज तो अनर्थ हो गया था।’’ वहाँ मौजूद एक अधेड़ व्यक्ति ने टोका।
‘‘य ये पता नहीं कैसे हो गया।’’ जयंती घबरायी हुई कह रही थी।
अब भीड़ छंट रही थी।
‘‘महावीर, मेरे बच्चे। ये सब कैसे हुआ?’’ जयंती के हवास थोड़े दुरुस्त हुए थे अतः वह महावीर से पूछ रही थी, जिसके होंठों पर बहुत भोली सी मुस्कान टिकी हुई थी।
‘‘कोई खास बात नहीं माँ। मैं अपनी पतंग के सहारे नीचे आया हूं।’’
‘‘क्या?’’ जयंती ने हक्का बक्का होकर पूछा।
‘‘मैंने कुछ दिन पहले टीचर जी से पूछा था कि पतंग कैसे उड़ती है। उन्होंने बताया और साथ में ग्लाईडर के बारे में भी बताया। सो मैंने अपना ग्लाइडर तैयार किया, उसपर बैठा और उड़कर नीचे आ गया।’’ उसने साइड में इशारा किया।
जयंती ने देखा। वह ग्लाइडरनुमा फाइबर की शीट थी। जिसे वह छत पर कई दिनों से कबाड़ के बीच देख रही थी। और उसने कई बार महावीर को उस शीट से जूझते भी देखा था। लेकिन यह सोचकर कि वह उससे खेल रहा है कोई ध्यान नहीं दिया था।
लेकिन उसके दिल में इतना खतरनाक ख्याल पनप रहा है अगर वह पहले से जानती होती तो उस शीट को वहाँ से हटा ही देती।
‘‘मेरे बच्चे तूने इतना खतरनाक खेल खेला। अगर तुझे कुछ हो जाता तो।’’ उसने एक बार फिर महावीर को सीने से लगा लिया।
‘‘मुझे कुछ नहीं होता माँ।’’ महावीर बिल्कुल नार्मल लहजे में बोल रहा था, ‘‘ज़्यादा से ज़्यादा दूसरी दुनिया में पहुंच जाता।’’
‘‘खामोश!’’ जिंदगी में पहली बार जयंती ने अपने लाडले को एक तमाँचा मारा था, ‘‘आइंदा मरने की बात भी मत करना। और वादा कर कि फिर कभी ऐसा खतरनाक खेल नहीं खेलेगा।’’
‘‘माँ, आप ही ने मुझे बताया है कि मेरे बाप दादा बहुत वीर थे। और इसीलिए आपने मेरा नाम महावीर रखा है। तो फिर अब मुझे कायरता का सबक क्यों पढ़ा रही हैं?’’
जयंती उसकी बात पर चुप हो गयी। फिर धीरे से बोली, ‘‘मुझे माफ कर देना मेरे बच्चे। तू एक वीर का बेटा है और खुद भी महावीर है। मैं ममता में बह गई थी। जैसी तेरी मर्ज़ी वैसा तू कर। लेकिन संभल कर तेरी जान बहुत कीमती है। चाहे बाकी दुनिया के लिये न हो लेकिन तेरी माँ के लिये तो बहुत ही ज़्यादा।’’
‘‘तू फिक्र न कर। मुझे कुछ नहीं होगा।’’ महावीर के लहजे में कोई ऐसी बात ज़रूर थी जिसने जयंती के बेचैन दिल को एकदम से ठहरा दिया था।
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फिर जयंती को एक नयी फिक्र ने घेर लिया था। घर पर आने वाले टीचर ने महावीर को आगे पढ़ाने से इंकार कर दिया था।
‘‘मुझे जितना ज्ञान था वह सब मैंने इसे दे दिया है। अब इसे आगे पढ़ाना मेरी सामर्थ्य से बाहर है।’’ उसने कहा।
अब जयंती ने महावीर का एडमीशन किसी स्कूल में कराने के लिये हाथ पैर मारने शुरू किये। लेकिन अपंग महावीर को कोई भी स्कूल लेने के लिये राज़ी नही हुआ। यहाँ तक कि विकलांगों के स्कूल ने भी उसका एडमीशन करने से मना कर दिया।
‘‘बहन जी!’’ स्कूल की प्रिंसिपल बोली, ‘‘अगर बच्चे में कोई एक दोष हो यानि हाथ न हों या पैर न हों तो उसे संभाला जा सकता है। लेकिन जिस बच्चे के हाथ पैर दोनों ही न हों उसे हम नहीं संभाल पायेंगे।’’
‘‘आप प्लीज़ इसका एडमीशन ले लीजिए। मैं आपको यक़ीन दिलाती हूं, इसकी वजह से आपको कोई तकलीफ नहीं होगी।’’ जयंती की इस रिक्वेस्ट का भी प्रिंसिपल पर कोई असर नहीं हुआ और वहाँ से साफ इंकार हो गया।
