जब उसकी आँख खुली तो पूरा बदन पसीने में डूबा हुआ था। और हलक प्यास से सूख रही थी। उसने उठकर फ्रिज खोला और ठण्डे पानी की पूरी बोतल चढ़ा गया। फिर वह उस सपने के बारे में सोचने लगा जो उसने अभी अभी देखा था। बहुत भयानक सपना था वह।
‘‘क्या बात है, वहाँ खड़े क्या सोच रहे हो?’’ पीछे से उसकी पत्नी की आवाज़ आयी। वह ठण्डी साँस लेकर मुड़ा, ‘‘कुछ नहीं।’’ वह वापस बेड पर पहुंच गया।
‘‘अशोक, अभी अभी मैंने बहुत भयानक सपना देखा है।’’ उसकी पत्नी बोली।
‘‘कैसा सपना?’’ उसने चौंक कर पूछा।
‘‘मैंने देखा कि एक व्यक्ति छुरे से तुम्हारी हत्या कर रहा है।’’
‘‘क्या!?’’ वह चौंक पड़ा, ‘‘अभी अभी तो मैंने भी यही सपना देखा है। लेकिन यह कैसे संभव है?’’ वह बेयकीनी से बोला।
‘‘हाँ। हम दोनों एक जैसा सपना कैसे देख सकते हैं।’’ पत्नी को भी आश्चर्य हुआ।
‘‘उस आदमी का हुलिया क्या था?’’
‘‘मोटा तगड़ा। काला भुजंग। मुझे तो कोई अफ्रीकी मालूम हो रहा था।’’
‘‘बिल्कुल इसी हुलिये का व्यक्ति मेरे सपने में दिखा था।’’
अब तो दोनों की नींद पूरी तरह उड़ चुकी थी। एक ही जैसा और भयानक सपना। दोनों किसी अनहोनी की आशंका से कांप उठे।
अशोक एक कान्स्ट्रक्शन कंपनी ग्लोटेक्ट में चीफ अर्किटेक्ट के पद पर था। उसने वैशाली के साथ लव मैरिज की थी, अपने घरवालों के खिलाफ। नतीजे में उसके घरवालों ने उससे सम्पर्क तोड़ लिया था। लेकिन उसे इसकी परवाह न थी। क्योंकि वैशाली काफी अच्छी पत्नी साबित हुई थी।
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ग्लोटेक्ट कंपनी के आफिस में पहुंचकर अशोक कुर्सी पर बैठा ही था कि चपरासी चेयरमैन का पैगाम लेकर उसके सामने हाजिर हो गया। चेयरमैन ने उसे मीटिंग रूम में बुलाया गया था।
अशोक जब मीटिंग रूम में पहुंचा तो उसने देखा चेयरमैन के साथ चीफ इंजीनियर और कंपनी के दूसरे उच्च अधिकारी मौजूद थे। जबकि चेयरमैन अपने सामने रखे ग्लोब के किसी खास हिस्से को बुरी तरह घूर रहा था।
‘‘आईए मि०अशोक ।’’ चेयरमैन ने ग्लोब से नज़रें हटाये बिना कहा। अशोक खामोशी से उसके सामने रखी एक खाली कुर्सी पर बैठ गया।
‘‘मि0 अशोक, एक बहुत बड़ा कान्स्ट्रक्शन प्रोजेक्ट ग्लोटेक्ट को मिला है। आपको उसका नक्शा डिजाइन करना है।’’
‘‘ओ-के-।’’ अशोक ने सर हिलाया।
‘‘दरअसल आपको पूरे शहर का नक्शा डिजाइन करना है। वह शहर जो बसने वाला है।’’ इस बार चेयरमैन ने ग्लोब से नज़रें हटाकर उसके चेहरे पर डालीं।
‘‘यह शहर कहाँ पर होगा?’’ उसने पूछा।
‘‘सहारा रेगिस्तान के इस वीरान निर्जन स्थान पर।’’ चेयरमैन ने ग्लोब के एक हिस्से पर अपने पेन की नोक रखी।
‘‘यहाँ पर शहर बसाना एक नामुमकिन सी बात है।’’ चीफ इंजीनियर बोल उठा।
‘‘हमारी कंपनी ने कई बार नामुमकिन को मुमकिन बनाया है। इसी लिये हम पूरी दुनिया में मशहूर हो चुके हैं।’’ चेयरमैन के स्वर में पत्थर की सी सख्ती थी। जवाब में चीफ इंजीनियर खामोश हो गया।
‘‘आप क्या कहते हैं मि०अशोक? इसका नक्शा कितने समय में तैयार हो जायेगा?’’ चेयरमैन अशोक की तरफ घूमा।
‘‘तीन दिन बाद आपको नक्शा मिल जायेगा सर।’’ अशोक ने शांत स्वर में कहा।
‘‘गुड। फिर हम तीन दिन बाद दोबारा मिलते हैं।’’ चेयरमैन ने मीटिंग बर्खास्त कर दी।
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अशोक ने जब प्रोजेक्ट के बारे में वैशाली को बताया तो छूटते ही वह बोली, ‘‘आप इस प्रोजेक्ट में न शामिल हों।’’
‘‘क्यों?’’
