Sunday, August 16, 2015

इच्छाधारी - हिंदी विज्ञान कथा (भाग 7)

लेकिन नेवले को सबक सिखाने की अरुण की इच्छा उसके दिल में ही रह गयी। अगली सुबह जब लोग नींद से बेदार हुए तो उन्होंने अरुण को उसके बेड पर मृत पाया। उसका गला किसी जानवर ने बेदर्दी के साथ चबाया था। हालांकि आसपास के मचानों पर सोने के बावजूद उन्हें एहसास तक न हो सका कि कब वह अज्ञात जानवर अरुण को मारकर चला गया।

रिया व दीपा बुरी तरह रो रही थीं। बाकी लोग भी ग़म में डूबे हुए थे और एक डर भी सभी के चेहरों पर मौजूद था।
‘‘संजय, फौरन वापस चलो। अब हम यहाँ नहीं रहेंगे।’’ दीपा संजय का हाथ पकड़कर बोली। 

‘‘हाँ, हम लोग फौरन वापस चलते हैं।’’ घबराया हुआ संजय दीपा को दिलासा देने लगा। फिर वह अपने बैग की तरफ बढ़ा और अपना सामान समेटने लगा। 
उसी समय किसी ने उसके कंधे पर हाथ रख दिया। उसने घूमकर देखा, फादर जोज़फ उसके पीछे मौजूद था। 

‘‘फादर...!’’ 

फादर ने एक नज़र संजय और दूसरी नज़र दीपा पर डाली, ‘‘संजय, दीपा तुम लोग क्या सोचते हो। यहाँ से बाहर निकलकर बच जाओगे? हमारा दुश्मन कहीं भी पहुंच सकता है। काश कि अरुण का निशाना न चूका होता। अब लड़ाई आर पार की हो गयी है। या तो हम उसे मार देंगे..या फिर वह हमें।’’ फादर की बात सुनकर दीपा व रिया दोनों के चेहरे सफेद हो गये। 

‘‘एक तो उस इच्छाधारी एलियेन को पहचानना ही मुश्किल है, मारना तो दूर की बात है।’’ दीपा ने धीरे से कहा।
‘‘इस मामले में मैं अब तुम लोगों की थोड़ी और मदद कर सकता हूं। ये लो’’, फादर ने अपनी जेब से कुछ लाॅकेट निकाले और उनकी तरफ बढ़ा दिये। 

‘‘ये क्या है?’’ संजय ने पूछा।

‘‘उस इच्छाधारी एलियेन के जिस्म से निकलने वाली रेज़ को पहचान कर ये काम करेगा। जैसे ही वह एलियेन किसी जानवर की शक्ल में तुम्हारे आसपास आयेगा, ये लाकेट उसकी रेज़ को पहचान कर वाइब्रेट करना शुरू कर देगा और तुम उससे अपना बचाव कर सकते हो और मौका पाकर उसे खत्म भी कर सकते हो।’’ फादर की बात सुनकर सभी की आँखों में चमक आ गयी।
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लेकिन ये चमक ज़्यादा देर क़ायम नहीं रह सकी। 

उस समय वे सभी लोग उस विशाल तालाब के किनारे से गुज़र रहे थे जब एक भीमकाय मगरमच्छ ने अचानक पानी से मुंह निकालकर रिया पर हमला किया। 

वह रिया की आखिरी चीख थी क्योंकि मगरमच्छ ने सीधे उसका सर अपने धारदार जबड़ों में जकड़ लिया था। और फिर पलक झपकते वह वापस तालाब के पानी में गुम हो चुका था और साथ में रिया का शरीर भी। और फिर उन्होंने देखा कि तालाब का पानी सुर्ख हो रहा है।

वह सभी अपने बदन में थरथरी महसूस कर रहे थे। फिर उन्हें महसूस हुआ कि उनका लाकेट भी थरथरा रहा है। 
‘‘व...वो एलियेन ही है। हमारे लाॅकेट वाइब्रेट कर रहे हैं। फादर आप कुछ कीजिए।’’ दीपा चीखकर बोली। 

लेकिन फिर उन्हें ये देखकर मायूसी हुई कि फादर भी उनकी तरह बेबसी से हाथ मल रहा है।

‘‘ह..हमें वापस लौट जाना चाहिए। सब कुछ खत्म हो चुका है। हम कुछ नहीं कर सकते।’’ संजय मायूसी भरी आवाज़ में बोला। इस बार फादर भी कुछ नहीं बोला। शायद वह भी मन ही मन हार मान चुका था। 

वो लोग अपने ठिकाने पर वापस लौट आये थे जो कुछ मज़बूत पेड़ों की डालियों पर लकड़ियों को जोड़कर बनाया गया था। अब सभी अपनी अपनी जगह बैठे आगे की कार्रवाई के बारे में सोच विचार कर रहे थे। लेकिन उनका दिमाग उन दो मौतों के बाद जड़ हो चुका था। 

फिर संजय धीरे से उठा और अपने बैग में सामान रखने लगा। उसे देखकर दीपा भी उठ खड़ी हुई और सामान समेटने लगी। 

‘‘तो तुम लोगों ने वापसी का पक्का इरादा कर लिया?’’ फादर ने गंभीर आवाज़ में सवाल किया। 
‘‘हाँ फादर। वह एलियेन हमारा दुश्मन बन ही चुका है। हो सकता है हमारे यहाँ से जाने के बाद वह हमारा पीछा छोड़ दे। लेकिन अगर यहाँ डटे रहे तो उससे हरगिज़ बच नहीं सकते।’’ संजय सामान समेटते हुए बोला। 

