‘‘किसी जीवित शरीर की प्रत्येक हरकत एक विद्युतीय स्पंद का नतीजा होती है जो उस शरीर के मस्तिष्क से उत्पन्न होती है, या फिर कभी कभी मेरूदण्ड से। मस्तिष्क द्धारा दिये गये आदेश शरीर के न्यूरानों द्धारा विद्युतीय स्पंद के रूप में उस अंग तक पहुंचता है जिसके लिए वह आदेश होता है। फलस्वरूप वह अंग हरकत में आता है। उदाहरण के लिए अगर मेरा मस्तिष्क मेरे हाथ को कुछ लिखने का आदेश देगा तो यह आदेश विद्युतीय रूप में न्यूट्रानों द्धारा हाथ को मिलेगा और फिर हाथ कलम उठाकर लिखना शुरू कर देगा।’’
डेनियल अब मौन होकर डा.आनन्द की बात सुन रहा था। क्योंकि अब उसे लग रहा था कि डा.आनन्द कुछ खास बताने जा रहा है।
‘‘अब इन विद्युतीय स्पंदों की खास बात यह है कि ये नियत न होकर लगातार बदलते रहते हैं। सो इनमें हम फैराडे का नियम लागू कर सकते हैं। यानि किसी जन्तु के शरीर के पास अगर कोई क्वायल रख दी जाये तो उसमें विद्युत धारा पैदा हो जायेगी। ये अलग बात है कि यह धारा इतनी कम होगी अत्यधिक सेन्सेटिव अमीटर भी उसे नहीं नाप सकता।’’
‘‘ठीक है।’’ काफी देर बाद प्रो.डेनियल बोला।
‘‘लेकिन एक तरीका है, जिससे हम यह धारा बढ़ा सकते हैं।’’
‘‘वह क्या?’’
‘‘शारीरिक धारा और क्वायल की धारा को परस्पर संयुक्त करने का काम करते हैं फोटाॅन। अगर किसी तरकीब से हम उन फोटाॅनों की एनर्जी बढ़ा सकें तो क्वायल में पैदा हुई धारा इतनी बढ़ सकती है कि हम उसका इस्तेमाल कर लें।’’
‘‘लेकिन फोटाॅनों की एनर्जी कैसे बढ़ेगी?’’ प्रो.डेनियल ने पूछा।
‘‘इसके लिए हम लेंस, प्रिज्म और एल.सी.डी. जैसे प्रकाशीय यन्त्रों का उपयोग कर सकते हैं। यहाँ का पूरा सेटअप इसी थ्योरी पर आधारित है।’’ डा.आनन्द ने चारों तरफ घूमते हुए कहा।
‘‘लेकिन इस तरह क्वायल की करंट बढ़ाकर तुम करना क्या चाहते हो?’’
‘‘फैराडे नियम के अनुसार जिस पैटर्न में पहली क्वायल में धारा परिवर्तित होती है, वही पैटर्न दूसरी कवायल में धारा परिवर्तन का बनता है। ठीक इसी नियम पर जैसे जैसे जीवित शरीर का मस्तिष्क आदेशों की श्रृंख्ला बनायेगा, उसी क्रम में क्वायल द्धारा पैदा हुई धारा कार्य करेगी। दूसरे शब्दों में हम विद्युत धारा के रूप में एक ऐसा सूक्ष्म शरीर बना लेंगे जो पूरी तरह जीवित शरीर के मस्तिष्क से जुड़ा रहेगा और उसके आदेशों पर अमल करेगा।’’
‘‘गुड! आईडिया बढ़िया है। और मेरा ख्याल है वह सूक्ष्म शरीर हमारे बहुत काम का होगा।’’
‘‘श्योर। चूंकि वह सूक्ष्म शरीर हाड़ मांस का नहीं होगा इसलिए हम उसे कहीं भी भेज सकते हैं। अंतरिक्ष में, समुन्द्र में, किसी जीवित शरीर के भीतर, कहीं भी, किसी भी समय। इस तरह हम किसी भी जगह पर खोज कार्य कर सकते हैं। परोक्ष रूप से वहां मौजूद रहते हुए। यहां तक कि अपने उस सूक्ष्म शरीर का उपयोग करते हुए अणुओं को आपस में जोड़ सकते हैं, कोई सूक्ष्म सर्जरी कर सकते हैं।या फिर शरीर में मौजूद बैक्टीरिया के खिलाफ लड़ सकते हैं।’’
‘‘तो फिर देर किस बात की? अपना एक्सपेरीमेन्ट चालू करो फौरन।’’
‘‘बात यहीं पर आकर रूक जाती है। समस्या ये है कि हम अपने एक्सपेरीमेन्ट को कम से कम पांच सौ बार दोहरा चुके हैं। लेकिन सूक्ष्म शरीर बनाने में कामयाबी अभी तक नहीं मिल पायी।’’
‘‘हूँ!’’ प्रो.डेनियल ने सर हिलाया, ‘‘सबसे पहले मैं तुम्हारे प्रोजेक्ट का मैथैटिकल माडल देखना चाहूँगा।’’
डा.आनन्द उसे एक दूसरे कमरे में ले गया और एक मोटी फाइल उसके हाथ में थमा दी। प्रो.डेनियल उसके पन्ने पलटने लगा। थोड़ी देर बाद उसने आनन्द को संबोधित किया, ‘‘तुमने फोटाॅनों के पाथ की जो इक्वेशंस लिखी हैं, उसमें प्रोबेबिलिटी का इस्तेमाल तो किया नहीं!’’