जयंती वहाँ से मायूस होकर महावीर को लेकर बाहर निकल आयी। उसने महावीर के चेहरे पर उदासी के भाव देखने चाहे। लेकिन वहाँ तो चेहरा सपाट था। उसने शुरूआत से ही ये ग़ौर किया था कि महावीर के चेहरे से किसी भी भाव का अंदाज़ा लगाना बहुत मुश्किल है। वह अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने में माहिर था।
फिर भी जयंती ने उसे दिलासा देते हुए कहा, ‘‘घबराओ मत मेरे बेटे! तुम्हारा एडमीशन किसी न किसी स्कूल में ज़रूर होगा।’’
जयंती की बात का जवाब देने की बजाय महावीर ने सामने देखते हुए कहा, ‘‘वह सामने शॉपिंग मॉल है। चलिए कुछ खरीदते हैं।’’
जयंती समझ गयी कि महावीर इस विषय को टालना चाहता है। वह खुद भी यही चाहती थी अतः उसने महावीर की व्हील चेयर मॉल के रास्ते पर डाल दी। टेक्नोलॉजी ने इतनी आसानी ज़रूर कर दी थी कि उसे पुराने ज़माने की तरह व्हील चेयर को घसीटना नहीं पड़ता था बल्कि रिमोट के ज़रिये वह उसे मनचाही दिशा में चला देती थी।
वह उस इलाके का सबसे बड़ा शॉपिंग मॉल था। जयंती महावीर को लेकर उसके अन्दर दाखिल हुई और शो केसों में रखे सामानों को देखने लगी। महावीर भी उन चीज़ों पर अपनी निगाह दौड़ा रहा था।
उसी समय मॉल में दो व्यक्ति दाखिल हुए। और उन्हें देखते ही पूरे मॉल का माहौल एकदम से बदल गया। ज़्यादातर लोग बदहवास नज़र आने लगे थे।
उन दोनों व्यक्तियों के चारों तरफ हरे रंग की रोशनी का घेरा दिखाई दे रहा था। और बदहवासी की वजह यही घेरा था। क्योंकि यह इस बात की पहचान थी कि ये दोनों वही मशहूर लुटेरे हैं जिन्होंने पूरे शहर की नाक में दम कर दिया है।
पिछले एक महीने से वे इसी प्रकार हरे रंग के घेरे में किसी मॉल या किसी दुकान में दाखिल होते थे और लूटमार करके चले जाते थे। उस हरे रंग के घेरे को न तो कोई छू सकता था क्योंकि छूने वाले को तेज़ बिजली का झटका लगता था और साथ ही उसके अन्दर गोलियां भी अपना असर खो देती थीं। पुलिस भी उन्हें पकड़ने में नाकाम थी।
वैसे भी फीरान के शासन में पुलिस केवल वसूली करके फीरान के खज़ाने को भरने का साधन रह गयी थी और चोरी डकैती वगैरा रोकने से उनका कोई मतलब नहीं रह गया था।
‘‘उम्मीद है हमें देखकर आप लोगों को खुशी नहीं हो रही होगी।’’ एक लुटेरा कह रहा था, ‘‘कोई बात नहीं। हम आपसे रिश्तेदारी तो जोड़ने नहीं आये हैं। अब चुपचाप एक बड़ा सा थैला लो और उसमें अपनी अपनी फेराओं को डालना शुरू कर दो।’’
चूंकि इस समय पूरी दुनिया का बादशाह फीरान बन चुका था, सो उसने अपनी करंसी भी पूरी दुनिया में लागू कर दी थी जिसका नाम फेरा था।
उन लुटेरों ने वहाँ मौजूद गार्ड को थैले में लोगों की फेराओं को इकट्ठा करने का हुक्म दिया और जिस गार्ड के ऊपर मॉल की पहरेदारी की ज़िम्मेदारी थी उसने लुटेरों के हुक्म के मुताबिक थैले में माल भरना शुरू कर दिया। अपनी जान किसे नहीं प्यारी होती। अगर लुटेरे उसे मार देते तो उसके बच्चों को कोई पूछने वाला नहीं था। फीरॉन की हुकूमत में आम आदमी की जान की कोई क़ीमत नहीं थी।
थैले तेज़ी से भर रहे थे। दोनों लुटेरे घूमते घूमते जयंती के पास आ पहुंचे। फिर उनमें से एक की नज़र व्हीलचेयर पर टिके महावीर पर पड़ी।
