लेखक : ज़ीशान हैदर ज़ैदी
उसने कमरे का दरवाजा खटखटाने से पहले उसपर लगी तख्ती पढ़ी, लिखा था, ‘‘डाग्स एण्ड लो नालेज पर्सन्स आर नाट एलाउड।’’
एक पल को उसे अपने कदम डगमगाते महसूस हुए। उसके पास नालेज तो थी, लेकिन पता नहीं अंदर बैठे व्यक्ति को कितनी नालेज वाला व्यक्ति पसंद था। अंदर मौजूद व्यक्ति था, प्रोफेसर डेनियल कूपर, विश्व का जाना माना भौतिकविद व गणितज्ञ।’’
बहरहाल उसने दरवाजा नाॅक किया।
‘‘कम इन।’’ अंदर से आवाज आयी। वह दरवाजे को धक्का देते हुए अंदर दाखिल हुआ। सामने प्रोफेसर डेनियल मौजूद था उसके सामने मेज पर पेपर्स और किताबों का ढेर लगा हुआ था। उसने मेज के दूसरी तरफ रखी कुर्सी पर बैठना चाहा।
‘‘रुको!’’ प्रो. डेनियल ने उसे फौरन रोक दिया, ‘‘पहले मैं तुम्हारी नालेज का टेस्ट लूँगा। मुझे मालूम तो हो कि तुम मुझसे बात करने के काबिल हो या नहीं।’’
इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता, प्रो. डेनियल ने पहला सवाल दाग़ा, ‘‘एक मीनार की चोटी से दो गेंदें गिरायी गयीं। एक भारी, दूसरी हल्की। ग्राउण्ड पर कौन सी गेंद पहले पहुँचेगी?’’
‘‘न्यूटन और गैलीलियो के नियमों के अनुसार दोनों गेंदें एक साथ ग्राउण्ड पर पहुँचेंगी।’’ उसने जवाब दिया।
‘‘गलत!’’ प्रो.डेनियल ने मेज पर हाथ मारा, ‘‘चूँकि हवा का प्रेशर हलकी पर ज्यादा होगा इसलिए भारी गेंद पहले पहुँचेगी।’’
‘‘ओह!’’
‘‘दूसरा सवाल...एक मीनार की चोटी से दो गेंदें गिरायी गयीं। एक भारी, दूसरी हल्की। ग्राउण्ड पर कौन सी गेंद पहले पहुँचेगी?’’
‘‘यह तो वही सवाल....’’
‘‘तुम जवाब दो बेवकूफ!’’
‘‘चूँकि हवा का प्रेशर हलकी पर ज्यादा होगा इसलिए भारी गेंद....’’
‘‘रांग अगेन! हवा का प्रेशर हारीजोण्टल डायरेक्शन में ज्यादा होगा। इसलिए दोनों गेंदें एक साथ जमीन पर पहुँचेंगी।’’
उसने एक गहरी साँस ली।
‘‘तीसरा सवाल.....एक मीनार की चोटी से दो गेंदें....’’
‘‘आप तो फिर वही सवाल....’’
‘‘बीच में मत टोका करो। अब जवाब दो हाफ माइंड।’’
‘‘चूँकि हवा का प्रेशर हारीजोण्टल डायरेक्शन में ज्यादा होगा। इसलिए दोनों गेंदें एक साथ जमीन पर पहुँचेंगी।’’
‘‘तुम मुझसे बात करने के काबिल ही नहीं हो। अरे बेवकूफ, गेंदों के प्रारम्भिक वेग पर भी तो बहुत कुछ निर्भर करेगा। डांट वेस्ट माई टाइम एण्ड गेट आउट।’’
वह मायूसी के साथ जाने को मुड़ा, फिर वापस घूमकर प्रो.डेनियल से मुखातिब हुआ, ‘‘प्रोफेसर साहब, जाने से पहले मैं भी आपसे एक सवाल करना चाहता हूँ।’’
‘‘और वह यकीनन कोई बेवकूफी भरा सवाल होगा। खैर पूछो।’’
‘‘आपके गले में जो टाई लटक रही है, उसके नीचे की शर्ट किधर है?’’
‘‘ऐं!’’ प्रो.डेनियल चैंक कर अपने को देखने लगा। वास्तव में उसके जिस्म पर से कमीज नदारद थी और गले से लटकती टाई उसके नंगे पेट पर इधर उधर झूल रही थी।
‘‘ओ माई गाॅड! आज मैं शर्ट पहनना कैसे भूल गया।’’ प्रो.डेनियल बदहवास होकर बोला।
‘‘अच्छा सर, तो मैं चलता हूँ।’’
‘‘नहीं, रुको, तुम्हारा नाम क्या है?’’
‘‘सर, मैं डा.आनन्द हूँ। फ्राम इण्डिया, यानि कि भारत।’’
‘‘काम क्या है तुम्हें मुझसे?’’
‘‘मैं अपने एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में आपसे मदद चाहता हूँ। क्योंकि इसमें फिजिक्स की एक बहुत ही मुश्किल प्राब्लम सामने आ रही है।’’
‘‘मैं मदद करने के लिए तैयार हूँ। लेकिन इसमें मेरी एक शर्त होगी।’’
आनन्द सहमति में सर हिलाते हुए अपने प्रोजेक्ट के बारे में संक्षेप में बताने लगा।
और थोड़ी देर बाद जब वह बाहर निकला तो उसके चेहरे पर इत्मिनान के भाव थे। क्योंकि प्रोफेसर डेनियल ने उसके प्रोजेक्ट में मदद देना स्वीकार कर लिया था। हालाँकि अब उसके जिस्म से कमीज नदारद थी। शर्त के अनुसार प्रोफेसर ने उससे कमीज माँग ली थी।
...........
