मुर्गियों की तलाश आरम्भ हो गयी थी।
जंगलियों ने आपस में कई ग्रुप बना लिये थे। हर ग्रुप अलग अलग स्थानों पर मुर्गियों की खोज कर रहा था। इन्हीं में से एक ग्रुप में प्रोफेसर और रामसिंह थे।
‘‘प्रोफेसर, वह रही एक मुर्गी।’’ रामसिंह ने एक ओर संकेत किया।
प्रोफेसर ने गौर से उधर देखा फिर बोला, ‘‘वह मुर्गी नहीं बल्कि मुर्गा है।’’
‘‘यह तुम कैसे कह सकते हो?’’
‘‘इसलिए क्योंकि उसकी पूंछ ऊपर की ओर उठी है। जबकि मुर्गियों की पूंछ नीचे की ओर झुकी होती है।’’
‘‘हो सकता है उसने अपनी मर्जी से पूंछ ऊपर उठा ली हो।’’
‘‘वह मुर्गियों की मर्जी है, तुम्हार मर्जी नहीं कि जब जी चाहा उसे बदल दिया।’’
‘‘अगर वह मुर्गा है तो उसकी कलगी कहां है?’’ रामसिह ने दलील दी।
‘‘मेरा विचार है कि वह बिना कलगी का मुर्गा है।’’
‘‘लेकिन उसे पकड़ने में क्या हर्ज है? जंगलियों का पोलेट्री फार्म बनाने के लिए मुर्गा और मुर्गी दोनों की आवश्यकता पड़ेगी।’’
‘‘ठीक है। चलो उसे पकड़ते हैं। लेकिन वह गया कहां?’’ प्रोफेसर ने उस स्थान की ओर देखा जहां अब मुर्गा नदारद था।
‘‘हम लोगों की बहस में वह निकल गया।’’ रामसिंह ने मायूस होकर कहा।
‘‘मेरा विचार है कि वह यहीं कहीं होगा। चलो उसे तलाश करते हैं।’’
दोनों आगे बढ़े। झाड़ियां फलांगने के बाद मुर्गा फिर से दिख गया।
‘‘ऐसा करते हैं कि मैं इधर से जाता हूं और तुम घूम कर दूसरी ओर से उसे घेरो। जब वह दो ओर से घिर जायेगा तो भाग नहीं पायेगा और आसानी से हमारी पकड़ मे आ जायेगा।
‘‘ठीक है ऐसा ही करते हैं।’’ रामसिंह घूम कर दूसरी ओर जाने लगा जबकि प्रोफेसर धीरे धीरे आगे की ओर बढ़ने लगा। थोड़ी देर बाद दोनों उसके पास पहुंच गये। मुर्गे ने अभी तक भागने का प्रयत्न नहीं किया था बल्कि गौर से प्रोफेसर की ओर देख रहा था।
फिर रामसिंह और प्रोफेसर ने एक साथ मुर्गे की ओर अपने हाथ बढ़ाये। किन्तु इससे पहले कि वे मुर्गे को पकड़ पाते वह कूदकर बगल से निकल गया।
‘‘यह तो मैंने सोचा ही नहीं था कि वह बगल से भी निकल सकता है।’’ प्रोफेसर ने कहा फिर वह मुर्गे की ओर दौड़ा। अब पोजीशन यह थी कि मुर्गा आगे आगे दौड़ रहा था, प्रोफेसर पीछे पीछे तथा रामसिंह प्रोफेसर के पीछे था।
मुर्गा अपने मोटापे के कारण अधिक तेज नहीं दौड़ पा रहा था अत: प्रोफेसर और उसके बीच फासला कम होने लगा।
‘‘बस एक छलांग और फिर तुम मेरे हाथ में होगे।’’ प्रोफेसर बोला और मुर्गे के ऊपर छलांग लगा दीं किन्तु मुर्गा प्रोफेसर का इरादा भांपकर पहले ही किनारे हो चुका था। अत: अगले ही पल प्रोफेसर मुंह के बल जमीन पर था। उसके ठीक पीछे रामसिंह था, वह भी अपनी झोंक में प्रोफेसर के ऊपर पसर गया।
थोड़ी देर बाद जब प्रोफेसर की आँखों के सामने तारे नाचना बन्द हुए तो उसने कराहते हुए रामसिंह को परे किया और उठकर अपना जबड़ा सहलाने लगा।
‘‘मुझे नहीं मालूम था कि मुर्गे पकड़ना इतना मुश्किल काम है।’’ वह बोला।
4 comments:
तो कहानी काफी आगे तक आ पहुँची मगर हास्य का अंदाज वही निराला -अब नियमित देखते हैं !
पहली बार पढ़ रहा हूं... अब लगता है पढ़ना ही पड़ेगा... निरन्तर..
हा हा हा हा मुर्गे का किस्सा रोचक लगा...
regards
रोचक, मजेदार।
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11वाँ राष्ट्रीय विज्ञान कथा सम्मेलन।
गूगल की बेवफाई की कोई तो वजह होगी?
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