‘‘अरे देखो। ये कार्टून।’’ उसने हंसकर दूसरे से कहा।
दूसरे ने भी उसे देखकर हंसान शुरू कर दिया।
अपने बेटे का मज़ाक उड़ते देखकर जयंती की आँखों में आँसू आ गये।
‘‘इसका नाम क्या है?’’ एक लुटेरे ने हंसते हुए पूछा। जयंती ने कोई जवाब नहीं दिया।
‘‘मैंने पूछा इसका नाम क्या है?’’ लुटेरे ने गन की नाल से जयंती को स्पर्श किया।
‘‘मेरा नाम महावीर है।’’ इसबार महावीर खुद बोला। अपना मज़ाक उड़ते देखकर भी उसके चेहरे पर गुस्से का कोई भाव नहीं उभरा था।
बल्कि उल्टे उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट खेल रही थी।
‘‘महावीर!’’ दोनों लुटेरों ने कहकहा लगाया, ‘‘बच्चे, कितना गलत नाम तेरा रख दिया गया। तेरा नाम तो केंचुआ होना चाहिए था।’’ दोनों फिर हंसने लगे।
उसी समय ऐसा लगा जैसे व्हील चेयर पर कोई गेंद बहुत ज़ोर से उछली हो। महावीर कुछ इसी तरह उछला था, और फिर लुढ़कता हुआ पल भर में एक लुटेरे की दोनों टाँगों के बीच पहुंच चुका था।
लुटेरे का संतुलन बिगड़ा और वह चारों खाने चित हो गया।
महावीर एक बार फिर सीने के बल उछला और सर से उस लुटेरे की कमर पर वार किया। दूसरे ही पल उस लुटेरे के चारों तरफ का हरा घेरा गायब हो चुका था।
अभी तक दोनों लुटेरों की समझ में ही नहीं आया था कि यह क्या हो गया। फिर जिस लुटेरे से महावीर चिमटा हुआ था उसने उसके ऊपर गन चलाने की कोशिश की, लेकिन महावीर ने उसका बाज़ू दाँतों से पूरी ताकत के साथ दबा लिया और लुटेरे की चीख निकल गयी।
दूसरे लुटेरे ने महावीर को हटाने की कोशिश की लेकिन तब तक मॉल की पब्लिक वहाँ पहुंच चुकी थी। और उसने पहले वाले लुटेरे को घेर लिया। चूंकि उसके चारों तरफ का हरा घेरा हट चुका था अतः उन्हें झटके खाने का कोई डर नहीं था।
‘‘हट जाओ वरना मार डालूंगा।’’ दूसरा लुटेरा थोड़ा बदहवास होकर चीखा।
अब तक वहाँ मौजूद गार्डों ने भी अपनी गनें संभाल ली थीं और दोनों लुटेरों को घेरकर खड़े हो गये थे।
‘‘अपने को हमारे हवाले कर दो वरना तुम्हारे साथी को हम मार देंगे।’’ गार्डों ने दूसरे लुटेरे को चेतावनी दी।
पहला लुटेरा शायद बॉस था। अतः उसे बचाने के लिये दूसरे ने समर्पण कर दिया। अब उसने भी अपना सुरक्षा घेरा हटा दिया था।
दोनों को बाँध कर वहीं डाल दिया गया। अब चारों तरफ से महावीर की तारीफें हो रही थीं। लेकिन महावीर के चेहरे से उन तारीफों का भी कोई असर ज़ाहिर नहीं हो रहा था।
फिर एक व्यक्ति के पूछने पर उसने बताया, ‘‘मैं उनके हरे घेरों को गौर से देख रहा था और मैंने मार्क किया कि उनके पैरों के नीचे की तरफ वह घेरा नहीं है। जब वे लोग मॉल के अन्दर दाखिल हुए थे तो उन्होंने अपनी कमर के पास लगे एक बटन को दबाकर उन घेरों को पैदा कर लिया था। इसीलिए मैं रेंगते हुए उनके पैरों के पास पहुंचा और फिर उस बटन को दबाकर उस घेरे को हटा दिया।’’
वहाँ मौजूद सभी उसकी फुर्ती, हिम्मत और अक्ल की तारीफीं कर रहे थे। लेकिन जयंती उन तारीफों को सुनकर न जाने क्यों सिमटी व घबराई जा रही थी।
फिर उसने जल्दी से महावीर को व्हील चेयर पर बिठाया और लोगों से ज़रूरी काम का बहाना करती हुई वहाँ से निकल आयी।
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