इस विशालकाय कमरे में चारों तरफ मशीनों का जाल बिछा हुआ था। प्रत्येक मशीन से जुड़े हुए अनगिनत छोटे बड़े लेंस कमरे की खूबसूरती को बढ़ाने का काम कर रहे थे।
लेकिन इस खूबसूरती से ज्यादा महत्वपूर्ण वह एक्सपेरीमेन्ट था जो यहाँ पर हो रहा था। और यह तथ्य वहाँ मौजूद डा.आनन्द और उसके दोनों असिस्टेन्ट विनय और गौतम भली भाँति जानते थे।
‘‘आज हमें अपने एक्सपेरीमेन्ट को हर हाल में कामयाबी की मंजिल तक पहुँचाना है।’’ डा.आनन्द ने दृढ़ स्वर में कहा।
‘‘कामयाबी तो आज मिलनी ही चाहिए सर।’’ विनय बोला, ‘‘पिछले दो सालों से नाकामी देखते देखते हमारी तो हिम्मत ही जवाब दे गयी है।’’
‘‘क्या गारण्टी है कि हम आज भी कामयाब होंगे?’’ गौतम ने शंका जाहिर की।
‘‘अगर प्रो.डेनियल का दिमाग घूम गया तो हमारे प्रोजेक्ट की कामयाबी निश्चित है।’’
‘‘तो क्या वह यहाँ आ रहे हैं?’’ विनय ने हैरत से कहा। डा.आनन्द को जवाब देने की जरूरत न पड़ी क्योंकि उसी समय वहाँ डेनियल ने प्रवेश किया।
‘‘डा.आनन्द, हाऊ आर यू!’’ प्रो.डेनियल ने विनय की तरफ हाथ बढ़ाया।
‘‘एक्सक्यूज मी, डा.आनन्द मैं हूँ।’’ डा.आनन्द ने जल्दी से कहा।
‘‘ओह साॅरी। लेकिन मेरी मीटिंग तो इनके साथ हुई थी?’’ डा.डेनियल ने हैरत से कहा।
‘‘आप भूल रहे हैं सर, आपकी मीटिंग मेरे साथ ही हुई थी।’’ बड़ी मुश्किल से डा.आनन्द ने अपने ऊपर कण्ट्रोल करते हुए कहा। उसे आश्चर्य हो रहा था कि यह गायब दिमाग प्रोफेसर इतना बड़ा भौतिकविद कैसे बन गया।
‘‘कौन आनन्द है कौन नहीं, मुझे इससे कोई मतलब नहीं। तुम अपने प्रोजेक्ट के बारे में बताओ।’’
‘‘प्रोफेसर साहब, मेरा प्रोजेक्ट कुछ इस टाइप का है।’’ कहते हुए आनन्द एक मेज के पास पहुँचा। जिसके ऊपर ताँबे के तार की दो क्वायल एक दूसरे से थोड़ी दूर पर रखी दिख रही थीं।
‘‘मैंने पहली क्वायल में ए.सी. करेन्ट पास की और आप देख रहे हैं कि दूसरी क्वायल से जुड़ा अमीटर उसमें भी करेण्ट दिखाने लगा। ऐसा होता है फैराडे के इलेक्ट्रोमैगनेटिक इंडक्शन नियम की वजह से जिसकी वजह से दोनों क्वायल परस्पर जुड़ी न होते हुए भी इलेक्ट्रिक रूप से जुड़ जाती हैं।’’
‘‘तुम मेरा भेजा क्यों चाट रहे हो! दुनिया के जाने माने भौतिकविद को यह हाईस्कूल लेवेल की बच्चों की बातें क्यों बता रहे हो!’’ प्रो.डेनियल लगभग चीखते हुए बोला।
‘‘क्योंकि बिना यह बताये मैं अपने एक्सपेरीमेन्ट को एक्सप्लेन नहीं कर सकता।’’ डा.आनन्द शान्त स्वर में बोला।
‘‘तो फिर चाटते रहो भेजा।’’
डा.आनन्द ने आगे बोलना शुरू किया, ‘‘दो बिल्कुल अलग अलग क्वायल को जोड़ने में जिम्मेदार इलेक्ट्रोमैग्नेटिक बल प्रकाशीय कणों यानि फोटाॅनों के वितरण से पैदा होता है।’’
‘‘ये भी मुझे मालूम है।’’ इस बार प्रोफेसर डेनियल शांत लहजे में बोला, लेकिन लग यही रहा था कि अभी वह फट पड़ेगा।
‘‘अब जो मैं बताने जा रहा हूँ, वह आपको नहीं मालूम। मैं इसी इलेक्ट्रोमैगनेटिक इंडक्शन का इस्तेमाल दो शरीरों को जोड़ने में करने जा रहा हूँ, जिनमें एक जीवित शरीर होगा और दूसरा उसका इलेक्ट्रिक प्रतिरूप।’’
‘‘क्या मतलब!’’ इस बार वाकई प्रो.डेनियल चौंक पड़ा था।
---- जारी है
1 comment:
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I will go through it shortly.
With regards
H. S. Bhairnatti
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