‘‘प्रोफेसर, हम जंगल से बाहर निकल आये।’’ शमशेर सिंह प्रसन्नता के कारण प्रोफेसर से लिपट गया।
‘‘हां। अब हमें तुरन्त सड़क पर पहुंच जाना चाहिए। फिर किसी ट्रक इत्यादि से लिफ्ट लेकर हम लोग आराम से सभ्य व्यक्तियों की आबादी में पहुंच जायेंगे।’’ प्रोफेसर ने कहा और वे लोग तालाब का चक्कर काटकर सड़क की ओर बढ़ने लगे। रामसिंह एकदम मौन था। उसके मस्तिष्क पर अभी भी मोली की यादें छायी थीं।
जब वे लोग सड़क के पास पहुंचे तो उन्हें कुछ आवाज़ें सुनायी पड़ीं। आवाज की दिशा में देखने पर उन्हें एक और दृश्य दिखाई दिया। जो उस सुनसान स्थान पर उनके लिए अप्रत्याशित था।
‘‘प्रोफेसर, वहां पर तो मकानों का निर्माण चल रहा है।’’ शमशेर सिंह ने आश्चर्य से कहा।
‘‘हां। लगता है जैसे कोई बड़ी बिल्डिंग बनायी जा रही है। और वहां मशीनें भी लगी हैं।’’ प्रोफेसर ने इधर उधर देखते हुए कहा।
‘‘क्यों न हम लोग उधर ही चलें। वहां से हमें आसपास के शहर का पता भी मिल सकता है। और लिफ्ट भी मिल सकती है।’’ शमशेर सिंह बोला। जिसपर सर हिलाकर दोनों ने अपनी सहमति दी और उधर की ओर बढ़ने लगे।
जब वे लोग उस स्थान के पास पहुंचे तो उन्होंने देखा कि एक इमारत पूरी तरह तैयार हो चुकी थी और दो का निर्माण चल रहा था। उन लोगों ने पूर्णत: निर्मित इमारत की ओर रुख किया। वहां जनरेटर चल रहा था और उसकी सहायता से इमारत के अन्दर प्रकाश व्यवस्था थी।
दरवाजे के पास पहुंचकर प्रोफेसर ने काल बेल पर उंगली रखी। थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला और एक व्यक्ति उनकी ओर प्रश्नात्मक दृष्टि से देखने लगा। वह कोई नौकर प्रतीत हो रहा था।
‘‘हमें इस मकान के मालिक से मिलना है।’’ प्रोफेसर ने अंग्रेजी में उससे बात की।
‘‘अन्दर आ जाईए।’’ वह बोला। और अन्दर की ओर बढ़ गया। प्रोफेसर इत्यादि उसके पीछे थे।
एक कमरे के सामने जाकर वह रुक गया जिसका दरवाजा बन्द था। उसने इन्हें संबोधित किया, ‘‘दरवाजा खोलकर अन्दर चले जाईए।’’ कहकर वह वापस पलट गया।
शमशेर सिंह ने दरवाजे को धक्का दिया और तीनों ने एक साथ अन्दर कदम रखा।
किन्तु अन्दर कदम रखते ही तीनों के मस्तिष्क भक से उड़ गये।
आर-डी-बी-ए- कंपनी के चेयरमैन मि0 जमशेद अपने दोनों डायरेक्टरों के साथ सामने बैठे मुस्कुरा रहे थे।
‘‘क्या मैं कोई सपना देख रहा हूं।’’ प्रोफेसर ने भर्रायी हुई आवाज में कहा।
‘‘फिलहाल तो यह हकीकत है। हम लोग बहुत देर से यहां बैठे आप लोगों की प्रतीक्षा कर रहे थे।’’ चेयरमैन ने कहा।
‘‘आपको कैसे पता कि हम यहां आने वाले थे।’’ प्रोफेसर ने हैरत से पूछा।
‘‘अभी सब कुछ स्पष्ट हो जायेगा। फिलहाल आप लोग तशरीफ़ रखिए।’’ चेयरमैन ने तीनों को बैठने का संकेत किया और प्रोफेसर इत्यादि सामने रखी कुर्सियों पर बैठ गये।
1 comment:
लगता है अब समाप्ति की ओर है।
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जल में रह कर भी बेचारा प्यासा सा रह जाता है।
जिसपर हमको है नाज़, उसका जन्मदिवस है आज।
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