‘‘अब आप लोग अपनी कमर में लगी बेल्ट उतारकर हमें दे दीजिए।’’ चेयरमैन उनसे संबोधित हुआ। बाकी दोनों डायरेक्टर मौन थे।
‘‘क्या मतलब?’’ शमशेर सिंह ने आ’चर्य से पूछा।
‘‘आपको याद होगा कि ये काले सूट जो आपने पहन रखे हैं, कम्पनी की ओर से इस निर्देश के साथ दिये गये थे कि इन्हें कभी नहीं उतारना है। यह बेल्ट्स भी इन्हीं सूटों का हिस्सा है। अब अपनी बेल्ट्स उतारकर हमें दे दीजिए ताकि हम आगे की कहानी सुना सकें।’’
तीनों ने अपनी अपनी बेल्ट्स उतारकर आगे बढ़ा दीं। जिन्हें एक डायरेक्टर ने अपने सामने लगी मेज की दराज में रख दिया।
इससे पहले कि मैं कहानी आरम्भ करूं, मैं कुछ दिखाना चाहता हूं। आप लोग मेरे साथ आईए।’’ चेयरमैन ने उठते हुए कहा। उसके साथ साथ बाकी डायरेक्टर और प्रोफेसर इत्यादि भी उठ खड़े हुए।
ये लोग उसी बिल्डिंग के दूसरे कमरे में पहुंचे। यहां सामने एक बड़ी सी स्क्रीन दिखाई पड़ रही थी और कमरे के बीचोंबीच एक प्रोजेक्टर रखा हुआ था।
‘‘प्रोजेक्टर चालू कीजिए मि0 शोरी ।’’ चेयरमैन ने एक डायरेक्टर को संबोधित किया फिर प्रोफेसर इत्यादि से कहने लगा, ‘‘अब मैं आप लोगों को एक फिल्म दिखाऊंगा।’’
‘‘लेकिन हम लोगों को आप कोई कहानी सुनाने जा रहे थे। क्या उसी कहानी पर बनी फिल्म है यह?’’ शमशेर सिंह ने पूछा।
‘‘ऐसा ही समझिए।’’
कमरे में अँधेरा कर दिया गया। फिर फिल्म चलने लगी। फिल्म के दृश्य देखते ही इन तीनों के मुंह भाड़ से खुल गये। और मस्तिष्क कलाबाजियां खाने लगा। क्योंकि पूरी फिल्म उन्हीं दोनों की जंगल यात्रा पर बनी थी। हर दृश्य वही था जो वे जंगल में भुगत चुके थे।
फिल्म चलती रही और वे तीनों इस प्रकर जड़वत होकर उसे देख रहे थे मानो उनके शरीरों से आत्माएं निकल चुकी हों।
लगभग आधा घंटा दिखाने के बाद चेयरमैन ने प्रोजेक्टर बन्द कर दिया और लाइट ऑन कर दी।
कुछ देर तक तीनों उसी प्रकार जड़वत बैठे रहे फिर रामसिंह की मरी हुई आवाज सुनाई दी, ‘‘य--ये--सब क्या है? ये कैसे हुआ?’’
‘‘अभी सब कुछ आप लोगों की समझ में आ जायेगा। आईए वापस उसी कमरे में चलते हैं।
-------
1 comment:
good
susheel kumar bhardwaj
Post a Comment