‘‘उसकी क्या जरूरत? फोटाॅनों का पाथ तो निश्चित होगा न?’’
‘‘यही तो गलती की है तुमने। क्वांटम लेवेल पर किसी भी कण का व्यवहार, उसका पथ निश्चित नहीं होता। इसलिए कोई भी वाक्य हम प्रोबेबिलिटी के इस्तेमाल के साथ कहते हैं। अब तुम मुझे इस कमरे में अकेला छोड़ दो। मैं इसपर काम करना चाहता हूँ।’’
डा.आनन्द उठा और खामोशी के साथ कमरे से बाहर निकल आया। उसे पता था कि अब अगर वह कुछ बोला तो प्रो.डेनियल उसका गरेबान पकड़ लेगा।
...........
पूरे एक सप्ताह बाद प्रो.डेनियल उस कमरे से बाहर निकला था। और यह पूरा सप्ताह उसने एक ही सूट में गुजारा था। जब वह बाहर निकला तो उसकी दाढ़ी और सर के बाल बुरी तरह बढ़े हुए थे।
‘‘चलो काम शुरू करते हैं।’’ वह डा.आनन्द से बोला। दोनों लैबोरेट्री में पहुंचे और उसकी मशीनों में फेरबदल करने लगे।
लगभग दो दिन की मेहनत के बाद प्रो.डेनियल डा.आनन्द के असिस्टेन्ट विनय से मुखातिब हुआ, ‘‘आ जाओ डियर। सबसे पहले मैं तुम्हारा ही सूक्ष्म शरीर बनाऊँगा।’’
‘‘म..मेरा, क..क्यों?’’ घबराहट के कारण विनय हकलाने लगा था।
‘‘डर क्यों रहे हो डियर। कुछ नहीं होगा तुम्हें। जो कुछ होगा, तुम्हारे सूक्ष्म शरीर को होगा।’’
विनय को कुर्सी पर बिठा दिया गया। जो एक गोलाकार मशीन के बीचोंबीच स्थित थी। फिर डेनियल ने एक बटन दबाया। और मशीन में मौजूद लेंसों से रंग बिरंगी किरणें निकलकर विनय पर पड़ने लगीं। विनय का पूरा शरीर उन किरणों के कारण इतना चमक रहा था कि बाकी लोगों को उसे देख पाना मुष्किल हो रहा था। खुद विनय की आँखें उन किरणों की चकाचौंध के कारण बन्द हो गयी थीं।
‘‘कुछ दिख रहा है तुम्हें?’’ प्रो.डेनियल ने पूछा।
‘‘इतनी तेज लाइट में आंखें बन्द हो गयी हैं। दिखाई कहाँ से देगा!’’ विनय के स्वर में झल्लाहट थी।
‘‘अपने दिमाग को केन्द्रित करो और आँखें बन्द किये हुए कोशिश करो कुछ देखने की।’’
विनय थोड़ी देर कुछ नहीं बोला, फिर कहने लगा, ‘‘हां। अब मुझे दिखाई दे रहा है, मेरे चारों तरफ छोटे छोटे गोले घूमते दिखाई दे रहे हैं।’’
‘‘गुड!’’ प्रो.डेनियल अब डा.आनन्द की तरफ मुड़ा, ‘‘हमारा एक्सपेरीमेन्ट कामयाब हो चुका है। अब तुम सामने दीवार की तरफ देखो। वहां तुम्हें एक छोटा प्रकाशिक बिन्दु दिख रहा है। वही विनय का सूक्ष्म शरीर है।’’
‘‘करेक्ट डा.डेनियल। हम कामयाब हो गये।’’ डा.आनन्द खुशी से उछल पड़ा।
‘‘लेकिन विनय किस तरह के गोले देख रहा है?’’ इस बार डा.आनन्द के दूसरे असिस्टेन्ट गौतम ने पूछा।
‘‘दरअसल अब बन्द आंखों से जो कुछ भी देख रहा है, असलियत में वह सब उसका सूक्ष्म शरीर देख रहा है। और वह अपने चारों तरफ घूमते हवा के अणुओं को देख रहा है।’’ डा.आनन्द ने बताया।
‘‘विनय, क्या तुम उनमें से किसी गोले को छू सकते हो?’’ प्रो.डेनियल ने पूछा।
‘‘कोशिश करता हूँ।’’ विनय ने हाथ उठाया और हवा में इधर उधर लहराने लगा।
‘‘नहीं सर। इन गोलों की गति बहुत तेज है।’’ आखिर में उसने कहा।
‘‘ठीक है। नाऊ स्टाप दि एक्सपेरीमेन्ट।’’ प्रो.डेनियल के कहने पर डा.आनन्द ने स्विच आॅफ कर दिया। विनय ने आंखें खोल दीं। अब वह चुंधियाई नजरों से चारों तरफ देख रहा था।
.............
वह एक औरत थी और खूबसूरती में अपनी मिसाल आप थी। चेहरे पर कुछ ऐसा आकर्षण था कि देखने वाला अपनी निगाह चाहते हुए भी नहीं हटा पाता था।
कुछ इसी तरह की हालत प्रो.डेनियल की भी हुई थी। जिसके सामने वह औरत मौजूद थी।
‘‘फर्माईए, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ?’’ उसने नर्म अंदाज में पूछा।
‘‘मैं डा.आनन्द से मिलना चाहती हूँ।’’ औरत ने कहा।
‘‘वह अंदर मौजूद हैं। लेकिन आप उनसे क्यों मिलना चाहती हैं?’’
---- जारी है
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मेरी कहानी की व्यथा एक बार जरुर पढ़े
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