‘‘कल सपने में जिस व्यक्ति को हम दोनों ने आपकी जान लेते देखा वह अफ्रीकी था। और यह प्रोजेक्ट भी अफ्रीका का ही है।’’
‘‘अरे हाँ। कैसा अजब संयोग है। लेकिन हमें ऐसी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। एक सपने से डरकर अगर हम काम छोड़ने लगें तो न सिर्फ लोग हमपर हसेंगे बल्कि कंपनी भी मुझे निकाल बाहर करेगी।
‘‘ठीक है। जैसी आपकी मर्जी।’’ एक गहरी साँस वैशाली ने ली।
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तीन दिन बाद इंजीनियर्स की एक और बैठक मीटिंग रूम में शुरू हुई। जिसमें रेगिस्तान में पूरे शहर को बसाने का ब्लू प्रिंट चेयरमैन के सामने पेश होना था। ग्लोटेक्ट के चेयरमैन के साथ कंपनी के और डायरेक्टर्स भी थे। ब्लू प्रिंट बताने की कमाण्ड संभाली अशोक ने।
‘‘दरअसल किसी भी शहर को बसाने के लिये सबसे ज़रूरी चीज़ है पानी। तो सबसे पहले हम इसी प्लान पर विचार करेंगे कि पानी कहां से हासिल होगा। उसे कैसे लाया जायेगा और कहाँ स्टोर किया जायेगा।’’
कहते हुए अशोक ने प्रोजेक्टर चालू किया और उस जगह का नक्शा स्क्रीन पर झिलमिलाने लगा जहाँ शहर बसाया जाना था।
‘‘इस जगह के लिये पानी के हमारे पास दो स्रोत हैं। पहली है नील नदी और दूसरा है समुन्द्र। इनमें से समुन्द्र ज्यादा पास है और पानी का बड़ा स्रोत भी है।’’
चेयरमैन गौर से अशोक की बात सुन रहा था।
‘‘एक विशाल और लम्बी पाइप लाइन समुन्द्र के पानी को शहर के एक सिरे तक पहुंचाएगी जहाँ एक विशाल प्लांट इस पानी को मीठे पानी में बदल देगा। और फिर वह पानी नहर के द्वारा उस विशाल तालाब में गिरेगा जो शहर के बीचोंबीच बना होगा।’’
‘‘तालाब की क्या ज़रूरत? हम शहरवासियों को पाइपों के द्वारा पानी का डायरेक्ट सप्लाई दे सकते हैं।’’ एक डायरेक्टर ने एतराज़ किया।
‘‘शहर बसाने से पहले वहाँ पूरा इको सिस्टम डेवलप करना होगा। जिसके लिये एक विशाल तालाब होना ज़रूरी है।’’ अशोक ने स्पष्ट किया।
‘‘लेकिन उस जगह का टेम्प्रेचर इतना ज्यादा है कि पूरे तालाब का पानी पल भर में भाप बनकर उड़ जायेगा।’’ चेयरमैन ने एक और समस्या उठायी।
‘‘इसके लिये हमारे इंजीनियर्स ने एक तरकीब निकाली है। कुछ छतरी जैसी रचनाएं, जिनमें सोलर पैनल लगे होंगे, सूर्य की रोशनी से ऊर्जा लेकर हवा में मंडराती रहेंगी और हवा के टेम्प्रेचर को कम कर देंगी।’’
‘‘गुड। अब मुझे यकीन हो गया कि हम शहर बसा लेंगे। प्रोजेक्ट की फाइल लाओ। मैं हस्ताक्षर कर देता हूं। यह काम जल्द से जल्द शुरू हो जाना है।’’ चेयरमैन ने खुश होकर कहा।
‘‘सर! एक सवाल हम पूछ सकते हैं?’’ अशोक ने थोड़ा रुकते हुए पूछा।
‘‘पूछो।’’
‘‘यह प्रोजेक्ट हमें किस देश से मिला है?’’
‘‘फिलहाल वह देश अपना नाम नहीं जाहिर करना चाहता। लेकिन शहर बसने के बाद आप लोगों को मालूम हो जायेगा।’’
फिर मीटिंग खत्म हो गयी।
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3 comments:
पहली कड़ी से ही उत्सुकता जगा दी है आपने.
अच्छी चल पडी है -इंडियन साईंसफिक्शन फोरम पर अपडेट लिंक भी देते रहें !
Loved it !!!
वो पढ़ कर कि दोनों ने एक ही सपना देखा, मेरे रौंगटे खड़े हो गए थे.
बहुत बढ़िया. अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा :)
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