Monday, November 16, 2009

प्लैटिनम की खोज - एपिसोड : 57

‘‘तुमने मेरा दर्पण तोड़ दिया।’’ शमशेर सिंह ने बिसूर कर कहा।
‘‘तो इसे फिर से जोड़ लो।’’

‘‘यह नामुमकिन है। दिल टूट कर फिर जुड़ सकता है लेकिन शीशा कभी नहीं जुड़ता।’’ शमशेर सिंह ने परेशानी बताई।
‘‘और यह क्या है?’’ इस बार मोगीचना ने झपट कर वह पिस्तौल उठा ली जो कंपनी ने शमशेर सिंह को अपनी रक्षा के लिए दी थी।

‘‘अरे इसको फौरन रखो यह बहुत खतरनाक वस्तु है।’’ शमशेर सिंह ने चीख कर कहा। उसकी चीख पर घबराहट में मोगीचना के हाथ से पिस्तौल दब गया। एक धमाका हुआ और दोनों भूमि पर लुढ़क गये। मोगीचना के हाथ से पिस्तौल छिटक कर दूर चला गया था।

‘‘यह भयंकर आवाज कैसी थी?’’ थोड़ा होश आने पर वह भयभीत स्वर में बोली।
‘‘यह आवाज नर्क से आयी थी। तुम्हर नानी बोली थी।’’ क्रोधित स्वर में शमशेरसिंह बोला। धमाके के कारण अभी तक उसका दिल कंपकपा रहा था।

‘‘लेकिन आवाज तो उसमें से आयी थी।’’ मोगीचना ने पिस्तौल की ओर संकेत किया।
‘‘उसे रेडियो कहा जाता है। वह नर्क से सबकी आवाज कैच करके हमारे पास पहुंचाता है।’’

‘‘लाओ मैं फिर से अपनी नानी की आवाज सुनती हूँ ।’’ मोगीचना दोबारा पिस्तौल की ओर बढ़ी किन्तु उससे पहले ही शमशेरसिंह ने झपट कर पिस्तौल अपने अधिकार में कर ली थी।
‘‘अगर इस बार तुमने आवाज सुनने की कोशिश की तो आवाज के साथ साथ नर्क के दूत भी आ जायेगे और तुम्हें सशरीर अपने साथ उठा ले जायेंगे।’’ शमशेर सिंह बोला और मोगीचना के बढ़े हाथ वापस हो गये।

‘‘अब ये बातें छोड़ो और मुझसे प्रेमभरी बातें करो।’’ मोगीचना पूरी तरह प्रेम के मूड में आ गयी थी।
‘‘लेकिन कैसे? मुझे ऐसी बातों का कोई तजुर्बा नहीं है। एक दो बार गर्ल्स कालेज के सामने प्रयत्न किया था किन्तु उस समय पब्लिक ने पीट पीटकर हलुवा बना दिया था।’’ शमशेर सिंह ने विवशता से कहा।

‘‘मुझसे कोई बहाना नहीं चलेगा। तुम्हें मुझसे ऐसी बातें करनी पड़ेंगी।’’ मोगीचना ने क्रोधित स्वर में कहा और शमशेर सिंह को घूरने लगी।
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