‘‘ठीक है।’’ फादर ठंडी साँस लेकर बोला, ‘‘मैं अब तुम लोगों को नहीं रोकंूगा। भला किस आधार पर रोकूं? जबकि मैं तुम लोगों को बचाने का कोई भरोसा नहीं दे सकता।’’ 

जल्दी ही संजय व दीपा ने अपना सामान पैक कर लिया। और फादर ने तो शायद अपने बैग से सामान निकाला ही नहीं था। अतः वह अपना बैग उठाकर उनके साथ चलने को तैयार हो गया। अब वे तेज़ी के साथ अपनी गाड़ी की तरफ जा रहे थे जो जंगल के छोर पर मौजूद थी। 

संजय और दीपा के चाल काफी तेज़ थी। वे जल्द से जल्द उस मनहूस जंगल की सीमा से निकल जाना चाहते थे। वो इतनी हड़बड़ी में थे कि उन्होंने ये भी ध्यान नहीं दिया कि फादर काफी पीछे छूट गया है। वैसे भी अपने बुढापे की वजह से वह उनका साथ नहीं दे सकता था। जल्दी ही वे अपनी गाड़ी तक पहुंच गये। 

लेकिन वहां पहुंचते ही वे डर से चीख पड़े। 

उनकी गाड़ी को एक विशालकाय अजगर अपने शिकंजे में जकड़े हुए था। 
और उसके जिस्म से निकलती चमक उन्हें दूर से ही दिखाई दे रही थी। 

‘‘स...संजय!’’ दीपा सहम कर संजय से लिपट गयी। लेकिन संजय की हालत खुद ही खराब थी। दोनों ने पलट कर वापस जंगल की तरफ दौड़ लगा दी। 

अभी वह थोड़ी दूर ही गये थे कि फादर से टकरा गये जो धीरे धीरे उनकी ही दिशा में आ रहा था। 
‘‘क्या बात है? तुम लोग इतने बदहवास क्यों हो?’’ 

‘‘फादर! व...वो एलियेन हमारी कार के पास। अजगर के रूप में।’’ बड़ी मुश्किल से दीपा के मुंह से ये शब्द निकले।’’ 

‘‘अगर वो अजगर के रूप में था तो तुमने कैसे पहचाना कि वो एलियेन है?’’ फादर जोज़फ का सवाल था।
‘‘फादर उसके जिस्म में चमक थी।’’ संजय ने बताया। 

‘‘चमक एक पहचान हो सकती है - लेकिन कनफर्म तभी हो सकता है जब वह हमारे सामने अपने रूप को बदल दे।’’ फादर कुछ सोचते हुए बोला। 

‘‘लेकिन वह हमारे सामने अपना रूप बदलेगा ही क्यों? उसे क्या ज़रूरत?’’ दीपा ने सवाल किया। 

‘‘ज़रूरत तो नहीं। लेकिन वह अपनी मर्ज़ी से ऐसा कर सकता है - इस तरह।’’ 

दूसरे ही पल उन्होंने देखा कि फादर जोज़फ का गोरा शरीर काला पड़ गया। और अब उस जगह उन्हें एक भयानक कोबरा दिखाई दे रहा था। कुछ देर वह उस शक्ल में अपनी पतली ज़बान लपलपाता हुआ उन्हें घूरता रहा फिर उसका जिस्म एक बार फिर बदल गया। और अब वहां फादर जोज़फ दोबारा मौजूद था। होंठों पर एक कुटिल मुस्कुराहट सजाये हुए।

उनके जिस्म मानो पत्थर की तरह जाम हो गये थे। आँखों की पुतलियों ने काम करना छोड़ दिया था। हैरत व डर ने उन्हें इतना जकड़ लिया था कि उनकी ज़बान भी गुंग होकर रह गयी।

अब उन्हें एहसास हो रहा था कि उन्होंने कितनी बड़ी गलती की है। अगर उन्होंने इससे पहले गौर से फादर को देखा होता तो उन्हें वह असाधारण चमक दिख जाती जो उसे और मनुष्यों से अलग कर रही थी। भारत में रहने वाला कोई व्यक्ति इतना गोरा नहीं होता। चाहे वह अंग्रेज़ ही क्यों न हो। 

जिस एलियेन को वह जंगल में ढूंढने आये थे वह तो पल पल उनके साथ था। फादर ने एलियेन की बहुत अच्छी पहचान बतायी थी, इसके बावजूद वे उसे पहचानने में गलती कर गये। और इसकी वजह यही थी कि वे सोच भी नहीं सकते थे कि खुद फादर ही एलियेन होगा।

‘‘फ...फादर - एलियेन। नहीं ये नहीं हो सकता।’’ बहुत देर के बाद संजय के मुंह से बड़बड़ाहट के रूप में बोल फूटे। 

‘‘हाँ। मैं ही हूं वह एलियेन। मैंने ही जानवर की शक्ल में आकर अरुण को मारा और मैंने ही उस मगरमच्छ को अपनी सम्मोहन किरणों से वश में करके रिया के ऊपर हमला कराया।’’ फादर की आवाज़ शांत थी - किसी तालाब में ठहरे पानी की तरह।

‘‘क्यों? आपने ऐसा क्यों किया फादर?’’ दीपा चीख पड़ी, ‘‘हमारी क्या दुश्मनी थी आपसे? अगर आप एलियेन भी थे तो हमने आपका क्या बिगाड़ा था।’’ 

‘‘दुश्मनी तो बहुत गहरी थी। और बहुत पुरानी भी।’’ इस बार फादर की आवाज़ बर्फ से भी ज़्यादा ठंडी उन्हें महसूस हुई। 

(जारी है)

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