Wednesday, December 16, 2009

प्लैटिनम की खोज - एपिसोड : 73


‘‘हे मेरे देवता। जब आपको शान्ति कुंज में शान्ति मिल जायेगी तो वापस पधारियेगा । हम आपका इंतिजार करेंगे।’’ सरदार ने झुक कर कहा।
‘‘अरे मेरे देवता। कहां जा रहे हैंं? अब मुझे अण्डे कौन देगा।’’ भीड़ को चीरती हुई मोली निकली और गाड़ी से चिमट गयी।

‘‘धीरज रखो । हम फिर आयेंगे।’’ प्रोफेसर ने उसे दिलासा दिया।
भैंसा गाड़ी आगे बढ़ने लगी। उसके साथ साथ जंगलियों ने भी आगे बढ़ना आरम्भ कर दिया। एक जंगली आगे बढ़ा और एक गट्‌ठर गाड़ी के अन्दर रख दिया।

‘‘ये क्या है?’’ प्रोफेसर ने पूछा।
‘‘इसमें गोभियां हैं। शान्ति कुन्ज में आप इन्हें भोजन के रूप में प्रयोग करियेगा।’’ सरदार ने कहा।
‘‘तो क्या वहां भोजन नहीं मिलता?’’ प्रोफेसर ने पूछा।

‘‘नहीं। क्योंकि वह कुन्ज जंगल की सीमा से बाहर है।’’ सरदार ने बताया।
गाड़ी अब बस्ती के बाहर निकल आयी थी । पीछे अब इक्का दुक्का जंगली रह गये थे। फिर वे भी लौट गये। अन्त में सरदार ने उनसे विदा ली।

रामसिंह अब ढीला पड़ गया था। उसे नींद आ रही थी। लम्बी उछल कूद ने उसे थका दिया था।
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गाड़ी अपनी रफ्तारसे आगे बढ़ रही थी। अचानक शमशेर सिंह घबरायी हुई आवाज में बोला, ‘‘प्रोफेसर! मुझे जल्दी से अपने पीछे छुपा लो।’’
‘‘क्यों क्या हुआ?’’ प्रोफेसर ने चौंक कर पूछा।

‘‘आदमखोरों के सरदार की बेटी सामने टहल रही है।’’ शमशेर सिंह ने एक ओर संकेत किया। जहां मोगीचना भ्रमण करती हुई अपने प्रेमी की विरह में उदास थी और कोई दर्द भरा गीत गा रही थी जो उसकी भारी आवाज में चारों ओर गूंज रहा था।
‘‘मेरा विचार है कि तुम्हें उसे जाकर दिलासा देना चाहिए।’’

‘‘चुप!’’ शमशेर सिंह ने प्रोफेसर का मुंह बन्द कर दिया, ‘‘यदि फिर ऐसी बात की तो मैं तुम्हें कंपनी के पिस्तौल से गोली -----अरे मेरा सूटकेस कहां गया। उसमें मेरा पिस्तौल था।’’ शमशेर सिंह इधर उधर देखने लगा।
‘‘ध्यान से सोचो,उसे कहां छोड़ा था तुमने ?’’ प्रोफेसर ने कहा।

‘‘ओह! उसे तो मैं आदमखोरों की बस्ती में छोड़ आया। कमबख्त मोगीचना ने मुझे ऐसा दौड़ाया कि मैं सूटकेस उठाना ही भूल गया।’’ शमशेर सिंह ने सर पकड़ कर कहा।

‘‘कोई बात नहीं। हमारे भी सूटकेस बस्ती में छूट गये हैं।’’ प्रोफेसर इत्मिनान से बोला। फिर घबरा कर कहने लगा, ‘‘अब क्या होगा, उसमें मेरा जाँघिया और बनियान था। अब मैं नहा के क्या पहनूंगा।’’
‘‘नहाने की आवश्यकता क्या है। तुम तो वैसे भी महीने में एक बार नहाते हो। तब तक हम शान्ति कुंज से वापस आ जायेंगे।’’

‘‘यह भी ठीक है। लेकिन मुझे डर है कि उस सूटकेस को कोई खोल न ले। उसमें मेरी चमत्कारी औषधियां रखी हैं। और मेरी प्रयोगशाला का समस्त सामान भी है। अगर किसी ने खोलने की कोशिश की तो सब चौपट हो जायेगा।’’ 

3 comments:

Arvind Mishra said...

समझ नहीं आ रहा इस वैविध्य समृद्ध रचना को हास्य अथवा एस ऍफ़ में ,कहा रखा जाय

seema gupta said...

जहां मोगीचना भ्रमण करती हुई अपने प्रेमी की विरह में उदास थी और कोई दर्द भरा गीत गा रही थी जो उसकी भारी आवाज में चारों ओर गूंज रहा था।
" ha ha ha ha ha ha interesting.."

regards

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

ये शमा जलती रहे।
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छोटी सी गल्ती जो बडे़-बडे़ ब्लॉगर करते हैं।
क्या अंतरिक्ष में झण्डे गाड़ेगा इसरो का यह मिशन?